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सूर्यकांत त्रिपाठी की सरोज स्मृति अविस्मरणीय शोक गीत |
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Paper Id :
19515 Submission Date :
2024-12-12 Acceptance Date :
2024-12-22 Publication Date :
2024-12-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14584731 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' छायावाद
के प्रतिनिधि कवि है। छायावाद को हिंदी साहित्य की परम्परा की
एक कड़ी के रूप में देखा जाता है। इसका उदय हमारे साहित्य की विशेष सामाजिक और साहित्यिक
परिस्थितियों में हुआ। छायावाद का चलन द्विवेदी काल की रूखी इतिवृत्तात्मकता की प्रतिक्रिया
स्वरूप हुआ। छायावादी कविताओं की विशेषतायें उनको हिंदी साहित्य में एक उचित स्थान
दिलाती हैं। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Suryakant Tripathi 'Nirala' is the representative poet of Chhayavaad. Chhayavaad is seen as a link in the tradition of Hindi literature. It arose in the special social and literary circumstances of our literature. The trend of Chhayavaad was a reaction against the dry narrative nature of the Dwivedi period. The characteristics of Chhayavaad poems give them a proper place in Hindi literature. Jai Shankar Prasad, Suryakant Tripathi Nirala, Sumitranandan Pant and Mahadevi Verma are the four eminent pillars of Chhayavaad. Freedom of personality, vast imagination, nature-companionship, human-love, personal romance, high moral ideals, patriotism, national independence etc. are the main themes and characteristics of Chhayavaad poetry. Suryakant Tripathi Nirala (1896 - 1961) is known as a rebel poet due to his rebellious nature. Most of his life was spent in struggle from the socio-economic point of view and during his lifetime he could not make that place in literature which he actually deserved. Parimal, Anamika, Geetika, Tulsidas, Bela, Aradhana etc. are his major poetry collections. Suryakant Tripathi Nirala gave the concept of free verse to Hindi literature and his songs hold an important place in Hindi literature. The long poem 'Ram Ki Shakti Pooja' composed by him, full of grandeur, is a great achievement of Hindi literature. The poem 'Saroj Smriti', full of autobiographical elements, written in 1935, is the best mourning song in Hindi, quoted by the Chhayavadi poet Surya Kant Tripathi 'Nirala'. After the untimely death of his daughter Saroj, he composed the best mourning song of Hindi literature, 'Saroj Smriti'. In the present research paper, the author has reviewed Saroj Smriti composed by Suryakant Tripathi Nirala, considering it as a mourning song. |
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मुख्य शब्द | सरोज स्मृति, अविस्मरणीय, शोकगीत, छायावाद, अग्रदूत, अपराजेय। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Saroj Smriti, Unforgettable, Mourning, Shadowism, Forerunner, Invincible. | ||||||
प्रस्तावना | अपराजेय व्यक्तित्व के धनी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' छायावादी कवि थे। वह छायावाद के प्रमुख स्तम्भ थे जिनके संदर्भ के बिना छायावाद की जड़ों तक नहीं पहुंचा जा सकता। आधुनिक हिन्दी साहित्य के क्षितिज पर दैदीप्तमान सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को हिन्दी कविता में छायावाद का अग्रदूत माना जा सकता है।
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अध्ययन का उद्देश्य |
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साहित्यावलोकन |
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मुख्य पाठ |
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला': सामान्य व्यक्तित्व परिचय
निराला ने हिंदी साहित्य में एक निर्भीक चिंतन की परम्परा स्थापित की थी। उनका व्यक्तित्व विद्रोही था तथा वह असत्य का सदैव विरोध करते थे। निराला संबंधी लेखों में तथ्य निरूपण और साहित्य मूल्यांकन की अपेक्षा व्यक्ति पूजा की भावना अधिक रही है। प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व की सीमाएं होती है और निराला जी का व्यक्तित्व सीमा युक्त था। अगर उनके रचनात्मक अंश को ग्रहण किया जाय तो वह निश्चय ही अपराजेय थे। विद्रोही स्वभाव के होने के अतिरिक्त निराला के व्यक्तित्व का एक पहलू यह भी था कि उनमें करुणा और दानशीलता कूट-कूट कर भरी थी। उनका हृदय परदुखकातर था और जब भी वह किसी व्यक्ति को अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करते हुए देखते थे, तो वह तन, मन और धन से उसकी मदद करने हेतु तत्पर रहते थे। धन, वस्त्र जो कुछ उनके पास हुआ, उसे देकर दूसरे का दुख दूर करने में उन्हे तनिक भी आगा- पीछा न होता था। उन्होंने बंगाल के महत्वपूर्ण संत श्री रामकृष्ण परमहंस से दरिद्र नारायण की सेवा करना सीखा था। दीन- दुखियों के अतिरिक्त वे मित्रों, अतिथियों पर भी अपना धन व्यय करते थे। उन्होंने दीन-दुखियों में ब्रह्म के दर्शन करके वेदांत की चरम परिणति की थी। निराला जी ने जीवन को बहुत नजदीक से देखा था क्योंकि माता-पिता की समय से पूर्व ही मृत्यु होने के परिणामस्वरूप उनका जीवन बहुत कठिनाइयों में बीता था। पिता की मृत्योपरांत उनके लिए एक तरफ परिवार के पोषण की चिंता थी, तो दूसरी तरफ अपनी पढ़ाई और भविष्य की। परिणामस्वरूप, वह हाई स्कूल भी नहीं कर सके। महिषा दल की नौकरी छोड़ जीवकोपार्जन हेतु लेखनी के सहारे साहित्य के कुरु क्षेत्र में आगे बढ़ चले। महाभारत का कुरु क्षेत्र धर्म क्षेत्र भले रहा हो, साहित्य क्षेत्र निराला के लिए सूकर खेत ही था। यह बात अलग है कि तुलसीदास की तरह निराला का ज्ञान क्षेत्र सूकर खेत में ही खुला। कवि निराला का अहंकार उनका कवच था जिसके सहारे वह समाज के सम्मान- प्राप्त सज्जनों और साहित्य के कर्णधारों के विद्रूप का सामना करते थे। वह यह कवच उतार कर फेंक सकते थे, परंतु कवि होने की वजह से उनके लिए ऐसा करना संभव नहीं था। सांसारिक ज्ञान के धनी निराला जी इस बात से भली भांति परिचित थे कि 'पैसा हाथ का मैल है और धन मिट्टी है' और कि समाज में मान-सम्मान पैसे से मिलता है तथा साथ जी धन की चकाचौध में मनुष्य के सब दुर्गुण छिप जाते हैं। इस सत्य को निराला किसी भी संसारी की अपेक्षा अधिक समझते थे। हिंदी और अंग्रेजी भाषाओँ के बारे में भी वह इस तथ्य से परिचित थे कि देश का भविष्य हिंदी के साथ जुड़ा हुआ है, अंग्रेजी के राजभाषा होने के बाबजूद भी। उनके अनुसार, अहंकार, क्षोभ, मान-सम्मान की भावना क्षुद्र है। सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' कृत 'सरोज स्मृति': हिंदी काव्य का अतुलनीय शोकगीत सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का हिंदी साहित्य में बहुआयामी कवि के रूप में विशिष्ट स्थान है। कवि के रूप में उनके अमूल्य योगदान को इस अर्थ में देखा जा सकता है कि उन्होंने अपनी लेखनी से विविध विषयों युक्त कवितायेँ सृजित कीं। महाप्राण निराला कृत 'सरोज स्मृति' उनके जीवन की एक गहन यातनापूर्ण त्रासदी है तथा इस अर्थ में यह आत्मकथात्मक है तथा इसमें उनके कवि जीवन का आत्म-चरित है। सरोज स्मृति को शोक गीत की संज्ञा प्रदान की जाती है। कवि निराला के बारे में यह कहा जाता है कि उनका मन अपराजेय था जो प्रत्येक प्रकार के संघर्ष के लिए तैयार था और किसी भी स्थिति में झुकने हेतु तैयार नहीं था, परंतु 'सरोज स्मृति' के अंतर्गत उनका अपराजेय मन टूटता हुआ प्रतीत होता है। निराला जी की लम्बी कविताएं- विशेषकर 'शिवाजी के पत्र' में जो सांस्कृतिक सूर्य उदित हुआ था, 'तुलसीदास' में जिसने 'जागा कवि अशेष छविधर' का रूप लिया था और जो 'राम की शक्ति पूजा' में नैशान्धकार से जूझकर 'होगी जय होगी जय' संघर्ष शिखर में अपराजेय बना रहा था वही, कवि 'सरोज स्मृति' में 'दुख ही जीवन की कथा रही' कहकर सामने आता है और शोकगीत लिखने को विवश होता है। निराला जी की 'सरोज स्मृति' हिंदी साहित्य में एक ऐसे शोकगीत के रूप में मानी जाती है जिसके समान अन्य कोई शोकगीत नहीं हो सकता। निराला की रचनाएँ और उनका कवि स्वभाव एकदम मौलिक है। यह बात उनके शोकगीत 'सरोज स्मृति' पर भी लागू होती है। अन्य शब्दों में, उनका यह शोकगीत पश्चिम 'एलेजी' का अनुकरण नहीं है। अंग्रेजी साहित्य में 'एलेजी' अर्थात शोक गीत लिखने का चलन रहा है। जॉन मिल्टन की लिसिडास पी बी शैले की 'अडोनैस', थॉमस ग्रे की 'एलेजी रिटेन इन ए कंट्री चर्चयार्ड' अंग्रेजी साहित्य के कुछ प्रसिद्द शोकगीत हैं। अंग्रेजी साहित्य में स्थान प्राप्त करने वाली 'एलेजी' एवं निराला कृत 'सरोज स्मृति' में मुख्य अंतर यह है कि अंग्रेजी 'एलेजी' दार्शनिकता की ओर मुड़ जाती है पर निराला की 'सरोज स्मृति' भारतीय विषमताओं पर व्यंग्य करती है। दुख, विषाद, यातना के आवेगों के आँधी-तूफान कवि निराला को असंयत नहीं बना पाते। अपने काव्य-चरित्र में यह 'कैथार्सिस' वाली रचना नहीं है, अपितु 'साधारणीकरण' वाली रचना है। 'निज मोह संकट निवारण' की भूमि पर पनप कर यह मानव के सामूहिक भावों की अभिव्यक्ति हो जाती है। यहां कवि का हृदय अपनी 'निजता' खोकर सच्चे अर्थों में 'लोक हृदय' हो जाता है। लोकानुभूति से भरे लोक-हृदय में लोक-चिंता तड़प उठती है। वैयक्तिक अनुभूति की यह निर्वैयक्तिकता ही साधारणीकृत काव्य-अवस्था है जिसे यह कविता सभी काव्यात्मक शर्तों से पूरा करती है। पुत्री - सरोज के मृत्यु-शोक से व्याकुल पिता का मन उनके कवि मन का संस्पर्श पाते ही सघन व्यथानुभव को रचनात्मकता में बदल देता है और हर आर्थिक रूप से विपन्न भारतीय पिता की व्यथा को वाणी देता है। भारतीय समाज की क्रूरताओं का यह कविता एक खुला भाष्य बन जाती है-एक ऐसा भाष्य जिसमें नंगी वास्तविकताएं ठोस, मूर्त और गोचर रूप में सामने आ जाती हैं। यहां निराला का जीवन-समर, आत्मसंघर्ष एक भारी दबाव में रचनात्मक संघर्ष में बदल जाता है- कवि जीवन-यथार्थ को सीधी विवरणात्मकता में प्रस्तुत करता है- 'प्रतीकार्थ' की अस्पष्ट ध्वनियों से बचाता है। ऐसा बहुत कुछ होने के कारण 'सरोज स्मृति' उनकी अन्य सभी लंबी कविताओं से भिन्न रूप और बोध ग्रहण कर लेती है। सरोज स्मृति के अंतर्गत महाप्राण निराला अपना जीवन- इतिवृत ही कविता में ढालता है। इस कविता में कवि अपना 'जीवन-चरित' लेकर हर जगह मौजूद है। कवि किसी अन्य की आड़ लेकर संवेदनात्मक-ज्ञानात्मक अनुभवों को नहीं कहता है- अपितु अपनी अनुभूति की संश्लिष्ट भाव- दशाओं को सीधे कहता है। अर्थ- व्यंजना का इकहरा व्यापार सीधे संप्रेषण के कारण काफी प्रभावी है - यथा: मुझ भाग्यहीन की तू सम्बल युग वर्ष बाद जब हुई विकल दुख ही जीवन की कथा रही क्या कहूं आज जो नहीं कही? हो इसी कर्म पर वज्रपात यदि धर्म,रहे नत सदा माथ इस पथ पर मेरे कार्य सकल हो भ्रष्ट शीत के-से शतदल ! कन्ये, गत कर्मों का अर्पण कर, करता मैं तेरा तर्पण । कन्या के तर्पण से यह कविता समाप्त होती है। इस कविता के संदर्भ में डॉ राम विलास शर्मा ने लिखा है -"इस कविता का अंत,उसकी परिणति - जितना प्रभावशाली है, उतना अन्य किसी लंबी कविता का नहीं। न 'तुलसीदास', न 'वनवेला', न 'राम की शक्ति-पूजा' - कोई भी कविता के प्रभावशाली अंत की दृष्टि से 'सरोज स्मृति' का मुकाबला नहीं कर सकती। यहां कविता के पूर्व-निश्चित तर्क संगत ढांचे का टूटना ही उसकी सबसे बड़ी सफलता है।" निराला ने आँख-कान खोलकर यह कविता रची है इसलिए इसमें झूठी भावना का झाग नहीं है - आदमी का दर्द है जो चट्टान तोड़ कर निर्झर की भांति निकलता है।इसीलिए इस कविता की काव्यात्मक-संवेदना का ताप आज भी पाठक को भीतर तक छूता है- और अनुभव की ताजगी देता है। 'सरोज स्मृति' उनकी सृजनात्मक शक्ति का ऐसा ही अनुपम प्रमाण है। |
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सामग्री और क्रियाविधि |
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कृत सरोज स्मृति पर आधारित प्रस्तुत अध्ययन
विवरणात्मक एवं विवेचनात्मक अध्ययन है जिसके अंतर्गत महाप्राण निराला जी कृत सरोज स्मृति
की शोक गीत के रूप में साहित्यिक समीक्षा की गई है। लेखक द्वारा इस हेतु निर्धारित
साहित्यिक शोध प्रक्रिया के समस्त चरणों का अक्षरशः पालन किया गया है और साथ ही स्वयं
को सम्पूर्ण लेखन एवं अध्ययन के दौरान प्रस्तुत अध्ययन की वैज्ञानिक प्रकृति की सुनिश्चितता
पर आत्मकेन्द्रित किया है। विषय संबंधी
पूर्व ज्ञान के अलावा विचार-विकास हेतु पूर्व में किये गए एवं
प्रकाशित महत्वपूर्ण अध्ययनों का भी सहारा लिया गया है।
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निष्कर्ष |
छायावाद के चार आधार स्तंभों के रूप में -महादेवी, पंत, निराला, प्रसाद- को जाना जाता है। सौंदर्य चेतना, रहस्यवाद, प्रकृति चित्रण, वैयक्तिकता, प्रेमानुभूति तथा राष्ट्रीय चेतना आदि छायावाद की प्रमुख संवेदनागत विशेषताएँ हैं। कविता के रूप-विन्यास को पुरानी संकीर्ण रूढ़ियों से मुक्त करके छायावादी काव्य ने नवीन अभिव्यंजना प्रणाली के पट खोल दिए। मुक्त और आँसू छन्दों
के साथ ही पहली बार इसी समय हिन्दी साहित्य में तीन नए अलंकारों का प्रयोग किया गया - मानवीकरण, विशेषण विपर्यय और ध्वन्यर्थ व्यंजना वर्तमान
हिन्दी साहित्य समीक्षा की औसत राय यह है कि छायावाद को भक्तिकाल के बाद दूसरा सबसे
महत्त्वपूर्ण काव्य-आंदोलन माना जाता है और खड़ी बोली काव्य का
स्वर्णयुग भी छायावाद को ही माना जाता है। सरोज स्मृति हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ शोकगीत है जो कवी की युवा कन्या सरोज की मृत्यु पर लिखा गया है। कवि के ह्रदय की सारी संवेदना करुणा के रूप में सूर्यकांत त्रिपाठी की इस लंबी कविता में प्रवाहित है। इस कविता में निराला जी ने अपने जीवन के कटु सत्यों तथा व्यावहारिक चिन्तनों को रूपायित किया है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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