ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- IX , ISSUE- XI December  - 2024
Innovation The Research Concept

शिक्षा की गुणवत्ता को विकसित करने में कला का योगदान

Contribution of Art In Improving The Quality of Education
Paper Id :  19523   Submission Date :  2024-12-03   Acceptance Date :  2024-12-22   Publication Date :  2024-12-25
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DOI:10.5281/zenodo.14584857
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यशोदा जोशी
शोधार्थी
शिक्षा शास्त्र
रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय
रायसेन,मध्य प्रदेश, भारत
रेखा गुप्ता
शोध निर्देशक
शिक्षा विभाग
रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय
रायसेन, मध्य प्रदेश, भारत
सारांश

शिक्षा व्यक्ति के सर्वतोन्मुखी विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। शिक्षा एक ओर व्यक्तित्व के ज्ञानात्मक, क्रियात्मक एवं भावात्मक पक्ष का सन्तुलित विकास करती है दूसरी ओर व्यक्ति को समाज के लिये उपयोगी भी बनाती है। प्रत्येक शैक्षिक संरचना समाज की आवश्यकताओं तथा बालक की वृद्धि एवं विकास को देखते हुये प्रत्येक शैक्षिक स्तर पर शिक्षा के कुछ लक्ष्य निर्धारित करती है। इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिये पाठ्यक्रम में कुछ शैक्षिक विषयनिहित किये जाते हैं। जैसे-गणित, विज्ञान व अन्य साहित्यिक विषय विद्यार्थियों के बौद्धिक पक्ष का विकास करते हैं, विविध कौशलों की शिक्षा क्रियात्मक पक्ष का विकास करती है, इसी प्रकार साहित्य व ललित कलायें छात्र के संवेगात्मक पक्ष को विकसित करती हैं। संगीत एक ऐसा विषय है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में विद्यार्थियों के तीनों पक्षों के विकासु में योगदान देता है। इस दृष्टि से प्रारम्भिक कक्षाओं से ही विद्यालय के पाठ्यक्रम में संगीत का एक विशेष स्थान व महत्त्व होना चाहिये जो कि दुर्भाग्य से नहीं है। यदि हम संगीत शिक्षण के उद्देश्यों का अध्ययन करें तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि किस प्रकार संगीत मानव विकास के विविध पहलुओं को गहराई तक प्रभावित करता है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि प्रारम्भ से ही संगीत को किसी न किसी रूप में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाय। 

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Education is the most important means of all-round development of a person. On one hand, education develops the cognitive, functional and emotional aspects of personality in a balanced manner and on the other hand, it also makes a person useful for the society. Every educational structure sets some goals of education at every educational level keeping in view the needs of the society and the growth and development of the child. To fulfil these goals, some educational subjects are included in the curriculum. For example, mathematics, science and other literary subjects develop the intellectual aspect of the students, education of various skills develops the functional aspect, similarly literature and fine arts develop the emotional aspect of the student. Music is a subject which directly or indirectly contributes to the development of all three aspects of the students. From this point of view, music should have a special place and importance in the school curriculum right from the primary classes, which unfortunately is not the case. If we study the objectives of music teaching, it will become clear how music deeply affects various aspects of human development. Therefore, it becomes necessary that music should be made a part of the curriculum in some form or the other from the very beginning. In the presented research, the importance of music and the importance and need for its inclusion as a subject at every level in the school curriculum have been considered.
मुख्य शब्द शिक्षा, कला, विकास।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Education, Art, Development.
प्रस्तावना

सुप्रसिद्ध शिक्षाविद जैकस डेलर्स की अध्यक्षता में गठित शिक्षा का  अंतरराष्ट्रीय आयोग जिसकी रिपोर्ट "लर्निंग डी ट्रेजर विद" इन शीर्षक में यूनेस्को द्वारा  प्रकाशित किया गया यूनेस्को द्वारा प्रकाशित यह रिपोर्ट एक क्रांतिकारी रिपोर्ट थी।जिसने संपूर्ण विश्व की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिए । यदि हम देखें तो इसके  दो स्तंभ 'होने के लिए सीखना, साथ रहने के लिए सीखना, शिक्षा में कलाओं के  उपयोग का एक मजबूत पैरोंकार है। अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए जीवन में स्वतंत्रता एवं आनंद का महत्वपूर्ण स्थान होना चाहिए जो हमें विभिन्न कलाओं के मध्य से सहज प्राप्त हो सकता है। अतः शिक्षा के इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए कला शिक्षा एक महत्वपूर्ण प्रमुख साधन हो सकती है। साथ ही साथ रहने के लिए सीखना अर्थात दूसरों की समझ विकसित करना अन्य व्यक्तियों से प्रभावी संप्रेषण समाज को समझना समाज के नियम कायदे और रीति रिवाज आदि को समझना शामिल हैं।  इसके लिए भी विभिन्न कलाएं एक सशक्त माध्यम हो सकती है, क्योंकि विभिन्न कलाओं का सामान्य उद्देश्य संप्रेषण विभिन्न अंतर्द्वंद का उद्घाटन एवं आनंद की प्राप्ति है। मानव जीवन के विकास में कला का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कला का व्यावहारिक तथा सैद्धांतिक ज्ञान होने पर मानव में सौंदर्य बोध मुक्त अभिव्यक्ति तथा सृजनात्मक का विकास होता है वह कल्पना शक्ति आत्म शक्ति चिंतन शक्ति का विकास का चरमोत्कर्ष एवं आनंद परमानंद का अनुभव करता है कल और संगीत का साथ चेतन था सत्य हैकला व्यक्ति के मन में बनी स्वार्थ परिवार क्षेत्र धर्म भाषा और जाति आदि की सीमाओं को तोड़कर उसे विस्तार देती है वह व्यक्ति के मन को उदार बनती है और स्वर से निकलकर वसुदेव कुटुंबकम से जोड़ती है कला का जन्म संभव तथा सूर्य एवं प्रकाश तथा चंद्र करने के साथ हुआ होगा वह युग युगीन साथ भविष्य में भी रहेगा एक ओर जहां नाटक दिनभर के परिश्रम से मानव का मनोरंजन करता है कला और नाटक जीवन को रसमय बनाकर हमारी उन्नति में सहायता का कार्य करती है। इस कला रस द्वारा एक और जहां मानसिक शक्तियों का विकास होता है वहीं दूसरी ओर मानव की भावनाओं का विकास होता है स्थापत्य कला मूर्ति कला चित्रकला संगीत कला और नाट्य कला इत्यादि समस्त कलाओं के सौंदर्य तत्व होते हैं।

अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत शोध में संगीत के महत्त्व तथा विद्यालय पाठ्यक्रम में प्रत्येक स्तर पर एक पाठ्य विषय के रूप में इसके समावेश के महत्त्व एवं आवश्यकता पर विचार किया गया है।
साहित्यावलोकन
प्रस्तुत शोधपत्र के लिए विभिन्न पुस्तकों जैसे डॉ शोभना शाह की ‘संगीत शिक्षण’, डॉ चित्रलेखा, बोहरा एवं डॉ मोना सिंह की ‘शिक्षा में नाटक एवं कला’, रीता प्रताप की ‘भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास’ और रीता चौहान की नाटक, कला और शिक्षा आदि का अध्ययन किया गया है
मुख्य पाठ

कला की विशेषता

दुनिया के सभी व्यक्तियों की अभिव्यक्ति का तरीका प्राय: अलग-अलग होता है। किसी की अभिव्यक्ति दृश्य हो सकती है। किसी की अभिव्यक्ति श्रव्य हो सकती है। जब एक शिक्षक इन भिन्न-भिन्न अभिव्यक्ति के माध्यमों को अपनी शिक्षण प्रक्रिया में शामिल कर लेते हैं, तब वह व्यक्ति की संप्रेषण क्षमता को और प्रभावी बनाने में सक्षम हो जाते हैं। अभिव्यक्ति कला शिक्षण का तात्पर्य कला संगीत, नृत्य, ड्रामा, कविता, रचनात्मक, लेखन, खेल, चित्र, आदि विधाओं के शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में उपयोग से है ताकि यह प्रतिक्रियाएं और प्रभावी हो सके और बच्चों के सर्वांगीण विकास में मदद मिल सके।अनुभव एवं भावनाओं की संगीत,चित्र, भाषा, मुद्रा, गति एवं भावभंगिमा के माध्यम से सुनियोजित अभिव्यक्ति है ही कला है। कला बच्चों में संवेदी भावनात्मक, बौद्धिक एवं रचनात्मक रूप से समृद्ध करती है और उसके सर्वांगीण विकास में मदद करती है। समझ में उपलब्ध कई स्तरीय वस्तुएं कई प्रकार के कलाओं में से विकसित हुई है और वह सांस्कृतिक विकास में सहायता सहायक एवं समाज कल्याण की भावना के विकास में सहायक है। कला शिक्षा विद्यार्थियों को संप्रेषण के वैकल्पिक तरीके सीखने में मदद करती है। यह विभिन्न व्यक्तिगत एवं नवीन विचारों को प्रोत्साहित भी करती है, और बच्चे में बहु बुद्धि के विकास में अत्यंत सहायता करती है। माध्यमिक स्तर पर एक उद्देश्य पूर्ण कला शिक्षा जीवन को उन्नत करने एवं रचनात्मक क्षमता को उत्तेजित करने विभिन्न कौशलों को बढ़ाने एवं बालक के समायोजन में सहायक होती है। कला एक नवीन निर्माण करती है। नवीन निर्माण का अनुभव करना अनुभव की अभिव्यक्ति करना कलाकार के सुनियोजित विकास निर्माण की प्रक्रिया में खो जाना। कलाकार का आनंद उठाना। कलात्मक सामग्री को संयोजित विकास करना। कलाकार का क्रियाशील रहना। यह सभी कलाओं की विशेषताएं हैं। जिससे मनुष्य का विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास होता है। इसके अतिरिक्त स्व अभिव्यक्तिसक्रिय सहभागिता, कल्पनाशीलता, एवं शरीर का संबंध समूहगत्यात्मकतासमूह भावना का विकास,नेतृत्व क्षमता का विकास, सामाजिक समायोजन, सहनशीलता,धैर्य व स्थिरता यह सारे गुण कला में पाए जाते हैं।

कला शिक्षा एवं बालक का सर्वांगीण विकास

नाट्य शिक्षा के महत्व:

1. विद्यार्थियों के आत्मविश्वास में वृद्धि

कक्षा में एक नयी भूमिका को स्वीकार करना एवं दर्शकों के सामने मंच पर एक पात्र विशेष की भूमिका अदा करना बच्चों को उनके विचारों और योग्यताओं पर विश्वास करने में मदद करता है। नाटक की क्रियाओं द्वारा प्राप्न आत्मविश्वास बाद के जीवन में उनके कार्य, उनके विद्यालय एवं उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं में शामिल हो जाता है।

2. छात्रों की कल्पनाशीलता में वृद्धि

नाटक के क्रम में रचनात्मक विकल्पों की तलाश, नये विचारों को सोचना, परिचित वस्तुओं को नवीन तरीकों से दर्शकों के सामने रखना आदि क्रियाओं बच्चों की कल्पनाशीलता में वृद्धि करती है। और जैसा कि आइस्टीन ने कहा है कल्पनाशीलता, ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है।

3. समानुभूति का विकास भिन्न भिन्न परिस्थितियों में, विभिन्न संस्कृति के कलाकारों के बीच अलग अलग किरदारों को निभाते हुए बच्चे में दूसरों के दृष्टिकोण को समझाने में, और उनके प्रति सहनशील बनाने में मदद करता है तथा इस प्रकार से उनकी समानुभूति को बढ़ाता है।

4. सहयोग भाव सामूहिकत भाव को बढ़ावा नाट्य कला प्रतिभागियों के विचारों एवं योग्यताओं को जोड़ता है। इस सहयोगात्मक प्रक्रिया में पारंपरिक वैचारिक आदान-प्रदान, पूर्वाभ्यास, प्रस्तुतिकरण आदि शामिल हैं। ये क्रियायें बालकों में सहयोग की भावना एवं समूह की भावना का विकास करता है। जो जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

5. एकाग्रता को बढ़ावा नाट्य कला एक बड़े दर्शक समूह के सामने प्रस्तुत किया जाता है। ऐसे में इसके पूर्वाभ्यास, प्रस्तुतीकरण । प्रतिभागियों से उच्च स्तर की एकाग्रता अपेक्षिक होती है।

6. संप्रेषण कौशल में वृद्धि एवं वाणी सभी के स्तर पर आती है। एकता का यह अभ्यास विद्यार्थियों के जीवन में सभी स्तर की मदद करता है।

7.समस्या समाधान कौशल का विकास नाटक में भाग लेते हुए कैसे, किसने, कितना और कहा सम्प्रेषण करना है साथ कई अत्याशित परिस्थितियों को संभालने के लिये त्वरितता लाता है।

8.खेल मस्ती/मनोरंजननाटक बालकों के लिए मस्तिष्क की ऊर्जा को बढ़ता है और कार्य करने की क्षमता को अधिक कर तनाव को कम करता है।

9.भावनात्यक अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम नाटक क्रियायें बच्चे को विभिन्न प्रकार कीभावनाओं एवं दमित इच्चाओं को अभिकरने करने का एक माध्यम प्रदान करती है यह बालको की आक्रामकता एवं तनाव को सुरक्षित रचनात्मक तरीके से कम करने में करती है इस प्रकार उनमें असामाजिक व्यवहारों की संभावना को कम कर देती है।


10. आरामदायी

कई नाट्य क्रियायें बच्चों को शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक तनाव को अभिव्यक्ति करने एवं उत्पन्न तरावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

11. आत्मानुशासन को बढ़ावा

नाटक विचारों के क्रियाओं एवं क्रियाओं के प्रस्तुतकरण के रूप में प्रतिस्तन है जो बच्चों को अभ्यास एवंधैर्यकी कीमत बताती है। नाट्यकला एवं रचनात्मक गतिशीलता बच्चों के आत्मनियंत्रण को बढ़ाता हें|

12. पारम्परिक विचारों को बढ़ावा

नाटक की विभिन्न प्रक्रिया के दौरान प्रतिभागियों के बीच होने वाली अंतः क्रिया प्रतिभागियों का नाटक की क्रियाओं में शारीरिक गतिशीलता होती है जो बच्चे के शरीर को क्रियाशील रखते हुए उनमें लचीलापन समन्वय संतुलन एवं नियंण को बढ़ाती है।

13. शारीरिक स्वास्थ्य लाभ

अपने प्रति, दूसरों के प्रति और उस प्रक्रिया के प्रति विश्वास बढ़ाता है। नाटक की क्रियाओं में शारीरिक गतिशीलता होती है, जो बच्चे के शरीर को क्रियाशील रखते हुए उनमें लचीलापन समन्वय, संतुलन एवं नियंत्रण को बढ़ाती हें|

14. स्मरण शक्ति में वृद्धि

नाटक की क्रियाओं के पूर्वाभ्यास एवं पुनराभ्यास के दौरान बालक को शब्द भावभंगिमा, शारीरिक स्थिति आदि सभी का स्मरण रखना होता है एवं उन्हें बार बार हराना होता है जो बच्चे की स्मरण शक्ति बढ़ाने में मददगार है।

15. समाजिक रूप से जागरूक बनना

नाटक की क्रियायें, यथा कहानी, कवितायें, दंत कथाएं खेल आदि बालक को विभिन्न सामाजिक आयामों, समस्याओं, संस्कृतियां के बीच के इंद्र आदि के बारे में सिखा देती है जो बच्चों की सामाजिक, सांस्कृतिक जागरुकता को बढ़ाने एवं उन्हें सझने में उनकी मदद करती है।

16. सौन्दर्य बोध में वृद्धि

नाटक में भाग लेना एवं नाटक देखना दोनों ही क्रियाये बच्चों में आलोचनात्मक चिंतन एवं उनके सौंदर्य बोध को बढ़ाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नाट्य शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 

पाठ्यक्रम में कला का स्थान

कला शिक्षा के निम्नांकित सामान्य लक्ष्य हैं:

  1. बालक को विभिन्न कलाओं द्वारा अपने विचार, भावनाओं एवं अनुभवों की खोज, स्पष्टता एवं अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करना,
  2. बालको को सौन्दर्यनुभूति प्रदान करना एवं बालक में दृश्य कलाओं, संगीत ड्रामा, नृत्य, साहित्य के प्रति सौंदर्य चेतना विकसित करना, बालकों में बातावरण के दृश्य, मौखिक, स्पर्श, स्थानिक गुणों के प्रति जागरूकता एवं संवेदन शीलता विकसित करना,
  3. बालक में रचनात्मक अभिव्यक्ति की योग्यता एवं क्षमता विकसित करना जो आनंद पूर्ण हो,
  4. बालक को दैनिक जीवन की विभिन्न समस्याओं को उपयुक्त कल्पनाशीलता का प्रयोग करते हुए रचनात्मक रूप से हल करने में सक्षम बनाना और उसकी मौलिकता को बढ़ावा देना,
  5. बच्चे के स्व अभिव्यक्ति के माध्यम से उसमे आत्म विश्वास एवं आत्म सम्मान की भावना को बढ़ाना,
  6. बच्चे को विभिन्न संसकृतियों से परिचित कराना एवं उसमे आपने राष्ट्र, अपनी संस्कृति आदि के प्रति सम्मान एवं श्रेष्ठता का भाव विकसित करना।

कला की इस महानता को देखते हुये हम यही निष्कर्ष निकालेंगे कि कोई भी अच्छा स्कूल पाठ्यक्रम बिना कला के नीरस व बंध्या है। कोई भी शिक्षा कला के बिना अधूरी है क्योंकि इससे सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता है। यह मनुष्य की सृजनात्मक प्रवृत्ति व क्षमता को प्रकाशित करता है। इससे मनुष्य के संवेगात्मक, शारीरिक व मानसिक  तीनों पक्षों का विकास होता है। समूह में गायन या वादन, धुनें, लय की प्रशिक्षा इत्यादि बालक को अनुशासन व उत्तरदायित्व की भावना का भी प्रशिक्षण देती हैं। अतः प्रारम्भिक कक्षाओं में विशेष रूप से लड़के व लड़कियों के लिये कला शिक्षा उपयोगी है। दुर्भाग्यवश कला को स्कूलों में गौण स्थान दिया जाता है। भारत में लड़कों की संगीत शिक्षा प्रायः नगण्य ही है तथा केवल कुछ संस्थाओं में ही इसे पाठ्य सहगामी क्रिया के रूप में केवल पूर्व-प्राथमिक व प्राथमिक कक्षाओं में रखा जाता है।

शिक्षा संस्थाओं में कला शिक्षा का स्तर भी प्रायः संतोषप्रद नहीं है। अन्य विषयों की अपेक्षा कला को हेय दृष्टि से देखा जाता है। यही कारण है कि स्कूलों में जिन छात्राओं को किसी विषय में प्रवेश नहीं मिलता वे कला विषय ले लेती हैं। ये सोचकर कि इसमें तो बिना पढ़े ही पास हो जाते हैं तथा वास्तविकता में होता भी यही है। प्रायः इण्टर में आकर वे छात्रायें कला में संगीत ले लेती हैं जिन्होंने हाईस्कूल तक कला में संगीत किसी भी प्रकार का औपचारिक या अनौपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया है। संगीत का विषय के रूप में चयन करने के लिये प्रवेश हेतु कोई योग्यता अथवा अभिरुचि परीक्षण नहीं होता। लेखक का यह व्यक्तिगत अनुभव है कि  उनकी बी० ए० की छात्रायें जिन संस्थाओं में संगीत कला शिक्षण के लिये जाती हैं वहाँ संगीत की अधिकांश छात्रायें इण्टर कक्षा तक भी, इस प्रकार की हैं जिनके पास घर पर अभ्यास करने की कोई सुविधा नहीं है। यहाँ तक कि उनके पास आवश्यक वाद्य यंत्र जैसे तबला, सितार, हारमोनियम या तानपूरा इत्यादि नहीं है तथा वे उसी स्थिति में बी० ए० भी पास कर लेती है। आवश्यकता इस बात की है कि अभिभावक, विद्यार्थी व शिक्षा संस्थाओं के इस दूषित दृष्टिकोण में परिवर्तन किया जाय। वे संगीत कला के बारे में एक स्वस्थ विचारधारा अपनायें। एक निर्धारित स्तर तक सभी शिक्षा संस्थाओं में सभी छात्र-छात्राओं के लिये संगीत कला एक अनिवार्य विषय के रूप में रखा जाय। इससे जो विद्यार्थियों इसे भावी व्यवसाय के रूप में नहीं अपना रहे हैं वे भी लाभान्वित हो सकेंगे। वे संगीत कला को एक हॉबी के रूप में अपनाकर अपने खाली समय का रचनात्मक उपयोग कर सकेंगे।

कला एवं शिक्षा का सम्बन्ध

कला जीवन के प्रत्येक पहलू को पूर्णता प्रदान करने की एक प्रक्रिया है। कला जीवन को देखने का नवीन ढंग प्रदान करती है। यह सृजनात्मक, उत्पादक तथा आनन्दपूर्ण ढंग से वर्तमान एवं भावी चुनौतियों का सामना करने का एक रास्ता है। कला शब्द केवल मूर्तिकला एवं चित्रकला तक ही सीमित न रहकर समस्त भाव के प्रकाशन से सम्बन्ध रखती है जो शिक्षक शिक्षा का उद्देश्य सुन्दर जीवन का निर्माण मानते हैं वे चित्रकला एवं मूर्तिकला की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं। यदि शिक्षा मनुष्य की जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है तो कला के बिना भी मनुष्य को पशुतुल्य माना गया है। इस सन्दर्भ में भर्तृहरि ने अपने काव्य नीति शतक में भी कहा है कि-

"साहित्य संगीत कला विहीन। साक्षात् पशु पुच्छ विषाणहीन ।।'

अर्थात् 'साहित्य, संगीत और कला के बिना मनुष्य बिना पूँछ व सींग वाले पशु के समान है।

साहित्य, संगीत और कला तीनों का ही शिक्षा के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। ये किसी न किसी रूप में शिक्षा के साथ निरन्तर सम्बद्ध रहते हैं। शिक्षा के पाठ्यक्रम में वर्तमान समय में सभी कलाओं को प्रमुख स्थान दिया जा रहा है। शिक्षा में चित्रकला, मूर्तिकला,स्थापत्य कला, संगीत एवं काव्यकला आदि सभी कलाओं का अध्ययन कराया जा रहा है।

शिक्षा के अन्तर्गत, पाठ्यक्रम शिक्षण विधियों, अधिगम आदि सभी में कला अपना सहयोग देती है तथा उसे सरलीकृत करके प्रस्तुत करती है।

शिक्षा में कला/कला में शिक्षा

कला-शिक्षा का उद्देश्य स्वायत्त विकास एवं स्वायत्त प्राप्ति के लिए कार्य क्षेत्रों को प्रस्तुत करना है। नाना प्रकार के पदार्थों से बालकों द्वारा नए-नए प्रयोग करवाना, सुन्दर वस्तुओं द्वारा मनोरंजन करते हुए खेल-खेल में ही रचनात्मक कृतियों की सृष्टि कराना है। कला विचारों तथा विभिन्न मतों की उन्मुक्ति के सूक्ष्म निरीक्षण के लिए मानसिक एवं आत्मिक शक्ति उत्पन्न करती है। कला में शिक्षा और शिक्षा द्वारा कला का विकास निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा दर्शाया जा सकता है-

  1. कला की शिक्षा आत्म-प्रदर्शन, आत्मानुभूति, आत्म-निर्णय, आत्म-चिन्तन और आत्म-अभिव्यक्ति आदि अभूतपूर्व क्षमताएँ उत्पन्न कर उन्हें कार्यान्वित करने का अवसर प्रदान करती है।
  2. शिक्षा में कला सौन्दर्यानुभूति प्रदान कर सत्य को स्पष्ट करती है।
  3. शिक्षा मनुष्य को जीवन प्रदान करती है तो कला मनुष्य को जीवन दर्शन प्रदान करती है।
  4. कला हस्तकौशल के द्वारा स्वच्छता अनुपात, स्वतन्त्र विचार, स्पष्टता, शुद्धता का बोध कराती है।
  5. कला अन्तर्राष्ट्रीय सम्प्रेषण का कार्य करती है।
  6. कला सृजनात्मकता का अवसर प्रदान करती है, इसके द्वारा मूल प्रवृत्तियाँ परिष्कृत हो जाती हैं, इनको बढ़ाने में सहायता मिलती है
  7. श्यामपट्ट पर विभिन्न चित्रों की सहायता से विषय-वस्तु को आसानी से समझाया जा सकता है।
  8. सर्वेक्षण, तुलनात्मक अध्ययन, प्रयोग आदि प्रदर्शित करने के लिए कला का उपयोग किया जाता है।
  9.  कला राष्ट्रीय स्तर के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्प्रेषण का कार्य करती है।
  10. शैक्षिक भ्रमण के दौरान कलात्मक ऐतिहासिक इमारतों के द्वारा भी ऐतिहासिक पाठों का अध्ययन सरलता से कराया जा सकता है।

उपर्युक्त शिक्षा तथा कला के विशेष  को देखते हुए तथा गहन अध्ययन के पश्चात् यही निष्कर्ष निकलता है कि कला में शिक्षा तथा शिक्षा में कला में दोनों एक ही है यदि अन्तर है तो यह है कि परम्परागत् कला को करने के लिए शिक्षित होना आवश्यक नहीं किन्तु शास्त्रीय चित्रण के लिए शिक्षा आवश्यक है- मेरा स्पष्ट विचार है यदि प्रयोगात्मक कार्य की बुनियादी नींव सिद्धान्तों  पर आधारित होगी तब ही सफल होगी।

इस प्रकार कला का शिक्षा में और शिक्षा द्वारा कला में आमूल चूल परिवर्तन किए जा सकते है जो एक-दूसरों की पूरक व सहयोगी है।

कला शिक्षा का महत्व

  1. आवश्यकता पर आधारित कला शिक्षा की विशेषता यह है कि यह व्यक्ति की आवश्यकता एवं उसके गुणों के अनुसार संरचित किया जा सकता है। यथा उन्हें परिवार, क्रोध, पहचान मित्रता आदि विशिष्ट थीमो के (जो व्यक्ति की विशिष्ट आवश्यकताओं को प्रतिविम्बित करते हैं) के अनुसार निर्धारित कर सकते हैं।
  2. बालकों हेतु मित्रवत / बाल मैत्री पूर्ण (चाइल्ड फ्रेंडली): कला शिक्षा बच्चों को उनके विचार उनकी भावनाएं और उनके अनुभवों को मैत्रीपूर्ण रोचक तरीके से अभिव्यक्त करने में मदद करता जो आराम दायक, रोचक एवं प्रसन्नतादायक है।
  3. कला शिक्षा शब्दों की सीमा से परे है (बियोंड द बाउंड्रीज ऑफ़ वर्ड्स): अल्प भाषा, सीमित शब्दावली, वाणी दोष युक्त बच्चों के लिए कलात्मक निर्माण अशाब्दिक अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम प्रदान करता है।
  4. संपूर्ण शरीर के माध्यम से अधिगम (लर्निंग फ्रॉम होल बॉडी): कला शिक्षा के माध्यम से बच्चे अपने एवं अन्य व्यक्तियों के बारे में विभिन्न अन्य विषयों के बारे में संपूर्ण शरीर की विभिन्न क्रियाओं के द्वारा सीखते हैं।
  5. आत्मविश्वास का निर्माण उत्थान (इंप्रूवमेंट इन सेल्फ कॉन्फिडेंस): बहुत सारे कलात्मक निर्माण के अभ्यास जो कि किसी अन्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बनाए जाते हैं वे बच्चों में स्वर, शरीर एवं रचनात्मकता के प्रयोग से आत्मविश्वास का उत्थान भी करते हैं।
  6. अचेतन की प्रक्रियाओं के उद्घाटन में सहायक (हेल्पफुल इन एक्सप्लोरिंग अनकांशियस थॉट्स): कलात्मक निर्माण यदि सुनियोजित एवं व्यवस्थित हो तो बालक की रचनात्मक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करते हुए उसके अचेतन की प्रक्रियाओं, कुंठाओं आदि को समझने में अत्यंत सहायक है।
  7. समस्या समाधान में सहायक एवं परिवर्तन के लिए पूर्वाभ्यास (रिहर्सल फॉर चेंज): कला शिक्षा बालकों को समस्याओं के वैकल्पिक हल खोजने और उसकी वजह से जीवन में आने वाले परिवर्तन के लिए पूर्वाभ्यास का काम भी करता है। जैसे एक बच्चा जो कक्षा में अत्याधिक समस्याओं का सामना करता है उससे सुपर हीरो की तस्वीर जो सबकी समस्या का समाधान चुटकियों में कर देता है का चित्र / पेंटिंग बनवाया जा सकता है जो सबकी रक्षा करता है और सबकी प्रसंशा का पात्र है।
  8. मनोरंजक (एंटरटेंमेंट): कला चिकित्सा की सबसे बड़ी विशेषता और सौंदर्य उसके मनोरंजक होने में है। कला शिक्षा को 'खेल विधि' के रूप में समझा जा सकता है जिसमे बिना किसी गंभीर चर्चा के बालक बहुत कुछ सीख लेता है और बहुत कुछ अभिव्यक्त कर देता है।
  9. सोचने की एवं तर्क करने की क्षमता में वृद्धिः (इंप्रूव्स टिंकिंग &रीजनिंग): दृश्य कला निर्माण बच्चों की सोचने एवं तर्क करने की क्षमता को बढाता है क्योंकि कोई भी दृश्य कला निर्माण में सर्वप्रथम बच्चे को उसका आउटलाइन और उसे से प्रतिविम्बित भाव सोचना होता है और तदनुसार रंग रेखाओं आदि को समायोजित करना पड़ता है।
  10. एकाग्रता को बढ़ावा दृश्य कला एक बड़े दर्शक समूह के सामने प्रदर्शित की जाती हैं ऐसे में एक स्तरीय दृश्य कलात्मक निर्माण में प्रतिभागियों से उच्च स्तर की एकाग्रता अपेक्षित होती है। यह एकाग्रता विचारों, रंगों, रेखाओं, विन्दुओं आदि सभी चरणों पर आवश्यक होती है बालक की यह एकाग्रता बाद के जीवन में भी विभिन कार्यों में काम आती है।
  11. सौन्दर्य बोध में वृद्धि : दृश्य कलात्मक निर्माण एवं उनका विश्लेषण करना दोनों ही क्रियायें बच्चों में आलोचनात्मक चिंतन एवं उनके सौंदर्य बोध को बढ़ाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि दृश्य कलाएं बालक के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त शोध से स्पष्ट है किकोई व्यक्ति क्या कर रहा है, इसका अनुभव करना एवं उस अनुभव का आनंद उठाना, उस संगामी अन्तर्जीवन की प्रक्रिया के एक पक्ष में खो जाना और सामग्री सन्दर्भों का तदनुसार सुनियोजित विकास करना ही कला है।

जैसा कि इस निर्देशिका के आरम्भ में बताया गया कि कला, विचारों भावनाओं एवं अनुभवों की, संगीत, चित्र, भाषा, भाव भंगिमाओं एवं गति के माध्यम से एक व्यय्वस्थित अभिव्यक्ति है। कलाएं बच्चों की संवेदी, भावनात्मक, बौद्धिक एवं रचनात्मक क्षमता को समृद्ध बनाती हैं और बालकों के समग्र विकास में अपना योगदान देती हैं। कला के कई प्रकार हैं जिनमे प्रदर्शन कला एवं दृश्य कला प्रमुख हैं। दृश्य कला चित्रात्मक निर्माण के द्वारा रचना एवं सम्प्रेषण का एक सशक्त माध्यम है। यह एक अद्वितीय सांकेतिक क्षेत्र है एवं एक ऐसा विषय है जिसकी अपनी विशेष अपेक्षाएं एवं अधिगम हैं दृश्य कला का तात्पर्य उन कलाओं से है जो मुख्यतः दृश्य प्रत्यक्षण के लिए बनायीं जाती हैंः यथा चित्र, पेंटिंग, सजावट, रेत चित्र, मूर्ती आदि। कला शिक्षा बालकों को सम्प्रेषण के वैकल्पिक माध्यमों की खोज में मदद करती हैं। कलाएं बच्चों में व्यक्तिगत एवं नवीन विचारों को प्रोत्साहित करती हैं। दृश्य कला बच्चे को काल्पनिक जीवन एवं वास्तविक संसार के बीच स्वस्थ सम्बन्ध बनाने में एवं अपने विचारों भावनाओं एवं अनुभवों को दृश्य रूप में को नियोजित करने एवं अभिव्यक्त करने में मदद करता है। चित्रकारी, पेंटिंग आदि की रचना करते हुए बालक नए ज्ञान को पुराने अनुभवों से जोड़कर उनकी अर्थपूर्णता को समझने का प्रयास करता है। दृश्य कला शिक् खोज, अन्वेषण, प्रयोग आदि के माध्यम से बच्चे की रचनात्मकता एवं सौन्दर्यनुभव को बढाता है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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