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सम्पूर्ण साक्षरता अभियान और सामाजिक शैक्षिक परिवर्तन |
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Total Literacy Campaign and Socio-Educational Change | |||||||
Paper Id :
19488 Submission Date :
2024-12-06 Acceptance Date :
2024-12-22 Publication Date :
2024-12-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14672326 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
विकास का सम्बन्ध केवल कल कारखानों, बांधो और सड़कों को बनाने से ही नहीं बल्कि इसका सम्बन्ध बुनियादी तौर पर मानव जीवन से है। जिसका लक्ष्य है लोगों की भौतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नति। साक्षरता मानव के विकास का अत्यन्त आवश्यक अंग है। यह अपनी बातों को दूसरों तक पहुंचाने, नवीन जानकारी प्राप्त करने और ज्ञान-विज्ञान के आदान प्रदान का अनिवार्य साधन है। वस्तुतः साक्षरता व्यक्ति की उन्नति और राष्ट्रोत्थान की प्रथम शर्त है। जन कल्याण, जनतन्त्र को सुरक्षित रखने, राष्ट्रीय एवं भावनात्मक एकता, देश की आर्थिक समृद्धता एवं सुखी जीवन व्यतीत करने के लिये निरक्षरता उन्मूलन अत्यन्त आवश्यक है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Development is not only related to building factories, dams and roads, but it is basically related to human life. Its aim is the material, cultural and spiritual progress of people. Literacy is an extremely important part of human development. It is an essential means of conveying our thoughts to others, acquiring new information and exchanging knowledge and science. In fact, literacy is the first condition for the progress of a person and the upliftment of the nation. Eradication of illiteracy is extremely necessary for public welfare, safeguarding democracy, national and emotional unity, economic prosperity of the country and leading a happy life. |
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मुख्य शब्द | साक्षरता, सामाजिक, शैक्षिक। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Literacy, social, educational. | ||||||
प्रस्तावना | साक्षरता आर्थिक वृद्धि मे भी सहायक है क्योंकि साक्षर मनुष्य उत्पादन में भी सहायक होता है जबकि निरक्षरता मानव जीवन का अभिशाप है। भारत की जनगणना आयोग में 1991 में ऐसे व्यक्ति को साक्षर माना है जो किसी भारतीय भाषा को समझने के साथ साथ पढ और लिख सके। सन 1968 में शिक्षा सम्बन्धी राष्ट्रीय नीति का प्रस्ताव पारित किया फिर 1986 मे शिक्षा की नीति पर बल दिया गया। प्रौढ शिक्षा के क्षेत्र में एक व्यापक कार्यक्रम बनाया गया जो राष्ट्रीय साक्षरता अभियान के नाम से जाना जाता है। मई 1998 में पूर्ण साक्षरता प्राप्त हेतु राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का गठन हुआ और यह लक्ष्य रखा गया कि सन 1995 तक देश में 15 वर्ष से 35 वर्ष के आठ करोड निरक्षरों को प्रौढ साक्षर बना दिया जायेगा। इस प्रकार राज्य के सभी विकल्पों की खोजबीन जारी रही। केरल में जनवरी 1989 में पूर्णतः साक्षरता अभियान के इस मिशन के लिए आदर्श उपस्थित किया और फरवरी 1990 में सम्पूर्ण राज्य को साक्षर बना दिया और वर्ष 1991 में केरल राज्य की साक्षरता 91 प्रतिशत पहुँच गई। इसी सफलता को भारत सरकार ने सम्पूर्ण अभियान प्रारम्भ करने का निर्णय लिया। उत्तर प्रदेश में सम्पूर्ण साक्षरता अभियान वर्ष 1991 में प्रारम्भ हुआ। साक्षरता दर में अखिल भारतीय कोटिकम में केरल का प्रथम स्थान है। इसके बाद मिजोरम, तमिलनाडु, हिमांचल, असम, उड़ीसा और मेघालय आते है। दूसरी ओर में निम्नतम साक्षरता दर में बिहार प्रथम स्थान पर है। इसके बाद राजस्थान, अरूणाचल, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और आन्ध्रप्रदेश आदि इस क्षेत्र के चार राज्यों में राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, एवं मध्यप्रदेश को प्रोफेसर आशीष बोस ने 'विमारू क्षेत्र' का नाम दिया। इस समय देश में 561 जिलों में इस मिशन के अन्तर्गत साक्षरता कार्यक्रम चल रहे है और लगभग नौ करोड लोगों को साक्षर बनाया गया है। इनमें से 16 जिलों में पूर्ण साक्षरता आन्दोलन चलाया गया है। 290 जिलों में उत्तर साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया और 105 जिलों को सतत् शिक्षा कार्यक्रम के अर्न्तगत रखा गया है। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन ने भारत में निरक्षरता उन्मूलन मे अभूतपूर्व योगदान दिया है। यह आशा की जाती है कि सन् 2005 या उसके दो वर्ष बाद भारत में निरक्षरता का पूर्णतया उन्मूलन हो जाएगा। |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का परिवर्तन के कारक के रूप में अध्ययन करना। 2. सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के परिणामस्वरूप नवसाक्षरों में आर्थिक विकास के स्तर का अध्ययन करना। 3. नव साक्षरों के जीवन में सामाजिक जागरूकता के उन्मेष का वैज्ञानिक विश्लेषण करना। 4. नवसाक्षरों के जीवन की प्रक्रिया का अध्ययन करना। 5. नवसाक्षरों के जीवन में शैक्षिक परिवर्तन के उन्मेष का वैज्ञानिक विश्लेषण करना। 6. सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का अध्ययन करना। 7. सम्पूर्ण साक्षरता अभियान से नवसाक्षरों में साम्प्रदायिक सद्भाव का अध्ययन करना। 8. नवसाक्षरों के जीवन में आधुनिकीकरण के प्रति अभिवृत्ति का अध्ययन करना। 9. नवसाक्षरों के जीवन में सांस्कृतिकरण के प्रभाव का अध्ययन करना। 10. नवसाक्षरों के जीवन में संरचनात्मक प्रक्रिया का अध्ययन करना। 11. नवसाक्षरों के जीवन की औपचारिक तथा अनौपचारिक संसाधनों का अध्ययन करना। 12. नगरीय व ग्रामीण स्तर पर सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के प्रभाव का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | अभी तक सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का सर्वाधिक उपेक्षित व कमजोर पक्ष है, अनुसंधान क्षेत्र। इस क्षेत्र से सम्बन्धित पूर्व के अनुसंधान कार्यों पर दृष्टिपात करना आवश्यक है। तभी अपने शोध कार्य की पूर्ति हो सकेगी। सरमा, शरण, बीना व पारिख (1981) ने यह पाया कि अधिकांश सीखने वालों को केवल, साक्षरता व अंक ज्ञान के सन्दर्भ में ही लाभ पहुंचा, अनुदेशक वह मानते थे कि अनुदेशक सामग्री सीखने वालों की व्यवसायिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं की दृष्टि से प्रासंगिक नहीं थी और न वह प्रौढ़ों के नागरिक व आर्थिक अधिकारों व सरकारी योजना के अनुरूप थी। प्रौढ शिक्षा मुख्यतः अनुदेशकों के घरों या स्कूल, पंचायत, मंदिर आदि सार्वजनिक स्थानों में चलते थे तथा कुछ तो खुले स्थानों पर भी चलते थे। परन्तु इन स्थानों की क्षमता अपर्याप्त थी व इनके लिए उपर्युक्त स्थल चुनने में क्षेत्र का पिछड़ापन बाधक था। अनुदेशकों की नियुक्ति में योग्यता व अनुभव के बजाय स्थानीय नेताओं की संस्तुति अधिक महत्वपूर्ण रहती थी। प्रौढ शिक्षा केन्द्रों के संचालन में शिक्षार्थियों की अनुपस्थिति, सीखने वालों में रूचि का अभाव, समुदाय में रूचि का अभाव, अनुदेशकों को बहुत कम मानदेय आदि। सेल्वाम (1982) ने "जीवन के लिए शिक्षा" नामक दूरदर्शन प्रसारण देखने के प्रभावों को जानने की चेष्टा की। आश्रित चरों में कृषि, पशुपालन, स्वास्थ्य, पोषण, परिवार कल्याण व राजनीतिक समाजीकरण में सम्बन्धित ज्ञान बोध, अभिग्रहण व उपयोग को शामिल किया गया था। अध्ययन से ये प्रमुख परिणाम प्राप्त हुये थे । दूरदर्शन कार्यक्रमों को अधिक देखने से कृषि, पशुपालन, पोषण, परिवार कल्याण तथा राजनीतिक समाजीकरण के क्षेत्रों में ज्ञान में वृद्धि हुई तथा दर्शकों (ग्रामीण प्रौढ) की आधुनिकता भी बढ़ी। सेठ (1982) ने कार्यात्मक साक्षरता कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रौढ सीखने वालों से अभिप्रेरणा का अध्ययन किया व ये निष्कर्ष निकाले। वे जनसंचार साधनों से होने वाले प्रसारणों को बहुत कम देखते सुनते थे। प्रौढ साक्षरता की आवश्यकता महसूस नहीं करते थे। तथा अपनी उपलब्धियों का निम्न आंकलन करते थे। कार्यक्रम में निरन्तर भाग लेना समूहों के सदस्यों के बीच अन्तरकिया से सार्थक रूप से सम्बन्धित था, अधिकतर अनुदेशक शिक्षण की परम्परागत विधि का प्रयोग करते थे। अनुदेशक द्वारा बच्चों व महिलाओं से घनिष्ठ सम्पर्क स्थापित कर कार्यक्रमों में सहभागियों की अभिप्रेरणा को कायम रखा गया। शिवराजन (1983) ने हरिजनों के लिए निरौपचारिक शिक्षा उपलब्ध कराने से सम्बन्धित सुविधाओं व अवरोधों का अध्ययन किया व यह पाया कि हरिजनों में उच्च निरक्षरता दर के लिए ड्रेस का अभाव, भोजन, धन की कमी, दिन के समय काम करने की आवश्यकता व पड़ोस में स्कूलों का न होना उत्तरदायी था। उपर्युक्त अनुसंधानों से स्पष्ट है कि अभी तक साक्षरता से सम्बन्धित जितने भी शोध कार्य हुए है उनका सीधा सम्बन्ध प्रौढ शिक्षा से ही जुडा है। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना के बाद "प्रैढ शिक्षा योजना" को सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के रूप में परिवर्तित किया जा चुका है। प्रौढ शिक्षा केवल परियोजना केन्द्रित विषय रहीं है जबकि सम्पूर्ण साक्षरता का कार्यक्रम एक अभियान के रूप में परिवर्तित किया जा चुका है। प्रौढ शिक्षा केवल परियोजना केन्द्रित विषय रही है जबकि सम्पूर्ण साक्षरता का कार्यक्रम एक अभियान के रूप में सम्पूर्ण देश में लागू किया जा चुका है। अतः अभियान परियोजना के विपरीत एक बडी प्रघटना है । सम्पूर्ण साक्षरता अभियान की विषय वस्तु शोधार्थियों के लिए अभी तक अपरिचित जैसी अछूती ही रही है। अस्तु सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के विभिन्न आयामों, प्रभावों, कार्यविधियों एवं परिणामों से सम्बन्धित वर्तमान में अनुसंधान अत्यधिक आवश्यक है। इसलिए शोधार्थिनी ने सम्पूर्ण साक्षरता अभियान से जुड़े एक पक्ष अर्थात नवसाक्षरों की जीवन शैली में आए परिवर्तनों पर कार्य करने का निश्चय किया है। ताकि अनुसंधान के क्षेत्र में इस विषय के प्रति शोधात्मक प्रवृत्तियों को बढाया जा सके। |
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मुख्य पाठ |
अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व साक्षरता स्वयं शिक्षा तो नहीं किन्तु यह शिक्षा का पहला चरण अवश्य है और स्थायी है। यों तो इलैक्ट्रॉनिक माध्यम, दूरदर्शन, आकाशवाणी तथा आडियों-वीडियों के अन्य संसाधन भी शिक्षा के प्रभावी माध्यम है। किन्तु अपनी सीमाओं और एक तरफा संचार के कारण ये माध्यम संवाद की स्थिति बनानी है तो साक्षरता के कौशलों की सम्प्राप्ति अनिवार्य एवं आवश्यक है। यही कारण है कि आज उपग्रह के युग में भी साक्षरता और साक्षरता के कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जा रही है। शिक्षा के क्षेत्र में जितनें भी शोध कार्य सम्पन्न हुये हैं उनमें औपचारिक शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों के अन्दर आने वाले परिवर्तनों पर अध्ययन तो अनेक रूप में हुए हैं तथा अनवरत संकल्पना है। 15 से 35 आयु वर्ग के बीच भी विवशता में शिक्षा की मुख्य धारा से वंचित निरक्षरों की मनोदशा कैसी रहती है इससे हम भली भाँति परिचित है, किन्तु सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के माध्यम से होने वाले साक्षरों में सामाजिक दृष्टि से क्या परिवर्तन हुये हैं। नव साक्षरों की जीवन शैली में किन नूतन प्रवृत्तियों का समावेश हुआ व उनके जागरूकता स्तर में किस सीमा तक अभिवृद्धि हुई, इस विषय में चिन्तन, मनन एवं शोधों का अभी अभाव है। नव साक्षरों की जीवन शैली के विभिन्न आयामों तथा सामाजिक शैक्षिक, धार्मिक, सांस्कृतिक प्रभावों - मूलकता का शोधकर्ती ने प्रस्तुत शोध कार्य में अध्ययन करने का प्रयास किया है। शोधकर्ती को विश्वास है कि सम्पूर्ण साक्षरता अभियान से जुडे व्यक्तियों, समाजसेवियों, शिक्षाविदों, प्रबुद्ध नागरिकों तथ्अन्तिम शोध अध्ययनों के लिये यह शोध अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा। |
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सामग्री और क्रियाविधि | अ. अध्ययन की सीमा - प्रस्तुत अध्ययन की निम्नांकित सीमाएँ हैं - 1. प्रस्तुत शोधकार्य मे विषय सामग्री का संकलन पुस्तकों व साक्षरता से सम्बन्धित साहित्य के आधार पर किया जायेगा। निष्कर्षों के आधार पर 1991 तक की जनगणना तथा 2001 की जनगणना के आधार पर प्राप्त आंकडों का सहयोग लिया जायेगा। 2 प्रस्तुत शोध कार्य कानपुर मण्डल के 6 जनपदों कानपुर नगर, कानपुर देहात, इटावा, औरैया, कन्नौज, फर्रुखाबाद के 600 नवसाक्षरों पर आधारित है। इस शोध के अध्ययन में सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का नवसाक्षरों की जीवन शैली पर प्रथा के अवलोकन के लिए नवसाक्षरों की आयु वर्ग, लिंग भेद, धर्म भेद, भाषागत आधार पर नगरीय परिवेश के आधार पर वर्गीकृत किया जायेगा। यूँ तो जीवन शैली के अनन्त पक्ष है, आयाम हैं किन्तु एक शोध के रूप में जीवन शैली के आठ आयामों में यथा आर्थिक आधार, सामाजिक, जागरूकता, सामाजीकरण, शैक्षिक जागरूकता, धर्म निरपेक्षता, साम्प्रदायिक सद्भाव आधुनिकीकरण व सांस्कृतिकरण पर यह अध्ययन केन्द्रित है। ब. अध्ययन विधि - प्रस्तुत शोध सर्वेक्षण एवं वर्णात्मक विधि पर आधारित रहेगी। सर्वेक्षण के लिए शोधकर्ता द्वारा साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया जायेगा। स. न्यायदर्श - न्याय दर्शन के आधार पर शोध कानपुर मण्डल के 6 जनपदों - कानपुर नगर, कानपुर देहात, कन्नौज, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद के कुल 2000 नवसाक्षरों की जनसंख्या से प्रस्तुत शोध अध्ययन हेतु कुल 600 नवसाक्षरों पर आधारित है। शोधकर्ती द्वारा नवसाक्षर उत्तरदाताओं के निम्नलिखित वर्गों में वर्गीकृत करके तुलनात्मक अध्ययन किया जायेगा। 1. स्त्री / पुरुष 2. हिन्दु / मुस्लिम 3. 15-25 आयुवर्ग / 26-35 आयुवर्ग 4. हिन्दी भाषा / उर्दू भाषा 5. सामान्य वर्ग / पिछडा वर्ग / अनुसूचित 6. शहरी / ग्रामीण द. प्रदत्त संकलन उपकरण - नवसाक्षरों के जीवन में संरचनात्मक प्रक्रिया के निम्न आठ आयामों (बिन्दुओ) पर आधारित "साक्षात्कार अनुसूची" निम्नवत रहेगी - 1. आर्थिक विकास 2. शैक्षिक जागरूकता 3. सामाजिक जागरूकता 4. आधुनिकीकरण 5. सामाजीकरण 6. धर्मनिरपेक्षता 7. साम्प्रदायिक सद्भाव 8. संस्कृतिकरण इ. सांख्यिकीय गणना - सम्पूर्ण साक्षरता अभियान के नवसाक्षरों की जीवन शैली पर पड़ने वाले प्रभाव के मूल्यांकन के लिय अध्ययन, विश्लेषण एवं आवश्यकतानुसार उपर्युक्त सांख्यिकी प्रयोग की जायेगी। |
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निष्कर्ष |
प्रस्तुत शोध प्रबन्ध निम्न छः अध्यायों में विभक्त कर प्रस्तावित है । 1. प्रथम अध्याय - अध्ययन का स्वरूप । 2. द्वितीय अध्याय - सम्बन्धित शोध साहित्य का अध्ययन। 3. तृतीय अध्याय - सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का स्वरूप एवं कार्ययोजना का परिचय। 4. चतुर्थ अध्याय - अध्ययन विधि। 5. पंचम अध्याय - प्रदत्त विश्लेषण एवं व्याख्या । 6. षष्ठम अध्याय - निष्कर्ष एवं सुझाव । |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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