P: ISSN No. 2394-0344 RNI No.  UPBIL/2016/67980 VOL.- IX , ISSUE- IX December  - 2024
E: ISSN No. 2455-0817 Remarking An Analisation
बौद्ध शिक्षा दर्शन से संबंधित शोध साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन
A Critical Study of Research Literature Related to Buddhist Educational Philosophy
Paper Id :  19558   Submission Date :  2024-12-03   Acceptance Date :  2024-12-22   Publication Date :  2024-12-25
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DOI:10.5281/zenodo.14619293
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चन्दन कुमार
शोधार्थी एवं असिस्टेंट प्रोफेसर
शिक्षा संकाय
श्री गाँधी पी.जी. कॉलेज
मालटारी, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रेम चंद्र यादव
प्रोफेसर
शिक्षा संकाय
श्री गाँधी पी.जी. कॉलेज
मालटारी, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति और उन्नति का मूल आधार होती है। भारतीय परंपरा में शिक्षा को केवल ज्ञान और कौशल का अर्जन भर नहीं माना गयाबल्कि इसे नैतिकसामाजिक और आध्यात्मिक विकास का साधन भी समझा गया। इस दृष्टि से बौद्ध शिक्षा दर्शनजो गौतम बुद्ध के जीवन और उपदेशों पर आधारित हैएक आदर्श और प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली के रूप में उभरता है। यह दर्शन नैतिकताध्यानऔर प्रज्ञा के त्रिस्तरीय सिद्धांतों पर आधारित हैजो व्यक्ति के समग्र विकास और समाज में शांति व समरसता की स्थापना पर बल देता है।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Education is the basic foundation of progress and development of any society. In the Indian tradition, education is not considered merely to be the acquisition of knowledge and skills, but it is also considered a means of moral, social and spiritual development. From this point of view, Buddhist education philosophy, which is based on the life and teachings of Gautam Buddha, emerges as an ideal and progressive education system. This philosophy is based on the three-fold principles of morality, meditation, and wisdom, which emphasizes the overall development of the individual and the establishment of peace and harmony in society.
मुख्य शब्द बौद्ध, शिक्षा, दर्शन, शोध साहित्य।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Buddhism, Education, Philosophy, Research Literature.
प्रस्तावना

शोधकर्ताओं ने बौद्ध शिक्षा के दर्शनसिद्धांतों और शैक्षिक पद्धतियों का गहन विश्लेषण करते हुए इसे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के लिए अत्यंत प्रासंगिक पाया है। साव (2006) और यादव (2006) के अध्ययन बताते हैं कि बौद्ध शिक्षा में नैतिकताकरुणाअहिंसा और सहिष्णुता जैसे मूल्य निहित हैंजो वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आवश्यक नैतिक मूल्यों की पूर्ति कर सकते हैं। ध्यान और आत्म-अनुशासन जैसे साधन छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तित्व विकास को सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य बौद्ध शिक्षा दर्शन से संबंधित शोध साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन करना।

साहित्यावलोकन

बौद्ध शिक्षा की समावेशिता और समानता पर आधारित दृष्टिजिसे सिंह (2008) और कुमार (2013) ने उजागर कियायह दर्शाती है कि जातिवर्ग और लिंग के भेदभाव से परे शिक्षा को सभी के लिए सुलभ और निष्पक्ष बनाने का प्रयास तत्कालीन समय में किया गया था। नालंदातक्षशिला और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों की स्थापना इस दृष्टिकोण का प्रमाण हैं। इसके साथ हीबौद्ध शिक्षा का उद्देश्य केवल बौद्धिक विकास तक सीमित न रहकर व्यक्ति के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान को सुनिश्चित करना था।

दास (2008), वर्मा (2017), और गौड़ (2021) के शोध यह इंगित करते हैं कि बौद्ध शिक्षा प्रणाली ने केवल शैक्षिक पद्धतियों को नहीं बदलाबल्कि सामाजिक विषमताओं का उन्मूलनस्त्री शिक्षा का प्रोत्साहनऔर समाजोपयोगी शिक्षण पद्धतियों को बढ़ावा देकर एक समतामूलक समाज की नींव रखी। यह दर्शन "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना को बल देता हैजो आज के वैश्वीकरण और नैतिक पतन के युग में अत्यधिक प्रासंगिक है।

अतःबौद्ध शिक्षा-दर्शन के नैतिकसामाजिक और आध्यात्मिक सिद्धांत न केवल प्राचीन काल में उपयोगी थेबल्कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भी इनका समावेश समाज में शांतिसमरसता और नैतिकता के पुनःस्थापन में सहायक हो सकता है। इस शोध का उद्देश्य बौद्ध शिक्षा दर्शन के व्यापक और कालातीत महत्व को समझना और इसे आधुनिक शिक्षा में व्यावहारिक रूप से लागू करने की संभावनाओं को तलाशना है।

मुख्य पाठ

साव (2006) ने अपने शोध प्रबंध ''आधुनिक परिप्रेक्ष्य में गौतम बुद्ध के शैक्षिक विचारों का समीक्षात्मक अध्ययन विशेष रूप से त्रिपिटक के संदर्भ में'' में पाया कि गौतम बुद्ध का त्रिस्तरीय शैक्षिक दृष्टिकोण – नैतिकता (शील)ध्यान (समाधि)और प्रज्ञा (विपश्यना) – शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत प्रासंगिक है और वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है। त्रिपिटक में वर्णित शिक्षाएंजैसे विनय पिटक में अनुशासनसुत्त पिटक में नैतिक और सामाजिक मूल्यों पर जोरऔर अभिधम्म पिटक में गहन चिंतन और विश्लेषणआज के समाज में नैतिकताकरुणासहिष्णुता और अहिंसा को बढ़ावा देने में सहायक हो सकती हैं।

शोधार्थी ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि बुद्ध की शिक्षाएं व्यक्तिगत विकास और सामाजिक समरसता के लिए उपयोगी हैंऔर आधुनिक शिक्षा प्रणाली में इनका समावेश छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और नैतिक मूल्यों को सुधारने में मदद कर सकता है। इसके अतिरिक्तध्यान और आत्म-अनुशासन पर आधारित शिक्षा छात्रों को अधिक संतुलित और जिम्मेदार नागरिक बनाने में सहायक हो सकती है। कुल मिलाकरगौतम बुद्ध की शिक्षाओं को आधुनिक समय में शिक्षा के मूल्य-आधारित दृष्टिकोण के रूप में लागू किया जा सकता है।

यादव (2006) ने अपने शोध प्रबंध  ''बौद्ध दर्शन में सन्निहित शैक्षिक मूल्य एवं शैक्षिक नियोजन का वर्तमान शिक्षा में प्रासंगिकता - एक अध्ययन'' में बौद्ध शिक्षा दर्शन की प्रासंगिकता को उजागर किया। उन्होंने पाया कि बौद्ध शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्तित्व विकासनैतिकताऔर आध्यात्मिक उन्नति थाजो आज की शिक्षा प्रणाली में भी बेहद आवश्यक है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की कमी पाई गईजिसे बौद्ध दर्शन के सिद्धांतों द्वारा पूरा किया जा सकता है।

बौद्ध शिक्षा ने संवादात्मक शिक्षण विधियोंचरित्र निर्माणऔर समाज के कल्याण पर जोर दिया। यह दृष्टिकोण वर्तमान समय में शिक्षक-छात्र संवाद को सशक्त बनाने और शिक्षा को अधिक मानवीय और नैतिक बनाने में सहायक हो सकता है। शोध में यह भी पाया गया कि बौद्ध शिक्षा ने महिलाओं को समान अधिकार दिएजो आज लैंगिक समानता के लिए प्रेरणा है।

शोधार्थी ने अपने अध्ययन में यह भी निष्कर्ष निकाला कि बौद्ध शिक्षा के सिद्धांत आधुनिक शिक्षा में नैतिकताशांतिऔर करुणा को पुनर्जीवित कर सकते हैं। इसे अपनाकर शिक्षा प्रणाली अधिक संतुलित और समाजोपयोगी बनाई जा सकती है।

यादव (2006) ने अपने शोध प्रबंध ''बौद्ध कालीन शिक्षा प्रणाली की आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकतामें पाया कि वर्तमान समय में शिक्षा व्यवस्था में नैतिक मूल्यों और सामाजिक समरसता का अभाव है। बौद्ध कालीन शिक्षा प्रणाली में जो तत्व जैसे अहिंसाब्रह्मचर्यऔर अपरिग्रह शामिल थेवे आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य न केवल धार्मिक प्रचार थाबल्कि यह विद्यार्थियों के नैतिक और व्यक्तिगत विकास पर भी जोर देता था। बौद्ध काल में छात्र-अध्यापक संबंध और शांति का पालन आज के समय में समाज में नैतिकता और अनुशासन को बढ़ावा देने के लिए उपयोगी हो सकते हैं।

इनके निष्कर्ष में यह पाया गया कि बौद्ध शिक्षा के दस सिक्खा पद जैसे सत्य बोलनाअहिंसा का पालन और दूसरों का सम्मान करना आज भी साम्प्रदायिकताभ्रष्टाचार और हिंसा को समाप्त करने के लिए प्रभावी हो सकते हैं। बौद्ध शिक्षा की अवधारणाओं को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में समाहित करने से हम छात्रों में मानवतासमानता और भाईचारे की भावना विकसित कर सकते हैं।

अतः बौद्ध शिक्षा को आधुनिक संदर्भ में अपनाकर हम समाज और शिक्षा प्रणाली को अधिक सशक्त और समृद्ध बना सकते हैं।

सिंह (2008) ने अपने शोध प्रबंध ''बौद्ध दर्शन में शिक्षा की स्थितिविस्तार एवं वर्तमान में प्रासंगिकता" में पाया कि शोध के अनुसारबौद्ध शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास थालेकिन शारीरिक और लौकिक शिक्षा को भी महत्व दिया गया। धर्मदर्शन और शास्त्रार्थ पर जोर देते हुए पाठ्यक्रम को समावेशी बनाया गया। छात्रों की क्षमता के अनुसार शिक्षण विधियाँ अपनाई जाती थीं। आचार्य-छात्र संबंध सौहार्दपूर्ण थेऔर स्त्रियों को समान रूप से शिक्षा प्रदान की जाती थी। शिक्षा में वर्ण व्यवस्था का कोई स्थान नहीं था।

छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध धर्म ने ब्राह्मण धर्म की संकीर्णता और वर्णभेद का विरोध कर एक समतामूलक शिक्षा प्रणाली की स्थापना की। मठ और विहारजो आगे चलकर तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय बनेशिक्षा के नए मानदंड स्थापित करने में सफल रहे।

शोध में यह भी पाया गया कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में असमानताआर्थिक विवशता और अवसरों की कमी से कई छात्र शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इसके विपरीतबौद्ध शिक्षा की समावेशिता और निष्पक्षता इन समस्याओं को हल करने में सक्षम हो सकती है। बौद्ध शिक्षा के सिद्धांत वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में समाहित कर इसे अधिक समतामूलकप्रभावी और व्यापक बनाया जा सकता है। वर्तमान शिक्षा में बौद्ध शिक्षा की प्रासंगिकता इस दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

दास (2008) ने अपने शोध प्रबंध "बौद्ध दर्शन का भारतीय शिक्षा प्रणाली पर प्रभाव एवं वर्तमान भारतीय शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में इसकी उपादेयता" शोध के निष्कर्षों में यह स्पष्ट हुआ कि बौद्ध शिक्षा-दर्शन का भारतीय शिक्षा प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसके आध्यात्मिक विचार और नैतिक मूल्य आज भी प्रासंगिक हैं। बौद्ध दर्शन ने शिक्षा को केवल बौद्धिक विकास तक सीमित न रखकर मनुष्य के नैतिकसामाजिक और आध्यात्मिक विकास का माध्यम बनाया।

शोध में यह देखने को मिला कि बौद्ध शिक्षा-दर्शन का मुख्य उद्देश्य एक स्वस्थ और संगठित समाज का निर्माण करना हैजिससे एक मजबूत राष्ट्र की नींव रखी जा सके। इस शिक्षा पद्धति ने कार्य-कारण के सिद्धांत पर जोर देकर व्यक्ति को जिम्मेदार नागरिक बनाने का प्रयास किया। स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देने के बौद्ध विचार आज भी प्रासंगिक हैं और समानता की दिशा में प्रेरणा देते हैं।

भ्रष्टाचार और आतंकवाद जैसी समस्याओं के समाधान के लिए बौद्ध शिक्षा-दर्शन के नैतिक और मानवीय मूल्यों को अपनाना उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इस दर्शन ने "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना को बल दियाजो अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना और शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन और नैतिकता का जो अभाव दिखता हैउसे बौद्ध शिक्षा-दर्शन की अनुशासन प्रणाली के माध्यम से सुधारा जा सकता है। बौद्ध पाठ्यक्रम ने जिस तरह शिक्षा को व्यावहारिक और उद्देश्यपूर्ण बनायाआज भी उससे प्रेरणा ली जा सकती है l आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली में बौद्ध शिक्षा के नैतिक और आध्यात्मिक तत्वों को सम्मिलित करके एक ऐसी व्यवस्था बनाई जा सकती है जो केवल बौद्धिक विकास पर ही नहीं बल्कि मानवता के विकास पर भी केंद्रित हो।

सिंह (2010) ने अपने शोध प्रबंध "प्राचीन भारतीय शिक्षा पर बौद्ध दर्शन का प्रभाव एवं आधुनिक शिक्षा पद्धति में इसकी उपयोगिता" में यह निष्कर्ष निकाला कि बौद्ध दर्शन और शिक्षा प्रणाली न केवल प्राचीन परंपरा हैबल्कि यह आधुनिक शिक्षा के लिए एक प्रेरक मार्गदर्शिका है। बौद्ध शिक्षा प्रणाली ने नैतिकताआध्यात्मिकता और सामाजिक समावेश को प्राथमिकता दीजिससे व्यक्तित्व निर्माण और समाज में शांति व संतुलन स्थापित हुआ। इसमें ध्यानयोग और आत्म-निरीक्षण जैसी विधियों के माध्यम से मानसिक शांति और आत्मविकास को महत्व दिया गयाजो आज की तनावपूर्ण जीवनशैली में अत्यधिक प्रासंगिक है।

शोधार्थी ने अपने शोध में यह भी उजागर किया कि बौद्ध शिक्षा समानता और समावेशन पर आधारित थीजिसमें जातिवर्ग और लिंग के भेदभाव के बिना सभी के लिए शिक्षा सुलभ थी। आधुनिक शिक्षा प्रणालीजो प्रतिस्पर्धा और व्यावसायिक सफलता पर केंद्रित हैमें बौद्ध सिद्धांतों को शामिल कर नैतिकताकरुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व को बढ़ावा दिया जा सकता है। बौद्ध शिक्षा के सिद्धांत शिक्षा को अधिक मानवीय और समावेशी बना सकते हैंजिससे व्यक्तियों और समाज का समग्र विकास सुनिश्चित हो सके।

कुमार (2013) ने अपने शोध प्रबंध ''आधुनिक शिक्षा में बौद्ध शिक्षा की प्रासंगिकता" विषय पर गहन अध्ययन करते हुए निष्कर्ष निकाला है कि बौद्ध शिक्षा के सिद्धांतजैसे नैतिकताआत्मनिर्भरताअहिंसा और त्यागआज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। बौद्ध शिक्षा में चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की जो शिक्षा दी गई थीवह मानवतानैतिकता और आध्यात्मिकता के विकास के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

शोधार्थी ने विशेष रूप से बौद्ध शिक्षा की गुरु-शिष्य परंपराशिक्षण पद्धतियोंऔर शैक्षणिक उद्देश्यों पर जोर दिया हैजिनमें नैतिक चरित्र का विकासजीवन के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षणऔर समाज में समरसता स्थापित करने की शिक्षा शामिल थी। इसके साथ हीबौद्ध शिक्षा के माध्यम से छात्रों में सत्य की खोजशांति और सामूहिक कल्याण की भावना विकसित करने की कोशिश की जाती थी।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में बौद्ध शिक्षा की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए शोधार्थी ने इसे शांति और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित माना। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में बौद्ध शिक्षा की प्राचीन विधाओं जैसे प्रवचनवार्तालापऔर वाद-विवाद को अपनाकर नैतिकता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जा सकता है।

शोध में निष्कर्ष रूप में पाया कि बौद्ध शिक्षा के केन्द्रजैसे नालंदा और तक्षशिलावैश्विक शिक्षा के लिए प्रेरणास्रोत थे। आज के वैश्वीकरण और नैतिक मूल्यों के पतन के युग में बौद्ध शिक्षा की शिक्षण पद्धतियाँजैसे सरल जीवनअहिंसाऔर समग्र कल्याण की शिक्षासमाज में शांति और स्थायित्व लाने में सहायक हो सकती हैं।

साथ ही बौद्ध शिक्षा की विशेषताओं को आधुनिक शिक्षा प्रणाली में शामिल करके छात्रों के नैतिकसामाजिकऔर व्यक्तिगत विकास को बेहतर बनाया जा सकता है। तथा यह शिक्षा विश्व शांति और समृद्धि के लिए एक सशक्त माध्यम बन सकती है।

शुक्ल (2014) ने अपने शोध प्रबंध "बौद्ध दर्शन का तत्कालीन शैक्षिक परिस्थितियों पर प्रभाव तथा वर्तमान संदर्भ में इसकी उपादेयता" के में अध्ययन में यह पाया कि बौद्ध दर्शन का प्रादुर्भाव तत्कालीन सामाजिकधार्मिकऔर राजनीतिक परिस्थितियों का परिणाम था। बुद्ध का दर्शनजो दुख और उसके निवारण के उपायों पर आधारित थाने समाज में न केवल धार्मिक परिवर्तन लाए बल्कि एक नई शिक्षा प्रणाली की नींव रखी। उन्होंने त्यागतपस्याअहिंसाऔर परोपकार की महत्ता को बताया और समग्र मानवता के कल्याण की दिशा में एक आदर्श प्रस्तुत किया। बौद्ध धर्म ने न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक व्यापक बदलाव लायाजिसमें महिलाओं और शूद्रों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला।

बौद्ध शिक्षा ने सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था को बढ़ावा दिया और विशेष रूप से महिलाओंशूद्रों और अन्य निम्न वर्ग के लिए शिक्षा के अवसर खोले। इसके अतिरिक्तबौद्ध शिक्षा में शिक्षक-शिक्षार्थी के संबंधों की गरिमाशास्त्रार्थ विधियोंऔर विभिन्न शिक्षण विधियों का महत्व थाजो आज भी शिक्षण प्रणाली में प्रासंगिक हैं। बौद्ध दर्शन ने इस बात पर जोर दिया कि सभी मानवों को समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिएऔर यह विचार आज भी सामाजिक और शैक्षिक संदर्भों में महत्वपूर्ण हैं। बौद्ध दर्शन न केवल तत्कालीन समाज के लिए उपयुक्त थाबल्कि आज भी इसके विचारों और शिक्षाओं की प्रासंगिकता बनी हुई है।

वर्मा (2017) ने अपने शोध प्रबंध ''बौद्ध धर्म के शैक्षिक चिंतन एवं नैतिक मूल्यों का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता - एक अध्ययन" में यह निष्कर्ष निकाला कि बौद्ध शिक्षा प्रणाली में न केवल आध्यात्मिक और शारीरिक विकासबल्कि नैतिक मूल्यों और जीवन के सच्चे उद्देश्य पर भी जोर दिया गया था। बौद्ध शिक्षा की समानतानिष्पक्षताऔर शिक्षा के अवसरों का खुला होना आज के समाज में अत्यंत प्रासंगिक है। विशेष रूप सेयह प्रणाली जातिलिंग या सामाजिक स्थिति के भेदभाव के बिना सभी के लिए शिक्षा के समान अवसर सुनिश्चित करती थी।

शोधार्थी ने यह भी निष्कर्ष निकला कि बौद्ध शिक्षा में शिक्षक का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं थाबल्कि विद्यार्थियों के मानसिक और व्यक्तित्व विकास को भी प्राथमिकता दी जाती थीजिससे वे उच्च नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समृद्ध होते थे। बौद्ध शिक्षा का ध्यान धर्मदर्शन और आध्यात्मिकता पर थाजो आज के समय में समाज में नैतिकताआत्मज्ञान और राष्ट्रीय एकता की स्थापना में सहायक हो सकता है। बौद्ध शिक्षा के सिद्धांतों को आज की शिक्षा प्रणाली में समाहित कर हम शिक्षा के उद्देश्य को केवल ज्ञान तक सीमित नहीं रख सकतेबल्कि यह विद्यार्थियों में जीवन के सच्चे मूल्यों और नैतिकता का भी समावेश कर सकता है।

कुमार (2018) ने अपने शोध प्रबंध ''बौद्ध शिक्षा दर्शन की आधुनिक युग में प्रासंगिकता" में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों जैसे अहिंसाशांतिऔर परोपकार को समाज में गहरे प्रभाव डालने वाला बताया। बौद्ध दर्शन ने ज्ञान और तत्त्वमीमांसा की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर कियाऔर कर्म और पुनर्जन्म के विचारों के माध्यम से वर्तमान जीवन पर पूर्वजन्मों के कर्मों का प्रभाव समझाया। बौद्ध शिक्षा ने समानता और शांति का संदेश दियाविशेष रूप से स्त्रियों और शूद्रों को शिक्षा प्रदान करने में सहायक था।

इस शोध के निष्कर्षों से यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध शिक्षा ने प्राचीन भारत ही नहींबल्कि आधुनिक शिक्षा पद्धतियों में भी गहरा प्रभाव छोड़ा। बौद्ध धर्म ने शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने और सभी वर्गों के लिए समान अवसर प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त किया। इस दृष्टिकोण ने आज भी समाजिक और शैक्षिक सुधार में योगदान दिया है।

चौधरी (2020) ने अपने शोध प्रबंध '' प्राचीन भारतीय शिक्षा पर बौद्ध दर्शन का प्रभाव एवं वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता का अध्ययन" में यह निष्कर्ष निकाला कि प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणालीविशेष रूप से बौद्ध शिक्षा दर्शननैतिकआध्यात्मिक और सामाजिक मूल्यों के विकास के लिए अत्यंत प्रभावी थी। इस प्रणाली ने न केवल व्यक्तित्व विकास और व्यवहारकुशलता पर बल दियाबल्कि समाजोपयोगी शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा दिया। यह प्रणाली सहशिक्षावर्गहीनता और समान अवसर की अवधारणाओं पर आधारित थीजिसमें ज्ञान और कर्म को प्राथमिकता दी जाती थी।

बौद्ध शिक्षा प्रणाली में शिक्षा को धर्मदर्शन और अध्यात्म से जोड़ा गया थाजिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव हो सका। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में इस दृष्टिकोण का समावेश अत्यंत आवश्यक हैक्योंकि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में नैतिक मूल्यों और जीवन आदर्शों का हास हो रहा है।

शोध में यह भी पाया गया कि आधुनिक शिक्षा को रोजगारपरकनैतिकऔर सांस्कृतिक मूल्यों से समृद्ध करना होगा। बौद्ध शिक्षा प्रणाली के अनुशासन और लक्ष्यों को अपनाकर वर्तमान शिक्षा में सुधार किया जा सकता है। विशेष रूप से पाठ्यक्रम में उद्देश्य और विषयों के बीच तालमेल स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि शिक्षा प्रणाली समाज और व्यक्ति दोनों के विकास में सहायक हो सके।

अंततःशोधकर्ता का यह निष्कर्ष है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली को बौद्ध शिक्षा दर्शन के सिद्धांतों से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह केवल छात्रों की शैक्षिक सफलता सुनिश्चित करने में सहायक नहीं होगीबल्कि उनके नैतिकआध्यात्मिक और सामाजिक विकास में भी योगदान देगी। इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली आज के दिशाहीन और मूल्यहीन समाज का मार्गदर्शन करने में सक्षम हो सकती है।

गौड़ (2021) ने अपने शोध प्रबंध "बौद्ध धर्म के शैक्षिक विचारों की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता" में यह महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त किया कि बौद्ध शिक्षा दर्शन का उदय तत्कालीन सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक चुनौतियों के समाधान के रूप में हुआ। यह दर्शन सामाजिक विषमताओंविशेष रूप से जाति और लिंगभेद जैसी कुप्रथाओं के उन्मूलन और समानता पर आधारित एक प्रगतिशील समाज की स्थापना में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हुआ। बौद्ध शिक्षा ने सभी वर्गों को ज्ञान के समान अवसर प्रदान कर सामाजिक संरचना में समता और मानवतावादी मूल्यों का अद्वितीय योगदान दिया।

निष्कर्ष

बौद्ध शिक्षा प्रणाली की विशिष्टता उसकी व्यावहारिकता और तर्कशीलता में निहित थी। यह अष्टांग मार्ग और चार आर्य सत्यों जैसे आध्यात्मिक एवं नैतिक सिद्धांतों पर आधारित थीजो व्यक्ति के नैतिकमानसिक और आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करते थे। अध्ययन में यह भी स्पष्ट हुआ कि तक्षशिलानालंदा और विक्रमशिला जैसे महान विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा के महत्वपूर्ण केंद्र थे। इन संस्थानों ने न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर शिक्षा और संस्कृति के प्रसार में ऐतिहासिक योगदान दिया।

शोधार्थी के अनुसारबौद्ध शिक्षा प्रणाली का परम उद्देश्य समाज में शांतिसमानता और कल्याण की स्थापना करना था। इसकी शिक्षाएं आज भी नैतिकतासह-अस्तित्व और मानवता के पुनरुत्थान के लिए अत्यंत प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी हुई हैं। इस प्रकारबौद्ध दर्शन एक कालातीत प्रकाशस्तंभ के रूप में खड़ा हैजो समरसता और सामाजिक उत्थान की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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