ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- IX , ISSUE- XII January  - 2025
Innovation The Research Concept

जल प्रदूषण के सन्दर्भ में भोपाल झील का एक अध्ययन

A Study of Bhopal Lake in the Context of Water Pollution
Paper Id :  19576   Submission Date :  2025-01-08   Acceptance Date :  2025-01-24   Publication Date :  2025-01-26
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DOI:10.5281/zenodo.14752402
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रश्मि गोयल
विभागाध्यक्ष
भूगोल विभाग
शम्भुदयाल (पी० जी०) कॉलेज
गाजियाबाद,उ0प्र0, भारत
सारांश

भीहे, खारे तथा मिश्रित जल की जैवविविधता नियम के लिए उल्लेखनीय यह झील आज नैसर्गिक कारणों तथा मनुष्य जनित कारणों से आपदाग्रस्त बन गई है। नमक - तथा एक प्रदूषित क्षेत्र सांडता में बदलाव, गादीकरण, जलचरों व वनस्पति की संख्या में कमी पक्षियों की प्रजाति तथा संख्या में कमी उपयोगी जैव-सम्पति का हनन/खनन आदि कई कारणों की वजह से भोपाल झील का अस्तित्व खतरे में आ गया है। प्रकृति के मूलभूत नियमों की अवहेलना, वातावरण का दुरुपयोग, अतिशीघ्र उन्नति की लालसा तथा अदूरदर्शी नियमों का परिणाम ही पर्यावरणीय प्रदूषण है। यदि मानव पर्यावरण का सही उपयोग नहीं कर सका तो अपने ही हाथों स्वयं तथा प्रकृति का विनाश कर लेगा। प्राकृतिक संसाधनों में जीवधारियों के अस्तित्व के लिए जल सर्वाधिक आवश्यक तत्व है, जल से ही धरती पर जीवन का मिर्वहन होता है। जल के अवयवों में अवांछित तत्व प्रवेश कर जाते हैं तो उनका मौलिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। इस प्रकार जल के दूषित होने की प्रक्रिया या जल में हानिकारक तत्वों की मात्रा का बढ़ना जल प्रदूषण कहलाता है तथा ऐसे पदार्थ जो जल को प्रदूषित करते हैं। जल प्रदूषक कहलाते हैं। वर्तमान समय में जल की गुणवत्ता में भारी गिरावट आ रही है। नदियों, जलाशयों आदि के जल में मृत जीव जन्तु, मल-मूत्र, कूड़ा करकर नहाने एवं कपड़ा धोने के साबुन युक्त जल, औद्योगिक अवशिष्ट पदार्थ, रासायनिक पदार्थ कीटनाशक पदार्थ आदि मिलते रहते हैं। भानव के विभिन्न क्रियाकलापों से जल के रासायनिक, भौतिक एवं जैविक गुणों में ह्रास आ जाता है, तो वह जल किसी प्राणी की जीवित दशाओं के लिए हानिकारक एवं अवांछित हो जाने के कारण वह जल "प्रदू‌षित जल" कहलाता है। जल मानव जीवन के लिए अस्तित्व का प्रश्न है। मनुष्य विना भोजन के २० दिन तक जीवित रह सकता है, किन्तु विना जल के रोएक दिन में ही तड़पने लगता है। जल ठोस, हव्य तथा गैस तीनों रूपों में दिखाई देता है। मनुष्य इन तीनों रूपों में जल का उपयोग करता है। जल चाहे किसी भी सोत से प्राप्त किया गया हो उसमें कुछ लवण (साल्ट) जैसे- सोडियम, पौटेशियम, कैलशयम, मैग्नीशियम के क्लोराइड, कार्बोनेट, बाइकार्बोनेट तथा सल्फेट मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त लोहा, मैंगनीज, सिलिका, फ्लोराइड, नाइट्रे‌टे, फास्फेट आदि तत्व कम मात्रा में पाये जाते हैं। जब इन लवणों की मात्रा जल में निश्चित सीमा से अधिक हो जाती है तो वे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव डालते हैं।

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद This lake, which is famous for its biodiversity, wet, salty and mixed water, has become a disaster today due to natural and man-made reasons. The existence of Bhopal lake has come under threat due to many reasons like change in salt- and salt-polluted area, siltation, decrease in the number of aquatic animals and vegetation, decrease in the species and number of birds, destruction/mining of useful bio-wealth etc. Environmental pollution is the result of ignoring the basic rules of nature, misuse of environment, desire for rapid progress and short-sighted rules. If man is not able to use the environment properly, then he will destroy himself and nature with his own hands. Among natural resources, water is the most essential element for the existence of living beings, life is sustained on earth through water. If unwanted elements enter the components of water, then their basic balance gets disturbed. Thus, the process of contamination of water or increase in the amount of harmful elements in water is called water pollution and the substances that pollute water are called water pollutants. At present, the quality of water is declining drastically. Dead animals, faeces, urine, garbage, soapy water for bathing and washing clothes, industrial wastes, chemical substances, pesticides etc. are found in the water of rivers and reservoirs. When the chemical, physical and biological properties of water deteriorate due to various activities of the environment, then that water becomes harmful and undesirable for the living conditions of any living being and hence is called "polluted water". Water is a question of existence for human life. Humans can survive for 20 days without food, but without water, they start suffering in just one day. Water appears in all three forms - solid, olfactory and gas. Humans use water in all these three forms. Water, from whichever source it is obtained, contains some salts such as chloride, carbonate, bicarbonate and sulphate of sodium, potassium, calcium and magnesium. Apart from this, elements like iron, manganese, silica, fluoride, nitrate, phosphate etc. are found in small quantities. When the quantity of these salts in water exceeds a certain limit, they have adverse effects on health.
मुख्य शब्द प्रकृति, प्रदूषण, रासायनिक, भौतिक, जैविक जीवजन्तु, कूड़ा करकट, वातावरण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Nature, pollution, chemical, physical, biological, living organisms, garbage, environment.
प्रस्तावना

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार "जब प्राकृ‌तिक या अन्य स्रोतों से वाहम पदार्थ जल में मिल जाते हैं तथा जिनका दुष्प्रभाव जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ता है, जल में विषाक्तता होती है, जल के सामान्य ऑक्सीजन स्तर में गिरावर आती है, जल जनित महामारियों फैलती हो तथा अन्य दुष्प्रभाव पड़ते हैं तो उसे जल प्रदूषण कहते हैं।" जल प्रदूषण का प्रयोग जल के मानव विष्ठा द्वारा संदूषण के सन्दर्भ में ही सर्वप्रथम प्रयोग किया गया था। जल में यदि मानव अंतड़ियों में सामान्य रूप से पाये जाने वाले बैक्टीरिया विद्यमान होते थे, उस जल को प्रदूषित जल तथा मानव उपयोग के अयोग्य माना जाता था। झीलों को प्रदूषित करने वाले अनेकों तत्व और पदार्थ होते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:-

  1. नदियों के द्वारा बहकर आने वाला कूड़ा-करकर कचरा आदि।
  2. नदी नालों के द्वारा बहकर आने वाली घरेलू गंदगी और मल- जल ।
  3. पारा या मरकरी
  4. प्लास्टिक और पॉलीथीन कचरा ।
  5. कीटनाशक, जंतुनाशक आदि।
  6. तेल और अन्य पैट्रोलियम पदार्थ
  7. रेडियोधर्मी पदार्थ और अवशेष
  8. हल्की और भारी धातुएँ
  9. गर्म जल
  10. घरेलू गंदगी, कचरा और मल-मूत्र

झीलों में उपरोक्त गंदगी, कूड़ा-करकट मिल जाने से उसकी तली में भारी गाद (कीचड़) जमा हो जाती है। जिससे सागरों की गहराई कम हो जाती है लेकिन उनका तल ऊंचा हो जाता है। इसका झील के स्थानीय पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। गंदगी से सूर्य का प्रकाश झीलों में अधिक गहराई तक नहीं जा पाता। हम जानते हैं कि झील की गहराई और तली में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां उगती है जिन्हें रोशनी की आवश्यकता की वृद्धि रुक होती है। इन सबके कारण खस्पतियों जाती है। मानव शरीर में उपस्थित जीव हत्य में 700% से भी अधिक जल की शरीर की सभी मैटाबोलिक क्रियाओं में का कार्य करता है। इसीलिए इसे जीवन कहा जाता जल के है। पृथ्वी पर मानव जीवन माजा होती है जल एक माध्यम का का आधार विकास कारण ही हुआ है। इतिहास साक्षी है कि विभिन्न मानव सभ्यताओं का विकास नदी घारियों में जल प्राप्ति के कारण ही हुआ है। झीलों का हमारे पर्यावरण के साथ-साथ हमारे सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है लेकिन दुर्भाग्य से ये झील प्रदूषण का शिकार होते जा रहे हैं क्योंकि मानव का आचार - व्यवहार और उसकी जीवन शैली काफी बदल चुकी है वह भौतिकता और आधुनिकता के युग में जीता है प्रदूषण का ही प्रभाव है कि आज हमारे अधिकतर झील गन्दी झील के रूप में परिवर्तित होते जा रहे हैं। झीलों को प्रदूषित करने में उसके आसपास बसे शहर और वास्तियों तो उत्तरदायी हैं ही साथ ही नदियां भी प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण है। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारी अधिकतर नदियां आज गन्दे नाले के रूप में बदलती जा रही है।

अध्ययन का उद्देश्य
झील के पानी का मुख्य प्रयोग सिंचाई तथा आवासीय कॉलोनी के लिए पीने के जल की पूर्ति करना मुख्य उद्‌देश्य है। यह भोपाल में मौजूद मानव सिनि निर्मित जलस्रोतों में से एक है। यह स्थान शाम के समय बहुत ही शान्त रहता है। मानव एवं जीवधारियों के पेम के अतिखित इसका उपयोग जल विद्युत, नौका परिवहन, सीवेज निपटान, उद्योग एवं अन्य कार्यों में होता है।
साहित्यावलोकन

जल प्रदूषण की समस्या न केवल स्थल खण्ड सागरों तथा की नदियों व झीलों में है वाल्के महासागरीय क्षेत्रों में भी जल प्रमुषित हो रहा है। झीलों का जल न केवल झील तटीय कारखानों द्वारा तथा शहरों के कचरों द्वारा प्रदूषित हो रहा है। लेकिन सबसे अधिक पैट्रोलियम पदार्थों द्वारा दूषित हो रहा है। विश्व में कुल खनिज तेल उत्पादन भाग समुडी परिवहन से एक का लगभग 60% क्षेत्र से इससे क्षेत्र तक पहुंचाया जाता है। तथा कुल परिवहन का लगभग एक हजाखों भाग झीलों में फैल जाता है। 1979 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद शहर में स्थापित " नर्मदा बचाओं अभियान समिति" का कार्यक्रम, बनारस के 'संकट मोचन फाउंडेशन का गंगा बचाओ कार्यक्रम तथा "स्वच्छ गंगा अभियान समिति' का कार्यक्रम आदि प्रमुख है जोकि जल प्रदूषण को रोकने के लिए लोगों में चेतना जामृत कर रहे हैं। इसके अलावा भागलपुर, गोवा, बेलगाव, बुरहानपुर, ग्वालियर, गंजाम और शहडोल में ग्रामीण मछुआरों, छात्रों तथा पत्रकारों द्वारा भी लोकमत जागृत किया जा रहा है। वर्ल्ड वाच इस्टीट्यूट के निदेशक लेस्टर ब्राउन के अनुसार "हम एक ऐसे विश्व में हैं जिसमें जल एक गंभीर चुनौती बन रहा है प्रतिवर्ष 8 करोड़ नए लोग विश्व के जल ससाधन पर एक जता रहे हैं। दुर्भाग्यवश, अगलो अई शताब्दी में पैदा होने वाले 3 अरब लोग उन देशों में जन्म लेंगें जहाँ घोर जल संकट है। 2050 तक भारत में 52 करोड़, पाकिस्तान २० करोड, चीन में 21 करोड़ लोग जन्म लेंगे।

मिस, ईरान, तथा मैक्सिको की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक वह जायेगी। ये करोड़ों लोग जल निर्धनता से ग्रस्त होगें । विश्व के भूमिगत जलागारों में प्रतिवर्ष 16 अरब घनमीटर का हास हो रहा है। एक टन अनाज पैदा करने में लगभग 1000 टन जल की आवश्यकता होती है। अतः उक्त जल स्तर हास का अर्थ है - प्रतिवर्ष 16 करोड़ अनाज की क्षति ।" झील में कार्बनिक प्रदूषण के साथ बी० ओ० डी० की मात्रा भी अधिक है। पर धुलित ऑक्सीजन मान्य सीमा से कम है। भोपाल का बड़ा तालाब इस नगर के पेय जल का प्रमुख स्रोत (34 गैलन प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। इसका अपवाह क्षेत्र 370 वर्ग किमी० में है। जलग्रहण क्षमता 3600000 क्यूबिक फीर है। वर्षा ऋतु में इसका क्षेत्रफल पा वर्ग किमी० हो जाता है। और पानी गन्दा एवं पीने के योग्य नहीं होता। ग्रीष्म ऋद्ध में यह 18 वर्ग किमी० सूखकर मात्र 23 वर्ग किमी० क्षेत्र में ही जलाच्छादित रहता है। जिससे प्रदूषण की सान्डता बढ़ती है। प्रदूषण कारक तत्व एवं स्थलों में श्यामला हिल्स स्थित जल शोधन यंत्रालय से 10,000 गैलन दुर्गन्ध युक्त पीले रंग का जिसमें इपित तत्व बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं। प्रदूषण रोकने में व्यक्ति जनचेतना से, तम्तीकी शोध, शिक्षा और संस्कार जीवन शैली आदि के द्वारा किया जा सकता है। 51 प्रतिशत प्रदूषण वाहनों से हो रहा है। सम्पूर्ण जल का 93%, सागरों, व महासागरों, 4.1% भूमि में 2% बर्फ के रूप में पहाड़ों पर तथा शेष नादयों व झीलों में एकत्रित रहता है। यहाँ से जल वाष्पीकृत होकर ऊपर जाता है। तथा संघनित होकर वर्षा के रूप में घरातल पर गिरकर विभिन्न कपों में प्रयुक्त होता है। मानव को सर्वाधिक मात्रा में भूमिगत जल सुलभ होता है। वोट क्लब के निकट रापस झील में पुनः प्रतिदिन छोड़ा जाता है। कमला पार्क के पक्के घाटों से कपड़े धोने, नहाने से अपमार्जक दुर्गा, गणेश मूर्ति पूजा सामग्री और ताजिया, सड़क की गन्दगी से जल के गुण धर्म कुप्रभावित होते हैं। रेट घाट के निकर 80 झुग्गी - झोपड़ी परिवार हैं जो झील के किनारे के स्थान को दैनिक निस्तार में प्रयुक्त करते हैं। सीढ़ी घार के निकट स्थित मकानों का दूषित जल एवं खुली नालियों की ठीक से सफाई न होने के कारण ऊपर से बढ़‌कर गन्दा पानी झील में पहुँचता है फतेहगढ़ सीवेज पम्प से बहकर गन्दा पानी झील में जाता है। इसी के पास शाकिर नगर जे० पी० नगर सीवर लाइन पर लगभग 300 झुग्गी- झोपड़ी है, साथ ही प्रायः सीवर लाइन पर लगभग 300 झुग्गी झोपड़ी हैं। साथ ही यहाँ प्रायः सीवर लाइन के टूटे रहने से मैन होल से दूषित जल झील से जा मिला है। आगे सजदा नगर में 500 झुग्गी झोपड़ी परिवार का दैनिक निस्तार तालाब की निकटवर्ती ढालू भूमि पर होता है। यहीं के मकानों से 200-225 सी० ए५० टी० जल गड्‌ढे के पास झील में गिरता है। करबला में ब्ड़ी मात्रा पशुओं को नहलाना, मोटर वाहनों का धोना और ताजियों को विसर्जित किया जाता है। अह‌मदावाद सीवेज पम्प हाऊस के निकर ही गृह निर्माणि मण्डल विकास प्राधिकरण एवं अन्य कॉलोनियाँ का इषित जल एवं प्राधिकरण द्वारा विकसित भूखण्डों में बनाये गये मकानों का भूतल सीवर लाइन से नीचा पड़ता है। अतः मकानों से निकलने वाला दूषित जल सीवर लाइझ में न जाकर झील में जाता है। सीहोर की ओर से कृषि क्षेत्र से रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से नाइट्रेट एवं कीटाणुनाशक दवाइयों से युक्त दूषित जल झील में आता है। सिंघाड़े की कृषि में प्रयुक्त कीटाणुनाशक से जल प्रदूषित होता है।

भोपाल का विस्तार-

  1. Latitude and longitude - 23. 2599° N, 77.4126° E
  2. Sea level - 519 m
  3. Area of Bhopal 463 km²
  4. Population of Bhopal in 2024 is -2,625,000, जो 2023 से 2.34% की शहे है। 2023 में भोपाल के मैट्रो क्षेत्र की जनसंख्या 2,565,000 थी, जो २०२२ से 2. 4% अधिक है।

अध्ययन क्षेत्र- भोपाल जिला मध्य भारतीय पठार के केंद्र के पास 500 मीटर की सामान्य ऊँचाई पर स्थित है औसत समुद्र तल से ऊपर जिले के मध्य भाग एक लहरदार ऊँचा मैदान है जिस पर खेती और बस्तियाँ बसती है यह दक्षिण, पश्चिम, पूर्व और उत्तर - पश्चिम में छोटे-छोटे पहाड़ी इलाकों से घिरा हुआ है। शहर की सीमा के पास कई प्राकृतिक और कृत्रिम झीलों की मौजूद‌गी के कारण इसे झीलों का शहर के रूप में जाना जाता है यह भारत के सबसे हरे भरे शहरों में से एक है। यह भारत का 16 वां सबसे बड़ा शहर और दुनिया का 13 वां सबसे बड़ा शहर है।

वर्तमान में इसका जल प्रदूषित होने इसके वर्तमान में लगता है। इसके रंग, रचना एवं जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों से यह संकेत मिलने लगा है कि वर्षा ऋतु में क्षेत्रफल कुछ वर्ग किमी० हो जाता है।

प्रदूषण के कारण-

  1. 341 वर्ग किसी० कृषि क्षेत्र का जल व भोपाल की जनसंख्या जो निकटवर्ती ढाल भूमि पर बसी बस्ती का अपजल विभिन्न नदी नालों से प्राप्त होता है।
  2. कमला पार्क के पक्के घाटों से नहाने, कपड़े धोने, मूर्ति विसर्जन, ताजिया विसर्जन, सड़क की गंदगी से जल प्रदूषित होता है।
  3. गृह निर्माण मंडल विकास प्राधिकरण एवं अन्य कालोनियों का जल एवं दूषित जल झील में जाता है।

मुख्य पाठ

भोपाल का बड़ा तालाब परमार वंश के राजा भोज ने 11 वीं शताब्दी में नदी पर एक मिट्टी के बाद का निर्माण करके बनवाया था, इसे भोज ताल कहा जाता है, वहीं निचली झील का निर्माण २ साल पहले मुख्य नदी के रिसाव से हुआ था। भोपाल झील की लम्बाई 31.5 km. अधिकतम चौडाई - 5 km. है और सतही क्षेत्रफल 31 किमी है। 8.8 मी० अधिकतम गहराई है। भोपाल में पर्यटकों के लिए कई जगह है जैसे कि अपरी झील निचली झील, बिड़ला मन्दिर, बन विहार, भारत भवन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, मनु भानु की टेकरी, गुफा मंदिर, ताज उल-मस्जिद, जामा मस्जिद, गौहर महल, शौकत महत, क्षेत्रीय विज्ञान केन्द्र, मछलीघर केरवा बाँध आदि। जलेबी की तरह ही दिखने वाली इमरती मध्य प्रदेश की मिठाइयों की शान है, कैसर के फूलों से बनी यह डिश इतनी स्वादिष्ट होती है कि हर कोई इसे खाकर खुशी से खिल जाता है। भोपाल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल प्राकृतिक सुन्दरता, पुराने एतिहासिक शहर और आधुनिक शहरी नियोजन का आकर्षक संगम है। यह राजा भोज द्वारा स्थापित । वीं शताब्दी का शहर भोजपाल है, लेकिन वर्तमान शहर की स्थापना एक अफगान सैनिक दोस्त मोहम्मद (1707-1740) ने की थी। पर्यटन स्थानों में शान-ए-भोपाल लाल घाटी से कमला चार्क तक लगभग 3 किलोमीटर झील किनारे एक रास्ता है। यहाँ सैर करने का अपना ही मजा है शाम होते ही यहाँ मेला सा लगने लगता है। ताज-उल मस्जिद एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद है। इस विशाल मस्जिद के निर्माण की शुरुआत शाहजहां वेगम ने सन् 1868 में की थी। इस मस्जिद का निर्माण कार्य उसकी मृत्यु के बाद संपन्न हुआ था। जामा मस्जिद का निर्माण कुदेसिया वेगम द्वारा कराया गया था। कहा जाता है कि यहाँ पहले परमार वंशीय राजा उपादित्य द्वारा सन् 1059 में निर्मित एक सभा मंडप था। भोती मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद की तरह बनी मोती मस्जिद भी मुगल काल की। एक भव्य इमारत है। भारत भवन की देश का सांस्कृतिक तीर्थ भी कहा जाता है। इस परिसर का निर्माण प्रसिद्ध वास्तुविद चार्ल्स कूरियर द्वारा संपन्न हुआ था। आदिवासी संस्कृति व रंगकर्म के शामदार वैभव का अद्भुत संग्रह भारत भवन भोपाल की झील के किनारे यहाँ बना है। इस्लाम नगर अफगान शासक दोस्त मुहम्मद खान के बनाए बाग-बगीचे व महल विशेष रूप से देखने लायक है। यहाँ फिल्मों की भूटिंग होती रहती है। भीम बैठका की प्राचीन गुफाएं भोपाल से 35 किमी की दूरी पर स्थित है। इन गुफाओं में आदिकालीन मानवों द्वारा पत्थरों पर उकेरी गई मूर्तियों की सुन्दरता देखते ही बनती है। गुफाओं के बारे में प्रचतित है कि महाभारत काल में भीम ने यहीं निवास किया था। कब्जे के लिए सूखती, प्घरेलू, व अन्य निस्तार के कारण बदबू भारती, पानी की आवक के रास्ते में खड़ी रुकावटों से सूखती, सफाई न होने से उथली होती और जलवायु परिवर्तन से जूझती दुनिया भर की झीलें बीमार हो रही हैं। 10 हेक्टेयर से अधिक फैलाव वाली दुनिया की 1427688 झीलों की सेहत का आकलन किया गया है, जिनमें भारत की 3043 जल निधियां भी हैं। यह समझना होगा कि झीलें जीवित प्रणालियां हैं, जिन्हें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन, प्रसन्न रहने के लिए साफ पानी, अपने भीतर जीन जन्तु जीवित रखने के लिए सन्तुलित ऊर्जा और पोषक तत्वों की आपूर्ति की आवश्यकता होती है। इन्सान की तरह झीलें विभिन्न रोगों का शिकार हो रही हैं, जैसे- बुखार आना अर्थात अधिक गरम होना, परिसंचरण , श्वसन, पोषण और चयापचय सम्बन्धी मुद्‌दों से लेकर संक्रमण और विषाक्तता की तरह झीलों की कई स्वास्थ्य समस्यायें हो सकती हैं। झील-तालाब बीमार हो, तो इलाके का कार्बन और ताप अवशोषण प्रभावित होता है, जो जैव विविधता को साति और बाढ़- सूखे के रूप में सामने आता है। यदि दरिया का पानी दृष्ट-पुष्ट न हो तो उससे उगने वाले उत्पाद में भी पौष्टिकता में कमी होती है। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि झीलों की सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। पोषक तत्वों की अचानक अधिकता होने से जल निधियों की ऊपरी सतह पर हरे रंग की परत जमने से हम वैज्ञानिक भाषा में हरा पन एक तरह सभी पहले से वाकिफ हैं। इसे 'यूट्रोफिकेशन' कहते हैं। वास्तव में के वैक्टीरिया के कारण होता है। जिसे सूक्ष्म या फिलामेंट्स शैवाल कहा जाता है।

उपाय -

  1. ढालू भूमि पर स्थित गंदी वस्तियों का स्थानान्तरण कर उनके पुनर्वास की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
  2. शोधन संयंत्र से पुनः प्रदूषित जल तालाब में न छोड़कर समीप के बाग-बगीचों में प्रयुक्त किया जाना चाहिए।
  3. कृषि कार्य में तीव्र कीटाणुनाशक द‌वाइयों के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
  4. अपवाह क्षेत्र में पौधे लगाना चाहिए।
  5. धार्मिक क्रियाएँ, मूर्ति एवं ताजिमा, पूजा सामग्री विसर्जन पर रोक लगाना चाहिए।
  6. पेय जल में फिटकरी डालना चाहिए।
  7. नगरों, महानगरों तथा छोटे कस्बों में जल उपचार संयन्त्रों की स्थापना की जाये।
  8. कस्बों, नगरों तथा महानगरों में सुलभ शौचालयों की स्थापना की जाये जिससे कि मल-मूत्र के लिए नदियों के किनारे घाट सार्वजनिक स्थान तथा अन्य खुले स्थानों का उपयोग न हो।
  9. विद्युत शवदाह गृहों की स्थापना की जाये जिससे कि अधजले शव व कार्बनिक पदार्थ नदियों में प्रवाहित न हो सके।
  10. नदियों द्वारा निकला हुआ प्रदूषित जल जोकि नदियों व कृषि भूमि में मिल रहा है, पर प्रतिवन्ध लगाया जाये। उद्योगों में जल उपचार संयंत्रों की स्थापना की जाये । जिससे कि प्रदूषित जल शुद्ध किया जा सके।
  11. जल प्रदूषण नियन्त्रण कार्यक्रम में स्थानीय निवासियों की भागीदारी भी शामिल करनी आवश्यक है जिससे कि कार्यक्रम में अधिक से अधिक सफलता मिल सके।
  12. मृतक पशुओं के नदियों में विसर्जन रूप से प्रतिबन्ध लगाया जाए।
  13. उद्योगों के दूषित जल को साफ करके उसका सिंचाई आदि में उपयोग किया जाये।
  14. विभिन्न मौसमों में नदियों के विभिन्न स्थानों में नदियों के जल की जाँच करना आवश्यक है ताकि जल प्रदूषण का स्तर ज्ञात हो सके।

प्रदूषण संबंधी अन्य कुछ प्रकरण -

  1. सन् 1953 में दक्षिण जापान की मिनीमाता खाड़ी में पारा प्रदूषण हुआ। पारे के यौगिकों की मात्रा असामान्य रूप से बढ़ जाने के कारण मछलियां एवं समुडी जीव प्रदूषित हुए। इन मछलियों को खाने से पुरुषों के अलावा स्त्रियों एवं स्तनपान करने वाले शिशु प्रभावित हुए। बच्चों में मानसिक विकृतियों आने लगीं।
  2. मिथाइल मरकरी से उत्पन्न विरसता की महामारी सन् 1964 में निगातार जापान) में देखी गई। यहाँ समुडी मछलियां औद्योगिक कारखानों के जहरीले पदार्थ समुड में विसर्जित किए जाने से प्रदूषित हो गई।
  3. ईराक में वर्ष 1971-72 में प्रदूषण के फलस्वरूप गंभीर दुर्घटनाएँ घरी। ये गुख्य कप से मिथाइल भरकरी मिलें जौ और गेहूं से हुई। जौ और गेहूं में मिथाइल भरकरी भण्डारण के दौरान कीड़ों से रक्षा के लिए मिलाया गया था। इसी तरह की घटना रूस तथा स्वीडन में घटी। सीसे के यौगिकों के कारण होने वाले प्रदूषण से भ्रूण के रुधिर में और परिवर्धन के समय मस्तिष्क प्रभावित हो जाता है।
  4. थाइलैण्ड में बैटरी बनाने के कारखाने में व्यर्थ पदार्थों का इमारत निर्माण में उपयोग करने से सीसा जन्य प्रदूषण हुआ।
  5. वियतनाम युद्ध के दौरान दुश्मन के सैनिकों के दिपने के स्थानों को नदर करने के उद्‌देश्य से, अमेरिकी सेना ने क्लोरिनेटेड डाइआक्सीजन का उपयोग किया था। इससे गर्भपात, शिशुओं में जन्मजात विकृति तथा समय पूर्व जन्म की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
  6. सन् 1976 में इटली में सवींसों नामक स्थान पर (6) टी० सी० डी० टी० रसायन के विस्फोट के उपरान्त गर्भपात एवं जन्मजात विरुपता की घटनाएं घटी।
  7. सन् 1978 में एलसिया शहर में आरीगान रसायन 15 के प्रदूषण के कारण गर्भपात की प्घटनाओं में वृद्धि हुई।

निष्कर्ष

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों के मन में इस तथ्य को बैठाया जाना चाहिए कि वे स्वयं इसके लिए जिम्मेदार है अतः वे ही इस भयावह समस्या का समाधान कर सकते हैं। इसके लिए कानूनी तौर पर उन्हें नियमों का पालन करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।

  1. भौतिक गुणों में पेयजल पारदर्शक, स्वाद, रंग व गन्धहीन होना चाहिए।
  2. रासायनिक दृष्टि से पेयजल निर्धारित मापदण्ड के अनुसार पी० एच० मूल्य 7 होना चाहिए जो कहीं भी नहीं है। विभिन्न पदार्थों की घटोत्री मानचित्र के साथ संलग्न है। प्रदूषण सूचक जीवाणु एवं वनस्पतियों की उपस्थिति पर्याप्त प्रमाण है।
  3. कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी जिसके प्रभाव यहाँ के निवासियों की आँखों के नीचे आई कालिमा पीले दाँत और हड्‌डी सम्बन्धित रोगों की अधिकता को देखकर प्रमाणित होता है।
  4. जल शोधन संयन्त्र उपलब्ध जल स्रोत के मूल स्वभाव में भौतिक लक्षणों के अतिरिक्त शेष परिवर्तन नगण्य रुप में कर पाता है। वायरस की अधिकता और खनिज तत्वों की कमी के लिए पानी में कोई परिवर्तन नहीं करता ।
  5. भोपाल झीलों में क्षारीयता की अधिकता के कारण निर्धारित मापदण्ड से साढ़े तीन गुना अधिक है। वायरस जल शुद्धिकरण के बाद भी यथावत रहते हैं कदाचित यही कारण है कि यहाँ के लोग पेचिस पाचन सम्बन्धी रोगों से ग्रसित देखे गये हैं।
  6. मल-मूत्र के सीधे विसर्जन से पेचिस, यक्ष्मा टाइफाइड, पोलियो, संक्रामक रोगों एवं आँखों के विभिन्न रोग उत्पन्न करने वाले बैक्टीरिया व वायरस फैल जाते हैं। सजदा, शाकिर नगर, खानूगाँव, बैरागढ़ का दुर्गन्धयुक्त गंदला जल इन समस्याओं से ग्रसित है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
  1. https://en. wikipedia, org
  2. https: // www.tripadvisor. in
  3. https:// microbiologyjournal.org
  4. https: // timesofindia.indiatimes.com
  5. https! // testbook.com
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