ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- III April  - 2022
Innovation The Research Concept
भारत में जनजाति समाज के क्षेत्र एवं जनजातीय संस्कृति का अध्ययन
Field of Tribal Society in India and Study of Tribal Culture
Paper Id :  16017   Submission Date :  2022-04-12   Acceptance Date :  2022-04-19   Publication Date :  2022-04-25
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शोभाराम डेहरिया
सहायक प्राध्यापक एवं पूर्व विभाग अध्यक्ष समाज कार्य
समाज शास्त्र
बस्तर विश्वविद्यालय
जगदलपुर,छत्तीसगढ़, भारत
सारांश
भारत में जनजाति क्षेत्र के अध्ययन विभिन्न प्रकार की जनजाति एवं जनजाति समूह में विभिन्न प्रकार की संस्कृति का एक अध्ययन किया गया है जिसमें अध्ययन में मूल रूप से बस्तर अंचल छत्तीसगढ़ राज्य के जनजाति संस्कृति को शामिल किया गया है एवं भारत के विभिन्न राज्यों में निवास कर रहे जनजाति क्षेत्रों का अध्ययन किया गया है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Study of tribal area in India, a study of different types of culture has been done in different types of tribes and tribal groups, in which the study has basically included the tribal culture of Bastar region, Chhattisgarh state and living in different states of India have been studied.
मुख्य शब्द जनजाति, उपजाति, परस्परिक विनिमय।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Tribe, Sub-caste, Interchange.
प्रस्तावना
भारत में जनजाति समाज का अध्ययन करते है तो इसका सम्बन्ध ग्रामीण समुदाय से जोड़ा जाता है। जानजातिय एक समाज है जिसका मानवशास्त्रीय साहित्य में ट्राइब षब्द के समानार्थी कई नामों का प्रयोग किया गया है। जिसमें- (प्रिमिटिव) आदिम, देशज। (नैव) जंगली। (ओरिजिनल सेटलर्स) आदिवासी, असभ्य, बर्बर, वन्य-जाति, वनजाति, दलित वर्ग आदि का प्रयोग किया जाता है। जिससे स्पष्ट है कि जाजातिय समाज को कई नामों से पुकारा जाता है।
अध्ययन का उद्देश्य
1. भारत में निवासरत जनजाति समाज की उपजाति एवं उनकी संस्कृति का अध्ययन। 2. जनजाति समाज में बस्तर एवं मध्य प्रदेश के ग्राम पंचायत मडवा में निवासरत जनजाति का संस्कृति का अध्ययन।
साहित्यावलोकन
‘‘इंपेरियम गजेटियर्स आफ इंड़िया के अनुसार- जनजाति परिवारों का एक समूह होता है जिसका एक आम नाम होता है, जिसके सदस्य सामान्य भाषा का प्रयोग करते है, एक आम प्रदेश में निवास करते है तथा आपस में विवाह सम्बन्ध स्थापित नहीं करते है, हालांकि आरम्भ में उनके आपस में विवाह सम्बन्ध हुआ करते थे।’’ डी.एन. मजूमदार के अनुसार-‘‘जनजातीय परिवार का एक समूह होता है जिसके सदस्य एक ही भाषा का प्रयोग करते है, एक ही क्षेत्र में निवास करते है, विवाह तथा पेशों से सम्बन्धित समान निषेधों का पालन करते है तथा उनके बीच सुविकासित परस्परिक विनिमय तथा आपसी लेन-देन की व्यवस्था पाई जाती है।’’
मुख्य पाठ

भारत में ग्रामीण समुदाय की अवधारण कृषि एवं जनजाति समाज से ही लगाई जाती है तो निश्चित रुप से ग्रामीण समुदाय को समझने में आसानी होती है।
संस्कृति
भारतीय जनजातीय समाज विभिन्न संस्कृतिक परम्पराओं पर आधारित है। जनजातीय संस्कृृति में प्राकृति पूजा एवं प्रत्येक कार्य का श्रेय उनके देवी-देवता व पूर्वजों को देते है।  जनजातीय संस्कृति में रीति रिवाज परम्पराओं नृत्यखानपानपहनावाजीवनशैली सब संस्कृति पर आधारित है। विभिन्न जनजातीय समूहों में विभिन्न प्रकार की संस्कृतिक परम्पराएॅ है और जन्म से लेकर मृत्यु तक इनका पालन किया जाता है।
भारत में जनजातीय क्षेत्र-भारत में जनजातीय समाज का क्षेत्र विस्तृत है यहॉ लगभग सभी राज्य में जनजातीय समाज है कुछ राज्य को छोड़कर देखे तो सभी राज्यों में जनजातीय समाज है। भारतीय समुदाय में 50 से अधिक जनजातीय समाज है देश में दो प्रमुख प्रजातियॉ है जिसमें नेग्रीरों ऑस्ट्रेलिया और मंगोलॉयड है। अब यहॉ हम भारत  के राज्यानुसार पॉई जाने वालें जनजातीय क्षेत्रों का अध्ययन करते है। सन 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में जानजातियों की जनसंया 6.758 करोड़ थी यह इंग्लैड़ की आबादी के लगभग बराबर थी। (Manpower profile, India, 1998:34जनजाति की कुल जनसंख्या देश की आबादी की 8.08 प्रतिशत है भारत में जनजातियों की संख्या अफ्रीका के बाद विश्व में दूसरा स्थान है।

विश्लेषण

अध्ययन क्षेत्र का परिचय
मध्यप्रदेश से पृथक राज्य के रुप में छत्तीसगढ भारत का 26 वां राज्य के रुप में 1 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया। छत्तीसगढ़ राज्य वैसें भी आदिवासी बहुल्य क्षेत्र है साथ ही जब बस्तर जिला या संभाग का नाम आता है तो, बस्तर के सामाजिक अध्ययनकर्ता लेखक को बस्तर के जनजातीय संस्कृति एवं परम्पराओं की देश-विदेश में अलग पहचान है। यहाँ की आदिवासी संस्कृति की कला कृतियों को स्मृति चिन्ह के रुप में भी कई कार्यक्रमों में भेंट किया जाता है। साथ ही मध्यप्रदेश के सिवनी जिला के ग्राम पंचायत मड़वा में निवासरत जनजातीय समाज के संस्कृतिक जीवन का अध्ययन किया गया। जिसमें जनजातीय समाज में काफी संस्कृतिक समानता पाई गई है। जनजातीय क्षेत्र बस्तर में मूल रुप से बैल, ढोल बजाते पुरुष एवं नृत्य करती महिलाओं के साथ ही पहनावा एवं श्रृंगार को भी लकडी, लोहा व पीतल की स्मृति चिन्ह तैयार किया जाता है। साथ ही बस्त्र व दीवार पेंटिग व चौंक चौराहें पर बस्तर संस्कृति का अनुपम नजारा बस्तर की अलग पहचान है और बस्तर जनजातीय समाज की दुनियां में अपनी अलग पहचान है।
बस्तर जनजातीय बहुल्य क्षेत्र होने के साथ ही कई खूबियों से भरा है और अध्ययनकर्ताओं की जिंज्ञासा का केन्द्र आज भी बना हुआ है। बस्तर शांति और सादगी के साथ अपने भोले-भाले पन के लिए जाना जाता है। आदिवासी संस्कृति के साथ ही कलाकृतियॉ बस्तर की बहुत ही मशहूर है। आदिवासी नृत्य, ढोल नगाडे़, पहनावा, खानपान, भाषा, उपचार परम्परा एवं झाडफूक परम्पर भी है इसके साथ ही घनें वन, औषधि, उच्चकोटी के रेशम, नदियां झरना, चित्रकूट जलप्रपात, गुफाएं, तीरनदाजी, पर्व, त्यौहार, आदि सब कुछ की अपनी अलग पहचान बस्तर की नाम लेने से ही जहन में आ जाते है। बस्तर बैलाडीला क्षेत्र में उच्च किस्म के लोहें की खदान है। दन्तेवाडा में दन्तेश्वरी देवी का मंदिर बस्तर क्षेत्र का प्रमुख आस्था का केन्द्र है।
ग्राम धरमाऊर
ग्राम का अध्ययन करने पर हमें यह ज्ञात होता है कि ग्राम धरमाऊर बस्तर जगदलपुर मुख्यालय से 09 किलोमीटर की दूरी पर चित्रकूट रोड़ में है। अध्ययन ग्राम की कुल जनसंख्या 682 है जिसमें से 328 पुरूष है। जो कुल जनसंख्या का 48 प्रतिशत है। तथा 354 स्त्री है जो गॉव कि कुल जनसंख्या का 52 प्रतिशत है। ग्राम पंचायम मड़वा के अन्तर्गत छः ग्राम शामिल है जिसमें ग्राम मडवा, सालीवाडा, कचनरा, साठावारी, दिघोरीटोला है। यह ग्राम पंचायत क्षेत्र जनपद पंचायत व तहसील छपारा से पश्चिम की ओर 20 किमी की दूरी पर है। यह जिला सिवनी मध्यप्रदेश में है। ग्राम पंचायत में कुल 18 वार्ड है जनजातीय बहुल्य, कृषि प्रधान एवं वन क्षेत्र है।
(जनसंख्या 2019-20 में ग्रामों की  जनसंख्या)

क्रमांक

ग्राम का नाम

जनसंख्या (लगभग)

1.

ग्राम मड़वा

1030

2.

ग्राम  मनोगढ़

226

3.

ग्राम कचनरा

205

4.

ग्राम सालीवाड़ा

810

5.

ग्राम सोठावारी

180

6.

ग्राम  दिघोरीटोला

130

भारतीय समुदाय में जनजातीय समाज एक अभिन्न अंग है और जब हम भारतीय समुदाय में ग्रामीण समुदाय का अध्ययन करते है तो यहा दो समाज का वर्णन विशेष रुप से किया गया है जिसमें प्रथम कृषक समाज और दूसरा जनजातीय समाज।
अध्ययन क्षेत्र में बस्तर के धरमाउर एवं सिवनी में मड़वा पंचायत में अध्ययन में पाया गया कि,
1.     जनजातीय समाज में संस्कृतिक परम्पराओं में बहुत सी समानता है।
2.     शिक्षा का दोनों स्थानों में शिक्षा स्तर कम है।
3.     विभिन्न उत्सव में शराब का सेवन परम्परा है।
4.     संस्कृतिक कार्यक्रम एवं नृत्य की परम्परा।
5.     पहनावा एवं खानपान में बहुत जादा अंतर नहीं है।
6.     गोदना प्रथा समान है परन्तु बस्तर क्षेत्र में ज्यादा है।
7.     बस्तर में विभिन्न कार्यों में महिलाओं की प्रधानता देखी गई है।
8.     मडवा पंचायत में पुरुष प्रधानता है।
9.     जनजातीय पंचायतें समान है। दोनों अध्ययन क्षेत्र में।
10.    प्रकति पूजा एवं परम्परागत देवों की पूजा पर विश्वास करते है।
11.    झाड़फूक पर विश्वास एवं पशुबली प्रथा प्रचलित है।
12.    अधिकांश मासाहारी होते है।
जनजातीय समाज सम्पूर्ण भारत में निवास करता है और कुछ राज्य ऐसे भी है जो जनजातीय राज्य के रुप मे देखे जाते है। इनकी अपनी अलग संस्कुति एवं सामाजिक रीति-रिवाज है इसकी कुछ समस्याएं भी है सामाजिक विकास की गति सामान्य से कम है। जनजातीय समाज के सर्वांगीण विकास हेतु संविधान में भी कुछ प्रावधान कियें गए है। शासन द्वारा जनजातीय विकास हेतु लगातार प्रयास भी किये जा रहें है। भारत के साथ-साथ जनजातीय समाज विश्व के अन्य देशो में भी निवास करते है। सन 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में जनजातियों की जनसंया 6.758 करोड़ थी यह इंग्लैड़ की आबादी के लगभग बराबर थी। (Manpower profile,India,1998:34) जनजाति की कुल जनसंख्या देश की आबादी की 8.08 प्रतिशत है भारत में जनजातियों की संख्या अफ्रीका के बाद विश्व में दूसरा स्थान है।

1991 की जनगणना के अनुसार
अर्थ एवं परिभाषा
भारत में जनजाति समाज का अध्ययन करते है तो इसका सम्बन्ध ग्रामीण समुदाय से जोड़ा जाता है। जनजातिय एक समाज है जिसका मानवशास्त्रीय साहित्य में ट्राइब शब्द के समानार्थी कई नामों का प्रयोग किया गया है। जिसमें- (प्रिमिटिव) आदिम, देशज। (नैव) जंगली। (ओरिजिनल सेटलर्स) आदिवासी, असभ्य, बर्बर, वन्य-जाति, वनजाति, दलित वर्ग आदि का प्रयोग किया जाता है। जिससे स्पष्ट है कि जनजातीय समाज को कई नामों से पुकारा जाता है।
परिभाषा
‘‘इंपेरियम गजेटियर्स आफ इंड़िया के अनुसार- जनजाति परिवारों का एक समूह होता है जिसका एक आम नाम होता है, जिसके सदस्य सामान्य भाषा का प्रयोग करते है, एक आम प्रदेश में निवास करते है तथा आपस में विवाह सम्बन्ध स्थापित नहीं करते है, हालांकि आरम्भ में उनके आपस में विवाह सम्बन्ध हुआ करते थे।’’ डी.एन. मजूमदार के अनुसार- ‘‘जनजातीय परिवार का एक समूह होता है जिसके सदस्य एक ही भाषा का प्रयोग करते है, एक ही क्षेत्र में निवास करते है, विवाह तथा पेशो से सम्बन्धित समान निषेधों का पालन करते है तथा उनके बीच सुविकासित परस्परिक विनिमय तथा आपसी लेन-देन की व्यवस्था पाई जाती है।’’
गिलिक तथा गिलिक महोदय के अनुसार- ‘‘किसी भी प्राक् शिक्षित स्थानीय समूह को जनजाति कहा जा सकता है जिसके सदस्य एक आम प्रदेश में निवास करते है जिनके द्वारा आम भाषा का प्रयोग किया जाता है तथा जिसके बीच आम संस्कृति पाई जाती है।’’
डॉ रिवर्स के अनुसार- ‘‘जनजाति सरल प्रकार का सामाजिक समूह होता है जिसके सदस्य आम बोली का प्रयोग करते है तथा युद्ध जैसे आम उद्देश्य की पूर्ति हेतु साथ-साथ काम करते है।’’
आर.एन. मुखर्जी के अनुसार- ‘‘उस मानव समूह को जनजाति कहा जाता है जिसके सदस्य आम अभिरुची, प्रदेश, भाषा, सामाजिक नियम आर्थिक पेशों से बंधे होते है।[1] इस प्रकार से विभिन्न विद्वानों  ने जनजातीय समाज को लेकर अपने मत प्रकट कियें है।
भारत में जनजातीय क्षेत्र
भारत में जनजातीय समाज का क्षेत्र विस्तृत है यहॉ लगभग सभी राज्य में जनजातीय समाज है कुछ राज्य को छोड़कर देखे तो सभी राज्यों में जनतातिय समाज है। भारतीय समुदाय में 50 से अधिक जनजातीय समाज है देश में दो प्रमुख प्रजातियॉ है जिसमें नेग्रीरों ऑस्ट्रेलिया और मंगोलॉयड है। अब यहॉ हम भारत के राज्यानुसार पॉई जाने वालें जनजातीय क्षेत्रों का अध्ययन करते है।
1.  मध्यप्रदेश - गोंड, भील, भरिया, बैगा, उरॉव, कोल,
2.  महाराष्ट्रः- भील, गोंड़, अगारियॉ असुर, भारियॉ, कोया, वर्ली, कोली, डुकाबैगा,गडावास, कमार, खड़िया, खोंड, कोरबा, मुडा, उरॉव, प्रधान, बघरी।
3.  आध्रप्रदेश एवं तेलंगनाः- चेन्चू, कोचा, गुडावा, जटाया, कोंड़ा, डोंरस, कोंडा कपूर, कोंडा रेड्डी, खोड, सुगेलिस, लम्बाडिस, येलडिस, मेरुकुलास, भील, गौंड, कोलम, प्रधान, बाल्मिक।
4.  झारखण्ड- संथाल, असुर, बैगा, बन्जारा, बिरहोर, गौड, हो, खारिया, खोड, मुंडा, कोरवा, भूमिज, गल पहाड़िया, सोरिया पहाड़िया, बिझिया, चेरु लौहारा, उरॉव, कोल, भील।
5.  छत्तीगढ़- कोरकु, भील, बैगा, गौड़, अगारियॉ, भारियॉ, कोरबा, कोल, उरॉव, प्रधान, नगेषियॉ, हल्वा, भतरा, माड़िया, कमार, कंवर।
6.  असम व नागालैण्ड- बोडो, डिमसा, गारो, खासी, कुकी, मिजो, मिकिर, नागा, अबोर, डाफला, मिषमिस, उपातनिस, सिंधों, अंगामी।
7.  पश्चिम बंगाल- होस, कोरा, मुड़ा, उरॉव, भूमिज, संथाल, गेरों, लेप्चा, असुर, बंगा, बंजारा, भील, गोंड, बिरहोर, खोड, कोरबा, लोहरा।
8.  हिमाचल प्रदेश- गद्दी, गुर्जर, लाहौल, लांबा, पंगवाला, किन्नौरी, बकरायल।
9.  कश्मीर- गुर्जर।
10. गुजरात- कथोड़ी सिद्दीस, कोलाध, कोरवालियॉ, पाधर, टोड़िया, बदाली, पटेलियॉ।
11. उत्तरप्रदेश- बुक्सा, थारु, माहगीर, षोर्का, खखार, भारु, राजी, जॉनसारी।
12. मणिपुर- कुकी, अंगामी, मिजों, पुरुम, सीमा।
13. मेघालय- खासी, जयन्तियॉ, गारों।
14. त्रिपुरा- लुसाई, माग, हलम, खासियॉ, मूरियॉ मुण्ड़ा, संथाल, भील, जमनियॉ, रियांग, उचाई, कश्मीर, गुर्जर।
15. केरल- कड़ार, इरुला, मुथुवन, कनिक्कर, मलनकुरावन, मलरारायन, मलावेतन, मलायान, मन्नान, उल्लान, मूरालीं, विषावन, अर्नादन, कडुर्नाकन, कोरागा, कोटा, कुरियिमान, कुरुमान, पानियॉ, फुलायान, मल्लार, कुरुम्बा।
16. तमिलनाडू- टोडा, कडार, इकलाकोटा, अडयान, अरनदान, कुट्टानायक, कोराग, कुरिचियान, मासेर, कुरुमान, मुथुमवान, पनियॉ, थुलया, मलयाली, इरावल्लन, कनिक्कर, मन्नान, उरासिल, विसावन, ईरुला।
17. कर्नाटक- गौडालू, हक्की, पिक्की, इरुगा, जेसु, कुरुव, मलाईकुड, भील, गोंड़ा, रोडा, वर्ली, चेन्चु, कोया, अनार्दान, येरवा, होलेया, कोरमा।
18. उड़ीसा- बैगा, बंजारा, बड़होर, चेन्चू, गड़ाबा, गोंड, होस,, जटायू, जुआंग, खारिया, कोल, खोड, कोया, उरॉव, संथाल, सओरा, मुन्डुप्पतू।
19. पंजाब- गद्दी, स्वागंला, भोट।
20. राजस्थान- मीणा, भील, गरसियॉ, सांसी, दमोर, मेव, रावत, मेरात् कोली।
21. अण्डमान निकोबर- ऑगी, आरबा, उत्तरी, सेन्टीनली, अंडमानी, निकोबरी, शोबन।
22. अरुणाचल- अबोर, अक्का, अपडामिस, बर्मास, डफला, गाप्लोंग, गोम्बा, काम्पती, खोभा, मिसमी, सिगंपो, सिरडुकपेन।[2] (www.jagranjosh.com)
जनजातीय संस्कृति एवं परम्पराएं
भारत के बारें में यह कहॉवत बहुत ही महत्वपूर्ण एवं चर्चित है कि, ”भारत की संस्कृति की विशेषता अनेकता में एकतायानी भारत एक विशाल देश है यहाँ विभिन्न धर्म, जाति, रीति रिवाज, संस्कृति एवं परम्पराओं को मानने वाले लोग आपस में मिलजुल कर निवास करते है।
भारत के विभिन्न क्षेत्र में निवास करने वाली जनजातीय समाज की संस्कृति आज भी जीवित है। भले ही 21वीं सदी के अनेंको परिवर्तन में मिक्स कल्चर होते जा रहे है।
भारत के विभिन्न राज्यों के जनजातीय समाज की अपनी परम्परिक संस्कृति है जो प्रकृति प्रेमी व प्राक्रतिक वेषभूषा धारण करती है।
जनजातीय संस्कृति में वन, भूमी, जल, अन्न, प्रकृति के अनुरुप तीज तैयोहार, सामाजिक परम्पराओं, का समागम है।
जनजातीय समाज प्रत्येक उत्सव में विभिन्न कार्यक्रम के साथ नृत्य का बहुत महत्व है। बस्तर की मुरिया जनजाति जन्म से लेकर मृत्यु तक के कार्यक्रमों में नृत्य का करती है।
आज भी बहुत से ऐसे क्षेत्र है जहाँ जनजातीय समाज में वाहृा संस्कृति का अतिक्रमण नहीं हुआ है। जिसमें बस्तर में अबूझमाडिया, मध्यप्रदेश में बैगा, भरिया जनजाति  निवास स्थान पतालकोट तहसील, तामिया जिला- छिंदवाड़ा में स्थित है।
जनजातीय नेतृत्व
भारत में जनजातीय नेतृत्व का भी योगदान प्रचीन से लेकर वर्तमान तक है प्रचीन काल में जनजातीय राजाओं द्वारा नेतृत्व किया जाता रहॉ है और भारत की स्वतंत्रता के बाद जनजातीय नेतृत्व को बनाए रखने के लिए जनजातीय क्षेत्रों में लोक सभा एवं पंचायत प्रतिनिधियों तक शीट को सुरक्षित रखा गया है ताकि जनजातीय समाज के लोगों को नेतृत्व मिल सकें और राष्ट्रीय विकास में उनकी की भागीदारी सुनिश्चित हो।
भारत की स्वतंत्रता के बाद जनजातीय नेतृत्व को शासन में हिस्सा देने के लिए लोकसभा एवं राज्य विधान सभाओं में जनजातीय सीट का रिजर्वेशन किया गया है जिसमें जनजातीय उम्मीदवार ही चुनाव प्रत्यासी होते है। इस प्रकार जनजातीय विकास के लिए जनजातीय नेतृत्व मिला।
जनजातीय समाज के लिए संवैधानिक प्रावधान
15 अगस्त सन 1947 को भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में भारतीय संविधान बनायॉ गया और भारत में निवास अनुसूचित जनजातीय, अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़े वर्गो के काल्यण हो सके इसके लिए विशेष प्रावधानों की व्यवस्था की गई  ताकि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक,एवं धार्मिक दृष्टि से बंचित वर्ग में समान अवसर मिल सकें एवं उसका जीवन स्तर उच्च हो इसके लिए भारतीय संविधान में प्रावधानों की व्यवस्था की गई है।
भारतीय संविधान में भारत के प्रत्येक नागरिक को छः मूल अधिकार प्रदान किऐं  है जो भारत के प्रत्येक नागरिक पर लागू होते है।
भारतीय संविधान में मूलभूत अधिकार
1.     समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
2.     स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
3.     शोषण के विरुद्ध (अनुच्छेद 23-24)
4.     धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25-28)
5.     संस्कृति एवं शिक्षा  संबन्धित अधिकार (अनुच्छेद 29-31)
6.     संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32-34)
आधुनिक भारत में जनजातीय समाज जनजातीय पंचायत के साथ-साथ कानून एवं संविधान में पूर्ण आस्था रखता है। सत्यनिष्ठा एवं  न्यायप्रियता भी जनजातीय समाज की पहचान है।

निष्कर्ष
1. भारत में जनजातीय समाज के प्रमुख क्षेत्रों की जानकारी एवं संस्कृति परम्परा को देखा गया तो अध्ययन क्षेत्र में बहुत सी समानता देखने को मिली। 2. सामाजिक कार्यक्रमों में भी पूजा पंद्वति आदि में बहुत सी समानता है। 3. खान-पान रहन सहन में बहुत सी समानता है। 4. साधारण जीवन एवं कार्यशेली में समानताएँ है। 5. प्रकृति पूजा एवं सांस्कृतिक कट्टरता देखने को मिलती है। 6. आधुनिक युग में संस्कृतीकरण की ओर अग्रसर।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव 1. जनजातीय विकास के लिए जनजातीय क्षेत्रों में कई योजनायें है परन्तु धरातल पर इनकी हकीकत कुछ खास नहीं है।
2. जनजातीय विकास ग्रामीण समुदायिक विकास के साथ ही सांस्कृतिक एवं परम्पराओं के साथ विकास का सुलभ अवसर जनजातीय समाज को मिलें। जनजातीय विकासखण्डों में स्थानीय लोंगों को शासकीय सेवा व रोजगार के लिए उचित अवसर के लिए तैयार किया जाएँ।
3. जनजातीय क्षेत्रों में राज्यपाल जी एवं राष्ट्रपति जी को अपने अधिकारों का प्रयोग कर जनजातीय क्षेत्रों के विकास में बढ़ावा दिए एवं विकास के नाम पर शोषण करने वाले बिचोलियों से बचाया जाना चाहिएँ।
7. जनजातीय पंचायतों एवं संस्कृति को संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए।
8. जनजातीय के संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण एवं अधिकारों में बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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