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कला शिक्षा की वर्तमान में उपादेयता |
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The Importance of Art Education in The Present Times | |||||||
Paper Id :
19743 Submission Date :
2025-01-07 Acceptance Date :
2025-01-21 Publication Date :
2025-01-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14989888 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
वर्तमान
समय में युवा पीढ़ी को रचनात्मक एवं सृजनात्मक मंच तक लाने में कला शिक्षा को महत्वपूर्ण
स्थान है क्योंकि आज का युग युवाओं का है और उन्हे आज ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो
उनकी योग्यता को पहचान कर उनको सही दिशा प्रदान कर सके। इसमें कला शिक्षा महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती है। शिक्षा
उद्देश्य मानव का सर्वागीढ़ विकास करना है। इस विकास में सृजनात्मक विकास भी सम्मलित
हैं। अतः कला शिक्षा के माध्यम से छात्र को अपनी सृजनात्मकता तथा मौलिकता को अभिव्यक्त
करने के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। साथ ही विद्यार्थी में निरीक्षण शक्ति, कल्पना
शीलता, चिन्तन शीलता जैसे गुणों का विकास हो पता है। आज के समय में समाज मे संवेदन शीलता का आभाव होता जा रहा है। ऐसे में कला शिक्षा विद्यार्थी में बाह्यय जगत के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न कर उसमें निजी सौन्दर्य-बोध का सहज विकास कर मनुष्य के जीवन को निश्चित एवं व्यवस्थित दिशा प्रदान कर संस्कार व संस्कृति की रक्षा करती है। अपनी परम्पराओं व संस्कृति से जुड़ाव देश की समृद्धि में सहयोगी होते है। कला मनुष्य-मनुष्य का भेद भाव समाप्त कर आपस में भाईचारे की भावना का विकास कर जातिवाद, प्रान्तवाद, भाषावाद व राष्ट्रभाव से निकाल श्रेष्ठता के धरातल पर प्रतिष्ठित करती है। इन व्यंजनाओं के माध्यम से छात्र व्यक्ति, व्यक्तिगत, सामाजिक एवं राष्ट्रीय भावधारा से जुड जाता है। कला व शिक्षा से जुडे सभी फलक पर विचार करने से उसका सम्पूर्ण महत्व परिलक्षित हो जाता है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In the present times, art education has an important place in bringing the young generation to the creative and innovative platform because today is the era of youth and they need such education which can recognize their abilities and provide them the right direction. Art education plays an important role in this. The aim of education is to bring about all-round development of human beings. Creative development is also included in this development. Therefore, through art education, the student gets more opportunities to express his creativity and originality. Along with this, qualities like observation power, imagination, thinking ability are developed in the student. In today's time, there is a lack of sensitivity in society. In such a situation, art education creates sensitivity towards the external world in the student and develops personal sense of beauty in him and protects the culture and rituals by providing a definite and systematic direction to the life of man. Connecting with our traditions and culture helps in the prosperity of the country. Art eliminates discrimination between humans and develops the feeling of brotherhood among humans and establishes them on the ground of superiority by removing them from casteism, regionalism, linguisticism and nationalism. Through these expressions, the student gets connected to the individual, social and national sentiments. Its full importance is reflected by considering all the aspects related to art and education. |
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मुख्य शब्द | संवेदनशीलता, रोजगारन्मुखी, सकारात्मकता, आत्मानुशासन, ध्वनिजन्य, रूपप्रद, नवाचार, वैचारिकता, मुक्त अभिव्यक्ति, समावेश। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Sensitivity, employment oriented, positivity, self-discipline, acoustic, aesthetic, innovation, ideological, free expression, inclusion. | ||||||
प्रस्तावना | ’शिक्षा’
आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती रहती
है। अतः मनुष्य इस गतिशील प्रक्रिया के माध्यम से कुछ न कुछ सीखता रहता है। इससे व्यक्ति
अपने जीवन में विकास की ऊॅचाईयों तक पहुँचने का प्रयास करता है। सर्वप्रथम
बालक की शिक्षा उसके परिवार से शुरू हो जाती है। माता ही उसकी प्रथम गुरू होती है,
इसके बाद व विद्यालयी शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाता है, जहाँ व शिक्षक के सम्पर्क
में आकर शिक्षा ग्रहण करता है, वह समाज से समाज के सदस्यों से मित्रों से व अन्य माध्यमों
से व्यक्ति निरन्तर कुछ न कुछ सीखता रहता है। इस प्रकार शिक्षा समाज में निरन्तर चलने
वाली प्रतिशील प्रक्रिया है। शिक्षा
का उद्देश्य बालक का सर्वागीढ़ विकास करना है। सर्वागीढ़ विकास अन्तर्गत बालक का सृजनात्मक
विकास भी सम्मिलित है, कला के माध्यम से सृजनात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जाता है।
इस हेतू विद्यालयी शिक्षा तथा विश्वविद्यालयी शिक्षा के विविध स्तरों पर पाठ्यक्रम
में कला शिक्षा का समावेश किया गया है। यह
शिक्षा मुख्यतः दो तथ्यों पर आधारित है प्रथम विद्यार्थियों की सृजनात्मक योग्यताओं
को विकसित व पूर्ण करने में सहायता करती है तथा दूसरा बालक में सौन्दर्यानुभूति की
भावना को विकसित करती हैं, क्योंकि कला मानव के मनोभावों की अभिव्यक्ति है वास्तव में
कला मानव मस्तिष्क एवं आत्मा की उच्चतम एवं प्रखर तथा कल्पनाओं व भावों की अभिव्यक्ति
है। |
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अध्ययन का उद्देश्य |
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य कला शिक्षा की वर्तमान में उपादेयता का अध्ययन करना है । |
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोधपत्र के लिए विभिन्न पुस्तकों जैसे डॉ. हरद्वारी लाल शर्मा की 'कला मनोविज्ञान', श्री एस. एल. पाराशर की 'कन्टेट ऑफ प्रोफेशनल एजुकेशन इन आर्ट', रमेश वर्मा की 'कला शिक्षा', डॉ. गोपाल मधुकर चर्तुवेदी की 'भारतीय कला, संस्कृति एवं शिक्षा', 'शिक्षा का वाहन-कला', शशि जैन की 'कला शिक्षण' और डॉ. रीता चौहान की 'नाट्य, कला और शिक्षा' का अध्ययन मुख्य रूप से किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
कला
शिक्षा का महत्व कला
शिक्षा का व्यक्ति के विकास में बड़ा महत्व है प्रत्येक 1 छात्र में सृजनात्मक प्रतिभा
होती है तथा वह विभिन्न क्रिया-कलापों के माध्यम से वह अपनी प्रतिभा को व्यक्त करने
का प्रयास करता है। विद्यार्थी की प्रतिभा की मुक्त अभिव्यक्ति उसके विकास में सहायक
होती है। कला शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति अनेक प्रकार के अपने मनोभावों को व्यक्त
करता है तथा अनेक प्रकार की अनेक प्रकार की कलाओं में अपने व्यक्तित्व का विकास करता
है। कला
शिक्षा विद्यार्थियों के मानसिक विकास में सहायक एवं शिक्षा का मूलाधार सिद्ध होती
है। शिक्षा
में कला को स्थान देने से शिक्षा के सभी स्तर प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक के
साथ साथ महाविद्यालय स्तर पर विद्यार्थी भी अपने देश व अन्य विदेशों की लोक कला संस्कृति
व आधुनिक कला वक्तव्यों इत्यादि का परिचय प्राप्त करते हैं। कला शिक्षा विद्यार्थीयों
के मध्य प्राचीन व सास्कृतिक भण्डार के द्वार खोलती है अर्थात् अपनी संस्कृति व सभ्यता
का हस्तान्तरण पीढ़ी दर पीढ़ी करती है। प्रत्येक छात्र को स्वगति व स्वयोग्यता व स्वंय
के अनुभव के अनुसार सीखने को प्रेरित करती है। कला
शिक्षा बालक को रोजगारन्मुखी ही नही बनती वरन उसके दृष्टिकोण व विचारों को विस्तार
प्रदान करती है तथा छात्र को नकारात्मक प्रवृत्तियों का क्षरण कर सकारात्मकता को बढाती
है। कला अभ्यास के द्वारा धैर्यवान, दृढ़ निश्चयी बनाती है जिसके आत्म अनुशासन व आत्मविश्वास
जैसे गुणों को विकास होता है जो उसके जीवन में प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। कला शिक्षा की आवश्यकता
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निष्कर्ष |
अतः कला विद्यार्थियों को वर्तमान सदी की प्रमुख कला प्रवृत्तियों से सीधा सम्बन्ध
रखना चाहिए ताकि वर्तमान बहुमुखी आवश्यकता और आकांक्षाओं को रूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण
भूमिका का निर्वाहन कर सके। आवश्यकता है विभिन्न प्रकार की कलाओं की शिक्षा सुनियोजित
हो और नवीन कलाकार तार्किक में चिन्तक के साथ कल्पनाशील व सृजनकर्ता बन सके व अपनी
कला के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में नयी वैचारिकता प्रदान कर सके तथा वैश्वीकरण
और कला के तेजी से बढ़ते बाजार सामान्य शिक्षा में कला के स्थान को निर्धारित कर स्वंय
के विकास के साथ देश का विकास कर सके। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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