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श्रृंगवेरपुर का अध्ययन: ऐतिहासिक एवं महाकाव्यों में वर्णित स्थल के रूप में |
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Study of Shringaverpur: As a Place Described in History and Epics | |||||||
Paper Id :
19811 Submission Date :
2025-02-13 Acceptance Date :
2025-02-22 Publication Date :
2025-02-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. DOI:10.5281/zenodo.14962025 For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
मानव सभ्यता के एक लंबे समय
काल को जो कि समय के साथ काल कवलित हो गई है को धरती अपने गर्भ में छिपाए हुए हैं
जिनकी प्राप्ति और उनके अन्वेषण से हमें उसके बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
श्रृंगवेरपुर उसी तरह का एक ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है।
हमारी जानकारी में बहुत से ऐसे पुरास्थल से होते हैं जिनके बारे में आम जनमानस के
मस्तिष्क में पूर्व धारणाएं होती हैं किंतु उसके बारे में तथ्य परक जानकारी उसके
पुरातात्विक उत्खनन व साहित्यिक साक्ष्यों के अध्ययन से ही हो पाती है। बी० बी०
लाल द्वारा श्रृंगवेरपुर के उत्खनन से इसकी प्राचीनता 3000 वर्ष पूर्व तक जाती है
तथा साहित्यिक साक्ष्यों के अध्ययन से धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल होने के
बारे में जानकारी प्राप्त होती है। शृंगवेरपुर गंगा नदी के किनारे स्थित होने की
वजह से जितना अधिक ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है उससे कहीं अधिक धार्मिक व
पौराणिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने का एक
प्रमुख कारण यह है कि अपने 14 वर्षीय वनवास हेतु भगवान राम इसी स्थल से होकर गंगा नदी
पार करके गए थे इस वजह से यह स्थल हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र भी है। |
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | A long period of human civilization which has been lost in the passage of time is hidden in the womb of the earth and we get to know about it through its discovery and exploration. Shringaverpur is one such historically and religiously important place. There are many such archaeological sites in our knowledge about which the common man has preconceived notions in his mind, but factual information about it is obtained only through the study of its archaeological excavation and literary evidence. Excavation of Shringaverpur by B.B. Lal shows its antiquity to be 3000 years ago and through the study of literary evidence, we get to know about it being a religiously important place. Shringaverpur is situated on the banks of the river Ganga and is more important from the religious and mythological point of view than from the historical point of view. One of the main reasons for its religious importance is that Lord Rama had crossed the river Ganga through this place for his 14-year exile. Due to this, this place is also a center of religious faith for Hindus. | ||||||
मुख्य शब्द | संस्कृति, पुरातत्व, दोआब, घास-फूस, छाजन, उत्खनन, इंगुदी, सारस, क्रौंच, पवित्र | | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Culture, Archaeology, Doab, Grass, Roof, Excavation, Ingudi, Stork, Crane, Sacred. | ||||||
प्रस्तावना | समुद्रमहिषीम् गंगाम् सारसक्रौन्चनादिताम्| आससाद महाबाहुः श्रृन्गवेरपुरम प्रति।|1 धार्मिक एवं
पुरातात्विक स्थल श्रृंगवेरपुर का नाम ऋषि श्रृंगी के नाम पर पड़ा है। इसका एक और
नाम सिंगरौर भी है। श्रृंगवेरपुर पुरास्थल ऐतिहासिक एवं पौराणिक दोनों दृष्टियों
से अत्यंत ही महत्वपूर्ण है जितना यह ऐतिहासिक साक्ष्यों से परिपुष्ट है उससे कहीं
अधिक पौराणिक साक्ष्य से संपन्न है। इस पुरास्थल का उत्खनन होने के पहले तक यह
धार्मिक दृष्टि से ही मान्यता प्राप्त था किंतु उत्खनन के पश्चात इस पुरास्थल की
प्राचीनता और ऐतिहासिकता सिद्ध हो गई। यह पुरास्थल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जो
पूर्व में इलाहाबाद जनपद के नाम से जाना जाता था के अंतर्गत स्थित सोरांव तहसील में
आता है जोकि 25°,35’ उ० अक्षांश एवं 81°,39’ पूर्वी देशान्तर पर एवं राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 19 और राष्ट्रीय
राजमार्ग संख्या 30 से होकर जाने पर प्रयागराज शहर के उत्तर पश्चिम दिशा में लगभग
35.3 किलोमीटर की दूरी पर यह पुरास्थल गंगा नदी के बाएं तट पर स्थित है। गंगा नदी
का बहाव क्षेत्र ज्यादा बाईं ओर होने की वजह से यहां पर स्थित ऐतिहासिक टीला जिसकी
ऊंचाई लगभग 10 से 12 मीटर तक थी इसका एक बड़ा भाग नष्ट हो चुका है वर्तमान में
वहां पर खड़े होकर देखने से ही उस कटे हुए टीले में बहुत सारी पकी हुई मिट्टी की
चौड़ी ईंटें एवं मृदभांड दिखाई पड़ते हैं जो कि वहां पर किसी संस्कृति एवं सभ्यता
के होने का आभास कराते रहते हैं। महर्षि वाल्मीकि
कृत रामायण के अनुसार जब अयोध्या कुमार राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ और वह वनवास
की यात्रा पर प्रयाग की ओर जाते हुए वह यहीं से गंगा नदी को पार करके आगे को गए थे
तथा उनके साथ उनकी पत्नी सीता और भाई सुमित्रानंदन लक्ष्मण भी थे जहां उनकी
मुलाकात इस श्रृंगवेरपुर परिक्षेत्र के राजा निषादराज गुह से हुई थी तथा राम ने
पत्नी व भाई सहित यहां पर रात्रि विश्राम किया एवं दूसरे दिन नदी पार कर आगे
भारद्वाज आश्रम प्रयाग को गए। |
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अध्ययन का उद्देश्य |
प्रस्तुत शोधपत्र में ऐतिहासिक एवं महाकाव्यों में वर्णित स्थल के रूप में श्रृंगवेरपुर का अध्ययन किया गया है । |
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साहित्यावलोकन | ऐतिहासिकता 1977 से 1986 ईo के बीच इस पुरास्थल का उत्खनन कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological survey of India), और शिमला उच्च अध्ययन संस्थान के संयुक्त रूप से सहयोग से प्रोफेसर बी बी लाल एवं के०एन० दीक्षित के निर्देशन में कराया गया। श्रृंगवेरपुर में उत्खनन का एक लंबा दौर चला जिसके परिणाम स्वरुप यहां बहुत सारे पुरावशेष एवं पुरा निधियां प्राप्त हुई जिसके आधार पर इस पुरास्थल को सात अलग-अलग सांस्कृतिक कालों में विभाजित किया गया। जिनमें से पांचवें छठे एवं छठे सातवें सांस्कृतिक कालों को छोड़कर अधिकांश सांस्कृतिक कालों में काफी निस्तरता देखने को मिलती है।2 पुरास्थल श्रृंगवेरपुर से प्राप्त विभिन्न सांस्कृतिक उप कालों का वर्णन
5. श्रृंगवेरपुरमें उत्खनन द्वारा प्राप्त अवशेषों के आधार पर निर्धारित पांचवें सांस्कृतिक काल का समय 300 ईo से 600 ईo तक निर्धारित किया गया है जिस दौरान के गहरे लालरंग के पक्की मिट्टी के बर्तन प्राप्त होते हैं| इस काल के भवन का साक्ष्य प्राप्त हुआ है जो कि काफी टूटी-फूटी ईंटों का बना हुआ है। यह भवन श्रृंगवेरपुर से प्राप्त जलशोधन शाला से आगे बढ़ने पर पूरब की ओर चढ़ाईदार ऊंचाई लिए हुए क्षेत्र पर स्थित है| यहां पर पूरे मकान का ढांचा बना हुआ है जो कि संभवत सबसे उंचे क्षेत्र पर स्थित है। चित्र : मकान के अवशेष 6. प्राप्त पुरावशेषों के आधार पर श्रृंगवेरपुर के छठे सांस्कृतिक काल का समय 1000 ई से 1300 ईo के बीच निर्धारित किया गया है। इस सांस्कृतिक काल से उत्खनन के फल स्वरुप एक मृदभांड प्राप्त हुआ है जिससे कुछ आभूषण और गहड़वाल राजवंश के शासक गोविंदचंद्र द्वारा चलाए गए 13 चांदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इसका शासन काल 1114 ई से 1154 ई तक था।6 7. छठे सांस्कृतिक काल के पश्चात के उत्खनन से प्राप्त पूरा अवशेषों के आधार पर यह माना जाता है कि लगभग 400 वर्षों तक श्रृंगवेरपुर वीरान रहा क्योंकि इस दौरान के यहां पर कोई भी अवशेष प्राप्त नहीं होते हैं उसके पश्चात फिर यहां से 17वीं ,18 वीं शताब्दी के अवशेष प्राप्त होते हैं जिससे यह माना जाता है कि इस दौरान यहां पर लोग पुनः आबाद हुए|7 |
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मुख्य पाठ |
श्रृंगवेरपुर का धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों में वर्णन एवं
महत्व श्रृंगवेरपुर को हिन्दू धर्म का एक अत्यंत ही पवित्र और पौराणिक स्थल माना जाता है जिसका प्रमुख कारण राम वन गमन मार्ग स्थल होना है। पवित्र गंगा नदी के बाएं तट पर स्थित इस स्थल का उल्लेख महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में आता है। जो इस प्रकार है – समुद्रमहिषीम्
गंगाम् सारसक्रौन्चनादिताम्। आससाद
महाबाहुः श्रृन्गवेरपुरम् प्रति।।8 अर्थात अयोध्या से बनवास के लिए जाते हुए राम
जब अपनी पत्नी सीता और भाई सुमित्रानंदन लक्ष्मण के साथ अयोध्या की सीमा को पार कर
आगे बढ़ते हैं तथा देव नदी गंगा को देखते हैं तब वाल्मीकि गंगा की प्रशंसा में
लिखते हैं कि जिनके निकट सारस और क्रौंच पक्षी कलरव करते रहते हैं उन्ही देव नदी
गंगा के पास महाबाहु श्री राम जी पहुंचे तथा गंगा की वह धारा श्रृंगवेरपुर में बह
रही थी। यहां पहुंच कर राम इंगुदी (इंगुड़ी) के वृक्ष के नीचे रात्रि
विश्राम करने के लिए कहते हैं। तत्र राजा
गुहो नाम रामस्यात्मसमः सखा। निषादजात्यो
बलवान् स्थपतिश्चेति विश्रुतः।।9 और श्रृंगवेरपुर में गुहनाम का राजा राज्य करता था।वह श्रीराम
चन्द्र जी का प्राणों के समान प्रिय मित्र था।उसका जन्म निषाद कुल में हुआ था।वह शारीरिक
शक्ति और सैनिक की दृष्टि से भी बलवान था तथा वहां के निषादों का सुविख्यात राजा था। इस प्रकार
निषादराज गुह ने श्रृंगवेरपुर में राम से भेंट मुलाकात करी और दूसरे दिन राम ने
गुह के सहयोग से गंगा नदी पार कर प्रयाग की ओर प्रस्थान किया। अयोध्या कांड के 83 वें सर्ग के 19 में श्लोक में जब भारत राम को मनाने के लिए वन की ओर जाते हैं तब श्रृंगवेरपुर का पुनः वर्णन आता है- ते गत्वा दूरमध्वानम् रथयानाश्वकुन्जरै:। समासेदुस्ततो गंगां श्रृंगवेरपुरं प्रति।। इस प्रकार रथ, पालकी, घोड़े और हाथियों के द्वारा बहुत दूर तक का
मार्ग तय कर लेने के बाद वे सब लोग श्रृंगवेरपुर में गंगा जी के तट पर जा पहुंचे| अयोध्या कांड में
ही इसके 113 वें सर्ग के 22 वें व 23 वें श्लोक में राम से चित्रकूट में मुलाकात
के पश्चात भारत अयोध्या जाते समय श्रृंगवेरपुर से ही पधारते हैं- तां रम्यजलसम्पूर्णा संतीर्य सहबान्धवः। श्रृंगवेरपुरं रम्य प्रविवेश सैनिक:।।22 श्रृंगवेरपुराद्
भूय अयोध्यां संददर्श ह। अयोध्यां तु तदा दृष्टवा पित्रा भ्राता विवर्जिताम्।।23 वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में लंका से वापस अयोध्या लौटते समय श्रीराम सीता को श्रृंगवेरपुर और अपने मित्र गुह के बारे में बताते हुए कहते हैं- श्रृंगवेरपुरं
चैतद् गुहो यत्र सखा मम।10 अर्थात यह श्रृंगवेरपुर है जहां मेरा मित्र गुह रहता है। युद्ध कांड के ही
125 वें सर्ग के अंतर्गत चौथे एवं 22 वें श्लोक में भी श्रृंगवेरपुर का वर्णन आता
है। जब लंका विजय पश्चात सपत्नीक अयोध्या जा रहे राम की हनुमान जी का आकर निषादराज
गुह को सूचना देने के सन्दर्भ में – श्रृंगवेरपुरं
प्राप्य गुहं गहनगोचरम्। निषादाधिपतिं ब्रूहि कुशलं वचनान्मम्।।4 श्रृंगवेरपुरं
प्राप्य गुहमासाद्य वीर्यवान्। स
वाचा शुभया हृष्टो हनूमानिदमब्रवीत्।।22 इसके अतिरिक्त
कालिदास के रघुवंश में श्रृंगवेरपुर का वर्णन पुर के रूप में आया है जो इस प्रकार
है- ‘पुरं निषादाधिपतेरिदं तद्यस्मिन्मया मौलिमर्णि विहाय’।11 यहां पुर का राजा
निषाद राज को बताया गया है जिसका तात्पर्य श्रृंगवेरपुर से है। भवभूति के उत्तर
रामचरित में भी श्रृंगवेरपुर का वर्णन है जो कि वहां पर स्थित इंगुड़ी नामक पौधे
के लिए जाना जाता है- ‘इंगुदीपादप:सोयं श्रृंगवेरपुरे पुरा’।12 इसी इंगुदी वृक्ष की चर्चा वाल्मीकि रामायण में की गई है जिससे जान पड़ता है कि इस संदर्भ को भवभूति ने वहीं से लिया है। इसी तरह महाभारत के वन पर्व में भी शृंगवेरपुर का तीर्थ स्थल के रूप में उल्लेख आता है- ‘ततो गच्छेत राजेन्द्र
श्रृंगवेरपुरं महत् यत्र तीर्णो महाराज रामो दाशरथि: पुरा’।13 और इस सबके अलावा
16वीं शताब्दी के ग्रंथ तुलसीदास कृत रामचरितमानस में भी जो कि अवधी भाषा का ग्रंथ
है में श्रृंगवेरपुर का वर्णन इस प्रकार है- ‘सीता
सचिव सहित दोउ भाई। सृंगबेरपुर पहुंचे जाई।। उतरि राम देवसरि देखी।
कीन्ह दण्डवत हरषु बिसेषी।।14 यह सुधि गुहं निषाद जब पाई।मुदित लिए प्रिय बन्धु बोलाई।।15 कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ।थापिअ जनु सबु लोगु सिहाऊ।।16 राम जब वनवास के
लिए जाते हैं तो श्रृंगवेरपुर वह सुमंत्र अर्थात सचिव, सीता और लक्ष्मण के साथ पहुंचते हैं तो वह वहां पर गंगा नदी को देखते हैं
और दंडवत हो उसे प्रणाम करते हैं यह खबर पाकर निषाद राज गुहं अपने प्रिय जनों के
साथ उनसे मिलने आते हैं और श्रृंगवेरपुर में पधारने के लिए राम से कहते हैं। उसके पश्चात जब
भारत राम को वन से वापस लाने के लिए जाते हैं तब वह श्रृंगवेरपुर से ही जाते हैं
जिसका वर्णन रामचरितमानस में इस प्रकार है- ‘सई तीर बसि चले बिहाने। सृंगबेरपुर सब निअराने’।।17 सृंगबेरपुर भरत दीख जब। भे सनेह सब अंग सिथिल सब।।18
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निष्कर्ष |
ऋषि श्रृंगी के
नाम से विख्यात स्थल श्रृंगवेरपुर अपने अंदर कई संस्कृतियों को ऐतिहासिक रूप से
समेटे हुए हैं जिसकी साक्षी सदियों से गंगा नदी रही है। यहां पर गैरिक मृदभांड से
लेकर लाल रंग के मृदभांड, उत्तरी काले चमकीले मृदभांड से लेकर कुषाण
कालीन भवन एवं ‘जल शोधन प्रणाली’ (जल को स्वच्छ रखने हेतु एक अद्वितीय कला) आदि के
बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। यहां पर गहड़वालों से लेकर अयोध्या के
शासको एवं मुगल कालीन संस्कृति के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है। श्रृंगवेरपुर जितना अधिक ऐतिहासिक है उससे कहीं अधिक धार्मिक व पौराणिक भी है जिसकी जानकारी हमें रामायण, महाभारत जैसे अनेक ग्रंथों से होती है एवं इसकी पुष्टि आज स्वयं श्रृंगवेरपुर में स्थित टीले (पुरास्थल क्षेत्र) एवं हिंदुओं की आस्था दोनों मिलकर करते हैं। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची |
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