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वर्तमान परिदृश्य में युवा वर्ग का मानसिक स्वास्थ्य | |||||||
Mental Health of Youth in The Present Scenario | |||||||
Paper Id :
16129 Submission Date :
2022-06-11 Acceptance Date :
2022-06-20 Publication Date :
2022-06-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2017 में कहा था कि 'भारत एक संभावित मानसिक स्वास्थ्य महामारी का सामना कर रहा है'। एक अध्ययन से यह पता चला कि इसी वर्ष भारत की 14 प्रतिशत आबादी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से पीड़ित थी। WHO रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत आबादी मानसिक रोगों से पीड़ित होने का अनुमान था। ऐसे में कोविड-19 जैसी विभीषिका और लॉकडाउन ने इस मानसिक स्वास्थ्य के संकट को और बढ़ा दिया है। साक्ष्यों से यह भी पता चला कि यह सकट विशेष रूप से युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को अपने चपेट में लिया है, जबकि भारत दुनिया में सबसे बड़ी युवा आबादी वाली देश है।
समस्या यह है कि ज्यादातार युवाओं को धीरे-धीरे पनप रहे अपने मानसिक विकारों का पता ही नहीं चल पाता और अगर पता भी चला तो वे बीमारी को छुपाते है, इलाज कराना नहीं चाहते, अगर इलाज कराना चाहते है तो सुविधा सर्वसुलभ नहीं है। यूनिसेफ ने 2021 में सर्वे किया और पाया कि भारत में युवा मानसिक तनाव के दौरान प्रायः किसी से मदद लेना नहीं चाहते है। इसलिये मानसिक स्वास्थ्य संरक्षण एवं जागरूकता संबंधी गतिविधियों से उन्हें जागरूक करना होगा और यह भी अवगत कराना होगा कि कोविड / कोविड पश्चात के मानसिक विकारों का समय पर सटीक इलाज, परामर्श आदि के द्वारा उन्हें मानसिक विकारों की भयावह स्थिति से बचाया जा सकता है। इसलिये प्रस्तुत शोध पत्र के माध्यम से इस विषय पर पहल करने का प्रयास है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | President of India Ram Nath Kovind said in 2017 that 'India is facing a potential mental health epidemic'. A study revealed that, in this year 14 percent of India's population is suffering from mental health ailments. According to the WHO report, by the year 2020, about 20 percent of India's population was estimated to be suffering from mental diseases. In such a situation, adversity like covid-19 and lockdown have further increased this mental health crisis. Evidence also showed that the crisis has particularly hit the mental health of the youth. Whereas India is the country with the largest youth population in the world. The problem is that the most of the youth are not aware of their slowly growing mental disorders and even if detected, they hide the disease, do not want to get treatment, if they want to get treatment then the facility is not available. UNICEF conducted a survey in 2021 and found that youth in India often do not want to take help from anyone during mental stress. Therefore, they have to be made aware of mental health protection and awareness related activities. Further, to make them aware that post Covid, they can be saved from the dreadful condition of mental disorders by timely accurate treatment of mental disorders, counseling etc. Through this present research paper, there is an attempt to take initiative on this topic. |
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मुख्य शब्द | मानसिक स्वास्थ्य, महत्व, सरकार द्वारा उठाये गये कदम, मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति, संरक्षण एवं जागरूकता हेतु सुझाव। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Mental Health, Importance, Steps taken by the Government, Status of Mental Health, Suggestions for Protection and Awareness. | ||||||
प्रस्तावना |
स्वास्थ्य का अर्थ मात्र रोग की अनुपस्थिति अथवा शारीरिक स्वस्थता ही नहीं होता. बल्कि इसे पूर्णरुपेण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य के रूप में परिभाषित करना है। व्यक्ति के सर्वागींण विकास के लिये स्वस्थ्य शरीर के साथ-साथ स्वस्थ मस्तिष्क का होना अत्यन्त आवश्यक होता है। हमारा शरीर तभी अपनी सभी क्रियाएँ मलीनोंति करने में सक्षम होता है, जब हमारी मनोदशा संतुलित और स्वस्थ्य हो। इसीलिये कहा गया है कि स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ मानव का अपने व्यवहार में संतुलन होता है और यह संतुलन प्रत्येक अवस्था में बना रहना चाहिये। मानसिक स्वास्थ्य संज्ञानात्मक भावात्मक सलामती के स्तर का वर्णन करता है या फिर किसी मानसिक विकास की अनुपस्थिति को दर्शाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुये कहता है कि यह सलामती की एक स्थिति है, जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास होता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, लाभकारी और उपयोगी रूप में काम कर सकता है और अपने समाज के प्रति योगदान करने में सक्षम होता है।"
कोरोना महामारी ने 14-25 आयु वर्ग युवाओं को गंभीर रूप से प्रभावित किया जो देश के भावी कर्णधार है आज तेज गति से बदलती दुनियाँ युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिये एक चुनौती है। कोविड-19 महामारी ने तो इस समस्या में आग में घी डालने का काम किया है। वो एक साथ कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. शिक्षा में व्यवधान के साथ-साथ उन्हें भयंकर बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ रही है, जिससे वे मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या के शिकार हो रहे हैं। कोविड-19 की महामारी ने न केवल देश के आर्थिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाला है, बल्कि उसे अपनी युवाओं की शक्ति का लाभ पाने से भी वंचित कर दिया है। ऐसे में त्वरित कदम उठाये जाने की आवश्यकता है, जिससे देश अपने सबसे बड़ी पूंजी यानि युवाओं का समुचित लाभ उठा सके।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. राष्ट्र के भविष्य युवा शक्ति को मानसिक स्वास्थ्य के महत्ता से अभिप्रेरित करना।
2. सरकार के द्वारा उठाये गये कदम के प्रति लोगों को जागरूक करना।
3. युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का अध्ययन करना।
4. युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के संरक्षण के लिये सुझाव प्रस्तुत करना। |
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साहित्यावलोकन |
चयनित शोध-पत्र के किन-किन अंशो पर कितना और क्या-क्या कार्य हो चुका है, और इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिये पूर्ववर्ती शोध आलेख की समीक्षा जरूरी है। पूर्ववर्ती शोध साहित्य में प्रस्तुत विषय से संबंधित अनेक कार्य किये गये है, जिनमें से कुछ का उल्लेख नीचे किया गया है
आरोग्य सिद्धि फाउंडेशन के जनस्वास्थय विशेषज्ञ भूपेश दीक्षित (अक्टूबर 2018) ने बदलती जीवन शैली में युवा का मानसिक स्वास्थय का अध्ययन किया और पाया कि अकेलापन और मानसिक तनाव एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभर रहा है। इसके समाधान हेतु सुझाव यह है कि स्कूल और कालेज में मानसिक स्वास्थ्य व जीवन कौशल शिक्षा को प्राथमिकता देते हुये पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये एवं कांउसलर्स भी नियुक्त किये जाये।
मनन ठक्कर और रिया काशलीवाल (20 नवम्बर 2020) ने युवा और कोविड-19: एक बेहतर भविष्य का निर्माण शोध आलेख में युवाओं को भयंकर बेरोजगारी से बचाने के लिये रोजगार गारंटी योजना और ऐसी शिक्षा पर जोर होना चाहिए, जिससे केवल नौकरी तलाशने वाले युवा ही न तैयार हो बल्कि नौकरी का सृजन करने वाले छात्रों का भी निमार्ण किया जा सके। शिक्षा और रोजगार की कमियों को दूर करने के लिये व्यवस्था बेहतर बनाना होगा।
मिशेल मैरी वर्नवाइन (27 अप्रैल 2021) आइडियास फॉर इंडिया के संपादकीय टीम के कॉपी एडिटर ने अपने शोध आलेख 'भारत में मानसिक स्वास्थ्य के संकट को समझना विषय पर अध्ययन करके यह जाना कि मानसिक स्वास्थ्य संकट पर लागत कितनी है और इस संकट के समाधान हेतु सरकार की क्या क्षमता है। परिणामस्वरूप यह पाया कि भारत के आर्थिक सर्वेक्षण द्वारा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे को अभी भी काफी हद तक हल किया जाना बाकी है।
शशी शेखर (13 अक्टूबर 2021) का शोध आलेख कोरोना से भी बड़ी महामारी बन सकता है मानसिक स्वास्थय के अध्ययन में पाया कि युवाओं को उनके भावना-नियमन कौशल में सुधार करने में मदद की जाये तो उन्हें चिंता और अवसाद से बेहतर तरीके से निपटने में सक्षम बनाया जा सकता है। भारत में भी इस तरह के उपाय तलाशे जाने चाहिये। दीक्षित (2018) बर्नडाइन (2021) आदि ने युवाओं के मानसिक स्वास्थय पर अलग-अलग कार्य किया है, पर प्रायः सभी का मत युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य मुद्दे को गंभीरता से लिये जाने की आवश्यकता बताई। |
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मुख्य पाठ |
शोध अध्ययन का
महत्व एवं आवश्यकता आज का युवा वर्ग विभिन्न
समस्याओं के साथ वैश्विक महामारी से प्रभावित होकर ज्यादा मानसिक अस्वस्थता का
शिकार हो रहा है। मानसिक स्वास्थय विज्ञान व्यक्तियों को स्वस्थ बनाता है तथा
उन्हें उत्तम सामाजिक समायोजन के तरीके बताता है। यदि समाज में अधिक से अधिक
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति होंगे तो समाज का वातावरण भी स्वस्थ रहेगा। ऐसी
स्थिति में सामाजिक तनाव एवं संघर्ष कम होगा। विषम परिस्थिती (कोविड-19) के दुष्प्रभावों का सामना करने में मानसिक स्वास्थय का
अद्वितीय महत्व हैै। प्रायः जीवन के सभी क्षेत्रों में इसका महत्व है, जैसे- 1. परिवार के विकास में 2. बच्चों के विकास में 3. व्यक्तिगत जीवन में 4. सामाजिक जीवन में 5. शिक्षा के क्षेत्र में 6. व्यावसायिक एवं औद्दोगिक क्षेत्र में 7. राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इसके अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान अधिक से अधिक व्यक्तियों को मानसिक रूप से स्वस्थ्य बनाये रखने
का प्रयास करता है, यथा- 1.
मानसिक स्वास्थय
की रक्षा करना। 2. मानसिक रोगों तथा विकारों की रोकथाम करना। 3. मानसिक रोगों का उपचार करना। मनसिक स्वास्थय और मानसिक
स्वास्थय विज्ञान के महत्व को दृष्टिगत करते हुये प्रस्तुत शोध अध्ययन की आवश्यकता
प्रतीत हुई। जिससे कोविड-19 और पोस्ट कोविड के दुष्प्रभावों का सामना करके
वह अपने मानसिक स्वास्थ्य का संतुलित विकास कर सके। सरकार द्वारा
उठाये गये कदम भारत सरकार ने वर्ष 1982 में मानसिक रोग से निपटने के लिये देश में आधारभूत ढांचे
और समुदाय में मानसिक रोग के भारी बोझ को ध्यान रखते हुये राष्ट्रीय मानसिक
स्वास्थय कार्यक्रम, (NMHP) की शुरूआत की। इस योजना का उद्देश्य सभी
को न्यूनतम मानसिक सेवायें प्रदान करना था। फिर मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987 में पारित हुआ, जो परिवार एवं समाज के द्वारा इनके साथ किये जाने वाले भेदभाव को दूर करने के
लिये तथा मानसिक रोगियों के अधिकार,कानूनी सुरक्षा व इलाज की सुविधा के लिये था। फिर कोविड-19 के अकस्मात उद्भव से हमारे जीवन और मानसिक स्वास्थय पर
इसका गहरा प्रभाव पड़ा। इसके लिये ’राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थय हेल्पलाइन’ की शुरूआत हुई, जिसमें कोरोना से जुड़े मानसिक समस्याओं का सामना
किया गया। इस हेल्पलाइन का उद्देश्य विशेषज्ञों की सलाह लेना और मानसिक रोगी के
देखभाल, आसानी से सहायता और मार्गदर्शन उपलब्ध कराना है।
हेल्पलाइन तक पहॅुचने के लिये 16000 टोल फ्री नंबर
है। इसके साथ मानसिक स्वास्थय सहायता केन्द्र और गुजरात इमरजेंसी हेल्पलाइन आदि ने
भी अपना सहयोग दिया है। इसी पृष्ठभूमि में मानसिक
रूप से अशक्त व्यक्तियों के लिये विधिक सेवा की नयी योजना नालसा 2015 में बनाई गई। तत्पश्चात् 7 अप्रैल 2017 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने के बाद
मानसिक स्वास्थय देखभाल अधिनियम 2017 में लागू हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य मानसिक रोगों से ग्रसित लोगों को
मानसिक सुरक्षा और सेवायें प्रदान करना है। साथ ही यह अधिनियम मानसिक रोगियों को
गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी सुनिश्चित करता है और मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति
को उसके मानसिक स्वास्थ्य, मानसिक देखभाल, इलाज और शारीरिक देखभाल के संबंध में गोपनीयता बनाये रखने का अधिकार देता है।
इसके अतिरिक्त जहाँ योग्य मनोचिकित्सकों का उपलब्ध होना कठिन है, वहाँ डिजिटल तकनीक को सुदृढ़ करना। वर्ष 2020 में स्वास्थय और परिवार कल्याण मंत्री डा0 हर्षबर्धन द्वारा कोविड महामारी के आलोक में बताया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा चिन्ता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार आदि का सामना कर रहे लोगों की सहायता प्रदान करना। इसके अतिरिक्त 24/7 टोल फ्री, हेल्पलाइन नंबर (1800-599-0019) ’किरण’ की शुरूआत हुई। इस संदर्भ में श्री गहलोत ने कहा कि ’किरण’ हेल्पलाइन जल्दी जाँच, प्राथमिक चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक सहायता, सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा देने आदि के उद्देश्य से सेवायें उपलब्ध करायेगी। इसके साथ ही सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भी अलग से टोल फ्री हेल्पलाइन नम्बर चलाता आ रहा हैै। भारत में मानसिक स्वास्थय
की स्थिति WHO की एक रिपोर्ट के
अनुसार भारत में 7.5 फीसदी आबादी किसी न किसी मानसिक समस्या से जूझ
रही है। भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का फंड का आवंटन भी अन्य देश की तुलना
में बहुत कम है। जबकि भारत में जीडीपी का 1 फीसदी खर्च किया जाता हैं। इसलिये भारत में मानसिक रूप से बीमार लोगों के पास
या तो देखभाल की आवश्यक सुविधायें नहीं है और यदि सुविधायें है तो उसकी गुणवत्ता
अच्छी नहीं है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थय सर्वेक्षण (2015-16) के मुताबिक भारत में गंभीर मानसिक विकारों से पीड़ित 76 से 85 फीसदी लोगों को
किसी भी तरह का इलाज नहीं मिलता है। इस महामारी के दौर में हालात और बिगड़ने की
आशंका है। भारतीय मनोरोग चिकित्सा
सोसाइटी के एक सर्वेक्षण में कोविड-19 की शुरूआत के बाद से 20 प्रतिशत अधिक लोग खराब मानसिक स्वास्थय से
पीड़ित थे। वर्ष 2021 तक केवल कुछ राज्यों ने अपने बजट में मानसिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे के लिये एक अलग मद को शामिल किया। पिछले बजट में स्वास्थय
और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत मानसिक स्वास्थय के लिये 597 करोड़ रूपये दिये गये थें। इनमें से 500 करोड़ रूपया अकेले बैंगलुरू स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ
मेन्टल हेल्थ न्यूरोसाइंसेज को ही आवंटित किया गया। इस साल के बजट में
गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थय परामर्श और देखभाल की सेवाओं में सुधार के प्रावधान
किये गये है। इसके लिये राष्ट्रीय स्तर पर टेली-मेंटल हेल्थ प्रोग्राम शुरू किया
जायेगा। इस कार्यक्रम को 23 टेली-मेंटल हेल्थ सेंटर्स ऑफ एक्सीलेस के
नेटवर्क के तहत संचालित किया जायेगा। इसमें नेशनल इन्सीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एण्ड
न्यूरोसाइंसेज, NIMHANS नोडल सेंटर की तरह काम करेगा। बैंगलुरू स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी इसके लिये तकनीकी
सहायता मुहैया करायेगा। भारत सरकार ने 2025 तक स्वास्थय सेवा पर खर्च को 1.3 प्रतिशत से बढाकर 2.5 प्रतिशत करने का वादा किया है। हालांकि इसका कितना प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है, यह अभी देखना है। इस प्रकार भारत में मानसिक
स्वास्थय हेतु बजटीय आवंटन, संसाधन, मानसिक स्वास्थय संरक्षण और देखभाल की स्थिति आदि असंतोषजनक है। मानसिक स्वास्थय
संरक्षण और जागरूकता हेतु सुझाव अब आवश्यकता यह है कि इस
शोध पत्र के माध्यम से युवाओं को मानसिक स्वास्थय के लिये दिशा-निर्देश दे सके, ताकि वह मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित सभी सरकारी/गैर सरकारी
कार्यक्रमों से जागरूक हो और उसका लाभ उठाकर कोविड-19 और पोस्ट कोविड के दुष्प्रभावों का सामना कर सके। मानसिक स्वास्थय संरक्षण और
जागरूकता हेतु सुझाव इस प्रकार है- 1. विधिक सेवा संस्थायें जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करेगी, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ताकि लोगों को शिक्षित
किया जा सके कि मानसिक रोग कोई अभिशाप नहीं है, यह उपचार योग्य है। 2. विधिक सेवा संस्थाये समाज के
मानसिक रोगियों के साथ सामान्य व्यवहार की आवश्यकता को बतायेगी। मनोचिकित्सों एवं
सामाजिक कार्यकर्ता ऐसे विशेष जागरूकता शिविरों में आकर जनसामान्य की मानसिक रोग
की भ्रान्तियाँ दूर करेगें। 3. विधिक सेवा संस्थाये ऐसे
शिविरों में जनता एवं उनके परिवार वालों को मानसिक रोगियों एवं मानसिक रूप से
अशक्त व्यक्तियों से संबंधित सम्पत्ति एवं उनके विधिक अधिकार आदि के बारे में शिक्षित
करेगें। 4. इस कार्यक्रम में प्रायः मानसिक रोगियों के प्रति लोगों को संवेदनशील बनाने का प्रयास रहता है। 5. इसके अतिरिक्त मानसिक रोगियों एवं मानसिक रूप से अशक्त व्यक्तियों के समस्याओं के समाधान हेतु वे समय-समय पर विधिक सेवा संस्था और अन्य स्वयंसेवी सामाजिक संस्थाओं से संपर्क स्थापित करें। मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 में सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह देश के मानसिक
स्वास्थय और मानसिक रोग की रोकथाम के संवर्धन
के लिये कार्यक्रमों का नियोजन, डिजाइन और कार्यान्वयन करें। मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक
को हटाने के बारे में जागरूकता पैदा करने के उपाय किये जाने चाहिये। सम्बद्ध जिला
मानसिक स्वास्थय कार्यक्रम (डी0एच0एम0पी0) का उद्देश्य भी सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थय विकारों के बारे में
जागरूकता और उपचार को बढ़ाना है और छात्रों में जागरूकता बढ़ाने के लिये लक्षित
योजनाओं को भी चलाता है। इसके अतिरिक्त विश्व में मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों पर
जागरूकता बढाने के लिये ’विश्व मानसिक स्वास्थय दिवस’ प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है। अतः स्वच्छ मानसिकता अभियान जैसे अभियानों के
माध्यम से लोगों को मानसिक स्वास्थय के बारे में प्रेरित करना समय की मांग हैै। |
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निष्कर्ष |
सामान्य परिस्थितियों में हम में कई लोग, तनाव, घबराहट, चिन्ता आदि मनोवैज्ञानिक संकट से किसी न किसी रूप से पीड़ित है, पर कोरोना वायरस के संक्रमण ने हमें अंदर से झकझोर दिया, तोड़ दिया। मानसिक स्वास्थय के मुद्दे को गंभीरता से स्वीकारना होगा। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और संरक्षण को अधिक सुलभ बनाना होगा, ताकि मानसिक बीमारियों को विस्फोटक होने से बचाया जा सके। आज जरूरत इस बात की है कि हम युवाओं को सशक्त बनायें, जिससे कि वो शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, कौशल विकास आदि में अपनी भागीदारी बढाकर समाज और राष्ट्र का विकास करें। इसकी गंभीरता को दृष्टिगत करते हुये प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने मासिक रेडियो प्रसारण मन की बात में मानसिक स्वास्थय और अवसाद के मुद्दे पर प्रकाश डालते हुये उनके इलाज पर जोर दिया। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Chandra, S.S. and Rao Renu (2004), Educational Psychology, Evaluation &
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3. गुप्ता. एस०पी० (1998) आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञान, शारदा पुस्तक भवन, इलाहाबाद।
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5. http://egazette.nic.in
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