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भारत में लोकपाल का उद्भव, विकास और वर्तमान स्वरूप |
Origin, Development and Present Form of Lokpal in India |
Paper Id :
15980 Submission Date :
2022-06-03 Acceptance Date :
2022-06-07 Publication Date :
2022-06-10
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विनोद कुमार
सहायक आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
श्री राधेश्याम आर मोरारका राजकीय महाविद्यालय
झुंझुनू,राजस्थान, भारत
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सारांश
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आधुनिक युग में भ्रष्टाचार और कुप्रशासन का चोली-दामन का साथ हो गया है जिसके कारण लोकतान्त्रिक प्रक्रिया प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है जोकि लोकतन्त्र और लोकतान्त्रिक पद्धति के समक्ष गहरा संकट उत्पन्न कर सकती है इसलिए ऐसी स्थिति में पहुँचने से पूर्व ही भ्रष्टाचार और कुप्रशासन के विरुद्ध प्रभावी कदम उठाया जाना आवश्यक है। राजनीतिक कार्यपालिका और लोकसेवक अपनी शक्तियों का समुचित उपयोग कर उसका जनता के हित में सकारात्मक उपयोग करें तथा वे उनका दुरुपयोग न करे यह सुनिश्चित करने के लिए किसी उपयुक्त तंत्र की स्थापना करना आवश्यक हो गया है। भारत में लोकपाल व्यवस्था की स्थापना भ्रष्टाचार निवारण एवं रोकथाम की दिशा में एक नवीन संस्था है । लोकपाल की स्थापना एक लंबे संघर्ष की दास्तान है । करीब 60 वर्ष के गर्भकाल के पश्चात लोकपाल ने जन्म लिया। विश्व के करीबन 125 से अधिक देशों में प्रशासनिक भ्रष्टाचार के निवारण एवं रोकथाम के लिए ऐसी संस्थाओं की स्थापना की गई है जोकि इस संस्था की प्रासंगिकता को बतलाती है। भारत मे इस दिशा में शुरुआत 60के दशक में हुई किन्तु लोकपाल की स्थापना वर्ष 2013 मे जाकर हुई। प्रस्तुत शोध पत्र लोकपाल की विकास यात्रा का विश्लेषण करने का किंचित प्रयास है । इसके अलावा लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम,2013 के प्रावधानों के संदर्भ में प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के निवारण एवं रोकथाम में लोकपाल की भूमिका का विश्लेषण करना है ।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद |
In the modern era, corruption and maladministration have come together, due to which the democratic process is being affected adversely, which can create a deep crisis in front of democracy and democratic system, so corruption and maladministration even before reaching such a situation. It is necessary to take effective action against it. It has become necessary to establish a suitable mechanism to ensure that the political executive and public servants make proper use of their powers and use them positively in the interest of the public and they do not misuse them. Establishment of Lokpal system in India is a new institution in the direction of prevention of corruption. The establishment of Lokpal is the story of a long struggle. The Lokpal was born after a gestation period of about 60 years. For the prevention of administrative corruption in more than 125 countries of the world, such institutions have been established, which shows the relevance of this institution. In India, this direction started in the 60s, but the Lokpal was established in the year 2013. The present research paper is an attempt to analyze the development journey of Lokpal. Apart from this, with reference to the provisions of the Lokpal and Lokayuktas Act, 2013, the role of Lokpal in prevention of corruption in administration has to be analyzed. |
मुख्य शब्द
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कुप्रशासन,राजनीतिक कार्यपालिका, लोकसेवक,लोकपाल,प्रशासनिक भ्रष्टाचार, लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम,2013. |
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद |
Maladministration, Political Executive, Public Servant, Lokpal, Administrative Corruption, Lokpal and Lokayukta Act, 2013. |
प्रस्तावना
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भारत एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है जिसका उद्देश्य न्याय,स्वतन्त्रता,समानता और बंधुता की स्थापना करना है। पारदर्शी,स्वच्छ और उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए भ्रष्टाचार का विरोध किया जाना आवश्यक है।वर्तमान समय में विकासशील देशों में प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या एक प्रमुख चुनौती है। लोकप्रशासन की मुख्य समस्या नौकरशाही एवं राजनीतिक कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने की है। भारत में जनशिकायत निवारण तंत्र की स्थापना के प्रयास स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से ही संविधान के भीतर और बाहर दोनों स्तरों पर हुए है।भारत में भ्रष्टाचार संबंधी विषयों मे अविलंब जांच एवं अभियोजन हेतु स्वतंत्र एजेंसी की स्थापना की मांग विभिन्न जन आंदोलनों के माध्यम से लगातार की जा रही थी। इस दिशा में लोकपाल की स्थापना के लिए लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम,2013 का पारित होना एक ऐतिहासिक कदम साबित होगा।लोकपाल की स्थापना कर देने मात्र से भ्रष्टाचार की समस्या समाप्त नहीं होने वाली है। इसके लिए आवश्यक है कि लोकपाल संस्था को धरातल पर लाकर इसे प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाना जरूरी है।
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अध्ययन का उद्देश्य
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प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य प्रशासनिक भ्रष्टाचार के निवारण एवं रोकथाम में लोकपाल की भूमिका को स्पष्ट करना है। लोकपाल किस प्रकार प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के निवारण एवं रोकथाम में कारगर उपाय साबित हो सकता है। लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम,2013 भारत के संविधान के अनुरूप सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए तथा भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत द्वारा स्वीकृत संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के क्रियान्वयन के लिए एक लोकतान्त्रिक गणराज्य की स्थापना के उद्देश्य से किया गया है। लोकपाल की स्थापना से एक आशा की किरण जागी कि यह संस्था भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में सफल होगी। प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार किसी न किसी रूप मे विद्यमान है। लोकपाल एवं लोकायुक्त संस्थाओं को स्वतंत्र एवं स्वायतशासी संस्था के रूप में विकसित कर भ्रष्टाचार, पद के दुरुपयोग और कुशासन के विरुद्ध प्राप्त जन शिकायतों की जांच एवं अन्वेषण कर दोषी लोकसेवकों को दंड देकर लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में भ्रष्टाचार रूपी कैंसर को समाप्त किया जा सकता है । |
साहित्यावलोकन
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प्रस्तुत शोध पत्र में मुख्यतया प्राथमिक एवम द्वितीयक स्रोतों का प्रयोग किया गया है इसके अतिरिक इस विषय के सबंध में पूर्व में किये गए शोध एवम प्रकाशित ग्रंथो को आधार मानकर वर्तमान लोकपाल के स्वरुप को समझने का प्रयास किया गया है भारतीय संसद द्वारा पारित लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम २०१३ का विश्लेषण भी किया गया है. |
मुख्य पाठ
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लोकपाल (ऑम्बुड्समैन) की अवधारणा का विकास विश्व में ऑम्बुड्समैन की परिकल्पना विकासवादी प्रक्रिया का
परिणाम है। सर्वप्रथम ऑम्बुड्समैन की परिकल्पना स्केंडीनेवियन देशों में की गई।
सर्वप्रथम 1809 में स्वीडन मे
‘ऑम्बुड्समैन फॉर जस्टिस’ की स्थापना
की गई थी। ऑम्बुड्समैन स्वीडिश भाषा का शब्द है जिसका
आशय एक ऐसे व्यक्ति से है, जिसे कुप्रशासन, भ्रष्टाचार, विलंबता, अकुशलता, अपारदर्शिता व पद के दुरुपयोग से नागरिक अधिकारों की रक्षा करने हेतु
नियुक्त किया गया है।[1] वर्तमान में विश्व में 120 से अधिक देशों में ऑम्बुड्समैन की स्थापना करके संवेदनशील, पारदर्शी, निष्पक्ष, जवाबदेह
शासन की स्थापना का प्रयास इसके महत्व को इंगित करता है। भारत में लोकपाल का उद्भव और विकास स्वीडन में जिसे ‘ऑम्बुड्समैन’ कहा जाता है भारत में उसे राष्ट्रीय
स्तर पर ‘लोकपाल’ और राज्य स्त्तर पर ‘लोकायुक्त’ के नाम से जाना जाता है।भारत में
सर्वप्रथम लोकपाल की अवधारणा सर्वप्रथम 1960 के दशक में भारत
के तत्कालीन कानून मंत्री अशोक कुमार सैन द्वारा प्रस्तुत की गई।सर्वप्रथम लोकपाल
एवं लोकायुक्त शब्द का प्रयोग एल. एम॰ सिंघवी द्वारा किया गया।लोकपाल का अर्थ है,
“जिससे शिकायत की जा सकती हो।” लोकपाल ऐसा
अधिकारी है जिसकी नियुक्ति प्रशासन के विरुद्ध जाँच करने के लिए की जाती है।[2]
मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में गठित प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने
अक्टूबर,1966 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट ‘प्रॉब्लम ऑफ रिड्रेस ऑफ सिटीजन्स ग्रीवेन्सेज’ में
राष्ट्रीय स्त्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त की स्थापना करने की अनुशंषा की।[3] प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंषाओं के
आधार पर पहली बार 9 मई,1968 को संसद
में लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक,1968 प्रस्तुत किया गया
किन्तु चौथी लोकसभा भंग हो जाने के कारण यह विधेयक व्यपगत हो गया।[4] इसके पश्चात आठ बार संसद में लोकपाल विधेयक लाया गया किन्तु पारित न हो
सका। भारत सरकार के एक संकल्प प्रस्ताव के द्वारा वर्ष 2000 में गठित राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण
समीक्षा आयोग ने अपने प्रतिवेदन के अध्याय 6 में अनुशंषा
संख्या -118 के अंतर्गत केंद्र में लोकपाल तथा राज्यों में
लोकायुक्त की स्थापना के लिए संवैधानिक प्रावधान करने की अनुशंषा की गई।[5]
आयोग ने अपने प्रतिवेदन में प्रशासनिक विफलताओं पर प्रकाश डालते हुए
कहा कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार, अकुशलता एवं अनुत्तरदायित्व के
कारण देश में न केवल छद्म कानूनी ढांचा तैयार कर लिया गया है बल्कि समानान्तर
सरकार एवं अर्थव्यवस्था भी चल रही है। भारत सरकार के एक संकल्प प्रस्ताव के द्वारा
वर्ष 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित द्वितीय
प्रशासनिक सुधार आयोग ने जनवरी,2007 में प्रकाशित चतुर्थ
प्रतिवेदन ‘शासन में नैतिकता’
के चौथे अध्याय में लोकपाल एवं लोकायुक्त को संवैधानिक आधार प्रदान
किए जाने की सिफारिश की गई।[6] जनलोकपाल विधेयक बनाम सरकारी लोकपाल विधेयक जन लोकपाल आंदोलन सरकार की असफलता के खिलाफ एक जनप्रतिक्रिया
थी। भारत में 1968 से प्रस्तावित
लोकपाल विधेयक के कमजोर स्वरूप के बारे में गांधीवादी समाज सेवक अन्ना हजारे
द्वारा प्रधानमंत्री सहित पक्ष- विपक्ष के नेताओं के समक्ष अपने सुझाव व चिंता
प्रकट करने के बावजूद सत्ता पक्ष द्वारा कोई तरजीह नहीं देने के कारण 5अप्रैल, 2011 को दिल्ली के जंतर मंत्र पर आमरण अनशन
प्रारम्भ कर दिया गया। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप सरकार द्वारा एक प्रारूप समिति [7]
का गठन किया गया जिसमें सरकार एवं जनता के प्रतिनिधियों को शामिल
किया गया किन्तु प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और निम्नस्तर के
अधिकारियों के संबंध में सहमति नहीं बन सकी, जिसके
परिणामस्वरूप दो लोकपाल बिल- जनलोकपाल और सरकारी लोकपाल विधेयक तैयार किए गए। जनलोकपाल विधेयक अन्ना हजारे के आंदोलन के पश्चात जनता के प्रतिनिधियों के
द्वारा तैयार किया गया विधेयक “जनलोकपाल विधेयक”
कहलाया। इस विधेयक के प्रमुख प्रावधान[8] निम्नानुसार
है - 1. प्रधानमंत्रीका पद लोकपाल के दायरे में हो । 2. न्यायपालिका के भ्रष्टाचार के विषयों की जांच भी लोकपाल के दायरे में हो। 3. किसी संसद सदस्य परसदन में वोट देने और प्रश्न पूछने के लिए रिश्वत देने का
आरोप होने पर लोकपाल को जांच का अधिकार होना चाहिए। 4. किसी लोकसेवक द्वारा सिटीजन चार्टर द्वारा निर्धारित अवधि में जनता का
कार्यनहीं करने पर लोकपाल संबन्धित लोकसेवक पर जुर्माना लगाकर भ्रष्टाचार का
मुकदमा चला सकेगा। 5. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो का लोकपाल में विलय कर देना चाहिए । 6. लोकपाल के सदस्यों का चयन एक व्यापक जनाधार वाली खोज समिति द्वारा
जनभागीदारी आधारित एवं पूर्ण रूप से पारदर्शी होना चाहिए। 7. लोकपाल आम जन के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। 8. सिविल दंड प्रक्रिया के प्रावधानों के अनुसार जांच की अनुशंसा करता है। 9. भ्रष्टाचार निवारण कानून के अंतर्गत ‘लोकसेवक’
की परिभाषा में आने वाले सभी अधिकारी लोकपाल के दायरे में आने चाहिए। 10. लोकपाल भ्रष्टाचार उजागर करने वालो, गवाहों और
भ्रष्टाचार से त्रस्त लोगों को सुरक्षा उपलब्ध करवाएगा। 11. भ्रष्टाचार से संबन्धित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष पीठों का गठन
कियाजाना चाहिए। 12. लोकपाल जांच पश्चात न्यायालय में मुकदमा दायर करने के दौरान लोकसेवक का
निलंबन कर सकेगा। सरकारी लोकपाल विधेयक अन्ना हजारे के आंदोलन के पश्चात सरकारी प्रतिनिधियों के
द्वारा तैयार किया गया विधेयकसरकारी लोकपाल विधेयक कहलाया। सरकारी लोकपाल विधेयक
की प्रमुख विशेषताएँ [9] निम्नानुसार
है- 1. प्रधानमंत्री का पद लोकपाल के दायरे से बाहर हो। 2. न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की अनुशंसा करता है। 3. संसद सदस्य परसदन में वोट देने और प्रश्न पूछने के लिए रिश्वत देने का आरोप
होने पर, ऐसे मामले की जांच का अधिकार लोकपाल को नहीं
होना चाहिए। 4. सिटीजन चार्टर द्वारा निर्धारित अवधि का उल्लंघन होने पर लोकसेवक पर
जुर्माना नहीं लगाया जाना चाहिए। 5. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को सरकार के अधीन रखने की अनुशंसा की गयी। 6. लोकपाल के सदस्यों के चयन के लिए एक 10 सदस्यीय चयन
समिति होगी जिसमे 5 लोग सत्ता पक्ष के होंगे तथा चयन समिति
द्वारा ही खोज समिति का गठन किया जाएगा। 7. लोकपाल सरकार के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। 8. जांच प्रक्रिया में लोकसेवक को विशेष संरक्षण प्रदान करने की अनुशंसा करता
है। 9. केंद्र सरकार के केवल क वर्ग की श्रेणी के ही अधिकारी लोकपाल के दायरे में
आने चाहिए। 10. सरकारी लोकपाल विशेष पीठों के गठन के संबंध में कोई प्रावधान नहीं करता
है। 11. लोक सेवक के विरुद्ध जांच पश्चात निलंबन का निर्णय मंत्री स्तर पर
कियाजाना चाहिए। लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 भारतीय संसद ने आठ बार असफल प्रयास करने के बाद 17 दिसंबर, 2013 को
राज्यसभा ने तथा 18 दिसम्बर, 2013 को
लोकसभा ने लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक पारित कर दिया है।लोकपाल एवं लोकायुक्त
अधिनियम 2013 जनवरी, 2014 को अधिनियमित
किया गया।लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ [10] निम्नानुसार है - लोकपाल की संरचना- लोकपाल एक 8 सदस्य वाला बहु-सदस्यीय निकाय है। इसमे आधे सदस्य न्यायिक तथा आधे सदस्य गैर-न्यायिक होते
है। गैर न्यायिक सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक एवं महिला मे से होंगे। लोकपाल एवं सदस्य नियुक्त होने की योग्यता भारत का मुख्य न्यायाधीश है या रहा हो या उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश हो या रहा हो या ऐसा व्यक्ति जो भ्रष्टाचार निरोधक नीति, लोक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, विधि और प्रबंधन से संबंधित क्षेत्रों का
कम से कम 25 वर्षों का विशिष्ट ज्ञान रखता हो। ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष और सदस्य के पद पर नियुक्त नहीं
किया जा सकता है जो- संसद एवं राज्य विधानमंडल का सदस्य हो। नैतिक दुराचार के आधार पर दोष सिद्ध व्यक्ति । पद ग्रहण की तिथि को 45 वर्ष से कम उम्र हो। किसी पंचायत एवं नगरपालिका का सदस्य हो। संघ या राज्य की सेवा से पदच्युत किया गया हो। किसी न्यास या लाभ का पद धारण करने वाला हो या किसी
राजनीतिक दल का सदस्य हो। किसी प्रकार का व्यवसाय या वृत्ति करने वाला हो । यदि ऐसा कोई व्यक्ति अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नियुक्त
किया जाता है, तो उसे अपने पद
से त्यागपत्र देना होगा । लोकपाल एवं सदस्यों की नियुक्ति लोकपाल एवं सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश के
आधार पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।प्रधानमंत्री इस चयन समिति का अध्यक्ष होता
है तथा लोकसभाध्यक्ष, लोकसभा में
विपक्ष का नेता या सबसे बड़े विरोधी दल का नेता, सर्वोच्च
न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नाम निर्देशित सर्वोच्च न्यायालय का
कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित विख्यात
कानूनविद। राष्ट्रपति अध्यक्ष एवं सदस्यों की पदावधि समाप्त होने से पूर्व नए
अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति के आवश्यक उपाय करेगा। पदावधि एवं पद त्याग लोकपाल एवं सदस्यों का कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष या सत्तर वर्ष जो भी पहले हो। अध्यक्ष
या सदस्य कार्यकाल पूर्ण होने से पहले अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंप सकते है। अध्यक्ष तथा सदस्यों को कदाचार के आधार पर कम से कम सौ संसद
सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित याचिका पर उच्चतम न्यायालय की जाँच के पश्चात
राष्ट्रपति हटा सकेगा।अध्यक्ष या सदस्य दिवालिया घोषित
हो जाता है, पद पर रहते हुए कोई वैतनिक पद धारण करता है या
राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शारीरिक असमर्थता होने पर राष्ट्रपति पद से हटा
सकेगा। अध्यक्ष की मृत्यु, त्यागपत्र या अन्य कारण से पद
रिक्त होने परराष्ट्रपति अधिसूचना जारी करके वरिष्ठतम सदस्य को, अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा। वेतन एवं सेवा शर्ते अध्यक्ष का वेतन, भत्ते एवं सेवा शत्र्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान होगी। लोकपाल के
सदस्यों का वेतन, भते एवं सेवा शर्ते उच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीश के समान होगी। एक बार अध्यक्ष या सदस्य के रूप में पद धारण करने के
पश्चात अध्यक्ष एवं सदस्य के पद पर पुनः नियुक्त नहीं किया जा सकेगा। भारत सरकार
या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण नहीं कर सकेगा। पद त्याग करने की
तारीख से पाँच वर्ष के भीतर राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति,
संसद-सदस्य, राज्य विधानमंडल सदस्य, नगरपालिका एवं पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं होगा। लोकपाल की अधिकारिता लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम 2013 के अध्याय 13 की
धारा 14 के अंतर्गत निम्नलिखित लोकपाल की जाँच के दायरे[11]
में आते है - ऐसा व्यक्ति जो प्रधानमंत्री है या रहा है (कुछ मामलों को
छोड़कर ) ऐसा व्यक्ति जो भारत सरकार का मंत्री है या रहा है । ऐसा व्यक्ति जो संसद सदस्य है या रहा है । भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 में परिभाषित संघ सरकार में सेवारत या सेवानिवृत क, ख,ग और घ या समकक्ष लोकसेवक। किसी निगम, कंपनी,बोर्ड, प्राधिकरण, निकाय,
सोसायटी, ट्रस्ट, स्वायत
संस्था का अध्यक्ष, सदस्य,अधिकारी और कर्मचारी है या रहा हो जोकि संसद द्वारा पारित अधिनियम से
स्थापित हो या भारत सरकार द्वारा पूर्णत या आंशिक रूप से वित पोषित हो। ऐसा कोई व्यक्ति, जो विदेशी अभिदाय (विनियमन), अधिनियम, 2010के अधीन एक वर्ष में विदेशी स्रोत से दस लाख रुपये या उससे अधिक रुपये,संदाय के रूप में प्राप्त करने वाली कोई सोसायटी, व्यक्ति
या न्यास का निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या
अन्य अधिकारी है या रहा है । ऐसा कोई व्यक्ति जो ऐसी सोसायटी, व्यक्ति समूह या न्यास जो सरकार द्वारा
पूर्णत या आंशिक पोषित तथा केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर निर्धारित
वार्षिक आय से ज्यादा आय हो, का निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी है या रहा है । भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 के तहत भ्रष्टाचार के किसी अभिकथन के मामले में दुष्प्रेरणा, रिश्वत देने या लेने या षड्यंत्र करने के मामले में सम्मिलित हो। लोकपाल की शक्तियाँ लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम,2013 के अध्याय 8 की
धारा 25 से 34 में लोकपाल की शक्तियों[12] से संबंधित प्रावधान है- धारा 25में प्रावधान है
कि लोकपाल को केन्द्रीय सतर्कता आयोग एवं दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन को प्रारम्भिक
जांच या अन्वेषण हेतु सौंपे गए विषयों पर अधीक्षण करने और निर्देश देने की
शक्तियाँ होगी। धारा 26 में प्रावधान है
कि लोकपाल भ्रष्टाचार के मामले में अन्वेषण प्राधिकरण को दस्तावेजों की तलाशी लेने
और उनका अभिग्रहण करने हेतु अधिकृत कर सकेगा। धारा 27के अंतर्गत कुछ
विषयों में लोकपाल को सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्रदान करता है। धारा 28में प्रावधान है
कि प्रारम्भिक जाँच का अन्वेषण करने के उद्देश्य से संघ या किसी राज्य सरकार के
किसी अधिकारी, संगठन या अन्वेषण एजेंसी के सेवाओं का उपयोग
कर सकता है । धारा 29में प्रावधान है
कि लोकपाल या उसके द्वारा इस हेतु प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जब्त सामग्री एवं
संपत्ति को अनंतिम रूप से कुर्क कर सकेगा। धारा32में प्रावधान है
कि जिस लोकसेवक के विरुद्ध प्रारम्भिक जाँच मे भ्रष्टाचार का अभिकथन प्रमाणित हो
गया हो, ऐसे लोकसेवक के स्थानांतरण या निलंबन के लिए केंद्र
सरकार को अनुषंशा कर सकता है । लोकपाल की उपादेयता ऑम्बुड्समैन सम्पूर्ण विषय में भ्रष्टाचार निवारण एवं रोकथाम
हेतु अत्यंत व्यावहारिक, प्रभावी एवं
लोकप्रिय संस्था है। भारत मे लोकपाल संस्था निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करने
में निर्णायक सिद्ध हो सकती है- 1. संविधान के
आदर्शो, मूल्यों एवं
उद्देश्यों की रक्षा करना। 2. नागरिकों एवं
आमजन के अधिकारों और हितों की रक्षा करना। 3. राष्ट्रीय
कानूनों एवं प्रशासनिक नियमों की पालना सुनिश्चित करना। 4. प्रशासन एवं
उसके अभिकरणो की अनियमितताओं तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना। 5. प्रशासनिक
कार्यकुशलता,पारदर्शिता,
जवाबदेयता एवं संवेदनशीलता में वृद्धि करना। 6. लोकसेवकों की
स्वविवेकीय शक्तियों और विशेषाधिकारों पर नियंत्रण बनाए रखना। 7. लोकसेवकों
एवं आमजन में कानून के प्रति आस्था में वृद्धि करना। 8. राष्ट्रीय
संसाधनो के सदुपयोग एवं विकास को सुनिश्चित करना। 9. प्रशासनिक
कानूनों, प्रक्रियाओं एवं
कार्यप्रणाली की कमियों में सुधार हेतु सुझाव प्रस्तुत करना। 10. लोकसेवकों में ईमानदारी, सच्चरित्रता, कर्तव्यनिष्ठा, कर्मण्यता,
प्रतिबद्धता आदि भावों को उत्पन्न करना।
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सामग्री और क्रियाविधि
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प्रस्तुत शोध पत्र के अंतर्गत लोकपाल की स्थापना की विकास यात्रा तथा प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के निवारण एवं रोकथाम में लोकपाल की भूमिका का विश्लेषण किया गया है। यह शोध पत्र सैद्धांतिक विवरण, विश्लेषणात्मक अन्वेषण एवं ऐतिहासिक पद्धति पर आधारित है। इस हेतु प्राथमिक और द्वितीयक समकों और तथ्यों का प्रयोग किया गया है। अध्ययन को प्रासंगिक और विश्वस्त बनाने के लिए प्रथम एवं द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोगों के प्रतिवेदन तथा राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग के प्रतिवेदन के साथ पूर्व मे किए गए अध्ययनों को आधार बनाया गया है। |
निष्कर्ष
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लोकपाल संस्था का संजीवनी रक्त वे हजारों शिकायतें है,जो पीड़ित व्यक्ति भेजते है,जिनकी नियमानुसार जांच की जाकर पीड़ितों की समस्याओं का निराकरण किया जाता है तथा दोषी लोकसेवक, जिनमे लोकसेवकों के विरुद्ध समुचित आदेश दिये जाते है एवं निर्दोष लोकसेवक को परिवाद में लगाए गए आरोप से मुक्त घोषित किया जाता है । इससे प्रशासन की छवि सुधरती है एवं लोकतन्त्र के मुख्य लक्षण सुशासन एवं जवाबदेही दृष्टिगोचर होती है। ऐसे में लोकपाल की स्थापना जनमानस में लोकतन्त्र रूपी दीपक में तेल की भांति एक उम्मीद जगाती है। राज्य की सर्वशक्तिमान इच्छा के बेलगाम होने से रोकने में पीड़ित जन की आवाज बनकर राज्य की अंत: चेतना को न केवल जगाने का कार्य करेगी बल्कि न्याय की वेदी पर आवश्यकता पड़ने पर अधिकारियों की उद्दंडता का समुचित उपाय भी संभव हो सकेगा। |
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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1. 23वां वार्षिक प्रतिवेदन, लोकायुक्त सचिवालय, शासन सचिवालय, जयपुर
2. शर्मा,महेश,‘जानिए जनलोकपाल बिल को’विद्या विहार,नई दिल्ली,2015
3. ‘प्रॉब्लम ऑफ रिड्रेस ऑफ सिटीजन्स ग्रीवेन्सेज’,प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग प्रतिवेदन,अक्टूबर,1966
4. 22वां वार्षिक प्रतिवेदन,लोकायुक्त सचिवालय, शासन सचिवालय,जयपुरपृ. संख्या -7
5. बिन्दु संख्या -118, पैरा संख्या 6.21.1, अध्याय-6, राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग,2002, पृ. संख्या -111-114
6. शासन में नैतिकता, चतुर्थ रिपोर्ट, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग,जनवरी,2007
7. शर्मा,महेश,‘जानिए जनलोकपाल बिल को’विद्या विहार,नई दिल्ली,2015 पृ. संख्या -83
8. पूर्वोक्त
9. पूर्वोक्त
10. लोकपाल एवं लोकयुक्त अधिनियम,2013
11. अध्याय 13, धारा 14,लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013
12. अध्याय-8, धारा 25 से 34, लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम,2013 |