|
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
ठोस अपशिष्ट प्रदूषण -दशा एवं दिशा | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Solid Waste Pollution - Condition and Direction | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
16176 Submission Date :
2022-07-03 Acceptance Date :
2022-07-19 Publication Date :
2022-07-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
|
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सारांश |
ठोस अपशिष्ट के अर्न्तगत घरों व उद्योगों के बाहर फेंके गये उन अनावश्यक पदार्थो को शामिल किया जाता है जो सामान्य कार्यो द्वारा उत्पन्न होते हैं तथा जिन्हें मानव द्वारा व्यर्थ समझकर फेंक दिया जाता है। इन ठोस अपशब्देां को कूडा (Rubbish) या कचरा (Refuse) भी कहा जाता है। प्राचीन नगरों में जूठन व अन्य गंदगियों को सड़कों पर फेंक दिया जाता है जहाँ वे जमा होते रहते थे, सड़ते तथा बदबू फैलाते थे। इस पर रोक लगाने के लिये पहला कानून एथेंस में 320 ईसा पूर्व बनाया गया तथा अनेक पूर्वी भूमध्य सागरीय नगरों में कूडा-कचरा हटाने की व्यवस्था विकसित की गई।
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Solid waste includes those unnecessary substances thrown outside homes and industries which are generated by normal activities and which are thrown away by human beings as waste. These concrete slurs are also called garbage (tinipeid) or garbage (mind). In ancient cities, leftovers and other filth were dumped on the streets where they accumulated, rotting and spreading foul smell. The first law to ban this was made in 320 BC in Athens and the system of garbage removal was developed in many eastern Mediterranean cities. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | उपभोक्तावाद, डम्पिंग एवं निपटान, संरक्षण संस्कृति, चिकित्सीय अपशिष्ट, प्रयोग एवं फेको संस्कृति, ज्वलनशील पदार्थ, छटाई एवं निस्तारण, संक्रामक अवयव, पारिस्थितिक तंत्र, रेडियोधर्मी, पुनर्चक्रण प्रक्रिया, आर तकनीक, उत्सर्जन, एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Consumerism, Dumping and Disposal, Conservation Culture, Medical Waste, Experiment and Phyco Culture, Flammable substances, Sorting and Disposal, Infectious Components, Ecosystem, Radioactive, Recycling Process, 3R Technique, Emission, Integrated Waste Management, Environmental Protection. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
तीव्र जनसंख्या वृद्धि, भोगवादी प्रवृत्ति एवं पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण एवं जीवन स्तर ऊँचा उठने से न केवल ठोस अपशिष्टों की मात्रा बढ़ी है बल्कि इनकी विविधता में भी वृद्धि हुई है। ठोस अपशिष्ट को (तरल एवं गैसीय अपशिष्टों के अतिरिक्त) नगरपालकीय कृषि औद्योगिक, चिकित्सीय तथा सीवेज मल आदि के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। ठोस अपशिष्टों के अनेक स्रोत होते हैं जिनका सम्बन्ध मानव जन-जीवन से होता है। इन अपशिष्टों की प्राप्ति 2 प्रमुख स्रोतों से होती है- घरेलू प्रतिष्ठानों तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से। इसके अतिरिक्त बागवानी अपशिष्ट तथा बूचड़खाने से निकलने वाला अपशिष्ट इसमें शामिल होता है। ठोस अपशिष्ट की बढ़ती हुयी मात्रा एवं विविधता ने पर्यावरण एवं मानव जीवन के समक्ष एक नई चुनौती पैदा की है क्योंकि इसके पर्यावरणीय दुष्परिणाम व्यापक एवं गम्भीर है। ठोस अपशिष्ट विषैली धातुओं, खतरनाक अपशिष्ट एवं ज्वलनशील पदार्थ के स्त्रोत होते हैं, इनमें से कुछ को जलाये जाने से कार्बन डाई आक्सीजन, फ्यूरोंन्स तथा पॉली क्लोरी नेटेड वाई फिनाइल्स आदि उत्पन्न होते है जिनमें कैंसर सहित अनेकों खतरनाक रोगों को जन्म देने की क्षमता होती है। ठोस अपशिष्ट प्रदूषण की समस्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है, इसके प्रमुख कारण है-एकत्रीकरण एवं निपटन की समुचित व्यवस्था न होना तथा पाश्चात्य व विकसित देशों द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों टन अपशिष्ट का विकासशील देशों एवं राष्ट्रो का निर्यात। इसके अतिरिक्त देश में पाश्चात्य संस्कृति ने ’प्रयोग करो और फेकों” (Pashtatya) संस्कृति के अनुसरण ने ठोस अपशिष्ट प्रदूषण की समस्या को गम्भीर बना दिया है। ठोस अपशिष्ट प्रदूषण की समस्या के निदान के लिये ’एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन” की विधियों का उपयोग एवं व्यवहार में बदलाव आवश्यक है। महत्वपूर्ण यह है कि पुनर्चक्रण की प्रक्रिया के साथ उत्सर्जन में कमी को व्यवहार में लाना होगा। इसके अतिरिक्त हमें सरकार या अन्य संस्थाओं के भरोसे नहीं रहना चाहिये बल्कि पर्यावरण को ठोस अपशिष्ट प्रदूषण से बचाने एवं पर्यावरण को ठोस अपशिष्ट प्रदूषण से बचाने एवं पर्यावरण संरक्षित करने के लिये कृत संकल्पित होना चाहिए।
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अध्ययन का उद्देश्य | 1. ठोस अपशिष्ट एवं ठोस अपशिष्ट प्रदूषण को परिभाषित करना ।
2. विभिन्न ठोस अपशिष्ट एवं उनके स्रोतों की पहचान करना।
3. घरेलू, व्यवसायिक एवं अन्य स्रोतों से निकलने वाले ठोस अपशिष्ट की जानकारी।
4. ठोस अपशिष्टों प्रदूषण एवं पर्यावरण व मानव जीवन पर उनके दृष्प्रभावों को ज्ञात करना ।
5. ठोस अपशिष्ट प्रदूषण की वर्तमान स्थिति एवं इसके निदान हेतु सुझाव। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
साहित्यावलोकन | ठोस अपशिष्ट को घरों, औद्योगिक, स्वास्थ्य देखभाल, निर्माण, कृषि, वाणिज्यिक और संस्थागत स्रोतों से उत्पन्न सभी ठोस ठोस पदार्थों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, शहर में उत्पन्न ठोस अपशिष्ट को अक्सर नगरपालिका ठोस अपशिष्ट कहा जाता है। अन्य साहित्य और क्षेत्राधिकार में इस श्रेणी में सीवेज, पानी में घुले ठोस पदार्थ और औद्योगिक अपशिष्ट (8) शामिल नहीं हैं। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य पाठ |
वर्तमान समय में
विश्व से प्रतिवर्ष करोड़ों मीट्रिन टन कूड़ा-कचरा निकलता है। तीव्र गति से बढ़ती
जनसंख्या, उपभोक्ता वाद तथा जीवन-स्तर उठने से न केवल ठोस
अपशिष्टों की मात्रा बढ़ी है बल्कि इनकी विविधिता में भी वृद्धि हुयी है। इन दोनों
ने मिलकर पर्यावरण के समक्ष एक नयी चुनौती पैदा की है क्योंकि ठोस अपशिष्टों के
पर्यावरणीय दुष्परिणाम अति व्यापक एंव गंभीर हैं। इनका समुचित रूप से डम्पिंग एवं
निपटान आवश्यक है। ठोस अपशिष्ट के स्रोत
उपरोक्त के अतिरिक्त प्रयोग करो और फेंकों संस्कृति से उत्पन्न ठोस अपशिष्ट आज एक समस्या बन गई है, क्योंकि उपयोग करने के बाद चीज फेंक दी जाती है। आजकल पॉलीबेग पॉलीथीन भी समस्या बन चुकी है, क्योंकि बाजार से समान लाने के लिये घर से बैग लाना शायद लोग भूल चुके हैं। मृदुपेय तथा चाय आदि को उपयोग करने के उपरान्त अधिकतम स्टेशनों, पार्को आदि स्थानों पर शीशी, कप आदि फेंक देते हैं। लेकिन विकासशील देशों में ऐसा नहीं होता हैं। मत्स्य,अपशिष्ट,चमड़ा उद्योग,बध गृह आदि के अपशिष्ट भी चिन्ता का विषय है। धातु खुरचन माइका अपशिष्ट, वैटरीज, रेयन, पल्प, औषधीय, लुग्दी, कपड़ा, भोजनालय द्वारा वाहित मद आदि अपशिष्ट के स्रोत हैं। ठोस अपशिष्ट की विशेषतायें- 1. ठोस अपशिष्ट वायु एवं जल प्रदूषण से जुड़ा हुआ है। 2. ठोस अपशिष्ट में न केवल ठोस बल्कि तरल कचरे में ठोस भी शामिल है। 3. ठोस अपशिष्ट का संग्रह, उपचार एवं निपटान ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन कहलाता है। 4. भारतीयों में 2016 में प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन लगभग 1.5 किग्रा0 अपशिष्ट उत्पन्न किया है। ठोस अपशिष्टों के प्रकार ठोस अपशिष्टों को अनेक स्त्रोंतों के आधार पर निम्न वर्गो में विभाजित किया जाता सकता है
भारत में ठोस
अपशिष्ट भारत के 3,00,000 से अधिक
जनसंख्या वाले लगभग 50 बड़े नगर प्रतिदिन 4 लाख टन से अधिक अपशिष्ट उत्पन्न करते
हैं। शहरी क्षेत्र में प्रतिवर्ष औसतन 68.8 मिलियन अपशिष्ट होता है। लगभग 500
ग्राम व्यक्ति प्रतिदिन ठोस अपशिष्ट होता है। भारतीय शहरों से निकलने वाले ठोस
अपशिष्ट में कार्बन तथा जैविक पदार्थ, कम्पोस्ट बनाने योग्य पदार्थ, राख तथा धूल
पत्थर कोयला भूसा, सब्जियों के छिलके डिब्बे, पॉलीथीन आदि शामिल है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति
के समय (1947) में लगभग 6 मिलियन टन ठोस
अपशिष्ट होता था जो अब बढ़कर 68 मिलियन टन हो गया है अभी भी लगभग 30 प्रतिशत
अपशिष्ट नगर महापालिका द्वारा एकत्र नहीं किया जाता है इसके परिवहन, लेडफिल एवं निस्तारण की समस्या बढ़ती जा रही हैै। हमारे देश में लगभग 7 मिलियन
टन खतरनाक अपशिष्ट उत्पन्न होता है। बहुत से खनिज पदार्थ पेस्टि साइट्स, रिफाइनिंग आदि पर्यावरण के लिये बहुत हानिकाकरक है और मानव जीवन एवं स्वास्थ्य
पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसके अतिरिक्त चिकित्सा क्षेत्र में इलाज
डाइग्नोसिस , रिचर्स आदि में बहुत से रसायनों का
प्रयोग किया जाता है अतः इन से सम्बन्धित अपशिष्ट का उचित तरीके से निस्तारण नहीं
हो पाता है जिसका मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ठोस अपशिष्ट
प्रदूषण के दुष्प्रभाव ठोस अपशिष्ट, प्रदूषण का प्रमुख कारण है। यह मनुष्य सहित समस्त जैविक जातियों के जीवन को
दुष्प्रभावित करता है। इसके दुष्प्रभाव व्यापक होते हैं तथा ये पर्यावरण व मानव
जीवन को अनेक प्रकार से क्षति पहुँचाते है। अपर्याप्त निस्तारण प्रणाली के कारण
नगरपालिकीय ठोस अपशिष्ट का ढेर सड़कों पर लगा रहता है लोग घरों की सफाई करते हैं
लेकिन कूड़ा बाहर फेंक देते हैं जिससे पूरा समुदाय दुष्प्रभावित होता है। ठोस
अपशिष्ट के प्रमुख दुष्पारिणाम इस प्रकार है:- 1. औद्योगिक ठोस अपशिष्ट विषैली
धातुओं व खतरनाक अपशिष्टों के स्रोत होते हैं जो भूमि पर फैल सकते हैं और उसके
भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों मे परिवर्तत का कारण बन सकते हैं जिससे मिट्टी की
उर्वराशक्ति पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। विषैले पदार्थ के निक्षालन तथा टपकाव के
द्वारा भूगर्भीय जल प्रदूषित हो सकता है। 2. ठोस अपशिष्टों में ज्वलनशील
पदार्थ भी पाये जाते हैं इससे अपशिष्टों की छॅटाई एवं निस्तारण जोखिम भरा हो जाता
है इनमें से कुछ पदार्थो को जलाये जाने से कार्बन डाई ऑक्सीन, फ्यूरॉन्स तथा पॉलीक्लोरीनेटेड वाइफिनाइल्स आदि उत्पन्न होते हैं जिनमें कैंसर
सहित अनकों खतरनाक रोगों से जन्म देने की क्षमता होती है। 3. ठोस अपशिष्ट के सड़ने से न
केवल बदबू फैलती है जो वायू प्रदूषण का प्रमुख कारण है बल्कि विभिन्न प्रकार के
कीटों तथा संक्रामक अवयवों को फलने-फूलने का अवसर भी प्राप्त होता है जिनसे अनेकों
बीमारियाँ फैलती है। 4. विभिन्न उद्योगों से निकलने
वाला धुँआ उस क्षेत्र के लोगों की त्वचा व आँखों को प्रभावित करता है उस धुयें से
ऐतिहासिक इमारते भी प्रभावित होती है। एस्वेस्टस उद्योग से निकलने वाले कण
एस्वेस्टस रोग फैलाते हैं पारा से मिना माता तथा इसी प्रकार भारी धातुकण गंभीर रोग
फैलाते हैं। 5. ठोस अपशिष्ट नालियेां में
जाने पर व्यवधान उत्पन्न करते हैं। कभी-2 नालियाँ बंद हो वहिःस्त्राव के साथ गया अपशिष्ट जमीन के अन्दर जाकर भूजल को
प्रदूषित करता है। 6. जानवर भी विषाक्त अपशिष्ट व
पॉलीथीन आदि खाने से प्रभावित होते हैं प्रायः शहरों में देखा गया है जानवर
पॉलीथीन को खाने की चीजों के साथ खा जाते हैं जो उनकी मौत का कारण बनती है। 7. प्लास्टिक की बाल्टियाँ बोतल, बैटरी सफाई के घोल, पेस्टीसाइड, रेडियोधर्मी, पदार्थ, कागज धातु छीलन आदि जो पुनः उपयोग में लायी जा सकती है मानव जीवन पर किसी न
किसी प्रकार दुष्प्रभाव डालती है। 8. ठोस अपशिष्ट निपटान स्थलों
में चूहे तथा मक्खियाँ अधिकतम हो जाती है जो विभिन्न बीमारियों के कीटाणुओं को
समीपवर्ती आवासीय क्षेत्र में वाहक की भूमिका नियत है। 9. अपशिष्ट पदार्थो को लगातार
समुद्रों में डालने से ’सामुद्रिक पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो
जाता है। जिससे कई समुद्री प्रजातियों का जीवन खतरे में रहता है। ग्रीन पीस नामक संगठन ने नवम्बर
1988 में एक प्रेषित प्रतिवेदन में स्पष्ट किया था कि विश्व के विकसित राष्ट्रों
में शहरी व औद्योगिक अपशिष्ट का समुचित निपटान उचित स्थान के अभाव में एक समस्या
बन चुका है। विश्व के पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिवर्ष करोड़ों टन कूड़ा-करकट विश्व
विकासशील एवं पिछले राष्ट्रों को निर्यात किया जाता है। कूड़ा-कचरा निर्यात व्यापार
में 143 बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ संलग्न है।
चूंकि विकसित देशों में अनचाहे रसायन घोलक, शाकनाशक तथा अन्य हानिकारक व्यर्थ पदार्थो को अपने देश में निपटान हेतु कठोर
कानून है अतः यह कम्पनियाँ आसानी से इन हानिकारक पदार्थो एवं कूड़-कचरे को विकासशील
एवं पिछड़े देशों में निर्यात कर देती है। इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है
कि विकसित देश कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने विषैलें कूड़े-कचरे को इस प्रकार
योजनाबद्ध तरीके से विकासशील राष्ट्रों को निर्यात करती है कि कूड़ा आयात करने वाले
राष्ट्रों को यह आभास तक होने नहीं दिया जाता है कि आयातित कूडा विषैला है और
इसमें भारी धातुओं के कण, रेडियोधर्मी कण तथा पर्यावरण व मानव को हानि पहुँचाने
वाले पदार्थ मिल जाते हैं तथा उन्हें इस तथ्य से भी अनभिज्ञ रखा जाता है कि इन
देशों को विषैलें पदार्थों के थोक आयात से देश को कितने गंभीर परिणाम भुगतने पड़
सकते हैं। उस भयावह व चिंतनीय स्थिति के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण
परिषद का कहना है कि विश्व के विकसित राष्ट्र विकासशील राष्ट्रों को अपना कूडाघर
बना रहे हैं जिससे विकासशील राष्ट्रों में ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन की समस्या दिन
प्रतिदिन तेजी से बढ़ती जा रही है और पर्यावरण व मानव जीवन को दुष्प्रभावित कर रही
है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ठोस अपशिष्ट प्रदूषण को दूर करके 22 प्रकार
की बीमारियों को दूर किया जा सकता है। भारत में अपशिष्ट पदार्थो का
उपयोग तथा पुनर्चक्रण भारत में सरकार द्वारा विभिन्न
औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थो का उपयोग करने के साथ-साथ उनका पुनर्चक्रण किया जा रहा
है। पुनर्चक्रण प्रक्रिया में यह अपशिष्ट उपयोगी वस्तुओं में परिवर्तित हो जाते
है। ठोस अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पादित करने के लिये भारत में पहला संयत्र दिल्ली के
तिमारपुर क्षेत्र में लगाया गया है। इसी प्रकार की परियोजना मुम्बई महानगरों में
भी स्थापित की गयी है। इसके अलावा गन्ने की खोई व धान की भूसी से कागज तथा तापीय
विद्युत ग्रहों से निकलने वाली राख से ईटों का निर्माण सफलतापूर्वक किया जा रहा
है। इसी प्रकार मुम्बई महानगर में धातुओं की छीलनों को गलाकर धातुओं में बदलने की
भी परियोजना चलाई जा रही है। ठोस अपशिष्ट प्रदूषण से बचने के
सुझाव ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के
दुष्परिणामों से बचने के लिये निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं- 1. ठोस अपशिष्ट को एकत्र करने
के उपरान्त उसकी विधिवत छटाई व विधिवत वर्गीकरण किया जाना चाहिये। उसके लिये घरों, सार्वजनिक स्थलों व कार्यालयों आदि स्थानों पर अलग-2 डस्टबिन रखी जानी चाहिये
। जिससे कबाड़ी वाले को पुनः उपयोग हेतु वस्तुयें कबाड़ में से छॉटने में सुविधा हो
। 2. सड़ी गली पत्तियाँ, सब्जियों व छिलकों, गोबर, मलमूत्र तथा अन्य जैविक पदार्थो को खाद्य बनाने के लिये कम्पोस्ट के गड्ढ़ों
में जमा करना चाहिये। 3. 03 आर तकनीक अथवा कम करना
पुनः उपयोग तथा पुनः चक्रण का उपयोग करना चाहिए। क. अपशिष्ट पदार्थो को कम
करनाघर में वस्तुओं का प्रयोग करते समय इसका अधिकांश भाग प्रयोग में लेना चाहिये।
खरीददारी करते समय पॉलीथीन व भारी पैंकिंग नही लेनी चाहिये। ख. अपशिष्ट पदार्थो का पुनः
उपयोग प्रयोग करो और फेकों पद्धति से बचना चाहिये। फेंकने से अच्छा उनको बेच या
दान कर देना चाहिये। रिपेयर योग्य वस्तुओं को बचने की बजाय उन्हें रिपेयर कराकर
उपयोग में लेना चाहिये। आपस में ले-देकर साझा कर या किराये की परम्परा विकसित करनी
चाहिए। ग. अपशिष्ट पदार्थो का
पुनर्चकरण कागज की एन्ट्री का इस्तेमाल दफ्ती बनाने में पुरानी प्लास्टिक का उपयोग
पुनः प्लास्टिक बनाने में किया जा सकता है। 4. ठोस अपशिष्ट को जलाना नहीं
चाहिये क्योंकि जलाने से अपशिष्ट तो नष्ट हो जाता है लेकिन इससे वायु प्रदूषण
फैलता है, विषाक्त गैस क्षेत्रीय जनता को नुकसान पहुँचाती है।
मिश्रित अपशिष्टों के जलने से डाइआक्सिन जैसी विषाक्त गैसें निकलती है जो
संकटपूर्ण है। 5. कभी भी खुले में इधर-उधर
अपशिष्ट न ही फेंकना चाहिये और न ही जलाना चाहिये । यह अवैध है साथ ही यह वातावरण
व मानव जीवन को दुष्परिणामित करती है। 6. सीमित पर्यावरणीय संसाधनों
का समुचित उपयोग करना चाहिये क्योंकि ये संसाधन हमारी आने वाली संतानों की धरोहर
है। इसका समुचित उपयोग ही पर्यावरण बनाने का एकमात्र विकल्प है। 7. आवश्यक है ठोस अपशिष्ट
प्रबन्धन ठोस अपशिष्ट ’स्वच्छ भारत मिशन’ एक बड़ी बाधा के रूप में नगर पंचायत, नगर महापालिका व महानगरों के लिये समस्या बन चुका है। भूमि की उपलब्धता, आधारभूत ढाँचे एवं वित्तीय संसाधनों की कमी अपशिष्ट प्रबन्धन के लिये एक बड़ी
बाधा बना हुआ है। 8. अपशिष्ट निस्तारण की समस्या
के लिये की विधियों का उपयोग एवं व्यवहार में बदलाव आवश्यक है। महत्वपूर्ण यह है
कि प्रक्रिया के साथ उत्सर्जन में कमी को व्यवहार में लाना होगा । ठोस अपशिष्ट प्रदूषण राष्ट्रीय
व अर्न्तराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर चिंता का विषय है तथा विकसित व विकासशील सभी
देशों ने इस दिशा में सोचना व कार्य करना प्रारम्भ कर दिया है। मनुष्य को सरकार व
अन्य संस्थाओं के भरोसा नहीं रहना चाहिये। वन दिवस, जल दिवस, पर्यावरण दिवस आदि आयोजित करके जनता में जागरूकता
फैलानी चाहिये। सभी धर्मो के अध्ययन से स्पष्ट है कि सृष्टि का विकास पर्यावरणीय
तत्वों से है अतः इन्हें सुरक्षित करने व बचाने के लिये कृत संकल्प होना चाहिये।
आज आवश्यकता इस बात की है कि जन-जन में प्रसार-प्रचार किया जाये तथा पर्यावरण
संरक्षण में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी सुनिश्चित की जाये। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निष्कर्ष |
वर्तमान समय में विश्व से प्रतिवर्ष करोड़ों मीट्रिन टन कूड़ा-कचरा निकलता है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या, उपभोक्ता वाद तथा जीवन-स्तर उठने से न केवल ठोस अपशिष्टों की मात्रा बढ़ी है बल्कि इनकी विविधिता में भी वृद्धि हुयी है। इन दोनों ने मिलकर पर्यावरण के समक्ष एक नयी चुनौती पैदा की है क्योंकि ठोस अपशिष्टों के पर्यावरणीय दुष्परिणाम अति व्यापक एंव गंभीर हैं। इनका समुचित रूप से डम्पिंग एवं निपटान आवश्यक है। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Ahluwalia I.J. and Patel A. “A city laid waste”. The Indian Epress(2017); IndianExpress.Com
2. Ahluwalia I.J. and Patel A. “from waste to Health” the Indian Express (2017); Indianexpress.com
3. Bharucha, Erak ‘Environmental Studies’- University Grant Commission Orient Blackswan. Delhi Page 164,165.
4. Bogner J “Mitigation of Global GHG Emission from Waste: working group III (Mitigation) waste management & Research(2007).26
5. Control Pollution Control Board. “Consolidation Annual Review Report on Implementation of Solid Waste management Rules. 2016” (2017) cpcbric.in
6. Central Pollution Control Board. Status Report on Municipal Solid Waste Management”. 2011.cpcb.nic.in
7. CSIR- National Chemistry Laboratory. “ PET Recycling in India” 2017. petrecycling.in
8. Hoornweg D. Bhada. Tata “P. what a waste. A Global Review of Solid waste management”. Urban Development Series, knowledge papers, Washington, world Bank 2012.
9. Development Series: Knowledge paper No. 15 world Bank 2012. Open Knowledge.worldbank.org
10. Gautam, Alka; Resources and Environment Sharda Pustak Bhawan, Allahabad P. 425-430
11. Ikiara MM, Karanja AM, Davies T.C. Collection, Transportation and Disposal of Urban sold waste. In Nairoki in solid waste management and recycling, Geo Journal Libray P 61-91.
12. International Agency for Research on Caneer Vinyl chloride “IARC Monographs on the Evaluation of Carcinogeniz Riskto Humans. Bol 100F, WHO 2012. iswa.org
13. Jagdish Chandra Mahanti, Swachh Bharat through Reuseand Recycling of waste.
14. Krushna G. “why Urban waste continues to Follow the Path of Least Resistance” Economic & Weekly. 52.17(2017):9
15. Karpangam M., Environmental Economics. Sterling Publishers Delhi, P 323-330
16. Luthra A. “Waste-to-Energy and Recycling”. Economic & Political weekly(2017):51
17. Ministry of Housing and Urban Affairs “Swacchata Sandesh Newsletter” Rep.2019
18. NITI Ayog “Repost of the Sub Grouop of Chief Minister on Swachh Bharat Abhiyan” 2015 nitia.gov.in
19. Silpa Kaza, what a waste 2.0: A Global Snapshot of Solid waste Management to Energy.” 2014
20. Swachhata Sandesh Newsletter Jan 2020
21. T. EUGINE “Environment of Economics. Vrinda Publication Ltd. Delhi” P. 235,236.
22. United Nations Grossary of Environment Statistics. In: Studies in Methods Newyork: Development for Economics and Social Information and policy Analysis, 1997.
23. UNED and Calrecovery Inc. Solid Waste Management. Tsurumi-Ku: UNEP Internation Environmental Technology Centre (IETC) and California, USA 2005.
24. UNEP, Municipal Solid waste composition Analysis Study Juba, South Sudan, Juba: UNEP 2013. |