P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- IX , ISSUE- XI July  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
नांवा तहसील के ग्रामीण विकास में वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों के योगदान का शोधपरक अध्ययन
Research Study of the Contribution of Alternative Energy Resources in the Integrated Rural Development of Nawa Tehsil
Paper Id :  16245   Submission Date :  2022-07-20   Acceptance Date :  2022-07-22   Publication Date :  2022-07-25
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विजय कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर (विद्यासंबल योजना)
शिक्षाशास्त्र विभाग
राजकीय महाविद्यालय
मंगलाना ,राजस्थान, भारत
सारांश
नांवा तहसील के वैकल्पिक संसाधनों द्वारा कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त सौर उपकरण, पवन चक्की की ऊर्जा से विद्युत यंत्र चलाने में, पानी के वितरण में तथा बायो गैस संयंत्र से फसलों हेतु उपयुक्त खाद का निर्माण होता है। इन वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या नहीं होती है। सम्पूर्ण ग्राम का वातावरण स्वच्छ रहता है। नांवा तहसील में इन वैकल्पिक संसाधनों के उपयोग से ग्रामीण जीवन धीरे-धीरे प्रगति करता जा रहा है। ग्रामीण जीवन के इस बढ़ते हुए प्रगति स्तर में सरकार का भी योगदान है, जो किसानों को प्रयुक्त उपकरण के आधार पर सब्सिडी प्रदान करती है जिससे ग्रामीण स्तर पर इन संसाधनों का उपयोग सम्भव हो पाया है। वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों से नांवा तहसील में जो इन संसाधनों का प्रभाव क्षेत्र है, वहां घरों को बिजली प्रदान करना, सौर पैनलों से गाँव की सड़कें रोशन करना, बायो गैस से भोजन पकाना आदि कार्य आसान होते जा रहे हैं। वर्तमान में धीरे-धीरे इन ऊर्जा संसाधनों के विकास के लिए निरन्तर प्रयासरत रहकर और अधिक मात्रा में इनका उत्पादन करना अत्यन्त आवश्यक है,जिससे कम लागत दर पर अधिक लाभ की प्राप्ति से ग्रामीण जीवन स्तर का विकास होगा।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In Nawa tehsil, solar equipment used in agriculture field by alternative resources, windmill power to run electrical equipment, water distribution and bio-gas plant is used to manufacture suitable manure for crops. These alternative energy resources do not cause environmental pollution problems. The environment of the whole village remains clean. Rural life is progressing slowly with the use of these alternative resources in Nanwa tehsil. The government is also contributing to increasing the level of progress of rural life, which provides subsidy to the farmers on the basis of the equipment used, which has made the use of these resources possible at the village level. Alternative energy resources are becoming easier in Nawa tehsil which is the area of ​​influence of these resources, providing electricity to homes, lighting village roads with solar panels, cooking food with bio gas etc. At present, for the development of these energy resources gradually, it is very necessary to make continuous efforts and produce them in more quantity, which will lead to the development of rural living standard by getting more profit at a lower cost rate.
मुख्य शब्द सौर उपकरण, पवन चक्की, बायो गैस, वैकल्पिक ऊर्जा, पर्यावरण प्रदुषण, बायोमास,।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Solar Equipment, Windmills, Bio Gas, Alternative Energy, Environmental Pollution, Biomass, Energy Resources.
प्रस्तावना
भारत एक कृषि प्रधान देश है। जिसकी 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गाँवों में कृषि कार्य करती है। प्रारम्भिक समय से किसान खेती करता आ रहा है। उसने कृषि में परम्परागत तरीके को निरन्तर अपनाया है, और धीरे-धीरे कृषि में उसने तकनीकों को अपनाना प्रारम्भ कर दिया है। वर्तमान में ग्रामीण विकास हेतु ऊर्जा की जरूरतें बढ़ रही है, परन्तु ऊर्जा का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है। इसलिए वर्तमान में वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन के स्रोतों को ढूँढ़ना अत्यन्त आवश्यक है। नांवा तहसील के ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। यहाँ ऊर्जा का उपयोग मुख्य रूप से खाना बनाने, प्रकाश की व्यवस्था करने और कृषि कार्य में किया जा रहा है। 75 प्रतिशत ऊर्जा की खपत खाना बनाने और प्रकाश हेतु उपयोग में लायी जाती है। यहां ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बिजली के अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर उपलब्ध जैव ईंधन एवं केरोसिन आदि का भी उपयोग ग्रामीण लोग करते है। नावां तहसील के कृषि क्षेत्र में ऊर्जा का उपयोग मुख्यतः पानी निकालने के काम में किया जाता है। इन कार्याें में बिजली व डीजल भी उपयोग में लाया जा रहा है। नांवा तहसील के ग्रामीण क्षेत्रों में वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। वर्तमान के इस तकनीकी युग में आज भी 21 प्रतिशत गांव ऐसे है, जहाँ बिजली नहीं पहुँच पाई है। नांवा तहसील के लगभग सभी गाँवों में बिजली पहुँच चुकी है। परन्तु निरन्तर बिजली के उपयोग से इसकी सम्भावनाओं की ओर कदम बढ़ाना आवश्यक होता जा रहा है।
अध्ययन का उद्देश्य
1. अध्ययन क्षेत्र के विभिन्न उपलब्ध वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों का अध्ययन करना। 2. अध्ययन क्षेत्र के वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन एवं उनका ग्रामीण विकास में योगदान का अध्ययन करना। 3. अध्ययन क्षेत्र के वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन एवं आदर्श गाँव परिकल्पना का अध्ययन करना। 4. अध्ययन क्षेत्र के वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन व उनकी समस्याओं का अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन

नांवा तहसील के समन्वित ग्रामीण विकास में वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों के योगदान का शोधपरक अध्ययनमें शोध के उद्देश्य तथा शोध पद्धति का विवरण प्रस्तुत करते हुए इस विषय पर लिये गये साहित्य का अवलोकन, विश्लेषण और मूल्यांकन किया गया है, जैसे- डॉ.जगदीश सिंह एवं डॉ.काशीनाथ सिंह, 1999 ने आर्थिक भूगोल के मूल तत्त्व ज्ञानोदय प्रकाशन, गोरखपुर पुस्तक में संसाधनों के विभिन्न प्रकारों, उनके महत्व व सरंक्षण की उपयोगिता का अध्ययन मानव विकास के संदर्भ में किया है।
डॉ. एच.एम. सक्सेना व डॉ. एल.सी. अग्रवाल, राहुल सक्सेना तथा डॉ. पूजा सक्सेना 2016 राजस्थान हिन्दी गं्रथ अकादमी, जयपुर पुस्तक में प्राकृतिक संसाधनों की उत्पत्ति, प्रकार तथा कृषि, उद्योग व अन्य क्षेत्रों में उनकी महत्ता के बारे में विस्तृत विवरण दिया है। वी.के. श्रीवास्तव, 2002 ने आर्थिक भूगोल, वसुन्धरा प्रकाशन, गोरखपुर में आर्थिक संसाधनों का विस्तृत विवेचन करते हुए उनका मानव विकास के संदर्भ में गहन विवेचन कर उनकी उपयोगिता को बताया है।

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र
इस शोध अध्ययन क्षेत्र राजस्थान के नागौर जिले की नांवा तहसील है। तहसील की कुल जनसंख्या 336963 है। इसमें 79.57 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों की है। नांवा तहसील जिले की पिछड़ी तहसीलों में गिनी जाती है। ये तहसील अल्प विकसित संक्रामी क्षेत्र है। इसके समन्वित विकास हेतु समस्याओं को खोज कर वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर विकास कार्यक्रम एवं योजनाएं बनाना है। इस क्षेत्र के सर्वांगिण विकास की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र का चुनाव किया जाना इस शोध का मुख्य लक्ष्य है। वर्तमान में विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक विकास होने पर भी कृषि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है जो मुख्यतः वहाँ के भौगोलिक परिवेश पर निर्भर होती है। अतः अध्ययन क्षेत्र के विकास के सन्दर्भ में भौगोलिक वातावरण के तत्त्वों का अध्ययन करना महत्वपूर्ण हो जाता है। नांवा तहसील राजस्थान के नागौर जिले की एक प्रशासनिक इकाई है, जो नागौर जिले के पूर्वी भाग में स्थित है। इसकी भौगोलिक स्थिति 270 22‘ 38”  260 53‘ 35” उत्तरी अक्षांशों तथा 750 22‘ 57”  750 03‘ 18” पूर्वी देशान्तरों के मध्य है। इसके उत्तर व उत्तर-पूर्व में सीकर जिला, उत्तर-पश्चिम में डीडवाना तहसील, दक्षिण-पश्चिम में मकराना तहसील व परबतसर तहसील, दक्षिण-पूर्व में जयपुर जिला स्थित है। यह तहसील 1521.86 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर विस्तृत है तथा तहसील की वर्ष 2001 में कुल जनसंख्या 3,36,963 है। यहाँ की सम्पूर्ण जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या 268146 है तथा शहरी जनसंख्या 68817 है। जनसंख्या घनत्व 221 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। तहसील में सम्पूर्ण ग्रामों की संख्या 193 है।


नांवा तहसील में उपलब्ध वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों के स्रोत तीन प्रकार के हैं-.
1. सौर ऊर्जा.
2. पवन ऊर्जा
3. जैव ऊर्जा
1. सौर ऊर्जा संसाधन
सूर्य, ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है। रेगिस्तानी क्षेत्र में सौर ऊर्जा आमदनी का एक बड़ा जरिया साबित होने लगा है, क्योंकि ऐसे इलाकों में एक ही जगह पर अनेकों सौर प्लेट लगाना संभव है, और इसके जरिए भारी मात्रा में बिजली का उत्पादन किया जाना सम्भव है। नांवा तहसील में ऐसे स्थानों पर सौर प्लेटों से उत्पन्न ऊर्जा के टरबाइन लगाये जा रहे है, जहां पर सुचारू रूप से बिजली का उत्पादन हो सके। और दूर-दूर तक भी बिजली का स्थानान्तरण किया जा सकें। यहां लगाए जाने वाले सौर प्लेटों के चलन को मिरर फार्मिंग का नाम दिया गया है।
नांवा तहसील में सौर ऊर्जा के लाभ
(क) यह ऊर्जा का प्राकृतिक स्रोत है जो हमें सालों भर निःशुल्क ऊर्जा प्रदान करता है।
(ख) यह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
(ग) कम विकसित क्षेत्र होने के कारण यह सोलर प्लेटों तथा अन्य सौलर यन्त्रों को लगाना आसान है।
(घ) यह प्रदूषण रहित होता है।
2. पवन ऊर्जा संसाधन
पवन ऊर्जा संसाधन, वैकल्पिक ऊर्जा का बेहतर स्रोत है। जब हवा का उपयोग पवन चक्की के पंखे को घुमाने में किया जाता है तब वह उससे जुड़ी धुरी को घुमाता है। पंप या जनरेटर के माध्यम से धुरी के घूमने की यह प्रक्रिया बिजली उत्पन्न करती है। पवन ऊर्जा जनरेटरों की स्थापना हेतु उपयुक्त स्थल के चयन के लिए क्षेत्र विशेष में हवा की गति के आँकडे 1-2 वर्षों तक एकत्र किये जाते है। भारत के पास पवन ऊर्जा उत्पादन की स्थापित क्षमता 1870 मेगावाट है और इस मामले में उसका विश्व में पाँचवा स्थान है। नांवा तहसील में पवन ऊर्जा संसाधन का उपयोग वर्तमान में नहीं हो रहा है, परन्तु यह क्षेत्र अर्द्धशुष्क जलवायु का है। इस कारण यहां ग्रीष्मऋतु में पवन 20 कि.मी.  प्रति/घण्टा की गति से चलती है, जो पवन ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता रखती है। इस कारण नांवा तहसील में पवन ऊर्जा संयंत्र लगाने की काफी सम्भावनाएं हैं।
नांवा तहसील में पवन ऊर्जा से लाभ
(क) यह पर्यावरण उन्मुखी है।
(ख) यह स्वतंत्र रूप से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
(ग) स्थानीय लोगों को रोजगार की प्राप्ति होगी।
(घ) सम्पूर्ण नांवा तहसील का विकास होगा।
3. जैव ऊर्जा संसाधन या बायोगैस ऊर्जा संसाधन
बायोगैस, ऊर्जा का एक ऐसा संसाधन है, जिसका बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका उपयोग घरेलू एवं कृषि कार्यां में भी किया जाता है। भारत में ग्रामीण क्षेत्र में ऊर्जा प्राप्ति के लिये बायो गैस के प्रयोग की अपार सम्भावनाएँ हैं। बायो गैस खाना पकाने, रोशनी करने और ऊर्जा उत्पन्न करने के काम आ सकती है। बायोगैस संयंत्र से बढ़िया प्राकृतिक खाद की प्राप्ति होती है। तथा इसके व्यापक प्रयोग से अनेक लाभ है। जैसे- ईंधन के लिये वनों की कटाई पर रोक, ग्रामीण महिलाओं में नेत्र स्वास्थ्य, भोजन पकाने में सुविधा एवं स्वच्छता आदि। भारत में पारिवारिक और सामुदायिक दोनों प्रकार के बायोगैस संयंत्रों के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। वर्तमान में देश में परिवारनुमा बायो गैस संयंत्रों की कुल संख्या 12.40 लाख तथा सामुदायिक एवं संस्थागत संयंत्रों की कुल संख्या 500 है। नांवा तहसील में बायोगैस उत्पादन हेतु सार्थक क्षेत्र है। यहाँ पर जानवरों के गोबर से तथा कृषि जन्य कचरे से तथा मल एवं मूर्गियों की बीट आदि का उपयोग बायोगैस में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
नावां तहसील में बायो गैस ऊर्जा संसाधन से लाभ
(क) स्थानीय रूप से सरलता से प्राप्ति हो जाती है।
(ख) यह एक स्वच्छ ईंधन है, जो कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण कर आस-पास के पर्यावरण को स्वच्छ रखता है।
(ग) इनसे सिर्फ बायोगैस का उत्पादन ही नहीं होता, बल्कि फसलों की उपज बढ़ाने के लिए समृद्ध खाद भी मिलता हे।
(घ) यह प्रदूषण को भी नियन्त्रित रखता है, क्योंकि इसमें गोबर खुले में पड़े नहीं रहते, जिससे कीटाणु और मच्छर नहीं पनप पाते हैं।
नांवा तहसील में ऊर्जा संसाधनों का महत्व
(क) वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन स्रोत वर्ष पर्यन्त अबाध रूप से भारी मात्रा में उपलब्ध होने के साथ-साथ सुरक्षित, स्वतः स्फूर्त व भरोसेमंद है। साथ ही इनका समान वितरण भी सम्भव है।
(ख) नांवा तहसील में पर्याप्त मात्रा में पाये जाने के कारण इनका उत्पादन अच्छा होता है, जिससे बिजली का खर्च स्थानीय लोगों को कम करना पड़ता है।
(ग) इन ऊर्जा संसाधनों से ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन से बचाव होता है।
(घ) इन ऊर्जा संसाधनों से प्रदूषण की समस्या नहीं होती है।
(ङ) वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनां से वनों को काटने की आवश्यकता नहीं पडती है अर्थात् वनों का संरक्षण होता है।
(च) सम्पूर्ण क्षेत्र का आर्थिक विकास होता है।
वैकल्पिक संसाधन एवं उनका ग्रामीण विकास में योगदान
वैकल्पिक ऊर्जा संसाधन ग्रामीण विकास में बहुत लाभकारी घटक सिद्ध हो रहा है। नांवा तहसील में प्रयुक्त होने वाले वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों से यहां का ग्रामीण जीवन प्रभावित है और पर्यावरण प्रदूषण की मात्रा भी कम है। नांवा तहसील में किसानों से उनकी जमीन किराए पर ले रही बड़ी कम्पनियां ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित कर रही है जिसके एवज में जमीन के स्वामी को उसकी जमीन पर लगे संयंत्र से उत्पादन होने वाली बिजली से होने वाली आमदनी का तीन फीसदी हिस्सा दिया जा रहा है। शोध प्राप्ति से यह ज्ञात हुआ है कि एक हेक्टेयर जमीन देने वाले को हर साल औसतन दस हजार डॉलर मिलेंगे। ग्रामीण जीवन के इस बढ़ते हुए प्रगति स्तर में सरकार का भी योगदान है, जो किसानों को प्रयुक्त उपकरण के आधार पर सब्सिडी प्रदान करती है जिससे ग्रामीण स्तर पर इन संसाधनों का उपयोग सम्भव हो  पाया है। ग्रामीण क्षेत्रों मे उपयोग होने वाले लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा बायोमास से प्राप्त की जाती है, क्योंकि सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के संयंत्रों को लगाने में अधिक खर्चा हो जाता है। जबकि बायोमास से प्राप्त ऊर्जा के लिए ग्रामीण वासियों को कम मेहनत पर अधिक लाभ प्राप्त होता है। वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों से नांवा तहसील में जो इन संसाधनों का प्रभाव क्षेत्र है, वहां घरों को बिजली प्रदान करना, सौर पैनलों से गाँव की सड़कें रोशन करना, बायो गैस से भोजन पकाना आदि कार्य आसान होते जा रहे हैं। वर्तमान में धीरे-धीरे इन ऊर्जा संसाधनों के विकास के लिए निरन्तर प्रयासरत रहकर और अधिक मात्रा में इनका उत्पादन करना अत्यन्त आवश्यक है, जिससे कम लागत दर पर अधिक लाभ की प्राप्ति से ग्रामीण जीवन स्तर का विकास होगा।
वैकल्पिक संसाधन एवं आदर्श गाँव परिकल्पना
राजस्थान में विद्युत क्षेत्र में विकास एवं प्रबन्धन के लिये विद्युत आयोग की स्थापना की गई है, जो राज्य में पाँच भागों में बंटकर अपना कार्य सम्पादित करेगा। राज्य में ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोतों को विकसित करने हेतु केन्द्र तथा राज्य सरकार दोनों ही प्रयत्नशील है। अतः ऊर्जा के शीघ्र विकास हेतु राजस्थान, ऊर्जा संसाधनों के स्रोतों का भी विकास करेगा। राजस्थान में प्रतिदिन बिजली की आवश्यकता लगभग 300 लाख यूनिट है, किन्तु उसमें से मात्र 210 लाख यूनिट बिजली ही प्राप्त हो पाती है।
वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों में सौर ऊर्जा का महत्व ग्रामीण विकास हेतु विशेष है। यहाँ मानसून की कुछ अवधि को छोड़कर सूर्य की रोशनी, गर्मी सभी प्राप्त होते रहते हैं। सौर ऊर्जा सतत् एवं अनव्यकरणीय संसाधन है। इसमें गाँवों में स्ट्रीट ट्यूबलाइटों सोलर कुकर्स, वाटरहीटर्स, सोलर पम्प, टी.वी. आदि चलाये जा सकते है। एक वर्ग किमी. सूर्य ताप से 162 मेगावाट विद्युत उत्पन्न हो सकती है। सूर्यताप के मात्र 2 प्रतिशत भाग से ही सम्पूर्ण विश्व की ऊर्जा पूर्ति सम्भव है।
वैकल्पिक संसाधन एंव समस्याएँ
वैकल्पिक संसाधन, ऊर्जा के नष्ट होने वाले अन्य संसाधनों के समक्ष एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। पूर्व में यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि सूर्य, जल, पवन, जैव पदार्थ व अन्य सभी पदार्थाें से विद्युत का उत्पादन किया जा सकता है। परन्तु आज इन सभी संसाधनों से विद्युत का न केवल उत्पादन हो रहा है, बल्कि ये सामाजिक जीवन में भी काम आ रही है।
परन्तु जहाँ एक ओर इन वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों से विद्युत उत्पादित की जा रही है, वहीं इन संसाधनों से कुछ समस्यायें भी उत्पन्न हो रही है, जो निम्नलिखित है-
(क) सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने मे लागत बहुत आती है, जिसको आसानी से पूरा नहीं किया जा सकता है।
(ख) सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने हेतु एक बहुत बड़े क्षेत्र की आवश्यकता होती है। वहीं यह काम कर सकता है। जहाँ सूर्य की रोशनी तीव्र प्राप्त होती है।
(ग) सोलर कुकर से बनने वाला भोजन अधिक समय लेता है। जहाँ साधारण चावल को पकने में 10-15 मिनिट लगता है। जिससे ग्रामीण लोगों का समय खराब होता है।
(घ) ऋतु या मौसम परिवर्तन के कारण सौर ऊर्जा संयंत्रों का उपयोग हमेशा नहीं किया जा सकता है।
(ड.) पवन ऊर्जा संयंत्र सभी क्षेत्रों पर स्थापित नहीं किये जा सकते हैं। ये संयंत्र उन्हीं क्षेत्रों में स्थापित किये जा सकते हैं, जहाँ तीव्र गति से पवन चलती हो।
(च) हमेशा वायु की गति एक समान नहीं होने के कारण बिजली का उत्पादन प्रभावित होता है।
(छ) स्थानीय ग्राम पंचायतों की यह समस्या है कि बडी कंपनियों द्वारा जिस दर से राशि तय की जाती है, उस दर से उसका भुगतान नहीं हो पाता है।
(ज) पवन चक्की के कारण स्थानीय लोगों को ध्वनि प्रदूषण की समस्या से जूझना पड़ता है।
(झ) पवन चक्की को ऊँचे स्थानों या समुद्री किनारों पर स्थापित किया जाना अधिक लाभकारी होता है, जो सभी क्षेत्रों में सम्भव नहीं है।
() बायोगैस संयंत्र में ईंधन को इकट्ठा करने में अत्यधिक मेहनत लगती है।
(ट) बायोगैस संयंत्र से खाना बनाते समय घर में रोशनदान नहीं होने के कारण गोबर से बनी ईंधन वातावरण को प्रदूषित करती है जिससे स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
(ठ) जैव ईंधन के लगातार और पर्याप्त रूप से उपयोग न करने के कारण वनस्पति का नुकसान होता है जिसके चलते पर्यावरण के स्तर में गिरावट आती है।
(ड) जैव ईंधन से कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की संभावना कम ही  है।
इस प्रकार नांवा तहसील में वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों से ग्रामीण जीवन का तीव्रतम विकास होगा।

निष्कर्ष
(क) क्षेत्र में वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों के अन्य स्त्रोतों को भी खोज कर सकते है। (ख) वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों के उपयोग के फलस्वरूप कृषि में कृषकों द्वारा नई तकनीकों को अपनाया प्रारम्भ। (ग) क्षेत्र, भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित होने के कारण यहां सालभर सौर ऊर्जा उपलब्ध रहती है अतः यहां से अन्य क्षेत्रों को भी सौर ऊर्जा का वितरण होगा। (घ) क्षेत्र में स्थित अरावली पहाड़ी अन्तरालों पर पवन ऊर्जा का उत्पादन भारी मात्रा में होगा। (ड.) क्षेत्र में विभिन्न वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों के उपयोग से क्षेत्र को ऊर्जा उत्पादन केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सकेगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. डॉ. जगदीश सिंह व डॉ. काशीनाथ सिंह 1999 “आर्थिक भूगोल के मूल तत्व” ज्ञानोदय प्रकाशन, गोरखपुर। 2. डॉ. एच.एम. सक्सेना, डॉ. एल.सी. अग्रवाल 2016, “आर्थिक भूगोल” राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर। 3. डॉ. हरि मोहन सक्सेना 2018 “राजस्थान का भूगोल” राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर। 4. कौशिक एवं गौतम 2005 “संसाधन भूगोल” रस्तोगी पब्लिकेशन, मेरठ। 5. नन्दा वल्लय जोशी 1986 “आर्थिक भूगोल की सैद्धान्तिक रूपरेखा” राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर।