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किशनगढ़ की लघु चित्रकला पर कोरोना महामारी का प्रभाव | |||||||
Effect of Corona Epidemic on Miniature Painting of Kishangarh | |||||||
Paper Id :
16030 Submission Date :
2022-07-27 Acceptance Date :
2022-08-22 Publication Date :
2022-08-25
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सारांश |
हाल ही में गुजरे वक्त ने संसार भर के लोगो को आर्थिक, मानसिक, स्वास्थ्य व कई क्षेत्रों में भारी क्षति पहुँचाई है, जिसका प्रमुख कारण कोरोना जैसी वैश्विक महामारी है। इस मुश्किल समय ने जीवन के प्रत्येक पहलू पर गहरा प्रभाव डाला है तो भला कला वर्ग इस प्रभाव से मुक्त कैसे रह सकता है। कला के विभिन्न क्षेत्रों में कोरोना महामारी ने नकारात्मक व सकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव डाले है। विभिन्न प्रकार की कलाओं के कलाकारों ने भीषण आर्थिक और मानसिक समस्या का सामना किया है। इस समय का गहरा प्रभाव चित्रकला पर भी हुआ है। मुख्यत ऐसी कलाये जो पूर्व में संरक्षण के अभाव में क्षीण थी तथा उन्हें कोरोना के मुश्किल दौर ने अत्यधिक गहरा आघात पहुँचाया हैं। कई कलाकारों ने अपने कला क्षेत्र का त्याग करके अन्य व्यवसाय को अपनाया हैं। इस मुश्किल समय ने कला की नगरी किशनगढ़ पर भी अपनी गहरी छाप छोड़ी हैं। किशनगढ़ में प्रचलित परम्परागत लघु चित्रकला के क्षेत्र में कई कलाकारों ने अपने कला के व्यवसाय को मजबूरीवश छोड़ दिया हैं। यदि हम लघु चित्रकला के संरक्षण को लेकर चिंतन करे तो देखेगे की आज भी भारत में कई क्षेत्र ऐसे है, जिनमें परम्परागत चित्रकला के गुणों को अपने भीतर समेटे हुए लघुचित्र कला अपने प्राचीन रूप में प्रचलित हैं। परम्परागत चित्रकला के संरक्षण को लेकर के उचित प्रयास नहीं करेगे तो यह आने वाले कुछ समय बाद महज किताबो में अध्ययन कराये जाने वाले अध्याय के रूप में सिमटकर रह जायेगी।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Recently, the past time has caused huge damage to the people around the world in economic, mental, health and many fields, the main reason for which is the global epidemic like corona. This difficult time has made a deep impact on every aspect of life, so how can the art class remain free from this influence. The corona pandemic has had both negative and positive effects in various fields of art. Artists of different types of arts have faced severe economic and mental problems. This period also had a profound effect on painting. Mainly such arts which were weak in the past due to lack of protection and they have been deeply hurt by the difficult period of Corona. Many artists have given up their art field and took up other professions. This difficult time has also left a deep impression on the city of art, Kishangarh. In the field of traditional miniature painting prevalent in Kishangarh, many artists have left their art business forcibly. If we think about the conservation of miniature painting, then we will see that even today there are many areas in India, in which miniature art is prevalent in its ancient form, incorporating the qualities of traditional painting. If proper efforts are not made for the protection of traditional painting, then after some time it will be reduced to a mere chapter to be studied in books. | ||||||
मुख्य शब्द | वैश्विक महामारी, Covid-19, विश्वपटल, कोरोना, लॉक-डाउन, स्वास्थ्य, आपातकाल, बणी-ठणी, विधा-प्रेमी, राधा-माधव, आर्थिक तंगी, आवंटन, जीविकोपार्जन। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Global Pandemic, Covid-19, World, Corona, Lock-down, Health, Emergency, Bani-Thani, Vidya-lover, Radha-Madhav, Financial crunch, Allocation, Earning a living. | ||||||
प्रस्तावना |
विश्वपटल पर मानव की विकसित सभ्यता और तकनीक को कोरोना वायरस (Covid- 19) महामारी ने कड़ी चुनौती दी हैं। कोरोना नामक इस महामारी का जन्म कहा हुआ?, कब हुआ व कैसे हुआ? ऐसे कई प्रश्नों पर अनेको अवधारणाओं का प्रतिपादन हुआ लेकिन सटीक तरीके से इसका जवाब मिल पाना संभव नहीं। सत्य यह है की इस महामारी ने विस्तृत स्तर पर मानव जगत को क्षति पहुँचायी हैं। कोरोना महामारी ने वैश्विक, आर्थिक, सामाजिक व चिकित्सा के क्षेत्र में तो बुरा असर डाला ही है, इसी के साथ हमे विकास की दौड़ में भी पीछे धकेला है, जिससे उभरने में काफी समय लग जायेगा। वर्तमान में सरकार की प्रभावी नीतियों ने कोरोना महामारी पर क़ाबू पा लिया है, लेकिन लॉक-डाउन जैसे निर्णयों की वजह से आर्थिक मंदी व बेरोजगारी जैसी समस्याओं से लम्बे समय तक जूझना होगा।
कोरोना महामारी ने जीवन को कई स्तरों पर प्रभावित किया है तो इस दशा में कला पर इसका प्रभाव होना भी लाजमी हैं। चित्रकला, संगीतकला, नाट्यकला, लोक-कला आदि पर कोरोना महामारी ने अपना प्रभाव छोड़ा हैं। पहले ही इन कलाओ पर आर्थिक मंदी व जीवन के बदलते स्वरूप का प्रभाव था लेकिन अब कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न विकट स्थिति में कलाकारों ने अपने कला क्षेत्र को छोड अन्य व्यवसायों को अपना लिया हैं। कोरोना महामारी से उत्पन्न संकट से विभिन्न कलाओ में सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव हुआ हैं। सकरात्मक प्रभाव ये है कि कई कलाओ को नवीन विषय प्राप्त हुआ। अपनी कला का प्रदर्शन करने हेतु ऑनलाइन प्लेटफोर्म भी प्राप्त हुआ, जो कि कोरोना में हुए लॉकडाउन से ही संभव हुआ हैं। नकारात्मक प्रभाव ये हैं कि वर्षों से चली आ रही लोक कला व परम्परागत कलाओं को कोरोना महामारी से बहुत अधिक आघात पहुँचा है जिन कलाकरों ने अपना व्यवसाय परिवर्तन किया, जिसके कारण उनकी मूल कला का विकास स्थगित हो गया हैं।
17 वीं शताब्दी के कलाकारों ने किशनगढ़ चित्रशैली पर काम किया। उन्होंने किशनगढ़ की कला को विकसित किया व विश्वस्तर पर पहचान दी।[1] निहालचन्द, नानकराम व रामलाल जैसे अनेक कलाकारों ने किशनगढ़ शैली के सुन्दर चित्रों का चित्रण किया। निहालचन्द ने किशनगढ़ के प्रसिद्ध चित्र बणी-ठणी जो की मोनोलिसा से भी सुन्दर व श्रेष्ट मानी जाती है का चित्रण करके किशनगढ़ चित्रकला को विश्व स्तरीय पहचान दिलायी।[2] किशनगढ़ शैली के चित्रों का चित्रण आज भी कई कलाकार कर रहे हैं। किन्तु ये भी सत्य है कि वर्तमान में किशनगढ़ की पम्परागत कला में चित्रात्मक गुणों का हास हुआ हैं। वर्तमान के तकनीकी युग में कलाकार आर्थिक संकट की मार झेल रहे है, हालाँकि कुछ कलाकार किशनगढ़ की परम्परागत कला में नवीनतम प्रयोग भी कर रहे हैं। परम्परागत कला के स्वरूप को वर्तमान के कलाकारों द्वारा आगे विकसित करना मुश्किल होगा, जिसका प्रमुख कारण दर्शको का रुख परम्परागत कला की तरफ कम हैं। हाल ही में कोरोना महामारी द्वारा उत्पन्न संकट ने कलाकारों के आर्थिक स्तर को संकट में डाल दिया हैं। कई कलाकारों ने आर्थिक संकट से परेशान होकर चित्रकारिता के कार्य को छोड़कर अन्य व्यवसाय अपना लिया हैं। उदाहरण स्वरूप किशनगढ़ की प्रसिद्ध कृष्णा आर्ट गैलेरी के मालिक नेमीचन्द सोनी ने भी अब अपने यहाँ के कलाकारों को निकाल दिया है तथा “कृष्णा आर्ट गैलेरी” को गेस्ट हॉउस बनाने की योजना पर कार्य कर रहे हैं। कला व कलाकारों द्वारा संरक्षण को लेकर के सरकार द्वारा योजनाये तो चलायी जा रही लेकिन ये प्रयास नाकाफी हैं।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. कोरोना महामारी से फैली समस्या तथा मानव जीवन पर कोरोना महामारी के प्रभावों की जानकारी प्रस्तुत करना।
2. कोरोना महामारी से उत्पन्न समस्या के कारण कला के विभिन्न क्षेत्रो में हुए नकारात्मक व सकारात्मक प्रभावों की जानकारी प्रस्तुत करना।
3. वर्तमान में प्रचलित किशनगढ़ की परम्परागत लघु चित्रकला पर कोरोना महामारी के प्रभावों का अध्ययन।
4. किशनगढ़ के ऐसे कलाकार जो आज भी लघु चित्रकला की परम्परा को जीवित रखे हुए है, उनके जीवन-स्तर पर कोरोना महामारी के प्रभावो का अध्ययन करना।
5. कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक समस्या से परेशान कलाकारों व कला के संरक्षण हेतु राज्य व केंद्र सरकार तथा कला संस्था के प्रयासों की जानकारी प्रस्तुत करना। |
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साहित्यावलोकन | किशनगढ़ की लघु चित्रकला के सन्दर्भ में इस शोध के महत्व, उद्देश्य, तथा शोध पद्धति का विवरण प्रस्तुत करते हुए इस विषय पर लिखे गए साहित्य, लेख एवं शोध पत्र का अवलोकन, विश्लेषण एवं मुल्यांकन किया गया हैं। डॉ अविनाश पारिक ने अपनी “किशनगढ़ राज्य का इतिहास” में किशनगढ़ राज्य के कलात्मक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विषयों पर प्रस्तुतीकरण दिया हैं। डॉ. अभिलाषा गोयल ने अपनी पुस्तक “किशनगढ़ की चित्रकला एक विवेचनात्मक अध्ययन” में किशनगढ़ की चित्रकला व चित्रकारों पर अध्ययन प्रस्तुत किया हैं। किशनगढ़ की लघु चित्रकला के विभिन्न विषयों व उनकी तकनीको पर विश्लेषित अध्ययन प्रस्तुत किया हैं। डॉ. अन्नपूर्णा शुक्ला ने भी अपनी पुस्तक “किशनगढ़ की चित्र शैली” किशनगढ़ की लघु चित्रकला का उदभव, विकास, प्रमुख चित्रकार, चित्र विषय तथा बणी-ठणी चित्र की विशेषताओ को प्रस्तुत किया हैं। डॉ. रीता प्रताप ने अपनी पुस्तक “भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला” का इतिहास में भारतीय चित्रकला व मूर्तिकला का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया हैं। उपरोक्त सभी पुस्तकों में किशनगढ़ की कला पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। 30 जनवरी 2020 को ऑनलाइन वेबसाईट www.patrika.com पर डॉ. नरेन्द्र द्वारा लिखित लेख “किशनगढ़ शैली को संरक्षण की जरुरत” को प्रस्तुत किया गया। जिसमें किशनगढ़ शैली के वर्तमान में दशा व उसके संरक्षण की आवश्यकता पर चर्चा की गयी हैं। 06 जून 2021 को ऑनलाइन वेबसाईट www.jagran.com पर विनय कुमार तिवारी द्वारा लिखित लेख “कोरोना संक्रमण से देश के कलाकारों के सामने आर्थिक संकट, मदद के लिए सरकार की नीतियों का इन्तजार” को प्रस्तुत किया गया। इस लेख में कलाकारों की आर्थिक रूप से बिगड़ी हुयी वर्तमान दशा व कलाकारों के प्रति सरकार की नीतिया कितनी कारगर है या नहीं पर चर्चा की गयी। इसलिए इन सभी पुस्तकों व महत्वपूर्ण लेखो की जानकारी इस शोध में उपयोगी रहे हैं। |
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मुख्य पाठ |
कोरोना महामारी का परिचय एक नए किस्म के कोरोना वायरस की पहचान संक्रमण के रूप में मध्य चीन के वुहान शहर में 2019 के मध्य दिसंबर में हुई। 9 फरवरी तक व्यापक परीक्षण में 88,000 से अधिक पुष्ट मामलों का खुलासा हुआ तथा जिनमें से कुछ स्वास्थ्यकर्मी भी थें। 20 मार्च 2020 तक थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, मकाऊ, हांगकांग, संयुक्त राज्य अमेरिका, सिंगापुर, वियतनाम, भारत, ईरान, इराक, इटली, कतर, दुबई, कुवैत और अन्य 160 देशों में पुष्टि के मामले सामने आए हैं। 9 जून 2020 तक विश्व में 72.62 लाख लोग संक्रमण का शिकार हुए तथा 4.11 लाख लोग काल कलवित हुये।[3] 23 जनवरी 2020 को, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रकोप को अंतरराष्ट्रीय चिंता का एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के खिलाफ फैसला किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोरोना वायरस के प्रसार को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया गया। इस प्रकार का आपातकाल विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2009 के बाद छठा आपातकाल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस की महामारी को नया नाम कोविड-19 दिया। इस महामारी के कारण वैश्वीकृत दुनिया की एक दूसरे के साथ मजबूती से जुड़ी हुई प्रणालियां पूरी तरह से बदल गई हैं। कोरोना वायरस की महामारी के कारण वैश्विक स्वास्थ्य संकट गहराता जा रहा है और अनेक लोगों के लिए लॉकडाउन नया ‘नियम’ बन गया हैं। दुनिया के कई हिस्सों में, सीमाएं बंद है, हवाई अड्डे, होटल, व्यवसाय और शैक्षणिक संस्थान बंद हैं। ये अभूतपूर्व उपाय कुछ समाजों के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ रहे हैं और कई अर्थव्यवस्थाओं को बाधित कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां छूट रही है और व्यापक पैमाने पर भूखमरी की काली छाया बढ़ रही है। आज की सर्वाच्च प्राथमिकता जीवन बचाना है। कोविड-19 ने न केवल संपत्ति की कीमतों और शेयर बाजारों को ध्वस्त कर दिया है, बल्कि वास्तविक जीवन और वास्तविक गतिविधियों को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुनिया मंदी की स्थिति में जा चुकी है, अगले साल इस मंदी के पूरा स्वरूप ग्रहण कर लेने की संभावना है। वैश्विक जीडीपी 2021 के लिए अनुमानतः 2.5 प्रतिशत से नीचे आ गयी हैं। जब उत्पादन रुक जाता है, तो यही अपेक्षित परिणाम होता है। व्यवसायिक संचालन को बंद करने के लिए विवश होना पड़ा है, जिसके कारण हर जगह उत्पादन में गिरावट हुई हैं। उस समय के तात्कालिक समय के अनुसार कोविड-19 कोरोना वायरस महामारी के कारण त्रासद मानवीय परिणामों के अलावा इसने आर्थिक अनिश्चितता को भी बढ़ा दिया है और इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2020 में एक ट्रिलियन डॉलर का झटका लगेगा। उसी समय यूएनसीटीएडी का मानना था कि ‘भारत को कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण 348 मिलियन डॉलर का व्यापार घाटा होगा। कोरोना वायरस महामारी के कारण दुनिया भर में लगभग 25 मिलियन नौकरियों पर गाज गिरेगी। आज इस बात को लेकर आम सहमति है कि अगले डेढ़ से 2 साल तक पूरी दुनिया किसी न किसी रूप से संभवतः कोविड-19 के तात्कालिक प्रभाव से जूझती रहेगी और उसके बाद भी पुनर्निर्माण और इसके स्थायी प्रभाव निःसंदेह कई वर्षा तक महसूस किये जायेगे।[4] कोरोना वायरस की महामारी स्थायी तरीकों से समाज को नयी दिशा प्रदान करेगीं। लोगों के यात्रा करने, घर खरीदने, सुरक्षा, निगरानी तथा भाषा के प्रयोग के तौर-तरीकों के बारे में बदलाव आया है। महामारी ने विभिन्न तरीकों से धर्म को प्रभावित किया है और मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च जैसे विभिन्न धर्मों से जुड़े पूजा के स्थल बंद हो गए थे तथा विभिन्न त्यौहारों एवं पर्वा से जुड़ी तीर्थयात्राओं पर रोक लग गई थी। इस महामारी ने मानव जाती के सामाजिक, आर्थिक, वैश्विक और स्वास्थ्य आदि क्षेत्र में गहरा नकारात्मक प्रभाव डाला हैं। समाज में घटित होने वाली प्रत्येक घटना भौतिक रूप से
नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव उत्पन्न करती हैं। जिस प्रकार
हमारे जीवन में कोरोना महामारी ने नकारात्मक प्रभाव को उजागर किया है, तो इसने कुछ सकारात्मक प्रभाव भी
हमारे जीवन में उजागर किया हैं। कोरोना महामारी का सबसे बड़ा सकारात्मक प्रभाव ये
है की इस महामारी ने हमें जीवन में किसी भी समस्या को रचनात्मक तरीके से हल करने
और सबसे महत्वपूर्ण अनुकूलनशीलता जैसे कौशल सीखने की आवश्यकता के प्रति सचेत किया
हैं।
नृत्यकला, संगीतकला, नाटककला, चित्रकला, मूर्तिकला, और सिनेमा आदि ऐसी प्रदर्शन कला के अंतर्गत आती है जो एक कलाकार की
प्रतिभा से व्युत्पन्न हैं। कलाकार लोगो को भौतिक सुख सुविधाओं के मध्य उन्हें
आत्मिक और मनोरंजनात्मक सुख से परिपूरित करते है, लेकिन
वर्तमान में कोरोना महामारी ने कला के विभिन्न क्षेत्रो में गहरा आघात दिया हैं।
देश में कुछ ही ऐसे शहर है जहां मूर्तिकला और चित्रकला से जुड़ी प्रदर्शनी लगाई
जाती रही है तथा उसमें भी इनका दर्शक एक खास वर्ग का ही होता है। देश में नाट्य
प्रेमी उतने ही बचे हैं जिसने इससे जुड़े हैं या इन विषयों से जुड़े अध्येता हैं।
नृत्य का अपना एक बढ़ा हुआ दायरा तो है लेकिन आने वाले समय में सिनेमा की दुनिया के
साथ-साथ इस पर भी संकट के बादल दिखने लगे हैं। कोरोना की वैश्विक आपदा ने
प्रदर्शनकारी कलाओं में जिस तरह के असर डाले हैं उसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।[5]
(चित्र-1) फड़ शैली पर चित्रण करती महिला
कलाकार कोरोना
संक्रमण के दौरान पूरे देश में कलाकारों के सामने बड़ा संकट उत्पन्न हो गया हैं। ये
संकट आर्थिक है, इसका असर उनके मन-मस्तिष्क पर भी
पड़ने लगा हैं। कोरोना की पहली लहर के दौरान भी कलाकारों के सामने कला आयोजन बंद
होने से जीविकोपार्जन का संकट आ गया था। कोरोना महामारी के कारण देश भर में कला
क्षेत्र के लोग रोजी-रोटी के लिए तरस गए। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि दुनिया भर
के लोगों को अपनी कलाओं और हुनर से जागरूक करने वाले लोग अपने अधिकारों के लिए आगे
नहीं आये। उन्होंने अपने आप ही सब कुछ ठीक होने में संतुष्टि समझी, लेकिन उनको क्या पता था कि ये दौर बहुत लम्बा
चलेगा और मंच, नुक्कड़ व् सिनेमा उनसे कोसों दूर
हो जायेगे, परिणामस्वरूप आज उनके पास काम
नहीं हैं। आर्थिक रूप से सक्षम कलाकारों पर इस महामारी का इतना ज्यादा असर नहीं
पड़ेगा लेकिन परदे के पीछे के कलाकारों का आज बुरा हाल है। मजदूरों और प्रवासी लोगो की खबरें, योजनाएं लॉकडाउन में ही कैद होकर रह गई हैं। भारत
के विभिन्न लोकनाट्य यथा रामलीला, रासलीला, नौटंकी, ढोला, स्वांग, जात्रा, तमाशा, ख्याल, रम्मान, यक्षगान, दशावतार, करियाला, ओट्टन थुलाल, तेरुक्कुट्टू, भाम कलापम, लोकगायन, वादन, जवाबी कीर्तन, लोकनृत्य, कठपुतली नृत्य, तथा चित्रकारी आदि से जुड़े लाखों कलाकार आज
रोजी-रोटी की समस्या से ग्रसित हैं।[6] लोक कलाकारों के जीवन और कला पर कोरोना महामारी का सीधा असर देखने को
मिल रहा है। इन कलाकारों की रोजी-रोटी व आजीविका का साधन भी ये त्यौहार, जागरण, शादियां या भागवत होते थे। अब
लॉकडाउन के चलते इनका जीवन-बसर मुश्किल हो गया है। कुछ लोक कलाकार सोशल मीडिया
जैसे फेसबुक पेज अथवा यू-ट्यूब में लाइव आकर लोगों का भरपूर मनोरंजन कर अपने आपको
लोगों के बीच जीवंत रखे हुए हैं। एक लम्बे समय तक संग्रहालय, प्रदर्शनियाँ, चित्रकला कार्यशालाएं व अकादमिक गतिविधियाँ कोरोना
महामारी के कारण बंद रही थी। इस दौर के मध्य में इन्टरनेट सेवा एक वरदान साबित हुई, जिसने चित्रकला तथा अन्य प्रदर्शनी कला को एक
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म प्रदान किया, जिससे विभिन्न कलाओ को मुखरित
होने का एक अवसर प्राप्त हुआ। जनमानस को ऑनलाइन मंच पर उपलब्ध कला सामग्री से
अवसाद मुक्त होने में मदद अवश्य मिली यह इस महामारी का एक सकारात्मक प्रभाव हैं। किशनगढ़ की लघु चित्रकला पर कोरोना महामारी का प्रभाव- किशनगढ़ राज्य अपने शौर्य व सांस्कृतिक दर्पण के लिए प्रसिद्ध रहा हैं। यहाँ के राजा युद्ध परिस्थिति में वीरता से बलिदान को तैयार रहते, वही शांति काल में राज्य के कलाप्रेम को जाग्रत करते व शिल्पकला का भी विकास करते। किशनगढ़ शैली अपनी धार्मिकता के कारण प्रसिद्ध हुई तथा इसके मूल में कई पीढियों से धार्मिकता रही हैं। यहाँ की कला को प्रकाश में लाने का श्रेय पूर्ण रूप से डॉ. फैयाज अली व विद्वान् एरिक डिंकिन्सन को जाता हैं।
महाराजा
किशनसिंह जी के द्वारा 1609 ई. में किशनगढ़ राज्य
स्थापना के उपरान्त लगभग 1658 से 1706 ई. के मध्य साहित्य व कला के क्षेत्र में रचनाएँ होना आरंभ हो गई।
प्रारम्भ में सहसमल, भारमल व हरिसिंह आदि राजाओं के
समय में कला व साहित्य के क्षेत्र में इतना विकास नहीं हो सका, क्योंकि युद्ध सम्बन्धी समस्याओं से वे घिरे हुए
थे। 1658 से 1706 ई. के मध्य में मानसिंह व रूपसिंह जैसे कलानुरागी शासक के काल में
उल्लेखनीय कार्य किशनगढ़ की कला में होना शुरू हुआ।[7] किशनगढ़ राज्य के पाँचवे
राजा के समय युद्ध सम्बन्धी समस्याओं के चलते रूपनगढ़ को नयी राजधानी बनाया गया जो
कि सावंत सिंह के समय तक रही। रूपसिंह विधा प्रेमी व भक्त हृदय राजा थे। भवानीदास, डालचन्द व कल्याणदास इनके समय के ही चित्रकार थे।
इन्होने राधा-माधव की लीलाओं को चित्रों के माध्यम से उकेरने का कार्य शुरू किया।
डॉ. फैयाज अली खां ने अपने शोध में इस बात को स्पष्ट किया हैं कि कल्याण राय जी की
मूर्ति व महाप्रभु वल्लभाचार्य के दोनों चित्र प्रतीकों के रूप में है, जिन्होंने किशनगढ़ शैली को कला का विषय प्रदान
किया। इन दो प्रतिरूपों के आधार पर ही किशनगढ़ चित्र शैली में राधाकृष्ण की लीलाओ
को चित्रित किया गया हैं। मानसिंह 1658 ई. में गद्दी पर बैठे, वे स्वयं कवि और कला मर्मज्ञ शासक थे। वैष्णव भक्त
होने के कारण इनकी भक्ति सम्बन्धी विषयों में अत्यधिक रूचि थी। वर्तमान में इनके
बनाये कुछ चित्र कपड़ा भण्डार में मिल जाते हैं। किशनगढ़ चित्रकला के विकास में
मानसिंह के पुत्र राजसिंह का विशेष योगदान हैं, यह स्वयं कला रसिक एवं चित्रकार थे। इनके द्वारा 33 ग्रंथो की रचना की गयी, जिनका प्रभाव अन्य कलाकारों की
कला पर दृष्टिगोचर होता हैं। इन्होने अपनी चित्रशाला में चित्रकार सूरध्वज को
मुख्य प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया।
महाराजा सावंतसिंह किशनगढ़ दरबार के अत्यंत उच्च कोटि के विभूति हो गए। नागरीदास के नाम से ये अपनी कविताओ की रचना करते थे। इनके द्वारा रचित पदों, कवित्तों एवं सवैयो आदि पर बनाये गए चित्रों ने किशनगढ़ शैली पर चार चाँद लगा दिए। इन्ही की प्रेरणा से किशनगढ़ राज्य साहित्य, चित्रकला, संगीतकला व संस्कृत भाषा में ठोस व सशक्त बना। इन्ही के समय में सूरध्वज निहालचन्द ने 1735 से 1757 ई. तक इनकी काव्य रचनाओं पर कार्य किया।[8] 1778 ई. म में इन्होने विश्व प्रसिद्ध कृति राधा 1⁄4बणी-ठणी1⁄2 बनाया था। इस चित्र को बनाकर निहालचन्द ने किशनगढ़ नगर को सम्पूर्ण विश्व में पहचान दिलवायी। नागरीदास के भाई बहादुरसिंह के राज्य में चित्रकार नानकराम ने अनेक चित्र बनाये। किशनगढ़ चित्र शैली में निहालचंद, अमरचन्द व निहालचन्द के पोत्र सीताराम का नाम आता है जो इस शैली के स्तम्भ माने जाते हैं। किशनगढ़ चित्रकला कला के क्षेत्र में विश्व स्तर पर एक अलग ही पहचान रखती हैं। किशनगढ़ चित्र शैली के कलाकारों ने सौंदर्य के नवीन स्वरूपों को चित्रित किया। राधा-कृष्ण, नागर समुच्चयन, बारहमासा, गीत-गोविन्द, भागवत-पुराण, वैभव-विलास व राग-रागनियाँ आदि विषयों पर सुंदर चित्रण किया हैं।[9] विश्व प्रसिद्ध चित्र बणी-ठणी ने किशनगढ़ के कला सौन्दर्य को विश्व स्तर की कलाओ में प्रतिष्ठित किया हैं। अमीरचंद, धन्ना, भंवरलाल, छोटू, सुरध्वज, मोरध्वज निहालचन्द व नानकराम आदि किशनगढ़ शैली के चित्रकारों ने कला को निरंतर विकास के पथ की तरफ अग्रसर किया हैं।[10] किशनगढ़ शैली के परम्परागत चित्रकारों के कला कार्य को वर्तमान के नव चित्रकारों ने जारी रखा है, लेकिन उन के चित्रात्मक गुणों में अब पूर्व के भांति समानता न रहकर के हास हुआ हैं। इसके अलावा कुछ चित्रकार ऐसे भी हैं जो परम्परागत चित्रों में समयानुसार परिवर्तन करने के पक्षधर हैं। पूर्व में घटित समय ने कलाकारों के सामने आर्थिक तंगी की एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है जिसका प्रमुख कारण कोरोना ज ैसी वैश्विक महामारी हैं। कोरोना महामारी के कारण लगाए गये लम्बे लॉकडाउन की वजह से विश्वभर की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गयी है, जिसका असर विभिन्न व्यवसायों व लघु-उधोगो पर नजर आया हैं। किशनगढ़ चित्रकला के ऐसे कलाकार जिन्होंने अपनी कला के दम पर किशनगढ़ की परम्परागत चित्रकला को जीवित रखा हुआ है, उनके जीवन पर इसका गहरा असर पडा हैं। पहले से ही सरकार का परम्परागत कला के संरक्षण की तरफ कोई ध्यान नहीं और अब तो कोरोना से उत्पन्न आर्थिक तंगी ने इनके जीवन बसर को ओर भी कठिन कर दिया हैं। कई छोटे चित्रकार जो चित्रकला के माध्यम से अपना जीवन-बसर कर रहे थे, उन्होंने अब आर्थिक तंगी की वजह से अन्य व्यवसायों को अपना लिया हैं। कुछ कलाकार कई अन्य छोटे-बड़े कलाकारों को अपने कर्यकक्ष में कार्य करने के अवसर प्रदान करते है, जिससे अन्य कलाकारों की आजीविका चलती हैं। कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट के कारण इन कलाकारों का समूह अन्य व्यवसाय की तलाश हेतु अब बिखर रहा हैं। किशनगढ़ की चित्रकला पर
कोरोना का कितना बुरा असर हुआ है? इसे हम कृष्णा आर्ट गैलरी के माध्यम से जान सकते हैं। कृष्णा आर्ट गैलरी जो
कभी किशनगढ़ की कला का केंद्र हुआ करती थी और जिसने किशनगढ़ के कलाकारो को अपना हुनर
प्रदर्शित करने का भरपूर अवसर प्रदान किया। कृष्णा आर्ट गैलरी ने कई कलाकारों व
शिल्पकारो को रोजगार भी प्रदान किया। कृष्णा आर्ट गैल में ब्रजमोहन कुमावत, भंवरलाल, मोहम्मद अली, अमरचन्द, बिरजू, मुस्तान मोहम्मद व उम्मेद सिंह आदि कलाकार कार्यरत्त थे। वर्तमान में कोरोना
महामारी से उत्पन्न समस्या के कारण कृष्णा आर्ट गैलेरी ने अपने सारे कलाकारों को
कार्य से निकाल दिया है तथा अब आर्ट गैलेरी से गेस्ट हाउस बनाने का कार्य जारी
हैं। कृष्णा आर्ट गैलेरी के संस्थापक
नेमीचंद जी सोनी का कहना है की- “लोगो का ध्यान परम्परागत लघु चित्रकला की तरफ बहुत कम हो गया है अतः कला
व्यवसाय में अब मंदी आ गई हैं। लोग अब परम्परागत लघु चित्रकला में बने चित्रों को
कम खरीदते हैं। कृष्णा आर्ट गैलेरी कलाकारों का खर्च वहन करने में असमर्थ है, क्योकि मुनाफा होने के अवसर अब बहुत कम हो गए हैं।” किशनगढ़ के शहर में तांगा स्टेंड के समीप स्थित अनुज ग्लास
स्टेंड नाम से एक प्रसिद्ध दुकान है, जिसमे पहले कभी र्कइ कलाकार अपनी
चित्रों को फ्रेम करवाने हेतु आते थे लेकिन कोरोना महामारी के बाद उनके पास ऐसे कलाकरों
की काफी कमी हो गयी हैं। हम ये जान सकते है कि किशनगढ़ के चित्रकारो पर कोरोना महामारी
से उत्पन्न आर्थिक समस्या के कारण कितना बुरा प्रभाव पड़ा हैं। परम्परागत लघु
चित्रकला की आज महत्ती आवश्यकता हो गई हैं। किशनगढ़ की परम्परागत लघु चित्रकला के
संरक्षण को लेकर के कुछ कलाकारों का अपना वक्तव्य हैं। किशनगढ़ चित्र शैली के
ख्यातिलब्ध कलाकार शहजाद अली का कहना है कि-परम्परागत
लघु चित्रकला में बने चित्रों को कम खरीदते हैं। कृष्णा आर्ट गैलेरी कलाकारों का
खर्च वहन करने में असमर्थ है, क्योकि मुनाफा होने के अवसर अब
बहुत कम हो गए हैं।” किशनगढ़ के शहर में तांगा स्टेंड
के समीप स्थित अनुज ग्लास स्टेंड नाम से एक प्रसिद्ध दुकान है, जिसमे पहले कभी कई कलाकार अपनी चित्रों को फ्रेम
करवाने हेतु आते थे लेकिन कोरोना महामारी के बाद उनके पास ऐसे कलाकरों की काफी कमी
हो गयी हैं। हम ये जान सकते है कि किशनगढ़ के चित्रकारों पर कोरोना महामारी से
उत्पन्न आर्थिक समस्या के कारण कितना बुरा प्रभाव पड़ा हैं। परम्परागत लघु चित्रकला
की आज महत्ती आवश्यकता हो गई हैं। किशनगढ़ की परम्परागत लघु चित्रकला के संरक्षण को
लेकर के कुछ कलाकारों का अपना वक्तव्य हैं। किशनगढ़ चित्र शैली के ख्यातिलब्ध
कलाकार शहजाद अली का कहना है कि- “परम्परागत लघु चित्रकला को विशेष
संरक्षण की आवश्यकता हैं।” इसके अलावा चित्रकार बिरदीचन्द
मालाकर का कहना है कि- “बिना
राजकीय संरक्षण के कला विकसित नहीं हो सकती है इसलिए चित्रकला को संरक्षण व
प्रोत्साहन देने की आवश्यकता हैं।”[11] किशनगढ़ के परम्परागत लघु
चित्रकला के संरक्षण हेतु आवश्यक है की कलाकार, कला संस्थाये व सरकार मिलकर इस पर विचार करे और
योजनाये बनाये। ऐसा सम्भव है की नवीन प्रयोगों के माध्यम से लोगो के मध्य
परम्परागत कला को जीवित रखा जा सकता है, किन्तु परिवर्तन की सीमा इतनी
अधिक ना हो जाये की कला का मूल स्वरूप ही बदल जाये। लोगो को भी अपनी परम्परागत कला
के महत्व को जानना व समझना चाहिये तथा कलाकार और कला के संरक्षण पर विचार करना
चाहिये। कोरोना संक्रमण के दौरान पूरे देश में कलाकारों के सामने बड़ा आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया हैं। इसका असर उनके मानस पर भी पड़ने लगा हैं। कोरोना की पहली लहर के दौरान भी कलाकारों के सामने कला आयोजन बंद होने से जीविकोपार्जन का संकट आ गया था, तब संस्कृति मंत्रालय की तरफ से ये आश्वासन दिया गया था कि क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से कलाकारों की एक सूची तैयार की जाएगी और उस सूची के आधार पर उनकी मदद की जाएगी। क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से किन कलाकारों की मदद की गई या कितने कलाकारों को आर्थिक मदद दी गई ये ज्ञात नहीं हो पाया हैं। अगर सरकार ने इन केंद्रों के माध्यम से कलाकारों की मदद की है तो उस योजना का प्रचार कला जगत के लोगों के बीच इस तरह से किया जाना चाहिए कि ज्यादातर लोग उसका फायदा उठा सकें। अभी कुछ दिनों पहले संस्कार भारती ने कलाकारों की मदद के उपायों पर विचार के लिए एक गोष्ठी का आयोजन किया था, जिसमें देशभर के कला और संस्कृति से जुड़े लोगों ने भाग लिया था। उस बैठक का स्वर भी यही था कि कलाकारों को अपेक्षित मदद नहीं मिल पा रही है, लिहाजा संस्कार भारती को पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी आगे आना चाहिए। इसी तरह से अन्य संस्थाएं भी कलाकारों की मदद कर रही हैं पर ये नाकाफी है। संस्कृति
मंत्रालय के 2021-22 के बजट को देखें तो उसमें
चार सौ पचपन करोड़ रुपए कला संस्कृति विकास योजना, संग्रहालय के विकास, जन्म शताब्दियों के आयोजन आदि के लिए आवंटित किए
गए हैं। इसके अलावा पूर्वात्तर में संस्कृति से जुड़ी विभिन्न योजनाओं के लिए एक सौ
दो करोड़ आवंटित किए गए हैं। इन दोनों राशियों को मिलाकर देखें तो करीब साढे पांच
सौ करोड़ से अधिक की राशि संस्कृति मंत्रालय के पास है, जिसको प्रशासनिक फैसलों से कलाकारों की मदद की तरफ
मोड़ा जा सकता हैं।[12] आवंटन के तहत मंत्रालय को कोई ऐसी योजना बनानी चाहिए जिससे कि देशभर के
विभिन्न हिस्सों में फैले कलाकारों को मदद मिल सके। संस्कृति मंत्रालय के अधीन
राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली जो अकादमियां हैं उनको भी आगे आकर मदद की पहल
करनी चाहिए। संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी, साहित्य अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय आदि जैसी संस्थाओं को एक साथ आकर समन्वय बनाकर
कलाकारों की मदद करने के लिए कार्ययोजना बनाकर काम करना चाहिए। केंद्र सरकार व
राज्य सरकार को मिलकर लोक कलाकार व परम्परागत कलाकारों की सहायता हेतु आवश्यक योजनाओ
को लागु करना चाहिये तथा विभिन्न कला संस्थाओ को भी लोक व परम्परागत कला के विकास
हेतु भरसक प्रयास करना चाहिये। |
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प्रयुक्त उपकरण | शोध-पत्र को संपन्न करने हेतु आवश्यक पत्रिका, ई-वेबसाईट, ई-न्यूज पेपर, ई-बुक, ई-मैगजीन व कुछ किताबो का सहारा लिया गया हैं। | ||||||
निष्कर्ष |
कला मनुष्य को आनन्द प्रदान करती हैं। कलाकार अपनी कृति से दर्शको के मन को मोह लेता है और उन्हें कलात्मक सौन्दर्य का दर्शन कराता हैं। जिस प्रकार जीवन के सौन्दर्य पक्ष को कलाकार अपनी कला के माध्यम से दर्शक के सामने प्रस्तुत करता है, उसी प्रकार दर्शक भी कलात्मक सौन्दर्य को अनभूत करता है तथा कलाकार की कृति को खरीदता हैं। कलाकार दर्शको को आकर्षित करके कृतियों को खरीदने हेतु अपने व्यवसाय को स्थापित करता है। राजा-महाराजाओं के काल में कलाकारों को राजाओं का संरक्षण प्राप्त था, जो अपने अनुरूप कलाकार से कला कार्य करवाते थे तथा कलाकारों को उपहार व संरक्षण प्रदान करते थे। वर्तमान में बहुत कुछ परिवर्तित हो चूका हैं। अब कलाकार अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्र होकर कला रचनायंे कर सकते है। उन पर किसी भी प्रकार दबाव व बंदिश नहीं हैं। ठीक उसी प्रकार आज दर्शक वर्ग भी स्वतन्त्र होकर अपनी इच्छानुरूप चित्रण विषय की मांग करता हैं। तकनीकी विकास के कारण परम्परागत चित्रों की मांग कम हो चुकी हैं। आजकल परम्परागत कला व लोक कला को कला संस्थान तथा कुछ लोग ही पसंद करते हैं। आधुनिक कला के विकास से अब परम्परागत व लोक कला महज कुछ लोगो के पसंद का विषय बन कर रह गयी हैं। यही एक प्रमुख कारण है की कलाकारों का रुझान अब परिवर्तनवादी कला व दर्शको के अनुरूप कला की तरफ हो गया हैं। कुछ कलाकार ऐसे भी है जिन्हें परम्परागत लघु चित्रकला के अस्तित्व की चिंता है, जो परम्परागत कला के संरक्षण हेतु सरकार व कला संस्थाओ से गुहार लगाते हैं। कई कलाकार ऐसे भी है जो पुराने समय से चली आ रही परम्परागत कला में कार्य करते आ रहे है, लेकिन अब उनका जीवन-यापन कलाकार्य से संभव नहीं अतः वे अपना व्यवसाय परिवर्तित कर रहे हैं।
कलाकारो को अभी ये सभी समस्या घेरे हुए थी लेकिन कोरोना महामारी में लॉक-डाउन की वजह से भी एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी हैं। लम्बे समय तक लॉक-डाउन से उत्पन्न आर्थिक समस्या के कारणवश कलाकारों ने अपना व्यवसाय परिवर्तन किया हैं। कलाकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने वाला दर्शक वर्ग खुद आर्थिक समस्या से ग्रस्त है, जिस कारण चित्रों की खरीददारी में बड़े स्तर पर कमी आयी हैं। कलाकार वर्ग आर्थिक समस्या से ग्रस्त होकर अपने परम्परागत कला कार्य को छोड़कर अन्य व्यवसाय अपना रहा है जिससे अब परम्परागत कला में कार्य करने वाले कलाकारो की कमी होने लगी हैं। हालाँकि कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न दुर्दशा का प्रभाव बड़े-बड़े कलाकारों पर कम हुआ हैं। कलाकारों का कई समय से चला आ रहा परम्परागत चित्रण की तरफ रुझान कम होना एक बड़ी समस्या की ओर हमारा ध्यान इंगित करता है, जो की परम्परागत लघु चित्रण कला के संरक्षण को लेकर के हैं। कुछ कलाकार कई अन्य छोटे-बड़े कलाकारों को अपने कर्यकक्ष में कार्य प्रदान करने के अवसर प्रदान करते है जिससे अन्य कलाकारों की आजीविका चलती हैं। कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट के कारण इन कलाकारों का समूह अब अन्य व्यवसाय की तलाश हेतु बिखर रहा है। किशनगढ़ की परम्परागत लघु चित्र कला ही नहीं अपितु ऐसी ओर भी लोक व पारम्परिक कलाये है जो ऐसी ही समस्या से जूझ रही हैं। इसके अलावा परम्परागत लघु चित्रकला के गुणों में आयी गिरावट का प्रमुख कारण कलाकारों को पर्याप्त शुल्क का ना मिल पाना व आर्थिक तंगी हैं।
यदि किशनगढ़ की परम्परागत लघु चित्रकला पूर्व के भाँती ही भविष्य में भी विकसित व प्रचलित रहे तो इस हेतु आवश्यक है कि राज्य व केंद्र सरकार को इनके संरक्षण हेतु उचित प्रयास करने होगे। कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट से ग्रसित कलाकारों को सहायता व प्रोत्साहन का कार्य सरकार व कला संस्थाओ द्वारा किया जाना चाहिये। केंद्र सरकार व राज्य सरकार को मिलकर लोक कलाकार व परम्परागत कलाकारों की सहायता हेतु आवश्यक योजनाओ को लागु करना चाहिये तथा विभिन्न कला संस्थाओ को भी लोक व परम्परागत कला के विकास हेतु भरसक प्रयास करना चाहिये। दर्शक वर्ग को भी परम्परागत कला के महत्व को समझना होगा तब ही सही मायने में किशनगढ़ की परम्परागत कला को संरक्षित कर पायेगें।
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आभार | लेखक अपने गुरुदेव डॉ. पवन जी जांगिड (असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, आर. के. पाटनी कोलेज, किशनगढ़ ) व अपने शोध निदेशक डॉ. जगदीश प्रसाद मीणा (असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, राजस्थान युनिवर्सिटी, जयपुर)का आभार प्रकट करता है, जिन्होंने इस शोध-पत्र को पूर्ण करने हेतु सहयोग प्रदान किया। | ||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. गोयल, डॉ. अभिलाषा: किशनगढ़ चित्रकला - एक विवेचनात्मक अध्ययन, प्रथम संस्करण, नवजीवन पब्लिकेशन निवाई टोंक, 2006, पृ. सं. - 102
2. पारिक, डॉ. अविनाश: किशनगढ़ राज्य में चित्रकला का ऐतिहासिक अध्ययन, “युग-युगान्तर अजमेर” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी -
2005-06 में प्रकाशित लेख, पृ. सं. - 37
3. यूको रायपुर प्रभा, वर्ष - 3, अंक - 1, अप्रेल 2020, रायपुर अंचल की गृह पत्रिका, पृ. सं. – 8
4. चौधरी, जे.सी: विश्व स्तर पर कोरोना वायरस के वर्तमान एवं बाद में प्रभाव, दैनिक भास्कर, Website- www.dainikbhaskar.com
5. जैसल, डॉ. मनीष कुमार: कोरोना संकट और लॉक डाउन - 3, प्रदर्शनकारी कलाओं पर भी पड़ेगा महामारी का असर
6. सौरभ, डॉ. सत्यभान: कोरोना में परदे के पीछे कलाकारों का बुरा हाल, 10 जून 2020, Website- www.hastakshep.com
7. पारिक, डॉ अविनाश: किशनगढ़ का इतिहास, राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2014, पृ. सं. – 164
8.शुक्ला, डॉ. अन्नपूर्णा: किशनगढ़ चित्र शैली, सं. कोटवाला ऑफसेट, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2015ए पृ. सं. – 23
9. पारिक, डॉ अविनाश: किशनगढ़ का इतिहास, राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2014, पृ. सं. -171
10. प्रताप, डॉ रीता: भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास, राजस्थान हिंदी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2015, पृ. सं. – 207
11. नरेन्द्र: किशनगढ़ शैली को संरक्षण की जरुरत, 30 जनवरी 2020, Website- www.patrika.com
12. तिवारी, विनय कुमार: कोरोना संक्रमण से देश के कलाकारों के सामने आर्थिक संकट, मदद के लिए सरकार की नीतियों का इन्तजार, 06 जून 2021,
Website- www.jagran.com
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