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भारतीय राष्ट्रवाद का उदय | |||||||
Rise of Indian Nationalism | |||||||
Paper Id :
16203 Submission Date :
2022-06-06 Acceptance Date :
2022-06-11 Publication Date :
2022-06-20
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सारांश |
भारत में राष्ट्रीयता के विकास की प्रक्रिया बड़ी जटिल और बहुमुखी है। इसके अनेक कारण हैं। यहॉं की अर्थव्यवस्था का आधार यूरोपीय देशों के पूंजीवाद से पूर्ववर्ती काल के समाजों से भिन्न था। भारत विभिन्न भाषाओं, धर्मों तथा बड़ी आबादी वाला देश है। भारतीय राष्ट्रवाद के विकास की पृष्ठिभूमि की यह विशेषता है कि हिन्दू समाज और सामान्यतः सारा भारतीय समाज खंडित और विभाजित रहा है। भारतीय राष्ट्रवाद का जन्म राजनीतिक पराधीनता के दिनों में हुआ। 19वीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सामना जिस भारतीय राष्ट्रवाद ने किया और जिसने 1947 में भारतीय राष्ट्र-राज्य के जन्म के रूप में अपनी जीत का जश्न मनाया, वह उपनिवेशी आधुनिकता की उपज थी। ब्रिटेन ने अपने हित में भारतीय समाज के आर्थिक ढॉंचे में परिवर्तन किया, आधुनिक शिक्षा पद्धति की नींव डाली, आवागमन के नये साधन आदि विकसित किये। इसके फलस्वरूप नये सामाजिक वर्गों का जन्म हुआ और अपने आप में कई नयी सामाजिक शक्तियों का उदय सम्भव हो सका।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The process of development of nationalism in India is very complex and multifaceted. There are several reasons for this. The basis of the economy here was different from the societies of the European countries preceding capitalism. India is a country with different languages, religions and a large population. The background of the development of Indian nationalism is characterized by the fact that Hindu society, and the entire Indian society in general, has been fragmented and divided. Indian nationalism was born in the days of political independence. The Indian nationalism that faced British imperialism in the 19th century and which celebrated its victory in 1947 as the birth of the Indian nation-state was a product of colonial modernity. Britain in its own interest changed the economic structure of Indian society, laid the foundation of modern education system, developed new means of transport etc. As a result of this, new social classes were born and the emergence of many new social forces in itself became possible. | ||||||
मुख्य शब्द | भारतीय राष्ट्रवाद का उदय, राजनीतिक पराधीनता, ब्रिटिश। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Rise of Indian Nationalism, Political Subjugation, British. | ||||||
प्रस्तावना |
राष्ट्र की परिभाषा एक ऐसे जन समूह के रूप में की जा सकती है जो कि एक भौगोलिक सीमा में एक निश्चित देश में रहता हो, समान परम्परा, समान हितों तथा समान भावनाओं में बंधा हो, जिसमें एकता के सूत्र बांधने की उत्सुकता तथा समान राजनैतिक महत्वकांक्षायें पायी जाती हैं। राष्ट्रवाद के निर्णायक तत्वों में राष्ट्रीयता की भावना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीयता की भावना किसी राष्ट्र के सदस्यों में पायी जाने वाली सामुदायिक भावना है जो उनका संगठन सुदृढ़ करती है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. 19वीं सदी में भारतीय महापुरूषों द्वारा राष्ट्रवाद के विकास में योगदान का अध्ययन करना।
2. समाज में व्याप्त गतिविधियों को समझते हुए मानव कल्यााण के लिये किये गये कार्यो का अध्ययन करना।
3. भारतीय महापुरूषों में अपने जीवन में इस तरह जन कल्याम हेतु कार्य किया उसका अध्ययन करना।
4. राष्ट्रवादी नेताओं का देश के प्रति विचारों का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | राष्ट्रवाद का अध्ययन अनेक दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। राष्ट्रवाद एक आन्तरिक भाव है, जो देश विदेश के लोगों को एकता के सूत्र में बांधता है। अंग्रेजों के पहले भारत की सामाजिक संरचना ऐसी थी, जो अन्य देशों में शायद ही हो। भारत विविध भाषा-भाषी और अनेक धर्मों के अनुयायियों वाली विशाल जनसंख्या का देश है। भारत की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक संरचना तथा विशाल आकार के कारण यहॉं पर राष्ट्रीयता का उदय अन्य देशों की तुलना में कठिनाई से हुआ। भारत में राष्ट्रवादी विचारधारा 17वीं शाताब्दी के मध्य से दिखाई देने लगी थी। भारत में राष्ट्रवाद के जन्म के कारण जो राष्ट्रीय आन्दोलन प्रारम्भ हुआ है, वह विश्व में अपने आप में एक उदाहरण है। क्योंकि इस समय भारत में राजनीतिक जागृति के साथ-साथ सामाजिक, धार्मिक जागृति का भी प्रादुर्भाव हुआ। |
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मुख्य पाठ |
विदेशी प्रभुत्व को चुनौती देने के लिये ही भारतीय राष्ट्रावाद का उदय हुआ था। अंग्रेजो के दमनकारी एवं आर्थिक नीतियों से भारतीय कृषि, परम्परागत उद्योग एवं हस्तशिल्प को भारी नुकसान हुआ। ब्रिटिश नीति के कारण भारत का वस्त्र उद्योग नष्ट हुआ। क्योंकि ब्रिटेन के व्यापारियों का हित ध्यान में रखते हुये अपने उद्योगों के लिए भारत को कच्चे् माल उत्पादक देश के रूप में परिवर्तित कर दिया। परिणायतः भारत के उद्योगों का पतन हुआ। दादा भाई नौरोजी, महादेव गोविन्द रनाडे, रोमेश चन्द्र दत्त तथा अन्य लोगों ने अनुभव किया कि भारत के निर्धन होने के लिये ब्रिटिश शासन जिम्मेदार है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि औपनिवेशिक शासन अनेक प्रकार से भारत का आर्थिक शोषण कर रहे है। पहले किसानों पर लगान एवं अन्य कर का बोझ था। बाद में भारत को अपने उद्योगों के लिये कच्चे माल की आपूर्ति करने वाले आपूर्तिकर्ता के रूप में शोषण करना शुरू कर दिया। और एक ऐसे बाजार का निर्माण कर दिया जहॉ ब्रिटिश उद्योगों से निर्मित वस्तुओं को बेचा जा सके। भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने भारतीय संस्कृति की रक्षा करने एवं उसे बचाने का प्रयास किया क्योंकि भारतीय लोगों के ऊपर ब्रिटिश संस्कृति अतिकमण कर रही थी। उन्नींस के दशक में यूरोपीय वेशभूषा और उनकी प्रथाओं को भारतीयों पर जबरन लागू करने का प्रयास किया गया जिसका भारी विरोध किया गया। 19वीं शाताब्दी के उत्तरार्ध में भारतीयों में राजनीतिक चेतना जो कि देश के हित में थी, का तीव्र गति से विकास हो रहा था। परिणामस्वरूप भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आन्दोलन की शुरूआत हुई। भारतीय राष्ट्रवाद के लिये ब्रिटिश शासन की नीतियॉं तथा उन नीतियों से उत्पन्न प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप उभरा था। पाश्चात्य शिक्षा मध्यम वर्ग का उदय तथा सामाजिक धार्मिक आन्दोलन ने राष्ट्रवाद की भावना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। अंग्रेजों द्वारा किये जाने वाले आर्थिक शोषण से भारत में स्वावलम्बी आर्थिक जीवन के विनाश के फलस्वरूप साधारण और शिक्षित वर्ग में तेजी से असन्तोष उत्पन्न हुआ। उनमें राजनीतिक चेतना जागृत हुई और शिक्षित वर्ग में तेजी से असन्तोष फैल गया। शीघ्र ही वे राष्ट्रींय आन्दोलन में भाग लेने लगे। भारतीय प्रेस समाचार पत्रों और साहित्य ने राष्ट्रीय साहित्य को गति प्रदान की। इससे शिक्षित भारतीयों में भी तेजी से जागरूकता पनपी और देश प्रेम तथा राष्ट्रीयता की भावना हिलोरे लेने लगी। धार्मिक और सामाजिक आन्दोेलनों से देश में धार्मिक और सामाजिक पुनर्रचना की मांग ने बल पकड़ा और लोग सामान्यतः अन्धविश्वासों तथा कुरीतियों के घेरे तोड़ने लगे। विदेशी साम्राज्यवाद के क्रूर और विनाशकारी तरीकों ने भी देश की प्राचीन संस्कृतियों को सचेत कर दिया। ब्रिटेन की प्रबल राजनीतिक शक्ति तथा सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के विरूद्ध प्रतिक्रिया के रूप में ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन आदि संस्थाओं का उदय हुआ। इन धार्मिक आन्दोेलनों ने हिन्दू समाज को बहुत कुछ परिष्कृत और परिमार्जित किया। ब्रह्म समाज ने महत्वपूर्ण सांस्कृतिक तथा सामाजिक कार्य कर दीन-दुखियों की सेवा एवं सहायता की। आर्य समाज ने सांस्कृतिक और सामाजिक कार्य द्वारा भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में नये जीवन का संचार किया और हिन्दु्ओं में एक नवीन रचनात्मक आक्रामक तथा लड़ाकू भावना उत्पन्न की। भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में बुद्धिजीवी वर्ग ने अंग्रेजों द्वारा लायी गयी आधुनिक शिक्षा प्राप्त किया। पाश्चात्यत शिक्षा के माध्य्ाम से बुद्धिजीवी वर्ग आधुनिक पाश्चात्य लोकतान्त्रिक विचारधाराओं के सम्पर्क में आये थे। इस वर्ग की उभरती हुयी राष्ट्रीय चेतना का प्रभाव 1828 ई0 में स्थापित ब्रह्म समाज में धार्मिक रूप से दिखाई देता है। राष्ट्रवाद के विकास के आरम्भिक चरणों में रेलपथ के निर्माण ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1853 ई0 में रेल यातायात शुरू करने का उद्देश्य स्पष्ट था-भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण। रेल सेवा विशेषकर कच्चे माल को बन्दरगाहों तक पहुँचाने और आयात किये हुये माल के वितरण में सहायक सिद्ध हुई। जिससे स्पष्ट था कि रेल सेवा का विकास अंग्रेज शासकों को और मजबूत बनाने के लिये किया गया था। रेल सेवा का विकास इसलिये भी महत्वपूर्ण था कि इसकी सहायता से सेना को ऐसे सदूर प्रान्तों में आसानी से भेजा जा सकता था, जहॉं विद्रोह की सम्भावनाएं थीं। भारतीय राष्ट्रावाद के उदय में पाश्चात्य शिक्षा का योगदान रहा। लार्ड मैकाले द्वारा भारत के शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा करने का निर्णय लिया गया। इसका उद्देश्य भारत में बढ़ रही राष्ट्रीयता की भावना को नष्ट करना था। भारत में ब्रिटिश सरकार का पाश्चात्य शिक्षा प्रारम्भ करने का मकसद यही था कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का पूर्ण रूप से लोप हो जाये और एक ऐसे समूह का निर्माण हो जो रक्त और वर्ण से तो भारतीय हो, किन्तु रूचि, सोच, विचार, शब्द और बुद्धि से अंग्रेज हो जाये। इस उद्देश्य को सफल बनाने में काफी हद तक अंग्रेज सरकार कामयाब भी रही, क्योंकि कुछ मिश्रित भारतीय लोग अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति का गुणगान करने लगे। परन्तु पाश्चात्य शिक्षा लाभ भारतीयों को ज्यादा मिला। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होने के पश्चात़ भारतीय विद्वानों ने पश्चिमी देशों के साहित्य का अध्ययन किया। उन्हें मिल्टन, वर्क, हरवर्ट स्पेन्सर, जॉन स्टूवर्ट मिल आदि विचारकों की कृतियों के बारे में जानने का मौका मिला। अंग्रेजी शिक्षा के कारण भारतीय नेताओं के दृष्टिकोण का विकास हुआ। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये अनेक भारतीय इग्लैण्ड गयें। भारत वापस आने के पश्चात उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रोत्साहन दिया और यूरोपीय देशों की भॉति अपने देश में स्वतंत्रता चाहते थे। अंग्रेजी शिक्षा के कारण वकील, डाक्टर, अध्यापक आदि नौकरी करने वाला एक वर्ग उत्पन्न हो गया। लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद पढे-लिखे भारतीयों को अंग्रेज नौकरी नहीं देना चाहते थे। इसलिये उनमें असंतोष बढ़ा और राष्ट्र प्रेम की भावना बढ़ी। भारतीय साहित्यकारों ने भी देश में राष्ट्रीय भावना जागृत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बंकिमचन्द्र चटर्जी ने वन्देमातरम् जो भारतीयों को राष्ट्रगान के रूप में देश प्रेम की भावना जागृत की। केशव चन्द्र सेन, रवीन्द्र नाथ टैगोर, आर सी दास, रनाडे, दादा भाई नौरोजी आदि महापुरूषों ने अपने साहित्य एवं लेखन से राष्ट्रीय भावना को जागृत किया। ब्रिटिश सरकार द्वारा देश में रेलवें लाइनों सड़कों, डाक, तार, टेलीफोन आदि की व्यवस्था करने का मुख्य उद्देश्य देश में हो रहे विद्रोह को दबाना था ताकि अंग्रेजी सेना शीघ्रता से एक स्थान से दूसरे स्था पर जा सके एवं दूर-दूर के प्रान्तों की सूचना शीघ्रता प्राप्त हो सके। जो व्यवस्थाये अंग्रेजो ने अपने लिये किया उसका फायदा भारतीयों को ज्यादा मिला। भारतीयों के लिये एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना आसान हो गया। देश के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले लोगों के बीच दूरी कम हो गयी और एक दूसरे के निकट आने लगे। एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण कर आन्दोलन को और अधिक उग्र बनाने लगे। परिणामस्वरूप भारतीयों में एकता की भावना अधिक प्रबल हो गयी और राष्ट्रीय आन्दोलनों को बल प्राप्त हुआ। भारत में रेल यातायात के प्रसार से भारत वर्ष को राष्ट्र का रूप लेने और भारतवासियों द्वारा आधुनिक उद्योगों को सक्षम रूप से चलाने की क्षमता का विकास हुआ। इसका प्रयोग भारतीयों ने उद्योगों के विकास में किया था। रेल यात्रा उपलब्ध हो जाने से देश के सुदूर प्रान्तों के बीच सम्पर्क स्थापित करना सम्भव हो सका। आपसी सम्पर्क बढ़ाने और विचारों के आदान प्रदान से आपसी एकता को बढ़ावा मिला। |
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निष्कर्ष |
राष्ट्वाद के जन्म के कारणों से स्पष्ट हो जाता है कि भारत में इसका जन्म ब्रिटिश शासन की नीतियों के परिणामस्वरूप हुआ है। ब्रिटिश शासन में ही भारत में राजनीतिक एकता का विकास हुआ है। परन्तु भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता को मिटाकर ऐसे राष्ट्रवाद की मान्यता को ग्रहण नहीं करता है क्योंकि हमारे देश और पश्चिमी देशों के राष्ट्र सम्बन्धी अवधारणा में अन्तर है। पश्चिम का राष्ट्रवाद एक प्रकार का बहुसंख्यवाद है जबकि एक राष्ट्र के रूप में भारत अपनी विविध भाषाओं, अनेक धर्मों और भिन्न जातीयताओं का एक समुच्चय है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. सिंह, प्रतापः आधुनिक भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास, पृष्ठ सं0-109
2. सम्पादकः राय, डॉ0 सत्या एम0: भारत में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद, पृष्ठ सं0-131
3. सम्पादकः शुक्ल, आर0एल0: आधुनिक भारत का इतिहास, पृष्ठ सं0-461
4. शर्मा, एल0पी0: आधुनिक भारत, पृष्ठ सं0-639
5. पांथरी, शैलेन्द्रः आधुनिक भारत का सामाजिक इतिहास, पृष्ठ सं0-64
6. देसाई, ए0आर0ः भारतीय राष्ट्रवाद की सामाजिक, पृष्ठ भूमि।
7. ताराचन्दः भारतीय स्वतंत्रता अन्दोलन का इतिहास। |