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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: अवसर और चुनौतियां | |||||||
National Education Policy 2020: Opportunities and Challenges | |||||||
Paper Id :
16352 Submission Date :
2022-08-18 Acceptance Date :
2022-08-24 Publication Date :
2022-08-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
भारतवर्ष में प्राचीन काल में परंपरागत शिक्षा पद्धति प्रचलित थी जिसमें गुरुकुल व्यवस्था के अंतर्गत विद्यार्थियों को बाल्यकाल में शिक्षा ग्रहण करने हेतु गुरुकुल भेज दिया जाता था। यह व्यवस्था हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों रामायण, महाभारत आदि में वर्णित आश्रमों, नालंदा व तक्षशिला विश्वविद्यालय जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं से समझी जा सकती है जिनमें विदेशों से अध्ययन हेतु विद्यार्थी आते थे। आधुनिक युग में हमारे देश में शिक्षा व्यवस्था हेतु प्रमुख रूप से शिक्षा नीतियां वर्ष 1968, 1986 एवं 2020 में लागू की गई है। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पूरी तरह लागू करने का लक्ष्य वर्ष 2040 तक रखा गया है। नई शिक्षा नीति में रोचक, महत्वपूर्ण व अनुकरणीय विचार समाहित किए गए हैं। साथ ही इसमें कुछ नई चुनौतियां भी उपस्थित होने की संभावना है। अवसर के तौर पर इसमें बालक की सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर अनेक प्रावधान किए गए हैं, साथ ही नवाचारों को भी प्रोत्साहित किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में हुए इन नये सृजनात्मक स्वरूप को सही मायनों में गुणात्मक अभिवृध्दि के रूप में देखा जा सकता है यदि इसके क्रियान्वयन में आने वाली समस्याओं को दूर कर दिया जाए।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Traditional education system was prevalent in India in ancient times, in which students were sent to Gurukul to take education in childhood under the Gurukul system. This arrangement can be understood from the ashrams mentioned in our ancient religious texts Ramayana, Mahabharata etc., prestigious institutions like Nalanda and Taxila University, in which students from abroad used to come to study. In the modern era, mainly for the education system in our country, education policies have been implemented in the years 1968, 1986 and 2020. At present, the target of fully implementing the National Education Policy 2020 by the Central Government has been set by the year 2040. Interesting, important and exemplary ideas have been included in the new education policy. Along with this, some new challenges are also likely to be present in it. As an opportunity, many provisions have been made keeping in mind the social, economic and psychological needs of the child, as well as encouraging innovations. This new creative nature in the field of education can be seen as a qualitative improvement in the true sense if the problems faced in its implementation are removed. | ||||||
मुख्य शब्द | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, स्कूल शिक्षा, मातृभाषा, क्रियान्वयन, अवसर, चुनौती। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | National Education Policy 2020, School Education, Mother Tongue, Implementation, Opportunity, Challenge. | ||||||
प्रस्तावना |
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, स्कूल शिक्षा, मातृभाषा, क्रियान्वयन, अवसर, चुनौती भारत सरकार द्वारा गंभीर मंथन एवं वर्तमान में प्रचलित शिक्षा नीति की कमियों से सबक लेते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 प्रस्तुत की गई है। यह प्रारूप सरकार, शिक्षाविदों तथा भारत की आम जनता से प्राप्त हुए बहुमूल्य एवं सार्थक विचारों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है जो कि आज हम सभी के समक्ष राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के स्थूल रूप में विद्यमान है।
इस प्रारूप को भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ( वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय ) द्वारा तैयार किया गया है। वस्तुतः इस प्रारूप पर भारत सरकार द्वारा विगत 5 वर्षों से निरंतर कार्य किया जा रहा था। इस वर्ष माह मई 2019 में इसे सार्वजनिक कर दिया गया था तत्पश्चात सम्बद्ध पक्षों सहित आम जनता से सुझाव मांगे गए थे। सरकार का यह कदम भारत के लोकतंत्रात्मक शासन में आम जनता का विश्वास बनाए रखने एवं मजबूत करने के वृहद लक्ष्य को रेखांकित करता है। नई शिक्षा नीति 2020 को भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को कैबिनेट की मंजूरी के पश्चात घोषित किया गया। वर्ष 2020 में इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के कारण ही इसका नामकरण राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 रखा गया। इस शोध पत्र में “स्कूलों में पाठ्यक्रम और शिक्षण शास्त्र” पर एक अध्ययन किया गया है तथा इसके माध्यम से नए डिजाइन में स्कूल पाठ्यक्रम के पुनर्गठन पर विचार प्रस्तुत किए गए हैं । इस पुनर्गठित ढांचे को 5 +3 + 3 + 4 के रूप में पहचाना जा रहा है ।
वर्तमान में स्कूल शिक्षा में भारत में 10+2 ढांचे का अनुसरण किया जा रहा है। स्कूल शिक्षा के ढांचे में प्रमुख रूप से एक यही परिवर्तन दृस्टिगोचर हो रहा है। इस परिवर्तन से विद्यार्थियों की उम्र के विभिन्न पडावों पर विकास की अलग-अलग अवस्थाओं के मुताबिक उनकी रुचियां और विकास की आवश्यकताओं पर समुचित ध्यान दिया जा सकेगा।
इस शोध पत्र के माध्यम से यह प्रस्तुत किया गया है कि नई डिजाइन की यह स्कूल व्यवस्था हमारे लिए सकारात्मकता के साथ-साथ कुछ चुनौतियों को भी हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. नई डिजाइन 5 + 3 + 3 + 4 के स्कूली पाठ्यक्रम की अनुशंसा का विश्लेषणात्मक अध्ययन करना।
2. इस व्यवस्था को एक अवसर के रूप में कैसे प्रस्तुत किया जाए और इस बिंदु पर विचार करना।
3. नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में धरातल पर आने वाली समस्याओं की वास्तविकता को परखना। |
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साहित्यावलोकन | प्रोफेसर सतीश देशपांडे के अनुसार प्राचीन भारत में सामाजिकी सदैव सरकार/शासन
द्वारा नियंत्रित रही। इस नियंत्रण के परिणाम स्वरूप अब उच्च शिक्षा के साथ भी वही
हो रहा है जो 30 या 40 वर्ष पहले विद्यालय शिक्षा के साथ हुआ। अभिभावकों ने सरकारी स्कूलों में आस्था
को दरकिनार कर निजी स्कूलों में नई आस्था स्थापित की। इस प्रकार अभिजात्य वर्ग
सदैव अभिज्यात्यता के विकल्प अवश्य ढूंढता है। इन्होंने हमारी शिक्षा पद्धति
केंद्रित होने की भी बात कही है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 भारत सरकार के मार्गदर्शक सिद्धांतों में ज्ञान को जीवन से
जोड़ना पढ़ाई को रखने से मुक्त बनाना पाठ्यचर्या में पाठ्य पुस्तकों के साथ कक्षा
गतिविधियों को जोड़कर लचीला बनाना बर राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति आस्थावान
विद्यार्थियों को तैयार करना है। इसके अनुसार प्राथमिक स्तर पर विज्ञान का माध्यम
मातृभाषा व शिक्षक को ज्ञान का मार्गदर्शक होना चाहिए। इसमें परीक्षा सुधार के लिए
सामूहिक कार्य मूल्यांकन सतत मुला मूल्यांकन वह खुली पुस्तक मूल्यांकन पर जोर दिया
गया इस प्रकार इस पाठ्य चर्चा का प्रमुख सूत्र बिना भार के अधिगम है। नंदिनी के द्वारा Hindustan Times के लेख में Policy 20 highlights: school and higher education to
see major challenges , में स्कूल और उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में नई शिक्षा नीति 2020 के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित किया गया है। Aithal P. S. & Aithal
S.J. ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के महत्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी देने के साथ एन ई पी 1986 के बीच तुलना की गई है। इसमें उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय शिक्षा
नीति के नवा चारों और उपयोगी बिंदुओं को प्रकाश में लाया गया। इसमें उच्चतर शिक्षा
के क्षेत्र में कुछ सुधार भी दिए गए। Duff (2007), engaging the YouTube Google eyed generation: strategies for using web 2.0 in teaching and learning. इसमें डिजिटल शिक्षा के क्षेत्र में यूट्यूब के उचित प्रयोग के तरीकों को खोजा गया है इसके अनुसार वीडियो को छोटे-छोटे टुकड़ों में दिखाया जाना चाहिए। छात्रों को सीखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए वीडियो की विषय वस्तु पर प्रश्न पूछने और टिप्पणी करने पर जोर दिया जाना चाहिए। उपर्युक्त साहित्य अवलोकन से स्पष्ट है कि इन नीतियों के क्रियान्वयन में आने वाले विभिन्न चुनौतियों की सूक्ष्मता से नहीं देखा गया इसके लागू होने से अनेक वर्ग के लोगों के लिए उत्पन्न अवसरों का विस्तृत विश्लेषण नहीं हुआ है यह शोध पत्र विद्यालय शिक्षा के विशेष संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नए अवसरों और उसके क्रियान्वयन में उपस्थित चुनौतियों को प्रकाश में लाने का प्रयास है। |
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विश्लेषण | राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: मुख्य
बिन्दु शिक्षा एक सार्वजनिक सेवा है। शिक्षा के गुणवत्ता पूर्ण
स्वरूप को पहचान कर उसे प्रत्येक बालक तक पहुंचाना ही शिक्षा देने का मुख्य
उद्देश्य है। शैक्षिक प्रणाली को इस प्रकार पुनर्गठित करना होगा कि वह बालक की
मौलिक आवश्यकता को पूरा करे तथा जीवन पर्यंत उपयोगी व लाभदायक सिद्ध हो सके। इसी
क्रम में हम इस शोध पत्र के प्रस्तुत विषय को गहराई से जानने हेतु इसका विश्लेषण
करते हैं तो यह पाते हैं - 5+ 3+3+ 4 डिजाइन इन सभी को विशेष स्थान दिया गया है। पहले
वाली 10+2 व्यवस्था में प्रारम्भ के
आंगनबाड़ी/प्री स्कूल स्तर को भी एकेडमिक स्तर में जोड़कर इसे चार स्तरों में
विभाजित किया गया है। इस स्तर का एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
यह है कि इस स्तर में अर्थात 8 वर्ष तक के बच्चों को किसी
भी प्रकार की परीक्षा नहीं देनी होगी जिससे बच्चे कोई मानसिक तनाव महसूस ना करें
तथा उन्हें बहुत ही नवाचार पूर्ण (Innovative) तरीके से
शिक्षा प्रदान की जाएगी। इससे आगे प्रीपेटरी स्तर (3 वर्ष) जो कि 8 से 11 वर्ष
तक के बच्चों के लिए है, जिसमें कक्षा 3 से 5 तक का अध्ययन
आता है। किसी भी प्रकार की परीक्षा कक्षा 3 से
प्रारंभ होकर उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा ली जाएगी। कक्षा 5 तक
न्यूनतम या कक्षा 8 तक भी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, क्षेत्रीय
या स्थानीय
भाषा में ही रहेगा। किसी भी विद्यार्थी पर कोई भाषा अध्यारोपित (Imposed) नहीं
की जा सकेगी। यहाँ यह उल्लेख भी समीचीन रहेगा कि यद्यपि यह निर्णय बालक
के आधारभूत ज्ञान को मजबूती प्रदान करने के लिए है तथापि कुछ शैक्षणिक विद्वानों
द्वारा यह कहा गया है कि शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होना चाहिए क्योंकि भविष्य में
अंग्रेजी ही विश्व में बच्चों के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करने में सहायक है। 1. मिडिल स्तर कक्षा, 6 से 8 तक
( 3 वर्ष, 11 से 14 वर्ष
के बच्चों सहित) के स्तर पर विद्यार्थियों हेतु शिक्षा के साथ ही एक विषिनवजयट
व्यवस्था लागू करने का प्रावधान किया गया हैै जिसमें 10 दिन
की बस्ता रहित अवधि ( Bag less Period) रहेगी। इस अवधि
में विद्यार्थी स्थानीय व्यावसायिक विशेषज्ञों ( Vocational Expertise) से
काष्ठ कला, बागवानी, मिट्टी कला, स्थानीय कलाकारी इत्यादि कक्षाओं के माध्यम से
स्कूल में सीख सकते हैं। इन 10 दिनों में बालक बिना बस्ते के स्कूल जा सकते
हैं। 2. सेकंडरी स्तर:- कक्षा 9 से 12 ( 4 वर्ष, 14 से 18 वर्ष
के बच्चों सहित ) को दो भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम स्तर पर कक्षा 9 व 10 तक
का है जिसमें बोर्ड परीक्षा को यथावत रखा गया है। इसमें विद्यार्थी का ध्यान समग्र
दृष्टिकोण (Holistic view) तथा आलोचनात्मक
सोच एवं लचीलेपन ( Critical Thinking and Flexibility) पर
केंद्रित किया जाएगा। इस स्तर में छात्र को कक्षा 9 में अपने रुचि का विषय चुनने तथा उन्हें ही पढ़ने की बात कही गई है। इसे हम बहु विषयक अध्ययन ( Multi-Disciplinary study) की श्रेणी में रख सकते हैं जिसमें विद्यार्थी किसी भी धारा ( Stream)- विज्ञान, कला, वाणिज्य- में से अपनी रुचि के किन्हीं भी विषयों का चयन कर सकता है। इससे विद्यार्थी का समग्र दृष्टिकोण (Holistic view) तथा आलोचनात्मक सोच एवं लचीलेपन ( Critical Thinking and Flexibility) की तरफ ध्यान आकर्षित होता है। सेकेंडरी स्तर में एक मुख्य परिवर्तन के तौर पर कक्षा 9 से 12 तक बालकों द्वारा कोई भी विदेशी भाषा जैसे जर्मन, फ्रेंच आदि के अध्ययन को भी जोड़ा गया है। विद्यार्थी कक्षा 11 व 12 तक बहु भाषाओं में भी पारंगत हो सकेगा जिससे भविष्य में उसके रोजगार और उसके अवसरों में बढ़ोत्तरी हो सकेगी। |
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परिणाम |
नई शिक्षा नीति 2020: एक
अवसर भारत की इस नई शिक्षा नीति का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने के
पश्चात यह बात निश्चय ही हमारे मस्तिष्क पटल पर आती है कि इस
विस्तृत शिक्षा नीति को एक अवसर के रूप में लेकर भारत की
शिक्षा की नींव को सुंदरता प्रदान की जा सकती है। इस शोध पत्र के मुख्य विषय नई डिजाइन की पाठ्यक्रम व्यवस्था 5+ 3+ 3+
4 में किस प्रकार हमें अवसर मिलेंगे, यह
देखा जा सकता है। प्रथम स्तर जिसे फाउंडेशन स्तर कहा गया है, उसके 5 साल
के कालखंड को दो स्तरो - प्रथम स्तर के 3 वर्ष जिसमें बालक को आंगनबाड़ी के माध्यम से
खेल-खेल में सीखना, किंडर गार्डन विधि के माध्यम से तथा द्वितीय
स्तर के 2 वर्ष जिसमे कक्षा 1 से 2 तक
मातृभाषा में बिना किसी बोझ के बालक को आधारभूत वस्तुओं का ज्ञान कराना- में
विभक्त किया गया है। यह एक सुनहरा अवसर हो सकता है क्योंकि जब तक बालक की नींव
मजबूत नहीं होगी वह आगे जाकर किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता है। इस
व्यवस्था को सार्थक एवं साकार रूप देने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं तथा
प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण भी आवश्यक है। मनोविज्ञान के आधार पर यदि देखा जाए
तो विभिन्न अध्ययनों में यही कहा गया है कि बालक के सीखने के सबसे महत्वपूर्ण वर्ष
उसके प्रारम्भिक 6 वर्ष होते हैं। इस प्रकार प्रीपेटरी स्तर (3 वर्ष), कक्षा 3 से 5 तक के बच्चों को सभी प्रकार का अध्ययन उनकी
अपनी समझ के आधार पर मातृभाषा या किसी क्षेत्रीय भाषा में होने से अधिगम का
प्रतिशत बढ़ सकेगा। इस स्तर पर विद्यार्थी पर किसी अन्य भाषा को अध्यारोपित नहीं
किया जा सकेगा। यह भी एक सुअवसर है जिसमें विषय के मूल ज्ञान को समझने के लिए
बच्चों को किसी भाषा विषेश में ही उलझ कर रहना ना पड़े। इसी क्रम में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को और अधिक आवश्यकता है कि इस समय
उन्हें अपनी मातृभाषा में सभी नियम सिद्धांत सिखाया जाए। इस नीति में एक नए अवसर के तौर पर 10 दिन
बस्ता रहित अवधि ( Bag less Period) के रखे गए हैं
जिससे बच्चे अपनी व्यक्तिगत क्षमता एवं रुचि के हिसाब से वह किसी भी व्यवसाय
शिक्षा जैसे काष्ठकला, बागवानी, मिट्टी कला, स्थानीय कलाकारी इत्यादि की शिक्षा प्राप्त
करें। हमारे देश में वर्तमान में मौजूद शिक्षा प्रणाली में बालक केवल किताबी ज्ञान
तथा बस्ते के बोझ के मारे अपनी रुचियों को पोषित करने का अवसर ही खो देता है। यह
एक अच्छी पहल है। कक्षा 9 से 12 तक के 4 वर्ष
जिसे सेकेंडरी स्तर कहा गया है, अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। इस स्तर पर बालक
में समझ आ जाती है कि वह किस विषय में रुचि रखता है। कक्षा 9 में
ही उसे विभिन्न क्षेत्र के विषयों काष्ठकला, बागवानी, मिट्टी कला, स्थानीय कलाकारी इत्यादि में से अपनी पसंद के
विषय चुनकर पढ़ने की स्वतंत्रता होगी तथा साथ ही व्यवसाय या रुचि के आधार पर कोई
अन्य भाषा को सीखने का भी अवसर मिलेगा। इस व्यवस्था में बालक की अंतर्निहित कलाओं, क्षमताओं
तथा रुचि के साथ अध्ययन का सुनहरा अवसर मिलेगा। इस प्रकार इस नई शिक्षा नीति को
यदि भारत की युवा तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए शुभ अवसर के रूप में लिया जाए तो
भारत अपने प्राचीन बौद्धिक स्तर को प्राप्त कर सकता है। ”निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल“ - भारतेंदु
हरिश्चंद्र नई शिक्षा नीति 2020: क्रियान्वयन
की चुनौतियां निश्चय ही नहीं शिक्षा नीति 2020 को
पूरे देश में क्रियान्वित करना चुनौतीपूर्ण कार्य है। मेरे विचार में नई शिक्षा
नीति 2020 को लागू करने में पांच मुख्य चुनौतियां हैं जो
निम्न प्रकार से हैं- 1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के
क्रियान्वयन में हमारे समक्ष प्रथम चुनौती इस रूप में विद्यमान है कि भारत सरकार
द्वारा शिक्षा पर हमारे देश की जीडीपी का लगभग 6 % खर्च किया जाना
प्रस्तावित है परंतु यह तथ्य वर्तमान में भी वाद-विवाद के योग्य है कि क्या यह 6 % अंश
खर्च किया जा रहा है या अब किया जाएगा ? यह प्रश्न अत्यन्त प्रासंगिक है क्योंकि यह
प्रावधान देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से पूर्व में
लागू की गई दो शिक्षा नीतियों में भी किया गया था परंतु वास्तव में धरातल पर
आंकड़े ऐसा नहीं दर्शाते हैं। आर्थिक समीक्षा 2018-19 के आंकड़ों पर
यदि गौर किया जाये तो स्पष्ट होगा कि हमारा देश कुल जीडीपी के 3 % से
भी कम शिक्षा पर खर्च करता है। शिक्षा पर कुल सार्वजनिक खर्च प्रति विद्यार्थी तथा
शैक्षिक गुणवत्ता की दृष्टि से भारत का विश्व में 62वां स्थान है। शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात ( Teacher- Pupil
Ratio) भारत में अभी भी अत्यन्त न्यून है। देश के प्रतिष्ठित
समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भूटान, जिंबाब्वे, स्वीडन, फिनलैंड, ग्रेट
ब्रिटेन, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका इन सभी देशों में शिक्षा
पर उनकी जीडीपी का भारत से अधिक प्रतिशत खर्च किया जा रहा है। कोठारी आयोग (1964) में
भी 6 % अंशदान
ही शिक्षा पर खर्च करने का प्रावधान था परंतु 2021 तक यह नहीं हो
पाया। एक रोचक तथ्य यह भी सामने आता है कि जैसे-जैसे हमारी कुल जीडीपी में वृद्धि
हुई है वैसे-वैसे उसका 3% से भी कम शिक्षा पर खर्च किया गया है। यह हमारे
देश की सरकार पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इसमें सुधार के साथ ही शिक्षा की
गुणवत्ता को बेहतर किया जा सकता है। 2. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के
क्रियान्वयन में हमारे समक्ष द्वितीय चुनौती इस रूप में विद्यमान है कि राष्ट्रीय
टेस्टिंग एजेंसी (National testing Agency- NTA) द्वारा ही
राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षा आयोजित कर देश के सभी विश्वविद्यालयों एवं
महाविद्यालयों में प्रवेश दिया जाएगा तथा समस्त विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय अलग
से अपनी परीक्षा आयोजित नहीं करवा पाएंगे। यह एक अच्छी पहल है परंतु यदि इसमें
परीक्षा व शिक्षा के अंकों के अतिरिक्त यदि किसी विद्यार्थी की अन्य रुचि जैसे कोई
खेल, कला आदि को भी साथ में वरीयता देने की बात कही
जाती तो कहीं बेहतर विकल्प होता। वहीं शिक्षा के समवर्ती सूची में होने के कारण
अलग-अलग राज्य और क्षेत्रवार भी भिन्नता से विवाद उत्पन्न होने की आशंका रहेगी। 3. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के
क्रियान्वयन में हमारे समक्ष एक अन्य चुनौती इस रूप में विद्यमान है कि राष्ट्रीय
शिक्षा नीति 2020 में कक्षा 5 या कक्षा 8 तक मातृभाषा में ही शिक्षण की बात कही गई है।
यह भी केवल वैकल्पिक है, आवश्यक नहीं है। इस व्यवस्था को जो निजी
क्षेत्र के बड़े विद्यालय हैं, उन्हें मानने के लिए कोई बाध्यता नहीं होने से
उनका शिक्षा प्रदान करने का माध्यम तो अंग्रेजी रहेगा तथा केवल सरकारी विद्यालयों
में मातृभाषा में आधारभूत शिक्षा प्रदान करने से क्या यह भारत के बालकों को दो
वर्गों में विभाजित नहीं करेगा ? सामाजिक-आर्थिक विषमता की इस गहरी खाई को आज भी
समाज में देखा जा सकता है। मनोवैज्ञानिक तौर पर भी एक बालक के शुरुआती वर्षों में
शिक्षा या कोई भाषा को सीख पाना ज्यादा आसान होता है। क्या जिस बालक ने कक्षा 5 या 8 तक
अंग्रेजी भाषा को जाना ही नहीं, वह भविष्य में अंग्रेजी भाषा व माध्यम में
कुशलता से शिक्षा ग्रहण कर सकेगा, वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में अंग्रेजी भाषा की
मान्यता सर्वविदित है। चाहे कोई नौकरी या कोई अन्य कार्य हो उसमें अंग्रेजी की
महत्ता व वरीयता कोे कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। हमारे देश में यही
वास्तविकता है। प्रसंगवष एक उदाहरण हमें चीन का भी ध्यान रखना चाहिए जहां पहले
अंग्रेजी नहीं सिखाई जाती थी किंतु अब उसको प्राथमिकता से सिखाया जाता है। 4. स्नातक स्तर पर बहु विषयक (Multi-disciplinary) या
बहुआयामी तरीके से पढ़ाई एक बेहतर विकल्प है परंतु इतने प्रयास के बाद भी कुछ
महत्वपूर्ण तथा जागरूकता फैलाने वाले आवश्यक विषय जैसे- स्त्री-शिक्षा, लैंगिक-शिक्षा, सांस्कृतिक-शिक्षा, विषमता
एवं बहिष्करण-शिक्षा, पर्यावरण- शिक्षा, विकास
की शिक्षा, यह सभी हाशिए पर रह गई है। वैश्विक स्तर पर
पर्यावरण संबंधी मुद्दे पर अध्ययन करने की परम आवश्यकता है। 5. अध्यापक प्रशिक्षण भी एक प्रमुख चुनौती है।
जैसे गुणवत्तापूर्ण अध्ययन के लिए कुशल शिक्षकों के प्रशिक्षण की वित्तीय व्यवस्था
(Funding
) कहां से होगी ? इसका मूलभूत ढांचा (infrastructure) क्या
होगा ? मूल्यांकन प्राधिकरण कौन होगा ? इन
सभी प्रश्नों के बारे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मौन है। 6. भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में
समावेशी शिक्षा की बात कही गई है। इसके आधार पर इस प्रारूप में कहा गया है कि ऐसे
विद्यार्थी जो अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और विशेष पिछड़ा वर्ग से संबंधित
हैं, उनके लिए मेरिट के आधार पर स्कॉलरशिप के
प्रयासों में तेजी लाई जाएगी तथा राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल को विस्तारित किया
जाएगा जिससे छात्रवृत्ति मिलने में सहायता मिले तथा यह कार्य अविलंब हो सके। सरकार
की यह पहल स्वागत योग्य है परंतु इस नीति में अनारक्षित वर्ग के ऐसे विद्यार्थी
जिनकी आय बहुत कम है, उन विद्यार्थियों के लिए कोई ध्यान नहीं दिया
गया है। यदि कोई एक वर्ग भी छूट गया या अछूता रह गया है तो समावेशी शिक्षा का सपना
कैसे साकार हो सकेगा ?
7. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में
सकल नामांकन अनुपात लक्ष्य उच्च शिक्षा में 50% तथा माध्यमिक
शिक्षा में 100% का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में यह लक्ष्य
उच्च शिक्षा में 25.8 प्रतिशत तथा कक्षा 9 (माध्यमिक
शिक्षा) में 68% है। यह लक्ष्य वास्तविक तौर पर कुछ अधिक
वास्तविक, प्रायोगिक व प्राप्त करने योग्य होने चाहिए
क्योंकि आज के परिपेक्ष में कक्षा 8 के बाद ड्रॉप-आउट (Drop-
out) बच्चों की संख्या अधिक है। इसे कम करके ही हम माध्यमिक
शिक्षा एवं उच्च शिक्षा में सम्माननीय सकल नामांकन अनुपात (Respectable
Gross Enrolment Ratio) प्राप्त कर सकते हैं। |
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निष्कर्ष |
प्रस्तुत शोध पत्र में भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के बारे में विचार किया गया तथा इसमें निहित अवसर और चुनौतियों पर समीक्षा करके विचार प्रस्तुत किए गए हैं। निष्कर्ष के तौर पर यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में चुनौतियों को स्वीकार करते हुए हम सभी भारतवासियों को इसके सभी सकारात्मक पक्षों के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। आधारभूत शिक्षा से ही प्रारंभ किया जाए तो सर्वप्रथम आंगनबाड़ी केंद्रों व कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान करें तथा आर्थिक सहायता तार्किक रूप से सुसंगत करते हुए उन्हें सुदृद बनाया जाए। प्राथमिक शिक्षा में भी आधारभूत शिक्षा में मातृभाषा की आवश्यकता को स्वीकारने के साथ ही वैश्विक स्तर पर वर्तमान में प्रासंगिक एवं मान्य अंग्रेजी को भी पूरी तरह से उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए। कक्षा 9 (माध्यमिक शिक्षा) में ड्रॉप-आउट (Drop- out) बच्चों का अनुपात कम किया जाने की तरफ विचार किया जाना आवश्यक है। माध्यमिक, उच्च माध्यमिक एवं स्नातक स्तर पर जो विचारणीय बिन्दु हैं जैसे - किसी भी स्ट्रीम की बाध्यता समाप्त कर बहु विषयक (Multi-disciplinary) शिक्षा के क्रियान्वयन के लिए उन अन्य देशों में जहां यह व्यवस्था चल रही है उनका व्यापक अध्ययन एवं अनुसरण करें तथा प्राप्त सुझावों को लागू करने की मानसिकता सकारात्मक बनाने में भी पीछे नहीं हटना चाहिए।
शोध पत्र के अंत में यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमारे लिए एक नया अवसर तथा चुनौती दोनों ही लेकर आई है जिसे हम सभी को एकजुट होकर क्रियान्वित करके तथा चुनौतियों का निराकरण करने के लिए कार्य करने के लिए तत्पर होना होगा। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
2. राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा 2005, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार।
3. आर्थिक-समीक्षा 2018-19, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार
4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 o 1986 शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
5. साक्षात्कार: शिक्षा ज्ञान और समाज का समकाल- प्रो॰ सतीश देशपांडे, सामाजिक; (अंक-अक्टूबर-दिसम्बर, 2021),
6. Nandini, ed. 29 July 2020, “New Education Policy-2020 Highlights: School and Higher Education to see Major Challenges”. Hindustan Times.
7. Aithal P. S. & Aithal S. J. 2020, “ Analysis of The Indian National Education Policy 2020 towards achieving it’s objective, International Journel of Management, Technology and Social Sciences, 5 (2), 19-41.
8. Duff et. al., 2008, Engaging the YouTube Google-Eyed Generation: Strategies for Using Web 2.0 in Teaching and Learning Electronic Journal of e-Learning, 6 (2), 119-130.
9. https://www.unicef.org/india/hi/node/701
10. Dr. Deepak et. al., 2018, prevalence of back and shoulder pain vis-a-vis weight of school bag and other lifestyle factors-an epidemiological study. 7(7). |