ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- VIII September  - 2022
Innovation The Research Concept
जैविक खाद तथा जैविक टॉनिकों के उपयोग से कृषि उत्पादकता में वृद्धि
Increase in Agricultural Productivity Through Use of Organic Manures and Organic Tonics
Paper Id :  16420   Submission Date :  2022-09-12   Acceptance Date :  2022-09-22   Publication Date :  2022-09-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
सीताराम सोलंकी
सहायक प्राध्यापक
वाणिज्य विभाग
एस. बी. एन. शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
बड़वानी,मध्य प्रदेश, भारत
सारांश
रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से कृषि भूमि बंजर होती जा रही हैं। कृषि उपजों के स्वाभाविक गुणों में कमी हो रही हैं, रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले खाद्यान्नों, दलहनों व तिलहनों के उपयोग से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न हो रहा हैं। फसलों पर रासायनिक कीटनाशकों के अत्यधिक छिड़काव करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी हो रही हैं। फलों, सब्जियों की ऊपरी सतहों पर जहरीली कीटनाशक केमिकल्स के तरल पदार्थ छिड़काव के दौरान जमा हो जाते हैं, जो कृषि उपजों के अंदरूनी भागों में भी संचित हो जाते हैं। इनके उपभोग से मानव स्वास्थ्य कई बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। जैविक खाद का कृषि भूमि में उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती हैं तथा कृषि उपजों की उत्पादकता में वृद्धि होती हैं तथा रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से कृषि फसलो पर उत्पन्न दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता हैं। जैविक टॉनिक यथा वर्मीवाश, बॉयोगैस स्लरी, अमृत संजीवनी, मटका खाद इनमें कीटाणुनाशक गुण होते हैं, जो पौधों को कीडों से होने वाली हानि से बचाते हैं। फसलों के लिए जैविक टॉनिकों का उपयोग करने से फसलों की व्याधियों का निवारण होता हैं तथा कृषि उपजों की उत्पादकता में वृद्धि होती हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Agricultural lands are becoming barren due to excessive use of chemical fertilizers. of agricultural produce The natural properties are decreasing, the use of food grains, pulses and oilseeds arising from the use of chemical fertilizers is causing adverse effects on human health. Decreased soil fertility due to excessive spraying of chemical pesticides on crops are happening. During spraying liquids of toxic pesticide chemicals on the upper surfaces of fruits and vegetables get deposited, which also gets accumulated in the interior parts of agricultural produce. Human health is suffering from many diseases due to their consumption. The use of organic manure in agricultural land increases the fertility of the soil and Increases the productivity of agricultural produce and the use of chemical fertilizers can reduce the adverse effects on agricultural crops. Organic tonics such as vermiwash, biogas slurry, amrit sanjeevani, matka compost contain disinfectants has properties, which protect plants from damage caused by insects. Diseases of crops are prevented by using organic tonics for crops and increase the productivity of agricultural produce.
मुख्य शब्द जैविक खेती, जैविक टॉनिक , मिट्टी की उर्वराशक्ति, उत्पादन वृद्धि।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Organi Farming, Organic Manure, soil fertility, Production increase.
प्रस्तावना
वृहद स्तर के कृषकों द्वारा कृषि उपज की उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए रासायनिक उर्वरकों तथा रासायनिक दवाईयों का अत्यधिक मात्रा में उपयोग किया जा रहा हैं, जिससे कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी हो रही हैं तथा फलों, सब्जियों व खाद्य पदार्थों में विषाक्तता घूलती जा रही हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो रहा हैं। कृषकों द्वारा रासायनिक उर्वरकों के साथ जैविक खाद तथा कीटनाशक रासायनिक दवाईयों के साथ जैविक टॉनिको यथा वर्मीवाश, बॉयोगैस स्लरी, अमृत संजीवनी, मटका खाद का उपयोग किया जाना चाहिए। इनके उपयोगो से कृषि उपजों की उत्पादकता में वृद्धि होगी तथा फलों, सब्जियों व खाद्यान्नों की विषाक्तता में कमी आयेगी।
अध्ययन का उद्देश्य
इस शोध अध्ययन के प्रमुख उद्देश्य निम्नानुसार हैं - 1. जैविक खाद बनाने की विधि का अध्ययन करना। 2. जैविक टॉनिक बनाने की विधि का अध्ययन करना। 3. गुणवत्तायुक्त फसल उत्पादकता में वृद्धि हेतु कृषि भूमि में जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा देना। 4. फसलों की कीट व्याधि निवारण हेतु जैविक टॉनिक के उपयोग में वृद्धि करना। 5. जैविक खाद के उत्पादन द्वारा लघु एवं सीमान्त कृषकों की आय में वृद्धि करना। 6. जैविक खाद तथा जैविक टॉनिकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रचार-प्रसार करना। 7. लघु एवं सीमान्त कृषकों द्वारा जैविक खाद् का उत्पादन करने हेतु उनमें जागरूकता लाना।
साहित्यावलोकन
कृषि अनुसंधान संस्थान-धार तथा कृषि विज्ञान केन्द्र धार में जैविक खाद तथा जैविक टॉनिक बनाने के लिए शेड का निर्माण एक आदर्श (मॉडल) के रूप में किया गया है, किंतु इस सम्बन्ध में साहित्य का प्रकाशन नहीं हुआ है। इस शेड के अवलोकन के द्वारा जैविक खाद तथा जैविक टॉनिक बनाने की विधि का अध्ययन किया गया है।
मुख्य पाठ
जैविक खाद (कम्पोस्ट) 
गोबर के अलावा जंतु वर्ज्य पदार्थो एवं वानस्पतिक अवशेषों या अन्य बेकार चीजों को खाद के गड्ढे में रखकर सड़ाने-गलाने की क्रिया Composting कहलाती हैं और इस तरह सड़ा हुआ पदार्थ compost होता हैं। कम्पोस्ट रंग - रूप, रचना एवं गुण में फार्म यार्ड खाद के समान ही होता हैं औरइसको तैयार करने में भी प्रायः वही क्रिया चलती हैं, जो फार्मयार्ड खाद को तैयार करने के समय चलती हैं।
जैविक खाद बनाने की कई विधियाँ प्रचलन में आ गई हैं, जैसे :- इन्दौर पद्धति, बैंगलोर पद्धति, फफूंद कल्चर, कृषि निवास पद्धति, फास्फो कम्पोस्ट विधि, भू - नाडेप विधि, पक्का नाडेप विधि, वर्मी कम्पोस्ट विधि इत्यादि।
कम्पोस्ट (जैविक खाद) बनाने की विधि 
इस विधि में एक बड़ा गड्ढा जिसका आकार 12' X 12' X 2.5' फिट (लम्बाई X चौड़ाई X गहराई) का बनाया जाता हैं। उसे ईंट की दीवारों से चार बराबर भागों में बांट दिया जाता हैं। इस प्रकार चार गड्ढें बनते हैं। पूरे गड्ढें के चारों तरफ अंदर से एक ईंट की दीवार की लाईनिंग की जावे ताकि मिट्टी के ढहने से गड्ढा गिरे नहीं। बीच की विभाजक दीवार मजबूत रहे। इन विभाजक दीवारों पर समान दूरी पर हवा के बहने एवं केचुओं के घूमने हेतु छिद्र छोड़े जावे। ये चारों गडढें पेड़ की छाँव में बनाये जावे अन्यथा धूप एवं वर्षा के सीधे प्रभाव से बचने के लिए इसके ऊपर कच्चा शेड बनाया जावे।
इस तंत्र में प्रत्येक गड्ढें को एक के बाद एक भरते अर्थात् पहले एक महीने तक पहला गड्ढा भरें। यह भर जाने के बाद पूरे कचरे को गोबर पानी से अच्छी तरह भिगोकर काले पॉलीथिन से ढंक देते हैं। ताकि उसके विघटन की प्रक्रिया शुरू हो जायें। इसके बाद कचरा दूसरे गड्ढें में एकत्र करना शुरू कर देवे। दूसरे माह बाद जब दूसरा गड्ढा भर जाता हैं तब इस पर भी उसी प्रकार काली पॉलीथिन ढंक देते हैं और कचरा तीसरे गड्ढें में एकत्र करना आरम्भ करे।
इस समय तक पहले गड्ढें का कचरा अपघटित हो जाता हैं। एक दो दिन बाद जब पहले गड्ढें की गर्मी कम हो जाए तब उसमें 500 - 1000 केचूएं छोड़ दिये जाये और पूरे गड्ढें को घास की पतली थर से ढंक दिया जाए। उसमें नमी बनाये रखना आवश्यक हैं अतः चार - पाँच दिन के अंतर पर इसमें थोड़ा पानी देवें।
इसी प्रकार तीन माह बाद तीसरा गड्ढा कचरे से भर जाता हैं तब इसें भी पानी से भिगोकर पॉलीथिन से ढंक देवे एवं चौथे गड्ढें में कचरा एकत्र करना शुरू कर देवें। धीरे - धीरे जब दूसरें गड्ढें की गर्मी कम होती हैं तब उसमें पहले गड्ढें के केचुएं अर्थात वर्मी कम्पोस्ट बनना आरंभ हो जाता हैं। चार माह बाद जब चौथा गड्ढा भी कचरे व गोबर से भर जावे, तब उसमें भी उसी प्रकार पानी से भिगोकर पॉलिथिन से ढंक दे।
इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्ढें भर जाते हैं। इस समय तक पहले गड्ढें में जिसे भरकर तीन माह हो चुके हैं। वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाता हैं और उसके सारे केंचुएं दूसरे एवं तीसरे गड्ढें में धीरे - धीरे बीच की दीवारों के छिद्रों द्वारा प्रवेश कर जाते हैं।अब पहले गड्ढें से खाद निकालने की प्रक्रिया आरंभ की जा सकती हैं और खाद निकालने के बाद उसमें पुनः कचरा एकत्र करना शुरू करे। इसके एक माह बाद दूसरे गड्ढें से फिर तीसरे और चौथे से इस प्रकार क्रमशः हर एक माह बाद एक गड्ढें से खाद निकाला जा सकता हैं व साथ - साथ कचरा भी एकत्र किया जा सकता हैं।
इस चक्रीय पद्धति में चौथें महीने से बारहवें महीने तक हर महीने करीब 500 किलों खाद, इस प्रकार आठ महीनों में चार हजार किलों खाद, रोज एकत्रित हाने वाले थोड़े - थोड़े कचरे के उपयोग से बनाया जा सकता हैं। इस प्रकार यह तंत्र सतत् चलता रहता हैं। वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ/जैविक खाद) का उपयोग करने से भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती हैं। भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ती हैं। पौधों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं, जिससे कीट एवं व्याधियों का प्रकोप कम होता हैं। फसल काश्त लागत में कमी आती हैं। आगामी 2-3 फसलों को पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने में सहायक हैं।
फसलों के लिये जैविक टॉनिकों का उपयोग करना 
फसलों की व्याधियों का निवारण करने तथा कृषि उपज में वृद्धि करने के लिए जैविक टॉनिकों का उपयोग करना चाहिए। प्रमुख जैविक टॉनिकों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार हैं -

वर्मीवाश 
केंचुए अपने शरीर से पीले रंग का कोलमीक नामक द्रव का स्त्राव करते हैं। इस द्रव में बुरशी नामक तत्व पाया जाता हैं। जिसके उपयोग से पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं एवं पौधा स्वस्थ बना रहता हैं। साथ ही वर्मीवाश में बहुत से वृद्धि नियामक आक्सीन, सायटोकिनिन इत्यादि होते हैं, जो पौधों की बढ़वार में सहायक होते हैं एंव पौधों को बीमारग्रस्त होने पर उसे बीमारी से बाहर लाने में मदद करते हैं। वर्मीवाश में कीटनाशक गुण होता हैं जो पौधों को कीड़ों से होने वाली हानि से बचाता हैं।
वर्मीवाश बनाने की विधि 
प्लास्टिक का एक बड़ा ड्रम लेकर उसके नीचे वाले भाग में छेद करके टोंटी लगावें। ड्रम में सबसे नीचे तीन इंच मोटी बोल्डर की परत लगावें। इसके ऊपर तीन इंच बालू रेत की परत लगावें। इसका उपयोग फिल्टर के रूप में होता हैं। इसके पश्चात् ड्रम के तीन चौथाई भाग में कार्बनिक पदार्थ जैसे गोबर एवं मुलायम कूड़ा - करकट भरकर उसमें कम से कम 1000 केंचुएं छोड़े जावें। तत्पश्चात्  प्रतिदिन आधा से एक लीटर या आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहैं, जिससे केंचुए के शरीर से निकला हुआ द्रव इस पानी में घुलकर छनता हुआ ड्रम के तले में पहुँच जाता हैं जहां टोटी खोलकर उसे एक बर्तन में एकत्रित कर लिया जाता हैं। आवश्यकतानुसार केंचुओं के लिए खाद्य पदार्थ जैसे गोबरगैस, स्लरी इत्यादि डालते रहैं। जब खाद तैयार हो जाए तब खाद को निकालकर अलग कर लेवें एवं उसी प्रक्रिया से ड्रम भर देवें। इस प्रक्रिया में प्रतिदिन लगभग आधा लीटर वर्मीवाश प्राप्त होता हैं।
वर्मीवाश उपयोग की विधि 
अन्य टॉनिक की तरह वर्मीवाश 50-100 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर, पंप में डालकर रोगग्रस्त पौधों पर ठंडे समय में छिड़काव करने से पौधें स्वस्थ होकर बढ़वार करने लगते हैं।
बॉयोगैस स्लरी 
दो लीटर बॉयोगैस स्लरी को छानकर 15 लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिड़काव करने से फसलों में हरापन आता हैं एवं प्रबलतम वृद्धि होती हैं क्योंकि स्लरी के पानी में कई प्रकार के घुलनशील पोषक तत्व एवं वृद्धि नियामक भी होते हैं जो पौधों को छिड़काव द्वारा सीधें प्राप्त हो जाते हैं।
वायवडिंग पावडर 
एक किलो पावडर 10 लीटर गोमूत्र में रात भर भिगोएं। इसके बाद छानकर एक लीटर घोल सौ लीटर पानी में घोल कर फसल पर छिड़काव करने से फूल - फलन बढ़ता हैं तथा उपज में वृद्धि होती हैं।
अमृत संजीवनी 
सामग्री
200 लीटर क्षमता की खाली ड्रम, 60 किलों पशुओं का गोबर, 3 किलों यूरिया, 3 किलों सुपर खाद, 1 किलो पोटाश व 2 किलो मूंगफली की खली।
बनाने की विधि
ड्रम में 60 किलों गोबर डालकर उसे 2/3 हिस्से तक पानी डालकर उसमें उपरोक्त मात्रानुसार उर्वरक एवं खली डालकर ड्रम को पानी से भर दे। मिश्रण को लकड़ी से अच्छी तरह हिलाकर 48 घंटे के लिए ढक्कन बंद करके रख दे।
उपयोग का तरीका व समय
2 लीटर मिश्रण को 13 लीटर पानी में घोलकर बिना नोजल वाली स्प्रे टंकी में भरकर फसल पर छिड़काव करें। इसका छिड़काव सुबह - शाम को ही करना चाहिए।
भभूत अमृत पानी 
देशी गाय के 10 कि.ग्रा. ताजे गोबर में देशी गाय के ही दूध से बना घी 250 ग्राम अच्छी तरह फेंटकर उसमें 500 ग्राम शहद मिलाकर बड़ के पेड़ के नीचे की आधा किलोग्राम मिट्टी अच्छी तरह मिला कर मिश्रण को खेत में छिड़के।
मटका खाद
15 किलोग्राम ताजा गोबर, देशी गाय का 15 लीटर ताजा गोमूत्र तथा 15 लीटर पानी मिट्टी के घड़े में घोल लें। उसमें 250 ग्राम गुड़ भी मिला दे। इस घोल को मिट्टी के बर्तन में ऊपर से कपड़ा या टाट मिट्टी से पैक कर दें। 4-5 दिन बाद इस घोल में 200 लीटर पानी मिलाकर एक हैंक्टर खेत में समान रूप से छिड़के। यह छिड़काव बोनी के 15 दिन बाद करें । सामान्य फसलों में 3-4 बार और लंबी अवधि की फसल में 8 बार छिड़कें।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध अध्ययन में अनुसंधान की दैव निदर्शन पद्धति, सविचार तथा अवलोकन व सर्वेक्षण पद्धति के आधार पर संकलित प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों का उपयोग किया गया। प्राथमिक समंकों व तथ्यों को प्राप्त करने के लिए मध्यप्रदेश राज्य के धार जिले के 10 विकासखण्डों से पर्याप्त प्रतिनिधित्व के अनुसार चयनित 100 सीमान्त कृषक व 100 लघु कृषक कुल 200 कृषकों का साक्षात्कार करके प्रश्नावली के अनुसार सर्वेक्षण कार्य किया गया।
निष्कर्ष
1. रसायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग किए जाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में प्रतिवर्ष कमी होती जा रही है। 2. जैविक खाद का उपयोग कृषि भूमि में करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। 3. कृषि फसलों पर जैविक टानिको का छिड़काव करने से फसलों के अनेकों रोगों का निवारण होता है। 4. कृषकों द्वारा जैविक खाद तथा जैविक टानिकों का उत्पादन वृहद स्तर पर किया जाना चाहिए तथा इनका उपयोग कृषि भूमि में किए जाने पर फसलों को उत्पादकता में वृद्धि होती है। 5. जैविक खाद तथा जैविक टानिकों बनाने को विधि तथा इनके महत्व व उपयोगिता का प्रचार - प्रसार किया जाना चाहिए।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. जिला सांख्यिकी पुस्तिका - कलेक्टर कार्यालय धार 2. साक्षात्कार प्रश्नावली सूची 3. कृषिजगत पत्रिका - भोपाल 4. स्थानीय समाचार - पत्र-पत्रिकाएँ 5. उपसंचालक कृषि कार्यालय, धार 6. कृषि विज्ञान केन्द्र - धार 7. संचालनालय कृषि - भोपाल