|
|||||||
प्रवासी महिलाओं पर कोविड-19 का प्रभाव | |||||||
Impact of Covid-19 on Migrant Women | |||||||
Paper Id :
15805 Submission Date :
2022-02-08 Acceptance Date :
2022-02-12 Publication Date :
2022-02-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
|
|||||||
| |||||||
सारांश |
एक लोकतांत्रिक समाज की मुख्य विशेषताएं संवैधानिक,मानव अधिकार व सामाजिक न्याय है। एक लोकतांत्रिक समाज असमानता व अन्याय की परिधि से दूर होता है। भारत जैसा एक लोकतांत्रिक देश इन अवाछिंत तत्वों से दूर होने के पथ पर अग्रसर है। श्रमिक महिलाएं गरीबी के कारण गावों से शहरों की ओर पलायन करती हैं।उन्हें मुख्यतः घरेलू सहायिका व फैक्ट्री में श्रमिक का ही रोजगार प्राप्त होता है लाॅकडाउन के दौरान उन्हें इन कठिन परिस्थितियों कोविड-19महामारी ने जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है। विश्व की गरीब जनसंख्या श्रमिक महिलाओं के जीवन-निर्वाह तरीकों पर चोट की हैं। इस शोध पत्र में कोविड-19का प्रवासी महिलाओं व उनके परिवार पर क्या प्रभाव पड़ा इसका अध्ययन किया गया है। दिल्ली औद्दोगिक क्षेत्र की 100 महिलाओं पर किए गए अध्ययन में साक्षात्कार अनुसूची के द्वारा श्रमिक महिलाओं की स्थिति, जीवन निर्वाह का हनन,कोविड-19 का संवेदनशील दायरा व सुविधाओं की कमी का अध्ययन किया गया है। श्रमिक महिलाओं के अस्तित्व के लिए सरकार द्वारा तत्काल योजना निर्माण पर ध्यान देना होगा। साथ ही सामाजिक सुरक्षा के लिए भी कदम उठाने होंगे।
|
||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The main features of a democratic society are constitutional, human rights and social justice. A democratic society is free from the periphery of inequality and injustice. A democratic country like India is on the way to get away from these unwanted elements. Labor women migrate from villages to cities due to poverty. They mainly get employment as domestic helpers and factory workers. During the lockdown, these difficult conditions Covid-19 pandemic has affected all walks of life. The poor population of the world has hit the subsistence methods of working women. In this research paper, the impact of Covid-19 on migrant women and their families has been studied. In a study conducted on 100 women of Delhi Bawana industrial area, the condition of labor women, subsistence loss, sensitive scope of Covid-19 and lack of facilities have been studied through interview schedule. For the survival of labor women, immediate attention will have to be paid by the government on planning. Along with this, steps will also have to be taken for social security. | ||||||
मुख्य शब्द | खाद्य संकट, पलायन, सरकार की प्रतिक्रिया, लॉकडाउन । | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Food Crisis, Migration, Government Response, Lockdown. | ||||||
प्रस्तावना |
कोविड-19 के कारण समाज में कई परिवर्तन आए हैं साथ ही सामाजिक-आर्थिक संकटों की लहर आई है ।इसने सभी क्षेत्रों व वर्गो को प्रभावित किया है विशेष रूप से गरीब व वंचित वर्गो को। कोविड-19 वायरस को फैलने से रोकने के लिए सोशल डिसटेसिगं पर बल दिया गया। साथ ही आर्थिक गतिविधियों को बंद कर दिया गया। भारत में 24 मार्च 2020 को लाकडाउन लगा दिया गया।
|
||||||
अध्ययन का उद्देश्य | इस शोधपत्र का मुख्य उद्देश्य प्रवासी महिलाओं पर कोविड-19 का प्रभाव जाग्रत करना है। |
||||||
साहित्यावलोकन | कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए अंतःराज्य व अंतरराज्य गतिविधियों पर रोक लगा दी गई। इससे लाखो प्रवासियों की आजीविका खतरे में पड़ गई भारत में असंगठित क्षेत्र में लगभग 450 मिलियन लोग काम करते हैं(शर्मा 2020)। एक अनुमान के अनुसार 90 प्रतिशत महिलाएं असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं। जिसमें से 20 प्रतिशत महिलाएं शहरों में काम करती हैं। भारत में असंगठित क्षेत्र को कोई सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है। कोविड-19 का असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ेगा ( अंतराष्ट्रीय श्रमिक संगठन ,2020)।गरीबी व खाद्य असुरक्षा के कारण श्रमिक वर्ग अत्यधिक प्रभावित होगा (खान व मंसूर ,2020)।कोविड-19 महामारी के कारण अमीर व गरीब की खाई को और अधिक बढा दिया है। गरीब श्रमिकों की स्थिति को ओर भी भयावह कर दिया है। श्रमिक वर्ग ,विशेष रूप से महिलाएं जो असंगठित क्षेत्र में कार्य करती है, इससे बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। “Covid-19 has unevenly impacted women and girls in the domains of health, economy, social protection, and gender based violence (UN,2020)
उत्तर भारत में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 92 प्रतिशत श्रमिकों को कोविड-19 के दोरान अपनी रोजी-रोटी से वंचित होना पड़ा व 42 प्रतिशत महिलाओं को खाद्द आपूर्ति से वंचित होना पड़ा। इन कठिन परिस्थितियों में उच्चतम न्यायालय ने प्रवासी श्रमिकों की व्यथा का संज्ञान लिया। कोर्ट ने राज्य व केंद्रीय सरकारों को श्रमिकों के कल्याण हेतु कदम उठाने के आदेश दिए। दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी दिल्ली सरकार को श्रमिकों की सहायता हेतु जरूरी कदम उठाने के आदेश दिए। श्रमिक महिलाओं के मानव अधिकारों की अवज्ञा न केवल राज्य सरकारों बल्कि फैक्ट्री मालिकों द्वारा भी की गई। भारत के विभिन्न राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश,बिहार,ओडिशा,झारखंड व छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के 13.9 करोड़ श्रमिक भारत के विभिन्न भागों में काम करते हैं। ये प्रवासी अब भी अपनी रोजी-रोटी नियमित रूप से कमाने में सक्षम नहीं है। राहत कैम्प में प्रवासी महिलाओं के लिए बहुत कम सुविधाएं होती है। राज्य को प्रवासी श्रमिक महिलाओं के कल्याण हेतु एक मानवीय दृष्टिकोण अपनाना होगा। सामाजिक व आर्थिक संरचना का निर्माण इस प्रकार करना होगा कि श्रमिक महिलाओं की कार्यस्थल परिस्थितियां सुविधाजनक हो।उच्चतम न्यायालय को श्रमिक महिलाओं के कल्याण हेतु राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर नज़र रखनी होगी राज्य सरकार एक कल्याणकारी बोर्ड का गठन करेगी।
प्रवासी महिलाओं को कोविड-19 के कारण कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पूरे देश में लोकडाउन के कारण प्रवासी महिलाओं को फैक्ट्री बंद होने के कारण आर्थिक तंगी,खाद्य समस्या व भविष्य की अनिश्चितता का सामना करना पड़ा।प्रवासी महिलाओं के परिवारों को भूखा मरना पड़ा। हजारों परिवारों को पैदल ही चलकर अपने मूल स्थान पर वापिस लौटना पड़ा। कई प्रवासी परिवार भूख,रेल व सड़क दुर्घटनाओं के कारण, आत्महत्या व उचित मेडिकल केयर न मिलने के कारण मर गए। भारत में 139 मिलियन प्रवासी है। अधिकतर प्रवासी उत्तर प्रदेश व बिहार के हैं। महाराष्ट्र व दिल्ली में प्रवासियों की संख्या सबसे अधिक है। अधिकतर पुरुष रोजगार के कारण व महिलाएं विवाह के कारण प्रवासन करती हैं।
अधिकतर प्रवासी महिलाएं निर्माण उघोग व संरचनात्मक कार्यों में में लगी हुई थी। वे अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों से होती हैं।प्रवासी महिलाएं मुख्यतः फैक्ट्री में ही रहती हैं परन्तु लोकडाउन होने के कारण ये फैक्ट्री बंद हो गई जिसके कारण इन प्रवासी महिलाओं को अपने मूल स्थान पर वापिस लौटना पड़ा। ।इंटर स्टेट माइग्रेट वर्कमैन एक्ट,1979 के अनुसार माइग्रेंट वर्कर्स की रजिस्ट्री होनी चाहिये परन्तु यह क्रियान्वित अब तक नहीं किया गया है ।2011 की जनगणना के अनुसार,महाराष्ट्र में प्रवासियों की संख्या सबसे अधिक है। 24 मार्च 2020को पूरे देश में लोकडाउन के कारण प्रवासी महिलाएं एक तरह से बेघर हो गई विवश होकर उन्हें पैदल ही चलकर अपने मूल स्थान पर वापिस लौटना पड़ा।प्रवासी महिलाओं पर लोकडाउन का निम्न प्रभाव पड़ा। |
||||||
मुख्य पाठ |
अपने वतन लौटने की चाहत एक बार जब
लोकडाउन लागू हो गया तो अधिकांश प्रवासी महिलाओं के लिए प्राथमिक चिंता अपने
परिवारों के सुरक्षित वापस लौटने की थी। 19 मार्च 2020 को, भारतीय रेलवे ने यात्री ट्रेनों के अचानक
निलम्बन की घोषणा की। इसके परिणामस्वरूप,भारतीय प्रवासी श्रमिकों का पलायन हुआ। दिल्ली
और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हजारों प्रवासी परिवारों को भारी सामान ले जाते
हुए, ट्रैकटरो पर चढ़ते हुए और अपने घर जाने के लिए बसो में सीटों के लिए एक-दूसरे
को धक्का देते हुए देखा गया (राम 2020)। चूंकि अधिकांश सार्वजनिक परिवहन को कोविड-19 सुरक्षा सावधानियो के हिस्से के रूप में निलंबित कर दिया गया था, प्रवासी अपने कार्यस्थल पर फंस गए थे और पूरी तरह से हिस्सा था महसूस कर रहे
थे (चंदर एट अल 2020)भले ही वेअपने ग्रहनगर वापस जाने शामिल जोखिमों
से अवगत थे ,अधिकांश घर वापस जाने के लिए बेताब थे उनका मानना था कि आसन्न मृत्यु की
अनिश्चितता के समय परिवार का पास होना जरुरी है। रोजगार जाने का डर औद्दोगिक क्षेत्र में प्रवासी महिलाओं को अपने परिवारों में वापिस जाने की
जितनी तीव्र इच्छा थी उतना ही डर अपना रोजगार खोने का था। यहाँ पर प्रवासी महिलाएं
अधिकतर फैक्ट्री में श्रमिक व घरेलू सहायिका के कार्य में कार्यरत हैं।कई प्रवासी
महिलाएं जिन्होंने अपना रोजगार नही खोया ,उन्हें अपने मालिकों द्वारा वेतन में कटौती का
सामना करना पड़ा इसलिए वे इस बात से चिंतित थी कि वे अपने बच्चों के भोजन, कपड़े व दवाओं पर खर्च कैसे करेंगे। दूसरी ओर डर था कि जिन लोगों का रोजगार
छिन गया क्या वे गृह नगर वापिस लौट पाएगें। यात्रा प्रतिबंधों व परिवहन सुविधाओं
की अनुपलब्धता के कारण इस बारे मे निश्चित नहीं थी कि वे अपने गृह नगर वापिस लौट पाएगें । आर्थिक संकट एनएसएसओ के
अनुसार, भारतीय उद्दोगों में लाखों आंतरिक प्रवासी कर्मचारी है जो भारत की
अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। बवाना औद्दोगिक क्षेत्र में ये
आंतरिक प्रवासी मुख्यतः मौसमी पलायन करते हैं। ये दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी
क्षेत्र में अस्पष्ट व अप्रतिफल बने रहे। इस दौरान इन्हें सरकारी योजनाओं व राहत
कोष का फायदा नहीं मिल पाया। कोविड-19संकट (शहारे,
2020)। अंतर्राष्टीय
श्रमिक संगठन (2020) ने देखा है कि प्रवासी मजदूर मौजूदा आर्थिक
संकट में सबसे ज्यादा प्रभावित है।महामारी के दौरान व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए
आवश्यक वस्तुएं जैसे सैनिटाइजर, साबुन व दवाइयां महंगी हो गई। नौकरी जाने के
कारण इनकी आर्थिक स्थिति ओर भी बदतर हो गई। प्रवासियों के वित्तीय संकट को बढ़ाते
हुए ,नीति आयोग ने ग्रामीण क्षेत्रों में खाघान्न सबसिडी को 75 से 60 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 50से 40प्रतिशत कर दिया (कुमार एट अल 2020)। राहत शिविरों की गुणवत्ता सभी प्रवासी
लोकडाउन से पहले अपने वतन वापस नहीं लौट पाए। जो लोग पीछे रह गए थे उनके लिए सरकार
द्वारा भोजन और आवास आवंटित किया गया था बहुत से मजदूरों को बेहद छोटे और भीड़-
भाड़ वाले कमरों में रहना पड़ता था जो राशन आवंटित किया जाता था उसकी गुणवत्ता व
मात्रा उचित नहीं थी।अधिकांश राहत शिविरों में बिजली, प्रकाश, पंखा,शौचालय और पानी जैसी कोई आवश्यक सुविधाएं नहीं थी,और उनमें से
अधिकांश पूरी तरह से भरे हुए थे, और पुराने रहने वाले नए लोगों को आने की अनुमति
नहीं दे रहे थे। नतीजतन, प्रवासी समूहों के बीच झगड़े, दुर्व्यवहार और धमकाने की घटनाएं घटी(शाहरे 2020) आवंटित राशन में कमी 15अप्रैल 2020 को जारी स्वान रिपोर्ट में कहा गया है कि, "सर्वेक्षण किए गए लोगों में से केवल 51%के पास एक दिन से भी कम समय के लिए भी कम समय
के लिए राशन बचा था" (फारूकी और पांडे 2020) । राशन का वितरण राशन कार्ड रखने वाले व्यक्ति
के आधार पर होता था लेकिन अधिकांश प्रवासियों के पास स्थायी निवास या आवश्यक
कानूनी दस्तावेज नहीं होते थे और इसलिए उन्हें राशन कार्ड आवंटित नहीं हो पाता था।
परिणामस्वरूप उन्हें राशन मिलने में समस्या आती थी। सभी राज्यों में स्वीकृत
अंतराजीय पोरटेबल राशन कार्ड की कमी के कारण यह वितरण प्रणाली दोषपूर्ण हो गई इस
समस्या के समाधान हेतु सरकार ने वन नेशन वन कार्ड योजना शुरू की ताकि पूरे राष्ट्र
में एक ही कार्ड के द्वारा राशन आवंटित किया जा सके। अप्रयाप्त स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं माताओ, बच्चों और गर्भवती महिलाओं सहित प्रवासी आबादी अपनी भलाई के बारे में गहराई से
आशंकित थी। प्रवासी महिलाएं अपनी निम्न सामाजिक, आर्थिक स्थिति व खराब जीवन स्थितियो के कारण
संचारी रोगों का शिकार था (चौधरी 2020)। राहत शिविरों में दयनीय स्थितियो ने उन्हें किसी भी बुनियादी सुरक्षा सावधानियो का पालन करना, नियमित रूप से हाथ धोना, सैनिटाइजर और मास्क का उपयोग करना। मनोवैज्ञानिक मुद्दे प्रवासियों की
खराब रहने की स्थिति और मूलभूत आवश्यकताओं की कमी ने उनमें से कई को गंभीर मानसिक
तनाव का कारण बना दिया है, जो उनके जीवन में संबंधो की समस्याओं, मादक द्रव्यों के सेवन ,शराब, यौन शोषण, घरेलू हिंसा और मानसिक बीमारियों के रूप में प्रकट हुआ है। चूंकि सभी
कार्यस्थल बंद थे,प्रवासियों को इस बात को लेकर चिंता थी कि कार्य स्थल वापिस खुलने के बाद क्या
नियोक्ताओं द्वारा उन्हें वापिस काम पर नियुक्त किया जाएगा या नहीं। जो प्रवासी
अपने मूल स्थान पर वापिस पहुँच गए थे उन्हें कोरोना का वाहक समझकर बहिष्कार किया
गया रिवर्स माइग्रेशन कोई रोजगार व
आमदनी न होने के कारण व लाॅकडाउन प्रतिबंध के कारण हजारों प्रवासी महिलाओं को
हजारों किलोमीटर दूरी पैदल या फिर साइकिल पर ही अपने मूल स्थान पर वापिस लौटना
पड़ा। प्रवासी महिलाओं के अनुसार “अगर वे अपने मूल स्थान पर वापिस नहीं जाऐंगे तो
वे कोरोना से नहीं बल्कि भूख के कारण मर जाएंगे “।कई प्रवासियों को लोकडाउन तोड़ने के कारण पीटा
गया।उन्हें अंतराजीय सीमा पार करते हुए जंगलों में व नदी पार करते हुए पकड़ा गया।
कुछ प्रवासी महिलाएं सड़क दुर्घटनाओं में व कुछ फुटपाथ पर सोते हुए मारी गई। 8 मई 2020 कोऔरंगाबाद में 16 प्रवासी रेलवे ट्रैक पर सोते हुए मारे गए जबकि 16मई को 26 प्रवासी दो ट्रकों की टक्कर में मारे गए।इतना
ही नहीं एक 15 साल की लड़की ने गुडगाँव से बिहार 1200 किलोमीटर की दूरी साइकिल पर अपने बूढ़े बीमार पिता के साथ तय की व नेशनल
साइकिल फेडरेशन की ओर से आॅफर दिया गया व इंडिका ट्रम्प ने भी प्रशंसा की। रिवर्स माइग्रेशन
के कारण शहरी क्षेत्रों में श्रमिकों की भारी कमी थी, जहाँ से प्रवासी श्रमिक अपने घर के लिए रवाना हुए थे (श्री वास्तव 2020)। मूल स्थान पर लौटने के बाद प्रवासियों की समस्याएं समाप्त नहीं हुई। मूल
क्षेत्र पर मुख्य समस्या उनके क्वारंटाइन में रहने और उससे जुड़ी कठिनाइयों को
लेकर थी (मिश्रा और सईद, 2020)।प्रवासियों को अपने मूल राज्यों की सीमाओं पर रोका गया, उन्हें कोरोना का वाहक समझकर बहिष्कार किया यातायात व्यवस्था 28 मई तक 91 लाख प्रवासियों ने भारत में अपने मूल स्थान पर
पलायन किया। परन्तु टिकट रजिस्ट्रेशन अंग्रेजी भाषा व उनकी मातृभाषा में न होने के
कारण प्रवासियों को टिकट रजिस्ट्रेशन हेतु अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ी। प्रवासियों की पीड़ा-भूख या कोरोना? प्रवासियों की
जनसंख्या के कोई अधिकारिक आकड़े नहीं है। परन्तु 2020 में प्रोफेसर अमिताभ कुन्डू के अनुसार 65 मिलियन अंतराजीय श्रमिक हैं जिनमें से 33% प्रवासी कार्यशील हैं। अज़ीम प्रेम जी युनिवर्सिटी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार 29% भारत की जनसंख्या डेली वेज्रस हैं। ये प्रवासी परिवार प्रतिदिन मिलने वाली मजदूरी पर ही निर्भर थे। इनके
अनुसार ये प्रवासी कोरोना से नहीं, बल्कि भूख के कारण मर जाएंगे अतः हजारों प्रवासियों को अपने मूल स्थान पर वापिस लौटना
पड़ा। कोविड-19 के दौरान प्रवासी श्रमिक आंदोलन के मुद्दे 24 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित लाकडाउन के
दौरान 4 करोड़ श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। उन्हें खाद्य समस्या का भी सामना
करना पड़ा। इस अलगाव के समय प्रवासियों को अपने प्रियजनो की याद आई।यातायात के
किसी भी साधन द्वारा प्रवासी अपने मूल स्थान पर वापिस लोट जाना चाहते थे। कुछ
प्रवासी महिलाएं तो ट्रक व लोरी के द्वारा यात्रा की जिससे रास्ते में कई
दुर्घटनाएं हुई। अंतराष्ट्रीय श्रमिक संगठन व इकोनोमिक फोरम
के अनुसार भारत में प्रवासी महिलाओं को यातायात, खाद्य, आवास व सोशल सिटगमा जैसी समस्याओं का सामना
करना पड़ता है। बिहार राज्य सरकार द्वारा मई2020 में जारी आकडो के अनुसार 11000 प्रवासियों में से 560 प्रवासी कोविड-19 पोजिटिव पाए गए। भारत में 52% प्रवासी महाराष्ट्र राज्य से होते है। कोविड-19 से संक्रमित प्रवासियों की संख्या इस राज्य
में बहुत अधिक थी।अधिकतर प्रवासी पिछड़ी जातियों से थे। यह राज्य ओबीसी नेताओं द्वारा शासित होते हुए भी इनकी समस्याओं की ओर कोई
ध्यान नहीं दिया गया। "Interstate Migrant
Workmen Act 1979" के होने के बावजूद प्रवासी महिलाओं को समस्याओं का सामना करना पड़ा। श्रमिक कानून व प्रवासी महिलाओं की व्यथा हाल ही में
केंद्रीय व राज्य सरकारों द्वारा “EASE OF DOING
BUSINESS“ के तहत कई कानूनों
में बदलाव किए गए। केन्द्रीय सरकार ने सितम्बर 2019 में श्रमिक कोड बिल में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। इस बिल के द्वारा फैक्ट्री मालिकों को तीन फायदे होंगे। उन्हें अपनी ओघोगिक इकाइयों की रजिस्ट्री कराने की जरूरत नहीं होगी। अलग से फाइल रिटर्न नहीं करनी होगी। अपने कर्मचारियों के साथ अच्छे
सम्बन्ध बना सकेंगे। कुछ राज्यों जैसे कि पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात ,मध्य-प्रदेश व राजस्थान राज्यों ने अपने
श्रमिक कानूनों में परिवर्तन किए जैसे कि कर्मचारियों को 12 घंटे कार्य करने हेतु hire and fire करना व कार्यस्थल पर स्वास्थ्य सुविधाएं
उपलब्ध कराना ।श्रमिकों के कल्याण हेतु काम करने वाली NGO का मानना है कि इससे पूंजीपतियों को श्रमिकों का शोषण करने का हथियार मिल
जाएगा। कोविड-19 से पूर्व केंद्रीय मंत्री संतोष कुमार गंगाधर
ने लोकसभा में “Occupational Safety” व "Health
And Working Conditions Code 2019" प्रस्तुत किया। “which
proposes to minimize the burden on the employers with respect to the provision
of health care to the workers.Moreover such concession will be available to the
employers employing 10 or more workers“ Legal and Constitutional Issues श्रमिकों के
अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है। संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार राज्य का कर्तव्य है कि सभी भारतीय नागरिकों को जीवन जीने के लिए
उचित मानवीय परिस्थितियां प्रदान करें। लोकडाउन के दोरान Reverse migration की घटनाओं ने राज्य सरकारों व पूंजीपतियों की
पोल खोल दी । Hire And Fire Policy 2019 ने घाव पर नमक छिड़कने का काम किया है। Issues of Food Security खाद्य सुरक्षा की आवश्यकता औद्दोगिक व
आर्थिक क्षेत्र में प्रगति होने के बावजूद गरीब प्रवासी महिलाएं सबसे अधिक
रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करती हैं। 21वीं शताब्दी से सरकार ने rights based approach को अपनाया है। इसी संदर्भ में 2005 में मनरेगा की शुरूआत हुई।
2013 में खाद्द सुरक्षा बिल पास किया गया ताकि प्रत्येक भारतीय को खाद्द सुरक्षा प्राप्त हो सके। खाद्य सुरक्षा के लिए चुनौतियां- 1) प्राकृतिक संसाधनों का सतत् विकास व प्रबंधन 2) अनाज की उपलब्धता 3) कृषि का आधुनिकीकरण व तकनीकीकरण 4) शिक्षा व स्वास्थ्य पर व्यय बढाया जाना
चाहिए। 5) स्थानीय स्तर पर शासन में सुधार होना चाहिए। Issues and Concerns- लॉकडाउन के दोरान गरीब व प्रवासी श्रमिकों को खाघ आपूर्ति करने हेतु खाद्य सुरक्षा प्रमुख मुद्दा बन
गया था। भारत की खाद्य सुरक्षा में रिपोर्ट संतोषजनक नहीं है। Food Hunger Index में 2017 में भारत का स्थान 119 देशों में से 100 वें स्थान पर था ।इसी संदर्भ में 2013 में खाघ सुरक्षा बिल पास किया गया। खाद्य सुरक्षा बिल 2013 इस अधिनियम के
अनुसार 67% भारत की जनसंख्या को खाघ सुरक्षा दी जाएगी।
गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों को रियायती दर पर अनाज, गेहूँ व चावल वितरित किया जाएगा। परन्तु बिल को सही ढंग से क्रियान्वित न करने
के कारण गरीब श्रमिकों को इससे लाभ नहीं हुआ। सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत लैंगिक न्याय, गरीबों के लिए insurance cover,पेंशन योजना शिक्षा व स्वास्थ्य सुरक्षा सुविधा को सम्मिलित किया जाता है। इसके द्वारा सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ी हुए प्रवासी महिलाओं को समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित करना है। इन योजनाओं के द्वारा इस वर्ग को लाभ नहीं पहुँचा है जैसा कि सरकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा सर्वेक्षण में सिद्ध हो चुका है। सामाजिक सुरक्षा योजनाएं जैसे कि- मनरेगा, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,जन-धन योजना सभी भ्रष्टाचार से पीड़ित हैं। |
||||||
निष्कर्ष |
उपरोक्त सभी कदम प्रवासी महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को दूर करने हेतु उठाए गए। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रवासियों के कल्याण हेतु कमीशन बना दिया ताकि बिना किसी skill mapping के उन्हें रोजगार प्राप्त हो सके। आर्थिक व्यवस्था को दुरुस्त करने हेतु औद्दोगिक इकाइयों को सुचारू रूप से चलाना होगा। इसके लिए हमें प्रवासी श्रमिकों की सहायता लेनी होगी। सरकार को प्रवासी श्रमिक महिलाओं की सहायता हेतु कुशल योजना बनानी होगी, साथ ही इन्हें सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा प्रदान करनी होगी। |
||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. India has 139 million internal migrants .They must not be forgotten, available at:https://www.weforum.org/agenda/2017/10/India-has-139-million-internal-migrants-we-must-not-forget-them/
2. Lockdown in India has impacted 40 million internal migrants:world Bank dated:April23, 2020 available at: http://www.the hindu.com/news/international/lockdown-in-india-has-impacted-40- million-internal-migrants-world-bank /article 31411618.ece
3. Panic, fear Bigger problem Than coronavirus: sc on plea on migrant workers exodus, Dated: 30 March 2020, available at https://www. Outlook India. Com/website/story/India-news-supreme-court-to-hear-today-petition-seeking-amenities-for-migrant-workers/349698
4. 40 lakh Migrants Ferried By Shramik Trains:Govt,available at https://www.boomlive.in/buzz/40-lakh-1437
5. SC Directs States Not to Charge fares from stranded migrant workers, Dated:28may,2020,available at:https://www//the wire.in/law/supreme court-migrant-workers-fares-tushar-mehta
6. Direction To Transport Back Stranded Migrants In 15 Days Is Mandatory:SC available at :https://www. Livelaw.in/topstories/direction-to-transport-back-stranded-migrants-in-15-days-is-mandatory-sc-158584
7. Nations, United. 2020. “Policy Brief: The Impact of COVID-19 on Women.” 9 April Accessed September15. https://www.un.org/sexualviolenceinconflict/wpcontent/uploads/2020/06/report/policy-brief-the-impact-of-COVID-1onwomen/policy-brief-the-impact-of-COVID-19-on-women-en1.pdf
8. Pachauri, Swasti. 2020. “COVID-19 Outbreak Brings Attention Back to Informal Sector.” Down to Earth. 23 March. Accessed 11 September 2020. https://www.downtoearth.org.in/blog/urbanisation/COVID-19-outbreak-brings-attention-back-to-informal-sector-69947
9. Power, Kate. 2020. “The COVID-19 Pandemic Has Increased the Care Burden of Women and Families.” Sustainability: Science, Practice and Policy16 (1):6773.doi:10.1080/15487733.2020.1776561.
10. Sahas, Jan. 2020. Voices of the Invisible Citizens: A Rapid Assessment on the Impact of COVID-19 Lockdown on Internal Migrant Workers. New Delhi: Jan Sahas.https://ruralindiaonline.org/ library/resource/voices-of-the-invisible-citizens/
11. Sengupta, Sohini, and Manish K. Jha. 2020. “Social Policy, COVID-19andImpoverisheMigrants: Challenges and Prospects in Locked down India.” The International Journal of Community and Social Development 2(2):152172.doi:10.1177/2516602620933715.
12. Sharma, Yogima Seth. 2020. “National Database of Workers in Informal Sector in the Works”. The Economic Times. January19.Accessed 15 September 2020. https://economictimes. indiatimes.com/news/economy/indicators/national-database-of-workers-in-informal-sector-in-the-works/articleshow/73394732.cms?from=mdr
13. Suresh, Rajani, Justine James, and RSj Balraju. 2020. “Migrant Workers at Crossroads–The COVID-19 Pandemic and the Migrant Experience in India.” Social Work in Public Health 35 (7): 633–643. doi:10.1080/19371918.2020.1808552.
14. UN Women. 2020. “Guidance Note: Addressing the Impacts of the COVID-19 Pandemic onWomen Migrant Workers.” https://www.unwomen.org/en/digital-library/publications/ 2020/04/guidance-note-addressing-the-impacts-of-the-COVID-19-pandemic-on-women migrant workers
15. Varshney, Mohit, Jithin Thomas Parel, Neeraj Raizada, and Shiv Kumar Sarin. 2020. “Initial Psychological Impact of COVID-19 and Its Correlates in Indian Community: An Online (FEEL-COVID) Survey. ”Plos One 15 (5):e 0233874.doi:doi:10.1371/journal.pone.0233874 |