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पूर्वी उत्तर प्रदेश में अन्तर्जनपदीय कृषि उत्पादन का विश्लेषण | |||||||
Analysis of Inter-regional Agricultural Production in Eastern Uttar Pradesh | |||||||
Paper Id :
16489 Submission Date :
2022-09-17 Acceptance Date :
2022-09-21 Publication Date :
2022-09-25
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सारांश |
यह शोध पत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश के कृषि उत्पादन से सम्बन्धित है वर्तमान अध्ययन पूर्वी उत्तर प्रदेश के कृषि उत्पादन की प्रवृत्ति अन्तर्जनपदीय कृषि उत्पादन में विषमता एवं पांच अगडे एवं पांच पिछडे जिलों कोे चिन्हित करने हेतु केन्द्रित है। इस सम्बन्ध में यह शोध पत्र प्रस्तावना, साहित्यिक समीक्षा, कृषि उत्पादों के विश्लेषण एवं परिणाम पर आधारित है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | This Research is related to agriculture production of Eastern Uttar Pradesh. The present study is focused on trends, inter-district variation and identification of top five and bottom five districts of agriculture production in Eastern Uttar Pradesh. In this regard, the paper deals with introduction, review of literature, analysis of agricultural production, result and conclusion. | ||||||
मुख्य शब्द | कृषि उत्पादन, सिचाई, हरित क्रान्ति, फसल प्रारूप। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Agricultural Production, Irrigation, Green Revolution, Cropping Pattern | ||||||
प्रस्तावना |
उत्तर प्रदेश भारत के विशालतम राज्यों में से एक है। इस प्रदेश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 241 हजार वर्ग किमी0 है, जो भारत के सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र (3287 हजार वर्ग किमी0) का 7.33 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश का कुल क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश के बाद पाचवाँ स्थान है। जबकि जनसंख्या की दृष्टि से प्रथम है। पूर्व से पश्चिम तक विस्तार लगभग 650 किमी0 तथा उत्तर से दक्षिण तक विस्तार 240 किमी0 है। सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश को चार भागों में विभक्त किया जाता है-
1-पूर्वी क्षेत्र, 2- पश्चिमी क्षेत्र, 3- केन्द्रीय क्षेत्र, 4- बुंदेलखण्ड
उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले हैं, जिसमें से 27 जिले पूर्वी उत्तर प्रदेश में, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 30 जिले, केन्द्रीय क्षेत्र में 11 जिले तथा बुंदेलखण्ड में 07 जिले हैं। हरित क्रान्ति के पश्चात् पूर्वी उत्तर प्रदेश की कृषि ने प्रभावी वृद्धि दर्ज की है। इसी समय गेहूँ, चावल, तिलहन एवं दलहन के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई है। यह भी तब जब इस बीच कृषि उपज में विविधीकरण के कारण बागवानी और सब्जी उत्पादन पर अधिक जोर दिया गया है। यदि भविष्य में इस क्षेत्र में अधिक वृद्धि करना है तो इस क्षेत्र के कृषि विकास पर अधिक जोर देना होगा। इसलिए योजना और नीति पर पुनर्विचार करने के साथ-साथ कृषि विकास पर विशिष्ट ध्यान देना होगा।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. जिलेवार उत्पादन की स्थिति एवं उत्पादन की प्रवृत्ति का विश्लेषण।
2. विभिन्न फसलों के उत्पादन के आधार पर अग्रणीय एवं पिछड़े जिलों को चिन्हित करना। |
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साहित्यावलोकन | रामास्वामी सी0(2004) ने अपने अध्ययन ‘‘कांस्ट्रेंट्स टू ग्रोथ इन
इण्डियन एग्रीकल्चर नीडेड टेक्नोलाजी रिसोर्स मैनेजमेंट ऐण्ड ट्रेड स्ट्रैट्जीज’’ में पाया कि ”भारतीय कृषि की
विकास दर में कमी के विभिन्न अवरोधों यथा-पूँजी, आधुनिक कृषि तकनीक, संसाधनों की कमी
साथ-साथ मानवीय संसाधनों की अकुशलता व गरीबी आदि ऐसे कारण है जिससे कृषक उचित
मात्रा में खाद, उन्नत बीज कीटनाशक, उचित सिंचाई
व्यवस्था आदि का सही मात्रा में उपयोग न कर पाने के कारण कृषि पैदावार पिछड़ी हुई
है। इस अध्ययन से स्पष्ट है कि कृषि विकास में तेजी लाने के लिए उत्पादकता पर अधिक
ध्यान देने की आवश्यक्ता है। अतः उत्पादन में वृद्धि के लिए नयी प्रौद्योगिकी, तकनीकी ज्ञान
आदि में उचित प्रबंधन का होना आवश्यक है। सिंह व्ही0 एस0 ने ‘‘एग्रीकल्चर
प्रोडक्टिविटी ट्रेण्ड्स इन यू0पी0 एडिस्ग्नोस्टिक
स्टडी’’ के अध्ययन से पाया कि ”कृषि फसलों के
उत्पादन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला साधन सिंचाई है। यदि फसलों में सिंचाई
नहीं की जाए तो रासायनिक उर्वरक, अधिक उत्पादन देने वाले
उच्च किस्म के बीज तथा अन्य उत्पादन बढ़ाने वाले तत्व भी कोई आशा के अनुरूप अपना
परिणाम नहीं देते है।“ इस अध्ययन से स्पष्ट है कि सिंचाई फसलों के लिए
परम आवश्यक है। अतः बेहतर कृषि पैदावार के लिए उचित सिंचाई प्रबंधन पर ध्यान दिया
जाना चाहिए। सिंचाई का सही मात्रा में उपयोग कृषि फसलों के उत्पादन को काफी बढ़ा
सकती है। डॉ0 बाबू, एस0सी0 (2007)‘‘इल्ड प्राइस रिस्क लिमिटिंग फैक्टर्स’’ के अध्ययन में कहा गया है
कि कृषि क्षेत्र में खुदरा व्यापार पिछले दो दशाब्दियों में बहुत बढ़ा है क्योंकि
अधिकांश भारतीय की खाद्य उपभोग प्रवृत्ति में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। पारिवारिक
आय वृद्धि की स्वाभाविक प्रतिक्रिया स्वरूप खाद्यान्नों एवं खाद्य पदार्थ के
विभिन्न किस्मों के उपभोग में स्वाभाविक वृद्धि हुई है और उपभोग कर्ताओं द्वारा
गेहूँ और चावल सदृश्य पारम्परिक योग्य पदार्थों के स्थान पर मांस दुग्धोपदार्थ, मछली, फल और सब्जियों
सदृश अधिक गुणकारी और महंगे खाद्य पदार्थों का उपभोग बढ़ा है तथा अगले 20 वर्षों में इन
पदार्थों का उपभोग दुगुना हो जाने की
सम्भावना है। इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेखनीय है कि उपभोग की भावना विकसित हुई है।
इस दिशा में प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि देश में इन श्रेणियों कीे वस्तुओं के
उत्पादन बढ़े तथा प्रसंस्करण का विस्तार हो। लेखकार के अनुसार इसमें सबसे बड़ा
व्यवधान उपज और मूल्य कम होना तथा देश में
81 प्रतिशत से अधिक जोतों का 2 हेक्टेयर से छोटा होना है
जिसके कारण इन जोतो में विकास की सम्भावना कम हो जाती है।
शोध साहित्यों का अध्ययन करने के पश्चात् ज्ञात होता है कि आयोजन काल से ही
कृषि उत्पादन में वृद्धि की प्रवृत्ति रही है। कृषि पर मानसून तथा वर्षा का प्रभाव
पड़ा है। जहाँ सिचाई सुविधा उपलब्ध थी, वहाँ कृषि उत्पादन में अधिक
वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति से कृषि उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।
खाद्यान्न फसलों से नकदी फसल की तरफ कृषिकों का रूझान बढ़ा है । पूर्वी उत्तर
प्रदेश का मुख्य व्यवसाय कृषि है इसीलिए कृषि विकास के अध्ययन की आवश्यकता है, जिसके निमित्त
यह शोध प्रस्तावित है। उपरोक्त तथ्य के परिपेक्ष्य में पूर्वी उत्तर प्रदेश के अन्तर्जनपदीय
कृषि उत्पादन का अध्ययन किया जा सकता है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | आँकड़ों का स्रोत-वर्तमान अध्ययन पूर्वी उत्तर प्रदेश के 27 जिलों- प्रयागराज, कौशाम्बी, आजमगढ़, बहराइच, श्रावस्ती, बलिया, बस्ती, सन्त कबीर नगर, देवरिया, अयोध्या, अम्बेडकर नगर, गाजीपुर, गोण्डा, बलरामपुर, गोरखपुर, जौनपुर, मिर्जापुर, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, वाराणसी, चन्दौली, भदोही, सोनभद्र, मऊ, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर से सम्बन्धित काल श्रेणी (टाइम सिरीज) एवं क्राश सेक्सनल आँकड़े को द्वितीयक स्रोतों से एकत्रित किया गया है। सांख्यिकी पत्रिकाध्अर्थ एवं संख्या प्रभाग उ0प्र0 से द्वितीयक आँकड़े- वर्ष 2001-02, 2016-17 व फसलें क्रमशः चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दाल, इनका योग कुल खाद्यान्न उत्पादन से सम्बन्धित शामिल किए गए है।
शोध विधि- वर्तमान अध्ययन में द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त अध्ययन सम्बन्धी आँकड़ों को सारणीबद्ध किया गया है तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न फसलों हेतु उत्पादन के आधार पर समय विन्दु ( 2001-02, 2016-17) हेतु पाँच अग्रणीय एवं पाँच पिछड़े जिलों को चिन्हित किया गया है। इस तरह से पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलेवार कृषि फसलो के उत्पादन जिलेवार उत्पादन की स्थिति एवं उत्पादन की प्रवृत्ति की स्थिति की प्रवृत्ति को चित्र से प्रदर्शित करने के लिए क्रमशः स्तम्भ चार्ट प्रवृत्ति रेखा (टेªण्ड लाइन) को प्रयोग किया गया है। अन्तर्जनपदीय अध्ययन हेतु सांख्किीय उपकरण के रूप में समान्तर माध्य, प्रमाप विचलन एवं विचरण गुणांक का प्रयोग किया गया है। |
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विश्लेषण | पूर्वी उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में कृषि फसलों के उत्पादन की स्थिति एवं प्रवृत्ति
के अध्ययन हेतु चावल, गेहूँ, मोटे अनाज, दाल और कुल खाद्यान्न, से सम्बन्धित 2001-02 और 2016-17 वर्ष के आँकड़े के आधार पर
विश्लेषण किया गया है। अध्ययन मे शामिल फसलों के उत्पादन की स्थिति जिलेवार
दर्शायी गई है व उन फसलों के सन्दर्भ में किस प्रकार के परिवर्तन हुए हैं तथा
प्रवृत्ति का विश्लेषण निम्नवत् है- तालिका:- 1: पूर्वी उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में कृषि उत्पादन की स्थिति (मी0 टन)चित्र .1 चावल उत्पादन की स्थिति (मी0 टन) चित्र. 1 तालिका. 1 पर आधारित है। चित्र.2 तालिका.1 पर आधारित है।
तालिका.1, चित्र.1 एवं चित्र.2 से स्पष्ट है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में चावल
के सन्दर्भ में 2001-02 की तुलना में 2016-17 में बस्ती, मर्जापुर, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, वाराणसी, चन्दौली, सोनभद्र एवं कुशीनगर जिले में उत्पादन कम हुआ जबकि शेष सभी
जिलों का उत्पादन स्तर में वृद्धि दर्ज की गई। गेहूॅ के उत्पादन में उक्त अवधि के
दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के उत्पादन स्तर में वृद्धि दर्ज की गई।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में चावल, गेहूॅ एवं कुल
खाद्यान्न का औसत उत्पादन स्तर बढा जबकि मोटे अनाज एवं दाल के % औसत उत्पादन में कमी आई है। पूर्वी उ0प्र0 के जिलो के बीच चावल, गेहू, अनाज, दाले एवं कुल खाद्यान्न के उत्पादन स्तर में
विशेषताएं बढी है। (विचरण गुणांक के आधार पर) |
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परिणाम |
पूर्वी उत्तर प्रदेश में विभिन्न फसलों के उत्पादन में अग्रणीय पाँच जिले एवं पिछडे पाँच जिले पूर्वी उत्तर
प्रदेश में विभिन्न फसलों के उत्पादन में अग्रणीय जिलेः- 1-चावल उत्पादन में आजमगढ़ और महराजगंज अग्रणीय
जिलें लगातार बने हुए हैं। 2-गेहूँ के उत्पादन में आजमगढ़ सतत रूप से प्रथम
स्थान पर रहा है। 3- वर्ष 2001-02 से वर्ष 2016-17 तक बहराइच सतत रूप से मोटे
अनाज उत्पादन में अग्रणीय जिला बना हुआ है। 4-दाल के उत्पादन में प्रयागराज सतत रूप से वर्ष 2016-17 तक दाल उत्पादन में अग्रणीय जिला बना हुआ है। 5-कुल खाद्यान्न उत्पादन में आजमगढ़, प्रयागराज और जौनपुर जिले अग्रणी बने हुए हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में विभिन्न फसलों के उत्पादन में पिछड़े जिले 1-चावल उत्पादन में क्रमशः सोनभद्र, वाराणसी और मऊ चावल उत्पादन में पिछड़े जिले रहे। 2-गेहूँ उत्पादन में सोनभद्र सबसे पिछड़ा जिला बना
रहा, मात्र वर्ष 2016-17 में वाराणसी की स्थिति पिछड़े जिले के रूप मे दृष्टिगोचर होती है। 3-मोटे अनाज के उत्पादन में पिछड़े जिले की स्थिति
में महराजगंज एवं सिद्धार्थ नगर जिला पिछड़े जिले के रूप में अवस्थित है। 4-दाल उत्पादन में कुशीनगर सबसे पिछड़ा जिला बना
हुआ है।
5-कुल खाद्यान्न उत्पादन में सोनभद्र सतत रूप से
पिछड़ा जिला बना हुआ है। |
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निष्कर्ष |
इस प्रकार स्पष्ट है कि पूर्वी उ0प्र0 के कुछ जिलों को छोडकर अधिकांश जिलों में मुख्य फसलों का उत्पादन बढा जबकि मोटे अनाज का उत्पादन घटा है ऐसा लगता है कि कृषि फसल का पूर्वी उ0प्र0 के जिलो में फसल प्रारूप की एक ही दिशा रही है। उत्पादन में विषमताएं बढ़ी है जो यह संकेत देता है कि कृषि की पद्धति में प्रगति की असमानता है। आजमगढ जिला पूर्वी उ0प्र0 में मुख्य फसल उत्पादन करने वाला मुख्य जिला है जबकि सोनभद्र की स्थिति बहुत खराब है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. कृषि टूडे पत्रिका 2001-2011।
2. मेहता डा0 बल्लभदास कृषि अर्थशास्त्र नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली 1989।
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5. भारतीय कृषि अनुसंधान पत्रिका-सितम्बर, 2013
6. श्रीवास्तव डी0एस0 कृषि के परिवर्तन प्रतिरूपों का भौगोलिक अध्ययन क्लासिकल पब्लिशिंग कम्पनी, नई दिल्ली, 2001।
7. श्रीवास्तव दया शंकर, कृषि के परिवर्तनशील स्वरूपों का अध्ययन, क्लासिकल पब्लिशिंग कम्पनी, नई दिल्ली 2013।
8. उत्तर प्रदेश कृषि आँकड़ों का बुलेटिन-20001-2011 संयुक्त कृषि निदेशक (सांख्यिकी) कृषि निदेशालय उत्तर प्रदेश लखनऊ।
9. उत्तर प्रदेश की आर्थिक समीक्षा वर्ष-2011
10. उत्तर प्रदेश सांख्यिकी डायरी वर्ष-2011 (अर्थ एवं संख्या प्रभाग राज्य नियोजन संस्थान उत्तर प्रदेश)
11. त्यागी डा0 वी0जी0 भारत, अर्थशास्त्र, जय प्रकाश ऐण्ड कम्पनी, मेरठ (उ0प्र0) संस्करण-2003-पी0पी0-87-96
12. जोशी डा0 के0एन0 एवं डा0 मिश्रा मंजुला, कृषि अर्थशास्त्र के सिद्धान्त एवं भारत में विकास 2001।
13. updes.up.nic.in/spatrika-2014 |