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पर्यावरणीय आन्दोलन तथा पुरस्कार |
Environmental Movement and Awards |
Paper Id :
16461 Submission Date :
2022-09-26 Acceptance Date :
2022-09-27 Publication Date :
2022-10-05
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सुधा सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
शिक्षा विभाग
राधारमण मिश्रा पीजी कॉलेज
प्रयागराज,उत्तर प्रदेश, भारत
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सारांश
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चिपको आन्दोलन - सितम्बर, 1930 ई. में राजस्थान जोधपुर के राजा अभय सिंह को महल बनाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता पड़ी। जोधपुर के पास में ही एक गाँव था। उस गाँव का नाम था ‘खेजड़ली‘ अभय सिंह ने खेजड़ी वृक्षों को काटकर लाने का सन्देश दिया गाँव की औरतों के मार्मिक अपील करने के बाद भी अभय सिंह के कर्मचारियों ने वृक्ष काटने का काम जारी रखा। इस तरह से औरतें खेजड़ी के वृक्षों से चिपक गयीं। इसके बाद अभव सिंह के कर्मचारियों ने 363 व्यक्तियों को काट डाला। इस गाँव में इन मृतकों की स्मृति में आज भी एक मेला आयोजित किया जाता है। चिपको आन्दोलन की शुरुआत 1970 में हुई। ग्रामवासियों के साथ श्री चण्डीप्रसाद भट्ट के द्वारा पेड़ों से चिपककर उन्हें काटने नहीं दिया गया। इसके बाद भी सुन्दरलाल बहुगुणा द्वारा चिपको आन्दोलन को उत्तेजित किया गया।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद |
Chipko Movement - In September, 1930 AD, King Abhay Singh of Jodhpur Rajasthan needed wood to build a palace. There was a village near Jodhpur, the name of that village was 'Khejdali' Abhay Singh gave the message to bring back Khejdi trees. Even after the women of the village made a touching appeal, Abhay Singh's employees continued the work of cutting trees. In this way the women clung to the khejdi trees. After this Abhay Singh's employees killed 363 people. Even today a fair is organized in this village in the memory of these dead. Chipko movement started in 1970. They were not allowed to be cut by Mr. Chandiprasad Bhatt along with the villagers by clinging to the trees. Even after this, the Chipko movement was encouraged by Sunderlal Bahuguna. |
मुख्य शब्द
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लोग, क्रांति, वनों का संरक्षण, पुरस्कारों का महत्व। |
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद |
People, Revolution, Conservation of Forests, Importance of Awards. |
प्रस्तावना
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पर्यावरणीय परिवर्तनों को संबोधन और कैसे सराहनात्मक प्रयास नुकसान को कम करने में मदद करते हैं | चिपको आन्दोलन के अनुसार इसके निम्न दो उद्देश्य हैं-1.अपने आर्थिक स्वार्थों के लिए वनों का दोहन न करना। 2.अधिक-से-अधिक पौधे लगाना तथा पर्यावरण की सुरक्षा करना । चिपको आन्दोलन के अनुसार वनों की उपलब्धियों को हम निम्न बातों से समझ सकते हैं, जैसे- 1. जलाऊ ईंधन (fuel wood) 2. चारा (fodder) 3.फल (fruit) 4.रेशा (fibre) 5.खाद (fertilizer)
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अध्ययन का उद्देश्य
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प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य पर्यावरणीय आन्दोलन मुख्यतः चिपको आंदोलन का वर्णन करना है। |
साहित्यावलोकन
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पर्यावरणीय आन्दोलन, तथा पुरस्कार
के सन्दर्भ में, पुराणों तथा धार्मिक ग्रन्थों में विभिन्न
विचार प्रस्तुत किये गये है, जो आज भी प्रासंगिक है, वेदान्त के द्वारा विभिन्न समस्याओं भावात्मक रूप से प्रभावित करती है। कौटिल्य के शब्दों में-‘‘राज्य की स्थिरता पर्यावरण की स्वच्छता पर निर्भर करती है।’’ समय-समय पर विभिन्न विचारकों ने पर्यवेक्षण के माध्यम
से विचार प्रस्तुत किये हैं। चरक का कहना है कि-‘‘स्वस्थ जीवन के लिए शुद्ध वायु, जल तथा मिट्टी
आवश्यक है, लेकिन वर्तमान समय में तीनों की उपेक्षा हो रही
है। जो भयंकर रोगों को जन्म दे रहा है। हम सभी अपने भौतिक स्वार्थ में भविष्य की
उपेक्षा करते हैं। जिसमें भौतिक संसाधनों ने प्राकृतिके संसाधनों का दोहन किया है।
बढ़ता हुआ पर्यावरणीय असन्तुलन विनाश को जन्म दे चुका है। महाकवि कालिदास ने
अभिज्ञान शाकुन्तलम तथा मेघदूत जैसे अमर काव्यों में मन पर पर्यावरण का प्रभाव को
प्रदर्शित करता है।
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मुख्य पाठ
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चिपको आन्दोलन
की तरह ही पर्यावरण बचाने के लिए निम्नलिखित आन्दोलन किये गये जिनसे जन-जागरूकता
का प्रचार हो सके। जैसे -1. कर्नाटक, अप्पिको आन्दोलन, 2. अल्मोड़ा जिला पर्वतीय युवा
मोर्चा, 3. आन्ध्र प्रदेश भागवतुल्ला
चैरिटेबल ट्रस्ट, 4. मिर्जापुर । बाबा आम्टे
आन्दोलनअल्मोड़ा जिले के पर्वतीय युवा मोर्चा ने वन चेतना जगाने के लिए पदयात्रा और
वृक्षारोपण शिविरों का आयोजन किया था ।आन्ध्र प्रदेश के ‘भागवतुल्ला
चैरिटेबल ट्रस्ट‘ द्वारा बाँस, सफेदा,
काजू, नारियल, बबूल और
निम्न प्रकार की घासों को उगाने की प्रेरणा देना है। मिर्जापुर का वनवासी सेवा
आश्रम सामाजिक वानिकी की तरफ क्रियाशील है। महाराष्ट्र में बाबा आम्टे ने वृक्षों
की रक्षा के लिए पैदल यात्राएँ करके छात्रों व जनता में जागरूकता उत्पन्न किया।
सन् 1982 ई0 में महाराष्ट्र के अनेक
कॉलेजों के 1500 छात्रों ने एक लाख पौधे लगाने के लिए साइकिल
यात्राएँ की थीं।राष्ट्रीय पुरस्कारों के माध्यम से जागरूकता - जागरूकता के
सन्दर्भ में पुरस्कार हमेशा लोगों को प्रेरित करता रहता है इसीलिए निम्न
पुरस्कारों की व्यवस्था की गयी। 1. महावृक्ष पुरस्कार इस
पुरस्कार की शुरुआत सन् 1993-94 में हुआ था जिनमें पुरस्कृत
नकद राशि 2500 रुपये था। पुरस्कार का सम्बन्ध वृक्षों की
ऊँचाई, रख-रखाव एवं सम्बन्धित व्यक्ति तथा संस्थान से था। 2.
इन्दिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार- इसकी शुरुआत 1987 में हुआ था जिसकी नकद राशि एक लाख रुपये थी तथा प्रशस्ति पत्र एवं रजत
ट्राफी प्रदान किया जाता था । 3. वृक्षमित्र पुरस्कार - इसकी
शुरुआत सन् 1986 में हुई थी 'परती' भूमि को वृक्षों के
माध्यम से विकसित करने के लिए इस पुरस्कार की व्यवस्था की गयी थी जिसमें 50
हजार रुपये तथा प्रशस्ति-पत्र शामिल था। वृक्षमित्र सम्बन्धी
प्रत्येक वर्ष 10 पुरस्कार प्रदान किये जाते थे। 4. विशिष्ट वैज्ञानिक पुरस्कार- इस पुरस्कार में 20-20 हजार
के दो पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं। यह पुरस्कार वैज्ञानिकों को भौतिक एवं
व्यावहारिक अनुसन्धान के लिए प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण विभाग
द्वारा निम्नलिखित पर्यावरण दिवसों को महत्व दिया गया तथा पर्यावरण विभाग का यही
उद्देश्य रहता है कि अपने देश से ले करके सम्पूर्ण विश्व में मेदिनी पुरस्कार के
रूप में पर्यावरण दिवस का प्रसार हो। पृथ्वी दिवस-22 अप्रैल
को हम लोग पृथ्वी दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन हम सभी लोग रैलियाँ निकालते
हैं, सेमिनार का आयोजन करते हैं तथा पृथ्वी की भौगोलिक
स्थिति प्राकृतिक स्थिति तथा आकाश, वायु, जल, स्थल आदि की समीक्षा एवं जायजा लेते हैं1 हम उन सभी बातों पर चर्चा करते हैं, जिनमें पर्यावरण
के असन्तुलन होने से तबाही का सामना करना पड़ा था। जैसे- 1940 में लॉस एंजिल्स में वायुमण्डल की प्रदूषित गैसों से बने आवरण से हजारों
मौतें हुई थीं दुबारा ऐसा न हो इसीलिए जन-जागरूकता का प्रसार करते हैं। सन् 1952
लन्दन में 'स्मोग' के कारण 4000 मौतें हुई
थीं और सन् 1950 में जापान के ‘मिनीमाटा
एपीसोड‘ में उद्योग से निकलनेवाले जहरीले पदार्थ कम्पाउण्ड
से लाखों लोग और समुद्री जीव-जन्तु प्रभावित हुए थे। जल-दिवस-22 मार्च को जल दिवस मनाया जाता । समस्या की बात यह है कि पानी की कमी जहाँ
सबसे ज्यादा है वहाँ की जनसंख्या अधिक है वैसे तो जल जागरूकता का विकास छोटे स्तर
से बहुत पहले शुरू था, लेकिन विश्व-स्तर से सन् 1994 में प्रसार किया गया। जल जागरूकता विश्व-स्तर से मापने के कुछ मुख्य
उद्देश्य निम्न हैं- 1. वर्षा जल को एकत्रित करना। 2. जल को दूषित होने से बचाना। 3. जल का दुरुपयोग न करना। 4. पानी का प्यूरीफिकेशन। विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून-जून, 1972 में राष्ट्र संघ द्वारा स्टॉकहोम,
स्वीडन में ‘मानव पर्यावरण‘ की जागरूकता के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित किये गये थे भारत की
तरफ से श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने प्रतिनिधित्व किया था, जिसमें
113 देशों की भागीदारी थीं। इस पर्यावरण कॉन्फ्रेन्स में 26
सूत्री कार्यक्रम प्रचारित किये गये थे, जिनके
कुछ मुख्य विषय इस प्रकार थे- 1. अम्लीय वर्षा का समाधान। 2.
जल एवं वायु प्रदूषण की रोकथाम। 3. औद्योगिकीकरण
के फलस्वरूप निकलनेवाले अपशिष्टों से निजात पाना। 4. त्वचा
कैन्सर की जानकारी प्राप्त करना एवं जागरूक होना। 5. ओजोन परत
के छिद्रों के विषय में गम्भीरता से विचार करना। ओजोन दिवस 16 सितम्बर- ओजोन परत का कार्य सूर्य की नुकसानदायक अल्ट्रावॉयलेट किरणों को
कवर्ड कर देना है। सूर्य की हानिकारक किरणों से आँखों की खराबी, त्वचा का कैन्सर, इम्यून सिस्टम में खराबी उत्पन्न
होती है। यह ओजोन परत जमीन की सतह से लगभग 20 किलोमीटर ऊपर
वायुमण्डल में उत्पादन के स्वरूप में पाया जाता है कुछ ऐसे तत्त्व भी हैं जो आज भी
ओजोन परत की क्षति पहुँचा रहे हैं। उत्कृष्टता केन्द्र- भारत सरकार के माध्यम से
पर्यावरण मन्त्रालय विभाग ने पर्यावरणीय विज्ञान और प्रबन्ध के प्राथमिकतावाले
क्षेत्रों में अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण की दृष्टि से निम्न उत्कृष्टता के
केन्द्रों को स्थापित किया गया जो इस प्रकार हैं 1. अहमदाबाद
में ‘नेहरू फाउण्डेशन फॉर डेवलपमेण्ट‘ की
शुरुआत 1984 में हुई थी जिनका सम्बन्ध पर्यावरणीय शिक्षा से
था। 2. धनबाद में "इण्डियन स्कूल ऑफ माइन्स" संस्था को
क्रियान्वित किया गया जिसका सम्बन्ध खनन सम्बन्धी वैज्ञानिक आँकड़े तैयार करना था।
3. सन् 1990 में श्सालिम अली पक्षी विज्ञान
केन्द्र, कोयम्बटूरश् में संस्था की स्थापना की गयी ‘नेशनल हिस्ट्री सोसाइटी, बम्बई‘ से था जिनमें पक्षी विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञान के विषय में जागरूकता
एवं जानकारी प्रदान की जाती थी। 4. सन् 1997 में 'सेण्टर फॉर एनवॉयरनमेण्टल मैनेजमेण्ट ऑफ डिग्रेडेड इकोसिस्टम'
संस्था को महत्त्व दिया गया, जिसका क्षेत्र अवक्रमित
पारिप्रणाली के प्रबन्धन पर्यावरण से था।इसके अतिरिक्त उत्कृष्टता केन्द्रों से
सम्बन्धित विभिन्न केन्द्रों की स्थापना हुई थी, जैसे- धनबाद
केन्द्र पर पर्यावरण-सम्बन्धी विज्ञान तथा खनन में एम0 टेक0
की व्यवस्था है। बंगलौर केन्द्रों पर जैविक विविधता सम्बन्धी
विभिन्न सुविधाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। इन विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से हम
जागरूकता को जीवन्त कर सकते हैं।देश के संविधान में पर्यावरण परिवर्तन सम्बन्धी
संविधान में संशोधन मानव पर्यावरण कॉन्फ्रेन्स के बाद हुआ था जो भारत सरकार ने
पर्यावरण संरक्षण की सुरक्षा के लिए किया था, जिन्हें निम्न
दो रूपों में जानते हैं जैसे - 1. अनुच्छेद 48-ए2.51-ए (जी)मुख्य उद्देश्य-भारत का संविधान
अनुच्छेद 48-ए-अनुच्छेद 48-ए के
अन्तर्गत पर्यावरण का संरक्षण, सुधार एवं सुरक्षा करने के
साथ-साथ देश के वन एवं वन्य जीवों की सुरक्षा का प्रयास शामिल था। भारत का संविधान
अनुच्छेद 51- ए. जी. इस अनुच्छेद का सम्बन्ध भारत के
नागरिकों से था जिसमें प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह झील, नदी, जंगली जानवरों आदि के प्रति सहानुभूति पूर्ण
दृष्टिकोण अपनायें। जागरूकता सम्बन्धी सुझाव- पर्यावरण जागरूकता सिर्फ किताबों में
शामिल करने के लिए या परीक्षा पास करने के लिए ही नहीं होना चाहिए। हम विभिन्न
सुझावों के माध्यम से निम्न प्रकार के समाधान निकाल सकते हैं- जैसे - जिस तरह से
गाँव, शहर, कस्बे में राशन वितरित करने
के लिए सरकार ने कोटा (Control) वितरण प्रणाली की आवश्यकता समझी। ठीक उसी तरह
कोटा के माध्यम से प्रत्येक महीने पौधों को वितरित करने का आदेश देना चाहिए तथा
कितने पौधे सुरक्षित हैं इसके लिए अलग से नियम तथा धारा की आवश्यकता होनी
चाहिए।इसके अतिरिक्त पर्यावरण के कार्ड पर वृक्षों का उचित मूल्य तथा वितरित करने
का समय अंकित किया जाना चाहिए तथा नौकरी के प्रयास हेतु उम्मीदवारों को मार्कशीट
की तरह पर्यावरण मार्कशीट को शामिल करना चाहिए तभी लोग पर्यावरण पर गहरा चिन्तन कर
पायेंगे वरना सिर्फ योजना बनाने अथवा वृक्ष लगवाने से सन्तुलन नहीं बनेगा तथा
हमारा जाँच विभाग जिस तरह से राशन कोटा कार्ड की समीक्षा करता है, उसी तरह वृक्षों की देख-रेख के लिए सघन जाँच की समीक्षा भी की जाय।
वृक्षों या पौधों के सूखने पर 500 रु० का जुर्माना किया गया था। ऐसा
करने से प्रदूषण जैसी सर्वव्यापी समस्या एक साल के अन्दर नियन्त्रित की जा सकती
है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हमारा देश मरुस्थल बन जायेगा। |
निष्कर्ष
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वर्फीली चोटियों का पिघलना, नदियों में पानी का सूखना, फसलों का खड़े-खड़े नष्ट हो जाना घोर चिन्ता का विषय है। बुजुर्गो को चाहिए कि बालकों को बचपन से ही पेड़ पौधा लगाने के लिए प्रेरित करें। |
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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1. Kumar V.K. (1982): A Study in Environmental Pollution, Tara Book Agency, Varanasi, 205 pp.
2. Khoshoo. T.N. (1984): Environmental Concerns and Strategies; Indian Environmental Society.
3. Lohani B.N. (1984): Environmental Quality Control; South Asian Publishers, New Delhi, pp. 448.
4. Nicholson, M. (1972): The Environmental Revolution, Penguin, and Harmondsworth.
5. A Study of Environmental Awareness of Students at Higher Secondary Level By R.Danielraja
6. Environmental Awareness Level Among University Students in Malaysia: A Review By Syazni Jusoh |