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पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व का संकटः कारण एवं समाधान | |||||||
Crisis of Political Leadership in Pakistan: Causes and Solutions | |||||||
Paper Id :
16498 Submission Date :
2022-09-01 Acceptance Date :
2022-09-22 Publication Date :
2022-09-25
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सारांश |
वर्तमान में पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता एवं राजनैतिक नेतृत्व के संकट का सामना कर रहा है। पाकिस्तान में प्रारंभ से ही राजनैतिक नेतृत्व कमजोर रहा है। मोहम्मद अली जिन्ना एवं लियाकत अली खान नेतृत्व के पश्चात ही पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व का संकट उत्पन्न हो गया। 1947-1958 का समय नौकरशाही प्रभुत्व का रहा एवं सेनानायको एवं सरकारी तंत्र के गठजोड़ के समक्ष राजनैतिक नेतृत्व असहाय एवं असमर्थ सिद्ध हुआ। परिणामस्वरूप 1958, 1969, 1977, 1999 में सैन्य तख्तापलट हुआ। 1971 - 1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो का करिश्माई नेतृत्व, 1988-1999 का बेनजीर भुट्टो एवं नवाज शरीफ शासन का लोकतांत्रिक दशक एवं 2008 से वर्तमान समय तक लोकतांत्रिक शासन राजनैतिक नेतृत्व को मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है, लेकिन अप्रैल 2022 में इमरान खान सरकार गिरने के पश्चात फिर से राजनैतिक नेतृत्व का संकट उत्पन्न हो गया है। वर्तमान परिस्थितियों में पाकिस्तान के आंतरिक एवं बाह्य कारक क्या राजनैतिक नेतृत्व के संकट को वास्तविक रुप से दूर कर पाएंगे, यह प्रश्न संदेहास्पद एवं विचारणीय है। इसी पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत शोध पत्र में ‘पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व का संकटः कारण एवं समाधान‘ विषय के अंतर्गत पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व के संकट के लिए जिम्मेदार कारणों एवं राजनैतिक नेतृत्व के संकट को दूर करने वाले समाधानों का विश्लेषण किया गया है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | At present Pakistan is facing political instability and crisis of political leadership. The political leadership in Pakistan has been weak since its inception. It was only after the leadership of Muhammad Ali Jinnah and Liaquat Ali Khan that a crisis of political leadership arose in Pakistan. The period of 1947-1958 was dominated by bureaucracy and the political leadership proved helpless and incapable in the face of the alliance between the generals and the government machinery. The result was military coups in 1958, 1969, 1977, 1999. The charismatic leadership of Zulfikar Ali Bhutto in 1971-77, the democratic decade of Benazir Bhutto and Nawaz Sharif regimes of 1988-1999 and democratic rule from 2008 to present is a positive effort towards consolidating the political leadership, but in April 2022 After the fall of the Imran Khan government, the crisis of political leadership has arisen again. In the present circumstances, whether the internal and external factors of Pakistan will be able to really solve the crisis of political leadership, this question is questionable and worth considering. Keeping this background in mind, the research paper presented under the topic 'Crisis of Political Leadership in Pakistan: Causes and Solutions' has analyzed the reasons responsible for the crisis of political leadership in Pakistan and solutions to overcome the crisis of political leadership. | ||||||
मुख्य शब्द | राजनैतिक नेतृत्व ,लोकतांत्रिक शासन ,नौकरशाही , सैन्य शासन, संस्थानीकरण । | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Political Leadership, Democratic Government, Bureaucracy, Military Rule, Institutionalization. | ||||||
प्रस्तावना |
किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में संसदीय तंत्र की सफलता सक्षम राजनैतिक नेतृत्व पर निर्भर करती है। सक्षम एवं सफल राजनैतिक नेतृत्व के निर्देशन के फलस्वरुप संसदीय प्रणाली अधिक सुचारु रूप से अस्तित्व में रहती है। सक्षम राष्ट्रीय नेतृत्व से ही संस्थाकरण एवं राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया मजबूत होती है। विकासशील देशों में सक्षम नेतृत्व की आवश्यकता अधिक होती है। विकासशील देशों का स्वरूप सामान्यतः बहुल सामाजिक एवं बहुल सांस्कृतिक होता है। इन देशों में राष्ट्र निर्माण की प्रमुख चुनौती होती है। विशेषतः दक्षिण एशियाई देशों में राजनैतिक नेतृत्व का संकट सदा ही विद्यमान रहा है। पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व की समस्या भारत, श्रीलंका आदि देशों की तुलना में अधिक रही है। पाकिस्तान तीसरी दुनिया का विकासशील देश है। यहां सक्षम नेतृत्व की आवश्यकता अधिक होती है, परंतु दुर्भाग्यवश पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व प्रारंभ से ही कमजोर रहा है। मोहम्मद अली जिन्ना एवं लियाकत अली खान नेतृत्व के पश्चात ही पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व का संकट उत्पन्न हो गया। संवैधानिक एवं संस्थानिक कमजोरियों के साथ-2 विकासशील देशों में सक्षम नेतृत्व की आवश्यकता अधिक होती है। विकासशील देशों का स्वरूप सामान्यतः बहुल सामाजिक एवं बहुल सांस्कृतिक होता है। इन देशों में राष्ट्र निर्माण की प्रमुख चुनौती होती है। विशेषतः दक्षिण एशियाई देशों में राजनैतिक नेतृत्व का संकट सदा ही विद्यमान रहा है। पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व की समस्या भारत, श्रीलंका आदि देशों की तुलना में अधिक रही है। पाकिस्तान तीसरी दुनिया का विकासशील देश है। यहां सक्षम नेतृत्व की आवश्यकता अधिक होती है, परंतु दुर्भाग्यवश पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व प्रारंभ से ही कमजोर रहा है। मोहम्मद अली जिन्ना एवं लियाकत अली खान नेतृत्व के पश्चात ही पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व का संकट उत्पन्न हो गया। संवैधानिक एवं संस्थानिक कमजोरियों के साथ-साथ राजनीतिक दल एवं नेताओं की नकारात्मक भूमिका के कारण पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता का दौर प्रारंभ हुआ। 1947-1958 के समय नौकरशाही प्रभुत्व का माना गया एवं सेनानायको एवं सरकारी तंत्र के गठबंधन के समक्ष राजनैतिक नेतृत्व असहाय एवं असमर्थ सिद्ध हुआ। परिणामस्वरूप 1958, 1969, 1977 एवं 1999 का सैन्य तख्ता पलट एवं 1971 में पाकिस्तान का विघटन हुआ। 1971-1977 में जुल्फिकार अली भुट्टो को करिश्माई नेतृत्व, 1988-1999 का बेनजीर भुट्टो एवं नवाज शरीफ शासन का लोकतांत्रिक दशक एवं 2008 से वर्तमान समय तक का लोकतांत्रिक शासन राजनैतिक नेतृत्व को मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है। जुलाई 2018 में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष इमरान खान भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद और अर्थव्यवस्था में सुधार के वादे के आधार पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए। बढ़ता विदेशी कर्ज, महंगाई, बेरोजगारी, चरमराती अर्थव्यवस्था, सेना के साथ बिगड़ते संबंध से जन समर्थन में कमी एवं बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी और नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग के गठबंधन के दबाव के कारण इमरान खान सरकार गिर गई। पुनः पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता एवं राजनैतिक नेतृत्व का संकट उत्पन्न हो गया। पाकिस्तान का गठन हुए 75 वर्ष पूर्ण हो गए है। इन 75 वर्षों में केवल 37 वर्ष सिविलियन सरकार एवं 22 प्रधानमंत्री रहे हैं, लेकिन इन 22 प्रधान मंत्रियों में से कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूर्ण नहीं करपाया है। इस संदर्भ में कई विचार एवं प्रश्न उठते हैं, जैसे कि पाकिस्तान में स्वतंत्रता के पश्चात राजनीतिक नेतृत्व का स्वरूप कैसा रहा ? राजनीतिक नेतृत्व को गैर राजनीतिक तत्वों ने कैसे प्रभावित किया ? पाकिस्तान में प्रारंभ से लेकर आज तक नेतृत्व संकट एवं शून्यता क्यों है ? राजनीतिक दलों से युक्त नागरिक नेतृत्व की सुशासन की दिशा में कमजोर भूमिका क्यों संदिग्ध है ? पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व संकट के क्या कारण रहे हैं एवं राजनीतिक नेतृत्व के संकटों के समाधान के क्या कदम हो सकते हैं ? कैसा नेतृत्व एक अस्थिर, दुर्बल और असफल राज्य को स्थिर, शांति पूर्ण और विकसित राज्य में बदल सकता है एवं पाकिस्तान के लोगों के लिए एक उत्कृष्ट भविष्य निश्चित कर सकता है। प्रस्तुत शोध पत्र में इन्हीं विचारों एवं प्रश्नों को हल करने का प्रयास किया गया है एवं इसी पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व के संकट के कारणों एवं राजनैतिक नेतृत्व के संकट को दूर करने वाले समाधानों का विश्लेषण किया गया है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1.पाकिस्तान निर्माण के पश्चात पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व की दशा एवं दिशा को स्पष्ट किया गया है। पाकिस्तान में राजनैतिक नेतृत्व के संकट के कारणों का मूल्यांकन एवं विश्लेषण किया गया है।
2. पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व संकट के समाधानों का विश्लेषण किया गया है।
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साहित्यावलोकन | प्रस्तुत शोध पत्र के संबंध में उपलब्ध साहित्य का अवलोकन एवं समीक्षा भी की गई
है। स्टीफन पी. कोहन ने अपनी पुस्तक ‘द आइडिया ऑफ
पाकिस्तान ‘(2005) में पाकिस्तान
का राजनीतिक, सैनिक, आर्थिक, वैदेशिक संबंधी
सभी कारकों का समग्र दृष्टि से विश्लेषण किया है। सफदर महमूद द्वारा लिखित पुस्तक‘ पाकिस्तानः
पॉलिटिकल रूट्स एंड डेवलपमेंट 1947-1949 (2000) में पाकिस्तान
के राजनीतिक और आर्थिक प्रबंधन ,कमजोर लोकतंत्र, नेतृत्व संकट, मुस्लिम लीग के
पतन और राजनीतिक दलों के पतन जैसी समस्याओं पर विचार विमर्श किया गया है। इयान
टेलबोट द्वारा लिखित पुस्तक ‘पाकिस्तानः ए मॉडर्न
हिस्ट्री‘ (2005) में 1947 से सैन्य शासक
जनरल परवेज मुशर्रफ के शासन काल तक के राजनीतिक ,आर्थिक एवं
सामाजिक घटनाक्रम का विवरण प्रस्तुत किया है। लॉरेंस जिरिंग द्वारा लिखित पुस्तक ‘पाकिस्तान: एट द
क्रॉसकरंट ऑफ हिस्ट्री‘ (2004) में पाकिस्तान के निर्माण
से मुशर्रफ शासन काल तक के इतिहास का विवेचन किया है। पुस्तक में सैन्य शासन एवं
पाकिस्तान में लोकतंत्रात्मक शासन का भी उल्लेख किया है। एनाटॉल लीवेन द्वारा
लिखित पुस्तक ‘पाकिस्तानः ए
हार्ड कंट्री‘ (2011)
में पाकिस्तान में न्यायपालिका, धर्म, सेना एवं
राजनीति की भूमिका को इंगित किया है। अजहर हसन नदीम ने अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान: द
पॉलिटिक्स ऑफ द मिसगवर्नड (2020) के अंतर्गत पाकिस्तान में
विधि का शासन, न्यायपालिका, राजनीतिक दल, सेना, राजनीति, स्थानीय सरकार, नागरिक समाज, सामाजिक आर्थिक
परिदृश्य, आतंकवाद आदि का
विस्तृत रूप से विश्लेषण किया है। उपर्युक्त सर्वेक्षण यह इंगित करता है कि
पाकिस्तान में नेतृत्व के विविध पक्षों के संबंध में बहुत सा साहित्य प्रकाश में
आया है, इन सब के बावजूद
भी पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व संकट के संदर्भ में उपलब्ध साहित्य का अभाव एवं
अध्ययन की निरंतरता की दिशा में प्रस्तुत
शोध पत्र एक गंभीर एवं सारगर्भित प्रयास है। |
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मुख्य पाठ |
प्रस्तुत शोध पत्र में पाकिस्तान में राजनैतिक
नेतृत्व संकट के प्रमुख कारण एवं नेतृत्व संकट के
समाधानों पर विस्तृत रूप से
विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया गया है। पाकिस्तान में राजनैतिक
नेतृत्व संकट के कारण प्रथमः संस्थानिक कमजोरियां - पाकिस्तान का
प्रथम दशक लोकतांत्रिक संस्थाओं के निर्माण का एक निर्णायक क्षण था। दुर्भाग्य
से राजनीतिक दल लोकतांत्रिक संस्थाओं को
मजबूत करने में विफल रहे। पाकिस्तान में संविधान,संसद,सर्वोच्च
न्यायालय,केंद्रीय बैंक
एवं संगठित राजनीतिक दलों का निर्माण नहीं किया जा सका। परिणामस्वरूप नौकरशाही एवं सेना को राजनीति में
हस्तक्षेप का अवसर मिला। हालांकि पाकिस्तान में तीन संविधान 1956, 1962,1973 में निर्मित
किए गए एवं विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना की गई, परंतु इन
संविधानों की मूल भावना के विरुद्ध विभिन्न संविधान संशोधन जिसमें प्रमुख रुप से आठवां संविधान संशोधन है, लोकतांत्रिक
संसदीय प्रणाली को क्षति पहुंचाई गई या उन्हें समाप्त कर दिया गया। यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में संस्थाएं
एवं संविधान तो विद्यमान था लेकिन संस्थानीकरण एवं संविधानवाद की कमी रही। द्वितीयः- कमजोर राजनीतिक दल एवं उन पर अभिजात्य
नियंत्रण-पाकिस्तान में राजनीतिक दल प्रारंभ से व्यक्तिवादी, असंगठित एवं
कमजोर रहे हैं। पाकिस्तान में राजनीतिक दल तानाशाही एवं सत्तावादी मनोवृति के
शिकार रहे हैं। क्योंकि पाकिस्तान में सेना, नौकरशाही, धार्मिक उलेमा
वर्ग, सामंतवादी
एवं राजनीतिक अभिजन वर्ग के मध्य गठजोड़
रहा है। यह मनोवृति आज भी अनेक राजनीतिक दलों के मध्य कायम है। परिणामस्वरूप इन
राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार, कुनबापरस्ती एवं अकुशलता
द्वारा लोकतंत्र को कमजोर किया गया है। पाकिस्तान के राजनीतिक दलों ने राष्ट्रहित
की तुलना में अपने निजी हितो पर बल दिया है। राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र की कमी, विखंडन,व्यक्ति
केंद्रित एवं सत्ता लालसा से ग्रसित हैं। वर्तमान में धुर विरोधी राजनीतिक दल
बेनजीर भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग
ने गठबंधन कर इमरान खान सरकार को गिरा दिया। यह तथ्य सत्ता प्राप्ति की लालसा को
प्रकट करता है। सत्ता प्राप्ति की लालसा ने नौकरशाही एवं सेना को राजनीतिक
हस्तक्षेप के लिए प्रोत्साहित किया है। तृतीयः- सेना की भूमिका-पाकिस्तान में सेना ने प्रारंभ
से ही राजनीति में हस्तक्षेप किया है।सेना ने अपनी मुख्य भूमिका राष्ट्र की
सुरक्षा के साथ-साथ घरेलू एवं वैदेशिक नीतियों को प्रभावित किया है। पाकिस्तान में
राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक अस्थिरता
के कारण ही सेना को हस्तक्षेप का अवसर प्राप्त नहीं हुआ,अपितु राजनीतिक
दलों ने भी अपनी सत्ता लालसा के कारण सेना की सहायता लेकर सैनिक नेतृत्व का आधार
तैयार किया है। पाकिस्तान में सेना का हस्तक्षेप हर एक सरकार के अंदर रहता आया है।
इमरान खान सरकार भी ‘हाइब्रिड सरकार‘ थी, जिसमें
प्रधानमंत्री इमरान खान थे लेकिन उन्हें सेना
चला रही थी। आईएसआई के नए महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम की
नियुक्ति एवं जनरल कमर जावेद बाजवा के सेवा विस्तार पर सेना के दबाव का इमरान खान
सरकार सामना नहीं कर सकी स पाकिस्तान में सैन्य शासन द्वारा राजनीति में सक्रिय
सहभागिता एवं राजनीतिक दलों का निर्माण एवं उनके प्रति झुकाव यह प्रमाणित करता है
कि सेना पाकिस्तान में एक प्रभावी राजनीतिक भूमिका अदा करना चाहती है। जनता का
नागरिक शासन के प्रति सशंकित दृष्टिकोण भी सैन्य नेतृत्व को लाभ पहुंचाता है।जनता
यह मानती है कि भ्रष्ट,अकुशल राजनैतिक नेतृत्व
पाकिस्तान को स्थिर एवं विकसित राष्ट्र नहीं बना सकता है। सैन्य नेतृत्व ही पाकिस्तान को सुदृढ़ एवं मजबूत रख सकता है।
हालांकि सैन्य नेतृत्व के दौरान पाकिस्तान की विकास दर अधिक रही,लेकिन आर्थिक
विषमता भी उससे अधिक रही। लेकिन इस शासन की वैधता क्या रही ?अयूब शासन के बाद पाकिस्तान का विघटन , जिया शासन के
बाद धार्मिक एवं जातीय वैमनस्य एवं मुशर्रफ के बाद अस्थिर अर्थव्यवस्था, राज्य संस्थाओं
का हृास,अमेरिकी
हस्तक्षेप का भय एवं पाकिस्तान की संप्रभुता को कायम रखने का संकट।अतः जनता की यह
मनोवृति राजनैतिक नेतृत्व के लिए उचित नहीं है। चतुर्थ- बाह्य कारक ( अमेरिकी प्रभुत्व एवं भारत
फोबिया)- बाह्यकारक भी सैनिक नेतृत्व को
मजबूत करते हैं, क्योंकि
पाकिस्तान की भू-रणनीतिक स्थिति ने तानाशाही शासन को हमेशा लाभ पहुंचाया है। पाकिस्तान अपनी अनूठी भू-रणनीतिक स्थिति के साथ-साथ भारत के साथ असुरक्षा की भावना के कारण आर्थिक सहायता
एवं सैन्य हथियारों के लिए प्रमुख
शक्तियों पर निर्भर रहा है। अमेरिका ने
शीत युद्ध के दौर में अयूब शासन, अफगानिस्तान में सोवियत
हस्तक्षेप (1979) के कारण जिया
शासन एवं आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध (9/11)के कारण मुशर्रफ
शासन को सहायता दी परंतु अमेरिकी निर्देशित सैनिक शासन ने जन आकांक्षाओं की ओर कभी
ध्यान नहीं दिया। भारत विरोधी दृष्टिकोण के कारण सेना भारतीय आक्रमण का भय दिखाकर
के राजनीति मैं हस्तक्षेप करती रहती है एवं सैनिक नेतृत्व का अवसर प्राप्त हो जाता
है एवं जनता भी वैधता प्रदान कर देती है। पाकिस्तान में राजनैतिक
नेतृत्व संकट के समाधान प्रथम:- पाकिस्तान में
संस्थानिक कमजोरियों को दूर करने के लिए न केवल राजनीतिक संस्थाओं को मजबूत करने
की आवश्यकता है,अपितु
संस्थानीकरण की प्रक्रिया को अपनाने की आवश्यकता है। न्यायपालिका एवं प्रेस की स्वतंत्रता को कायम करने की एवं
नागरिक समाज की सक्रियता पर बल दिए जाने की आवश्यकता है। द्वितीय:- राजनीतिक दलों
को संगठित एवं आंतरिक लोकतंत्र से युक्त
होने की आवश्यकता है। राजनीतिक दलों को निजी हितों को छोड़कर देश हित के लिए कार्य
करना चाहिए। राजनीतिक दलों में अभिजात्य नियंत्रण के स्थान पर सामूहिक सहभागिता
रहनी चाहिए। व्यक्तिगत नेतृत्व के स्थान पर संस्थागत नेतृत्व की आवश्यकता है।
नेताओं को सत्ता एवं धनलालसा को छोड़कर देश हित में कार्य करने की आवश्यकता है एवं
देश में विद्यमान भुखमरी, बेरोजगारी, असमानता, गरीबी निरक्षरता
को दूर कर राष्ट्र निर्माण की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। तृतीय:- पाकिस्तान को एक
भविष्यदर्शी, ईमानदार, सक्षम,कार्यकुशल
राजनैतिक नेतृत्व की आवश्यकता है,जो पाकिस्तान के लोगों की
जन आकांक्षाओं को पूरा कर सकें एवं अस्थिर, दुर्बल एवं असफल
राज्य को स्थिर और विकसित राज्य में बदल
सके। चतुर्थ:- सेना को भी अपने
मुख्य कार्य देश रक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए,जैसा कि कायदे
आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने सेना से अपेक्षा की थी, कि सेना को
राष्ट्रीय नीति निर्माण की प्रक्रिया में भाग नहीं लेना चाहिए। यह कार्य राजनैतिक
नेतृत्व का कार्य है।पाकिस्तान में सेना को राजनीतिक नियंत्रण के अधीन रहने की
आवश्यकता है। पंचमः- पाकिस्तान के
राजनैतिक नेतृत्व को बाह्य खतरो का अपने
राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए समाधान करने की आवश्यकता है, जिससे कि
पाकिस्तान की जनता के विश्वास को जीता जा सके एवं गैर राजनीतिक तत्वों को राजनीतिक
हस्तक्षेप का अवसर प्राप्त नहीं हो सके। षष्ठमः- पाकिस्तान की
जनता में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सजगता, चेतना लाकर
राजनैतिक नेतृत्व को मजबूत करने की दिशा में प्रयास किया जा सकता है ,क्योंकि किसी भी
देश का नेतृत्व उसकी जनता में प्रतिबिंबित होता है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत शोध पत्र में ऐतिहासिक, विवरणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। यह अध्ययन मूल रूप से से द्वतीयक स्रोतों से संकलित सामग्री पर आधारित है। समाचार पत्रों एवं पाक्षिक, मासिक, अर्धवार्षिक शोध पत्रिकाओं, जर्नल्स आदि में उपलब्ध सूचनाओं एवं समीक्षाओं को संकलित किया गया है। |
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निष्कर्ष |
पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद, तालिबान का प्रभुत्व जातीय एवं भाषा की समस्या, हथियारों का बोलबाला, अमेरिकी दबाव ,परमाणु हथियारों का भय ,मानवाधिकारों का हनन, आर्थिक मंदी, महंगाई, बेरोजगारी, पर्यावरण की समस्या, ऊर्जा संकट, निरक्षरता, गिरती अर्थव्यवस्था आदि समस्याएं विद्यमान हैं, जिनका निदान एक दूरदर्शी, ईमानदार ,सक्षम एवं बुद्धिमान राजनैतिक नेतृत्व द्वारा ही किया जा सकता है। वैश्वीकरण के इस दौर में पाकिस्तान के राजनैतिक नेतृत्व को अपनी मजबूत भूमिका निभाने की आवश्यकता है, क्योंकि पाकिस्तान एक अद्वितीय भू- राजनीतिक एवं भू- रणनीतिक स्थिति रखता है।पाकिस्तान के राजनैतिक नेतृत्व को क्षेत्रीय एवं वैश्विक अभिकर्ताओं से सामंजस्य रखने की अत्यंत आवश्यकता है। वर्तमान संकटग्रस्त पाकिस्तान में राष्ट्रीय संतुलन एवं एकीकरण के लिए व्यक्ति प्रधान नेतृत्व की अपेक्षा संस्थागत नेतृत्व की प्रमुख आवश्यकता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. स्टीफन पी.कोहन: द आइडिया ऑफ पाकिस्तान ,नई दिल्ली ,ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ,2005.
2. जहान दाद खानः-पाकिस्तान लीडरशिप चौलेंजेज ,कराची, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1999.
3. सफदर महमूदः-पाकिस्तान: पॉलिटिकल रूट्स एंड डेवलपमेंट 1947 - 1999, कराची,ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2000.
4. एनाटॉल लीवेनः- पाकिस्तानः ए हार्ड कंट्री, लंदन, पेंगुइन बुक्स ,2011.
5. इयान टेलबोटः-पाकिस्तानः ए मॉडर्न हिस्ट्री, नई दिल्ली ,फाउंडेशन बुक्स ,2005.
6. लॉरेंस जिरिंग:- पाकिस्तानः एट द क्रॉसकरंट ऑफ हिस्ट्री, लाहौर,वेनगार्ड पब्लिशर्स, 2004.
7. https://en-m-wikipedia-org/wiki/Pakistan
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