ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- VIII September  - 2022
Innovation The Research Concept
भटकते युवा एवं भारतीय राजनीति
Wandering Youth and Indian Politics
Paper Id :  16516   Submission Date :  2022-09-08   Acceptance Date :  2022-09-20   Publication Date :  2022-09-25
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राकेश वर्मा
सहायक आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
श्रीरतनलाल कंवरलाल पाटनी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय
किशनगढ़, अजमेर,राजस्थान, भारत
सारांश
21वीं सदी युवा भारत की सदी है और भारतीय युवा विज्ञानए प्रौद्योगिकी कला खेल वैश्विक राजनीति में अपना परचम पहरा रहें हैं। सुनकर और देखकर दिल को सुकुन मिलता है। परन्तु साथ ही भारतीय युवाओं की स्याह तस्वीर भी हमें देखने को मिलती है जिससे जी घबरा जाता है। आज यह आलेख लिखने के पीछे लेखक का मनतव्य भारतीय युवा को नीचे दिखाने का कतई ही नहीं है, परन्तु भारतीय युवा आज अजीब से भटकाव के दौर से गुजर रहा है। इसके पीछे कौनसी ताकतें काम कर रहीं हैं उनके बारे में हमें सोचना बेहद जरूरी है। क्यों आज का युवा एक दूसरे के खून के प्यासे होते जा रहें हैं। यद्यपि पाश्चात्य और विकसित देशों की तुलना में जोकि वहाँ के विद्यार्थी कक्षाओं में भी बंदूक ले जाते हैं हमारे ऐसी स्थिति नहीं है। परन्तु आज किस प्रकार की शिक्षा और ज्ञान भारतीय विद्यार्थी प्राप्त कर रहें हैं इस बारे में सोचने को मजबूर अवश्य कर दिया है। आज मोबाइल और इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के अत्यधिक प्रयोग के कारण युवाओं में मानसिक विकृति आ रही है। वो आज बचपन में ही अपने आप को बड़़ा महसूस करवा रहे हैं। उनके निर्णय लेने की क्षमता बढ़ अवश्य रही है परन्तु ध्यान रखने की बात यह है कि उनका निर्णय कहीं विध्वंसात्मक तो नहीं है। हमें सोचने और उस पर अमल करने की आवश्यकता है। हमें तुरन्त संभलना होगा और भटकते युवा को सही रास्ते पर लाना होगा। हो सकता है इस प्रयास में हमें दिक्क्तें आएं और सफलता मिले या ना मिले परन्तु उन्हें भटकने से रोकना हमारा पवित्र कर्तव्य होना चाहिए। यह आलेख लेखक व्यथित और चिंतित होकर लिख रहा है, क्योंकि आज विध्वंसकारी गतिविधियों में युवा ज्यादा से ज्यादा शामिल हो रहा है। उसके उपर खून-खराबे से ही निष्कर्ष निकालने का भूत सवार है। संवेदनहीनता बढने के कारण उसमें सोचने की क्षमता कम होती जा रही है। ऐसा न हो कि हमें बाद में पछताना पडे़।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The 21st century is the century of young India and Indian youth, science, technology, art, sports, are keeping their wings in global politics. Hearing and seeing the heart is relieved. But at the same time, we also get to see the dark picture of Indian youth, due to which the soul gets nervous. Today, Author's intention behind writing this article is not at all to show the Indian youth down, but the Indian youth is going through a period of strange disorientation today. It is very important for us to think about what forces are working behind this. Why today's youth are becoming thirsty for each other's blood. Although in comparison to the western and developed countries, where students carry guns in their classrooms, we do not have such a situation. But what kind of education and knowledge Indian students are getting today has forced them to think about it. Today, due to excessive use of mobile and electronic devices, mental deformity is coming in the youth. Today he is making himself feel big in his childhood. Their decision-making ability is definitely increasing, but the thing to keep in mind is that their decision is not destructive. We need to think and act. We have to recover immediately and bring the wandering youth on the right path. We may face difficulties in this endeavor and may or may not get success, but it should be our sacred duty to stop them from wandering. Author is writing this article with pain and concern, because today more and more youth are getting involved in destructive activities. There is a ghost riding on him to draw conclusions from the bloodshed. Due to the increasing insensitivity, the ability to think is decreasing in him. Lest we have to repent later.
मुख्य शब्द भटकाव, युवा, राजनीति, गतिविधियां, खून-खराबा, मीडिया, समाज, वैमनस्यता, संवेदनहीनता, दिमाग का हाईजैकिंग।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Disorientation, Youth, Politics, Activities, Bloodshed, Media, Society, Animosity, Insensitivity, Hijacking of the Mind.
प्रस्तावना
सर्वप्रथम इस आलेख का प्रारम्भ प्रमुख युवा देशभक्त और स्वतंत्रता के पुजारी भगत सिंह से किया गया है। उन्होंने असेम्बली में बम इसलिए नही फेंका को वो किसी को मारना चाहते थे, और चाहते तो किसी बडे़ अंग्रेज अधिकारी को निशाना बना सकते थे, परन्तु वे केवल अपनी बात को गूंगे बहरों तक पहुँचाना चाहते थे। उनको इस बात का भी भान था कि अगर वे पकडे़ गए तो कठोर सजा मिलना भी अवश्यंभावी था। परन्तु सजा की परवाह किए बगैर अपने उद्देश्य की पवित्रता का ध्यान रखा, गाँधीजी का भी कहना था कि बिना पवित्र साधन के साध्य की पवित्रता संदेहास्पद होती है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में और उसके बाद भी अनेकों भारतीय युवाओं ने राजनीति तथा भारतीय जनमानस में अपनी अमुक छाप छोड़ी।
अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत आलेख का उद्देश्य भारतीय समाज में युवाओं की शक्ति को पहचान को पहचानकर उनको सही दिशा देना है। ताकि भारत को विश्व पटल पर अच्छी पहचान मिल सके और भारत विश्व गुरू बन सके। गलत दिशा में जा रहे युवा को रोककर उन्हें देश की उन्नत्ति में हिस्सेदार बनाना है।
साहित्यावलोकन

प्रस्तुत आलेख में जिन साहित्यों और आलेखों का अध्ययन लेखक के द्वारा किया गया उनमें जो विवरणात्मक अध्ययन था उसको वर्तमान समय से तालमेल बिठाने का प्रयास किया गया। साथ ही सकारात्मक निष्कर्ष और समाज के लिए उपयोगी बातों को अध्ययन में लेखक ने स्थान देने का प्रयास किया। युवाओं की सकारात्मक और नकारात्मक भूमिका को उल्लेखित कर मूल्यांकन किया गया है।

मुख्य पाठ

भारतीय राजनीति को प्रभावित करने वाले युवा- स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले और बाद में अनेक युवा हुए जिन्होंने अपनी तर्कशक्ति, आत्मबल के आधार पर भारतीय राजनीति को प्रभावित किया।

स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, सुखदेव, खुदीराम, लक्ष्मी सहगल, भीकाजी कामा, रानी लक्ष्मी बाई, किट्टूर रानी चेन्नमा जिन्होंने अपने आपको देश की खातिर समर्पित कर दिया। उनका पवित्र धर्म स्वतंत्रता प्राप्ति था और अपने प्राणों के उत्सर्ग हेतु अपने आपको आगे रखा। अल्पआयु में अपने को मातृभूमि की सेवा के लिए खून का एक एक कतरा भी समर्पित कर दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बात करें तो युवा तुर्क के नाम से मशहूर चन्द्रशेखर जो समाजवादी आन्दोलनों से जुड़कर देश सेवा में लगे रहे। सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए भी कभी नहीं पीछे हटे, काँग्रेस पार्टी के होने के बावजूद मीसा कानून के तहत 1975 में गिरफ्तार होना पड़ा। फिरोज गाँधी जो अपने ससुर और उस समय भारतीय राजनीति के प्रमुख सितारे पं0 जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ बोलने का जिगर रखते थे। वो अपनी पत्नी श्रीमती इंदिरा गाँधी को भी फासीवादी कहने से नहीं हिचकते थे। काँग्रेस सरकार के खिलाफ बोलकर उन्होंने वित्त घोटाले को उजागर किया था। जयप्रकाश नारायण जिन्होंने सरकार द्वारा की जा रही ज्यादतियों के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटाई। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने छात्र जीवन से ही देश सेवा में अपने को लीन कर दिया। इंदिरा सरकार के खिलाफ बोले और जेल भी गए। जे पी आन्दोलन से निकले तीन युवा लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और रामविलास पासवान जो समाजवाद के पुरोधा बने परन्तु आगे चलकर इनके पथ अलग-अलग हो गए और मूल भावना जिसको लेकर ये राजनीति में आए थे उसको भूल बैठे। वैसे वर्तमान में भी सत्यपाल मलिक जैसे मेघालय के राज्यपाल जैसे पद पर बैठे व्यक्ति भी हैं जो किसान और नौजवानों की मांगों का समर्थन करते हैं। नवीन जिन्दल जिन्होंने प्रत्येक भारतीय को अपने घर पर झंडा फहराने की आजादी 26 जनवरी 2002 में हमें दिलाई। इस 21वीं सदी में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में छात्र राजनीति का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। जब अन्ना हजारे द्वारा 2011 में जनलोकपाल बिल को लेकर आंदोलन किया गया तब भी अनेक युवा उभरकर आए। अरविन्द केजरीवाल, कुमार विश्वास, बाबा रामदेव, मनीष सिसोदिया आदि। यद्यपि वर्तमान समय में सबकी अलग-अलग राह है। अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया अपना गैर सरकारी संगठन पूर्व से ही संचालित कर रहे थे। सूचना का अधिकार कानून के लिए अरूणा राय के साथ भी इन्होंने अपना योगदान दिया। आज अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली में और भगवंत मान के नेतृत्व में पंजाब में सरकार बनाकर परम्परागत राजनीतिज्ञों की हवा खिसका दी क्योंकि धर्म और जाति की राजनीति से लोग उकता गए। यद्यपि जल्दबाजी में अपराधी प्रवृति के लोग राजनीति में जा सकते हैं परन्तु पंजाब की आप सरकार ने भ्रष्टाचार के मामले में जेल भेजकर दिल को सुकुन देने का काम किया है। आज कन्हैया कुमार जो अपने बोलने की क्षमता से अच्छे अच्छों को नाकों चने चबवा सकता है परन्तु उसके उद्भव के साथ ही टुकड़े-टुकड़े गैंग का सिपहसालार होने का आरोप लगा है। इसी तरह हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, शहला रसीद, जितेन्द्र चौधरी, अमित तंवर, तेज प्रताप सूर्या , राघव चड्डा, आदित्य ठाकरे, अल्पेश ठाकोर, डॉ. लक्ष्मण यादव आदि हैं। परन्तु डर यह है कि ये युवा परम्परागत राजनीतिज्ञों की तरह स्वार्थ के वशीभूत होकर नहीं रह जाएंगे। आज युवा अपने आत्मबल से सभी को चौंका रहें है जैसे भीम आर्मी के मुखिया चन्द्रशेखर आजाद रावण प्रज्ञा ठाकुर जो हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। प्राचीन समय से ही बॉलीवुड भी इससे अछूता नहीं रहा, आज कंगना रानौत भी राजनीतिक बयानबाजी देकर सुर्खियां बटोर रही हैं तथा सरकार से वीआईपी सुरक्षा पाने में सफल हो गई। युवा छात्र नेता आज युवाओं की समस्याओं से कम और राजनीति के चंगुल में ज्यादा फंस रहें हैं। आज युवा अगर देश की समस्याओं के खिलाफ कुछ बोलता भी तो उसे देशद्रोही का तमगा दे दिया जाता है साथ ही उसे दबाने के प्रयास शुरू हो जाते हैं। आज युवाओं में देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना भी पार्टियां अपने अपने हिसाब से भर रहीं हैं।

वर्तमान दौर के युवाओं के आंदोलन- आज युवा और छात्रों द्वारा जो आन्दोलन किए जा रहे हैं वो तुरन्त ही खूनी जंग में बदल रहें हैं। युवाओं में धैर्य की कमी और सोचने की क्षमता का एकतरफा होना गलत दिशा में युवाओं को जले जा रहा है। युवा अपने हिसाब से किसी विचार का प्रतिबिम्ब बना लेते हैं और उसको ही सत्य मान लेते हैं। परिणामतः विचारों में भिन्नता होते ही द्वन्द्व का वातावरण पनपा लेते हैं। भारत आज विश्व का सबसे युवा राष्ट्र है,हमें इस युवा शक्ति का प्रयोग सकारात्मक कामों की तरफ लगाने में ध्यान देना होगा। जम्मू-कश्मीर की बात करें तो युवा सेना के जवानेां पर पत्थर बरसाने में लगे रहते हैं। जबकि उनका ध्यान शिक्षा ग्रहण करने और रोजगार प्राप्त करने की और होना चाहिए, परन्तु उन युवाओं को धार्मिक उन्माद, कट्टरता, विद्वैषता के पाठ उनके तथाकथित हितैषी और धर्म के ठेकेदार पढ़ा देते हैं। सी.ए.ए. व एन.आर.सी. कानून के कारण देश में युवा और छात्रों के बीच वैमनस्यता का संचार हुआ, इसकी अच्छाईयों और बुराईयों का विश्लेषण किए बिना ही राजनीतिज्ञों ने सबसे पहले साम्प्रदायिक रंग देने का प्रयास किया गया। भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्रों द्वारा अपनी अपनी विचारधारा के आधार पर इन कानूनों के पक्ष और विपक्ष में माहौल खड़ा किया गया।

नागरिकता संशोधन कानून 2019 अफगानिस्तान, बांग्लादेश, और पाकिस्तान से आए हिन्दू, बौद्ध, जैन, पारसी, और क्रिश्चियन धर्म के नागरिकों की नागरिकता के कानून को आसान बनाता है। विपक्ष तथा अल्पसंख्यक लोग कानून को भारतीय संविधान के अनु. 14 का उल्लंघन मानते हुए इसका विरोध करना शुरू कर दिया। समर्थन और विरोध में युवाओं ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी और हिंसक आंदोलन करने लगे। जामिया मिलिया इस्लामिया, जेएनयू, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और देश के बाकी क्षेत्रों के छात्रों और युवाओं ने नफरत से भरपूर काम को अंजाम दिया। एन.आर.सी. के खिलाफ पूर्वोतर राज्यों में भी हिंसक घटनाएं हुई। गुजरात में पाटीदार आंदोलन के नेतृत्वकर्ता के रूप में हार्दिक पटेल के रूप में एक युवा नेता देश को मिला। 2015 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के कन्हैया कुमार पर राष्ट्रद्रोह का वाद दायर किया गया कि उसने संसद हमले के दोषी आचार्य मोहम्मद अफजल गुरू की फांसी के खिलाफ एक रैली में राष्ट्रविरोधी नारे लगाए। यद्यपि मार्च 2016 में पुलिस द्वारा कोई सबूत पेश नहीें किए जाने पर उसे जमानत मिल गई फलस्वरूप देश को एक तेजतर्रार नेता मिला तथा इसने बीजेपी के गिर्राज सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा और हार का सामना करना पड़ा और वर्तमान में इन्होंने काँग्रेस पार्टी जॉइन कर ली। 2018 में मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ हुंकार रैली में जिग्नेश मेवाणी, कन्हैया कुमार, शहला रसीद, उमर खालिद, अखिल गोगोई इत्यादि युवाओं ने अपना दमखम दिखाया।

युवा छात्रों का आत्महत्या करना भी सरकारों की नाकामी को प्रदर्शित करता है, ऐसे अनेकों मामले हमें आए दिन देखने को मिलते हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय का एक दलित छात्र रोहित वेमुला जो पी. एच.डी कर रहा था, उसे 'मुजफ्फरनगर बाकी है' नाम की एक फिल्म के प्रदर्शन के दौरान हुए हमले के विरोध में एक जुलुस निकालने, तथा उससे पहले अम्बेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन ने याकूब मेनन के मामले पर बहस छेड़ी थी तथा मृत्युदण्ड का विरोध किया था। इस कारण इस संगठन राष्ट्रविरोधी ठहराया गया, बीजेपी के नेता तथा केन्द्र में श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने उस समय की मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखा और विश्वविद्यालय को राष्ट्रविरोध का अड्डा बताकर हस्तक्षेप करने का आग्रह किया, एक स्थानीय नेता ने भी विरोध दर्ज कराया। नए कुलपति के नेतृत्व में विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद् ने रोहित समेत 5 अन्य छात्रों को दंडित करने का निर्णय लिया। संयोग से सारे छात्र दलित थे, और उनका मामला दलितों को लेकर नहीं बल्कि मुसलमानों को लेकर था, रोहित वेमुला दबाव सहन नहीं कर सका और आत्महत्या करने पर मजबूर हुआ या किया गया यह तो रहस्य है। परन्तु आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोप अन्य छात्र संगठनों ने लगाया और मुझे भी ऐसा ही लगता क्योंकि कोई भी उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाला छात्र बिना दबाव के ऐसा शायद स्वयं नहीं कर सकता।

2022 में नवरात्री के दौरान जेएनयू के हॉस्टल में मांस खाने वाले छात्रों पर हमला किया गया और हिंसक घटना को अंजाम दिया गया। यह बेहद शर्मनाक घटना है, युवा इसे राष्ट्रीय मुद्दा बना रहे हैं और राजनेता आग में घी डालने का काम कर देते हैं। लेखक इससे बेहद व्यथित है क्योंकि एक तरफ संविधान में समानता और स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं और दूसरी तरफ उसकी धज्जियां उड़ाते हैं।

युवाओं के भटकाव के कारण- आज समाज और सरकार दोनों ही को लेखक जिम्मेदार मानेगा क्योंकि सरकारों द्वारा बिना सोचे समझे लिए गए निर्णय और समाज की उदासीनता दोनों युवाओं को नहीं समझ पा रहे हैं। लेकिन अन्य निम्न मुद्दे भी हैं जो युवाओं के भटकाव के लिए जिम्मेदार हैं-

मीडिया- मीडिया यद्यपि लोकतंत्र का चतुर्थ स्तम्भ है, और इसे अपनी भूमिका सही ढ़ंग से निभाने का महत्वपूर्ण दायित्व भी होता है। परन्तु TRP बढाने के चक्कर में मीडिया के लोग ऐसी बातों के सामने परोस रहें हैं जिनका जनता के वास्तविक मुद्दों से कोई वास्ता नहीं होता। कोई मीडिया का आदमी या चैनल हिम्मत करके देशहित और जनहित की बातों को ज्यादा दिखाकर सरकारों की गलत नीतियों का विरोध करता है तो उस चैनल और एंकर को देशद्रोही का तमगा दे दिया जाता है। आज जब टी.वी. पर कोई वाद-विवाद का कार्यक्रम रखा जाता है तो उसमें ऐसे लोगों को बुला लिया जाता है जो वास्तविक बातों से कोई मतलब नहीं रखते और हर बात को द्वन्द्व के मोड़ पर ले जाकर छोड़ देते हैं। किसी में भी सच को सच और गलत को गलत बोलने की हिम्मत नहीं होती साथ ही बदजुबानी में बुलाए गए अतिथि बात करने लग जाते हैं। निष्पक्षतः मीडिया के लोग भी अपनी बात नहीं रख पाते व देखने सुनने वाले नौजवान सही और गलत को नहीं पहचान पाते और उद्वेलित हो जाते हैं। मीडिया इलेक्ट्रोनिक हो या प्रिंट दोनों ही अपनी साख बढाने के लिए बिना सिर पैर की खबरें ढूंढ कर लाते हैं जो सत्ता के पक्ष में हों तो वाह वाही और विरोध की हों तो देशद्रोह का तमगा। युवा सच झूंठ का भेद नहीं कर पाता और गलत को ही सच व सच को गलत मानने की भूल कर बैठता है तथा विद्रोही बन जाता है।

सोशल मीडिया- आज का युवा सोशल मीडिया का इतना गुलाम हो गया कि वह फेसबुक, वाट्सएप, इंस्टाग्राम, ऑनलाईन गेम्स को ही वास्तविक दुनिया मान बैठता है। उसके सामने कई बार ऐसे भटकाव वाले सीन खुल जाते हैं जो उसके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यद्यपि मीडिया नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रभाव लिए होता है परन्तु युवा अनभिज्ञता के कारण नकारात्मकता को ही अपने पर हावी कर बैठता है। वह सोशल मीडिया को सच मानकर अपने निणर्य लेने लगता है, और अपने परिजनों की बातें उसको बुरी लगने लग जाती हैं तथा हमेशा अवसाद की स्थिति में रहने लग जाता है। सोशल मीडिया उसे तातकालिक सुख प्रदान करता हैै वह चोरी छुपे पॉर्नसाइट्स देखने, ऑनलाइन गेम खेलने में अपना समय और पैसा बर्बाद करने लग जाता है, जिससे अवसादग्रस्त होकर गलत कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाता है। वह इस प्लेटफॉर्म से अपराधियों के महिमामंडन किए जाने को देखकर अपराध की दुनिया में कदम रखने की सोच लेता है, वह इस सोशल मीडिया से चिडचिडा और एकांतवासी हो जाता है।                       
मादक पदार्थों का सेवन- आज के भागदौड भरी जिन्दगी में सबकुछ एकाकी हो रहा है संयुक्त परिवार टूट रहें हैं
, बच्चों की  खुशी को तवज्जो देने के कारण मा-बाप बच्चों की हर बात को नजरअंदाज कर देते हैं। फलस्वरूप बच्चे नशे की गिरफ्त में चले जाते हैं, उनको रोकने टोकने वाला कोई नहीं होता। वो कई बार-संस्कृति के चंगुल में फंस जाते हैं और अपने आपको बर्बादी की कगार पर ले जाते हैं। कच्ची उम्र में नशेडी बनकर स्वास्थ्य और धन दोनों को बर्बाद कर देते हैं, ज्यादा डांटने डपटने पर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं या फिर धमकियां देने लग जाते हैं।

बेरोजगारी- आज प्रत्येक युवा आत्मनिर्भर बनकर अपना जीवन स्वयं के हिसाब से जीना पसंद करता है। वह स्थायित्व के लिए सरकारी नौकरी प्राप्त करना चाहता है, हमने कोविड काल में निजी नौकरियों की हालात देखी थी। युवा का पेट भरना मुश्किल हो गया था, अतः खुद का और परिवार के पेट पालने हेतु उसे रोजगार चाहिए। सरकार की नीतियां हर सरकारी संस्था को ठेके पर देने की प्रवृति साथ ही आए दिन युवाओं को नौकरी के नाम पर ठगने की स्थिति ने युवा को खून के आंसू रूला दिया है। नौकरियों को खत्म करना, परिणामों में होने वाली धांधली, नौकरी का कानूनों के चक्कर में पडना युवाओं के जीवन को बर्बाद कर रहा है। 2022 में केन्द्र सरकार द्वारा रेलवे, सेना में भर्तियों का नहीं निकालना युवाओं को उद्वेलित कर रहा है। जून में युवाओं को भ्रमित करने वाली अग्निवीर भर्ती करने की अगिनपथ योजना ने आग में घी डालने का काम किया है। परिणामस्वरूप भड़क गया और हिंसक आंदोलन करने के लिए आतुर हो गया। पार्टियां चुनावों के समय युवाओं को करोडों नौकरियां देने का वादा करती हैं और बाद में मुकर जाती हैं जिससे युवा परेशान हो अपराध की दुनिया में घुस जाते हैं। उनका उपयोग राजनीतिज्ञ अपने स्वार्थ पूर्ण करने में लग जाते है और फिर अपराधियों का राजनीतिकरण हो जाता है।

नैतिक मूल्यों में कमी व पारिवारिक स्थिति- आज से 25-30 वर्ष पूर्व बच्चों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए के बारे में बता दिया जाता था। समाज का तानाबाना ऐसा था कि पडौसी के बच्चों को गलती करने पर डांट दिया जाता था। बच्चों को कहा जाता था कि अगर आप गलत काम करोगे तो भगवान आपको पाप देंगे। दादा-दादी और नाना-नानी शिक्षाप्रद कहानियां सुनाते थे। गुरूजन स्कूलों में बडों का सम्मान करना और इज्जत करना सिखाते थे, इसलिए युवाओं के भटकाव की संभावना कम ही होती थी। पारिवारिक स्थिति भी ऐसी थी कि घर के बडे बुजुर्गों की बातों का पालन अक्षरशः किया जाता था। सम्भव यह भी था कि बडे ही सारे निर्णय लेते थे बच्चों और महिलाओं को कम तवज्जो देते थे, परन्तु उस निर्णय में द्वन्द्व की सम्भावना नहीं थी। जब परिवारों में आपसी कलह होता है तो बच्चों पर इसका विपरीत प्रभाव पडता है। वो अपने आप को एकाकी समझने लगतें हैं और अपनी बातें परिवार में किसी को नहीं कह पाने के कारण गलत संगत में पड जाते हैं।

संतुष्टि का नहीं होना- आज के भौतिक युग में युवा अपने से अधिक सुविधा वाले लोगों को देखता है तो वह भी वैसा दिखना चाहता है। इसके लिए वह अल्प समयावधि में अधिक प्राप्त करने के जतन करने लग जाता है इसके लिए वह गलत रास्ता चुनने का प्रयास करता है। वह जल्दी ही दौलत और शौहरत पाकर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाता है। पैसे की चाहत उसे संतुष्ट नहीं होने देती और वह ज्यादा कमाने की इच्छा पाले रखता है।

धार्मिक कट्टरता और भडकाऊ बयानबाजी- आजकल के युवा चाहे वे किसी भी धर्म के मानने वाले हों वो बिना सोचे समझे भडकाऊ बयानबाजी करने वाले राजनेताओं या धर्मगुरूओं, मौलवियों को ही अपना सबकुछ मान बैठते हैं। वे उनके द्वारा की गई टिप्पणियों को सत्य मानकर कट्टरता बढाने लगते हैं। आजकल इन अनर्गल बयानबाजी के चक्कर में वे हिंसक घटना को अंजाम देने को उतारू हो जाते हैं और धार्मिक उन्माद पर उतारू होकर जघन्य अपराध कर बैठते हैं।

निष्कर्ष
भारतीय समाज में युवाओं के भटकाव के पीछे जो भी कारण जिम्मेदार हों उनका निवारण सोचना बेहद जरूरी है। युवाओं में बेरोजगारी दूर करने के लिए उनकी काबिलियत के हिसाब से अवसर प्रदान किया जाना चाहिए ताकि अपने कौशल के द्वारा अपना श्रेष्ठ दे सके। सरकारों को चाहिए कि वो युवा शक्ति को बरगलाए नहीं और चुनावों से पूर्व अनावश्यक वादे ना करें जिनको पूरा कर पाना सम्भव ही नहीं हो पाए। सरकारी नौकरियों की भर्तियों को कोर्ट कचहरी के प्रपंचों में न पडने पाएं ऐसे प्रयास करने होंगें और भर्तियों को पारदर्शी बनाना होगा। युवा जब अपनी बात रखें तो उनको सुना जाए और युवाओं को भी चाहिए कि वे देशहित में ही अपनी बातों को रखें अनावश्यक पार्टी पॉलीटिक्स में ना पडें। उन्हें छोटे-छोटे मुद्दों को तूल देने से बचना होगा, राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने से बचना होगा। बच्चों में बचपन से ही संस्कार डालने के प्रयास करने होंगे, नैतिक शिक्षा को पुनः बचपन से लागू करना पडेगा। युवाओं में संतोष की भावना डालनी होगी कि आपके पास जो कुछ है वो कईयों के पास नहीं हैं से तो बहुत अच्छा है। मादक द्रव्यों के सेवन से बचाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना आवश्यक है, सक्षम अधिकारी की जिम्मेदारी तय करनी होगी। आज ऐसे कर्मचारियों पर जिम्मेदारी डाल दी जाती ळे, जो वो काम करने के ना तो अधिकारी हैं और ना ही वे सक्षम होते। जैसे चुनावों में जोनल मजिस्ट्रेट बनाना जिसका मूल पेशा अलग होता और अगर वह कोई निर्णय कर भी लेता ले, तो उस कानूनी प्रपंचों में उलझना पडता है। ऐसे ही शिक्षकों को कई बार दंडाधिकारी बना दिया जाता हे कि वे तंबाकू निषेध के लिए शिक्षण संस्थान के निकट जो भी दुकानदार मादक द्रव्यों को बेचता है, उस पर जुर्माना लगाए अजीब लगता है।परिजनों को अपने बच्चों के समक्ष वातावरण शांतिप्रिय रखना होगा। अपराधियों का महिमामंडन सोशल मीडिया पर करने पर रोक लगानी होगी। हथियारों और अपराधियों के गुणगान वाले गानों पर प्रतिबंध लगाना होगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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