ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- I February  - 2022
Innovation The Research Concept
राजस्थान का हिन्दी व्यंग्य एवं स्वरूप
Hindi Satire and Form of Rajasthan
Paper Id :  15823   Submission Date :  2022-02-02   Acceptance Date :  2022-02-15   Publication Date :  2022-02-23
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ओमबीर सिंह
व्याख्याता
हिंदी
जी.एस.एस.एस., मनोता कलन
भरतपुर ,राजस्थान
भारत
रेणु वर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर
हिंदी
गवर्नमेंट पीजी कॉलेज
टोंक, राजस्थान, भारत
सारांश
राजस्थान का हिन्दी व्यंग्य एवं उसका स्वरूप विषय पर राजस्थान में व्यंग्य के पुरोधा अशोक शुक्ल आदि से लेकर आधुनिक व्यंग्यकार डॉ. अजय अनुरागी, नीरज दहिया, यश गोयल, आदर्श शर्मा आदि व्यंग्यकारों के रचनाकर्म से व्यंग्य के वर्तमान स्वरूप तथा व्यंग्य की दिशा तथा दशा का निर्धारण हो रहा है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Rajasthan's Hindi satire and its form on the subject of Rajasthan, from Ashok Shukla etc. to modern satirist Dr. Ajay Anuragi, Neeraj Dahiya, Yash Goyal, Adarsh Sharma, etc. Determination is going onthe present form of satire and the direction and condition of satire.
मुख्य शब्द राजस्थान, व्यंग्य, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rajasthan, Satirical, Political, Social, Religious, Economic.
प्रस्तावना
व्यंग्य की उत्पत्ति अंज धातु में ‘वि’ उपसर्ग व ‘ण्यत’ प्रत्यय लगाने से हुइ है, जिसका अर्थ हैं ताना कसना, व्यक्त करना, प्रस्तुत करना। दूसरे शब्दों में व्यंग्य एक ऐसी साहित्यिक अभिव्यक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति अथवा समाज की विसंगतियों और विडंबनाओ अथवा उसके किसी पहलू को रोचक तथा हास्यास्पद ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। वर्तमान समाज में व्याप्त अव्यस्थाओं को देखकर कभी-कभी मन विचलित व व्यथित हो जाता है। चाहे वह खामी सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक ही हो। मन इन विसंगतियों का विरोध करना चाहता है परन्तु हम इनका विरोध नहीं कर पाते और ये भावना चित्त के किसी कोने में संचित होने लगती हैं। व्यंग्यकार इन्हीं भावनाओ को व्यंग्य के माध्यम से समाज के सामने लाने का प्रयास करता है। डॉ. ज्ञान प्रकाश ने अपने शोध ग्रंथ में खड़ी बोली को हास्य-व्यंग्य कविता का सांस्कृतिक विवेचन किया है। सांस्कृतिक परिवेश के अंतर्गत राजनैतिक, सामाजिक धार्मिक व साहित्यिक परिवेश समाहित हैं जिन पर पर्याप्त रचनाएँ की गई हैं। उनमें हास्य व्यग्ंय को खोजकर पाठकों के समझ लाने का डॉ. ज्ञान प्रकाश ने सफल प्रयास किया है।
अध्ययन का उद्देश्य
हिन्दी व्यंग्य लेखन में राजस्थान के व्यंग्यकारों एवं व्यंग्य के स्वरूप में अनवरत परिवर्तन तथा उसकी उपादेयता को प्रकाश में लाना प्रमुख उद्देश्य हैं।
साहित्यावलोकन
उन्होंने व्यंग्य को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित किया हैं- ‘‘प्रयोजन निष्ठ हास्य जिसमें समाज में व्याप्त विसंगतियों, चाहे वे राजनैतिक सामाजिक धार्मिक, आर्थिक अथवा व्यक्तिगत हों, परशोधान भाव से की गई शाब्दिक व्यंजना ही व्यंग्य कहलाती हैं। व्यंग्य साहित्यकारों का वह अस्त्र है जिसके माध्यम से वह समस्त कटुताओ को काटने का प्रयास करता है। हँसी भी आए और लक्षित के मर्मस्थल पर चोट भी पहुँचे, यही व्यंग्य का सबसे बड़ा कर्म हैं।’’
मुख्य पाठ

व्यंग्य साहित्य की एक विधा है, जिसमें  उपहास मजाक और आलोचना का प्रभाव रहता है। इसमें व्यंग्यकार मानव जीवन की विभिन्न विसंगतियों, विद्रूपताओ के मूल में जाकर उन पर वक्रोक्ति आदि के माध्यम से तीखी मार करता है। पाश्चात्य अंग्रेजी व्यंग्यकार स्विफ्ट के अनुसार - ‘‘व्यंग्य एक ऐसा आईना है, जिसमें दूसरों की मुखमुद्राओं को देखते हुए लेखक अपने मुख को भी प्रतिबिम्बित होते हुए देखता हे और व्यंग्य के कारण लेखक एकांत में  भी मुस्करा उठता है, किंतु उसे अधिक परिहासात्मक कार्य भी करना होता है। व्यंग्य दूसरों को भी हँसने में सहायता पहुँचाता है।’’ 

हिन्दी व्यंग्य के विकास में  राजस्थान के व्यंग्यकारों की बड़ी भूमिका रही है। राजस्थान में  इसका आगाज चन्द्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा माना जाता है। इनकी लघु रचना सुमिरनी के मनकेमें  लघु निबंध ढेले चुन लोमें लोक विश्वासों में  निहित अंध विश्वासी मन्यताओ पर चोट की गई है। इनके बाद रांगेय राघव का हुजूरउपन्यास भी व्यंग्य के लिए काफी चर्चा में  रहा हैं। 

राजस्थान में  हिन्दी व्यंग्य के स्वरूप का निर्धारण सन् 1960 के बाद हुआ। राजस्थान में  व्यंग्य साठोत्तर काल में खूब पनपा। इस काल में  यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र’, मदन केवलिया आदि लेखकों ने न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत में  व्यंग्य लेखन द्वारा अपनी धाक जमाई। इनके बाद अशोक शुक्ल, यशवंत कोठारी, हेतु भारद्वाज, बलवीर सिंह करूणश्याम गोयनका, मालीराम शर्मा आदि व्यंग्यकारों के नाम लिए जा सकते हैं। 

नब्बे के दशक के बाद के व्यंग्यकारों में यशवंत व्यास पूरन सरमा, मंजू गुप्ता, यशवंत कोठारी, अरविंद तिवारी देवेन्द्र इन्द्रेश आदि समर्थ हस्ताक्षर बनकर उभरें। अशोक शुक्ल राजस्थान के व्यंग्यकारों के पुरोधा माने जाते हैं। उनके हड़ताल हरिकथाऔर प्रोफेसर पुराणउपन्यास ने व्यंग्य के क्षेत्र में  काफी तहलका मचाया। राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 1984 में  एक संकलन राजस्थान के 33 हास्य व्यंग्यकारों की व्यंग्य रचनाओ का डॉ. मदन केवलिया के सम्पादकत्व में  प्रकाशित हुआ। इसी क्रममें  राजस्थान साहित्य अकादमी द्वरा ही 1996 में  पूरन सरमा के संपादन में  व्यंग्य संकलन रेत के रंगप्रकाशित हुआ, जिसमें  राजस्थान के 38 व्यंग्यकारों की रचनाएँ संकलित की गई। 

बीसवी सदी के आखिरी दशक में  अनुराग वाजपेयी, डॉ. अजय अनुरागी, यश गोयल अशोक राही, अतुल कनक, फारूख आफरीदी मंगत बादल, अतुल चतुर्वेदी, बुलाकी शर्मा, कृष्ण कुमार आशु, यशवंत व्यास, पूरन सरमा, आदर्श शर्मा आदि नई पीढ़ी के व्यंग्यकारों ने गंभीरता से सामाजिक सरोकारों से संबंधित विषयों पर व्यंग्य लेखन कर अपनीे सजगता का परिचय दिया। 

अरविंद तिवारी की रचना राजनीति में  पेरीवादपूरन सरमा की मुख्यमंत्री दिल्ली गएयशवंत कोठारी की योगासन और नेतासनआदि राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पा चुकी है। अजय अनुरागी ने अपनी रचना कटी नाक का नेता’ ‘दबाव की राजनीति’, आदि में  राजनीति के क्षेत्र में  फैली विषवेल पर व्यंग्य का तीखा प्रहार कर समाजहित में  सच्चा एवं सजग प्रहरी होने का बोध कराया है। 

समाचार पत्रों में  भी व्यंग्य कॉलम लिखने की परम्परा रही हैं। ओम शर्मा, अशोक राही अरविंद तिवारी, अजय अनुरागी आदि व्यंग्यकार एक ही समाचार पत्र में  प्रतिदिन कॉलम लिखते रहे हैं। राजस्थान पत्रिका में  काफी लम्बे समय तक राही के व्यंग्य लेख बात करामातशीर्षक से छपते रहे। राही के इन लेखो ने काफी धूम मचाई। वर्तमान में  व्यंग्यकार अतुल कनक भी राजस्थान पत्रिका आदि अन्य विभिन्न पत्रिकाओ में  विभिन्न शीर्षकों से विविध विषयों पर व्यंग्य लेख लिख रहे हैं। 

राजस्थान के हिन्दी व्यंग्य लेखन में  राजस्थान के नवीन पीढ़ी के व्यंग्यकार समाज को भ्रष्टाचार अत्याचार, अनाचार, शोषण आदि विषमताओ से बचाने हेतु सजग प्रहरी के रूप में  कार्य कर रहे हैं।

इन व्यंग्यकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। राजस्थान का व्यंग्य लेखन राष्ट्रीय स्तर पर हस्तक्षेप कर समग्र हिन्दी व्यंग्य लेखन को नई दिशा दे रहा है। इसके लिए राजस्थान के व्यंग्यकार लेखनी की कारगरता को उजागर करते हुए समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन अनवरत रूप से करने की दिशा में  अग्रसर हैं। 

राजस्थान के व्यंग्यकार विकृतियों का परिभार्जन करते हुए सामाजिक दायित्व बोध निभा रहे है। विकृति को सुकृति बनाना ही उनके लेखन का मूल तत्व है। इनके लेखन का उद्देश्य समाज को नियम एवं नीति पर लाना है। व्यंग्य विधा के दर्पण में  समाज का जैसा अक्स दिखाई देता है वैसा साहित्य की अन्य विधाओ में  नजर नहीं आता हैं विकृति और बुराईयाँ ही सामाजिक अनुशासन को दूषित करती हैं। व्यंग्यकार समाज की हर बुरी व अच्छी गतिविधि को अपने नजरिये से देखता है। उसे विपरीत स्थितियों - परिस्थितियों में  भी संलग्न रहना पड़ता हैं यह एक व्यंग्यकार की सामाजिकता है। इस दिशा में डॉ. अजय अनुरागी, यश गोयल, पूरन सरमा, अरविंद तिवारी, आदर्श शर्मा प्रभृति व्यंग्यकार सामाजिक सरोकारों को बनाए रखने तथा स्वस्थ समाज के निर्माण हेतु व्यंग्य लेखनी का लगातार प्रयोग कर रहे हैं। 

            राजस्थान का हिन्दी व्यंग्य सतत् एवं विभिन्न दिशाओ में  प्रवाहित होकर देश की राजनीति में  आई गिरावट, समाज में  उत्पन्न विकृति परिवारों में  आया विखण्डन, शिक्षा के क्षेत्र में  आया बाजारवाद और यहाँ तक कि व्यक्ति के स्व के अन्दर मौजूद ऊहापोह की स्थिति से उत्पन्न विसंगति विद्रूपता तथा सांस्कृतिक जीवन में  प्रवेशित दिखावा आदि व्यवहारों से क्षुब्ध होकर राजस्थान के व्यंग्यकारों ने अपने लेखन द्वारा इन विसंगतियों पर चोट करके इन्हें  समाप्त करने की दिशा में  पहल की है। सांस्कृतिक विद्रूपताओ के प्रति डॉ. अजय अनुरागी बलवीर सिंह करूण’, कृष्ण कुमार आशुयश गोयल फारूख आफरीदी अतुल कनक, अरविंद तिवारी पूरन सरमा, आदर्श शर्मा आदि व्यंग्यकार अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सजग प्रहरी की भूमिका निभा रहे हैं। व्यंग्य का धर्म भी यही हैं कि समाज में  शोषण, अत्याचार, अनैतिकता, असमानता तथा भेदभाव के विरूद्ध आवाज उठाए और वंचित और पीड़ित वर्ग के साथ खडा हो। इस दृष्टि से राजस्थान के व्यंग्यकार हर दृष्टि से अपना रचना कर्म कर रहे हैं। 

निष्कर्ष
राजस्थान के व्यंग्यकारों शहरीकरण और नव फैशनपरस्ती तथा बाजारवाद आदि विषयों से लेकर साम्प्रदायिकता, आतंकवाद, वैश्वीकरण तथा भूमण्डलीकरण आदि आधुनिक परिप्रेक्ष्य में उपयोगीे विषयों को भी अपने लेखन का हिस्सा बनाकर रचनाकर्म में रत है। इन व्यंग्यकारों में नीरज इया, बुलाकी शर्मा, देवेन्द्र इन्द्रेश, डॉ अजय अनुरागी, कृष्ण कुमार ‘आशु’ यश गोयल आदि उल्लेखनीय हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. परसाई हरिशंकर - मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ। 2. शर्मा ज्ञान प्रकाश - हिन्दी की हास्य व्यंग्य मयी कविता का सांस्कृतिक विवेचन। 3. अमृतराय - मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ। 4. कोहली नरेन्द्र - मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ। 5. शंकर पुणतांबेकर - पाँच व्यंग्यकार - भूमिका। 6. शरद जोशी - मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ - भूमिका।