ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- I February  - 2022
Innovation The Research Concept
कृषि स्वरुप में क्षेत्रीय परिवर्तन का विश्लेषणात्मक अध्ययन (सिवनी जिले के विशेष संदर्भ में )
Analytical Study of Regional Change in Agricultural Pattern (With Special Reference to Seoni District)
Paper Id :  15839   Submission Date :  2022-02-16   Acceptance Date :  2022-02-22   Publication Date :  2022-02-25
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रंजीता कमलेश
असिस्टेंट प्रोफेसर
भूगोल
आर. डी. गवर्मेंट पी. जी. कॉलेज मंडला
मंडला,मध्य प्रदेश
भारत
सारांश
भारतीय कृषि के स्वतरूप में अत्याधिक परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। आज भारतीय कृषि अपने परम्परागत स्वरूप से व्यावसायिक स्वरूप में परिवर्तित हो रही है। कृषि में आधुनिकीकरण के लिए तकनीक के प्रयोग के साथ-साथ श्रृम, पूंजी, मशीनीकरण आदि का बड़े पैमाने पर निवेश किया जा रहा है, जिससे एक ओर भारतीय कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई है, वहीं कृषकों के जीवन स्तर में भी बदलाव आया है। आज भारतीय कृषि के स्वरूप में परिवर्तन में निवेश के साथ-साथ व्यक्तिगत दृष्टिकोण, शिक्षा व सरकारी योजनाएँ भी महत्वपूर्ण पहलू के रूप में उभर कर सामने आई है। प्रस्तुत शोध पत्र इन्हीं तथ्यों को विश्लेषित करने का प्रयास है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Extreme changes are visible in the nature of Indian agriculture. Today Indian agriculture is changing from its traditional form to commercial form. Along with the use of technology for modernization in agriculture, large-scale investment of labor, capital, mechanization etc. is being done, due to which there has been an unprecedented increase in Indian agricultural production, while the standard of living of the farmers has also changed. Today this paper is an effort to study these facts.
मुख्य शब्द कृषि विकास, कृषि गहनता, कृषि उत्पा्दकता, जीन टेक्नोकलॉजी, सूक्ष्म सिंचाई, कृषि सूचकां‍क, कृषि साख, कृषि पूँजी निवेश, कृषि गुणवत्ता , संतुलित विकास, कृषि आगत।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Agricultural Development, Agricultural Intensity, Agricultural Productivity, Gene Technology, Micro Irrigation, Agricultural Index, Agricultural Credit, Agricultural Capital Investment, Agricultural Quality, Balanced Development, Agricultural Inputs.
प्रस्तावना
कृषि स्वरूप में प्राचीन समय से आधुनिक समय तक अनेक परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों में आधुनिक तकनीकी व कौशल का प्रभाव अत्याधिक रहा है। आज कृषि जीविकोपार्जन के साधन से मुद्रा अर्जित व्यवसाय के रूप में परिवर्तित हो रही है। कृषि का स्वरूप कई आयामों से प्रभावित होता आया है। तकनीकि कारकों के साथ-साथ संस्थागत ढांचा व उसकी कार्यप्रणाली, कृषि विकास के स्व रूप को प्रभावित करती है। भारत जैसे विविधता वाले देश में सामाजिक व सांस्कृतिक कारकों का प्रभाव भी कृषि पर पड़ता है। साथ ही कृषि भू-हट्य में बदलाव लाने में शिक्षा व सरकारी नीतियों की भी अहम भूमिका होती है।
अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत शोध अध्ययन के उद्देश्यों को निम्न बिन्दुओं के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है- 1. अध्ययन क्षेत्र में वर्तमान के कृषि स्वंरूप के प्रतिरूप का अध्ययन करना। 2. अध्ययन क्षेत्र में कृषि स्वरूप में होने वाले परिवर्तनों का विश्ले्षण करना। 3. अध्ययन क्षेत्र में कृषि स्वरूप को प्रभावित करने वाले भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक कारकों का विश्ले‍षण करना। 4. अध्ययन क्षेत्र में कृषि स्वरूप में होने वाले परिवर्तन का क्षेत्रीय पर्यावरण पर प्रभाव का विश्लेषण करना। 5. अध्ययन क्षेत्र के कृषि स्वरुप में भविष्य में होने वाले सम्भावित परिवर्तन का आकलन करना।
साहित्यावलोकन
भारत के हृदय स्थल, मध्य प्रदेश राज्य की सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों के मध्यम स्थित सिवनी जिला का भौगोलिक विस्तार 21 अंश 36 उत्तरीय अक्षांश से 22 अंश 37 उत्तरीय अक्षांश तथा 79 अंश 90 पूर्वी देशांश से 80 अंश 17 अंश पूर्वी देशांश है। यह मध्य प्रदेश राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित है। जिला का क्षेत्रफल 8758 वर्ग किलोमीटर है प्रशासनिक दृष्टिकोण से अध्ययन क्षेत्र 08 विकासखंडो – सिवनी, कुरई, लखनादौन, बरघाट, केवलारी, घनौरा, छपारा व घंसौर में विभाजित है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अध्ययन क्षेत्र में 1379131 जनसंख्यां निवास करती है जो मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या का 1.89 प्रतिशत भाग है। यह मध्य प्रदेश राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 9.83 प्रतिशत भू-भाग को घेरे हुए है।
मुख्य पाठ

आंकड़ों के स्‍त्रोत एवं शोध प्रविधि 

अध्‍ययन के उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए द्वितीयक समंकों का प्रयोग किया गया है जिन्‍हें कार्यालय सहायक संचालक, जिला सांख्यिकी कार्यालय अधीक्षक भू-अभिलेख कार्यालय व सहायक संचालक कृषि विकास, जिला सिवनी से प्राप्‍त किया गया है।

अध्‍ययन को प्रभावी एवं विश्‍वसनीय बनाने के लिए अनेक शासकीय व गैर शासकीय संस्‍थाओं से भी आंकड़े एकत्रित किए गए हैं। अध्‍ययन के उद्देश्‍य की स्‍पष्‍टता के लिए सरलतम एवं व्‍यवहारिक सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया गया है।

कृषि स्‍वरूप में क्षेत्रीय परिवर्तन 

कृषि भूमि उपयोग प्रतिरूप 

अध्‍ययन क्षेत्र में अध्‍ययन अवधि के दौरान कृषि भूमि उपयोग प्रतिरूप के अनेक चरों में धनात्मक व ऋणात्‍मक दोनों परिवर्तन हुए है। पडती भूमि के क्षेत्रफल में +42 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं कृषि के लिए अनुपलब्‍ध भूमि मानक में -23 प्रतिशत का बदलाव आया, जिसका मुख्‍य कारण कृषि भूमि पर बढ़ता जनसंख्‍या दबाव है। कृषि योग्‍य बेकार भूमि में भी +58 प्रतिशत की वृद्धि अंकित की गई है। अन्‍य अकृष्‍य भूमि (पडती शामिल नहीं) मानक में +32 प्रतिशत की धनात्‍मक बढोत्‍तरी देखने को मिलती है। कृषि का विस्‍तार व अन्‍य आर्थिक कार्यों में भूमि का उपयोग करना इसका मुख्‍य कारण रहा है।

अध्‍ययन क्षेत्र में अध्‍ययन अवधि के दौरान शुद्ध बोया गया क्षेत्र मानक में सकारात्‍मक परिवर्तन +28 प्रतिशत वद्धि दर्ज की गई जो यह दर्शाता है कि खाद्यान आपूर्ति के लिए इस मानक में वृद्धि हुई है।

शस्‍य प्रतिरूप परिवर्तन      

शस्‍य प्रतिरूप में किसी क्षेत्र के शुद्ध बोये गये क्षेत्रफल का अलग-अलग फसलों के उत्‍पादन को शामिल करते है।

अध्‍ययन क्षेत्र में अध्‍ययन अवधि के दौरान कृषि शस्‍य प्रतिरूप में भी व्‍यापक परिवर्तन हुआ है। अध्‍ययन क्षेत्र में परम्‍परागत एवं मोटे खाद्दान्नो के स्‍थान पर व्‍यावसायिक फसलों के उत्‍पादन पर ज्‍यादा ध्‍यान दिया जा रहा है।

अध्‍ययन क्षेत्र में अध्‍ययन अवधि के दौरान तुअर, ज्वार, तिल व सोयाबीन खाद्यान फसलों के क्षेत्रफल में क्रमश: -81.43, -43.80, -39.72 तथा 28.03 प्रतिशत की कमी आयी है ज‍बकि गेंहूं, मक्‍का, धान, चना व मूंगफली की फसलों के क्षेत्रफल में क्रमश: +411.90, +399.87, +217.89, +157.47 व 107.41 प्रतिशत की व़द्धि दर्ज की गयी। इसके साथ ही साग-सब्‍जी, फल, मिर्च्-मसालें, गन्‍ना व कपास के उत्‍पादन क्षेत्रफल में क्रमश: +448.21, +310.02, +219.10, 179.65, 89.71 प्रतिशत की बढोत्‍तरी हुई है।

उत्‍पादकता प्रतिरूप परिवर्तन       

आधुनिक नवीन तकनीक तथा जागरूकता के कारण अध्‍ययन क्षेत्र में कृषि उत्‍पादकता प्रतिरूप में भी व्‍यापक परिवर्तन दिखाई देते हैं। अध्‍ययन क्षेत्र में धान, गेंहूं, ज्‍वार, मक्‍का, चना, तुअर, मूंगफली, सरसों व सोयाबीन फसलों के उत्‍पादन में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई जो क्रमश: +290, +2012, +310, +2395, +430, +610, +149, +235 तथा +87 रही। जिसका मुख्‍य कारण अध्‍ययन क्षेत्र में नवाचारों का प्रयोग व कृषकों की अपनी खेती के प्रति जागरूकता है। क्षेत्र में कीटनाशकों के प्रयोग से जहां फसलों में होने वाले रोगों की रोकथाम में मदद मिली, वहीं रासायनिक खादों के प्रयोग ने प्रति हेक्‍टेयर उत्‍पादन को बढ़ाया है। विशेषकर गेंहूं व मक्‍का उत्‍पादन में अधिक वृद्धि दर्ज की गई। अध्‍ययन क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्‍तार व सरकार द्वारा कृ‍षकों को दिए जाने वाले लाभ ने भी उत्‍पादकता को बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभाई है।

अध्‍ययन क्षेत्र में खाद्दान व व्‍यापारिक फसलों के उत्‍पादन में वृद्धि के साथ-साथ साग-सब्जी व बागवानी फसलों के उत्‍पादन में भी वृद्धि देखने को मिलती है।

कृषि स्‍वरूप में परिवर्तन का क्षेत्रीय पर्यावरण पर प्रभाव      

अध्‍ययन क्षेत्र में कृषि स्‍वरूप के व्‍यापक परिवर्तन हुए हैं, जिसका सकारात्‍मक व नकारात्‍मक दोनों ही प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं। अध्‍ययन क्षेत्र में कृषि स्‍वरूप का सकारात्‍मक प्रभाव जैसे- कृषि उत्‍पादन में वृद्धि, कृषकों की आय में बढोत्‍तरी, कृषि की अनेक समस्‍या का निदान व प्रति हेक्‍टेयर उत्‍पादन में वृद्धि तो हुई है वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय पर्यावरण पर कुछ विपरीत प्रभाव भी पड़ा है। अध्‍ययन क्षेत्र में रासायनिक उर्वरकों व हानिकारक कीटनाशकों के अधिक प्रयोग से मृदा की उर्वरकता में हृास की समस्‍या बढ़ी है, सिंचाई सुविधाओं के विस्‍तार से लवणीय भूमि का प्रतिशत भी बढ़ा है। कृषि भूमि के विस्‍तार से आसपास के वन क्षेत्रफल में कमी आई है तथा वर्षा प्रतिरूप में भी परिवर्तन देखने को मिला है।

सुझाव      

अध्‍ययन क्षेत्र में कृषि के स्‍वरूप में परिवर्तन से कुछ नकारात्‍म प्रभाव देखने को मिल रहे हैं, यदि जैविक खादों का प्रयोग बढ़ाया जाए तथा फसल चक्रण व जैविक खेती को प्रोत्‍साहित किया जाए, तो इन नकारात्‍मक प्रभावों को कम किया जा सकता है, साथ ही कृ‍षकों को नियमित समय पर अपने खेतों की मिट्टी का परीक्षण करवाकर उसमें उचित उर्वरकों के प्रयोग पर भी ध्‍यान दिया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष
अध्ययन क्षेत्र में कृषि स्वकरूप में होने वाले परिवर्तनों से कृषि उत्पादन तथा कृषकों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है। भविष्य में यदि कृषि के संतुलित विकास पर ध्यान दिया जाए तो अध्ययन क्षेत्र में कृषि विकास को और अधिक बढ़ाया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. हुसैन एम. (1976) “ A new approach to the Agriculture productivity Region of the Satlaj- Ganga plains – India, Geographical Review of India Vol-36, PP230- 236 2. खत्री, हरीश कुमार :- ‘’ कृषि भूगोल ‘’ कैलाश पुस्तक सदन, भोपाल 3. टेम्भ रे बी. (2015) :- ‘’ छिन्वा ड़ा जिले में कृषि उत्पानदकता प्रतिरूप में परिवर्तन का भौगोलिक अध्यभयन ‘’ 4. Golden Reseach Though, Vol-5, July-2015 5. Bhatia, S.S.(1967) :- “ A new Measure of Agriculture Efficiency in up India, “ Economic Geography Vol. 43 6. ढोबाले, दिलीप (2020) :- ‘’ छिन्द वाड़ा जिले के कृषि स्वaरूप में स्थारनिक और सामाजिक परिवर्तन का एक भौगोलिक अध्यuयन।