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पौराणिक साहित्य में भविष्य पुराण का स्थान तथा महत्व | |||||||
Place and Importance of Bhavishya Purana in Mythological Literature | |||||||
Paper Id :
16562 Submission Date :
2022-10-10 Acceptance Date :
2022-10-22 Publication Date :
2022-10-25
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सारांश |
पुराण संस्कृत साहित्य के एक महत्वपूर्ण अंग माने जाते हैं| पुराणानुसार पुराण/महापुराण संख्या में अट्ठारह माने जाते हैं| देवी भागवत में अट्ठारह पुराणों की पहचान के लिए एक श्लोक है जिसमें सूत्र रूप में अठारह पुराणों के नाम मिलते हैं| पुराणों ने भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति, सदाचार एवं सामाजिक और राजनैतिक जीवन से सम्बन्धित अनेक विषयों को अपने भीतर समाहित कर रखा है| ऐतिहासिक दृष्टि से पुराणों की महत्ता सर्वोपरि एवं सर्वविदित है| अष्टादश पुराणों में ‘भविष्य महापुराण’ का अत्यंत उच्च स्थान है क्योंकि इसमें महत्वपूर्ण सामग्रियों का समावेश हुआ है| यह भारतीय धर्म, कर्मकांड, इतिहास और राजनीति का एक विशाल कोष है| इसमें अनेक प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का सार संग्रहीत है| प्रस्तुत लेख में पौराणिक साहित्य के संक्षिप्त उल्लेख के साथ-साथ उसमें भविष्य पुराण का स्थान निर्धारित करते हुए उसके महत्व को प्रदर्शित किया गया है|
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Puranas are considered an important part of Sanskrit literature. According to mythology, there are eighteen Puranas/Mahapuranas in number. There is a verse in Devi Bhagwat for the identification of eighteen Puranas, in which the names of eighteen Puranas are found in formula form. The Puranas have contained many topics related to Indian religion, philosophy, culture, morality and social and political life. Historically, the importance of Puranas is paramount and well known. 'Bhavishya Mahapuran' has a very high place in the Ashtadasha Puranas because important material has been included in it. It is a vast corpus of Indian religion, rituals, history and politics. The essence of many ancient knowledge-sciences is stored in it. In the presented article, along with a brief mention of mythological literature, its importance has been displayed by determining the place of Bhavishya Purana in it. | ||||||
मुख्य शब्द | पुराण, भविष्य महापुराण, मत्स्य पुराण, वायु पुराण, पंचलक्षण, सूत्र साहित्य, आपस्तम्ब धर्मसूत्र, सूर्योपासना, सौर पुराण | | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Puranas, Bhavishya Mahapurana, Matsya Purana, Vayu Purana, Panchalakshana, Sutra Literature, Apastamba Dharmasutra, Suryopasana, Solar Purana. | ||||||
प्रस्तावना |
पुराण वे ग्रन्थ विशेष हैं जिसमें सृष्टि, मानव, देवों-दानवों, राजाओं, महात्माओं आदि के प्राचीन वृतान्त लिपिबद्ध हैं| पुराण शब्द का सामान्य तथा बहुप्रचलित अर्थ पुरातन, पुराना या प्राचीन है| विशिष्ट अर्थ में यह संस्कृत साहित्य की एक शाखा विशेष का वाचक है| संज्ञा के रूप में प्रचलित पुराण का बोध पुरातन आख्यानों से संयुक्त ग्रन्थ स्वीकार किया जाता है| पुराण संकलित ग्रन्थ हैं जिनमें रूपकात्मक एवं तथ्यात्मक पुरावृत संग्रहीत हैं| पुराणों की विशेषता अधोधृत पंचलक्षणों के रूप में निर्दिष्ट है–
“सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशोमन्वंतराणि च|
वन्श्यानुचरितम चैव पुराणं पंचलक्षणम्||”[1]
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अध्ययन का उद्देश्य | पुराण वांग्मय संस्कृत साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है| पुराणों के अनुसार पुराण या महापुराण संख्या में अठारह मने जाते हैं| मत्स्य पुराण के अनुसार ‘अठारहों पुराणों के नाम ब्रह्मा ने मारीच को बतलाए थे|[2] देवी भागवत में अट्ठारह पुराणों की पहचान के लिए एक श्लोक है जिसमें सूत्र रूप में पुराणों की नामावली मिलती है –
“मद्वयं भद्वयं ब्रत्रयं वचतुष्टयं|
अ, ना, प, लिं, ग, कू, स्कानि पुराणानि पृथक-पृथक||”[3] |
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साहित्यावलोकन | उपर्युक्त अठारह पुराणों में भविष्य
पुराण का अत्यंत उच्च स्थान है क्योंकि इसमें बहुत सी महत्वपूर्ण सामग्रियों का
समावेश हुआ है| यह भारतीय धर्म, कर्मकांड, इतिहास और राजनीति का विशाल कोश है|
इसमें अनेक प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का सार संग्रहीत है, साथ ही कुछ प्राचीन विशिष्ट ग्रन्थ भी इसमें समाहित हो गये हैं और इसकी
रमणीयता भी अवर्णनीय है| प्रसिद्ध विद्वान श्रीयुत
पांडुरंग वामन काणे ने विशेष रूप से ‘तीर्थ से सम्बंधित
पुराणों में’ भविष्य पुराण की गणना की है|[4] इतिहास जिज्ञासुओं के ऐतिहासिक दृष्टिकोण के लिए तो यह बहुत ही आवश्यक
ग्रन्थ है| इसलिए अनेक विद्वानों ने उर्दू, अंग्रेजी, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओँ में लिखे गये इतिहासों
के साथ इसकी तुलना की है| विद्वान इतिहासकार एफ. ई.
पार्जिटर, स्मिथ और पं. भगवानदत्त ने गहन शोध के पश्चात
भविष्य पुराण को ही इतिहास के लिए सबसे प्राचीन आधार माना है| |
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मुख्य पाठ |
भविष्य पुराण की प्राचीनता सूत्र साहित्य युग तक जाती
है | विंटरनित्ज़ महोदय ने धर्मसूत्रों
के प्रणयन काल की तिथि प्राय: चौथी या पांचवीं शती ई.
पू. माना है| आपस्तम्ब धर्मसूत्र[5] में भविष्य पुराण के दो पद उद्धृत किए गये हैं, जिनमें
एक ‘भविष्यत पुराण’ का कहा गया है |
इससे स्पष्ट होता है कि आपस्तम्ब रचना
काल में ‘भविष्यत’ नाम का एक पुराण था|
आचार्य बलदेव उपाध्याय आपस्तम्ब धर्मसूत्र की प्राचीनता ई. पू.
पांचवीं-छठी शती तक ले जाते हैं| आपस्तम्ब के बहुत पहले से
पुराण नामक शब्द ऐसे ग्रन्थ के लिए प्रयुक्त होता था जिसमें प्राचीन गाथाएं आदि
रहती थीं| इस प्रकार के कतिपय ग्रन्थ उस समय प्रणीत रहे होंगे
और उनमें समकालीन घटनाएँ भी संग्रहीत होती रहीं जो कालान्तर में भविष्यवाणी के रूप
में रख दी गईं और इसी से इसका नाम भविष्य पुराण पड़ गया| इसके
अतिरिक्त कुछ अन्य पुराणों[6] में भी भविष्यत पुराण का उल्लेख मिलता है किन्तु यह निश्चित कर सकना कठिन
है कि आपस्तम्ब में उल्लिखित ‘भविष्यत’
नाम का पुराण और वर्तमान उपलब्ध ‘भविष्य पुराण’ दोनों एक ही ग्रन्थ हैं या अलग-अलग हैं| मैकडानल
महोदय का मानना है कि ‘भविष्यत और भविष्य वर्तमान भविष्य
पुराण के दो अलग-अलग नाम हैं|’[7] पार्जिटर महोदय ‘भविष्य’ नाम
को ‘भविष्यत’ का बिगड़ा हुआ रूप मानते
हैं|[8] इसी सन्दर्भ
में आचार्य बलदेव उपाध्याय जी मत भी महत्वपूर्ण है कि ‘आपस्तम्ब
धर्मसूत्र में आख्यात ‘भविष्यत पुराण’ वर्तमान
भविष्य पुराण का सूत्र रूप है|’[9] यह प्राय: सर्वमान्य है कि कुल पुराणों या महापुराणों की संख्या
अठारह है यद्यपि इनके नामों एवं क्रम संख्या में भिन्नता पाई जाती है| पुराणों के क्रम के विषय में पुराणकार एकमत नहीं दिखाई देते| विभिन्न पुराणों में पुराणों का क्रम भिन्न-भिन्न रूपों में मिलता है|
अठारह पुराणों में भविष्य पुराण भी महापुराण के रूप में सर्वप्रचलित
है| अधिकांशत: सभी पुराणों में भविष्य पुराण का क्रम नवें
स्थान पर ही मान्य है किन्तु कुछ पुराणों की पुराण सूची में इसका स्थान परिवर्तित
है| वायु पुराण में भविष्य पुराण को दूसरे स्थान पर रखा गया
है |[10] पद्म पुराण के पाताल खंड में भविष्य पुराण का नाम सबसे अंतिम पुराण के रूप
में अर्थात 22 वें क्रम में दृष्टव्य है|[11] इसी प्रकार देवी भागवत में अट्ठारह पुराणों की जो सूची सूत्र रूप में मिलती
है उसके आधार पर भविष्य पुराण को तीसरे या चौथे स्थान पर स्थापित किया जा सकता है|[12] अलबेरुनी ने अपनी पुस्तक
(अल्बेरुनीज़ इण्डिया) में पुराणों की दो सूची प्रस्तुत की है| दोनों सूचियों में पुराणों की क्रम संख्या अठारह-अठारह ही मिलती है किन्तु
उनके नामों में अंतर है| पहली सूची में भविष्य पुराण का
स्थान सबसे अंत में अर्थात अठारहवें पर निर्धारित है,[13] जबकि दूसरी सूची में जो कि विष्णु पुराण के आधार पर प्रस्तुत की गई है,
उसमें भविष्य पुराण को नवें स्थान पर रखा गया है| इसी प्रकार विभिन्न पुराणों में पुराणों की जो श्लोक
संख्या प्राप्त होती है उनमें भविष्य पुराण की श्लोक संख्या 14,000 बताई गई है|[14] इस सम्बन्ध में विद्वान आर.सी. हाजरा ने मत्स्य पुराण के आधार पर बताया है
कि भविष्य पुराण में 14,500 पद्य हैं|[15] इस सम्बन्ध में राणा
प्रसाद शर्मा जी का मत नितांत भिन्न है, उनके अनुसार भविष्य
पुराण महापुराणों में से ग्यारहवां है जिसमें 5 पर्व तथा 14,500
श्लोक हैं|[16] वर्तमान भविष्य पुराण में इसे 56,000 श्लोक वाला
बताया गया है किन्तु गिनने पर इसकी संख्या 28,000 के ही
आस-पास है |[17] इसी प्रकार पुराणों को जिन तीन गुणों (सत, रज, और तम) के आधार पर वर्गीकृत किया गया है उनमें भविष्य पुराण रजोगुण प्रधान
पुराण के रूप में दृष्टव्य है|[18]
वर्तमान में उपलब्ध भविष्य पुराण की प्रतियों में चार
पर्व दिखाई पड़ते हैं, जिन्हें ब्राम्ह, मध्यम, प्रतिसर्ग और उत्तर पर्व के नाम से जाना
जाता है| हाजरा के अनुसार ‘यही भविष्य
पुराण व्यास जी के द्वारा पांच पर्वों में विभाजित किया गया है जो ब्राम्ह, वैष्णव, शैव, सौर और
प्रतिसर्ग पर्व के नाम से प्रख्यात है,[19] किन्तु वर्तमान में उपलब्ध भविष्य पुराण की प्रतियों के अवलोकन से पता
चलता है कि इनमें वे संवाद और पांच पर्व नहीं हैं| इस समय
उपलब्ध इसके चारों पर्वों में लगभग समस्त विषयों का प्रतिपादन मिलता है| इसके ब्राम्ह पर्व में स्मृति सम्बन्धी चर्चाएं भरी पड़ी हैं| प्रतीत होता है कि यह विभिन्न स्मृति ग्रन्थों के श्लोकों का संकलन है|
यह पर्व सूर्य सम्बन्धी विभिन्न आख्यानों और वार्ताओं से भरा हुआ है|
इसमें सूर्य के स्वरूप, सुर्योत्पत्ति के
विवरण, सूर्य कुटुम्ब, सूर्य के विराट
रूप, आराधना, महिमा, उपासना, सूर्य प्रतिमा लक्षण और सूर्य की महत्ता
आदि का विस्तृत वर्णन मिलता है| साथ ही प्रमुख सौर उपासक मागों या भोजकों की भी विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है जिससे यह सिद्ध होता है कि
उस समय सौर उपासकों का एक विशिष्ट सम्प्रदाय भी प्रचलन में था| इसी पर्व में 68 सौर तीर्थों का उल्लेख भी मिलता है| इसके मध्यम पर्व में जन-जीवन की बहुत सी बातें समाहित हैं| बाद के निबंधकारों जैसे जीमूतवाहन, विज्ञानेश्वर, अपरार्क, बल्लालसेन आदि के निबन्ध ग्रन्थों का
आधार भी यही रहा है| इससे पता चलता है कि इसका रचनाकाल बहुत
प्राचीन रहा होगा| इसी पर्व में तन्त्र से सम्बन्धित बहुत सी
सामग्रियां भरी पड़ी हैं| इसका प्रतिसर्ग पर्व तो आधुनिक
चर्चाओं का संग्रह है| इसमें आदम, नोवा, याकूत, तैमूरलंग,
नादिरशाह, अकबर, जयचंद, पृथ्वीराज आदि के साथ-साथ वाराहमिहिर, शंकराचार्य, रामानुज, निम्बार्क, कबीर, नानक, रैदास आदि के जन्म सम्बन्धी बातें भी हैं| इसके
अतिरिक्त इस पर्व में आधुनिक ब्रिटिश शासन, कलकत्ता
पार्लियामेंट आदि की भी चर्चाएं मिलती हैं| इसके उत्तरपर्व
में 208 अध्याय हैं| यह पर्व भारतीयों की आस्था के अनुरूप है
क्योंकि धर्म के स्वरूप से लेकर उसके विभिन्न पक्षों पर इसमें गवेषणात्मक ढंग से
विचार किया गया है| यह पर्व विशेषकर सभी प्रकार के व्रतों, उत्सवों, कर्मकांडों एवं दानों आदि का विश्वकोष है|
भारतवर्ष में इसकी इतनी अधिक प्रतिष्ठा थी कि 5वीं से 17वीं शताब्दी
तक इसी के आधार पर अनेक निबन्ध ग्रन्थ लिखे गए| वस्तुतः इसके
चारों पर्वों में अनेक व्रतों, त्योहारों, उत्सवों की विधियों, कथाओं तथा उनसे मिलने वाले फलों
का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है| |
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निष्कर्ष |
अत: उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि भविष्य पुराण वस्तुतः एक महापुराण है जिसमें लगभग समस्त विषयों का प्रतिपादन किया गया है| यह पुराण सौर धर्म प्रधान भी है और सूर्योपासना से विशेष रूप से सम्बन्धित है| इसकी रचना निश्चय ही सूत्र ग्रन्थों के पूर्व ही हुई होगी यद्यपि इसमें घटनाओं को अनवरत जोड़ा जाता रहा जिसका ज्वलंत प्रमाण इसका प्रतिसर्ग पर्व है जिसमें अति आधुनिक काल की बातें भी समाहित हैं | सम्भवतः 5वीं या छठीं शताब्दी ई.पू. में ही इस पुराण की रचना हो गई होगी| |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. भविष्य पुराण – (1/2/5-6, 2/1/25, 4/2/11)
2. मत्स्य पुराण – (53/3,12,13)
3. देवी भागवत – (1/3/2)
4. काणे, पी. वी. – धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-4, पृ. 389
5. आपस्तम्ब धर्मसूत्र – (1/6/19/13)
6. मत्स्य पुराण – (53/62), वाराह पुराण – (177/34),वायु पुराण- (99/267)
7. मैकडानल, ए. ए. – वैदिक मैथोलाजी, 1961
8. पार्जिटर, एफ. ई. – द पुराण टेक्स्ट आव द डायनेस्टिक आव द कलि एज, 1962
9. उपाध्याय, बलदेव – पुराण विमर्श, पृ. 18
10. वायु पुराण – 104
11. पद्म पुराण – पाताल खंड, 10/51/13
12. देवी भागवत – (1/3/2)
13. अल्बेरुनीज़ इण्डिया - पृ. 130
14. विष्णु पुराण – (3/6), भागवत पुराण – (12/13/4/8), नारद पुराण – 92
15. हाजरा, आर. सी. – स्टडीज़ इन द पौराणिक रिकार्ड्स आन हिन्दू राइट्स एंड कस्टम्स, 1940
16. शर्मा, राणा प्रसाद – पौराणिक कोश, पृ. 372
17. तिवारी, रामजी – भविष्य पुराण एक अनुशीलन, 1986, पृ. 03
18. पद्म पुराण – (263/81/84), उत्तर खंड
19. हाजरा, आर. सी. – स्टडीज़ इन द पौराणिक रिकार्ड्स आन हिन्दू राइट्स एंड कस्टम्स, 1940, पृ. 167 |