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भारत में पर्यावरण संरक्षण कानून | |||||||
Environmental Protection Laws in India | |||||||
Paper Id :
15854 Submission Date :
2022-01-28 Acceptance Date :
2022-02-03 Publication Date :
2022-02-06
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सारांश |
मानव एवं प्रकृति दोनों मित्र रहेंगे तो जीवन सुगम रहेगा परन्तु जब मानव प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है तभी प्रकृति मनुष्य के जीवन को मुश्किल बना देती है।पर्यावरण के बिना मनुष्य का जीवन असम्भव है। भूमण्डलीय उष्मीकरण के परिणाम स्वरूप प्राकृतिक आपदा भी देखी जाती है। भारत में पर्यावरण संरक्षण के प्रति चेतना ब्रिटिश काल से ही देखी गयी थी। 1860 में इण्डियन दण्ड संहिता में इससे जुड़े कानून जोड़े गए थे। उतरोत्तर यह कार्य यू हीं जारी रहा। सन् 2000 के काल में वन्य जीव संरक्षण एवं ई-कचरा प्रबन्धन सम्बन्धित कानून पारित किए गए। हर कानून अपने आप में नये सख्त नियमो के साथ प्रस्तुत हुआ। 2019 का तटीय क्षेत्रीय व्यवस्थापन अधिनियम इस भूमण्डलीय ऊष्मीकरण को मद्देनजर रख कर किया गया। ये सभी कानून तभी सार्थक है जब जन सामान्य को इसके साथ जोड़ा जाए।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | If both human and nature remain friends, then life will be easy, but when human plays with nature, then nature makes the life of man difficult. Human life is impossible without the environment. Natural disasters are also seen as a result of global warming. Consciousness toward environmental protection was seen in India since the British period. In 1860, laws related to this were added to the Indian Penal Code. Progressively this work continued on its own. In the year 2000, laws related to wildlife protection and e-waste management were passed. Every law presented itself with new strict rules. The Coastal Regional Settlement Act of 2019 was done keeping this global warming in mind. All these laws are meaningful only when the common man is associated with them. | ||||||
मुख्य शब्द | वन्य जीव संरक्षण, ई-कचरा प्रबन्धन, भूमण्डलीय उष्मीकरण, ब्रिटिश काल, पर्यावरण संरक्षण। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Wildlife Conservation, E-waste Management, Global Warming, British Era, Environmental Protection. | ||||||
प्रस्तावना |
शब्द पर्यावरण को फ्रेंच शब्द “Environia”से लिया गया है जिसका अर्थ है चारों ओर। यह abiotic(भौतिक या गैर-जीवित) और जैविक (जीवित) वातावरण दोनों को संदर्भित करता है। हवा,पानी,प्रकाश इत्यादि जैसे इसके आदिवासी घटक,और पौधे,जानवरों, मनुष्यों आदि जैसे इसके जैविक जीवित घटक इस ग्रह पर जीवन के अस्तित्व और निरंतरता के लिए जिम्मेदार हैं [1]। पुरातन काल में मानव और प्रकृति में इतना अधिक सामंजस्य था कि पर्यावरण के संरक्षण की आवश्यकता महसूस नहीं होती थी। लेकिन जब से मानव में सुखमय जीवन जीने की अभिलाषा में वृद्धि हुई तभी से पर्यावरण में विकृति आना शुरू हो गया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की प्रगतिमें पर्यावरण को बिगाड़ने में अभूतपूर्व सहायता की। पर्यावरण में प्रदूषण को जन्म देने वाली औद्दोगिक क्रान्ति है। उद्दोगो के दुष्प्रभाव वनोका विनाश, वर्षा की कमी, तापमान में वृद्धि, चारे की कमी, तेजाबी वर्षा, ओजोन परत का विघटन आदि के रूप में दिखाई देने लगे। इस प्रकार विकसित विषैले पर्यावरण ने मानव को अनेक बीमारियों से ग्रसित कर उसे अस्वस्थ बना दिया।
भारत ही नही पूरा विश्व ही पर्यावरण के इस बिगड़ते स्वरूप से प्रभावित हुआ है। विकासशील व अविकसित तृतीय विश्व के राष्ट्र अधिक जनसंख्या, आर्थिक अभाव, अशिक्षा आदि के कारण इससे अधिक प्रभावित हुये हैं। जनसाधारण में प्रदूषित पर्यावरण के प्रति चेतना के अभाव से पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार को कानून का सहारा लेना पड़ा। भारत में आजादी से पूर्व ही अनेक कानून बनाये गये। ब्रिटिश सरकार द्वारा इन्हें अधिनियमो के रूप में जारी किया गया। सामान्य कानून में भारतीय दण्ड संहिता, Indian Penal Code 1860 की धारा 268, 290, 291, 426, 430, 431, 432, के तहत् सामान्य पर्यावरण समस्याएँ धारा 277 से जल प्रदूषण तथा धारा 278 से वायु प्रदूषण के प्रकरण निपटाये गये। दण्ड विधि संहिता 1898 (Criminal Procedure Code 1898) जिसे अब 1973 में पुनः नवीन रूप दिया गय है, के‘उपद्रव के अध्याय’ (Chapter on Nuisance)से ध्वनि प्रदूषण पर प्रतिबन्ध लगा है।भारत की आजादी से पहले और बाद में पर्यावरण संरक्षण हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। इस पत्र में,हमने भारत में ब्रिटिश काल से लेकर वर्तमान तक निर्मित पर्यावरण संरक्षण कानूनों का वर्णन किया है । सन्दर्भ संख्या २ से ९ के विश्लेषण उपरांत पर्यावरण संरक्षण से सम्बंधितनियमो का संकलन इस पेपर में किया गया है।
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अध्ययन का उद्देश्य | इस शोध पत्र का उद्देश्य भारत में पर्यावरण संरक्षण कानून का पालन करना । |
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साहित्यावलोकन | डॉ. राधावल्लभ उपाध्याय की पुस्तक पर्यावरण शिक्षा में पर्यावरण के अर्थ, महत्व, प्रकार के साथ-साथ मुख्य घटकों की जानकारी भी दी गई है। इस शोध पत्र में पर्यावरण संरक्षण के संवैधानिक नियमों एवं न्यायिक संरक्षण के अधिनियम का वर्णन यहीं से लिया गया है। एच. एम. सिरवेई की पुस्तक भारत में संवैधानिक कानून, 2019, इस पुस्तक में पर्यावरण संरक्षण के अधिनियम की जानकारी प्राप्त होती है। इस शोध पत्र में इससे काफी सहयोग मिला। पर्यावरण संरक्षण जीवन की महती आवश्यकता है।
ब्रिटिश सरकार ने प्रदूषण के प्रकारो के आधार पर कानून बनायें-
(अ) जल प्रदूषण के लिए -
(1) दी नार्थ केनाल एण्ड ड्रेनेज एक्ट, 1873 (The North Canal & Drainage Act, 1873)
(2) दी आब्स्ट्रक्शन ऑफ फेयरवेज एक्ट, 1888 (The Obstruction of Fairways Act, 1881)
(3) इंडियन फिशटीज एक्ट, 1897 (Indian Fisheries Act, 1897)
(ब) वायु प्रदूषण के लिए -
(1) दी ओरियन्टल गैस कम्पनी एक्ट, 1857 (The Oriental Gas Company Act, 1857)
(2) दी एक्सप्लोसिव एक्ट, 1908 (The Explosive Act, 1908)
(3) दी इण्डियन बॉयलर्स एक्ट, 1923 (The Indian Bailars Act, 1923)
(4) दी मोटर्स व्हीकिल एक्ट, 1938 (The Motor Vehicle Act, 1938)
(स) कीटाणुनाशक के लिए -
(1) दी पोइजन एक्ट, 1919 (The Posion Act, 1919)
(द) वन्य जीव संरक्षण हेतु -
(1) दी इण्डियन फोरेस्ट एक्ट, 1927 (The Indian Forest Act, 1927)
(2) दी आन्ध्र प्रदेश, एग्रीकल्चर पेस्ट एण्ड डिसीज एक्ट, 1919 (The A.P. Agriculture Post and Disease Act, 1919)
(3) दी मैसूर डेस्ट्रकिटव इन्सेक्टज एण्ड पेस्ट, एक्ट, 1917 (The Mysore Destructive Insect and Post Act, 1917)
(4) दी केरल एग्रीकल्चर पेस्ट एण्ड डिसीज एक्ट, 1917 (The Kerala Agriculture Pest and Disease Act, 1917) |
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विश्लेषण | आजादी (1947) के बाद देश में पर्यावरण के क्षेत्र में अनेक और कानून बने। कुछ एक-दूसरे के पूरक थे और कुछ सम्पूरक। राष्ट्र संघ द्वारा जून, 1972 में स्टाकहोम (स्वीडन) में आयोजित ‘मानव पर्यावरण’ अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेन्स में विचारे गये चर्चितबिन्दुओं के आधार पर भी कुछ अधिनियम बनाये गये जो मुख्यतः पर्यावरण प्रदूषण को रोकने से ही सम्बन्धित थे। मानव पर्यावरण अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेन्ज के बाद सबसे पहला कदम, जो भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के हित में लिया, वह संविधान में दो संशोधन थे, जिन्हें अनुच्छेद 48A तथा 51 A(g) नाम दिये गये। भारत का संविधान: अनुच्छेद 48A “पर्यावरण का संरक्षण और सुधार तथा वन एवं वन्य जीवों की सुरक्षा-सरकार पर्यावरण के संरक्षण और सुधार तथा देश के वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण का प्रयास करेगी।” भारत का संविधान: अनुच्छेद 51 A(g) “यह भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण और सुधार करें, जिसमें वन, झीले, नदी और वन्य जीव सम्मिलित है तथा प्रत्येक जीवधारी के प्रति सहानुभूति (संवेदनशीलता) रखें।”इनदोनों अनुच्छेदों तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 (प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता) जिसमें कहा है “संविधानयहआश्वस्त करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को उस गतिविधि से बचाया जाना चाहिए जिसमें उसके जीवन, स्वास्थ्य, और शरीर को हानि पहुँचती हो।”(It ensures that every individual may be saved from any activity which injurer his life, health and physique) से विद्वान न्यायाधीशों ने अनेक पर्यावरण इस प्रकार भारतीय संविधान की महत्ता को बढ़ाया है। पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम और नियन्त्रण के पारित महत्वपूर्ण अधिनियमों निम्न है - जलप्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम 1974 (Water Prevention and Control of Pollution Act, 1974) इस अधिनियम में 8 अध्यायों के अन्तर्गत 64 धाराएँ है, जो मोटेतौर से अध्याय-1 (प्रारम्भिक) अध्याय-2 जल प्रदूषण नियन्त्रण हेतु केन्द्रीय तथा राज्य स्तरीय बोर्डों का गठन, अध्याय-3 (संयुक्त बोर्डों का गठन), अध्याय-4 (बोर्ड की शक्तियाँ तथा कार्य), अध्याय-5 (जल प्रदूषण से बचाव व नियन्त्रण), अध्याय-6 (वित्त सम्बन्धी प्रक्रियाएँ) अध्याय-7 (सजाएँ तथा कार्य विधिओ) तथा अध्याय-8 (विविध) के प्रकार से विभाजित है। इस अधिनियम के अध्याय-7 की धारा 41 से 46 तक में सजाओ का प्रावधान है। अधिनियम पर टिप्पणी:- यह अधिनियम विधिवेताओं तथा विधिविशेषज्ञों द्वारा कड़ी मेहनत से सभी पक्षों का ध्यान रखकर बनाया गया था, फिर भी यह अधिक प्रदूषण नियन्त्रण में कारगार सिद्ध नहीं हो सका। अधिनियम की धारा 58 में उद्दोगों पर लगाई गई शर्त को उद्दोगपतिओं ने अपने प्रकार से परिभाषित कर उच्च न्यायालय से निर्णय प्राप्त कर लिया कि कोई भी सिविल कोर्ट उद्योगकर्त्ता को आवेदन करने पर निषेद्यान्ता स्वीकार कर सकती है।अधिनियम के प्रकाशन के बाद इसके अनुच्छेद व इसकी विभिन्न धाराओं के संदर्भ में इनके आक्षेप आये कि एक पूरा संशोधित अधिनियम पारित करना पड़ा (1) जल (प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण) संशोधन अधिनियम 1978 (2) वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण) अधिनियम, 1981 - इस अधिनियम में बढ़ते औद्दोगीकरण के कारण पर्यावरण में निरन्तर हो रहे वायु प्रदूषण के नियन्त्रण एवं रोकथाम के प्रावधान रखे गये हैं। 1. अध्याय में अधिनियम की प्रस्तावना, 2-अध्याय में वायुप्रदूषण एवं नियन्त्रण हेतु केन्द्रीय तथा राज्य स्तरीय बोर्डो का गठन-3, अध्याय में बोर्डस की शक्तियाँ तथा कार्य, 4-अध्याय में वायु प्रदूषण का बचाव व नियन्त्रण, 5-अध्याय में वित्त सम्बन्धी प्रक्रियाएँ, 6-अध्याय में सजाएँ तथा कार्यविधियाँ, 7-अध्याय में विविध।इस प्रकार इस अधिनियम में 7 अध्याय है, जिसमें कुल 54 धाराएँ है। यह अधिनियम केवल सैद्धान्तिक रूप से ही यह पर्यावरण विभाग तथा केन्द्रिय और राज्य प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण बोर्डों का एक उपकरण बनकर रह गया। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (The Environment (Protection Act, 1986) इस अधिनियम का उद्देश्य राष्ट्रसंघ द्वारा मानव पर्यावरण पर 1972 में स्टामहोम में आयोजित कान्फ्रेन्स का अनुसरण करते हुए आया था भोपाल गैस त्रासदी के बाद आये इस अधिनियम ने मानव पर्यावरण में सुधार और संरक्षण करना परिस्थिति को नुकसान पहुँचाने वाले कारणों को रोकना इसका मुख्य उद्देश्य था।1986 के अधिनियम से देश के पर्यावरण को निजी ठेकेदारों और खनिजों के हाथों से होने वाले शोषण से बचने में मदद मिली है। इस अधिनियम ने केन्द्र सरकार को शक्तियाँ प्रदान करी ताकि वे पर्यावरण संरक्षण के सामान्य कानून बना सकें। जैव विविधता संरक्षण अधिनियम (2002) भारत विश्व में जैव विविधता के स्तर में 12वें स्थान पर है, भारत में लगभग 45000 पेड-पौधों एवं 81000जानवरों की प्रजातियाँ पायी जाती है। वर्ष 2002 में पारित इस कथन का उद्देश्य है - जैविक विविधता की रक्षा की व्यवस्था की जाए उसके विभिन्न अंशों का टिकाऊ उपयोग किया जाए तथा जीव विज्ञान संसाधन ज्ञान के उपयोग का लाभ सभी में बराबर विभाजित किया जाये। राज्योंमेंराज्य जैव विविधता बोर्ड स्थापित करने तथा स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबन्धन समितियों की स्थापना करने का प्रावधान है।जैव विविधता कानून (2002) केन्द्रीय सरकार को दायित्व सौंपता है कि उन परियोजनाओं का पर्यावरणीय प्रभाव जांचना जिसमें जैव विविधता को हानि पहुँचती हो। स्थानीय लोगों की जैव विविधता संरक्षण की परम्परागत विधियों की रक्षा करना। यह अधिनियम सरकार के साथ-साथ आम लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित करता है। यह सरकार को नीतिगत, संस्थागत तथा वित्तीय अधिकार प्रदान करता है। राष्ट्रीय जल नीति (2002) राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद् ने अप्रैल 2002 को राष्ट्रीय जल नीति पारित की। इसका उद्देश्य था आजादी के बाद नदियों के जल संग्रहण क्षेत्र संगठन बनाने जो बंटवारें की प्रक्रियां में प्रथम प्राथमिकता पेयजल को इसके बाद सिंचाई, पनबिजली आदि। जल के बेहतर उपयोग व बचत के लिए जनता में जागरूकता बढ़ाने, एंव उसके उपयोग में सुधार लाने के लिए पाठ्यक्रम, पुरस्कार आदि जल संरक्षण चेतना जाग्रत करने की बात कही। राष्ट्रीय पर्यावरण नीति (2006) यह नीति महत्वपूर्ण पर्यावरणीय संसाधनों के सरंक्षण, गरीबों के लिए अंतर-पीढ़ीगत समानता-आजीविका सुरक्षा, अन्तर-पीढ़ी समानता, पर्यावरण संबन्धी संसाधनों के उपयोग में आर्थिक और सामाजिक विकास दक्षता में पर्यावरणीय चिंताओं के एकीकरण और पर्यावरण के लिए संसाधनों की वृद्धि संरक्षण में मदद करती है। राष्ट्रीय पर्यावरण नीति की प्रस्तावना में कहा गया है कि समस्याओं को देखते हुए एक व्यापक पर्यावरण नीति की आवश्यकता है इसलिए इसके राष्ट्रीय पर्यावरण नीति में निम्न बिन्दु रखे गये - 1. संकटग्रस्त पर्यावरणीय संसाधनों का संरक्षण करना। 2. पर्यावरणीय संसाधनों पर सभी का समान अधिकार सुनिश्चित करना। 3. संसाधनों के प्रबन्धन में खुलेपन, उत्तरदायित्व तथा भागीदारी को सुनिश्चित करना। 4. स्थानीय संस्थाओं को पर्यावरण संरक्षण के लिए शक्तिशाली बनाना। वन अधिकार अधिनियम (2006) इस अधिनियम में जंगलों में निवास करने वाले या वनों पर अपनी आजीविका के निर्भर अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करना। उनके द्वारा उपयोग की जा रही भूमि पर उनको अधिकार प्रदान करता है। 2006 का वन संरक्षण अधिनियम स्थानीय लोगों का भूमि पर अधिकार प्रदान कर वनसंरक्षण को बढ़ावा देता है। यदि किसी कारणवश विस्थापित करना पड़े तो उनके पुनर्स्थापना की व्यवस्था करता है। राष्ट्रीय हरित न्यायधिकरण अधिनियम 2010 यह अधिनियम पर्यावरण संरक्षण और वनों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निस्तारण के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन जी टी) की स्थापना को व्यक्त करता है। खतरनाक अवशिष्ट प्रबन्धन से सम्बन्धित अधिनियम खतरनाक अवशिष्ट स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए खतरा है। कई कानून प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खतरनाक अवशिष्ट प्रबन्धन से सम्बन्धित हैं जिनमें संबधित कानून शामिल है। फैक्ट्री अधिनियम 1948, सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम 1991, राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण अधिनियम, 1995और पर्यावरण अधिनियम।1995 और पर्यावरण अधिनियम के तहत नियम और अधिसूचनाएँ। हमने खतरनाक अवशिष्ट प्रबन्धन से संबन्धित कुछ नियमों पर चर्चा की है। ठोस अवशिष्ट प्रबंधन नियम 2015 यह नियम ठोस अवशिष्ट प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है जिसमें स्त्रोत पर पृथक्करण, कचरे का परिवहन, उपचार और अंतिम निपटान शामिल है। ई-कचरा (प्रबंधन और हैडलिंग) नियम 2011 यह नियम 2011 को अधिसूचित किया गया है और 1 मई 2012 से लागू हुआ है इस नियम का मुख्य उदे्श्य निर्दिष्ट करके विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में खतरनाक पदार्थो के उपयोग को कम करना है। खतरनाक सामग्री के उपयोग के लिए दहलीज और देश में उत्पादित ई-कचरे को पर्यावरण की दृष्टि से अच्छी रिसाइक्लिंग के लिए चैनलाइज करना। यह नियम उन सभी पर लागू होता है जो ई-कचरे से संबधित है जैसे उत्पादक, उपभोक्ता, संग्रह केन्द्र, डिस्मेंटलर और रिसाइकलर आदि। प्लास्टिक अवशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 प्लास्टिक अवशिष्ट (प्रबंधन और हैडलिंग नियम 2011 में अधिसूचित। सरकार ने प्लास्टिक अवशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 को पहले के प्लास्टिक अवशिष्ट (प्रबंधन और हैण्डलिंग) नियम 2011 के दमन में अधिसूचित किया है। ये नियम प्रदान करते है प्लास्टिक के उपयोग और प्लास्टिक अवशिष्ट प्रबंधन के लिए दिशा निर्देश। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक अवशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 में प्लास्टिक, अवशिष्ट प्रबंधन ( संशोधन) नियम 2018 के रूप में 27 मार्च 2018 को संशोधन किया। निर्माण और विध्वंश अवशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 29 मार्च 2016 को निर्माण और विध्वंश अवशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 को अधिसूचित किया। ये नियम निर्माण सामग्री, मलबे जैसे निर्माण और विध्वंश अवशिष्ट उत्पन्न करने वाले व्यक्ति पर लागू होते हैं।व्यक्ति और संगठन या प्राधिकरण के किसी भी नागरिक ढाँचे के निर्माण, री-मांडलिंग, मरम्मत और विध्वंस से उत्पन्न मलबे का कचरा, निर्माण और विध्वंस उत्पन्न करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के पास निर्माण और विध्वंस कचरे के वैज्ञानिक प्रबंधन के कर्तव्य है। बायोमेडिकल कचरा प्रबन्धक नियम 1998 इसमें मानवीय एवं पशु के शारीरिक अवशिष्ट-उपचार एवं अनुसंधान की प्रक्रियामेंस्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में प्रयोग किये जाने वाले उपचार उपकरण जैसे सुईया, सिंरिज और अन्य सामग्रियों को बायोमेडिकल कचरा कहा जाता है। इस बायो मेडिकल कचरें का निस्तारण प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा कराया जायेगा। यह नियम संक्रामक कचरे के उचित निस्तारण, पृथक्करण, परिवहन आदि के लिए दिशा निर्देश प्रदान करता है। तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना 2019 ये मानदण्ड पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3 के तहत जारी किए गए है। इन मानदण्डो का उद्देश्य ग्लोबल वार्मिग के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसे प्राकृतिक खतरों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर सतत विकास को बढ़ावा देना है। ठोस कचरा प्रबंधन एवं व्यवस्थापक नगरपालिका अधिनियम 2000 यह नियम नगरपालिका को वैज्ञानिक तरीके से ठोस कचरे का निस्तारण करने में समक्ष बनाने के लिए दिशा निर्देश प्रदान करती है। बैटरी (प्रबंधन और व्यवस्थापन) नियम 2001 यह नियम लीड एसिड बैटरी के कचरे के उचित प्रभावी प्रबंधन के साथ अनुबंध करता है। यह अधिनियम सभी निर्माताओं असेबलरों, री-कंडीशनर आयातको, डीलरो, नीलामियों, थोक उपभोक्ताओं पर लागू होता है। खतरनाक अवशिष्ट प्रबंधन और सीमा पार नियम 2008 यह नियम खतरनाक रसायनों के निर्माण भण्डारण और आयात और खतरनाक कचरे प्रबंधन के लिए दिशा निर्देश प्रदान करता है, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जैव चिकित्सा का मसौदा तैयार किया है। अवशिष्ट प्रबंधन और हैडलिंग नियम 2015 (डाफर बी एम डब्बलू नियम) |
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निष्कर्ष |
इंसानों के साथ-साथ जानवरों को भी स्वच्छ भोजन, पानी और हवा की जरूरत होती है। यानि स्वस्थ वातावरण अस्तित्व को संभव बनाने वाले परिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना आवश्यक है, अगर हम प्रदूषण को नही रोकेगें तो निश्चित है कि दुनिया का अंत हो जाएगा। भारत की आजादी से पहले और बाद में भी भारत पर्यावरण के संरक्षण और स्वच्छता के प्रति सवंेदनशीलता दिखाता रहा है। आजादी से पहले बिट्रिश भारत में पर्यावरण संरक्षण के नियमों का निर्माण किया गया था स्वतंत्रता के बाद भारत ने पर्यावरण के सुधार और संरक्षण के लिए पर्यावरण कानून के विकास में भी प्रमुख भूमिका निभाई।वर्तमान और भविष्य में जीवन के लाभ के लिए पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना भी हमारा कर्तव्य है। पर्यावरण की दशा बिगाड़ने में औद्योगिक विकास एवं विज्ञान का बहुत बड़ा योगदान है। विज्ञान विकास की जिस चरम सीमा पर पहुँचा है उसके दुष्प्रभाव के रूप में भूमण्डलीय ऊष्मीकरण सामने आया है। दिल्ली में प्रदूषण के फलस्वरूप जो आक्सीजन की कमी देखी गयी वह भविष्य के लिए एक सीख बन गया है। यदि मनुष्य ने पर्यावरणीय संरक्षण नहीं किया तो परिणाम भयंकर होंगे। पर्यावरण कानून बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि उन कानूनों को सख्ती से लागू किया जाये। कानूनों के साथ जन जागृति भी लायी जायें। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Johnson D. L., Ambrose, S. H., Bassett T. J., Bowen M. L., Crummey D. E., Isaacson J. S., Johnson D. N., Lamb P., Saul M., Winter-Nelson A. E. (1997)
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5. https://moef.gov.in/en/ Ministry of Environment, Forest and Climate Change.
6. Part IV and Part IVA of the Constitution of India.
7. Seervai H. M., Constitutional Law of India: A Critical Commentary, 2019 (Vol.2, 1993).
8. Rosencranz A., Divan S., Noble M. L., (Ed.) Tripathi, Environmental Law and Policy in India - Cases, Materials and Statutes, Book Review Literary Trust, New Delhi.
9. Ranchhodas R., Thakore D. K., Singh, J. G. (2010). Liability for wrongs committed by others (26th edition ed.). |