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बुन्देली संस्कृति का प्रतीक सागर जिले का रानगिर ग्राम (मौखिक परम्पराओं के विशेष सन्दर्भ में) | |||||||
Rangir Village of Sagar District, A Symbol of Bundeli Culture (With Special Reference to Oral Traditions) | |||||||
Paper Id :
16747 Submission Date :
2022-11-12 Acceptance Date :
2022-11-22 Publication Date :
2022-11-25
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सारांश |
प्रस्तुत शोध-पत्र में बुन्देलखंड के सागर जिले में स्थित रानगिर ग्राम की ऐतिहासिकता के बारे में जानकारी एकत्रित की गई है, जिसमे रानगिर ग्राम के प्रसिद्ध हरसिद्धि देवी मंदिर जो कि भक्त गण की श्रद्धा का केंद्र बिंदु हैं के बारे में जानकारी दी गई है। शोध -पत्र में रानगिर मेला जो बुन्देली संस्कृति का प्रतीक है के बारे में , मेले के समय देवी के प्रति भक्तों की श्रद्धा जिसमें भक्तों द्वारा जवारे, कन्याभोज, गरीबों को दान देने आदि के साथ- साथ अन्धविश्वास जैसे स्वयं को शारीरिक कष्ट पहुँचाना, पशुबलि देना आदि कार्य के बारे में भी बताया गया है एवं देवी से सम्बंधित पारम्परिक मान्यताएं, लोक परम्पराएँ जैसे- लोक नृत्य, लोक गीत आदि की मौखिक साक्ष्यों के आधार पर जानकारी प्रस्तुत की गई है तथा वर्तमान में मेले के महत्त्व को शोध-पत्र में प्रस्तुत किया गया है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In the present research paper, information has been collected about the historicity of Rangir village located in Sagar district of Bundelkhand, therein information has been given about the famous Harsiddhi Devi temple of Rangir village, which is the point of reverence for the devotees. In the given research paper, Rangir Mela, which is a symbol of Bundeli culture, devotees' reverence towards the goddess during the fair, in which the devotees perform Jaware, Kanyabhoj, donation to the poor, etc., along with superstitions such as causing physical pain to themselves, animal sacrifice, etc. The work has also been explained in the paper and traditional beliefs related to the Goddess, folk traditions such as folk dances, folk songs etc. have been presented on the basis of oral evidence and the importance of the fair has been explained in the paper. | ||||||
मुख्य शब्द | मौखिक इतिहास, रानगिर ,मेला, हरसिद्धि देवी, बुन्देली संस्कृति। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Oral History, Rangir, Mela, Harsiddhi Devi, Bundeli Culture. | ||||||
प्रस्तावना |
प्राचीन काल से ही मेले हमारे लिए मनोरंजन, आर्थिकी, धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत, सामाजिक मेल-मिलाप आदि द्वारा हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रहे है। वर्तमान में भी वही मेले चिरस्थाई रूप से चलते आ रहे है, जो हमारे पूर्वजों के समय में उनके मनोरंजन का केन्द्र बिन्दु थे, परन्तु अगर मेले की ऐतिहासिकता की बात करें तो मेलों के संबंध में लिखित साक्ष्य बहुत कम मौजूद है । अर्थात मेलों के बारे में जानकारी का सबसे अच्छा साधन मौखिक परम्पराओं द्वारा इतिहास खोजना जो एक व्यक्ति द्वारा समाज तथा आस-पास के लोगों में प्रसारित किया जाता है, जिसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक विवृत करने से उनकी ऐतिहासिकता बनी रहती है, साथ ही समय के साथ इनमे कुछ गुण-दोष भी समाहित हो जाते है, जिसका समाज पर कुप्रभाव भी देखने को मिलता है | लेकिन इतिहासकार द्वारा तथ्यों का उचित प्रस्तुतीकरण कर मौखिक इतिहास के महत्त्व को समझा जा सकता है | प्रस्तुत लेख में रानगिर मेले के बारे में बताया गया है, जिसमें मौखिक साक्ष्यों का प्रयोग कर मेले की ऐतिहासिकता एवं मेले से सम्बंधित लोक मान्यताओं का प्रस्तुतीकरण किया गया है।
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अध्ययन का उद्देश्य | इस शोध-पत्र के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं–
1. बुंदेलखंड में स्थित सागर जिले के रानगिर ग्राम की प्रसिद्धि के बारे में जानना।
2. बुन्देली संस्कृति का प्रतीक रानगिर मेला जिसमे विभिन्न सांस्कृतिक परिदृश्य समाहित है का बारीकी से अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन |
’लोक साहित्य की भूमिका’, उपाध्याय, डॉ.कृष्णदेव, 1957 द्वारा लिखित पुस्तक में लोक साहित्य की जानकारी दी गई है साथ ही इस पुस्तक में लोक संस्कृति को बढ़ावा देने में मौखिक इतिहास के योगदान तथा महत्व की भी चर्चा की गई है ।
’बुन्देली समाज एवं संस्कृति’, तिवारी प्रो.बलभद्र; 1956 द्वारा लिखित पुस्तक में बुंदेलखंड के भौगोलिक परिवेश में बुन्देली समाज एवं संस्कृति के विभिन्न पहलुओ की चर्चा की गई है। साथ ही सांस्कृतिक समन्वय को मूर्त रूप देने में बुन्देली भाषा की भूमिका का विवेचन भी किया गया है ।
’बुंदेलखंड का इतिहास 1531 से 1857’,श्रीवास्तव, प्रो.बी.के., 2019 द्वारा लिखित पुस्तक में बुंदेलखंड का इतिहास जिसमें चंदेल शासकों के पश्चात् बुंदेलखंड में शासन करने वाले बुंदेला राजाओं तथा अन्य शासकों द्वारा शासन किये जाने की संपूर्ण जानकारी मिलती है साथ ही पुस्तक में 1857 की क्रांति के दौरान गाये गए बुन्देली लोक गीतों का विवरण भी मिलता है । |
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मुख्य पाठ |
मौखिक इतिहास का प्रादुर्भाव समष्टि की अतीत की आवाज
के रूप में होता है, अतीत की यह आवाज समाज की मौखिक परंपराओं एवं मौखिक साक्ष्यों
में निहित होती हैं।[1] मौखिक इतिहास में मानवीय मूल्यों
एवं परम्पराओं को लोगों द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का अत्यन्त
प्रभावशाली गुण समाहित है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | यह ऐतिहासिक शोध कार्य है । जो मध्यप्रदेश के सागर जिले के ग्राम रानगिर के इतिहास के बारे जानकारी एकत्रित करेगा। प्रस्तुत शोधकार्य में ऐतिहासिक विधि, साक्षात्कार विधि का प्रयोग किया जाएगा तथा इन विधियों के द्वारा रानगिर ग्राम तथा उसमें लगने वाले मेले की जानकारी एकत्रित करने के लिए प्राथमिक स्त्रोत के रूप में स्थानीय समुदाय से साक्षात्कार कर मौखिक परंपरा का महत्त्व समझते हुए महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रदर्शित करने का प्रयास किया जाएगा | |
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जाँच - परिणाम | आधुनिक समय में व्याप्त अन्धविश्वास को दूर करने की अत्यधिक आवश्कता है | जिससे समाज में जो कुरीतियाँ फैली हैं, उन समस्याओं की और लोगों का ध्यान आकर्षित हो तथा समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जा सके। इस शोध- पत्र में बुंदेलखंड की संस्कृति में व्याप्त अच्छाई एवं बुराई दोनों पर प्रकाश डाला गया है। | ||||||
निष्कर्ष |
बदलते परिदृश्य में मोबाइल फोन, सोशल मिडिया आदि से निकल कर पुरानी ऐतिहासिक परम्परा को बनाए रखने वाले लोग अपने मनोरंजन के लिए परिवार के साथ मेला आया करते हैं। लेकिन दूसरे पक्ष की बात करें तो श्रद्धालु गण अंधविश्वास के चलते माता के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं, जिसकी वजह से आज खान-पान में बदलाव आदि के चलते अनेक रोग पनपने का खतरा भी पैदा हो सकता है। साथ ही श्रद्धालु गण द्वारा आज भी पशु बलि माता को भेंट की जाती है जिसके पीछे यह भावना होती है कि बलि देने से माता प्रसन्न होकर भक्तों के कष्ट हर लेगी।
अतएव मेले मनोरंजन का लोगों की आर्थिकी का साधन है जो अपनी परंपरानुसार चलते आ रहे है, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में लोक मान्यताओं को बढ़ावा देने के साथ-साथ उससे सम्बंधित कुप्रथाओं अंधविश्वसों पर भी कार्य करने की आवश्यकता है। प्रस्तुत साक्षात्कार से हमें यह पता चलता है कि रानगिर में अवस्थित देवी हरसिद्धी का मन्दिर प्राकृतिक सुन्दरता से धनी क्षेत्र एक सुन्दर पर्यटन स्थल हैं। इसके साथ ही देवी हरसिद्धी के प्रति भक्तों की श्रद्धा होने से बहुत ही सिद्ध क्षेत्र है। माता के प्रति श्रद्धा भाव चाहे वह हिन्दू हो, मुस्लिम हो या आदिवासी वर्ग या अन्य समुदाय के लोग सभी सिद्ध क्षेत्र के प्रति पूज्यभाव रखते हैं तथा मेले का आयोजन होने पर यहाँ लोग आते हैं। आज के वैज्ञानिक युग में लोगों में लोक-विश्वास की पूर्णता तो है, लेकिन समय बदलाव के कारण आस्था को नया रूप देने की आवश्यकता है। अतः मौखिक इतिहास को बढावा देना हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन इतिहास से सीख लेकर वर्तमान कि ओर ध्यान देना भी हमारा परम कर्तव्य है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | लोक संस्कृति को बढ़ावा देना साथ ही साथ अंध भक्ति तथा अंध श्रद्धा से बचकर आधुनिक समाज को नई सीख लेने की आवश्यकता है | | ||||||
अध्ययन की सीमा | प्रस्तुत साक्षात्कार उन व्यक्तियों द्वारा लिया गया है, जो रानगिर मेले में उपस्थित थे | | ||||||
आभार | साक्षात्कारकर्ता के प्रति आभार ज्ञापित करती हूँ कि उन्होंने रानगिर ग्राम से सम्बंधित विशेष जानकारी उपलब्ध कराई। | ||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. श्रीवास्तव, अमिता, प्रो. वर्मा, लालबहादुर, ‘‘स्वतंत्रता आंदोलन में जनभूमिका का मौखिक इतिहास‘’, मध्य कालीन एवं आधुनिक इतिहास-विभाग, इलाहाबाद, 1998, पेज नं.- 68
2. जगताप, डॉ. रमेश एस., ‘’लोकसाहित्य तथा लोक संस्कृति समीक्षात्मक अध्ययन’’, आर्ट्स महाविद्यालय, बामखेड़ा, ता. शहादा, जि. नंदुरबार, 2019, पेज नं.- 7-8
3. .यादव, डॉ. वीरेन्द्र सिंह, ‘लोक संस्कृति के आइने मे लोक साहित्य की प्रासंगिकता”, हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, डॉ.शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुर्नवार्स विश्वविद्यालय, लखनऊ, उ.प्र, 2013, पेज नं- 3
4. उपाध्याय, डॉ. कृष्णदेव, ‘‘लोक साहित्य की भूमिका’’, साहित्य भवन प्राइवेट लिमिटेड, इलाहाबाद, 1957 (२६५७), पेज नं- 88-89
5. श्रीवास्तव, ब्रजेश कुमार, ‘’बुन्देलखण्ड का इतिहास (1531-1857 ई. तक)‘‘, डी. के. प्रिन्टवर्ल्ड प्रा.लि., नई दिल्ली, 2019, पेज नं- 7
6. मध्य प्रदेश जिला गजेटियर, सागर, 1970, पेज नं- 525
7. वही, पेज नं- 525
8. तिवारी, प्रो. बलभद्र, बुन्देली समाज और संस्कृति (आधुनिक सन्दर्भ), सुप्रिया पब्लिकेशन्स, सागर, 1996, पेज नं.- 168
9. मध्य प्रदेश जिला गजेटियर, सागर, 1970, पेज नं.- 525
10.अनुराग जोशी द्वारा लिए गए साक्षात्कार, 10/04/2022
11. प्रसाद, पं. ज्वाला,श्रीरामचरितमानस रामायण,मनोज पब्लिकेशंस, दिल्ली, 2019, पेज नं.- 88-89
12. तिवारी, प्रो. बलभद्र, बुन्देली समाज और संस्कृति (आधुनिक सन्दर्भ), सुप्रिया पब्लिकेशन्स, सागर, 1996, पेज नं.- 168
13. https%//bharatdiscovery-org/india/
14. हर्षत पाठक द्वारा लिये गए साक्षात्कार, 09/04/2022
15. पं. संतोष द्वारा लिये गए साक्षात्कार, 09/04/2022
16. आलोक सिंह द्वारा लिये गए साक्षात्कार, 09/04/2022
17. रामदास जी द्वारा लिये गए साक्षात्कार, 09/04/2022
18. पं.अनिल दुबे शास्त्री द्वारा लिये गए साक्षात्कार,10/04/2022 |