|
||||||||||||||||||||||||
जनपद अमरोहा में जल संसाधनों की उपलब्धता, उपयोगिता एवं प्रादेशिक नियोजन- एक भौगोलिक अध्ययन | ||||||||||||||||||||||||
Availability, Utility and Regional Planning of Water Resources in Amroha District - A Geographical Study | ||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
15895 Submission Date :
2022-03-16 Acceptance Date :
2022-03-19 Publication Date :
2022-03-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
|
||||||||||||||||||||||||
| ||||||||||||||||||||||||
सारांश |
जल मानव जीवन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जल को अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाता है और यह अनेक कार्यो में काम आता है। इन उपयोगों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। जीवन के लिए जल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि इसका सम्बन्ध न केवल मानव मात्र के अस्तित्व के लिए जल के प्रदाय से है बल्कि अन्य प्राणियों की संतोषणीयता की गारंटी को आवश्यक रूप देता है ताकि न्यूनतम मात्रा में अच्छा पानी सभी के लिए उपलब्ध हो सके। नागरिकों के लिए जल का सम्बन्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य और संस्थाओं के लिए पानी का प्रावधान करना है और इसका सम्बन्ध व्यक्ति और समुदाय के सामाजिक अधिकारों से भी है। इस कार्य में समग्र रूप से समाज के हितों का ख्याल रखा जाता है। इसमें सामाजिक समरसता और समानता के मूल्य निहित है। विकास हेतु जल एक आर्थिक क्रिया है और इसका ताल्लुक उन उत्पादक गतिविधियों से है जो कृषि के लिए सिंचाई, बिजली अथवा उद्योग जैसी निजी हितो को पूरा करते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसको सबसे अन्तिम वरीयता मिलनी चाहिए परन्तु विकासार्थ जल सभी सतहों और भू-जल स्रोतों से प्राप्त होने वाले पानी की सर्वाधिक मात्रा की खपत करता है और यही जल स्थानीय अभाव के साथ-साथ प्रदूषण की समस्या पैदा करने के लिए मुख्यतः उत्तरदायी है। मनुष्य परम्परा से ही स्थानीय रूप से उपलब्ध सतही और भूजल संसाधनों का उपयोग जीवन और आजीविका के लिए करते रहे हैं। वृह्द सिंचाई औद्योगीकरण और शहरीकरण जैसी आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ जनसंख्या के बढ़ते दबाव से इन जल स्रोतों के मार्गों पर विपरीत प्रकार का प्रभाव पड़ा है। प्रायः इसका अर्थ ‘जीवन के लिए जल’ को ‘नागरिकों के लिए जल और विकास, के लिए जल की और मोड़ देने के लिए निकाला जाता है अर्थात पानी के काम और घरेलू उपयोग जैसी जीवन रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने वाले और लोक स्वास्थ्य से जुड़े उपयोग से इसे परे ले जाना है। अतः आशा है कि जल के मानवाधिकार को मान्यता देने से जीवन के लिए जल की सर्वोच्च प्राथमिकता बनाए रखने में मदद मिलेगी।
|
|||||||||||||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Water is most important for human life. Water is used to fulfill many needs and it is used for many purposes. These uses can be mainly divided into three categories. Water is given the highest priority for life, because it is concerned not only with the supply of water for the existence of human beings, but also gives the necessary form to guarantee the satisfaction of other living beings so that the minimum quantity of good water is available to all. Can you Water for citizens is concerned with the provision of water for public health and institutions, and it is also related to the social rights of individuals and communities. In this work the interests of the society as a whole are taken care of. It embodies the values of social harmony and equality. Water for development is an economic activity and refers to productive activities that serve private interests such as irrigation for agriculture, electricity or industry. It is a process which should get the last priority but water for development consumes maximum amount of water from all surface and ground water sources and this water is responsible for creating problems of local scarcity as well as pollution. Human beings have been using locally available surface and groundwater resources for life and livelihood since tradition. Economic activities such as large-scale irrigation, industrialization and urbanization, as well as increasing population pressure, have adversely affected the routes of these water sources. Often it is interpreted to mean 'water for life' and 'water for citizens and water for development', i.e. water that meets life-saving needs such as work and domestic use, and is associated with public health. To take it beyond use. Therefore, it is hoped that recognizing the human rights of water will help in maintaining the highest priority of water for life. | |||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | जल संसाधन, भूजल, सिंचाई, उद्योग, जनसंख्या, जल प्रदूषण। | |||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Water Resources, Ground Water, Irrigation, Industry, Population, Water Pollution. | |||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
भोजन, वस्त्र एवं आवास मानव की प्रमुख आवश्यकता है। इन आवश्यकताओं में जल का सर्वाधिक महत्व है। ‘जल ही जीवन है’ कहावत से जल की महत्ता का हमें पता चलता है। जल का उपयोग मानव अपने विभिन्न क्रिया-कलापों हेतु करता है। जिसमें पीने के पानी के अतिरिक्त घरेलू उपयोग, कृषि, पशुपालन, उद्योग तथा अन्य विविध प्रकार की क्रियाऐं है। जिसमें मानव विभिन्न प्रकार से जल का प्रयोग करता है। पृथ्वी के लगभग 70 प्रतिशत भू-भाग पर जल पाया जाता है। कही उमड़ते हुए बादलों के रूप में, कही लहराते सागर के रूप में तो कहीं हिम शिखरों पर जमी बर्फ के रूप में, पृथ्वी पर जल उपलब्ध है किन्तु पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा स्थिर और सीमित है जल जीवन का आधार है। जल द्वारा ही भोजन के पोषक तत्वों को कोषिकाओं तक पहुँचाया जाता है और कहीं अपशिष्ट पदार्थ विसर्जित होकर शरीर से बाहर निकलते हैं। मनुष्य के शरीर में मौजूद जल वाचन संस्थान को स्निग्धता प्रदान करता है। शरीर में उपलब्ध जल राशि का संचालन व्यक्ति की प्यास और भूख पर निर्भर करता है। मनुष्य के रक्त के तरल भाग ‘प्लाज्मा’ में लगभग 90 प्रतिशत जल होता है। शरीर का पानी दो भागों में बंटा रहता है। कोशीय जल तथा बाह्यकोशीय जल जिससे मनुष्य भोजन के अभाव में कई माह तक जीवित रह सकता है किन्तु जल के अभाव में नहीं। अतः जल की महत्ता मानव जीवन के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
जल के स्रोतों के आधार पर जल संसाधन की उपलब्धता का अध्ययन तीन भागों में किया जा सकता है- (1) समुद्रिक जल, (2) सतह का जल तथा (3) भूमिगत जल। पृथ्वी के तीन चैथाई भाग पर समुद्र फैले हैं। महासागरों के वितरण तथा उनकी जल सम्बन्धी विशेषताओं से भूगोल के विद्यार्थी सुपरिचित है। अन्य दो जल स्रोतों से उपलब्ध जल की मात्र में अत्यधिक भिन्नता पायी जाती है परन्तु विभिन्न प्रदेशों में जल की उपलब्ध मात्र का कोई सर्वेक्षण अभी उपलब्ध नही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जल निरन्तर प्रवाहित होता रहता है तथा किसी भी क्षेत्र में इसकी मात्र में ऋत्विक एवं दैनिक घट-बढ़ हुई है। वास्तव में विश्व में निरन्तर एक जल चक्र (Hydrological Cycle) चलता रहता है। समुद्र में जल का वाष्पीकरण होता है और इससे बादल बनते हैं, जिनके द्रवीभूत होने से वृष्टि के रूप में जल पृथ्वी तल पर आता है। इस वर्षा का कुछ भाग सतह पर बहता हुआ तथा कुछ भाग भूमिगत बहता हुआ फिर समुद्र में चला जाता है परन्तु इस प्रमुख चक्र के अन्तर्गत कई अन्य गौण चक्र चलते रहते हैं। वर्षा का जल समुद्र में पहुँचने से पहले कई अवस्थाओं में वाष्प बनकर वायुमण्डल में पहुँचता रहता है। तालाबों, झीलों, बहती हुई नदी तथा मिट्टी से वाष्पीकरण तथा वनस्पति से वाष्पोसर्जन होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जल कभी किसी निश्चित मात्रा में नहीं रहता है। जल, जैसा विदित ही है पृथ्वी तल पर एक महत्वपूर्ण संसाधन है।
पृथ्वी पर उपलब्ध जल संसाधनों के चार प्रमुख स्रोत हैं- (1) स्थलीय जल संसाधन, (2) महासागरीय जल संसाधन, (3) वायुमण्डलीय (आर्द्रता) जल संसाधन। (4) भू-गर्भीय जल संसाधन। यह जल मुख्यतः तरल, ठोस एवं गैसीय अवस्थाओं में मिलता है।[1] चारों प्रकार के संसाधनों का अपना-अपना विशेष महत्व होता है। स्थलीय जल, नदियों, नालों, जल प्रपातों, झीलों, तालाबों, नहरों द्वारा प्राप्त होता है जबकि अवमृदा जल नलकूपों, हैण्डपम्पों, पातालतोड कुओं, गीजर, खेतों, कुओं, बोरिंग सैटों द्वारा पृथ्वी पर प्राप्त होता है जो रन्ध्र युक्त चट्टानों के मध्य भरा रहता है। वायु मण्डलीय जल, जल वाष्प के रूप में वायुमण्डल में व्याप्त रहता है जो वर्षा, हिमवर्षा, ओला, पाला, कुहरा तथा ओस के रूप में घनीभूत होकर भूपटल पर प्राप्त होता है। महासागरीय जल खाड़ियों, सागरों, महासागरों में विद्यमान रहता है जो वाष्पीकरण द्वारा वर्षा एवं हिमवर्षा के रूप में स्थल भागों को प्राप्त होता है तथा नदियों नालों एवं हिमानियों द्वारा पुनः सागरों एवं महासागरों में पहुँच जाता है। इस प्रकार जल स्रोतों का पारस्परिक गहन सम्बन्ध है।
सामान्यतः जल आपूर्ति का सीधा सम्बन्ध वृष्टि के स्थानिक वितरण से है परन्तु महासागर, सागर झील, तालाब, नदियाँ, नाले, कुएँ स्रोत भी जल उपलब्धता को प्रभावित करते हैं। किसी क्षेत्र विशेष में जल संसाधनों की उपलब्धता, मात्र, पर्याप्तता, निरन्तरता तथा जल के गुणों की स्थिति उस क्षेत्र में घरेलू तथा आर्थिक उद्देश्यों की जल-आपूर्ति को प्रभावित करती है।[2] यद्यपि जल-आपूर्ति के उद्देश्य स्थान-स्थान पर परिवर्तित होते रहते हैं परन्तु मानव जीवन में जल का प्रमुख उपयोग, पीने, खाना बनाने, वस्त्र साफ करने, शारीरिक स्वच्छता, घरों की साफ सफाई, मल-मूत्र तथा कूड़ा करकट बहाने, पशुपालन, सिंचाई, उद्यान, घास तथा लॉन विकसित करने, धूल मिट्टी पर छिड़काव करने, शीतकालीन कार्य में, मशीनों को ठंडा करने में, जल परिवहन, जल-विद्युत, उत्पादन, मनोरंजन एवं पर्यटन आदि के लिये किया जाता है। इस प्रकार जल एक महत्वपूर्ण संसाधन है जोकि जैविक आवश्यकता होने के कारण अति विशिष्ट स्थान रखता है। परन्तु जल संसाधन द्वारा आने वाली बाढ़, मृदा अपरदन, बर्फीले तूफान, दलदल, अवरोधक, जलराशियाँ प्रायः मानव सभ्यता के विनाश का कारण भी बन जाते हैं।
|
|||||||||||||||||||||||
अध्ययन का उद्देश्य | जल संसाधनों की उपयोगिता तथा महत्ता को दृष्टिगत रखते हुए शोधार्थी ने अपने शोध कार्य के लिए ‘‘जनपद अमरोहा में जल संसाधनों की उपलब्धता, उपयोगिता एवं प्रादेशिक नियोजन- एक भौगोलिक अध्ययन’’ को शोध के विषय के रूप में चयनित किया है। इस शोध कार्य में क्षेत्रीय स्तर पर अन्य संसाधनों के साथ-साथ जल-संसाधनों की उपलब्धता तथा उपयोगिता का तो अध्ययन किया ही गया है, साथ ही क्षेत्र में जल स्रोतों के स्वरूप अवमृदा जल स्तर में परिवर्तन तथा स्थलीय जल के स्थानिक वितरण का भी विस्तृत अध्ययन किया गया है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय स्तर पर जनसंख्या वृद्धि से बढ़ती जल की मांग, औद्योगिक तथा घरेलू क्षेत्रों में मांग तथा आपूर्ति का आंकलन भी किया गया है। जल संसाधनों से सम्बन्धित समस्याओं का विश्लेषण करने के साथ-साथ उसके संरक्षण तथा भावी नियोजन प्रारूप को शोध प्रबन्ध में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर जल संसाधनों के संरक्षण सम्बन्धी सुझावों तथा उपायों का समावेश भी इस शोध कार्य के मुख्य बिन्दु है। यही इस शोध कार्य का मुख्य उद्देश्य है। |
|||||||||||||||||||||||
साहित्यावलोकन |
जीवन के लिए जल सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। जल की क्षमता का कोई सानी नहीं है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है। इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए समाज हमेशा से विभिन्न तरीकों से जल प्रबन्धन और उसे उपयोग में लाये जाने के लिए प्रयासरत् है। चाहे दैनिक आवश्यकतायें हों, चाहे कृषि हो अथवा उद्योग या अन्य कोई कार्य सभी में जल की अपनी अलग महत्ता है। जल संसाधनों से संदर्भित शोध कार्यो की देश और विदेश में कोई कमी नहीं है। सरकारी संस्थाओं से लेकर निजी संस्थानों, वैज्ञानिकों, भूगोलवेत्ताओं ने विभिन्न स्तरों पर जल संसाधनों से सम्बन्धित शोध कार्य किये हैं। उनमें कुछ भूगोलवेत्ता निम्नवत् हैं- गणेश कुमार पाठक [5], जगनारायण मधुज्योत्सना [6]एस.के.लखेड़ा एवं संजय ध्यानी[7], भारत डोगरा एवं रेशमा भारती[8], विमला साहू[9], एस.आर. कन्नोज[10], अमृत अभिजात[11] एवं एस.पी. मिश्रा[12] प्रमुख हैं। |
|||||||||||||||||||||||
सामग्री और क्रियाविधि | जल संसाधनों का शोध अध्ययन एक गूढ़ और वैज्ञानिक विषय है। क्षेत्रीय स्तर पर भू-पृष्ठीय एवं अवमृदा जल संसाधनों का आंकलन, जल स्तर में परिवर्तन, जल की विभिन्न क्षेत्रों में मांग व आपूर्ति का विशलेषण, भावी मांग, जल की गुणवत्ता का परीक्षण पूर्णतः यांत्रिक और प्रयोगशाला से सम्बन्धित कार्य है। जो कि भूगोल विषय के शोध छात्र के लिए असम्भव नही जटिल अवश्य है। अतः शोधार्थी ने अपने शोध पत्र को पूर्ण करने के लिए भूगर्भ जल विभाग अमरोहा, बाढ़ खण्ड जनपद अमरोहा तथा सिंचाई व कृषि विभाग अमरोहा से प्राप्त आंकड़ों, सूचना रिपोर्ट, मानचित्रों, समाचार पत्रों को प्रमुख आधार बनाया है। वर्षा की मात्रा, मौसमी जल उपलब्धता, वार्षिक जलस्तर की गहराई में परिवर्तन को ग्रामीण अंचलों में भूगर्भ जलविभाग द्वारा स्थापित सम्प्रेक्षण केंद्रों की सूचनाओं के आधार पर विश्लेषित किया गया है। इस प्रकार शोध कार्य को पूर्ण करने हेतु प्राथमिक व द्वितीयक दोनों ही प्रकार के प्रकाशित एवं अप्रकाशित आकड़ों को आधार बनाया गया है। |
|||||||||||||||||||||||
न्यादर्ष |
अध्ययन क्षेत्र जनपद अमरोहा का सृजन 15 अप्रैल 1997 को हुआ था। यह उत्तर प्रदेश के 75 जनपदों में से मुरादाबाद मण्डल का एक प्रमुख जनपद है। अमरोहा जनपद का अक्षांशीय विस्तार 280 53’ उत्तर से 290 14’ उत्तर अक्षांश तथा देशान्तरीय विस्तार 770 58’ पूर्व से 780 40’ पूर्व देशान्तर के मध्य से है। अध्ययन क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 2249 वर्ग कि0मी0 है। जनपद अमरोहा की अधिकांश सीमाएं प्राकृतिक है। गंगा नदी इसकी पश्चिमी सीमा को निर्धारित करती है और हापुड़ तथा मेरठ जनपद से अलग करती है। उत्तर तथा उत्तर पूर्वी सीमा पश्चिमी रुहेलखण्ड के जनपद बिजनौर और जनपद मुरादाबाद द्वारा निर्धारित होती है। क्षेत्र के दक्षिण पूर्वी सीमा जनपद सम्भल द्वारा निर्धारित की गई है। अध्ययन क्षेत्र के दक्षिण में जनपद बुलन्दशहर स्थित है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार क्षेत्र की कुल जनसंख्या 1840221 है। जनपद में जनसंख्या घनत्व 818 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि0मी0 है। अध्ययन क्षेत्र के साक्षरता के आंकड़ों में अत्यधिक विविधता है। क्षेत्र की कुल साक्षरता दर 63.84 प्रतिशत है।[3] जनपद अमरोहा में 4 तहसीलें- धनौरा, अमरोहा, हसनपुर व नौगांवाँ सादात हैं। अध्ययन क्षेत्र में 6 विकासखण्ड, 48 न्याय पंचायतें, 959 ग्राम पंचायतें, 165 गैर आबाद गांव तथा कुल 1124 गांव सम्मिलित हैं।[4] |
|||||||||||||||||||||||
विश्लेषण | भौगोलिक स्वरूप
स्रोत- भूगर्भ जल विभाग, जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश
एवं केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड भारत सरकार |
|||||||||||||||||||||||
जाँच - परिणाम | जल संसाधनों के संरक्षण हेतु सुझाव एवं नियोजन अध्ययन क्षेत्र जनपद अमरोहा में जल संसाधनों के संरक्षण के प्रमुख सुझाव एवं नियोजन निम्नलिखित हैं- 1. जनपद अमरोहा के ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर भूमिगत जल का प्रयोग सिंचाई कार्यों में अधिक किया जाता है। कृषि हेतु ऐसी तकनीकी का विकास किया जाये, जिससे सिंचाई कार्य में जल की कम मात्रा का प्रयोग किया जा सके। 2. सिंचाई कार्य में कम मात्र में जल का उपयोग करने के लिये ‘डिपसिंचाई’ तकनीकी का प्रयोग किया जाना चाहिये। यह कार्य दो स्तर पर किया जा सकता है- आर्थिक रूप से 4 फिट गहराई पर पाइप लाइन बिछाकर उनसे डिपसिंचाई तकनीकी से सिंचाई करें। अपेक्षाकृत कम सम्पन्न कृषक अस्थायी पोर्टेबिल पाइपों से ये कार्य कर सकते हैं। इस तकनीकी से सिंचाई कार्यो में जल के व्यय की मात्र में लगभग 50 प्रतिशत की कमी हो सकेगी। 3. अध्ययन क्षेत्र में सिंचाई कार्य हेतु जल को उसके प्राप्ति स्रोत से खेतों तक पहुँचाने के लिये कच्ची नालियों का प्रयोग किया जाता है। इन नालियों में काफी पानी व्यर्थ हो जाता है। अतः सिंचाई कार्यो में इन कच्ची नालियों के स्थान पर रबर या प्लास्टिक के पाइपों का प्रयोग किया जाना चाहिये। 4. असमतल खेतों को समतल किया जाना चाहिये, इससे सम्पूर्ण खेतों में समान मात्र में पानी का भराव हो सकेगा और सिंचाई की आवृत्ति कम होने में सहायता मिलेगी। 5. नलकूपों द्वारा सिंचित क्षेत्रों में कम समयान्तराल पर बिजली चले जाने से बार-बार प्रवाह मार्ग में जल प्रवाह करना पड़ता है। 6. जनपद के ग्रामीण क्षेात्रें को दिन में विद्युत आपूर्ति की जानी चाहिये जिससे सिंचाई कार्य में रात्रि में अन्धेरे के कारण होने वाले जल के अपव्यय को रोका जा सकता है। 7. सिंचाई कार्य हेतु नलकूपों में विद्युत के स्थान पर वैकल्पिक ऊर्जा विशेषकर सौर ऊर्जा के प्रयोग को विकसित किया जाना चाहिये। इससे असमय होने वाली विद्युत कटौती के परिणामस्वरूप उत्पन्न समस्याओं से छुटकारा मिलेगा और सिंचाई कार्य में जल का अपव्यय कम हो सकेगा। 8. ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में इण्डिया मार्क-2 टाइप हैण्डपम्पों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये। इससे अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति हो सकेगी। 9. ग्रामीण क्षेत्रों में भी पंचायती स्तर पर पाँच या छः ग्रामों में सामूहिक स्तर पर अवर जलाश्यों का निर्माण कर पाइप लाइनों द्वारा पेयजल की आपूर्ति की जानी चाहिये। 10. ग्रामीण भूगर्भीय जल को शुद्ध रखने में शौचालयों के निर्माण में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि सम्बद्ध क्षेत्र का भूजल कितना नीचे है और वर्षा ऋतु में यह कितना ऊपर तक आ जाता है अन्यथा ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के मल संग्राहक गड्ढो की गहराई अधिक होने पर शौचालय द्वारा निस्तारित मल भूगर्भीय जल के सम्पर्क में आ जाता है, जिसके कारण सम्बन्धित क्षेत्र के कुओं और हैण्डपम्पों के जल में अशुद्धियाँ व्याप्त हो जाती है। | |||||||||||||||||||||||
निष्कर्ष |
आशा है कि उपर्युक्त सुझाव देश में जल समस्या के निराकरण में निश्चित रूप से मददगार साबित होंगे। इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि भारत में जल संरक्षण और जलापूर्ति की समस्या को हमारी आपूर्ति एवं वितरण सम्बन्धी अर्थव्यवस्था ने अधिक विकराल रूप दे दिया है। अभी भी यदि इस दिशा में ईमानदारी और निष्ठापूर्वक समन्वित प्रयास कर सकें तो इस समस्या को समय रहते ही सुलझाया जा सकता है। |
|||||||||||||||||||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. क्यूनेन, पी.एच.: रियलम्स आफ वाटर, पृ.-19.
2. नेगी, बी.एस.: संसाधन भूगोल, 1972, पृ. 129-130
3. सांख्यिकीय पत्रिका, जनपद अमरोहा, सन् 2019.
4. सांख्यिकीय पत्रिका, जनपद अमरोहा, सन् 2019.
5. पाठक, गणेश कुमारः ‘जल संसाधनों का दुरूपयोग और बचाव के उपाय’ कुरूक्षेत्र, जून, 2004 पृ.-7 .
6. जगनारायण, मधु ज्योत्सना: ‘‘भारत में बढ़ता जल संकट’’ कुरूक्षेत्र जून, 2004 पृ.-15.
7. लखेड़ा, एस.के. और ध्यानी, संजय: ‘‘स्वच्छ पेयजल का सपना कब होगा साकार’’ कुरूक्षेत्र, जून 2004, पृ.-18.
8. डोगरा, बी. एवं भारती, आर.: ‘‘परम्परागत जल स्रोतों का महत्व’’ कुरूक्षेत्र, 2004, पृ.-22.
9. साहू, विमला: ‘‘जल प्रबंधन एवं समाज का उत्तरदायित्व’’ कुरूक्षेत्र, 2004, पृ.-22.
10. कन्नौज, एस.आर.: राजीव गाँधी जल ग्रहण क्षेत्र प्रबन्धन मिशन’’ कुरूक्षेत्र, मार्च, 2006, पृ.-35.
11. अभिजात, ए.: ‘‘एक तालाब का काया-कल्प’’ योजना सितम्बर, 2007
12. मिश्रा, एस.पी.: ‘‘जल संसाधन प्रबन्धन एवं सरंक्षण’’, आविष्कार पब्लिशर्स डिस्ट्रीब्यूटर्स जयपुर (राजस्थान), 2007.
13. बुर्राड, एस.जी., ज्योलाॅजी सर्वे आफ इण्डिया पेपर नम्बर 12 पेज- 11 कोलकाता।
14. स्पेट ओ.एच.के. एण्ड लरमोन्थ, ए.टी.ए. इण्डिया एण्ड पाकिस्तान, पेज- 42
15. उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, मुरादाबाद 1968 पेज-17
16. उत्तर प्रदेश डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, मुरादाबाद 1968 पेज-18
17. गुर्जर, रामकुमार एवं जाट बी.सी.: जल संसाधन भूगोल, रावत पब्लिकेशन्स, जयपुर एवं नई दिल्ली, पृष्ठ 27.
18. कैन्टोर, एल.एम.: ए.वल्र्ड ज्योग्राफी ऑफ इरीगेशन, पृष्ठ 5.
19. सांख्यिकीय पत्रिका, जनपद अमरोहा, सन् 2019. तालिका-1
20. भूगर्भ जल विभाग, जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश एवं केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड भारत सरकार |