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आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में महिलाओं के आर्थिक विकास में स्व-सहायता समूह के योगदान का एक अध्ययन (महिला एवं बाल विकास विभाग-अलिराजपुर जिले के संद्रर्भ में) | |||||||
A Study of The Contribution of Self-Help Groups In The Economic Development Of Women In Tribal-Dominated Areas (With Reference to Women and Child Development Department-Alirajpur District) | |||||||
Paper Id :
16724 Submission Date :
2022-11-24 Acceptance Date :
2022-12-10 Publication Date :
2023-01-20
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सारांश |
पहले महिलाएं समूह में बैठकर बातें एवं गपशप मारती थी। परन्तु आज महिलाएं समूह में बैठकर आय के स्त्रोतों के बारे में बातें एवं चर्चाएं करने लगी और भविष्य के बारे सोचने लगी है कि बचत, निवेश, विकास, शिक्षा एवं व्यवसाय आदि क्षेत्रों में रूचि दिखाने लगी है। अध्ययन क्षेत्र में स्व-सहायता समूह के माध्यम से महिला सशक्तिकरण के साथ में सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।क्योंकि समूहों में काम करने से महिलाओं में विश्वास एवं आत्मनिर्भरता में वृद्धि हो रही है और अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रही है। आज हमारा देश विश्व में महिलाओं द्वारा संचालित स्व-सहायता समूह के क्षेत्र में उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहा है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Earlier women used to sit in groups and talk and gossip. But today women sitting in groups started talking and discussing about the sources of income and started thinking about the future, showing interest in the areas of savings, investment, development, education and business etc. In the field of study, through self-help groups, women are making important contributions in the field of social, political and economic empowerment. Because working in groups increases confidence and self-reliance in women and makes themselves proud. is feeling Today our country is increasing progressively in the field of self-help groups operated by women in the world. | ||||||
मुख्य शब्द | महिलाएं, हितग्राही, ग्रामीण, समूह, रोजगार, आर्थिक, विकास। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Women, Beneficiaries, Rural, Groups, Employment, Economic, Development. | ||||||
प्रस्तावना |
भारत गांवों का राष्ट्र है। जिसकी जनसंख्या विश्व में द्वितीय स्थान पर है और ग्रामीण क्षेत्र की आबादी का 36.8 प्रतिशत लोग गरीब है।एक व्यक्ति को स्वस्थ्य रहने के लिए जितनी कैलोरी की आवश्यकता होती है उतनी नहीं मिलती है।जिसके कारण व्यक्ति कई बीमारियों से ग्रसित होता है। इन समस्या को देखते हुए भारत में ग्रामीण माॅ एवं बच्चों की देखभाल हेतु आंगनवाड़ी केन्द्र बनाएं है। बच्चों की भूख और कुपोषण से निपटने के लिए एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यक्रम के रूप में 1975 में भारत सरकार ने प्रारम्भ किया है। शुरूवात में आगंनवाडी़ योजना का नाम आंगन आश्रम था। इस योजना को सरकार ने ”बाल विकास सेवा केन्द्र” के नाम से शुरूआत की थी। मध्यप्रदेश के इन्दौर जिले में महिला एवं बाल विकास विभाग ने पहला चलित आंगनवाडी़ केन्द्र शुरू किया था। जिसका नाम ‘जुगनू‘ रखा गया था, यह चलित केन्द्र बस्तियों में जाकर पूरक पोषण आहार वितरित करता था।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को स्व-सहायता समूह के माध्यम से रोजगार सृजन में योगदान का अध्ययन करना।
2. स्व-सहायता समूह के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता का अध्ययन करना ।
3. स्व-सहायता समूह से महिलाओं के जीवन स्तर में हुए परिर्वतन का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | पश्चिमी
मध्यप्रदेश का आदिवासी बाहुल्य जिला अलिराजपुर 17 मई 2008 को अस्तित्व में आया
है।जिसकी कुल जनसंख्या 728999 हजार (2011 के अनुसार) एवं साक्षरता दर 37.2 प्रतिशत
जो बहुत न्यूनतम है। जिले में 88 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लोग निवासरत है। और
ग्रामीणों की कुल जनसंख्या का 75 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या का मुख्य व्यवसाय कृषि
एवं मजदूरी करना है। इन ग्रामीणों की आर्थिक से संबंधित कई प्रकार की समस्याएं होती
है। जैसेः कास्तकारी के अलावा अन्य आय का साधन इनके के पास नहीं होता है, और किसानी में 5 से 6 माह तक काम मिलता
है। उसके बाद बचे हुए समय में ग्रामीणों को आय के लिए अर्थक प्रयास करना पड़ता है, और आवश्यकता पडने पर इन्हें अपनी जमीन व
गहनों को गिरवी रखना पड़ता है, और परेशानी से विवश होकर उसे छुड़ा भी नहीं पाते है। उसी
दौरान यदि अन्य प्रकार की समस्याएं जैसे-बीमारी, मृत्यु, पर्व, सामाजिक रीति रिवाजों को निभाने एवं
शादी-ब्याह निकलने से बंधक रखने की समय अवधि और बढ जाती है, और काम न मिलने के कारण क्षेत्र में पलायन
वाद बहुत बडी समस्या है। वर्षा काल के पूर्व मजदूरी के लिए अधिकांश लोग गुजरात चले
जाते है। पिछड़ा होने का मुख्य कारण यह भी हो सकता है, कि अधिकांश लोग काम हेतु बाहर चले जाते
है। जिसके कारण क्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय एवं अन्य कोई काम-काज के बारे में
नहीं सोचता है। अंचल में अधिकतर महिलाएं घरेलू कार्य एवं स्वयं के खेतों में काम
करती है। महिला को सशक्त बनाने हेतु स्वयं सहायता समूह 1992 में शुरू किया गया
था। इसी के अनुसार प्रत्येक आंगनवाडी़ केन्द्र में महिला बाल विकास विभाग में महिला
स्व सहायता समूह का गठन होने लगा। आंगनवाडी़ केन्द्र पर गठित होने वाले सभी
स्व-सहायता समूह को रेडी-टू-ईट निर्माण, मध्यान्ह भोजन बनाएंगा। जिसके माध्यम से
ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो सके और गरीबी दूर करने का प्रमुख साधन बन
सके है। स्व-सहायता समूह ऐसी गरीब महिलाओं का समूह है। जिनकी आर्थिक व सामाजिक
स्थिति एक जैसी होती है। इसके माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाकर एवं बचत निकालकर
अपने समूह को आर्थिक रूप से मजबूत करती है। जिससे समूह के सदस्यों के परिवारों को
आर्थिक रूप में मदद मिलेगी। महिलाओं से संबंधित मुददों के बारे में व्यापक पैमाने
पर जागरूकता पैदा करना है। और उसके बीच नेतृत्व कौशल का विकास होता है। महिलाओं को
रोजगार के नए अवसर प्रदान करना। रोजगार, स्वरोजगार व उद्यमिता से गरीबी उन्मूलन
में सहायक होता है। अध्ययन क्षेत्र अतियंत पिछडा़ हुआ और सम्पूर्ण क्षेत्र आदिवासी
बाहुल्य होने से शिक्षा का स्तर बहुत न्यूनतम् और भौगोलिक दृष्टि से बहुत उबड़-खाबड़, पथरिला होने के कारण कास्तकारों की माली
हालात भी बहुत दयनीय स्थिति में है। और आज भी वही पुरानी लकड़ियों की सामग्री से
खेती कार्य करने से उत्पादन बहुत न्यूनतम होता हैै। दूसरी और आय का एक मा़त्र साधन
कृषि कार्य से जीवन यापन करना भी दूष्भर होता जा रहा है इसलिए इस क्षेत्र में
महिलाओं एवं पुरूषों दोनों के अलग-अलग आय के संसाधनों का होना बहुत आवश्यक
है। क्योंकि परिवार की आय बहुत कम होने से उनकी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय है। यहां
पर महिलाओं में शासन की योजनाओं का प्रचार-प्रसार एवं जागरूकता की आवश्यकता है।
उसी के माध्यम से क्षेत्र का विकास हो सकता है। प्रस्तुत शोध में स्व-सहायता समूह
से अभिप्ररेणा स्त्रोत, आर्थिक विकास में परिर्वतन,रोजगार का सृजन, ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता,
जीवन स्तर में परिवर्तन आदि का
अध्ययन किया गया है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत शोध पेपर में अध्ययन क्षेत्र से समग्र के संग्रहण के आधार पर औसत, प्रतिशत एवं अनुपात के आधार पर सांख्यिकीय विधियों का उपयोग कर अभीष्ट परिणाम ज्ञात किए गए है।
प्रस्तुत शोध-पत्र आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में महिलाओं के आर्थिक विकास में स्व-सहायता समूह के योगदान का एक अध्ययन (महिला एवं बाल विकास विभाग, अलीराजपुर जिले के संद्रर्भ में) है। अध्ययन क्षेत्र में प्राथमिक समंकों का संग्रहण 50 स्व-सहायता समूह के सदस्यों से अनुसूची भरवाकर किए गए है। उत्तरदाताओं से जो तथ्य प्राप्त हुए, उन्हें प्रमुखता के आधार पर विश्लेषण किया गया है। द्वितीयक समंक का संग्रहण कार्यालय महिला एवं बाल विकास विभाग अलीराजपुर जिले से लिए गए है। |
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प्रयुक्त उपकरण | प्रस्तुत शोध पेपर में अध्ययन क्षेत्र से समग्र के संग्रहण के आधार पर औसत, प्रतिशत एवं अनुपात के आधार पर सांख्यिकीय विधियों का उपयोग कर अभीष्ट परिणाम ज्ञात किए गए है। | ||||||
विश्लेषण | पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिला अलिराजपुर अतियंत पिछड़ा हुआ है, जिसकी साक्षरता दर 37.2 प्रतिशत है जिसमें स्व-सहायता समूह के माध्यम से निम्न प्रकार के हितग्राहियों को लाभ प्रदान किया जाता है- स्त्रोत: सर्वेक्षण के आधार पर आंकड़ों से निर्मित
तालिका। तालिका क्रमांक 1.4 ग्रामीण महिलाओं में जागरूकता की स्थिति
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निष्कर्ष |
पश्चिमी मध्यप्रदेश में अलिराजपुर जिला आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित है,जिसमें 88 प्रतिशत आदिवासी लोग ग्रामीण क्षेत्र मेें निवास करते है जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि एवं मजदूरी करना है,जिससे अपना जीवन यापन करते है। इस क्षेत्र में श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण काम के लिए व्यक्ति अन्य स्थानों पर जाता है। शासन की योजनाओं से स्थानीय स्तर पर काम मिलने पर व्यक्ति बाहर नहीं जाएगा। और मन लगाकर काम करेगा। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाऐं अपने स्वयं के खेत में काम करती है या फिर अन्य के यहां पर मजदूरी करती है। स्व-सहायता समूह के प्रायमरी एवं द्वितीयक समंकों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि स्व-सहायता समूह से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का आर्थिक विकास हुआ, रोजगार का भी सृजन हुआ है, उनके जीवन स्तर में बदलाव आया है और जागरूकता एवं मनोबल में भी वृद्वि हुई है और समूह को चलाने एवं समूह में काम करने से महिलाओं में काम के साथ-साथ प्रबंध करना, शासकीय प्रक्रियाओं की जानकारी, बनाने का अनुभव, बैंक लेनदेन की जानकारी, शासन की योजनाओं की जानकारी आदि से महिलाएं एक-दूसरे को देकर अभिप्रेरित होती है।और कुछ नया करने की सोचती है। जिससे उनके विकास के साथ में क्षेत्र का विकास सम्भव है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | 1. ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं स्व-सहायता समूह में काम करके प्रबंन्ध करना सीख लेती है, और आपस में प्रतियोगिता भी करती है। ऐसे समूह को होटल में मैनेजर का काम एवं व्यवस्थाओं के संबंध में सिखाया जा सकता है। जिससे उनका विकास हो सके। 2. ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं समूह में काम करते-करते कई पकवान बनाना सिख लेती है, जिसके बाद चाहे तो होटल या भोजनालयों या शादि, ब्याह में रसोई का काम देना चाहिए। 3. स्व-सहायता समूहों को छात्रावासों एवं अस्पतालों में भोजन एवं व्यवस्थाओं का काम देना चाहिए। 4. स्व-सहायता समूहों को उच्च गुणवत्तापूर्ण भोजन बनाने का प्रशिक्षण दे कर बावर्ची या सेफ बनाया जा सकता है। 5. स्व-सहायता समूहों को आश्रमों में एवं धर्मशालाओं में भोजन बनाने का काम देना चाहिए। 6. स्व-सहायता समूह में स्थानीय व गरीब महिलाओं एवं विधवाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। अन्य गांव एवं शहरी महिलाओं को नहीं रखना चाहिए। 7. स्व-सहायता समूह के सदस्यों को अभिप्ररेणा, स्वरोजगार, कुटीर उद्योग, कढाई, बुनाई, सिलाई, मेंहंदी, ब्यूटी पार्लर आदि का प्रशिक्षण देना चाहिए। 8. स्व-सहायता समूह के सदस्यों को बैंक में अल्प बचत, पोस्ट ऑफिस में अल्प बचत, महिला सशक्तिकरण एवं अन्य शासन की योजनाओं का प्रशिक्षण देना चाहिए। 9. ग्रामीण क्षेत्र में वित्त की सबसे बडी़ समस्याएं होने से समूह का बहुत अधिक विकास नहीं हो पाता है। ऐसी स्थिति में शासन द्वारा ऋण देकर स्व-सहायता समूह का विकास एवं विस्तार करने में योगदान देना चाहिए है। |
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12. कुरूक्षेत्र पत्रिका योजना |