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घरेलू उत्पीड़न से पीड़ित महिलाओं की सोचनीय दशा पर एक विशिष्ट चिन्तन | |||||||
A Special Reflection On The Deplorable Condition Of Women Suffering From Domestic Abuse | |||||||
Paper Id :
16745 Submission Date :
2022-11-05 Acceptance Date :
2022-11-17 Publication Date :
2022-11-25
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सारांश |
घरेलू हिंसा को साधारण भाषा में समझे तो घर में ही किया जाने वाला एक प्रकार का हिंसात्मक व्यवहार है। इसमें घर के कोई एक सदस्य को बाकी के सदस्यों द्वारा शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान किया जाता है। घरेलू हिंसा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को काबू में करना या अपनी इच्छाओं को पूरा करना होता है। क्योंकि अक्सर यह देखा गया है कि घरेलू हिंसा से पीड़ित व्यक्ति की सोच नकारात्यक हो जाती है। इसके साथ-साथ ऐसे लोगों के अन्दर आत्म सम्मान जैसे गुणों की कमी हो जाती है।
उनको घबराहट, चिंता और अकेलापन जैसी समस्याऐ उत्पन्न होती है। कई बार घरेलू हिंसा की वजह से व्यक्ति नशीले पदार्थो का आदि बनने लगता है। ऐसी स्थितियों में मनुष्य बहुत जल्द आत्महत्या जैसा रास्ता अपना लेता है। इसके अलावा जिस व्यक्ति के साथ घरेलू हिंसा हुई है, उन्हें मानसिक रूप से बाहर आ पाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि उसे लगता है कि जिस व्यक्ति पर उसने भरोसा किया आज वही उसे मार रहा है। हिंसा के वह पल हर समय उनको याद आते रहते है। कई जगहों पर घरेलू हिंसा से पीड़ित व्यक्ति को मानसिक आघात इतना खतरनाक होता है कि, वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है।
घरेलू हिंसा से ना सिर्फ पीड़ित व्यक्ति को चोट पहुँचती है, बल्कि उसका पूरा समाज और परिवार इससे प्रभावित होता है। हिंसा की शिकार हुई महिलाये सामाजिक जीवन की गतिविधियों में बहुत कम भाग लेती है। जब किसी परिवार में ऐसी हिंसा होती है, तब उस घर के बच्चे भी आक्रामक व्यवहार सीखते है। यही बच्चे बडे़ होकर घरेलू हिंसा को और बढ़ावा देते है। इन्हीं सब कारणों से घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाओं को देख भारत सरकार ने 2005 में ही घरेलू हिंसा अधिनियम कानून बनाया था। इसे 26 अक्टूबर 2006 को सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया था। इस अधिनियम को महिला एवं बाल विकास आयोग द्वारा संचालित किया जाता है। इस अधिनियम के तहत शहर में कुल आठ संरक्षण अधिकारी नियुक्त किये जाते है। इनका काम घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की शिकायत सुनकर जांच पड़ताल करना है। जांच पड़ताल करने के बाद ही पूरे मामले को न्यायालय में भेजा जाता है, लेकिन जब तक सरकार को सामान्य लोगों का सहयोग नही मिलेगा तब तक घरेलू हिंसा जैसी समस्यायें जड़ से खत्म नहीं होगी। इसके लिए हमें सबसे पहले दहेज प्रथा को समाज से बाहर निकालना होगा। क्योंकि महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा हिंसा दहेज के कारण होती है और अगर दहेज प्रथा को समाज से निकाला जाय तो बहुत हद तक हम घरेलू हिंसा को रोक सकते है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | If understood in simple language, domestic violence is a type of violent behavior done at home. In this, one member of the house is harassed physically and mentally by the rest of the members. The main purpose of domestic violence is to control the person or to fulfill their desires. Because it is often seen that the thinking of a person suffering from domestic violence becomes negative. Along with this, there is a lack of qualities like self-respect in such people. They face problems like nervousness, anxiety and loneliness. Many times, due to domestic violence, a person starts becoming addicted to drugs. In such situations, a person very soon adopts a path like suicide. Apart from this, the person with whom domestic violence has happened, it is very difficult for them to come out mentally. Because he feels that the person whom he trusted is killing him today. He remembers those moments of violence all the time. In many places, the mental trauma of a person suffering from domestic violence is so dangerous that he loses his mental balance. Domestic violence not only hurts the victim, but his entire society and family is affected by it. Women who are victims of violence participate very little in the activities of social life. When there is such violence in a family, then the children of that house also learn aggressive behavior. These children grow up to promote domestic violence. For all these reasons, seeing the increasing incidents of domestic violence, the Government of India enacted the Domestic Violence Act in 2005 itself. It was implemented on 26 October 2006 all over India. This act is administered by the Women and Child Development Commission. Under this act, a total of eight conservation officers are appointed in the city. Their job is to investigate the complaints of women suffering from domestic violence. The whole matter is sent to the court only after investigation, but until the government does not get the cooperation of the common people, the problems like domestic violence will not end from the root. For this we have to first remove the dowry system from the society. Because most of the violence against women is due to dowry and if the dowry system is removed from the society, we can stop domestic violence to a great extent |
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मुख्य शब्द | शोषण, समाज, कमजोर, अपराध, पीड़िता, संरक्षण, अधिनियम। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Exploitation, Society, Weak, Crime, Victimization, Protection, Act. | ||||||
प्रस्तावना |
दुनिया में अगर महिलाओं को सबसे ज्यादा कोई देश सम्मान देता है तो वह भारत है। क्योंकि हमारा भारत परम्पराओं और संस्कृतियों का देश है। हमारे यहां महिलाओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है। लेकिन फिर भी भारत में क्यों महिलाओं के खिलाफ अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे है। उनके साथ ना सिर्फ घर के बाहर बल्कि घर के अन्दर भी घरेलू हिंसा के अपराध हो रहे है। आये दिन हम दैनिक समाचार पत्र में पढ़ते रहते हैं।
अतः स्पष्ट है कि घरेलू हिंसा दुनिया के लगभग हर समाज में मौजूद है। इस शब्द को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। पति या पत्नी, बच्चों या बुजुर्गो के खिलाफ हिंसा कुछ सामान्य रूप से सामने आये मामलों में से कुछ है। पीड़ित के खिलाफ हमलावर द्वारा अपनाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की रणनीति है। शारीरिक शोषण, भावनात्मक शोषण, मनोवैज्ञानिक दुव्र्यवहार या वंचितता आर्थिक अभाव/शोषण आदि सबसे आम प्रकार की गालियां है जो पीड़ितों द्वारा सामना की जाती है घरेलू हिंसा न केवल विकासशील अपितु ये विकसित देशों की भी गम्भीर समस्या है। घरेलू हिंसा हमारे सभ्य समाज का खोखला प्रतिबिम्ब है। क्योंकि सभ्य दुनिया में हिंसा का कोई स्थान नही है। लेकिन हर साल जितने मामले सामने आते है, वे एक उच्च अलार्म को बढ़ाते है। और यह पूरी तस्वीर नहीं है, जैसा कि अधिकांश मामले रोजमर्रा की जिन्दगी में अपंजीकृत या किसी का ध्यान नहीं जाता है। लेकिन यह हमारे सभ्य सुसंस्कृत कहे जाने वाले समाज की बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है जिससे बहुत ही मजबूती से निपटने की अति आवश्यकता है।
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अध्ययन का उद्देश्य | महिलाओं से होने वाली हिंसा से निपटने का समग्र दृष्टिकोण अपराधियों के व्यवहार में बदलाव लाने के गम्भीर प्रयासों के बगैर कभी पूरा नही हो सकता। परन्तु भारत से इस बुराई को मिटाने के लिये महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को व्यापक सूचना शिक्षा संचार (आई.ई.सी.) के जरिये रोकने पर विचार किया जा सकता है। इस प्रकार के अभियान मौजूदा कानूनी प्रावधानों जैसे घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण प्रतिषेध और प्रतितोश) अधिनियम 2013 और भारतीय दण्ड संहिता की धारा-354ए,354बी, 354सी और 354डी का अनुपूरक हो सकते है और उन्हें पूर्णता प्रदान कर सकते है और इन सभी अधिनियमों से देश की महिलाओं को परिचित कराकर अर्थात जागरूकता बढ़ाकर महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक कर उन्हें घरेलू हिंसा से मुक्त किया जा सकता है। |
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साहित्यावलोकन | (क) मान चन्द खंडेला ने अपनी पुस्तक ‘आधुनिकता और महिला उत्पीड़न’ ने अपनी पुस्तक में
बताया कि महिलाओं के उत्पीड़न का एक कारण संचार माध्यम भी है। जिनके द्वारा फिल्मों
तथा विदेशी चैनलों के माध्यम से महिलाओं की बुरी छवि को प्रदर्शित किया जाता है।
जिससे समाज के सभी लोगों में इसका कुप्रभाव पड़ता है और महिलाओं की बुरी छवि
उत्पन्न होने पर उनका उत्पीड़न होना आरम्भ हो जाता है। (ख) ममता मेहरोत्रा ने अपनी पुस्तक ‘महिला अधिकार’ में व्याख्यापित करते हुए कहा है कि
पुस्तक में महिलाओं के वैधानिक संरक्षण के अन्तर्गत भारतीय महिलाओं की विकट समस्या, शोषण एवं उत्पीड़न के विभिन्न पहलुओं का समेकित अध्ययन किया गया है,
साथ ही महिलाओं की पारिवारिक कानूनी, वैवाहिक
एवं तत् सम्बन्धी उनकी समस्याओ का विश्लेषण किया गया है। महिलाओं का उत्पीड़न न हो
इस हेतु सामाजिक परिवेश एवं संविधान में आवश्यक संशोधन पर विचार व्यक्त किया गया
है। महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने वाली सामाजिक एवं आर्थिक विकास की नीतियां
और कार्यक्रम जैसे-शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सेवाएं परिवार नियोजन, कल्याण और विकास
कार्यक्रम, कार्यकारी महिलाओं के दैहिक एवं मानसिक शोषण आदि
में सुधार के प्रयास की समीक्षा किया गया है। (ग) भारत में घरेलू हिंसा नामक अपनी
पुस्तक में रिंकी भट्टाचार्य ने व्यक्त किया कि वर्तमान समय में दहेज घरेलू हिंसा
का मुख्य कारण है। जब एक महिला से मांगी हुई चीजें दहेज में नही मिलती तो पुरूष और
उसका परिवार महिला के साथ मारपीट करता है। उसको कई तरह से नुकसान पहुँचाने की
कोशिश करता है। कई जगहों पर तो दहेज के लिये महिलाओं को जिन्दा जलाये जाने की खबरे
भी समाचार पत्र में आये दिन देखने को मिलती है। कई बार पति की मृत्यु के बाद
परिवार द्वारा उचित भोजन, कपड़े और अन्य चीजों से वंचित करके
महिलाओं को परेशान किया जाता है। आज के समय में विधवाओं के खिलाफ इस तरह की घरेलू
हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है। (घ) ‘महिला
उत्पीड़न और नारी उत्थान’ नामक पुस्तक में डॉ. अर्चना चन्देल
ने अपनी लेखनी के माध्यम से बताया कि केन्द्र सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा से
सम्बन्धित परियोजनाओं के लिये अपने स्तर पर वर्ष 2013 में
निर्भया कोश की स्थापना की थी। वर्ष 2013 से 2017 के दौरान इस कोश की धनराशि बढ़कर 31 करोड़ रूपये हो
चुकी है। अधिकतर प्राप्त समिति द्वारा केन्द्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों की
ओर से इस कोश के अन्तर्गत महिलाओं की सुरक्षा और संस्था से सम्बन्धित 2209.19
करोड़ रूपये की राशि के 22 प्रस्तावों में ‘वन स्टॉप सेंटर’ जैसी योजनाये शामिल हैं, जिनकी स्थापना हिंसा की शिकार महिलाओं की सहायता के लिये चिकित्सकीय,
कानूनी और मनोवैज्ञानिक सेवाओं की एकीकृत रेंज तक उनकी पहुंच सुगम
बनाने के लिये की गयी है। (ड) डॉ. प्रवीण शुक्ला जी ने अपनी
बहुप्रतिष्ठित पुस्तक महिला सशक्तिकरण बाधाये एवं संकल्प में बताने का प्रयास किया
है कि हमारे समाज में महिलाओं को बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक पुरूषों की अपेक्षा
बहुत से अधिकारों से वंचित रखा जाता है। जिसमें एक अधिकार है शिक्षा महिलाओं को शिक्षा
से वंचित रखने के कारण वे स्वतंत्र नहीं हो पाती और उन्हें खुद के अधिकारों की
पूर्ण जानकारी न होने के कारण वे जीवन पर्यन्त पुरूष पर ही निर्भर रहती है।
जीवनपर्यन्त पुरूषों में निर्भर रहने की वजह से महिलाओं के जीवन में अनेक भय आशंकाये
और हादसों से भरा रहता है अर्थात पुरूषों में निर्भरता भी महिला के उत्पीड़न का
कारण है। (च) महिला सशक्तिकरण और भारत में राकेश
कुमार आर्य ने अपनी बात को समझाते हुए कहते है कि भारतीय समाज की सबसे बड़ी समस्या
है यहां प्रचलित विभिन्न कुप्रथाये/इन कुप्रथाओं में बाल विवाह, परदा प्रथा, सती प्रथा, विधवा
पुर्नविवाह का अभाव आदि प्रमुख है। जो महिला के उत्पीड़न का कारण है। समाज में
प्रचलित इन कुप्रथाओं का शिकार अधिकांशतः महिलाये हो होती है जो महिलाओं को आंतरिक
व बाह्य रूप से कमजोर बना देती है। हालांकि समय के साथ कई कुप्रथा कम होती जा रही
है और महिलाओं को उनके अधिकार मिल रहे है फिर भी समाज में अभी तक इन कुप्रथाओं के
प्रकोप से पूर्णतया मुक्त नही हो पाया है। |
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मुख्य पाठ |
अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व 'घरेलू हिंसा' एक विश्वव्यापी समस्या है और दुनिया भर की महिलाये किसी न किसी रूप से इसका
शिकार है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोश की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 15 से
49 वर्ष की 70 फीसदी महिला किसी न किसी रूप से कभी न कभी घरेलू हिंसा की शिकार
होती है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते है कि भारत में घरेलू
हिंसा के मामले में 53 प्रतिशत की दर बढ़ रहे है। साथ ही साथ घरेलू हिंसा के
मामलों में महिलाओं के बाद दूसरा स्थान बच्चों का है। जिसमें माता- पिता, शिक्षक और पड़ोसी लोगों
द्वारा बच्चों पर मानसिक और शारीरिक हिंसा होती है। इस तरह मनुष्य का हर वर्ग
घरेलू हिंसा से परेशान है परन्तु घरेलू हिंसा से सबसे अधिक महिलाओं को सताया जाता
है, इसे कोई नकार
नहीं सकता। इन भीषण भयावह परिस्थितियों में समाज में सुधार लाने के
लिये महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये हमें एक राष्ट्र के रूप में सामूहिक तौर पर इस
विषय पर निसंकोच चर्चा व संवाद करना चाहिए और जन-जन को जागरूक करने हेतु हमें
राष्ट्रव्यापी अनवरत तथा समृद्ध सामाजिक अभियान की शुरूआत कर देश के प्रत्येक
नागरिक के मन-मस्तिष्क में महिलाओं के प्रति आदरपूर्ण गौरव पूर्ण व सम्मान जनक
दृष्टिकोण विकसित कर कुछ हद तक घरेलू तौर पर महिलाओं का उत्पीड़न व शोषण कम किया
जा सकता है। जिससे उन्हें भी एक सम्मानित नागरिक की तरह जीवनयापन करने का अवसर मिल
सकें और वो भी अपने अधिकारों का प्रयोग कर अपने स्वाभिमान व सम्मान की रक्षा कर
सकें। |
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परिकल्पना | 1- अशिक्षित समाज की संकीर्ण विचारधारा भी घरेलू हिंसा को प्रोत्साहित करती है तथा महिला शिक्षा को बढ़ावा देना का प्रयास करना । 2- ऐसी परम्परागत रीति रिवाज / कुप्रथाये जिनका महिलाओं पर सामाजिक प्रभाव पड़ता है, उनके स्तर में सुधार कर सामाजिक जागरूकता उत्पन्न करना । 3- घरेलू महिलाओं को सम्पूर्ण स्वावलम्बी व आत्मनिर्भर बनाने के लिये सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं को संचाहित करके उनका सहयोग करना । 4- पुरुषों की अहंकारपूर्ण (श्रेष्ठता की भावना) में परिवर्तन लाके महिलाओं को पुरूषों के समकक्ष स्थिति में लाना । 5- घरेलू हिंसा का मुख्य कारण दहेज प्रथा को समाप्त कर दहेज लेने व देने पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाना 6- घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 से देश की प्रत्येक महिला को परिचित कराना। |
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विश्लेषण | घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत सबसे अधिक मामले उत्तर
प्रदेश में लम्बित है, महाराष्ट्र दूसरे नम्बर पर है। इस बात की जानकारी लीगल सर्विस
अथारिटी ( नालसा) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गयी ताजा रिपोर्ट से होता है।
रिपोर्ट से पता चलता है कि कानून लागू होने से लेकर एक जुलाई 2022 तक उत्तर प्रदेश
में 2,02,880 मामले दर्ज हुए है जिनमें 83, 196 मामले 30 जून
2022 तक निपटाये गये है और 1,19,684 मामले अभी लम्बित थे। महाराष्ट्र में मामलों
के निस्तारण की गति तेज है। साथ ही अन्य कुछ राज्यों पर निगाह डालें तो दिल्ली में
27043 राजस्थान में 27212 मुख्य प्रदेश में 26344, पश्चिम
बंगाल में 2303, हरियाणा में 19911, पंजाब
में 15286 मामले लम्बित है। बिहार और झारखण्ड में कानून लागू होने के बाद में अभी तक
दर्ज मुकदमों की संख्या अन्य बड़े राज्यों की तुलना में काफी कम है। बिहार में
कानून लागू होने से अभी तक कुल 5377 मामले घरेलू हिंसा के है जिसमें से सिर्फ 1446
ही निपटे है अभी भी 3931 लम्बित है। झारखण्ड में कुल 1302 मामले दर्ज हुए जिसमें
से 680 निस्तारित हो चुके है और 623 लम्बित है। 20 जिलों में सरकारी आश्रयगृह
प्रोटेक्शन अधिकारी और जिलेवार उपलब्धता और आश्रय गृहों की स्थिति बताने वाली नालसा
की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले है जिसमें से सिर्फ 65
जिलों में प्रोटेक्शन अधिकारी नियुक्त है। इसमें भी 60 जिलों में घरेलू हिंसा के
मामलों को देखने के लिये पूर्ण कालिक अधिकारी है। 20 जिलों में सरकारी आश्रय गृह
है जबकि आठ जिलों में गैर सरकारी संगठन के आश्रय गृह है। |
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परिणाम |
2015 में एनसीआरबी द्वारा “पति और रिश्तेदारों द्वारा कूरता" नामक धारा के तहत 1,13,000 से अधिक मामले दर्ज किये गये थे। 2006 से 80 प्रतिशत ऊपर जब लगभग 63,000 मामले दर्ज किये गये थे, जैसा कि आंकड़े बताते है। अलग-अलग राज्यों में रूझान अलग अलग होते है। उदाहरण के लिये आन्ध्र प्रदेश में पति और रिश्तेदारों द्वारा कूरता के मामले 9,164 से घटकर6,121 हो गये 2006 और 2015 के बीच 33 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि दहेज मृत्यु 2006 में 519 से 66 प्रतिशत 2015 में 174 हो गयी पश्चिम बंगाल में 2006 में 7414 से बढ़कर 2015 में 20,163 हो गयी। बिहार मं दहेज से होने वाली मौतों की सं02006 में 1,188 से बढ़कर 2015 में 1154 हो गयी। लेकिन यह स्पष्ट नही है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े घरेलू हिंसा में वास्तविक रूझान दिखाते हैं या नही क्योंकि बहुत से मामले तो बिना दर्ज हुए घर से ही दफन हो जाते है और विशेष बात यह है कि एक मामला दर्ज होने के बाद कई अलग-अलग प्रकार के संगठन पीड़ित को न्याय और पुनर्वास सुनिश्चित करने में भूमिका निभाते हैं जिसमें सुरक्षा अधिकारियों से लेकर गैर-सरकारी महिला अधिकार संगठन आदि सभी शामिल हैं और इनके कार्यान्वयन के प्रत्येक स्तर सरकारी निर्देशों के पर अनुपालन में प्रत्येक स्तर पर समस्याएं है इसीलिए पुलिस अधिकारियों द्वारा तत्काल मामला दर्ज करने के बजाय पारिवारिक मामला बता कर समझौता कराने का प्रयास किया जाता है फलतः पूरा आपराधिक आकड़ा देश के सामने नहीं आता है। परिणाम की विवेचना
दरअसल मानव अधिकारों पर आधारित संविधान के होते हुए भी
महिलाओं के विरुद्ध समाज का दृष्टिकोण आज भी नही बदला है। घर की चार दीवारी के
अन्दर होने वाली हिंसा को न केवल पारिवारिक मामला कहकर दबा दिया जाता है बल्कि
पीड़ित महिला को भी इसकी शिकायत करने से रोका जाता है जो किसी भी सभ्य समाज के लिये उचित नही है। पति द्वारा किये जाने वाली हिंसा
के लिए पत्नी को ही जिम्मेदार ठहराने वाली मानसिकता को बदलने की जरूरत है इस
सामाजिक समस्या के निदान के लिये स्वयं समाज को आगे आने की जरूरत है। जिससे
विवाहित महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों में कमी लाकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण
किया जा सकें। |
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निष्कर्ष |
उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि किसी भी प्रकार की हिंसा सही नही होती और हद तो तब हो जाती है जब घर में ही रहने वाले सगे-सम्बन्धियों द्वारा हिंसा की जाती है। क्योंकि दुनिया का हर व्यक्ति सुकून वाली जिन्दगी जीना चाहता है। लेकिन कुछ लालची और अहंकारी लोग अपने से कमजोर लोगों पर हिंसा करते है। इसमें भी खास कर महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा आज हमारे लिये चिन्ता का विषय बन गयी है। और जब तक हम सभी भारतीय एक नही होगें तब तक इसका कोई समाधान नही होगा। इसीलिए आज से ही जन-जन को जागरूक करके सरकार और कानून का साथ देकर घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाये। क्योकि तभी हम घरेलू हिंसा को जड़ से खत्म कर पायेगें। और साथ ही देश की महिलाऐ अपने स्वाभिमान और सम्मान को बरकरार रखते हुए समाज में एक प्रतिष्ठित व सम्मानित जिन्दगी जीने की हकदार हो सकेंगी। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. खंडेला मानचन्द (2017) आधुनिकता और महिला उत्पीड़न, आई.बी.पी. प्रकाशन
2. मेहरोत्रा ममता (2014) महिला अधिकार, राधाकृष्णन प्रकाशन
3. भट्टाचार्य रिंकी (2017) भारत में घरेलू हिंसा, सागर पब्लिकेशन
4. चन्देल डॉ. अर्जना (2018) महिला उत्पीड़न और नारी उत्थान, नेहा पब्लिकेशन
5. शुक्ला डॉ. प्रवीण (2019) महिला सशक्तीकरण बाधाये एवं संकल्प, आर0के0पब्लिकेशन
6. आर्य राकेश कुमार (2017) महिला सशक्तीकरण और भारत, राज पब्लिकेशन
7. महावर सुनील (2012) भारत में महिला सशक्तीकरण विविध आयाम और चुनौतियां, राज पब्लिकेशन
8. सिंह इन्दराज (2020) महिला सशक्तीकरण, डायमण्ड प्रकाशन |