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महिलाओं के मानवाधिकार एवं एच आई वी / एड्स | |||||||
Womens Human Rights and HIV/AIDS | |||||||
Paper Id :
16775 Submission Date :
2022-11-05 Acceptance Date :
2022-11-23 Publication Date :
2022-11-25
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सारांश |
21वीं सदी में मानव जाति ने अपनी उपलब्धियों के साथ-साथ जिन समस्याओं के साथ प्रवेश किया है उनमें भयंकरतम है, एच आई वी संक्रमण व एड्स। एच आई वी/एड्स एक वास्तविक और विश्वस्तरीय समस्या है, कोई भी महाद्वीप, राष्ट्र एवं जाति इसके प्रभाव से अछूता नहीं है। यह सम्पूर्ण चिकित्साजगत, विज्ञान, समस्त राष्ट्रों, समाज, जनता एवं जनप्रतिनिधियों के लिए चुनौती बनकर उपस्थित है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Humankind has entered the 21st century with its achievements as well as the problems with which the worst are HIV infection and AIDS. HIV/AIDS is a real and global problem, no continent, nation and race is untouched by its effects. This is present as a challenge for the entire medical world, science, all nations, society, public and people's representatives. | ||||||
मुख्य शब्द | एच आई वी/एड्स, महामारी, जूनोटिक, एपिडेमिक, महिलाकरण, वैश्वीकरण, सेरोपोजिटिव, सेक्चुअली ट्रासमीटिड इंफेक्शन/एस टी आई। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | HIV/AIDS, Epidemic, Zoonotic, Epidemic, Feminization, Globalization, Seropositive, Sexually Transmitted Infection/STI. | ||||||
प्रस्तावना |
एच आई वी पर कोविड महामारी के दीर्घकालिक प्रभाव के आंकलन से पता चलता है कि 2020 से 2022 के बीच 1.23 लाख से 2.93 लाख अतिरिक्त नए एच आई वी संक्रमण के मामलों के साथ एड्स से संबंधित अतिरिक्त मौतों का आंकडा 69 हजार से 1.48 लाख हो सकता है। कोविड -19 महामारी की चपेट में आने से पहले ही वैश्विक एड्स की स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन कोरोना वायरस के तीव्र संक्रमण ने इसके सामने और कठिनाईयां उत्पन्न कर दी हैं। भारत में सर्वोच्च न्यायालय व इंग्लैंड की लार्ड सभा द्वारा महत्वपूर्ण वादों में दिये गये निर्णय मानवाधिकारों की रक्षा के लिये मील का पत्थर हैं व अनुकरणीय हैं।
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अध्ययन का उद्देश्य | वर्तमान अध्ययन का उद्देश्य है किस प्रकार विश्व की भयंकरतम महामारी एच आई वी संक्रमण व एड्सं देशों के सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक ताने बाने को ध्वस्त कर रही है। एड्स ग्रस्त महिलाएं व लड़कियां किस प्रकार सामाजिक असमानता, हिंसा और मानवाधिकारों का उल्लंघन झेल रही हैं। सरकार व समाज को उनके अधिकारों को संरक्षण प्रदान करने में किस प्रकार भूमिका निभानी चाहिए। |
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साहित्यावलोकन | अध्ययन में यू. एन.
एड्स, यूनिफेम, नाको की रिर्पोट्स का निरीक्षण किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय के
महत्वपूर्ण निर्णयों का अवलोकन व राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के मानव अधिकार,
अंतर्राष्ट्रीय प्रपत्रों का संकलन व ह्यूमैन राइट्स न्यूज लैटर
का अध्ययन भी किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
1.एच आई वी/एड्स एक वैश्विक महामारी एच आई वी/एड्स इतिहास की अब तक की सबसे विनाशकारी स्वास्थ्यसंबन्धी विभीषिका है जिसके साथ आर्थिक, सांस्कृतिक, व सामाजिक मुद्दे भी जुड़े हैं। विश्व को इस रोग की पहली चेतावनी वर्ष 1981 में मिली और तब से आज तक लाखों व्यक्ति इस रोग से काल कवलित हो चुके हैं। महान दार्शनिक बर्टेंण्ड रसेल ने युद्धों की विभीषिका से आहत मानव को चेतावनी देते हुए कहा था- उस बिंदु पर पहुंच गये हैं, जहां हमारा ध्वंस निश्चित है। एड्स के संदर्भ में महान विचारक की यह चेतावनी और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। 2. एड्स का महिलाकरण इस महामारी के प्रारम्भ होने से 2021 तक 84 मिलियन व्यक्ति एच आई वी/एड्स से संक्रमित थे जिनमें से 54% महिलाए थीं (यू. एन एड्सः2022)। 1980 के दशक में एड्स प्रारम्भ में मुख्य रूप से पुरूषों की बीमारी मानी गयी लेकिन 1982 में एड्स से संक्रमित प्रथम महिला रोगी का पता चला। तब से एड्स ग्रस्त महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। वर्तमान में विश्व में एच आई वी/एड्स से पीड़ित व्यस्कों में लगभग आधी महिलाएं हैं। विश्व के प्रमुख भागों में एच आई वी/एड्स ग्रस्त व्यस्क महिलाओं का
प्रतिशत इस प्रकार है- (यू. एन एड्सः 2021) विश्व में युवा महिलाएं एच आई वी से सबसे अधिक प्रभावित हैं। विकासशील
देशों में 15-24 के आयु समूह में नये एच आई वी मामलों में उनका
अनुपात 67% है। सब-सहारन अफ्रीका में एच आई वी संक्रमित
युवाओं में 80% युवा महिलाएं हैं। एच आई वी, महिलाओं में
अधिकांश विवाहित हैं और उनके केवल एक यौन संगी है- उनके पति। एड्स का महिलाकरण
क्यों- महिलाएं व
लड़कियां एच आई वी/एड्स के प्रति ज्यादा असुरक्षित हैं। शारीरिक रूप से उनके लिए
संक्रमित होने का खतरा पुरूषों से दो से चार गुना अधिक रहता है। सामाजिक, आर्थिक व कानूनी भेदभाव तथा सांस्कृतिक परम्पराएं भी उन्हें एच आई वी/एड्स
से संक्रमित करने के लिए जिम्मेदार हैं। महिलाएं 3 डी
डिस्क्रिमिनेशन, डिनायल और डिप्राइवेशन (भेदभाव, अस्वीकृति, व अभाव) के कारण एच आई वी/एड्स से न केवल
जल्दी संक्रमित हो जाती हैं वरन् उन्हें एड्स के परिणाम भी अधिक भयंकर रूप से
झेलने पड़ते हैं। यूनिफेम की रिर्पोर्ट एच आई वी/एड्स और महिलाओं के अनुसार यह सिद्ध
हो चुका है कि इस रोग की जीवन धारा सामाजिक असमानता, लिंग
भेद और मानवाधिकारों के प्रति असम्मान और उनका उल्लंघन है। सर्वविदित है कि
महिलाएं सामाजिक असमानता, हिंसा और मानवाधिकारों का उल्लंघन
झेल रही हैं। उनका समाज में निम्न स्थान है, वे असुरक्षित व
अशक्त हैं (यूनिफेम, 2005)। जैंडर समानता व
महिला सशक्तिकरण के द्वारा महिलाओं और लड़कियों में एच आई वी/एड्स के प्रसार को कम
किया जा सकता है। दक्षिणी अफ्रीका की प्रथम एच आई वी संक्रमित महिला मिस खेनसानी
मवासी, ने जून 2006 में यू एन जनरल
असेम्बली के सत्र को एड्स के विरूद्ध सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि विश्व के 40
मिलियन एच आई वी से ग्रस्त लोगों में से लगभग 60% महिलाएं हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि महिलाओं के विरूद्ध भेदभाव करते
हुए उनका कितना उत्पीड़न किया जाता है। वह स्वयं भी यौन हिंसा के कारण इस महामारी
की शिकार हुईं। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि
महिलाएं विशेष तौर पर यौन हिंसा के कारण ही इस महामारी से संक्रमित हो जाती हैं।
उनके द्वारा नेताओं का आह्वान किया गया कि समाज के कमजोर वर्ग, विशेष तौर पर महिलाओं और बच्चियों के अधिकारों की रक्षा करके ही इस महामारी
के विरूद्ध लड़ाई को जीता जा सकता है (मवासी, 2006)। 3. भारत में एच आई
वी/एड्स भारत में
सर्वप्रथम 1986 में चेन्नई में और इसके पश्चात् मुम्बई और मणिपुर
के यौनकर्मियो में एच आई वी वायरस पाया गया। उन्हीं दिनो गोवा में दो युवक एच.आई.वी. संक्रमित पाये गये। जिन्हें जन स्वास्थ्य कानून के अंतर्गत
गिरफ्तार कर लिया गया। प्रारम्भ में यह बीमारी सिर्फ यौन कर्मियों से जोड़ी गयी
लेकिन बाद में धीरे-धीरे यौन कर्मी और इंजेक्शन द्वारा नशा लेने वालों के अलावा यह
बीमारी ट्रक ड्राइवरोें, समलैंगिक सम्बन्ध रखने वालों में
पायी गयी। अब तो यह वायरस सभी सीमाएं तोड़कर बहुत तेजी से फैल रहा है। ग्लोबल फंड
टू एड्स, ट्यूबरकुलोसिस और मलेरिया के एक्जिक्यूटिव
डायरेक्टर रिचार्ड फेचम के अनुसार भारत एड्स के कारण विनाश के कगार पर खड़ा है।
सबसे अधिक चिंता का विषय यह है कि 80% से अधिक लोगों में
एड्स का कारण विषमलिंगियों में असुरक्षित यौन संबंध है व 90%
रोगग्रस्त लोग अपनी एच आई वी स्टेटस से अनभिज्ञ हैं। इस संक्रमण ने परिवार के,
समाज के स्वस्थ ताने बाने को नष्ट करना प्रारम्भ कर दिया है और इसका
सबसे बुरा प्रभाव परिवार में महिलाओं और बच्चों पर पड़ रहा है।
भारत में एच आई वी/एड्स से संक्रमित महिलाएं 2017
में भारत में 21.40 लाख (15.90 लाख - 28.39 लाख) व्यक्ति एच आई वी से संक्रमित हैं।
15 वर्ष की 8.79 लाख (6.61-11.62) महिलाएं एच आई वी से संक्रमित हैं (नाको 2018- 2019)। 4. एच आई वी/एड्स एक
कम्युनिकेबल वायरसजन्य जूनोटिक एपिडेमिक एच आई वी/एड्स एक कम्युनिकेबल वायरसजन्य जूनोटिक एपिडेमिक है। यह एक पेंडेमिक भी है, जो एक देश की सीमाएं तोड़कर सभी देशो में तेजी से फैल रहा है। इस वायरस की युक्ति है इसका चुपके से आगमन। 1981 में एच.आई.वी. विषाणु का पता लगने के बाद अब तक 84 मिलियन व्यक्ति इससे संक्रमित हो चुके हैं तथा इस बीमारी का मुख्य शिकार उच्च जोखिम वाले लोग, युवा, महिलाएं और बच्चे हैं। यू.एन. एड्स की रिपोर्ट ऑन दि ग्लोबल एड्स एपिडेमिक 2006 के अनुसार प्रतिदिन ग्यारह हजार नये व्यक्ति एड्स से संक्रमित हो जाते
हैं और आठ हजार एड्स से ग्रस्त रोगियों की प्रतिदिन मृत्यु हो जाती है, फिर भी कई प्रकार से यह महामारी छिपी रह जाती है (यू.एन. एड्सः 2006)। यू.एन. एड्स की रिपोर्ट ग्लोबल अपडेट 2022 के
अनुसार वर्ष 2021 में एड्स पेंडेमिक के कारण 1 मि. में 1 व्यक्ति
एड्स से संक्रमित हुआ और 6,50,000 की मृत्यु हुई (यू. एन
एड्सः 2022) एच आई वी एक बहुत ही सूक्ष्म विषाणु है जो केवल मनुष्यों को संक्रमित
करता है। यह रोगों से लड़ने की उनकी प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है। समय के
साथ-साथ मनुष्य की बीमारियों से लड़ने की ताकत बिल्कुल कम या खत्म हो जाती है और मनुष्य
को कई प्रकार की बीमारियां घेर लेती है और जानलेवा बन जाती है। जिस व्यक्त्ति के
रक्त में एच.आई.वी. वायरस उपस्थित होता है उसे एच.आई.वी. कहते है। मनुष्यों में फैलने वाले वायरस में यह सबसे ज्यादा जेनेटिकली
परिवर्तनशील है। इतिहास में अब तक महामारियों से जितनी मृत्यु हुई हैं, उनमें सबसे अधिक एड्स से हुई हैं। 5. एच आई वी/एड्स के
प्रसार के कारण महिलाओं में
अपनी शारिरिक संरचना, गरीबी, अशिक्षा, लिंग असमानता, हिंसा, कुपोषण
और जानकारी व उचित स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के कारण एच आई वी/एड्स से संक्रमित
होने का खतरा ज्यादा होता है। गरीबी का
महिलाकरण व एड्स गरीबी, असमानता और एच आई वी/एड्स मिलकर पुरूषों की तुलना में महिलाओं को अधिक
नुकसान पहुंचाते हैं। अनेक समाजों में, महिलाएं आर्थिक व
वित्तीय रूप से अपने पुरूष पार्टनर या परिवार के सदस्यों पर निर्भर होती हैं। उनकी
यह निर्भरता उनके एच आई वी से संक्रमित होने की सम्भावना को बढ़ा देती है। आर्थिक
निर्भरता के कारण अधिकांश महिलाओं को अपने सम्बन्धों में यौन मामलों पर नियन्त्रण
नहीं होता, उन्हें यह भय होता है कि यौन मामलों पर बातचीत से
उनके सम्बन्ध खतरे में पड़ जायेंगे। इंडिया, इण्डोनेशिया,
फिलिपाइंस तथा थाइलैंड में अध्ययन से यह विदित हुआ कि एच आई वी
संक्रमित महिलाओं को पुरूषों की तुलना में अधिक भेदभाव, उत्पीड़न,
शोषण व शारिरिक अपमान का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि उन्हें
रहने का स्थान भी बदलना पड़ता है (यूएन एड्सः 2006 कीपिंग दि
प्रोमिस/15)। पुरूष प्रधान समाज हमारा समाज
पुरूष प्रधान समाज है जिसके कारण सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व भावनात्मक स्तर पर महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है।
आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने के कारण उन्हें जबर्दस्ती विवाह, बाल विवाह, तलाक पाने में कानूनी बाधाएं, परिवार की सम्पत्ति/संसाधनों पर पुरूषों का नियन्त्रण एवं अन्य व्यक्तिगत
मामलों में पुरूषों के द्वारा निर्णय लेने का अधिकार जैसी समस्याओं का सामना करना
पड़ता है। फेमिनिस्ट कैरोल जे शेफील्ड के अनुसार महिलाओं के शरीर पर पुरूषों का
नियंत्रण पितृसत्तात्मक समाज का आधार है (शेफील्डः1995)। ऐसी महिलाएं जिनके पति एच आई वी से ग्रस्त होते हैं उन्हें परिवार में
भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। यदि वे स्वयं एच आई वी से संक्रमित हो
जाती हैं तो उन्हें घर से निकाल दिया जाता है, उत्तराधिकार के
अधिकार से और यहां तक कि बच्चों के संरक्षण से भी वंचित कर दिया जाता है। इस
प्रकार की असुरक्षा के कारण महिलाएं जीवन यापन के लिए ऐसे तरीके अपनाने के लिए
बाध्य हो जाती हैं कि उनका एच आई वी संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है। पति की
मृत्यु के बाद विधवा महिला की कठिनाईयां बढ़ जाती हैं। एक ओर उसे समाज से मिल रही
घृणा का दंश झेलना पड़ता है तो दूसरी ओर बच्चों की परवरिश का भार वहन करना पड़ता है। 6. मानवाधिकार व एच आई
वी/एड्स मनुष्य को इस अतिसूक्ष्म वायरस या विषाणु ने अपना निशाना बनाकर असहाय कर दिया है। यह विषाणु संक्रमित व्यक्तियों को तो अपने विष से विषाक्त कर ही रहा है, स्वस्थ लोगों के मन में भी उनके प्रति विष घोल रहा है। एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों को समाज में, परिवार में, विद्यालय, कार्यस्थल और अस्पताल में उपेक्षा, तिरस्कार, अवमानना का दंश झेलना पड़ रहा है। समाज से बहिष्कृत इन लोगों के लिए मानवाधिकार अर्थहीन हैं। कहीं स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को एच आई वी संक्रमित होने के कारण स्कूल से निकाला जा रहा है, मरीजों का इलाज करने के लिए चिकित्सकों द्वारा इंकार करना, चिकित्सकीय सेवाओं का अभाव, कार्यस्थल पर अकारण नौकरी से निकाल देना, उनके साथ मारपीट, और यहाँ तक कि जान से मार डालने की घटनायें भी प्रकाश में आयी हैं। संवेदनहीनता की परकाष्ठा यह है कि ऐसी घटनायें भी घटित हुई हैं जिनमें
एड्स ग्रस्त व्यक्ति के अंतिम संस्कार में महिलाओं को ही सारा दायित्व स्वयं अकेले
ही निभाना पड़ा, जबकि गांव के लोगों ने भ्रांति एवं डर के कारण साथ
देने से इंकार कर दिया। एच आई वी संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए प्रमुख मानव
अधिकारों की सुनिश्चितता आवश्यक हैं, जो अनेक अंतर्राष्ट्रीय घोषणापत्रों तथा अभिसमयों में निहित हैं- 1. मानवीय
अधिकारों का सार्वभौमिक घोषणापत्र, 1948 2. नागरिक व
राजनीतिक अधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय अमिसमय, 1968 3. आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 1966 4. सभी प्रकार
के जातीय भेदभाव को दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभिसयम, 1965 5. महिलाओं के
प्रति सभी प्रकार के भेदभाव दूर करने के लिए अभिसमय, 1979 6. यातना और
अन्य क्रूरता, अमानवीय अथवा अपमानजनक व्यवहार अथवा दण्ड के विरूद्ध
अभिसमय, 1984 7. बच्चों के अधिकारों पर अभिसमय, 1989 (राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, 2006) राज्यों का यह
दायित्व है कि प्रत्येक व्यक्ति को समानता का अधिकार, बिना किसी भेदभाव के स्वास्थ्य के अधिकार, निजता (Privacy) का अधिकार, आश्रय लेने, रोजगार प्राप्त करने के अधिकार को सुनिश्चित कराये। कानून के समक्ष
समानता का अधिकार एच. आई. वी. पीड़ित व्यक्त्तियों के साथ परिवार या समाज भेदभावपूर्ण व्यवहार करता है। बीमारी के साथ-2 संक्रमित व्यक्त्तियों को सब जगह दुर्व्यवहार व तिरस्कार सहना पड़ता है । एच. आई. वी. व्यक्त्तियों के साथ यह भेदभाव तब और भी बढ जाता है जब एच आई वी संक्रमित व्यक्त्ति एक महिला है। कन्वेंशन ऑन दि एलिमिनेशन ऑफ डिस्क्रिमिनेशन एगेंस्ट वीमैन, 1979 (CEDAW) का भारत भी सदस्य राज्य है। यह अभिसमय महिलाओं के विरूद्ध सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध है स्वास्थ्य का
अधिकार राज्य का यह
दायित्व है कि प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध
करायें। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्राण
एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है जो सभी अधिकारों में श्रेष्ठ है। इस
अधिकार के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने स्वास्थ्य के अधिकार, निजता (Privacy) के अधिकार, आश्रय
लेने, रोजगार प्राप्त करने के अधिकार की व्याख्या की है। सर्वोच्च न्यायालय ने परमानन्द कटारा अ भारत सरकार, 1989, पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति अ पश्चिमी बंगाल, 1996 के
ऐतिहासिक निर्णयों में अनुच्छेद 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य के
अधिकार को मौलिक अधिकार के रुप में मान्यता प्रदान की है। सभी सरकारी व प्राइवेट
अस्पतालों में कार्यरत चिकित्सकों का यह कर्त्तव्य है कि वे प्रत्येक व्यक्ति को शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सा सहायता प्रदान करें। मानव जीवन की रक्षा करना प्रत्येक
चिकित्सक का संवैधानिक कर्तव्य है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को निर्देश दिया
कि सरकारी अस्पतालों में समुचित वित्तीय सहायता प्रदान करे जिससे प्रत्येक मरीज को
आपातकालीन चिकित्सा उपलब्ध हो सके। जरूरत मंद व्यक्त्तियों को समय से चिकित्सा
सहायता उपलब्ध न होने से अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त ‘‘प्राण ’’ के मूल अधिकार का हनन होता है। इंग्लैण्ड में लार्ड सभा का ऐतिहासिक निर्णय एन अण्
सेेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर दि होम डिपार्टमेंट (2005) केस में एन
उगांडा की नेशनल थी। युनाइटेड किंगडम (UK) पहुंचने पर वह एच आई वी +ve पायी गयी। अपने यू के प्रवास के दौरान एड्स के कारण वह अत्यधिक बीमार
हो गयी। एण्टीरिट्रोवायरल इलाज मिल जाने के कारण उनकी स्थिती में सुधार हुआ एवं
उनकी उम्र की सम्भावना 2 से 10 वर्ष तक
बढ़ गयी। परंतु शर्त यह थी कि वह यू के में रहते हुए अपना इलाज जारी रखें। उगांडा
वापिस लौटने की स्थिती में स्वास्थ्य सुधार प्रभावहीन हो जाता। इमीग्रेशन
अधिकारियों ने यह कहते हुए उन्हें वापिस जाने का आदेश दिया कि योग्यताओं के अभाव
में उसका रोका जाना सम्भव नही था। एन के द्वारा इस आदेश को यूरोपीयन कन्वेंशन ऑन
ह्यूमैन राइट्स (ई सी एच आर) के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत
चुनौती दी गयी और यह कहा गया कि इंग्लैण्ड में ही उसका इलाज सम्भव था एवं इन
परिस्थितियों में इंग्लैण्ड में रूकने की अनुमति न देना उसके अधिकारों का उल्लंघन
था। महिला की दयनीय स्थिति एवं उसके कष्टों पर सहानुभूतिपूर्ण रूप से विचार करते
हुए लार्ड सभा द्वारा यह निर्णय दिया गया कि इंग्लैण्ड से हटाये जाने की स्थिती
में महिला के कष्ट निश्चित रूप से बढ़ जायेंगे। यह कहना कि इस तरह की अनुमति से
अन्य राष्ट्रों के नागरिकों के लिए भी चिकित्सीय सुविधा के नाम पर इंग्लैण्ड में
प्रवेश का रास्ता खोल देगा जहां कि एड्स के इलाज की सुविधा उपलब्ध नही है। लार्ड
सभा ने अवलोकन किया कि इस प्रकार का निर्णय मानवाधिकारों की संकुचित सोच/व्याख्या
पर आधारित था। कानून का सहारा लेकर मानवाधिकारों व मानवीय कष्टों को अनदेखा नहीं
किया जा सकता। रक्त परीक्षण के परिणामों की गोपनीयता रक्त परीक्षण
के परिणामों को पूर्णतया गोपनीय रखा जाना अत्यंत आवष्यक है इससे लोगों को यह
आश्वासन मिलेगा कि उन्हें लांछन व सामाजिक भेदभाव का सामना नहीं करना पडेगा, वे समाज की मुख्यधारा में आसानी से शामिल हो पायेंगे और लोग स्वयं परीक्षण
कराने के लिए आगे आयेंगे। 1. अस्पताल की
नीतियां इस प्रकार की बनायी जायें कि वह स्वास्थ्यकर्मी को सुरक्षित कार्यात्मक
वातावरण प्रदान करें तथा रोगी के रोग की गोपनीयता बनी रहे। प्रायः अस्पतालों में
एड्स रोगियों को अलग वार्ड में रखा जाता है या उनके कागजों पर बडे-बडे अक्षरों में
एच आई वी लिख दिया जाता है। ये कागजात एक से दूसरे विभाग में आते जाते रहते हैं।
इन कागजात को रोगी के पलंग से बांध दिया जाता है, जिससे स्वास्थ्यकर्मी
पर्याप्त सावधानी बरत सकें लेकिन इससे गोपनीयता भंग होने का भी डर रहता है। 2. रोजगार के
क्षेत्र मे नियोक्ता भावी कर्मचारियों की एच आई वी स्थिति जानने का आग्रह करते है
ताकि आपातकाल में सही कार्यवाही की जा सके। विवाह का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को स्वेच्छा से विवाह करने का अधिकार है । भारत में विवाह समुदायों के निजी कानूनों के अनुसार होते है। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से सामुदायिक रीति रिवाजों को मानते हुए विवाह कर सकता है। कोई व्यक्ति विशेष विवाह अधिनियमों (Special Marriage Act) के अन्तर्गत भी विवाह कर सकता है। प्रत्येक
व्यक्ति को अपने एच आइ वी स्टेटस के बावजूद विवाह का अधिकार है। यदि कोई व्यक्ति
अपनी एच आई वी स्टेटस छिपा कर विवाह करता है तो यह तलाक का आधार हो सकता है। अतः
एच आई वी संक्रमित व्यक्ति को हमेशा अपने साथी को एच आइ वी स्टेटस के
बारे में बताकर उसकी सहमति से विवाह करना चाहिए। उन्हें हमेशा सुरक्षित यौन सम्बध
बनाने चाहिए। संतानोत्पत्ति की इच्छा होने पर उन्हें हमेशा डाक्टर की सलाह लेकर
उसका पालन करना चाहिए। धोखे से दूसरे व्यक्ति की स्वीकृति शादी के लिए प्राप्त
करना गलत है। अपने एच आई वी स्टेटस दूसरे पक्ष को अवगत कराना आवश्यक ही है अन्यथा
विवाह को अमान्य करार कराया जा सकता है। ऐसा करना भारतीय दंड संहिता की धारा 269
एवं 270 में अपराध भी है। मि. एक्स अण् अस्पताल जेड़ (1998) वाद मे उच्चतम
न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया कि यद्यपि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21
में प्रदत्त जीवन के अधिकार में निजता का अधिकार भी सम्मिलित है
परन्तु यह आत्यंतिक नही है। इस पर अपराध को रोकने, व्यवस्था,
स्वास्थ्य या नैतिकता का संरक्षण करने या दूसरे व्यक्त्तियों की
स्वतंत्रता और अधिकारों के संरक्षण के लिए प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं। प्रस्तुत
प्रकरण में अपीलार्थी एक्स नागालैंड राज्य मेडिकल सेवा में सहायक सर्जन के पद पर
कार्यरत था। राज्य के एक रोगग्रस्त कर्मचारी को इलाज हेतु मद्रास भेजा गया एवं
अपीलार्थी को उसके साथ मद्रास जाने का निर्देश दिया गया। रोगी के आपरेशन के लिए
रक्त की आवश्यकता पडी जिसके लिए अपीलार्थी को रक्त देने के लिए कहा गया। रक्तदान
से पूर्व रक्त की जांच से यह जानकारी प्राप्त हुई कि अपीलार्थी एच आई वी से ग्रस्त
था। अस्पताल के द्वारा यह जानकारी मि. एक्स के चाचा को दी गयी । उसके चाचा ने यह
जानकारी उसकी मंगेतर को दी जिससे उसका विवाह टूट गया। समाज में उसकी प्रतिष्ठा को
काफी ठेस पहुँची। वह नागालैंण्ड़ छोडकर मद्रास चला गया। उच्चतम न्यायलय के दो न्यायाधीशों श्री सगीर अहमद एवं श्री वी एन
कृपाल सिंह की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया कि अस्पताल ने कुछ गलत नहीं किया।
गोपनीयता का अधिकार प्रतिबंधित अधिकार है। अस्पताल ने भावी पत्नी की जान बचाने के
अधिकार की रक्षा की है। अस्पताल द्वारा व्यक्ति के एच आई वी संक्रमित होने की जानकारी
को भावी पति-पत्नी से छिपाने का कोईं अधिकार नहीं है। न्यायालय ने यह भी कहा कि
यदि एक व्यक्ति संक्रमण जन्य यौन रोग या नपुंसकता से ग्रस्त है तो उसके पूरी तरह
ठीक न होने तक न्यायालय द्वारा विवाह का अधिकार लागू नहीं कराया जा सकता और यह
अधिकार स्थगित रहेगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि एच आई वी संक्रमण के प्रसार की
सबसे बडी वजह यौन सम्बंध है अतः एच आई वी ग्रस्त व्यक्ति के विवाह के अधिकार को
खत्म कर दिया जाना चाहिए। मि0 एक्स प्रति अस्पताल जेड (2002) में
सर्वोच्च न्यायालय ने स्थिति को और स्पष्ट करते हुए कहा कि अस्पताल ने मंगेतर को
जानकारी देने मे कोई त्रुटि नही की। ऐसी परिस्थितियों में सेरोपोजिटिव व्यक्तियों के
निम्न परम कर्तव्य है- a. एच आई वी $ व्यक्त्ति को अपने यौन साथी/पत्नी, भावी पत्नी को
अपनी स्थिती के बारे में बताना चाहिए और उनकी सहमति प्राप्त करनी चाहिए। b. उन्हें हमेशा
जरूरी बचाव के तरीके जैसे कंडोम का प्रयोग करना चािहए जिससे कि उनके साथी को संक्रमण की सम्भावना न हो c. बच्चों को
जन्म देने से पूर्व चिकित्सक से उचित परामर्श लेकर उसका पालन करना चाहिए। माता-पिता बनने का अधिकार प्रत्येक दम्पति
में संतान उत्पन्न करने की अदम्य इच्छा होती है। किसी भी प्रकार के नकारात्मक
परिणाम का भय भी उनकी सन्तानोत्पति की इच्छा को कम नही कर पाता । प्रत्येक व्यक्ति
वंश वृद्धि केे लिए और अपनी निशानी छोड़ने के लिए संतान की कामना करता
हैे। महिलाओं के लिए मातृत्व उनके महिला होने का प्रमाण है। ऐसे बहुत से दम्पति है
जो एड्स की विभिन्न स्टेज में हैं तथा विभिन्न वर्गों
और भिन्न-भिन्न सामाजिक, आर्थिक स्तरों के हैं फिर भी एक
बात सब में समान है कि वे सन्तान उत्पन्न करना चाहते हैं। उनकी सन्तानोत्पति की
इच्छा इतनी तीव्र होती है कि उन्हें बच्चों के एच आई वी संक्रमित होने का भय भी
नहीं रहता। एच आई वी $ दम्पतियों को अन्य दम्पतियों के समान
माता-पिता बनने का अधिकार प्राप्त है परंतु वे संतान उत्पन्न करना चाहते हैं तो
उन्हें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए- 1. इस संबध में उन्हें पहले डाक्टर से परामर्श लेना
चाहिए जिससे की एच आई वी संक्रमण की सम्भावना बच्चे के लिए कम से कम हो। यह निर्णय
लेने में उन्हें बच्चे के भविष्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 2. यदि कोई दम्पति एच आई वी $ है
तो उसे ध्यान रखना चाहिए कि उनके जीवित रहने की सम्भावना कितने वर्ष की है जिससे
की वे भविष्य के लिए योजनाएं बना सकें और बच्चे की देखभाल ठीक से हो सके। निजता/गोपनीयता का अधिकार प्रत्येक
व्यक्ति को अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार प्रलेख और भारतीय संविधान के अन्तर्गत अपनी
व्यक्तिगत सूचना गोपनीय रखने का अधिकार है। नागरिक व राजनीतिक अधिकारों के
अतंराष्ट्रीय प्रसंविदा के अनुच्छेद 17 के
अनुसार किसी को भी उसकी निजता, परिवार, घर पत्राचार/ सम्वाद में मनमाने व अवैध हस्तक्षेप का भागी नहीं बनाया
जायेगा न ही उसके सम्मान व ख्याति पर आक्रमण किया जायेगा। राज्य का यह
दायित्व है कि निजता के अधिकार का संरक्षण करे व बिना सुविचारित सहमति के परीक्षण
नहीं किया जायेगा। एच आई वी स्टेटस का परिणाम अन्य किसी व्यक्ति को नही बताया
जाएगा। गोपनीयता बनाए रखने से एड्स से पीड़ित व्यक्तियों का विश्वास जन स्वास्थ्य प्रणाली
में गहरा होगा। वे निश्चित रहेंगे कि उन्हें लांछन व भेदभाव का सामना नहीं करना
पडे़गा। वे स्वयं अपना परीक्षण कराने के लिए आगे आयेंगे व चिकित्सीय परामर्श के
अन्तर्गत कार्य करेंगे जिससे कि इस महामारी के नियंत्रण पर सकारात्मक प्रभाव
पडे़गा। शारदा प्रति
धर्मपाल, 2003 वाद में एपीलांट शारदा
के द्वारा अपने पति धर्मपाल के विरूद्ध तलाक का वाद योजित किया गया, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एच आई वी से संक्रमित व्यक्ति की
स्टेटस जांच कराने के सम्बंध में अधिकारों की व्याख्या की। न्यायालय द्वारा यह
निर्णय दिया गया कि यदि तलाक एच आई वी /एड्स के संदेह के आधार पर चाहा गया है तो
उसमें न्यायालय पति के रक्त का सेम्पल जांच हेतु देने का निर्देष कर सकता है जो
अनुच्छेद 21 की परिधि में नहीं है। काम प्राप्त करने का अधिकार सभी
को बिना किसी भेदभाव के काम प्राप्त करने का अधिकार है तथा कार्यस्थल पर सभी के
साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। मानवाधिकारों के सार्वजनिक घोषणा पत्र के
अनुच्छेद 23 के अनुसार सभी को काम प्राप्त करने का अधिकार है।
काम की न्यायसंगत और अनुकूल परिस्थितियां हों। पीडित व्यक्तियों को उचित आवास की
सुविधा उपलब्ध कराई जाये, जिससे वे जब तक सम्भव हो कार्य कर
सकें, जब वे काये करने में असमर्थ हो जायें तब उन्हें बीमारी
से सम्बन्धित स्कीमों तक पहुँच का समान अधिकार हो- 1. अभ्यर्थी को
अपनी एच आई वी स्टेटस को नियोक्ता को सूचित करने के लिये बाध्य न किया जाये या उसे
पेंशन लाभ, स्वास्थ्य बीमा स्कीम या कर्मचारी मुआवजे के संबध में
ऐसा करन के लिये बाध्य न किया जाये। राज्य का यह दायित्व है कि एच आई वी के आधार
पर कार्यस्थल पर सभी प्रकार के भेदभाव से बचाव की व्यवस्था करे व निजी उपक्रमों
में भी समान व्यवस्था के लिये प्रयास करे। 2. सभी
कर्मचारियों को यह अधिकार है कि उनके कार्य करने की परिस्थितियाँ स्वस्थ व
सुरक्षित हो। विभिन्न प्रकार के रोजगारों में कर्मचारियों से कर्मचारियों में,या
कर्मचारियों से क्लाइन्ट में या क्लाइन्ट से कर्मचारियों में एच आई वी प्रसार का
खतरा नहीं होता लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं में एच आई वी प्रसार का खतरा व संभावना बनी
रहती है इसलिये राज्य सरकार का यह दायित्व है कि इस प्रकार के प्रसार को रोकने
लिये प्रयास करें। स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्य कर रहे कार्यकताओं को प्रशिक्षण
दिया जायें। शिक्षा का अधिकार शिक्षा का अधिकार एच आई वी/एड्स के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। प्रत्येक युवा और बच्चे को एच आई वी/एडस से सम्बंधित (विशेष रूप से बचाव और देखभाल के कार्यक्रमों से सम्बंधित) शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। एच आई वी से सुरक्षा के लिए एच आई वी से सम्बंधित शिक्षा तक उनकी पहुँच आवश्यक है। राज्य का यह दायित्व है कि प्रत्येक संस्कृति और धार्मिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए स्कूलों के अंदर तथा बाहर एच आई वी से सम्बंधित शिक्षा की व्यवस्था करे। राज्य का यह दायित्व है कि- 1. वह ऐसी व्यवस्था करे जिससे एच आई वी$ बच्चों औैर युवाओं को शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए मना न किया जाए। 2. राज्य शिक्षा के माध्यम से एच आई वी सक्रंमित
व्यक्तियों के प्रति समझ, सम्मान, सहिष्णुता
को प्रोत्साहित करे। 3. राज्य प्रत्येक नागरिक को एच आई वी से संबंधित
सूचना उपलब्ध कराये जिससे वे स्वयं को एच आई वी संक्रमण से बचा सकें। सभी बच्चों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का समान
अधिकार है। एच आई वी संक्रमण का, हाथ मिलाने से, एक ही कक्ष में बैठने से, या साथ-साथ खेलने से
प्रसार नही होता। यह बात सभी की जानकारी मे होने के बावजूद भी स्वस्थ्य बच्चों के
माता पिताओं के द्वारा- एच आई वी संक्रमित बच्चों के साथ अपने बच्चों को पढ़ाने का
विरोध होता रहा है। इस प्रकार की घटनाएं जब तब होती रहती हैं। सर्वोच्च न्यायालय
के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश डा. आनन्द ने इस संबंध में केन्द्र व राज्य सरकारों को आवश्यक निर्देश दिये कि वे ऐसे बच्चों को, जिनके
माता-पिता एच आई वी के कारण उन्हें संरक्षण देने में असमर्थ हैं, सरकार उनके लिए व्यवस्था करे (ह्यूमैन राइट्स न्यूज लैटरः 2004)। भारत व अमेरिका
में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महत्वपूर्ण वादों में दिये गये निर्णय
मानवाधिकारों की रक्षा के लिये मील का पत्थर हैं व अनुकरणीय हैं। एच आई वी संक्रमित व्यक्ति भी समाज के सहयोग से गरिमापूर्ण, स्वस्थ जीवन जी सकते हैं व एच आई वी संक्रमण के प्रसार को रोकने में
मददगार हो सकते हैं। भारतीय संस्कृति के आधारभूत आदर्शों संयम, सत्य व स्नेह को अपनाना होगा जिससे इस घातक संक्रमण पर विजय पाई जा सकेगी।
समाज में धीरे-धीरे यह चेतना जागृत हो रही है कि एड्स का अर्थ सिर्फ मृत्यु नही है
वरन् एड्स के साथ भी जीवन है। संयुक्त्त राष्ट्र महासभा के द्वारा एच आई वी
संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए आयोजित यूनाइटेड नेशनस जनरल एसेम्बली स्पेशल सेशन
2001 में 180 से अधिक राष्ट्रों के
द्वारा ए बी सी दृष्टिकोण स्वीकार किया गया। ए बी सी दृष्टिकोण एच आई वी संक्रमण
को रोकने के लिए व्यवहारगत परिवर्तन लाने के लिए तीन संदेश देता है ए-एबस्टेन/यौन
सम्बंधो से विरत रहो। बी-फेथफुल/एक
यौनसंगी के प्रति निष्ठावान रहे। सी-कन्डोम/सतत
तथा सही तरीक से कन्डोम का प्रयोग करो। इस प्रोग्राम का विस्तार ए बी सी डी के रूप में कर दिया गया है। डी-ड्रग्स/ डी को भी संदेश के साथ संयुक्त किया जाता है, ड्रग्स का प्रयोग न किया जाये। (यूएन पॉपुलेशन फंड, 2003)। |
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निष्कर्ष |
वैश्विकरण के इस युग में भारत के संसाधनो और युवा शक्ति को देखते हुए यह सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि भारत एक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, यह शताब्दी भारत की होगी । भारत एड्स के खिलाफ लड़ाई में अग्रिम पंक्ति में है। विएना में 2010 में हुए 18वें अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में एच आई वी/ एड्स से संक्रमित व्यक्तियों के लिए नया वैश्विक दृष्टिकोण जीरो डिस्क्रिमिनेशन, जीरो एड्स रिलेटिड डैथ स्वीकार किया गया है। आज इस बात की आवश्यकता है कि हम सभी एड्स से संबंधित भ्रांतियों व शंकाओ को निर्मूल करने व इस दृष्टिकोण को मूर्त रुप देने के लिए दृढ़ संकल्प करें। सभी भागीदार केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, न्यायाधीश, चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी, कॉरपोरेट ग्रुप्स, सामाजिक संगठन, युवा, महिलायें और एच आई वी संक्रमित लोगों के संगठन आपस में सहयोग करें, जिससे स्वस्थ व गरिमापूर्ण जीवन जीने का हर व्यक्ति का अधिकार मूर्त रूप धारण कर सके व एड्स मुक्त विश्व की कल्पना साकार हो सके। |
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