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संगीत और साहित्य में मीडिया की भूमिका | |||||||
Role of Media in Music and Literature | |||||||
Paper Id :
16770 Submission Date :
2022-11-08 Acceptance Date :
2022-11-22 Publication Date :
2022-11-25
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सारांश |
वर्तमान समय में संगीत और साहित्य में मीडिया की एक बहुत ही अहम भूमिका मानी जाती है। जीवन के विकास में प्रारंभ से ही संगीत और साहित्य का अपना-अपना एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्तमान समय में संगीत और साहित्य के प्रचार - प्रसार और संचार में मीडिया अपनी बहुत ही अहम भूमिका निभा रहा है।
गायन ,वादन तथा नृत्य इन तीनों के समूह को संगीत कहते हैं। इन तीनों विधाओं में से गायन को मुख्य माना जाता है। किसी भाषा के वाचिक और लिखित को साहित्य कह सकते हैं। संपूर्ण मानव समाज को प्रगति और खुशहाली के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए अच्छे साहित्य की पठन-पाठन की आवश्यकता है, जिससे हमारे समाज में व्याप्त कुरीतियों और कुप्रथाओं के प्रति हमारा मानव समाज जागरूक हो सके। संगीत में साहित्य का अत्यधिक महत्व है। जिस प्रकार अच्छे संगीत के लिए अच्छी स्वर रचना की आवश्यकता होती है ठीक उसी प्रकार अच्छे संगीत के लिए अच्छे साहित्य की भी आवश्यकता होती है।
जहां एक ओर आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो संगीत हमारे मानवीय जीवन में रचा बसा हुआ है और अच्छे संगीत के लिए अच्छे साहित्य की आवश्यकता होती है और साहित्य व संगीत के प्रचार प्रसार में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है। परंतु वर्तमान समय में मीडिया का बाजारीकरण हो चुका है। वर्तमान समय में हमारे समाचार पत्र अपराध की खबरों से भरे हुए होते हैं खबर के नाम पर समाज में नकारात्मकता फैलाई जा रही है। और अगर बात करें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तो टीवी चैनलों का मुख्य उद्देश्य ऊंची टीआरपी यानि अधिक से अधिक पैसा कमाना है।
टीवी सीरियल और मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता और फूहड़ता दिखाई जाती है।
हमारे फिल्मी गीतकारों और संगीतकारों को चाहिए कि वे अच्छे साहित्य और अच्छे संगीत की रचना करें। परंतु वर्तमान में भी कुछ ऐसे गीतकार और संगीतकार हैं जो अच्छे गीत और अच्छे संगीत का निर्माण कर रहे हैं। संगीत और साहित्य से मीडिया जुड़ा हुआ है तथा मीडिया के द्वारा संगीत और साहित्य का प्रचार-प्रसार हो रहा है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | At present, media is considered to have a very important role in music and literature. Music and literature have had their own very important place in the development of life from the very beginning. At present, media is playing a very important role in the promotion and communication of music and literature. Singing, playing and dancing, the group of these three is called music. Out of these three genres, singing is considered the main one. The spoken and written part of a language can be called literature. To move forward on the path of progress and prosperity, the entire human society needs reading and reading of good literature, so that our human society can become aware of the evils and bad practices prevalent in our society. Literature is very important in music. Just as good music requires good vocal composition, in the same way good music also requires good literature. While on the one hand, from a spiritual point of view, music is ingrained in our human life and good literature is needed for good music, and the media has a huge contribution in the promotion of literature and music. But in present times media has become marketised. In present times our newspapers are full of crime news, negativity is being spread in the society in the name of news. And if we talk about electronic media, then the main objective of TV channels is to earn high TRP i.e. maximum money. In the name of TV serials and entertainment, obscenity and sloppiness are shown. Our film lyricists and music composers should compose good literature and good music. But even at present there are some lyricists and composers who are producing good songs and good music. Media is connected with music and literature and music and literature are being propagated through the media. |
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मुख्य शब्द | संगीत, साहित्य, मीडिया, कला, मानव समाज, आधुनिकीकरण, वर्तमान पीढ़ी, प्राचीन, संस्कृति, नाद, स्वर, अलंकार, प्रचार - प्रसार, शिक्षा। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Music, Literature, Media, Art, Human Society, Modernization, Present Generation, Ancient, Culture, Sound, Swar, Alankar, Propaganda, Education. | ||||||
प्रस्तावना |
संगीत और साहित्य में मीडिया की भूमिका
वर्तमान समय में संगीत और साहित्य में मीडिया की एक बहुत ही अहम भूमिका मानी जाती है। जहां एक ओर मानव जीवन के विकास में प्रारंभ से ही संगीत और साहित्य का अपना-अपना एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वहीं अगर वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखा जाए तो, संगीत और साहित्य भी मीडिया से अछूते नहीं रहे हैं। वर्तमान समय में संगीत और साहित्य के प्रचार प्रसार और संचार में मीडिया अपनी बहुत ही मुख्य भूमिका निभा रहा है।
संगीत की परिभाषा -
शारंग देव ने अपने ग्रंथ "संगीत रत्नाकर" में लिखा है :-
"गीतम वाद्यम तथा नृत्यम त्रयम संगीत मुच्यते।"
अर्थात गायन, वादन तथा नृत्य इन तीनों के समूह को संगीत कहते हैं।
इन तीनों विधाओं में से गायन को मुख्य माना जाता है। क्योंकि वादन तथा नृत्य की अपेक्षा गायन अधिक सूक्ष्म है।
'संगीत' शब्द 'गीत ' शब्द में 'सम' उपसर्ग लगाकर बना है। 'सम' यानि 'सहित ' और 'गीत' यानि 'गायन'। इस प्रकार संगीत का अर्थ - ' गायन सहित ' नृत्य एवं वाद्य हेतु किया गया कार्य संगीत है।
इसके अलावा संगीत में गायन को ही मुख्य इसलिए माना जाता है, क्योंकि वाद्य, गीत का अनुसरण करता है और नृत्य भी वाद्य और गीत का अनुसरण करता है। अतः वाद्य और नृत्य दोनों ही गीतावलम्बी हैं। इस प्रकार बिना गीत के वादन और नर्तन का महत्व बहुत ही कम हो जाता है।
नृत्य तो बिना स्वर और लय के यानि गायन और वादन के चल ही नहीं सकता है।
प्राचीन काल से ही वाद्य यंत्रों का प्रयोग गायन के साथ ही किया जाता रहा है, उनका स्वतंत्र प्रयोग कवंचित ही हुआ करता था।
सभी वाद्य यंत्र रागों के ध्रुपदों, सरगमों एवम् तरानों आदि के आधार पर बजाए जाते हैं और स्वतंत्र बजते भी हैं, तब भी उसमें गायकी ही बजती है।
नृत्य एवं वाद्य दोनों ही गीत के अवलम्बी हैं अतः इन तीनों में गीत अर्थात गायन ही प्रधान है।
संगीत कला के रूप में -
संगीत को कला कहा जाता है, क्योंकि संगीत में स्वर, ताल, लय, शब्द एवं अभिनव आदि का समन्वय होता है, जो कला के अंतर्गत आता है। इसके साथ ही यह कला इसलिए है, क्योंकि इसके द्वारा कलाकार के मन को आनंद की प्राप्ति होती है और आम जनता का मनोरंजन होता है।
संगीत को कला कहने का एक विशिष्ट कारण यह भी है कि संगीत की कला ईश्वरीय देन है, जो प्रत्येक व्यक्ति के पास नहीं होती अतः यह कलाकार की व्यक्तिगत विशेषता होती है, जो संगीत की कला द्वारा झलकती है।
साहित्य की परिभाषा :-
सरल शब्दों में कहा जाए तो, साहित्य हमारे सामाजिक जीवन का एक दर्पण है, जिसमें हम समाज को देखते हैं अर्थात यह हमारे मानवीय जीवन का चित्रण होता है। जिसमें हमारी रोजमर्रा की घटनाओं का वर्णन किया जाता है।
किसी भाषा के वाचिक और लिखित को साहित्य कह सकते हैं। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य को सभी साहित्य का मूल स्रोत कहा जा सकता है।
साहित्य शब्द - स+हित+य के योग से बना है।
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अध्ययन का उद्देश्य | साहित्य का महत्व और मूल उद्देश्य -
साहित्य का मूल उद्देश्य मानव समाज का कल्याण करना होता है। ताकि हम साहित्य के द्वारा हमारे समाज में व्याप्त कुरीतियों और कुप्रथाओं के प्रति हमारे मानव समाज को जागरूक कर सकें, जिससे हम और हमारा संपूर्ण मानव समाज प्रगति और खुशहाली के मार्ग पर अग्रसर हो सकें और आगे भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें।
परंतु हमें चाहिए कि हम अच्छे साहित्य का पठन और वाचन करें तथा अपने घर परिवार के लोगों, विशेष रूप से घर के बच्चों को अच्छे साहित्य के पठन और वाचन के लिए प्रेरित करें। क्योंकि अच्छे समाज का निर्माण और अच्छी आदतों की शुरुआत एक या दो दिनों में नहीं होती। |
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साहित्यावलोकन | पं.शारंगदेव
का नाम संगीत जगत में बहुत ही आदर और सम्मान पूर्वक लिया जाता है। इन्होंने 13वीं
शताब्दी के पूर्वार्ध में प्रसिद्ध ग्रंथ संगीत रत्नाकर लिखा।पं.शारंगदेव देवगिरी(दौलताबाद)
राज्य के दरबारी संगीतज्ञ थे। डॉ.महारानी
शर्माडी.पी.गर्ल्स कॉलेज, इलाहाबाद की
प्रवक्ता (निवृत्त मान) रही हैं। यह आशीर्वाद संगीत विद्यालय,
इलाहाबाद की संचालिका हैं। तुलसी
राम देवांगन बहुत ही प्रसिद्ध संगीत शास्त्री हैं और इन्होंनेभारतीय संगीत शास्त्र
नामक पुस्तक की रचना कर संगीत के विद्यार्थियों को लाभान्वित किया है। डॉ.तेज
सिंह टांक का नाम संगीत शास्त्र जगत में उनके अतुलनीय योगदान के लिए बहुत ही सम्मान
से लिया जाता है। इन की प्रसिद्ध रचनाएं संगीत जिज्ञासा और समाधान,
संगीत विज्ञान और गणित, सुबोध संगीत
शास्त्र इत्यादि हैं। भरतमुनि
को न सिर्फ संगीत जगत का बल्कि संपूर्ण कलाओं का पिता कहा जाता है। भरत ने भारतीय
ग्रंथ नाट्य शास्त्र की रचना की। इसमें भरत ने संपूर्ण भारत का ऐसा स्वरूप उपस्थित
किया जिसमें काव्य, नाट्य, संगीत, चित्रकला
जैसी सभी ललित कलाओं का व्यापक और संपूर्ण वर्णन था। आचार्य
बृहस्पति बहुत ही प्रसिद्ध संगीतज्ञ, संगीत शास्त्री और महान संगीत विचारक रहे हैं।इन्होंने
संगीत चिंतामणि की रचना की।
प्रस्तुत
लेख के कुछ विषय वस्तु इंटरनेट से भी ली गई है। |
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मुख्य पाठ |
आज के
आधुनिक युग में आधुनिकीकरण और तकनीकीकरण से एक ओर हम नई- नई ऊंचाइयों को छू रहे
हैं। परंतु कहीं ना कहीं हम, विशेषकर हमारी नई पीढ़ी आधुनिकता की अंधी
प्रतिस्पर्धा में अच्छे साहित्य के पठन से कोसों दूर हो चुकी है। वर्तमान
समय में हमारी नई पीढ़ी को हमारे प्राचीन साहित्य के महाकाव्य "रामायण"
और "महाभारत" , शिक्षा से ओतप्रोत "पंचतंत्र" कि कोई विशेष जानकारी नहीं है। हमें
चाहिए कि हम अपनी वर्तमान पीढ़ी को "रामायण", "महाभारत", " पंचतंत्र", "अभिज्ञान शाकुंतलम्"
, "मेघदूतम" इत्यादि जैसे अच्छे और महत्वपूर्ण साहित्य का पठन-पाठन करने के
लिए प्रेरित करें। ताकि
पश्चिमी संस्कृति की ओर आकर्षित होने वाली हमारी वर्तमान पीढ़ी, हमारी उच्च कोटि की, समृद्ध और प्राचीन
संस्कृति से परिचित हो सकें। क्योंकि हमारे देश और संस्कृति की धरोहर का भावी
भविष्य हमारी नई पीढ़ी पर ही टिका हुआ है। संगीत और साहित्य का संबंध: - संगीत
में साहित्य का अत्यधिक महत्व है। जिस प्रकार अच्छे संगीत के लिए, अच्छी स्वर रचना की
आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार अच्छे संगीत के लिए अच्छे साहित्य की भी उतनी ही आवश्यकता होती
है। संगीत
और साहित्य, दोनों ही कलाओं का माध्यम नाद है, अतः यदि गंभीरता पूर्वक देखा जाए तो
वास्तव में यह दोनों ही कलाएं एक दूसरे से इतनी अधिक जुड़ी हुई है कि इनको पृथक
करना कठिन है। साहित्य
शब्द प्रधान है, उसके पास भाव व्यक्त करने के लिए शब्द हैं, जिनसे प्रत्येक प्रकार के भाव व्यक्त
किए जा सकते हैं परंतु यदि गहन चिंतन मनन किया जाए तो पता चलता है कि शब्द प्रकट
करने के लिए स्वर का आश्रय लेना ही होता है और शब्द का आश्रय नाद ही है, बिना नाद के स्वर्गीय
शब्द का उच्चारण किया ही नहीं जा सकता अर्थात साहित्य को स्वर का आश्रय लेना ही
पड़ता है। आचार्य
भरत ने स्वर को शब्द और ताल को छंद कहा है। दो
शब्दों या अक्षरों के बीच कुछ समय अंतराल होता है, जो लय का काम करता है। यही स्वर और लय, संगीत में भावों को प्रकट
करने के साधन हैं। साहित्य और संगीत दोनों को ही व्यक्त करने का माध्यम नाद है। शारंग
देव ने कहा है कि "नाद" ही पूरे जगत का आधार है। नाद से स्वर और शब्द
बनते हैं। शब्दों से भाषा और भाषा से सारे संसार का व्यवहार होता है। भाषा बुद्धि
का विषय है, इसमें कृत्रिम विकास होता है। भाषा का ज्ञान ना होने पर उसका प्रभाव नगण्य
होता है। नाद का संबंध मन से है जिसमें सहजता है। अतः प्राणी मात्र पर ही नहीं, वनस्पतियों पर भी इसका
प्रभाव देखा जा सकता है। जब संगीत और साहित्य का माध्यम एक ही है, तो दोनों में अटूट संबंध
मानना ही होगा। साहित्य
और संगीत दोनों में ही अलंकारों का विशेष स्थान है। अलंकार से अभिप्राय अलंकरण, आभूषण अर्थात सजावट से
होता है। साहित्य में अनुप्रास, यमक आदि अनेक अलंकार प्रयोग में लाए जाते हैं, इसी प्रकार संगीत में
स्वरों को कण, मींड, खटका, मुर्की इत्यादि आभूषणों से सुसज्जित कर राग का गायन किया जाता है। संगीत के
प्रारंभिक विद्यार्थियों को स्वर ज्ञान हेतु आरंभ में अलंकार की ही शिक्षा दी जाती
है। इन अलंकारों द्वारा स्वर ज्ञान के अलावा राग में बढ़त, तान इत्यादि का अभ्यास
स्वतःही हो जाता है। संगीत
और साहित्य का मुख्य प्रयोजन या उद्देश्य रसानुभूति होता है। साहित्य में शब्द
संयोजन और संगीत में स्वर संयोजन द्वारा रस की प्राप्ति की जाती है। मीडिया की परिभाषा - मीडिया
अर्थात मीडियम या माध्यम। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। इसी आधार
पर हम मीडिया के महत्व का अंदाजा लगा सकते हैं। समाज में मीडिया की भूमिका संवाद-
वहन की होती है। मीडिया हमारे समाज के विभिन्न वर्गों, व्यक्तियों, सत्ता केंद्रों तथा
संस्थाओं के बीच एक सेतु का कार्य करता है। आधुनिक
युग में मीडिया का सामान्य अर्थ समाचार पत्र, पत्रिकाओं, टेलीविजन, रेडियो, इंटरनेट आदि से लिया जाता
है। किसी देश की उन्नति व प्रगति में मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका होती है। संगीत, साहित्य और मीडिया का संबंध- जहां एक
ओर आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो, संगीत हमारे मानवीय जीवन में रचा बसा
हुआ है और अच्छे संगीत के लिए अच्छे साहित्य की आवश्यकता होती है और संगीत व
साहित्य के प्रचार प्रसार में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान होता है। मीडिया के दोष और कमियां - जैसे
दीपक तले अंधेरा होता है, ठीक यही बात मीडिया के संदर्भ में भी कही जा सकती है। जहां एक ओर मीडिया हमारे
देश की उन्नति में सहायक है, हमारी कला संस्कृति के विकास में, संगीत और साहित्य के
प्रचार प्रसार में सहायक है, वहीं दूसरी ओर वर्तमान में मीडिया का बाजारीकरण हो
चुका है। मीडिया
या प्रेस को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए और उसे स्वतंत्रता मिली भी है। परंतु जब
स्वतंत्रता अपनी हद पार कर जाए, तो वह उच्चश्रृंखलता बन जाती है। आज मीडिया धन के लोभ
में समाज को गुमराह कर रहा है। वर्तमान स्थिति में आज हमारे समाचार पत्र अपराध की
खबरों से भरे हुए होते हैं। खबर के नाम पर समाज में नकारात्मकता परोसी जा रही है।
जबकि सकारात्मक समाचारों को स्थान ही नहीं दिया जाता। बात अगर
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कही जाए तो, टीवी चैनलों की बाढ़ सी आई हुई है। हर
चैनल का मुख्य उद्देश्य ऊंची टी.आर.पी. यानी अधिक से अधिक पैसा कमाना है। न्यूज़
चैनलों पर 'सनसनीखेज खबर' के नाम पर नकारात्मकता, असमंजसता और दहशत की स्थिति उत्पन्न की जा रही है। टीवी सीरियल पर मनोरंजन के
नाम पर अश्लीलता और फूहड़ता दिखाई जाती है। कदाचित
इन सभी बातों के लिए मीडिया के साथ ही साथ कहीं ना कहीं हम स्वयं भी जिम्मेदार
हैं। क्योंकि हम ऐसी विषय वस्तु को देख, सुन और पढ़ रहे हैं भले ही हम
व्यक्तिगत तौर पर ऐसे विषय वस्तुओं की निंदा करते हैं, परंतु यह हमारा ही दोष है
कि हम ऐसे विषय वस्तुओं को देखते, सुनते और पढ़ते हैं। फिल्मी संगीत और साहित्य का बाजारीकरण - संगीत
और साहित्य की हमारे मानव समाज में बहुत ही अहम भूमिका होती है। संगीत और साहित्य
केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं है, अपितु मानव समाज का दर्पण
भी है। जिस समाज का संगीत और साहित्य उच्च कोटि का होता है, उसकी सभ्यता भी उच्च कोटि
की मानी जाती है। परंतु
वर्तमान समय में संगीत और साहित्य का बाजारीकरण हो चुका है। विशेष रुप से फिल्मी
संगीत और उसके साहित्य की बात की जाए तो, वर्तमान स्थिति में फिल्मी गीतों में
अच्छे संगीत और अच्छे साहित्य की बहुत ही कमी है। आजकल
पुराने फिल्मी गीतों को तोड़ मरोड़ कर उनका रीमिक्स बनाने का प्रचलन बहुत बढ़ गया
है। इसके साथ ही गीतों में साहित्य के नाम पर रैप इत्यादि देखने को मिल रहा है। आम
शब्दों में अगर कहा जाए तो फिल्मी गीतों में संगीत के नाम पर शोरगुल और साहित्य के
नाम पर किन्हीं गीतों में अश्लील शब्दों का भी प्रयोग किया जा रहा है।
हमारे
फिल्मी गीतकारों और संगीतकारों को चाहिए कि वे अच्छे साहित्य और अच्छे संगीत की
रचना करें। परंतु वर्तमान में भी कुछ ऐसे गीतकार और संगीतकार हैं, जो अच्छे गीत और संगीत की
रचना कर रहे हैं, जिनके योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
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निष्कर्ष |
बात चाहे संगीत की हो या साहित्य की, या फिर मीडिया की वर्तमान समय में, कहीं ना कहीं यह तीनों ही किसी न किसी रूप में एक दूसरे से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।
फिर बात चाहे वर्तमान समय में संगीत और साहित्य की आधुनिक शिक्षा की हो, मीडिया इन दोनों ही क्षेत्रों में बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका निभा रहा है।
रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में संगीत शिक्षण के कार्यक्रमों का प्रसारण, उच्च कोटि के संगीतज्ञों का गायन, वादन, शास्त्र चर्चा आदि संगीत के विद्यार्थियों के लिए लाभप्रद हैं।
वर्तमान समय में विद्यार्थियों के लिए टेलीविजन एक आकर्षण का केंद्र है। संगीत गोष्ठियों, संगीत सम्मेलनों, सेमिनार, प्रश्नोत्तरी आदि कुछ टेलीविजन पर आधारित होने वाले ऐसे कार्यक्रम हैं, जो संगीत के विद्यार्थियों के लिए लाभप्रद हैं।
इसके साथ ही यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक इत्यादि ऐसे सोशल प्लेटफॉर्म हैं, जिनके माध्यम से संगीत और साहित्य से मीडिया जुड़ा हुआ है तथा मीडिया के द्वारा संगीत और साहित्य का प्रचार-प्रसार हो रहा है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. पं.शारंग देव, संगीत रत्नाकर
2. शर्मा,डॉ.महारानी, संगीतमणि
3. देवांगन,तुलसीराम, भारतीय संगीत शास्त्र
4. टांक,डॉ.तेजसिंह, संगीत जिज्ञासा और समाधान
5. भरत,नाट्य शास्त्र
6. बृहस्पति, आचार्य कैलाश चंद्र देव, संगीत चिंतामणि |