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मानवाधिकार : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं विकास | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Human Rights: Historical Background and Development | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
16873 Submission Date :
2022-12-18 Acceptance Date :
2022-12-22 Publication Date :
2022-12-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो व्यगक्तित्व के विकास के लिये आवश्यक हैं। इन्हें प्रकृति प्रदत्त या ईश्वर प्रदत्त माना जाता है। मानवाधिकार के बिना मनुष्य अपनी क्षमता, योग्यंता, प्रतिभा और अन्यं स्वांभाविक गुणों का विकास नहीं कर सकता है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार ही मानवाधिकार है।
हैराल्ड के अनुसार ''अधिकार एक ऐसी व्यवस्था है जिसके बिना सामान्यत: कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।''
डॉ0 सुभाष कश्यप के अनुसार ''संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है परन्तु मानव अधिकार, नागरिक अपने जन्म से प्राप्त करता है।''
ओल्टन ''मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो मनुष्य के लिए उसके अस्तित्व एवं व्यक्तित्व के विकास के लिये अनिवार्य है।''
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 2(1) के अनुसार ''मानव अधिकारों से तात्पर्य प्राण, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति की गरिमा से सम्बन्धित ऐसे अधिकार अभिप्रेत हैं जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत किये गये हैं अथवा अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदायों मे सन्निविष्ट और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है।''
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Human rights are those rights which are necessary for the development of personality. They are considered to be given by nature or given by God. Without human rights man cannot develop his potential, ability, talent and other natural qualities. In fact, the right to life, liberty, equality and dignity of any person is human right. According to Haralda, "Right is such a system without which no person can fully develop his personality." According to Dr. Subhash Kashyap, "The constitution provides fundamental rights to the citizens, but the human rights are acquired by the citizen from his birth." Oltan, "Human rights are those rights which are essential for human beings for their existence and development of personality." According to Section 2(1) of the Protection of Human Rights Act, 1993 "Human rights" means such rights relating to life, liberty, equality and dignity of the individual as are guaranteed by the Constitution or contained in international treaties and in India enforceable by the courts." |
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मुख्य शब्द | मानवाधिकार, ऐतिहासिक पृष्ठमभूमि, विकास, संविधान। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Human Rights, Historical Background, Development, Constitution. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
आधुनिक मानवाधिकार कानून और इसकी अधिकांश अपेक्षाकृत व्यवस्थाओं का सम्बन्ध समसामयिक इतिहास से हैं। 1215 ई0 में इंग्लैण्ड के शासक जॉन लॉक द्वारा निर्गत किया गया महत्वपूर्ण दस्तांवेज ''मैग्नांकार्टा'' अधिकार पत्र था, जिसमें सर्वप्रथम मानवाधिकार से सम्बन्धित उपबंध किये गये थे।
इसके अनुसार जनता को निम्नलिखित अधिकार प्रदान किये गये-
1. जनता पर लगे भारी कर को कम करने पर विचार किया जाये।
2. जनता, सामन्तों एवं पादरियों को स्वयतंत्रता देने हेतु 73 धाराओं का एक चार्टर बना, जिस पर निरंकुश शासक ने हस्ताक्षर किये।
3. राजा को प्रतिज्ञा करनी पड़ी की देश के कानून या उसके पियरों (Peer) के विधिपूर्ण निर्णय से संरक्षित किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जायेगा।
4. इस चार्टर के अनुसार राजा को मनमानी ढंग से कार्य करने पर रोक एवं कानून के अनुसार कार्य करने पर बाध्य किया गया।
5. मनमानी ढंग से कर लगाने पर रोक लगी। इसके लिये व्यवस्था की गयी कि जन प्रतिनिधियों की सलाह पर कर लगाने की व्यवस्था की जायेगी।
6. व्यक्ति को वाक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आवागमन की स्वतंत्रता आदि अनेकों, मानवीय अधिकारों की स्वतंत्रताएं प्रदान की गयी।
1525 ई0 में जर्मनी में ''द टवेल्वअ आर्टिकल्सी ऑफ द ब्लेाक फॉरेस्टग' दस्ताआवेज के द्वारा किसानों ने अपनी मांगे स्वावियन संघ के समय रखी थीं।
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अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य मानवाधिकार एवं उसकी ऐतिहासिक पृष्ठमभूमि व विकास का अध्ययन करना है । |
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साहित्यावलोकन | 1628 ई0 में अंग्रेजी संसद द्वारा राजा चार्ल्स प्रथम को भेजी गयी याचिका में चार सिद्धान्तों को मान्यता देने की मांग की गई-संसद की सहमति के बिना कोई कर नहीं, बिना कारण के कारावास नहीं, विषयों पर सैनिकों का कोई क्वार्टर नहीं और शान्तिकाल में कोई मार्शल लॉ नहीं। 1689 ई0 में इंग्लैण्ड में बिल ऑफ राइट्स के जरिए भी कानून की दृष्टि में समानता निर्वाचन का अधिकार, प्रजातांत्रिक मूल्यों की घोषणा की गयी। चार्ल्स द्वितीय के शासनकाल (1650-1689) में यह विचार प्रस्तुत किया गया था कि किसी व्यक्ति को अपने विरूद्ध लगाये गये आरोपों को बताये बिना वारंट या रिट के बिना गिरफ्तार नहीं किया जायेगा। 1690 ई0 में जॉन लॉक ने भी इन अधिकारों का अपनी पुस्तक ''स्टेट्स ऑफ नेचर'' में वर्णन किया। |
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मुख्य पाठ |
विभिन्न देशों के संविधान निर्माण में मैग्नाकार्टा
में प्राविधानों को बुनियादी सिद्धान्तों की तरह इस्तेमाल किया गया है। माना
जाता है कि अमेरिकी संविधान पर भी मैग्नाकार्टा का खासा प्रभाव है। वहीं पूरे
विश्व में मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने वाली संयुक्त राष्ट्र की यूनिवर्सल
डेक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स की प्रेरणा भी मैग्नाकार्टा ही है। 1776 का संयुक्त राष्ट्र
अमेरिका के स्वतंत्रता संघर्ष के पश्चात वहाँ मनुष्य मात्र को सम्मानपूर्ण
जीवन जीने के लिये अधिकार प्रदान किये गये। फ्रांसीसी क्रान्ति 1789 में हुयी। वहां के सम्राट
लुई सोलहवें के शोषण से त्रस्त जनता ने विद्रोह कर दिया। स्वतंत्रता, समानता तथा भातृत्व भाव के नारे के साथ यह क्रान्ति
आरम्भ हुई। 1789 में राजा के अत्याचार के विरूद्ध जनता ने बास्तील जेल तोड़कर
उसमें बंद कैदियों को मुक्त करा दिया नेशनल असेम्बली का गठन किया गया जिसके
द्वारा एक संविधान निर्मित किया गया, जिसमें
सीमित राजतंत्र व चुनाव पद्धति की व्यवस्था की गयी। 1792 में
गणतंत्र की व्यवस्था लागू की गई। जनता को स्वतंत्रता, समानता तथा अन्य मानवाधिकार प्रदान किये गये। इसके पश्चात् रूस की क्रान्ति 1917 ई0 में हुई।
मार्क्स के विचारों से प्रभावित जनता ने लेनिन के नेतृत्व में निरंकुश शासक जार
(निकोलस XI) व उसके परिवार को मार डाला।
साम्यवादी देश सोवियत संघ का गठन कर जनसाधारण को मानवाधिकार प्रदान किये गये। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) तथा द्वितीय विश्व
युद्ध में लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। मानवाधिकारों के बड़े पैमाने पर
उल्लंघन ने राष्ट्र संघ की स्थापना के विचार को जन्म दिया। अन्तरराष्ट्रीय
शान्ति और सुरक्षा को बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के प्रायोजन और
सिद्धान्तों के पैरा 3 में कहा गया है:- आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या मानव कल्याण संबंध अन्तरराष्ट्रीय समस्याओं को हल करने
के लिये मानव अधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान की अभिवृद्धि करने
और उसे प्रोत्साहित करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग उत्पन्न करना है। मित्र राष्ट्रों की 1 जनवरी, 1942 की संयुक्त राष्ट्र की घोषणा में मानवाधिकारों
हनन को युद्ध का कारण बताया गया था। संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के समय अमेरिकी
राष्ट्रपति ट्रूमैन ने सेंट फ्रांसिस्को में अपने भाषण में यह कहा था कि ''हमारे पास सभी सम्मिलित राष्ट्रों के स्वीकार योग्य अन्तर्राष्ट्रीय
अधिकार पत्र निर्माण करने का अच्छा तर्क है।'' संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की उद्देशिका में
मानवाधिकारों को ध्यान दिया गया। संयुक्त राष्ट्र की महासभा के प्रथम सत्र में
क्यूबा के प्रतिनिधि ने 'मूल अधिकारों और स्वतंत्रताओं
की घोषणा का प्रारूप प्रस्तुत किया था। महासभा ने सर्वप्रथम आर्थिक और सामाजिक
परिषद को मानवाधिकार पत्र बनाने का कार्य दिया था। संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने
10 दिसम्बर, 1948 को सर्वसम्मति से मानवाधिकारों की
सार्वभौम घोषणा को स्वीकार किया। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की उद्देशिका की
घोषणा में वर्णित अधिकारों को सभी राष्ट्रों के लिये मानक कहा गया है। समाज में
प्रत्येक व्यक्ति से इस घोषणा को मान्यता देने और उसके अनुपालन करने के लिये
प्रयासरत रहने की अपेक्षा की जाती है। मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में
उद्देशिका और 30 अनुच्छेद हैं। प्रथम 21 अनुच्छेद सिविल और राजनैतिक अधिकारों से
सम्बन्धित हैं और अनुच्छेद 22 से अनुच्छेद 27 का संबंध आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों से है। अन्तिम तीन अनुच्छेद (28-30)
सामान्य अनुप्रयोग से सम्बन्धित हैं और इनका प्रभाव सम्पूर्ण घोषणा पर है। भारत का संविधान और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा भारत संयुक्त राष्ट्र के मूल सदस्यों में से है और
उसने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा को भी स्वीकार किया है। भारत के संविधान
निर्माताओं पर भी इसका प्रभाव पड़ा। संविधान के भाग-3 के मूल अधिकारों और भाग-4 के निदेशक तत्व, सार्वभौम
घोषणा के अधिकारों को सम्मिलित करते हैं। मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के
विभिन्न अनुच्छेदों और संविधान के भाग तीन (मूल अधिकारों) की समानता निम्नलिखित
तालिका में प्रदर्शित है।
इस प्रकार मानवाधिकार घोषणा के प्राय: सभी अधिकार
भारत के संविधान में शामिल हैं। भारतीय न्याय पालिका ने भी संविधान के निर्वाचन
करने में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की मदद ली है। भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने 1970 में
विभिन्न देशों में मानव अधिकारों के राष्ट्रीय आयोग स्थापित करने पर विचार किया
था परन्तु इसको सदस्य राष्ट्रों पर छोड़ दिया था। सदस्य राज्यों द्वारा कोई
कार्यवाही नहीं किये जाने पर आयोग ने पुन: 1978 में इस पर बल दिया परन्तु राज्यों
ने कोई पहल नहीं किया। इसके उपरान्त 1993 में मानव अधिकारों के विश्व सम्मेलन
में सदस्य राष्ट्रों ने मानव अधिकारों के उन्नयन और संरक्षण सम्बन्धी राष्ट्रीय
संस्थाओं को सुदृढ़ करने का आहवान किया। इसके पश्चात अनेक राज्यों ने अपने यहां
मानव अधिकार आयोग की स्थापना की। भारतीय संसद में काफी विचार विमर्श के पश्चात् 14 मई
1993 को लोकसभा में मानवाधिकार आयोग बिल 1993 प्रस्तुत किया गया, जिस पर काफी लम्बी चर्चाओं और बहस के बाद मानवाधिकार
संरक्षण अध्यादेश 1993 राष्ट्रपति द्वारा 28 दिसम्बर 1993 को पारित किया गया।
इस मानवाधिकार संरक्षण अध्यादेश, 1993 के तहत देश में
अक्टूबर 1993 में एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया। संसद ने इस अध्यादेश
को 8 जनवरी, 1994 को परिवर्तित कर दिया। इस अधिनियम में
8 अध्याय, 41 धारायें और विनियम प्रक्रिया में 19
विनियम दिये गये हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना केन्द्र
सरकार करती है। इसमें एक अध्यक्ष, पांच
पूर्णकालिक सदस्य और सात पदेन सदस्य होते हैं। आयोग के लिए एक महासचिव होता है
जो आयोग का मुख्य कार्यपालक अधिकारी होता है। आयोग के निम्न सदस्य होते हैं। 1. एक अध्यक्ष जो उच्चतम न्यायालय
का मुख्य न्यायाधीश रहा हो। 2. एक सदस्य जो उच्चतम न्यायालय
का न्यायाधीश है या रहा हो। 3. एक सदस्य जो किसी उच्च न्यायालय
का मुख्य न्यायाधीश है या रहा हो। 4. दो ऐसे सदस्य जो मानवाधिकारों के
सम्बन्ध में ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव रखते हों। 5. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय
अनुसूचित जनजाति आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग, राष्ट्रीय पिछड़ा
वर्ग आयोग के अध्यक्ष एवं विकलांग व्यक्तियों के लिये मुख्य आयुक्त मानवाधिकार
आयोग के पदेन सदस्य होते हैं। अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति स्वयं राष्ट्रपति
द्वारा की जाती है। इस आयोग में की जाने वाली नियुक्तियों के लिये निम्नलिखित
प्रकार से गठित कमेटी द्वारा परामर्श लेना होता है- a. प्रधानमंत्री - अध्यक्ष b. लोकसभा अध्यक्ष - सदस्य c. गृहमंत्री जो स्वतंत्र प्रभार ग्रहण करे - सदस्य d. लोकसभा के विपक्ष का नेता -
सदस्य e. राज्यसभा में विपक्ष का नेता -
सदस्य f. राज्य सभा के उप सभापति - सदस्य इसके अतिरिक्त कोई भी उच्चतम न्यायालय का पीठासीन
न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय का पीठासीन मुख्य न्यायाधीश भारत के मुख्य न्यायाधीश
की परामर्श के बिना नियुक्त नहीं किया जायेगा। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के
कार्य- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निम्नलिखित कार्य
हैं:- 1. आयोग किसी पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से
किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गयी याचिका की जांच करना। 2. आयोग राज्य सरकार को सूचना देकर उसके नियंत्रणाधीन
किसी कारागार या किसी अन्य संस्थान में जा सकता है जहाँ व्यक्ति का उपचार, सुधार या संरक्षा के लिए निरुद्ध किये जाते हैं या रखे
जाते हैं। आयोग को यह अधिकार अन्त:वासियों की जीवन दशा का अध्ययन करने तथा उसके
सम्बन्ध में सिफारिश करने के लिये प्रदान किया गया है। 3. आयोग मानवाधिकारों के संरक्षण के लिये भारतीय संविधान
या किसी अन्य विधि द्वारा उपबंधित संरक्षणों का पुनरावलोकन करना और उनके क्रियान्वयन
के लिये भी सिफारिश करना। 4. मानवाधिकारों के उपभोग को अवरूद्ध करने वाले आतंकवादी
कार्यों की समीक्षा करना तथा उनके उपचार हेतु समुचित उपायों के बारे में सुझाव
देना। 5. मानवाधिकारों से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय
संधियों का अध्ययन करना तथा उनके प्रभावी क्रियान्वयन हेतु सुझाव देना। 6. मानवाधिकारों के क्षेत्र में शोध करना तथा शोध कार्य
को प्रोत्साहित करना। 7. समाज के विभिन्न वर्गों को मानवाधिकार से अवगत
कराना। 8. मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्य करने वाले गैर
सरकारी संगठनों तथा संस्थाओं के कार्यों को प्रोत्साहित करना। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में हिन्दी, अंग्रेजी अथवा संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित
किसी भी भाषा में शिकायत की जा सकती है। आयोग का निम्नलिखित पता है:- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानवाधिकार आयोग के गठन के समय 1993-94 में कुल 498
शिकायतें दर्ज हुई थीं जो विगत पाँच वर्षों में बढ़कर 2017 में 82006, 2018 में 85950, 2019 में
76585, 2020 में 75064, 2021 में 106022 हो गयीं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में दर्ज शिकायतों की
बढ़ती हुई संख्या यह बताती है कि लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुए हैं।
आयोग की वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 के अनुसार सर्वाधिक
शिकायतें उत्तर प्रदेश (32693) से हैं। उसके बाद क्रमश: तमिलनाडु (6535), दिल्ली (5843), उड़ीसा (4150) राज्य हैं। ये
शिकायतें पुलिस ज्यादती, हिरासत में हिंसा, मुठभेड़ मौत, कैदियों का उत्पीड़न, अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियों पर अत्याचार, बंधुआ मजदूर, बाल श्रम, बाल विवाह, साम्प्रदायिक हिंसा, दहेज हत्या, अपहरण, बलात्कार और हत्या, यौन उत्पीड़न और महिला
शोषण की है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सीमाऍ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास जाँच कराने के लिए
सीमित संसाधन हैं। उसे सरकार की विभिन्न संस्थाओं की जाँच हेतु सहायता लेनी
पड़ती है। आयोग उन शिकायतों की जाँच
नहीं कर सकता जो घटना होने के एक साल बाद दर्ज करायी जाती हैं और इसीलिए कई
शिकायतें बिना जाँच के ही रह जाती है। आयोग अपनी जाँच के आधार पर सरकार या न्यायालय
से मुकदमे की सुनवाई की सिफारिश कर सकता है। लेकिन केन्द्र सरकार और राज्य
सरकारें आयोग की सिफारिशें मानने के लिए बाध्य नहीं है। आयोग द्वारा की गयी
सिफारिशों को सरकार द्वारा प्राय: आंशिक रूप से ही लागू किया जाता है। केन्द्रीय
सशस्त्र बलों के सन्दर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियों को भी काफी
सीमित कर दिया गया है। कई बार सरकारी संस्थायें जाँच में पूर्णत: सहयोग नहीं करती
हैं जिससे आयोग के लिए कार्य कर पाना अत्यन्त मुश्किल हो जाता हैं। वर्तमान समय
में आयोग के समक्ष हजारों मामले विचाराधीन हैं। सुझाव/भविष्य की दिशा मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतों के शीघ्र निस्तारण के लिए आयोग की शक्तियों व संसाधनों को बढ़ाया जाय। आयोग को शक्तिशाली संस्था बनाने के लिये द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों को शीघ्र लागू किया जाये। आयोग के पास अपना पुलिस बल हो जिससे तत्काल कारवाई की जा सके। सरकार, पुलिस, न्यायालय आयोग की सिफारिशों पर ध्यान दें आर उसके साथ सहयोग करें। |
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निष्कर्ष |
वर्तमान परिप्रेक्ष्य् में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है कि सभी लोग परस्पर सदभाव के साथ मिलकर रहें, अपने मानवाधिकारों के प्रति सजग रहें, दूसरों के मानवाधिकारों का भी सम्मान करें और एक समतामूलक समाज का निर्माण करें। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. अग्निहोत्री, डॉ0 बिजेन्द्रि, विकास का आधार मानवाधिकार, बुक रिवर्स, लखनऊ 2020
2. जोशी के0सी0, अन्तर्राष्ट्री्य विधि और मानवाधिकार, इ0बी0सी0 पब्लिशिंग, लखनऊ2017
3. कपूर डॉ0 एस0के0, मानव अधिकार, सेन्ट्रल लॉ एजेन्सी, इलाहाबाद 2019
4. पाठक अरूण कुमार, मानव अधिकार, सिल्वर लाइन पब्लिकेशन्स, फरीदाबाद 2005
5. सिंह उदयभान, भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था, प्रभात प्रकाशन नई दिल्ली, 2019
6. सिन्हाद डॉ0 अजय कुमार, राष्ट्रीय एकता एवं मानवाधिकार, उत्कर्ष पब्लिशर्स एवं डिस्ट्रीब्यूटर, कानपुर 2018
7. https://nhrc.nic.in |