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वर्षा की परिवर्तनशीलता एवं उसका कृषि क्षेत्र पर प्रभाव: अलवर जिले के विशेष सन्दर्भ में | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Variability of Rainfall and Its Impact on Agriculture Sector: With Special Reference to Alwar District | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
16897 Submission Date :
2022-12-03 Acceptance Date :
2022-12-16 Publication Date :
2022-12-19
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सारांश |
वर्षा किसी भी अर्थव्यवस्था का एक प्रभावी कारक है। जिसका प्रभाव कृषि, पशुपालन तथा वन संसाधनों पर दिखाई देता है। यह अपने आप में एक विशालकाय संसाधन है,जो सभी क्षेत्रों में सहायक का कार्य करती है। बदलते परिवेश एवं जलवायु परिवर्तन की दशाओं के फलस्वरूप विगत वर्षों में साल दर साल वर्षा की मात्रा और वितरण में परिवर्तन देखा गया है, जिसका सर्वाधिक प्रभाव कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता सहित सिंचित क्षेत्र पर भी देखा गया है।
विश्व भर में वर्षा की मात्रा व वितरण में भिन्नता देखी जाती है, पृथ्वी पर औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा 97 सेमी. है, को संवहनीय, पर्वतीय और चक्रवातीय रूप में देखी जाती है। भारत में वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून के रूप में वर्षा ऋतु में मुख्यत: होती है, साथ ही उ. पू. मानसून और पश्चिमी विक्षोभ भी प्रभावी है, जहां औसत वार्षिक वर्षा 125 सेमी. है। राजस्थान प्रदेश में वर्षा की कमी के साथ असमान वितरण देखा जाता है, जहां वर्षा औसत वार्षिक रूप में 57 सेमी. देखी जाती है। राजस्थान का अलवर जिला वर्षा के वितरण में भिन्नता लिए है, जो सर्वाधिक कोटकासिम ब्लॉक और न्यूनतम टपूकड़ा और मुंडावर ब्लॉक में देखी जाती है, जो प्रत्येक वर्ष के मानसून में कम या अधिक होती रहती है। अलवर जिला सर्वाधिक वर्षा द. प. मानसून व कुछ मात्रा पश्चिमी विक्षोभ (मावठ) के द्वारा प्राप्त करता है। अतः वर्षा के वितरण व मात्रा के आधार पर परिवर्तन देखा जाता है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Rainfall is an effective factor in any economy. Whose effect is visible on agriculture, animal husbandry and forest resources. It is a huge resource in itself, which acts as a helper in all fields. As a result of the changing environment and climate change conditions, changes have been observed in the amount and distribution of rainfall year after year in the past years, the maximum impact of which has been seen on agricultural production and productivity as well as in the irrigated area. There is variation in the amount and distribution of rainfall around the world, the average annual rainfall on the earth is 97 cm. Is seen in convectional, mountain and cyclonic form. Rainfall in India is mainly in the rainy season in the form of South-West Monsoon, as well as in E.P. Monsoon and western disturbances are also effective, where the average annual rainfall is 125 cm. It is Uneven distribution is seen in the Rajasthan region with rainfall deficiency, where the average annual rainfall is 57 cm. It is seen Alwar district of Rajasthan has a variation in the distribution of rainfall, which is maximum in Kotkasim block and minimum in Tapukara and Mundawar block, which is more or less in the monsoon of each year. Alwar district receives maximum rainfall. From Monsoon and receives some amount through Western Disturbance (Mavath). Therefore, changes are seen on the basis of distribution and quantity of rainfall. |
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मुख्य शब्द | वर्षा का वितरण, वर्षा की मात्रा, परिवर्तनशीलता, कृषि पर प्रभाव। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Distribution of Rainfall, Amount of Rainfall, Variability, Impact on Agriculture. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
अलवर जिला अरावली पर्वतमाला की गोद में बसा है, जिसका भौगोलिक विस्तार 27°03' से 28°14' उत्तरी अक्षांश (137 कि.मी.) एवं 76°07' से 77°13' (110 कि.मी.) पूर्वी देशांतर के मध्य देखा जाता है। यह राजस्थान राज्य के उत्तर- पूर्वी भाग में अवस्थित है,जो अरावली के उत्तरी भाग के रूप में देखा जाता है। इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 8380 वर्ग कि.मी. (2.45 प्रतिशत) है। अलवर जिले की सीमा उत्तर में जिला मेवात (हरियाणा), दक्षिण-पूर्व में भरतपुर, दक्षिण में दौसा, पश्चिम व दक्षिण-पश्चिम में जयपुर जिले से लगी हुई है, जो चतुर्भुज आकार में दिखाई देता है। अलवर जिला मुख्यालय जयपुर और दिल्ली से क्रमश: 150 कि.मी. और 175 कि.मी. दूरी पर स्थित है। दिल्ली-मुंबई आर्थिक गलियारा (DMIC) इसके मध्य से गुजरता है, जो निर्माणाधीन है। मानक समुद्र तल से ऊंचाई यहां 271 मी. है, साथ ही अरावली यहां 450 मी. से 700 मी. की ऊँचाई लिए है। यहां उदयनाथ, हर्षनाथ, भानगढ़, बिलाली, खो पर्वत चोटियां देखी जा सकती है। इस क्षेत्र में रूपारेल, साबी, बाणगंगा, सोल, चुहार आदि नदियां बहती हैं तथा कुछ नदियों का जलग्रहण क्षेत्र विद्यमान है।
कोपेन के अनुसार यह क्षेत्र मानसूनी प्रकार की जलवायु का क्षेत्र है। यहां औसत वार्षिक तापमान 25.4° सेल्सियस है, तथा 637 मिमी. वार्षिक वर्षा देखी जाती है। सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य प्राकृतिक संसाधनों की अमूल्य धरोहर है। यहां पर बाजरा, ज्वार, गेंहूँ, जौ, दाल और सब्जियां उगाई जाती हैं, जिनका स्थान नगदी फसलें लेती जा रही हैं। यहां मृदा का स्वरूप पुरातन जलोढ मृदा, लाल रेतीली मृदा और भूरी पर्वतीय मृदा के रूप में देखा जाता है| जनगणना 2011 के अनुसार अलवर जिले की कुल जनसंख्या 36,74,179 है, जिसमें पुरुषों का भाग 57 प्रतिशत और महिलाओं का भाग 43 प्रतिशत की संख्या में है। यहां पर जनसंख्या का घनत्व 438 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है, लिंगानुपात 895 प्रति हजार पुरुषों पर तथा साक्षरता दर 75.22 प्रतिशत है। यह जिला 16 तहसीलों में बंटा हुआ है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. अध्ययन क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति का अध्ययन करना।
2. अध्ययन क्षेत्र में वर्षा की परिवर्तनशीलता का कृषि सिंचित क्षेत्र पर प्रभाव का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | शोध कार्य से संबंधित साहित्य का अध्ययन करना तथा पुस्तकों, जर्नलों, पत्रिकाओं आदि की समीक्षा करना जिस से बेहतर शोध कार्य किया जा सके। इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण विवरण निम्नानुसार है। कुमार लोकेश (2010), ने योजना पत्रिका में 'बदलते समय के साथ बदलती खेती' विषय पर लिखे लेख में वर्णित किया की वर्षा के स्वरूप में आया बदलाव कृषि पर
भी प्रभाव छोड़ता है, जिस से वर्षा की मात्रा के आधारपरही फसल प्रारूप बदलता है। लेख में देखा गया
है की सूखे के प्रति सहनशील फसलों का रकबा बढ़ा है, जो विगत वर्षों में वर्षा की कमी को दर्शाता है। ओझा (2010), इन्होंने अपने लेख में पानी तथा ऊर्जा की बचत के तौर पर नवीन कृषि सिंचाई
विधियों के प्रयोग को बताया, इसके अंतर्गत फव्वारा सिस्टम और बूंद-बूंद सिंचाई के प्रोत्साहन का विचार
दिया। इसके माध्यम से फसल को बेहतर पानी उपलब्धता होगी। इस हेतु सरकारी अनुदान भी
दिया जाता है। सिंह वाई पी (सितंबर,2016), ने 'मध्य भारत में बारानी खेती का विकास' में वर्णित किया की सिंचाई स्रोतों के स्तर पर कमी के कारण
वर्षा आधारित कृषि पर अधिक निर्भरता रहती है, इसका प्रभाव कृषि जोत, उत्पादन, उत्पाकता पर देखा जाता है। राव श्रीनिवास सीएच (2017), ने अपनी पुस्तक 'वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों की समस्याएं एवं समाधान' में बतायाकि वर्षा के दिनों तथा
उसकी निरंतरता का प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक रूप से कृषि पर देखा जाता है।
अत्यधिक वर्षा फसलों में गलन लेकर आती है, साथ ही वर्षा के दिनों में कमी का प्रभाव सूखे को बढ़ाता
है।विगत वर्षों में वर्षा में बदलाव देखा जाता रहा है, मानसून में कमी/आधिक्य होता
रहता है। डॉ. शिवे वाई. एस. और डॉ. सिंह टीकम (सितंबर 2020) ने 'कुरुक्षेत्र पत्रिका' में अपने लेख 'स्मार्ट कृषि के लिएउन्नत
कार्यप्रणालियां' में जीआईएस और जीपीएस के माध्यम से वर्षा जल के कुशल प्रबंधन के लिए नूतन
प्रणालियां यथा-खेत में जलाशय, का प्रयोग किये जाने हेतु सुझाव दिए। इसके माध्यम से वर्षा जल की कमी के
बावजूद भी कृषि क्षेत्र को बढ़ाया जा सकेगा। भास्कर भुवन (2022) ने अपने लेख 'कृषि कारोबार के बढ़ते अवसर' में लिखा की सैटेलाइट मैपिंग के माध्यमसे किसानों को सिंचाई
के संदर्भ में खेत की बेहतर स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। खेत की मिट्टी
सेनिकलने वाली ऊष्मा और गैस का विश्लेषण कर खेत की जरूरत को समझा जा सकेगा, इसमें ड्रोन तकनीक के उपयोग की
बात भी की गई। |
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न्यादर्ष |
अध्ययन कार्य को पूर्ण करने के लिए मैंने प्राथमिक एवं द्वितीयक आकड़ों का उपयोग किया। प्राथमिक आकड़ो की प्राप्ति हेतु प्रश्नावली, साक्षात्कार एवं प्रत्यक्ष अवलोकन किया गया। द्वितीयक आंकड़ो की प्राप्ति विभिन्न पूर्व सम्पादित अध्ययन साहित्य, पुस्तकों, वार्षिक एवं मासिक पत्रिका, योजना, कुरुक्षेत्र एवं राजस्थान सांख्यिकीविभाग से प्राप्त आंकड़ो के संश्लेषण-विश्लेषण के द्वारा संपादित किया गया है। |
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अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी | प्रस्तुत अध्ययन को पूर्ण करने के लिए विभिन्न सांख्यिकी विधियों यथा मानचित्रण, सारणियन, सहसंबंध विधिका उपयोग किया गया। द्वितीयक आकड़ो के आधार पर वर्षा के आकड़ो से वर्षा की परिवर्तनशीलता एवं कृषि सिंचित क्षेत्र का सह्सम्बंधात्मक विश्लेषण किया गया है। |
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विश्लेषण | प्रस्तुत अध्ययन के लिए आंकड़ो से प्राप्त विश्लेषण के लिए शोधकर्ता द्वारा वर्ष 2006-07 से वर्ष 2020-21 तक के कुल सिंचित क्षेत्र के आंकड़ो एवं औसत वार्षिक वर्षा के आकड़ो का अध्ययन किया। सारणी: अलवर जिले में वर्षा का वितरण एवं कुल सिंचित क्षेत्र|
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निष्कर्ष |
अध्ययन विश्लेषण के दौरान निम्न मुख्य तथ्य सामने आये-
1. सामान्यत सभी वर्षों में वर्षा में वृद्धि के साथ कृषि सिंचित क्षेत्र में बढोतरी हुई है, अत: यहाँ सकारात्मक सहसंबंध देखा जा सकता है।
2. कुछ वर्षो वर्ष 2010-11, वर्ष 2009-10, वर्ष 2014-15, 2017-18 एवं 2019-20 में वर्षा की मात्रा राज्य की औसत वार्षिक वर्षा एवं जिले में अन्य वर्षो में प्राप्त वर्षा से कम वर्षा प्राप्त हुई लेकिन अध्ययन के दौरान देखा गया की वर्षा की मात्रा कम होने के बावजूद सिंचित क्षेत्र में तुलनात्मक रूप से बढोतरी दर्ज की गई है जिसका मुख्य कारण सिचाई के साधनों में ट्यूबवेल एवं कुओं की बढती मात्रा है।
3. अलवर जिले का अधिकांश भाग एन.सी.आर. एवं औद्दोगिक क्षेत्र में आता है अत उधोगो के कच्चे माल हेतु कृषि उत्पादन बढाने के प्रयास स्वरुप लगातार सिचित क्षेत्र एवं उत्पादन में वृद्धि दर्ज की गई।
4. विगत वर्षो में वर्षा के स्वरूप में परिवर्तन देखा गया है। वर्षा की मात्रा में कमी दर्ज की गई जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन का सक्रिय होना माता जाता है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | प्रस्तुत अध्ययन के दौरान पता चलता है की अलवर क्षेत्र में वर्षा की परिवर्तनशीलता देखने को मिलती है जिसके त्वरित समाधान हेतु कृषको द्वारा आंतरिक जल का अत्यधिक उपयोग कुओ एवं ट्यूबवेल के माध्यम से किया जा रहा है जिसका दुष्प्रभाव भूजल स्तर में गिरावट के रूप में देखा जा रहा है। भविष्य में भूजल के अभाव में स्थिति विकट होने का खतरा देखा जाता है। समाधान हेतु कृषको को वर्षा जल को पारंपरिक विधियों यथा कुंडा, नाडा, टोबा, फार्म पोंड इत्यादि द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए जिससे जल के धरातलीय स्वरुप का पेयजल एवं कृषि सहित अन्य गतिविधियों में उपयोग लिया जा सके। साथ ही सरकार द्वारा चलाई जा रही राजीव गाँधी खेत तलाई योजना, फार्म पोंड योजना, कुसुम योजना का कृषको तक लाभ पहुचाये। पूर्वी राजस्थान में चलाई जा रही पूर्वी नहर परियोजना को शीघ्र पूर्ण कर क्षेत्र को लाभ प्रदान किया जा सकता है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. सांख्यिकी विभाग, राजस्थान।
2. जिला सांख्यिकी कार्यालय, अलवर।
3. जल संसाधन विभाग, राजस्थान।
4. जल ससाधन भूगोल- आर.के.गुर्जर एवं वी.सी. जाट ।
5. एम. राजीव कुमार, वर्षा की परिवर्तनशीलता का कृषि क्षेत्र पर प्रभाव: सवाई माधोपुर जिले की बामनवास तहसील का अध्ययन।
6. पत्रिका- भूगोल और आप, योजना एवं कुरुक्षेत्र। |