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अजमेर में जलरंग चित्रकला का विकास | |||||||
Development of Watercolor Painting in Ajmer | |||||||
Paper Id :
16907 Submission Date :
2022-12-02 Acceptance Date :
2022-12-19 Publication Date :
2022-12-25
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सारांश |
विश्व इतिहास मे 1775 ईस्वी में जल रंग तकनीक का परिचय सम्पूर्ण विश्व को सर्वप्रथम जोसफ टर्नर ने करवाया तथा भारत में जलरंग तकनीक का परिचय अंग्रेजों के द्वारा करवाया गया। मद्रास, कलकत्ता व लखनऊ जैसे आर्ट स्कूल में जलरंग चित्रण तकनीक को प्रारम्भ किया गया। राजस्थान में जलरंग तकनीक का सर्वप्रथम परिचय असित कुमार हलधर व शैलेन्द्रनाथ डे जैसे कलाकारों ने करवाया। रामगोपाल विजयवर्गीय और उनसे प्रभावित अन्य समकालीन वरिष्ठ अथवा किशोर कलाकार बंगाल शैली की तकनीक से प्रभावित होकर चित्रण करने लगे ऐसे चित्रकारों में श्री देवकीनन्दन शर्मा, श्री रामनिवास वर्मा, श्री गहलोत, रंजीतसिंह चूड़ावाला प्रमुख हैं।
अजमेर की जलरंग तकनीक ने एक नए आयाम को स्थापित किया राम जैसवाल के सानिध्य में। हालांकि इस से पूर्व आर. सी. सांखलकर के सानिध्य में प्रथम बार जलरंग तकनीक से अवगत करवाया गया था, किन्तु उस दौर में पूर्ण शुद्धता की कमी परिलक्षित होती है। प्रस्तुत शोध पत्र में अजमेर के पारदर्शी जलरंग तकनीक के विकास पर चर्चा की गयी है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | In 1775 AD, water color technique was first introduced to the whole world by Joseph Turner and water color technique was introduced in India by the British. The technique of watercolor painting was introduced in art schools like Madras, Calcutta and Lucknow. The first introduction of watercolor technique in Rajasthan was done by artists like Asit Kumar Haldar and Shailendranath Dey. Ramgopal Vijayvargiya and other contemporary senior or juvenile artists influenced by him started painting under the influence of the technique of Bengal style, Mr. Devkinandan Sharma, Mr. Ramnivas Verma, Mr. Gehlot, Ranjitsinh Chudawala are prominent among such painters. Ajmer's watercolor technique established a new dimension under the guidance of Ram Jaiswal. Before this, however, R. for the first time in the company of R.C. Sankhalkar, the watercolor technique was introduced first time in the company of R.C. Sankhalkar, but the lack of complete accuracy is reflected in that period. In the presented research paper, the development of transparent water color technique of Ajmer has been discussed. |
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मुख्य शब्द | एनिमल स्केच, पारदर्शी जलरंग, मुखर, जलरंगिय कौशल तथा फ्लॉवर स्टडीज। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Animal Sketches, Transparent Watercolours, Vocal, Watercolor Skills and Flower Studies. | ||||||
प्रस्तावना |
विश्व की चित्रकला के इतिहास में पारदर्शी जलरंग चित्रण का इतिहास पुराना नहीं है | 1775 में जोसफ विलियम टर्नर नाम से ब्रिटिश चित्रकार ने जल रंगों में चित्रण आरम्भ किया। इस समय के चित्रकारों ने पोट्रेट्स, एनिमल स्केच और प्रकृति के विभिन्न हिस्सों को जलरंगों के साथ चित्रित किया है | चित्रण तथा तूलिका के पारदर्शी स्पर्श द्वारा इस तकनीक में चित्रकारों ने एकेडेमिक अध्ययन अधिक प्रस्तुत किये हैं। वैटवर्क और वाटर कलर फ्लो टेकनिक का प्रयोग भी पश्चिमी चित्रकारों ने तकनीकी सौन्दर्य की प्रस्तुति के उद्देश्य से किया है। माध्यम की दृष्टि से देखें तो इंग्लैण्ड, जापान व चीन में भी जलरंगीय चित्रण अधिक हुआ है। इंग्लेंड के प्रसिद्ध चित्रकार टर्नर के दृश्य चित्र पारदर्शी जलरंग तकनीक के शानदार उदाहरण है जिसमें पुराने महल, किले, बादल, वृक्ष जलरंगीय पारदर्शिता तथा रंगों की ताजगी के साथ चित्रित किये हैं। पारदर्शी जलरंग तकनीक में टर्नर का अनुसरण करने में अन्य चित्रकार सार्जेट, ट्रेडकाउज, कॉस्टेबल इत्यादि का नाम प्रमुख है। सर डब्ल्यू. रसल पिलट पाश्चात्य जल रंगीय चित्रण के इतिहास में टर्नर के समान ही निपुण चित्रकार है। इनके चित्रों में भी यह प्रभाव है। जलरंगीय कौशल उसी निपुणता के साथ साकार हुआ | जलरंगीय चित्रण के इसी क्रम में चित्रकार जे.पी. कवान व आर. फोलेण्ड का नाम भी उल्लेखनीय है। पश्चिम के इन सभी चित्रकारों ने जलरंगों में प्रकृति के उनके प्रभाव तो रूपायित किये ही हैं, साथ ही जलरंगीय प्रभाव लाने के लिए उल्लेखनीय और अनुकरणीय कार्य किए है। उनकी यह परम्परा आगे चलकर प्रवाहित होती हुई पश्चिमी शासन के साथ भारत आयी।
भारत में ब्रिटिश शासन आरम्भ होने पर अंग्रेज शासकों ने कला के क्षेत्र में भी विभिन्न महानगरों में आर्टस स्कूल की स्थापना की अथवा उनकी स्थापना में सहयोग किया यथा मद्रास स्कूल ऑफ आर्ट जहाँ ई. बी. हैवेल को अपने साथ लाकर वहाँ प्राचार्य नियुक्त किया। इसी के समानान्तर कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट व लखनऊ स्कूल ऑफ आर्ट शुरू किये गए। मुंबई में सर जे.जे.स्कूल ऑफ आर्ट स्कूल स्थापित किया गया। इन आर्ट स्कूलों में पश्चिमी परम्परा की शिक्षा पद्धति से चित्रकार दीक्षित किये जाते थे और जलरंग, तैलरंग, टैम्परा इत्यादि इन सभी माध्यमों में पश्चिमी पद्धति का यथार्थवादी चित्रण करवाया जाता था। इनमें मद्रास स्कूल, कलकत्ता स्कूल तथा सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट बाम्बे में जलरंगीय चित्रण भी सिखाया जाता था। पश्चिमी शैली का जलरंगीय चित्रण का प्रचलन मद्रास स्कूल ऑफ आर्ट, कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट, लखनऊ स्कूल ऑफ आर्ट में समान स्तर पर हुआ। कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट से यथार्थवादी परम्परा में जलरंगीय शैली में चित्रण करने वाले चित्रकारों में डी. पी. राय चौधरी का नाम प्रमुख है। इन्हीं के समान्तर सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट मुम्बई से दीक्षित त्यागराज भाइयों का कार्य भी सराहनीय हैं। लखनऊ स्कूल ऑफ आर्ट्स में फ्रेंक वेजली, आर. एस. विष्ट का नाम यथार्थवादी दृश्य चित्रण व पोर्टेट चित्रण करने के लिए विख्यात हुआ और यह परम्परा स्वतन्त्रता के कई दशक बाद तक चलती रही तथा जलरंगीय चित्रण भारत में पश्चिमी दृष्टिकोण से विषय का कौशलपूर्ण माध्यम बना रहा।
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अध्ययन का उद्देश्य | चयनित शोध-पत्र के अध्ययन के निम्न उद्देश्य है -
1.अजमेर की जलरंग चित्रकला के विकास पर विवरण प्रस्तुत करना।
2.अजमेर में कार्यरत जलरंग चित्रकारों के विवरण को प्रस्तुत करना।
3.विश्व पटल पर जलरंग चित्रकला के विकास को जानना।
4.भारत में हुये जलरंग तकनीक के विकास को प्रस्तुत करना।
5.राजस्थान में जलरंग तकनीक को प्रसारित करने वाले कलाकारों के बारे में जानना। |
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साहित्यावलोकन | डॉ. रीता
प्रताप की पुस्तक ‘भारतीय चित्रकला व मूर्तिकला का इतिहास’ में भारतीय चित्रकला के व मूर्तिकला के
इतिहास पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी है। रत्न चन्द्र सांखलकर की पुस्तक ‘आधुनिक चित्रकला का इतिहास’
में विश्व की आधुनिक चित्रकला
पर विस्तारपूर्वक विवरण प्रस्तुत किया गया। प्रो. सुभाष प्रवास द्वारा मराठी लिखित
पुस्तक ‘भारत के महान् चित्रकार’ मे भारत के चित्रकारों पर विवरण प्रस्तुत किया गया है।
गोपाल गर्ग द्वारा रचित मोनोग्राफ ‘राम जैसवाल’ जिसका प्रकाशन ललित कला अकादमी द्वारा
किया गया। मोनोग्राफ में राम जैसवाल के कलात्मक जीवन व कलात्मक कार्यों पर चर्चा
की गयी है। प्रकाशक अरुणा शेखावत द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘कला किरण’ के 1997 वर्ष के दूसरे अंक में राम जैसवाल के कला
जीवन और अजमेर के कला संगठन ‘अलंकृति'’ द्वारा प्रदर्शित प्रदर्शनी का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
लेखक डॉ. स्निग्धा दत्ता द्वारा रचित ‘र.वि. सांखलकर: व्यक्तित्व,
विचार एवं उनकी कला यात्रा’
में रत्नाकर विनायक सांखलकर के
जीवन परिचय पर विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। |
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मुख्य पाठ |
राजस्थान में जलरंग चित्रकला राजस्थान
में जलरंगीय चित्रण का विकास देश की स्वतन्त्रता के बाद नजर आता है। जयपुर के
महाराज सवाई राजा राम सिंह द्वितीय के कार्यकाल (1825-1830) के दौरान 1857 में
मदरसा-ए-हुनरी यानी कला प्रशिक्षण देने के लिए संस्थान शुरू किया। 1886 में इसका
नाम बदलकर महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स कर दिया गया। 1988 में इसका नाम
बदलकर राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स कर दिया गया।[1] आसित कुमार हलधर व शैलेन्द्रनाथ डे
जैसे कलाकारों ने महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट में चित्रकारों को दीक्षित किया। महाराजा
स्कूल ऑफ आर्ट्स में बंगाल स्कूल के प्रमुख चित्रकारों के आने से बंगाल चित्र शैली
का प्रभाव प्रचलित हुआ। पदम् श्री रामगोपाल विजयवर्गीय के जलरंग चित्रण में बंगाल
स्कूल का प्रभाव परिलक्षित होता है। विषय वैविध्य,
अभिव्यंजना की खोज तथा चित्रण
की मौलिकता ने उन्हे अपनी शैली की पहचान दी।[2] सामाजिक,
धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन पर
आधारित और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ तत्कालीन जीवन शैली पर भी कई चित्र बनाए।[3] रामगोपाल
विजयवर्गीय और उनसे प्रभावित अन्य समकालीन वरिष्ठ अथवा किशोर कलाकार बंगाल शैली की
तकनीक से प्रभावित होकर चित्रण करने लगे।
ऐसे चित्रकारों में श्री
देवकीनन्दन शर्मा, श्री रामनिवास वर्मा, श्री गहलोत, रंजीतसिंह चूड़ावाला प्रमुख हैं। इस समय की चित्रकारों में जलरंग कार्य करने
वालों में पद्मश्री कृपालसिंह शेखावत का नाम भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। 20 वीं
शदी के तीसरे चौथे दशक में कुछ चित्रकार कला क्षेत्र में दीक्षित होने के लिए
राजस्थान से बाहर गये इन चित्रकारों में पिलानी के श्री भूरसिंह शेखावत का नाम
अग्रणी है। उन्होंने अपनी चित्रकला की दीक्षा सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स मुम्बई से
सम्पन्न की। वहां से लौटकर वे पिलानी में ही एक संस्था में अध्यापक नियुक्त हो गये
और उन्होंने यहाँ के तत्कालीन चित्रकारों को एकत्रित करके एक सृजन समूह भी गठित
किया। आरम्भ में इन्होनें जलरंग माध्यम में कार्य करवाया था।[4] जलरंगीय माध्यम में
आरम्भ में चित्रण करने वाले राजस्थान के चित्रकारों में अधिक उल्लेखनीय कार्य करने
वालों के अधिक नाम नहीं है किन्तु भूरसिंह शेखावत जी के समकालीन चित्रकार रामनिवास
गर्ग इन्होंने भी कुछ समय तक जलरंगीय पद्धति में चित्रण किया। अजमेर में जलरंग चित्रकला का विकास अजमेर में
चित्रकला का वातावरण मेयो कॉलेज, सावित्री कॉलेज तथा दयानन्द कॉलेज अजमेर के कारण पहले से था
और तब तक यहाँ चित्रकला की शिक्षा स्कूली विषय के रूप में अथवा डिग्री कॉलेज में
एक विषय के रूप में शिक्षा का विषय बना हुआ था। अजमेर के कई चित्रकार राज्य स्तर
पर प्रतिष्ठित हुए और कालान्तर में कला के उच्च अध्ययन के उद्देश्य से विदेश गये
तथा अपनी प्रतिष्ठा के आधार पर वहीं बस गये इन चित्रकारों में श्री प्रहलाद
जांगिड़ तथा डॉ. ओमदत्त उपाध्याय का नाम प्रमुख हैं। ओमदत्त उपाध्याय वर्तमान में
अमेरिका के निवासी है तथा वहीं अध्यापन कार्य कर रहे हैं। चित्रकला का सशक्त
वातावरण यहाँ 1964 से आरम्भ हुआ यद्यपि मेयो कॉलेज में नियुक्त श्री भवानी चरण गुई
का नाम प्रदेश और देश के बाहर चर्चित और प्रतिष्ठित था परन्तु उनका सृजन वातावरण
एक प्रकार से मेयो कॉलेज तक ही सीमित था। दयानन्द महाविद्यालय,
अजमेर को राजस्थान राज्य के
सबसे प्राचीन एवं एकमात्र प्रतिष्ठित महाविद्यालय के रूप में ख्याति प्राप्त है। महान्
योगी स्वामी दयानन्द सरस्वती जी की शिक्षा व मूल्यों के प्रचार- प्रसार के लिए सन्
1942 में स्थापित इस महाविद्यालय में विद्यार्थी एवं समाज उपयोगी शिक्षा प्रदान
की जा रही है।[5] 1964 में जब स्थानीय दयानन्द कॉलेज के चित्रकला विभाग में स्नातकोत्तर
स्तर पर चित्रकला का उच्च अध्ययन आरम्भ हुआ और विभाग के छात्र-छात्रा कलाकार नगर
में स्केचिंग करने के लिए निकलते अथवा दृश्य चित्रण के उद्देश्य से निकलते तो
चित्रकला का परिवेश अधिक मुखर हो जाता। इन दिनों चित्रकला विभाग के अध्यक्ष प्रो.
रत्नाकर विनायक साखंलकर थे। इनका जलरंगीय कौशल उतना उल्लेखनीय नहीं है जितना उनके
दृश्य चित्रों का परन्तु फिर भी जल रंगीय चित्रण की निरन्तरता जलरंगों में उनकी
रूचि को प्रभावित करती है और वे अजमेर के 20 वीं सदी के मध्य के उन चित्रकारों में
से हैं जिन्होंने जलरंगीय चित्रण को रूचि और कलात्मकता के साथ अपने सृजन में उतारा
है। अजमेर में जलरंग चित्र परंपरा का शुद्ध रूप दयानन्द कॉलेज के चित्रकला विभाग
में राम जैसवाल की नियुक्ति के पश्चात प्रारम्भ हुआ। पारदर्शी जलरंग में उन्होने
विशेष ख्याति अर्जित की। जब इनकी नियुक्ति दयानन्द कॉलेज के चित्रकला विभाग संयोजन
तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं में दृश्य चित्रण तथा व्यक्ति चित्रण के अध्ययन व अध्यापन
का दायित्व मिला। स्नातकोत्तर कक्षाओं में जलरंगीय चित्रण की परम्परा श्री राम
जैसवाल की विशेष रूचि का कारण बनी और बहुधा अध्यापकों के व्यक्ति चित्र चित्रित
करते अथवा उनके साथ दृश्य चित्रण पर निकल जाते। स्नातकोत्तर अध्ययन तथा अध्यापन
में यहाँ के चित्रकला विभाग में जलरंगीय चित्रण इस सृजन प्रक्रिया से चित्रण के
समग्र प्रभाव के साथ स्थापित हुआ। अजमेर के प्रमुख जलरंग चित्रकार अजमेर की
जलरंग चित्रकारों मे कुछ ख्यातिलब्ध कलाकारों का संक्षिप्त परिचय -राम जैसवाल-
अजमेर में जलरंग चित्रकला के शुद्धतम स्वरूप को राम जैसवाल ने ही हम सबके समक्ष
प्रस्तुत किया तथा अजमेर को जलरंग तकनीक में नयी पहचान दिलायी। राम जैसवाल का जन्म
5 सितंबर 1937 ई. को उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के छोटे से कस्बे ‘सादाबाद’ के मध्यम वर्गीय परिवार मे हुआ।[6] 1953 में इन्होंने
लखनऊ फाइन आर्ट कॉलेज में प्रवेश लिया।[7] इन्होंने लखनऊ के मेडिकल कॉलेज, दयानन्द कॉलेज आदि मे अपनी सेवाए प्रदान
की। सर्वोच्च कला सम्मान कलाविद से सम्मानित किए जा चुके है। कहानीकार के रूप में
भी आपकी ख्याति है। उनकी राजस्थान में चित्रित व्यक्ति चित्रों की संख्या 200 से
अधिक है और ये रूचि पूर्वक चित्रित किये गये है। अतः उनका चित्रण कौशल मुखर हुआ और
चित्रण नितान्त पारदर्शी जलरंगीय शैली में चित्रित है। जलरंगीय पोट्रेटस के
अतिरिक्त उनका और अधिक व्यापक जलरंगीय चित्रण यहाँ के दृश्य चित्रों का जयपुर,
बूँदी,
उदयपुर इत्यादि नगरों के
विभिन्न स्थल उनकी गलियों, बाजार और बाजार में कोलाहल उत्पन्न करते नगरीय जलरंगों की ताजगी और विविधता के
साथ चित्रित हुए हैं। राम जैसवाल ने अपने दृश्य चित्रों में वर्षा,
धूप,
कोहरा,
धूल इन सब के प्रभावों को
पारदर्शी जलरंगों में कौशल के साथ रूपायित किया है। उनके जलरंगीय दृश्य चित्रों की
श्रृंखला में एक और कोहरे के वातावरण का धुंध का वातावरण किसी पारदर्शी चादर सा
बना हुआ है। इन के
प्रमुख चित्रों में ‘कस्बे मे सुबह’ दूसरी ईद, प्रणय, वियोगी शिव, खंडित दर्प, राम तथा समुन्द्र संदर्भ आदि है। इनकी कला मे बंगाल स्कूल का भी प्रभाव था।[8] राम जैसवाल 14
जुलाई 1997 मे दयानन्द कॉलेज, अजमेर में चित्रकला विभाग के अध्यक्ष पद
पर सेवानिवृत्त हुये। शेमेन्द्र जडवाल- आपका जन्म
7 नवंबर 1944 को हुआ। इन्होंने दयानन्द कॉलेज अजमेर से अध्ययन किया। राम जैसवाल
तथा रत्नाकर सांखलकर जैसे कला गुरुओं का साथ मिला। आपने जलरंग तकनीक,
ऑयल तकनीक तथा अमूर्त चित्रण
(कोलाज) में कार्य किया। इन्होंने पेड़ के छाया वाले भाग तथा झोपड़ियों के आसपास
वाले वातावरण को शानदार तरीके छितरिता किया। आपके द्वारा चित्रित सूरजमुखी चित्र
अतीव सुंदर है। डॉ.
सविन्द्र सिंह चुग - इनका जन्म 11 जून 1950 को पेशावर शहर के सिक्ख परिवार में
हुआ। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय इनका परिवार पाकिस्तान छोडकर शिमला
में रहने आ गया। चित्रकला में इनकी विशेष रुचि जलरंग दृश्य व फ्लॉवर स्टडी में थी।
इन्होनें अपनी स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा दयानन्द कॉलेज अजमेर से पूरी की।
इन्होनें ‘कैनवास-ग्रुप’ द्वारा आयोजित चित्र प्रदर्शनी में निरंतर भाग लेते रहे एवं ललित कला परिषद्
दयानन्द कॉलेज द्वारा 1971 से 1973 तक सम्मानित होते रहें। अनुपम भटनागर- आपका जन्म 9 नवंबर 1955 को हापुड़ (उत्तर
प्रदेश) में हुआ। आपने अपनी सेवाये दयानन्द कॉलेज के चित्रकला विभाग में
प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाए प्रदान की। आपने विभिन्न पोतों (शेड्स) के
प्रयोग में से आकार निरूपित करके चित्रण किया। इन्होनें अपनी शिक्षा व कला शिक्षा
उत्तर प्रदेश के सहारणपुर से पूर्ण की। डॉ. चित्रा भटनागर- राजस्थान की महिला चित्रकारों में राष्ट्र व राज्य स्तर पर चयनित चित्रकारों
में दीपिका हाजरा के बाद दूसरी कलाकर डॉ. चित्रा भटनागर है। आपने दयानन्द कॉलेज,
अजमेर से स्नातकोत्तर परीक्षा
स्वर्ण पदक के साथ उत्तीर्ण की। आपने आरंभिक कार्यों में जलरंग तकनीक पर कार्य
किया किन्तु बाद के समय में आपने मॉडर्न आर्ट को महत्व दिया। अजमेर तथा जयपुर के
ललित कला अकादमी में आपने अपनी प्रदर्शनी आयोजित कर राजस्थान के नारी चित्रकारों
में विशेष स्थान बना लिया। बिरदीचंद गहलोत- राम
जैसवाल ने कला के जो पक्ष निरूपित किए उन्ही को आगे बढ़ाते हुये आपने कला के विकास
क्रम को जारी रखा है। 6 नवंबर 1956 को आपका जन्म अजमेर में हुआ। आपने दयानन्द
कॉलेज से मास्टर ऑफ आर्ट का कोर्स ड्राइंग में पूरा किया। फ्लॉवर स्टडीज़ पर अपना
शानदार चित्रण कार्य इन्होनें प्रस्तुत किया है। बी.सी. गहलोत ने सफेद फूलों को
ताजगी और कोमलता से चित्रित किया है। घनी पंखुड़ियों का समूह फूलों के रूप
प्रस्तुति को स्पर्शनीय प्रभाव के साथ प्रस्तुत करता है। गहलोत की कलाकृतियों
राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत रही हैं। ये कृतियाँ राजकीय संस्थानों एवं
निजी संग्रहों में संकलित है। वर्तमान में आप शैक्षिक प्रोद्योगिकी विभाग राजस्थान
अजमेर में प्राध्यापक तथा निरन्तर चित्रकला जगत् में साधनारत रहते चित्रकला के पद
पर आसीन हुए अपने ज्ञान में परिपक्वता की स्वर्णिम आभा विकसित करने के लिए अनवरत
रूप से जुटे हुए है। प्रहलाद शर्मा- अजमेर के
चित्रकला जगत में श्री प्रहलाद शर्मा का पदार्पण 1983 से हुआ। श्री प्रहलाद शर्मा
ने स्नातक तथा स्नातकोत्तर परीक्षाऐ दयानन्द कॉलेज के चित्रकला विभाग से उत्तीर्ण
की अतः यह स्वाभाविक ही था कि अपने पूर्ववर्ती छात्र कलाकारों की परम्परा तथा
विभाग के वातावरण का प्रभाव निश्चित आना था। प्रहलाद शर्मा के चित्रों की एक अलग
ही पहचान है क्योंकि इन्होंने कला को एक नया आयाम दिया है। इनके चित्रों की
प्रदर्शनियाँ राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर हुई है और चर्चित रही है। इन्होंने विभिन्न सामूहिक चित्र
प्रदर्शनियों में भाग लिया है तथा निरन्तर अपने चित्रों को प्रदर्शनियों में
सम्मिलित कर रहे हैं। इन्हें अपने अध्ययन काल में ही पुरस्कारों से सम्मान प्राप्त
होने लग गया था यथा इन्हें स्नातक तृतीय वर्ष में श्रेष्ठ व्यक्ति चित्रण पुरस्कार,
स्नातकोत्तर प्रथम वर्ष में
श्रेष्ठ दृश्य चित्रण पुरस्कार व स्नातक उत्तरार्ध में श्रेष्ठ जीवन चित्रण का
प्रथम पुरस्कार इत्यादि प्राप्त हुये। इनके चित्रों का निजी संग्रहण भारत एवं भारत
के बाहर विदेशों में भी है। डॉ. महेंद्र सिंह- आपके आरंभिक चित्रो में राम जैसवाल का प्रभाव नजर आता है क्योकिं आपने अपने
स्नातकोत्तर स्तर का अध्ययन दयानन्द कोलेज, अजमेर में राम जैसवाल सर के निर्देशन मे
पूर्ण किया। आपके जलरंग तकनीक में चित्रित चित्रों में भवन,
गलिया,
छाया व प्रकाश का प्रभाव था।
आपने तेल रंगों में बड़े आकार के स्टील लाइफ चित्र भी बनाए। वर्तमान में आप जलरंग
तकनीक में कार्य कर रहे हैं। डॉ. अर्चना राज- आपका
जन्म 24 दिसम्बर 1965 को जयपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। इनके पिता बहुत
ही सरल हृदय एवं आदर्शवादी व्यक्तित्व के धनी है। वे राजकीय सेवा में सहकारी विभाग
में सहायक रजिस्ट्रार के पद से सेवा मुक्त हुए हैं। आप खाली समय में अक्सर
ग्रिटिंग कार्ड पर रेखा चित्र बनाती रहती थी। घर में रखी हुई अनुपयोगी वस्तुओं को
ये अपनी कला कौशल से नया रूप दे देती थी। डॉ. अर्चनाराज 1994 में राजकीय सेवा में
आयी। 1996 में आपका चयन कॉलेज शिक्षा में हुआ। किशनगढ़ के स्थानीय नागरीदास कला
संस्थान की ओर से 2004 में आपको कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए
सम्मानित किया गया। विद्यार्थी जीवन में आप अपने गुरू डॉ. वीरबाला भावसार के सरल
व्यक्तित्व और अनूठे कृतित्व से बहुत प्रभावित रही। उनके मार्गदर्शन में काम
करते-करते अर्चना जी को डॉ. वीरबाला के चित्रों में प्रयुक्त रेत ने बहुत प्रभावित
किया। आगे चलकर अर्चना जी ने भी अपने चित्रों में समुद्री रेत को अपने चित्रों में
उकेरा। डॉ. अर्चनाराज ने जल और तैल दोनों प्रकार के माध्यमों में कार्य किया है। रत्नाकर विनायक सांखलकर- आपका जन्म 28 फरवरी 1918 को रत्नागिरी (महाराष्ट्र) नामक नगर में हुआ। आपने
कला की शिक्षा जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से फाइन आर्ट में पूर्ण की।[9] 1953 में दयानन्द
कॉलेज के चित्रकला विभाग में शिक्षक के रूप में प्रवेश लिया। 1964 में श्री
दत्रोतय के सहयोग से स्नात्तकोत्तर स्तर पर चित्रकला विभाग को उन्नत किया। 1978
में चित्रकला विभाग से सेवानिव्रत्त होने से पूर्व अपने 25 वर्ष के कार्यकाल के
दौरान कई छात्रों को परिशिक्षित किया। राजस्थान विश्वविधालय व वनस्थली विश्वविधालय
में स्नातक व स्नाकोत्तर विभाग में कला शिक्षा के आदर्श निर्धारित किये। इन्होनें
दयानन्द कॉलेज, अजमेर में प्रचुर मात्रा में जलरंग दृश्य चित्रण किया। इनका जलरंग कौशल इतना
उल्लेखनीय नहीं लेकिन इनकी जलरंग तकनीक मे विशेष रुचि थी।
अजमेर के अन्य चित्रकारों में अशोक हाजरा, अमित राजवंशी, सविन्द्र सिंह चुग, लक्ष्यपाल सिंह, तिलकराज, चित्रा भटनागर तथा प्रह्लाद शर्मा का नाम उल्लेखनीय हैं जिन्होंने जलरंग तकनीक के विकास को जारी रखा है। 20 अक्टूबर से 25 अक्टूबर 1997 में अजमेर संभाग के “अलंकृति” आर्टिस्ट ग्रुप के द्वारा ‘अलंकृति चित्र प्रदर्शनी 97' का आयोजन जवाहर कला केन्द्र, जयपुर में किया गया। इससे पहले इन कलाकारों की प्रदर्शनी ‘केनवास-आर्टिस्ट ग्रुप’ के नाम से होती थी। इस ग्रुप के 9 सदस्यों के 36 चित्रों का प्रदर्शन इस प्रदर्शनी में किया गया। इस ग्रुप के वरिष्ठ सदस्यों में श्री राम जैसवाल, सविन्द्र सिंह चुग व डॉ. बंशी शर्मा थे।[10] इस प्रदर्शनी में रवींद्र दौसाया का चित्र ‘गौफन’ इनकी सुंदर रचनाओं में से एक है। जलरंग तकनीक में निर्मित ‘पिपिंग रेज’ तिलकराज की सुंदर रचना थी जिसमें प्राक्रतिक चित्र को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया। अलंकृति ग्रुप में चर्चित जलरंग तकनीक के प्रमुख चित्रकार ग्रुप के वरिष्ठ सदस्यों में श्री राम जैसवाल, सविन्द्र सिंह चुग, डॉ. बंशी शर्मा एवं तरूण कलाकारों में पवन कुमावत, कमल वर्मा, डॉ. अर्चना, सविन्द्र सिंह चुग, आशा भार्गव, तिलकराज व बी. सी. गहलोत है। चित्र संख्या- 1. चेड़विक फाल शिमला (राम जैसवाल) चित्र संख्या- 2. ब्रम्हा मंदिर पुष्कर (बी.सी. गहलोत) |
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निष्कर्ष |
अजमेर की जलरंग तकनीक ने एक नए आयाम को स्थापित किया विशेषकर राम जैसवाल के सानिध्य में। हालांकि इस से पूर्व आर.वी. सांखलकर के सानिध्य में प्रथम बार जलरंग तकनीक से अवगत करवाया गया किन्तु उस दौर में पूर्ण शुद्धता की कमी परिलक्षित होती है। प्रस्तुत शोध पत्र में अजमेर के पारदर्शी जलरंग तकनीक के विकास पर चर्चा करते हुए तब से लेकर आज तक के अजमेर कलाकारों के जीवन, उनके कृतित्व का अध्ययन कर प्रस्तुत किया है। श्री राम जैसवाल, रत्नाकर विनायक सांखलकर, सविन्द्र सिंह चुग, अशोक हाज़रा, शेमेन्द्र जडवाल, गहलोत, अनुपम भटनागर, लक्ष्यपाल सिंह, तिलकराज, चित्रा भटनागर, अमित राजवंशी तथा प्रह्लाद शर्मा का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने जलरंग तकनीक के विकास कम या अधिक सहयोग देते हुए इसको जारी रखा है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. दैनिक भास्कर : 1886 में मदरसा-ए-हुनरी का नाम रखा गया महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, https://www.bhaskar.com/RAJ-JAI-HMU-MAT-latest-jaipur-news-045003-1412838.html/
2. प्रताप, डॉ. रीता : भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, पृ.सं. – 407.
3. पवार, प्रो. सुभाष एकनाथ : महान भारतीय चित्रकार, 10/1 आर्टिस्ट विलेज, सेक्टर- 7, पृ.सं. – 131.
4. प्रताप, डॉ. रीता : भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, पृ. सं. – 415.
5. दयानन्द महाविद्यालय ओफ़िशियल साइट : महाविद्यालय इतिहास,
https://www.davajmer.org/DAV/college-info
6. प्रताप, डॉ. रीता : भारतीय चित्रकला एवं मूर्तिकला का इतिहास, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, पृ.सं. – 429.
7. गर्ग, गोपाल : राम जैसवाल, मोनोग्राफ, राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर, पृ.सं. – 2.
8. शेखावत, अरुणा : कला किरण, त्रैमासिक पत्रिका, राम जैसवाल, वर्ष– 1, अंक- 2, जयपुर पब्लिकेशन, जयपुर, पृ.सं. – 14.
9. दत्ता, डॉ. स्निधा : र.वि. सांखलकर : व्यक्तित्व, विचार एवं कला यात्रा, राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, पृ.सं. – 2.
10. शेखावत, अरुणा : कला किरण, त्रैमासिक पत्रिका, राम जैसवाल, वर्ष– 1, अंक- 2, जयपुर पब्लिकेशन, जयपुर, पृ.सं. – 8. |