P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- IV December  - 2022
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री रणनीति
Maritime Strategy of India in the Indian Ocean Region
Paper Id :  16851   Submission Date :  2022-12-16   Acceptance Date :  2022-12-22   Publication Date :  2022-12-25
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विकास कुमार
शोध-छात्र
राजनीति विज्ञान
स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर (वी0बी0एस0 पूर्वांचल विश्वविद्यालय)
जौनपुर,उ0प्र0, भारत
सारांश
हिन्द महासागर क्षेत्र का रणनीतिक महत्व सामान्यतः विश्व व्यवस्था और विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में लगातार बढ़ रहा है। आईओआर में भारत की केन्द्रीय स्थिति इसे बहुत लाभ देती है, लेकिन साथ ही साथ कही अधिक चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करती है। एक सुरक्षित आईओआर क्षेत्र भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की कुंजी है। इसी वजह से भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह हिन्द महासागर क्षेत्र में एक मजबूत सामरिक और समुद्री रणनीति अपनाने की जरूरत है। जिससे भारत के वास्तविक इरादे को स्पष्ट रूप से वर्णित रणनीति और एक अच्छी तरह से परिभाषित क्षमता विकास रोडमैप द्वारा समर्थित होने की आवश्यकता है। यह उनके इरादे को विश्वसनीयता प्रदान करेगा और उनके समुद्री और राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करेगा। ‘‘जो कोई भी हिन्द महासागर पर नियंत्रण रखेगा, एशिया पर उसी का प्रभाव होगा। यह महासागर सातों समुद्रों की कुंजी है। 21वीं सदी में विश्व की नियति इससे तय की जायेगी।’’
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The strategic importance of the Indian Ocean region in the world order in general and the Indian subcontinent in particular is growing steadily. India's central position in the IOR gives it great advantages, but also presents far greater challenges. A secure IOR region is key to ensuring the security of India's national interests. For this reason, it is necessary for India to adopt a strong strategic and maritime strategy in the Indian Ocean region. Thereby, India's real intent needs to be supported by a clearly stated strategy and a well-defined capability development roadmap. This would lend credibility to their intent and secure their maritime and national interests.
“Whoever controls the Indian Ocean will have influence over Asia. This ocean is the key to the seven seas. The destiny of the world in the 21st century will be decided by it.
मुख्य शब्द केन्द्रीय, प्रस्तुत, नियति, नियंत्रण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Central, Submission, Destiny, Control.
प्रस्तावना
हिन्द महासागर में भारत की केन्द्रीय अवस्थिति है क्योंकि हिन्द महासागर विश्व में सम्पर्क का एक महत्वपूर्ण पहलू है। हिन्द महासागर क्षेत्र (आई0ओ0आर0) में शक्ति के बदलते स्वरूप ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है। हिन्द महासागर की भौगोलिक अवस्थिति उत्तर-अटलांटिक एवं एशिया-प्रशांत के बीच माल के आवागमन एवं व्यापार सम्बन्धों की वजह से इसे महत्वपूर्ण बनाती है। हिन्द महासागर क्षेत्र में समृद्ध वनस्पति, जीव और खनिज तत्व मौजूद है जिसके फलस्वरूप आईओआर देशो के बीच प्रतिस्पर्द्धा के लिए एक केन्द्र बना गया है। हिन्द ‘महासागर’ की विशाल सुरक्षा व्यवस्था तथा शासन सम्बन्धी चिन्ताओं ने पिछले कुछ दशकों में इसे और अधिक अशांत और जोखिम भरा बना दिया है। हिन्द महासागर, भारत के लिए महत्वपूर्ण भू-सामरिक महत्व रखता है। भारत का स्थान उसे हिन्द महासागर क्षेत्र के बदलते भू-सामरिक एवं भू-राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करता है। भारत की तटरेखा 7500 कि0मी0 से अधिक है, कुल 1200 से अधिक द्वीप समूह और ईईजेड का लगभग 20 लाख वर्ग कि0मी0/समुद्र द्वारा कुल तेल आयात, अपट्टीय तेल उत्पादन और पेट्रोलियम निर्यात, तेल के लिए देश की संचयी समुद्री निर्भरता 93% होने का अनुमान है। आज भारत के व्यापार का लगभग 95% मात्रा और 68% व्यापार द्वारा मूल्य हिन्द महासागर के माध्यम से भेजा जाता है। वाणिज्यिक यातायात के प्रवाह में किसी भी बाधा का उसके आर्थिक उद्देश्यों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। भारत हिन्द महासागर के संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिसमें मत्स्य और जलीय कृषि उद्योग निर्यात का एक प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ 14 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। इतनी लम्बी तटरेखा की उपस्थिति भारत समुद्र से उत्पन्न होने वाले सम्भावित खतरों के प्रति संवेदनशील बनाती है। भारत के समुद्री शासन के प्रयासों में इसकी तटरेखा और इसके द्वीपों की सुरक्षा दोनों महत्वपूर्ण है।
अध्ययन का उद्देश्य
1. हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत के राष्ट्रीय हितों का विश्लेषण करना। 2. आई.ओ.आर. में भारत द्वारा क्षेत्रीय देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा और शान्ति एवं स्थिरता का विश्लेषण करना। 3. हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री रणनीति का विश्लेषण एवं अवलोकन करना।
साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोध पत्र के सम्बन्ध में उपलब्ध साहित्य का अवलोकन एवं समीक्षा भी की गई है, जिसमें अनेक पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करना तथा कम्प्यूटर के माध्यम से आनलाइन वेबसाइट का भी अध्ययन किया गया है। इसमें विशेष रूप से आर.एस.सिवाच एवं सतीश कुमार की पुस्तक ‘‘हिन्द महासागर एवं भारत की सामुद्रिक सुरक्षा’’ श्री साई प्रिन्टोग्रारज, नई दिल्ली-2021, में हिन्द महासागर की भौगोलिक एवं सामरिक स्थिति का, भारत की समुद्री नीति के विकास का विश्लेषण किया गया है। हरी शरण एवं हर्ष कुमार सिन्हा की पुस्तक ‘‘हिन्द महासागर चुनौतियाँ एवं विकल्प’’ प्रत्यूष पब्लिकेशन्स दिल्ली-2018, में हिन्द महासागर के तटवर्ती देश, क्षेत्रीय संगठन, भारत की नौसैनिक क्षमता, तैयारियाँ एवं रणनीति के विश्लेषण पर विचार-विमर्श किया गया। फ्रेडेरिक ग्रारे एण्ड जीन-लूप समान की पुस्तक ‘‘द इंडियन ओशन  एज ए न्यू पॉलिटिकल एण्ड सिक्योरिटी रीजन’’ स्प्रिंगर नेचर पब्लिकेशन्स स्विटजरलैंड-2022 में हिन्द महासागर में समुद्री सहयोग एवं रणनीतिक सम्बन्धों पर विचार-विमर्श प्रस्तुत किया गया है। उपर्युक्त सर्वेक्षण एवं साहित्य के अध्ययन की निरन्तरता की दिशा में प्रस्तुत शोध-पत्र एक गम्भीर एवं सारगर्भित प्रयास है। 

प्रस्तुत शोध-पत्र में हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री रणनीति का विस्तृत रूप से विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया गया।   

मुख्य पाठ

भारत लम्बे समय से हिन्द महासागर क्षेत्र में निष्क्रिय खिलाड़ी रहा है। हालांकि हाल की वर्षो में ही भारत ने इस क्षेत्र की समकालीन भू-राजनीतिक और भू-सामरिक वास्तविकताओं के सम्बन्ध में अधिक प्रतिक्रियाशील और व्यावहारिक समुद्री रणनीति अपनाई है। वर्ष 2008 में हुए मुम्बई आतंकवादी हमलों के फलस्वरूप भारत की छवि को काफी धक्का पहुँचाया था अर्थात इस हमले के बाद भारत की तटीय सुरक्षा व्यवस्था और महासागरीय क्षेत्र की बेहद सीमित जानकारी की चिन्ताजनक स्थिति हमारे सामने आयी। इस आतंकवादी हमले ने भारत को अपनी सागरीय रणनीति को नये सिरे से परिभाषित करने के लिए विवश किया जिसकी वजह से समुद्र में होने वाली घटनाओं के जमीनी स्तर पर व्यापक प्रभाव की अहमियत को समझने में आसानी हुई। इसी कारण से वर्ष 2008 से ही भारत सरकार लगातार सागरीय सुरक्षा को मजबूत करने की दृष्टि से हिन्द महासागर क्षेत्र पर विशेष ध्यान दे रही है। हिन्द महासागर क्षेत्र में विशेष रणनीतिक बढ़ंत को हासिल करने के लिए भारतीय नौसेना ने वर्ष 2015 में एक रणनीतिक विजन सागर’ (Security and Growth For All in the Region- SAGAR) प्रस्तुत किया। वर्तमान में भारत सरकार इसी रणनीतिक विजन पर कार्य कर रही है।

वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार ने हिन्द महासागर को अपनी विदेश नीति में प्रमुख स्थान दिया है। श्री मोदी ने पिछले 5 वर्षों में हिन्द महासागरीय तटीय देशों तथा द्वीपीय देशों की प्रमुखता से यात्रा किया है तथा सागरीय सुरक्षा एवं सहयोग पर गम्भीरता पूर्वक कार्य किया है। भारत सरकार पूरे हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में भारतीय हितों तथा सागरीय हितों की सुरक्षा हेतु सचेत तथा कार्यरत है।  अपनी सुरक्षा चिंताआंें की रक्षा के लिए सरकार द्वारा की गई पहल इस क्षेत्र में भारत के इरादों को दर्शाती है। नई दिल्ली की सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि हिन्द महासागर क्षेत्र में उसका एजेंडा जुड़ाव व टिकाऊ प्रकृति का है। मैरीटाइम इंडिया समिट 2016 के उद्घाटन अवसर पर ही माननीय प्रधानमंत्री ने भारतीय सामुद्रिक दृष्टिके बारे में विस्तार से चर्चा किया था। 21वीं शताब्दी में भारत सागरीय शक्ति, विकास एवं विस्तार हेतु गम्भीरतापूर्वक कार्यरत है। वाइस एडमिरल प्रदीप चौहान के अनुसार भारत की समुद्री कूटनीति भारत के समुद्री हितों के प्रचार, खोज व संरक्षण का प्रतीक है।

भारत का समुद्री विकास उसके आर्थिक विकास का पूरक होगा। आईओआर में नए सिरे से दृष्टिकोण को क्षेत्र के विकास एवं समृद्धि और भारत के महत्वपूर्ण राष्ट्रीय आर्थिक हितों को बढ़ावा देने पर केन्द्रित है। सागरमाला परियोजना, बन्दरगाह के नेतृत्व वाले विकास पर जोर देने के लिए शुरू की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य एक मजबूत बन्दरगाह, बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना और व्यापार एवं आर्थिक विकास में उनके महत्व के कारण उनका आधुनिकीकरण करना है। 26 अक्टूबर 2015 को नई दिल्ली में आयोजित नौसेना कमाण्डरों के सम्मेलन के दौरान तत्कालीन रक्षामंत्री श्री मनोहर परिकर ने सुरक्षित समुद्र सुनिश्चित करना: भारतीय समुद्री सुरक्षा रणनीति’ (आई एम एस एस-2015) शीर्षक से भारत की संशोधित समुद्री सैन्य रणनीति जारी की। यह दस्तावेज इस अवधारणा को परिभाषित करता है कि, ‘‘किसी क्षेत्र में उपलब्ध वास्तविक सुरक्षा की स्थिति, मौजूदा खतरों, अंतर्निहित जोखिमों और समुद्री वातावरण में बढ़ती चुनौतियों को संतुलित करने पर, इन सभी की निगरानी, नियंत्रण व मुकाबला करने की क्षमता के विरूद्ध है।’’ 

हिन्द महासागर रिम संगठन के सदस्यों के साथ भारत हिन्द महासागर में संसाधनों के सतत उपयोग को प्राप्त करने का प्रयास करता है। इसके अतिरिक्त ब्लू इकोनॉमी की अवधारणा ने सागरीय उर्जा, गहरे समुद्र में खनिज संसाधनों एवं जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों पर ध्यान आकर्षित किया है अर्थात यह पूरी तरह से ब्लू डिप्लोमेसी द्वारा समर्थित है। भारत समुद्र से उपलब्ध लाभो का उपयोग करने के लिए ब्लू डिप्लोमेसी में सक्रिय रूप से संलग्न है।

भारत द्वारा हाल ही के वर्षों में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष समुद्री नौवहन के लिए अधिक मुखर रहा है। भारत ने इस क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री विधि के मानको का पालन करने की आवश्यकता पर भी बल दिया है। आईओआर प्रमुख सुरक्षा चुनौतियों के लिए एक बिस्तर है। भारत को अपने प्रभुत्व का दावा करने के लिए एवं सुरक्षा खतरो का मुकाबला करने और तटवर्ती राष्ट्रो का विश्वास प्राप्त करने की आवश्यकता है। दक्षिण चीन सागर तथा हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति ने हाल ही में नई दिल्ली का ध्यान आकर्षित किया है। आतंकवाद और समुद्री डकैती, मादक द्रव्यों की तस्करी जैसे गैर-पारम्परिक सुरक्षा खतरे हिन्द महासागर में भारत की समुद्री नीति के प्राथमिक फोकस क्षेत्र है। क्योंकि मुम्बई आतंकी हमलो के पश्चात् से भारत सरकार को अपनी नौसैनिक सुरक्षा में अपनी कमजोरी का एहसास हुआ।

क्षेत्रीय सहयोग:

भारत सरकार ने हिन्द महासागर से सम्बन्धित मुद्दो में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए भारत की प्राथमिकता पर स्पष्ट रूख अपनाया है। हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत के लिए मौजूदा सरकार ने सागर पहलक्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा व विकास के माध्यम से स्पष्ट हुई जिसका उद्देश्य इसकी मुख्य भूमि एवं द्वीपों के समुद्री हितों की रक्षा करना है। वर्ष 2016 में अपनी मॉरीशस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने सभी आईओआर तटवर्ती राष्ट्रों को सम्बोधित करते हुए पहली बार सागरमिशनकी शुरूआत की, यह राष्ट्रों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देता है और शांति एवं स्थिरता के वातावरण बनाता है। यह आर्थिक विकास के साथ समुद्री सहयोग, नौसैनिक सुरक्षा के आपसी गठजोड़ का प्रतिनिधित्व करता है। यह इस महत्व को भी सामने लाता है कि तटवर्ती राष्ट्रो की तटरक्षक एजेन्सियों को गैर-राज्य अभिकर्ताओं द्वारा समुद्री डकैतों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए। सागर पहलका एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है कि जलवायु परिवर्तन की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए व्यापार, पर्यटन व बुनियादी ढाँचे में सहयोग को बढ़ाना है और इस प्रकार क्षेत्र के सतत् विकास को बढ़ावा देना है।

भारत के प्रधानमंत्री मोदी की सागर पहलरणनीति उनकी सक्रिय विदेश नीति का एक हिस्सा है। भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक अत्यधिक रणनीतिक कदम है। भारत आईओआर तटवर्ती राष्ट्रों के साथ अपने सम्बन्धों और द्विपक्षीय सम्बन्धों को बढ़ाना समुद्री शान्ति और सहयोग प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। हिन्द महासागर क्षेत्र का प्रमुख निर्णायकर्ता बनने की महत्वाकांक्षा भारत को अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध विकसित करने के लिए मजबूर करती है। भारत द्वारा अपने नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसीके एक अभिन्न अंग के रूप में सागर नीति, विस्मेटक, ऑसियान, आईओआर जैसे क्षेत्रीय संगठनों के कड़ी की माध्यम से कार्य करती है।

हिन्द महासागर रिम एसोसिएशन (आई00आर00) एक प्रमुख संगठन है। हिन्द महासागर रिम क्षेत्र के आकार में बड़े और लघु देश की जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक व आर्थिक अर्थों में असामान्य रूप से भिन्न है। हिन्द महासागर रिम में जनसंख्या के हिसाब से भारत की जनसंख्या 1.21 अरब से अधिक है जबकि मॉरीशस लगभग 15 लाख, सिंगापुर एक विकसित देश से लेकर मोजाम्बिक तक जो एक गरीब और अधिक जनसंख्या वाला देश है, इंडोनेशिया की जनसंख्या 20 करोड़ से भी अधिक मुस्लिम जनसंख्या है वही भारत जिसकी आबादी का मुख्य भाग हिन्दू धर्म को मानने वाला है, तथा इसाई धर्म के बहुमत वाले देशों जैसे दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया आदि के सम्बन्ध में हिन्द महासागर में भिन्नताएँ है। 

आई00आर0 में रिम संगठन हिन्द महासागर के राष्ट्रो को समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक साझा मंच पर लाता है।  ‘सागर पहलव्यापार तथा मत्स्य प्रबन्धन के एक सूत्रधार के रूप में आई00आर00 की भूमिका पर जोर देती है यह पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को और बढ़ावा देगा तथा ब्लू इकोनॉमी की धारणा को आकार प्रदान करेगा। भारत ने आईओआर में मानवीय सहायता और आपदा राहत क्षेत्र में कुछ सुधार किए है। भारतीय नौसेना ने अपने बचाव कार्यो और नौसेना सहायता मिशनों के सम्बन्ध में खुद को इस क्षेत्र में पहली प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में प्रस्तुत किया है।

विकास का सहयोगात्मक पहलू व्यापक समुद्री कूटनीति की तर्ज पर चलन में आता है। मार्च 2015 में प्रधानमंत्री मोदी की सेशेल्स, मॉरीशस तथा श्रीलंका की राजनयिक यात्राओं ने सागर पहलके कार्यान्वयन को बढ़ावा दिया। यह अनुमान लगाया गया था कि नई दिल्ली सरकार क्षमता निर्माण और क्षमता वृद्धि कार्यक्रमों में अपने नेतृत्व के माध्यम से एक पारदर्शी समुद्री वातावरण बनाने के लिए तैयार है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द द्वारा मॉरीशस, मेडागास्कर और जिबूती की अन्य शीर्ष स्तरीय राजनयिक यात्राओं का उद्देश्य नौसेना सहयोग को मजबूती प्रदान करना है। हिन्द महासागर नौसेना संगोष्ठी और भारत, श्रीलंका व मालदीव त्रिपक्षीय समझौता भी इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण है।

आईओआर में नेट सिक्युरिटी प्रोवाइडरबनने का भारत का लक्ष्य आधिकारिक तौर पर तब शुरू हुआ जब भारत ने मॉरीशस को पहला मेड इन इण्डियायुद्धपोत का निर्यात किया। भारत ने सेशेल्स, मालदीव, मॉरीशस, बांग्लादेश और श्रीलंका में तटीय निगरानी नेटवर्क बनाने की भी माँग की है। जबकि भारत के पहले से ही मालद्वीप, मॉरीशस और सेशेल्स के साथ अच्छे रक्षा और सुरक्षा सम्बन्ध है। वह दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के अन्य देशों में अपनी पहुँच का विस्तार करना चाहता है। भारत द्वारा अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसीको बढ़ावा देने के लिए व्यापक प्रयास किए है। यह क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए आसियान देशों को एक महत्वपूर्ण कदम मानता है। इस क्षेत्र की भारत की उपेक्षा आर्थिक रूप से मंहगी रही है। हालांकि पूर्वी एशियाई देशों के साथ इसके नए सिरे से जुड़ाव न केवल एशियाई एकजुटता को बढ़ावा देगा बल्कि आर्थिक और समुद्री सम्बन्धों को भी बढ़ाएगा। आसियान-भारत समुद्री परिवहन समझौता भारत और वियतनाम के बीच सीधे शिंपिग मार्ग विकसित करने के लिए बातचीत कर रहा है। दक्षिण चीन सागर में चीन और कुछ पूर्वी एशियाई देशों के बीच सम्बन्धों में बढ़ती खटास के साथ भारत को समुद्री सहयोग को बढ़ावा देने का मौका दे   रहा है।

अन्तर्राष्टीय मंच पर शांगरी ला डायलॉग के 2009 के संस्करण में श्री राबर्ट गेट्स जो उस समय यू0एस00 के रक्षा सचिव थे ने व्यक्त किया कि ‘‘हम भारत को एक भागीदार और नेट के रूप में देखते है। हिन्द महासागर और उसके बाहर सुरक्षा प्रदान करने वाला।’’  इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के चतुर्भुज रक्षा समीक्षाके 2010 संस्करण में दोहराया गया था, जिसमें कहा गया था कि, ‘‘जैसे-जैसे इसकी सैन्य क्षमताएं बढ़ेगी, भारत हिन्द महासागर और उसके बाहर एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में एशिया में योगदान देगा।’’  हालांकि 23 मई 2013 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह द्वारा गुड़गाँव में भारतीय राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (आई0एन0डी0यू0) की आधारशिला रखने के बाद एक सभा को सम्बोधित करते हुए इस आशय की स्पष्ट रूप से घोषणा की गई थी। उसने बोला ‘‘हम एक कठिन पड़ोस में रहते है, जिसमें पारम्परिक, रणनीतिक और गैर-पारम्परिक चुनौतियों की पूरी श्रृंखला है। हमने हिन्द महासागर क्षेत्र में स्थिरता के लिए अपनी-अपनी जिम्मेदारी संभालने की माँग की है। इसलिए हम अपने तत्काल क्षेत्र और उसके बाहर सुरक्षा के शुद्ध प्रदाता बनने के लिए अच्छी तरह से तैनात है।  शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में इस भूमिका की स्वीकृत अब पसन्द के मामले के बजाय एक रणनीतिक दायित्व बन गई है। यूरोपीय ब्लॉक में औद्योगिक मंदी और चीन व अमेरिका के बीच व्यापार युद्धों के खतरे से घिरे एक अशांत वैश्विक आर्थिक माहौल के बीच, भारत उन कुछ देशों में से एक है जो आर्थिक विकास की लगभग निरन्तर दर दर्ज करने में सक्षम है। भारत को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में उभरती हुई वैश्विक शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। यह स्वीकृत अपने साथ अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का एक समान स्तर लेकर आती है। हालांकि मौजूदा क्षमता में प्रत्यक्ष शून्य को देखते हुए चल रही आंतरिक बहस भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री शिवशंकर मेनन द्वारा की गई टिप्पणियों में गूँजती है जब उन्होंने कहा, माँग है कि भारत सुरक्षा का शुद्ध प्रदाता हो और हमें उस पर निर्णय लेने की आवश्यकता है। 

वर्तमान में नई दिल्ली, हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती पैठ को लेकर काफी सतर्क है, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है। चीन की स्ट्रिंर्ग ऑफ पर्ल्सरणनीति के जवाबी कार्यवाही के रूप में, भारत अपनी चावहार बन्दरगाह परियोजना के लिए ईरान के साथ सक्रिय रूप से जुड़ा है, क्योंकि यह खाड़ी व्यापार में लाभ प्रदान कर सकता है। मुख्य रूप से इस क्षेत्र से बड़े पैमाने पर उर्जा आयात के लिए पोर्ट कनेक्टिीविटीबढ़ाने के लिए एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) प्रगति पर हैं।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध-पत्र में ऐतिहासिक विवरणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है। यह अध्ययन मूल रूप से द्वितीयक स्रोतों से संकलित सामग्री पर आधारित है। समाचार पत्रों एवं पाक्षिक, मासिक, अर्द्धवार्षिक शोध पत्रिकाओं, जनरल्स आदि में उपलब्ध सूचनाओं एवं समीक्षाओं को संकलित किया गया है।
निष्कर्ष
भारत अपनी भू-सामारिक एवं भू-रणनीतिक शक्ति के कारण हिन्द महासागर में एक प्रमुख अभिनेता है। हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरने और इस क्षेत्र में समुद्री स्थिरता के भविष्य के प्रक्षेपवक्र को प्रभावित करने की क्षमता मौजूद है। भारत द्वारा अन्य तटीय देशों के समर्थन से इस क्षेत्र में एक मुक्त व्यापार आंदोलन बनाने की क्षमता है जो छोटे देशों को बड़े बाजारों तक पहुँचने में मदद करेगी। आईओआर को मानवीय राहत प्रदान करने एवं आपदा प्रबन्धन कार्यों में भारतीय नौसेना की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करने में इसका एक फायदा है। भारत को अपने संसाधनों के निष्कर्ष के मामले में इस क्षेत्र में पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि खनिजों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों की विशाल उपलब्धता आईओआर में आर्थिक विकास के लिए एक सम्पत्ति है। भारत को अपनी विशाल उर्जा आवश्यकताओं के साथ, अपनी नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने की तत्काल जरूरत है तथा साथ-साथ बजटीय मुद्दो पर ध्यान देना आवश्यक है। बजट की कमी के कारण भारत की समुद्री विकास योजनाएँ बाधित है। इस क्षेत्र में ढाँचागत विकास में भारत की सहायता के लिए कुछ मध्य शक्तियों एवं विकसित देशों के साथ तेजी से सहयोग कर रहा है। भारत को अपने समुद्री फोकस में सुधार के लिए व्यावहारिक रूप से काम करना चाहिए और इसके लाभों का प्रभावी ढंग से उपयोग करना चाहिए। भारत ने समुद्री शासन का भविष्य आशाजनक प्रतीत होता है लेकिन वर्तमान स्थिति सुधार का संकेत देती है। भारत को व्यापक सागरीय जुड़ाव के माध्यम से आईओआर में अपनी ठोस स्थिति पर जोर देना चाहिए। लेकिन आकार के साथ जिम्मेदारी आती है एवं अभूतपूर्व स्थिति के साथ, भारत को महासागरों के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समुद्री सहयोग के अग्रदूत के रूप में सामने आने की जरूरत है। आई0ओ0आर0 की सुरक्षा महत्वपूर्ण है और एक जिम्मेदार और समावेशी समाधान के लिए रणनीतिकारों पर ठोस व परिणाम उन्मुख सागरीय नीतियां तैयार करने की जरूरत है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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