|
|||||||
भारत में ग्रीन एकाउटिंग का वर्तमान परिदृश्य- एक विश्लेषणात्मक अध्ययन | |||||||
Current Scenario of Green Accounting in India - An Analytical Study | |||||||
Paper Id :
16987 Submission Date :
2023-01-05 Acceptance Date :
2023-01-21 Publication Date :
2023-01-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
|
|||||||
| |||||||
सारांश |
भारत में पर्यावरणीय लेखांकन (ग्रीन एकाउटिंग) अभी तक प्रारम्भिक अवस्था में है जो कमोबेश सम्बन्धित नियमों व विनियमों की पालना का लेखा दर्शाता है जब तक भारत के आम लोग पर्यावरण सुरक्षा के प्रति जागरूक नहीं होंगे तब तक इस दिशा में लेखांकन का विकास या संदिग्ध ही रहेगा।
भारत में आज भी आम लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरुकता का बहुत अभाव है, इसके लिए यह जरूरी भी है और यह समय की मांग है कि नियमों द्वारा सुदृढ़ पर्यावरण नीति तैयार की जाये, प्रदूषण नियंत्रण हेतु कदम उठाये जायें, इस सम्बन्ध में बनाये गये नियमों-विनियमों की पालना हो तथा वार्षिक विवरणों में पर्यावरणीय पहलुओं पर पर्याप्त विस्तृत विवरण दिया जाये तथा इसको लेकर नियमों पर परिवर्तन किया जाये, जिसे देश के महत्वपूर्ण विकास के लिए एक सुपरिभाषित पर्यावरण नीति उसकी उचित पालना एवं उचित लेखांकन प्रक्रिया होनी अनिवार्य है।
भारत जैसे विकासशील देशों को आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देना व पर्यावरण का संरक्षण जैसी दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के बीच सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है। विकास के वांछित स्तर व पर्यावरण गिरावट की सुरक्षित सीमा के बीच पर्यावरण हानि की लागत व लाभों का सावधानीपूर्वक निर्धारण आवश्यक है। पर्यावरणीय लेखांकन एक नई लेखांकन पद्धति भारत के लिए है परन्तु विदेशों में यह बहुत पहले से ही चलन में है, इसके लिए भारत में वर्तमान परिदर्श का अध्ययन किया जाना अति आवश्यक है, जिससे भारत को भी इसका लाभ मिल सके।
|
||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Environmental accounting (green accounting) in India is still in its nascent stage which more or less refers to the accounting of the compliance of related rules and regulations. Until the common people of India are not aware of environmental protection, the development of accounting in this direction will remain doubtful. In India even today, there is a lot of lack of awareness among the common people about the environment, for this it is also necessary and it is the need of the hour that a strong environmental policy should be prepared by rules, steps should be taken for pollution control, In this regard, rules and regulations should be followed and sufficient detailed description should be given on environmental aspects in the annual statements and changes should be made on this, which is essential for the important development of the country to have a well defined environmental policy, its proper compliance and proper accounting procedure. Developing countries like India are facing the twin problems of promoting economic development and protecting the environment. It is necessary to establish harmony between development and environmental protection. Careful balancing of the benefits and costs of environmental damage between the desired level of development and the safe limits of environmental degradation is necessary. Environmental accounting is a new accounting method for India, but it is already in practice in foreign countries, for this it is very important to study the current scenario in India, so that India can also get its benefit. |
||||||
मुख्य शब्द | पर्यावरणीय लेखांकन, जागरुकता, परिदृश्य, विकास, पर्यावरण। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Environmental Accounting, Awareness, Landscape, Development, Environment. | ||||||
प्रस्तावना |
पर्यावरणीय लेखांकन को एक कम्पनी की व्यावसायिक क्रियाओं की पर्यावरणीय दक्षता एवं पर्यावरणीय संरक्षण क्रियाओं की आर्थिक दक्षता की माप के उपकरण के रूप में कार्य करने की आवश्यकता है। इनके द्वारा महत्वपूर्ण बाहरी पर्यावरण प्रभावों को ध्यान में रखते हुए लाभों का एक हिस्सा पर्यावरण के उसी पूर्व स्तर को बनाये रखने के लिए अलग छोड़ना निर्धारित करना होगा, जो लेखांकन अवधि के प्रारम्भ में था।
इस प्रकार के लेखांकन सरल नहीं हैं क्योंकि पर्यावरण की हानि का सही-सही मौद्रिक माप नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा यह निश्चित करना बहुत कठिन है कि किसी उद्योग विशेष से पर्यावरण को कितनी हानि हुई है। इस उद्देश्य के लिए केवल अनुमानित विचार ही किया जा सकता है या गैर नक्करणीय प्राकृतिक संसाधनों की हानि का अन्य तरीकों से अनुमान लगाया जा सकता है, जैसे वनों को काटकर कितने वर्ग मीटर को व्यापारिक कार्यों के लिए उपयोग में लाया गया, कितना ठोस कचरा कारखाने द्वारा उत्पादित किया जाये, चिमनी द्वारा कितनी दूषित वायु छोडी व उसमें किस प्रकार के दूषित तत्व शामिल हैं, कारखाने द्वारा ध्वनि प्रदूषण की मात्रा कितनी है आदि प्रयोग में लिये जा सकते हैं।
|
||||||
अध्ययन का उद्देश्य | भारत में पर्यावरण या हरित (Green) एकाउटिंग एक ऐसा क्षेत्र है जो ऐसे तत्वों पर प्रकाश डालता है जो पर्यावरण तथा प्राकृतिक संसाधनों की हानि तथा लाभ के बारे में जानकारी उपलब्ध हो सके। इस शोध कार्य के निम्नलिखित उद्देश्य प्रस्तावित हैं -
1. पर्यावरणीय या ग्रीन एकाउटिंग के बारे में विस्तृत अध्ययन व विश्लेषण करना।
2. ग्रीन एकाउटिंग का भारत में वर्तमान परिदर्श का अध्ययन करना।
3. ग्रीन एकाउटिंग का वैधानिक ढांचे तथा व्यावहारिक पहलू का अध्ययन करना।
4. पर्यावरणीय लेखांकन हेतु बुनियादी ढांचे का सुझाव देना। |
||||||
साहित्यावलोकन | ग्रीन एकाउटिंग के महत्व के बारे में एक इन्टरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस रिसर्च आइडिया इनोवेशन इन टेक्नोलोजल में ’’ए स्टडी ऑन द ईपोर्टेंस ऑफ ग्रीन एकाउटिंग’’ में सुझाव दिया है कि यह बहुत ही आवश्यक है कि ग्रीन एकाउटिंग और रिपोर्टिंग के बारे में जागरूकता व्यापारिक संगठन के साथ-साथ आम जनता में जागरूकता बढ़ाई जाये। ग्रीन एकाउटिंग के बारे में IOSR जर्नल ऑफ बिजनेस और मैनेजमेण्ट में एक शोध पत्र ’’ए स्टडी ऑन ग्रीन एकाउटिंग एण्ड इट्स प्रटैक्सस इन इण्डिया’’ में इसके तीन महत्वपूर्ण कारक जनता, लाभदायकता च्संदज के बारे में बताया गया है। उच्चतर लेखांकन- उच्च्तर लेखांकन आरबीडी पब्लिशिंग हाउस, जयपुर द्वारा प्रकाशित पुस्तक में जैन, खण्डेलवाल तथा पारीक ने भी कहा है कि ग्रीन एकाउटिंग के बारे में विस्तृत अध्ययन करने तथा अनिवार्य रूप से आम जनता में इसके लिए जागरूकता से ही इसका उपयोग बढ़ेगा। |
||||||
सामग्री और क्रियाविधि | इस शोध कार्य को सम्पादित करने में द्वितीय आंकड़ों, सूचनाओं, विभिन्न पुस्तकों, जर्नल, पत्र व पत्रिकाएं, समाचार-पत्रों तथा शोध कार्य से सम्बन्धित वेबसाइटों का उपयोग इस शोध कार्य को बेहतर और अच्छा करने में लिया गया है। |
||||||
विश्लेषण | पर्यावरणीय
लेखांकन या ग्रीन एकाउटिंग- ग्रीन एकाउटिंग एक प्रकार
का लेखा जोखा है जो परिचालन के वित्तीय परिणामों में पर्यावरणीय लागतों को हल करने
का प्रयास करता है। यह तर्क दिया गया है कि सकल घरेलू उत्पाद पया्रवरण की अपेक्षा
करता है और इसलिए नीति-निर्माताओं को एक संशोधित माॅडल की आवश्यकता होती है, जिसमें हरित लेखांकन या ग्रीन एकाउटिंग सिस्टम का
महत्वपूर्ण योगदान है। इस शब्द को पहली बार अर्थशास्त्री और प्रोफेसर पीटर वुड ने 1980 के दशक में लाया था। भारत के पूर्व पर्यावरण मंत्री श्री
जयराम रमेश ने पहली बार भारत में लेखांकन के मामले में हरित लेखांकन प्रणाली या
ग्रीन एकाउटिंग सिस्टम प्रथाओं को लाने की आवश्यकता और महत्व पर बल दिया था। पर्यावरण परिवर्तन एक
वैश्विक समस्या है, जिसके लिए वैश्विक समाधान की आवश्यकता है। इसमें
हमारी आर्थिक वृद्धि को धीमा करने की क्षमता है। विश्व बैंक के एक अध्ययन से पता
चला है कि जलवायु परिवर्तन किसी भी अर्थव्यवस्था और आबादी के जीवन स्तर को परेशान
करने वाला है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में बढ़ते तापमान और
बारिश में बदलाव से आर्थिक प्रभावों पर ये पहला प्रभाव होना वाला है। इसलिए ग्रीन
एकाउटिंग सिस्टम को एक व्यावसायिक फर्म के आर्थिक और पर्यावरणीय प्रदर्शन में
सुधार के लिए महत्वपूर्ण प्रबन्धन प्रणालियों में से एक माना जाता है। ग्रीन एकाउटिंग स्थायी
लेखांकन की एक नई प्रणाली जिसे ग्रीन लेखांकन के रूप में जाना जाता है सामने आई
है। यह एक अर्थव्यवस्था के प्राकृतिक संसाधन में आर्थिक क्षति और कमी को ध्यान में
रखकर एक राष्ट्र के लिए आय की गणना की अनुमति देता है। यह स्थायी आय स्तर का उपाय
है जिसे प्राकृतिक सम्पति के बिना सुरक्षित किया जा सकता है। इसके लिए प्राकृतिक
सम्पतियों के भण्डार के सन्दर्भ में राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) के समायोजन की आवश्यकता होती है। भारत में
पर्यावरणीय लेखांकन का वैधानिक ढांचा- जब औद्योगिक लाइसेंस
प्रक्रिया को सभी व्यापारिक उद्देश्यों के लिए समाप्त कर दिया है, तब विभिन्न सरकारों ने पर्यावरण सम्बन्धी अधिकारिक अनुमति
को केन्द्र बिन्दु के रूप में रखा है। पर्यावरण संरक्षण के सम्बन्ध में बढ़ते हुए
वैश्विक मुद्दे पर भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने विभिन्न राज्य सरकारों
द्वारा पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण उपाय अपनाने हेतु समन्वयक के रूप में कार्य किया
है तथा इससे सम्बन्धित आवश्यक कानून निर्मित किये गये हैं। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित
विभिन्न अधिनियम निम्न प्रकार हैं- 1. पर्यावरण संरक्षण से
प्रत्यक्ष सम्बन्ध रखने वाले कानून i. जल (प्रदूषण, बचाव एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 ii. जल (प्रदूषण, बचाव एवं नियंत्रण) उपकर अधिनियम 1977 iii. वायु (प्रदूषण, बचाव एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 iv. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 2. पर्यावरण संरक्षण से
अप्रत्यक्ष सम्बन्धित i. संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 51 (अ)) ii. कारखाना अधिनियम 1948 iii. धातक क्षय (प्रबन्ध एवं सम्भाल) नियम 1989 iv. लोक दायित्व बीमा अधिनियम 1991 v. राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण अधिनियम vi. भारतीय दण्ड संहिता vii. भारतीय मछली पालन अधिनियम 1987 यह महत्वपूर्ण ध्यान रखने
योग्य तथ्य है कि समस्त नवीन परियोजनाओं को पर्यावरण सम्बन्धी अधिकारिक अनुमति
लेना आवश्यक है। यह अनुमति भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय तथा राज्य
सरकार के पर्यावरण विभाग दोनों से लेनी होगी। इसके लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा
समय-समय पर मार्गदर्शक नियम जारी करते हैं, जिसका पालन करना तथा कोई भी परियोजनाओं को वास्तव में लगाने से पूर्व पर्यावरण
एवं प्रदूषण निरोधक अनुमति लेनी होगी। एक केन्द्रीय प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड (CPCB) भी स्थापित किया जा चुका है
जब कभी भी वायु प्रदूषण मापदण्डों के उल्लंघन के प्रकार सामने आते हैं तो उस
औद्योगिक इकाई या समस्त इकाइयों को कारण बताओं नोटिस जारी किया जाता है तथा समान
निगरानी में रखा जाता है। पर्यावरणीय लेखांकन
रिपोर्टिंग पद्धति में पर्यावरणीय प्रबन्धन और संरक्षण के सिद्धान्तों को सम्मिलित
करने की कार्यप्रणाली को सन्दर्भित करता है। यह विशेष रूप से पर्यावरणीय संरक्षण
के निर्देशित गतिविधियों के लिए कए उद्यम की लागत और लाभ का सर्वोत्तम सम्भावित
मात्रात्मक मूल्यांकन करने का प्रयास करता है। यह एक संगठन को उसकी
आपूर्ति श्रृंखला से सुविधाओं के विस्तार तक प्रत्येक चरण में पारिस्थितिक रूप से
संधारणीय पद्धतियों के प्रभावों के आंकलन का प्रावधान करता है। भारत में ग्रीन लेखांकन के
लिए वैधानिक ढांचा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51-A से सृजित होता है जो प्रत्येक नागरिक पर प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा और इसे
बेहतर बनाने हेतु मौलिक कर्तव्य आरोपित करता है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण
संरक्षण अधिनियम जैसे कानूनों और विधानों के माध्यम से औद्योगिक इकाइयों के लिए
पर्यावरण सम्बन्धी सूचनाओं को प्रकट करना आवश्यक बनाया गया। उदाहरण के लिए मारूति
उद्योग लिमिटेड निगरानी एजेसियों के साथ पेंट शॉप और इंजन टेस्टिंग शॉप में
नॉन-मीथेन हाइड्रोकार्बन पर डेटा साझा करता है। वर्तमान में पर्यावरणीय
प्रभाव मूल्यांकन को विकास गतिविधियों की कुछ श्रेणियों के लिए पर्यावरण (संरक्षण)
अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अनिवार्य बना दिया गया है। भारत SDG # 13 और SDG # 15 की दिशा में कार्य कर रहा है, जो प्रत्यक्ष रूप से पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित, समर्थन करने तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने से सम्बन्धित
है। यद्यपि पर्यावरणीय लेखांकन
की अवधारणा मानक लेखा पद्धतियों का न होना निम्नस्तरीय मूल्यांकन तकनीक दीर्घकालीन
प्रक्रिया और उद्योगों से संवर्धित विश्वसनीय डेटा की कमी जैसी कुछ समस्याओं से
ग्रसित है, परन्तु फिर भी यह विकास के निष्पक्ष मूल्यांकन
तक पहुंचने और पर्यावरणीय पारदर्शिता को बढ़ावा देने हेतु एक महत्वपूर्ण उपकरण के
रूप में उभर रहा है। भारत में
पर्यावरणीय लेखांकन के वर्तमान परिदृश्य में - राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) केवल पर्यावरण एवं अर्थव्यवस्था के मध्य आर्थिक परिदृश्य
में सम्बन्ध दर्शाती है (System of National Accounts) UN 1968) राष्ट्रीय आय लेखों को निम्न तीन श्रेणियों में बांटा जाता है (i) चालू खाते, (ii) संचित लेखे तथा
(iii)
चिट्ठा। चालू खाते में उत्पादन, आय तथा आय के प्रयोग को दिखाया जाता है। संचित लेखों में
सम्पतियों एवं दायित्वों में परिवर्तन तथा शुद्ध धन में परिवर्तनों का लेखा होता
है। चिट्ठे में सम्पतियों का स्टॉक एवं दायित्व तथा शुद्ध धन को दर्शाया जाता है।
उपर्युक्त तीन लेखों में से चालू खाते सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। चालू खाते (आपूर्ति
एवं प्रयोग लेखे) आय को तीन प्रकार से संगठित करते हैं- 1. मूल्य संवर्धन का योग (आगम में से मध्यवर्ती
उपभोग घटाकर) सम्पूर्ण उद्योग का (उदाहरणार्थ - उत्पादन खाता)। 2. अन्तिम उपभोग एवं बचत का योग (निपटारा योग्य आय)
उदाहरणार्थ - आय का प्रयोग खाता। 3. कर्मचारी उपभोग एवं परिचालन आधिक्य का योग
(उदाहरणार्थ- आय विवरण खाता) राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) द्वारा केवल उस माल व सेवाओं को शामिल किया जाता है जो
बाजार के माध्यम से क्रय व विक्रय किये जाते हैं (इसके कुछ अपवाद भी हैं)। चालू लेखे या आपूर्ति एवं
प्रयोग तीन मूलभूल राष्ट्रीय लेखा पहचान प्रदर्शित करने हैं। 1. आपूर्ति उपयोग पहचान (The supply - use identity) = उत्पादन+आयात=मध्यवर्ती
उपभोग+निर्यात+अन्तिम उपभोग+सकल पूँजी निर्माण 2. मूल्य संवर्धन पहचान (The value -
added identity) = उत्पादन-मध्यवर्ती
उपभोग-स्थिर पूंजी का उपयोग 3. घरेलू उत्पादन पहचान (The domestic
product identity) = अन्तिम उपभोग+सकल पूंजी
निर्माण$निर्यात आयात भारत सरकार द्वारा पर्यावरण
संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सन् 1992 मे एक गजट नोटिफिकेशन पर्यावरण अंकेक्षण के सम्बन्ध में
जारी किया है, इसके अनुसार सभी औद्योगिक इकाइयों के लिए यह
अनिवार्य होगा कि वे राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के पास निर्धारित पर्यावरण
मापदण्डों के अनुरूप एक विवरण प्रस्तुत करना होगा कि पर्यावरण विवरण में प्रत्येक
इकाई को औद्योगिक क्रियाओं के दौरान क्षय में कटौती व सामग्री लागत में यथासम्भव
बचत के तरीकों को स्पष्ट करना होगा। इसके साथ भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 की आवश्यकतानुसार पर्यावरण सम्बन्धित नीतियों/समस्याओं व
ऊर्जा उपयोग तथा ऊर्जा संरक्षण सम्बन्धी निदेशक प्रतिवेदन प्रस्तुत करना होगा। भारत में
पर्यावरण लेखांकन का व्यावहारिक पहलू - भारत में पर्यावरण लेखांकन
के व्यावहारिक पहलू का विश्लेषण करते हैं तो पता चलता है कि बहुत कम कम्पनियां
पर्यावरण मुद्दों सम्बन्धी पर्याप्त सूचनाएं देती हैं। यदि पर्यावरण के सम्बन्ध
में बनाये गये अधिनियम के अनुसार निम्नलिखित सूचना देना आवश्यक है- i. प्रदूषण नियंत्रण हेतु कौनसे उपकरण लगाये हैं? ii. दूषित जल एवं उत्पादन प्रक्रिया के क्षय हेतु
उठाये गये कदम। iii. कच्ची सामग्री संरक्षण हेतु उठाये गये कदम। iv. उत्पाद की गुणवता सेवा व उत्पादन प्रक्रिया आदि
में सुधार हेुत उठाये गये कदम। v. ऊर्जा की बचत तथा संरक्षण हेतु उठाये गये कदम। विभिन्न उद्योगों के 80 से ज्यादा अधिकारियों के सम्पर्क तथा अध्ययन करके डॉ. डी.
बी. प्रधान एवं डॉ. आर. के. बाल ने निष्कर्ष निकाला कि उद्योग पर्यावरणीय रिपोटिंग
के पक्ष में है तथा पर्यावरणीय रिपोटिंग के पक्ष में पूर्ण रूप से जागरूक है।
परन्तु यह सूचना इतनी अपर्याप्त है कि केवल थोड़ी सी सूचनाएं ही वार्षिक
प्रतिवेदनों में पाई गई है - पर्यावरणीय प्रतिवेदन जैसे
कि संचालकों के प्रतिवेदन में शामिल होता है, उदाहरण के लिए एक भारतीय कम्पनी का पर्यावरणीय सम्बन्धित विवरण निम्न प्रकार
है- एशियन पैण्ट्स (इण्डिया)
लिमिटेड- ’’पर्यावरण एवं सुरक्षा कारखाने में जमा रसायनों
के नमूने समय-समय पर जांचे गये तथा मानकों के अनुरूप पालना की गई। यह भी पाया गया कि अधिकांश
कम्पनियां पर्यावरण सूचनाएं वित्तीय स्वरूप के बजाय वर्णनात्मक स्वरूप में
प्रस्तुत करती हैं तथा नैगम लाभ की गणना करते समय प्राकृतिक सम्पति में गिरावट का
कोई लेखा नहीं किया जाता है। पर्यावरण
लेखांकन हेतु बुनियादी ढांचे का सुझाव- ग्रीन एकाउटिंग के लेखांकन
नियमों व विनियमों की पालना सही तरह नियोजित व अनुपादित नहीं किया जाएगा तब तक
पर्यावरण लेखांकन की सही जानकारी कम्पनियां नहीं देंगी, अतः पर्यावरणीय लेखांकन को कम्पनी लेखांकन का एकीकृत हिस्सा
बनाने के लिए निम्न सुझाव हो सकते हैं - 1. कम्पनियों पर पर्यावरण से सम्बन्धित लागू होने
वाले नियमों-विनियमों, अधिनियमों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करना। 2. पर्यावरण संरक्षण उपायों का पूंजीगत व्ययों एवं
उपार्जन पर चालू अवधि में वित्तीय एवं परिचालन प्रभाव तथा भविष्य में विशिष्ट
प्रभाव का मापन। 3. पर्यावरण सम्बन्धी मामलों में कोई संदिग्ध
दायित्व उत्पन्न होता है तो इसे वर्णनात्मक एवं मात्रात्मक दोनों तरीकों से स्पष्ट
किया जाना चाहिए। 4. आयगत एवं पूंजीगत दोनों प्रकृति के अल्पकालीन
एवं दीर्घकालीन पर्यावरण बजट तैयार करना। 5. प्रोत्साहन एवं दण्डात्मक नीति को पर्यावरणीय
मुद्दों से जोड़ना चाहिए। 6. पर्यावरणीय लेखांकन, प्रबन्धकीय लेखांकन का एक भाग होना चाहिए, जिसमें पर्यावरणीय प्रबन्धकीय लेखांकन सूचना प्रणाली विकसित
की जा सके। 7. पर्यावरण उत्तरदायित्व केन्दों को मानक
पर्यावरणीय सीमओं से विचलित होने वाले दोषी प्रबन्धकों के विरूद्ध कार्यवाही करनी
चाहिए। 8. पर्यावरणीय पहलुओं के मूल्यांकन हेतु पर्यावरण सूचकों की गणना की जानी चाहिए तथा इनका वार्षिक लेखों में उचित प्रकटीकरण किया जाये। 9. सरकार द्वारा प्रत्येक प्रदूषणकर्ता को प्रमाणित पर्यावरण अंकेक्षित द्वारा अंकेक्षित प्रदूषण। |
||||||
निष्कर्ष |
ग्रीन एकाउटिंग के भारत में वर्तमान परिदर्श का विश्लेषण करने पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि व्यापारिक घरानों तथा उद्योग लगाने वालों को अपने नैतिक कर्तव्य मानते हुए पर्यावरणीय लेखांकन का पालन करना होगा। अभी और ज्यादा जागरूकता की आवश्यकता है। इसका प्रचार-प्रसार करना होगा तथा पर्यावरणीय मुद्दों को गम्भीरता से समझना होगा जिससे इनसे होने वाली क्षति तथा नुकसान से बचा जा सके तथा भावी प्रबन्ध किया जा सके। तो सभी के लिए भी लाभकारी होगा और अन्त में यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध को इस नीति का अनुसरण किया जाना चाहिए कि ’’निवारण उपचार से अधिक अच्छा है’’। |
||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. जैन, खण्डलेवाल, पारीक, उच्चतर लेखांकन, आर बी डी पब्लिशिंग हाउस, जयपुर, नई दिल्ली 2019-20
2. जैन, खण्डलेवाल, पारीक, दवे, कॉर्पोरेट अकाउटिंग, अजमेरा बुक कम्पनी, जयपुर, 2019-20
3. शर्मा, गुप्ता, राज, निगमीय लेखांकन, अजमेरा बुक कम्पनी, जयपुर, 2019-20
4. जांगिड़, सुथार, नैगम लेखांकन, रमेश बुक डिपो, जयपुर (राज.), 2019-20
5. शोध-पत्र - ’’ए स्टडी ऑन ग्रीन एकाउटिंग एण्ड इट्स प्रटिसैस इन इण्डिया’’, जर्नल ऑफ बिजनस एण्ड मैनेजमेंट M eSustesaV (IOSR-JBM)
6. शोध-पत्र - ’’ए स्टडी ऑफ द ईपोन्टस ऑफ ग्रीन एकाउटिंग’’ - एक इण्टरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च आइडिया इनोवेशन इन टेक्नोलोजी
7. www.iosrjournals.org |