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बाल श्रमिक की स्थिति, चुनौतियां एवं समाधान : एक अवलोकनात्मक अध्ययन | |||||||
Child Labor Status, Challenges and Solutions : An Observational Study | |||||||
Paper Id :
17075 Submission Date :
2023-01-15 Acceptance Date :
2023-01-22 Publication Date :
2023-01-25
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सारांश |
बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं यदि यही बच्चे अल्प आयु में किसी संस्थान में श्रमिक के रूप में नियोजित होते हैं। तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की बाल श्रमिक जैसी जटिल समस्याओं के कारण उस देश का एवं बाल श्रमिकों का भविष्य अंधकार होना सुनिश्चित हो जाता है। क्योंकि एक पीढ़ी बाल श्रमिकों के रूप में देश की मुख्य विचारधारा से एवं स्वयं की शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के सर्वांगीण विकास से पृथक हो जाता है। विश्व पटल पर बालकों के अधिकार को संरक्षित किया गया है एवं साथ ही साथ हमारे देश में आज भी बालको से संबंधित अन्य कानून लागू है। इस लेख का मुख्य उद्देश्य यह है कि बाल श्रमिकों की स्थिति, चुनौतियां और समाधान विषयक विधियों, नियमों का विश्लेषण एवं न्यायालय द्वारा किए गए निर्णय का परीक्षण करना और इससे संबंधित उत्पन्न चुनौतियों या समस्याओं के निदान पर ध्यान आकृष्ट कराते हुए इससे संबंधित ज्ञान में अभिवृद्धि करना।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Children are the future of any country if these children are employed as laborers in any institution at a young age. So it will not be an exaggeration to say that due to complex problems like child labor, the future of that country and child labor is sure to be dark. Because one generation in the form of child labor gets separated from the main ideology of the country and from the overall development of its own education, medicine and health. The rights of children have been protected on the world stage and at the same time other laws related to children are still in force in our country. The main objective of this article is to analyze the methods, rules and judgments made by the court regarding the status, challenges and solutions of child labor and increase the knowledge related to it by drawing attention to the diagnosis of challenges or problems related to it. | ||||||
मुख्य शब्द | बाल श्रमिक, शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Child Labour, Education, Medical and Health. | ||||||
प्रस्तावना |
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस सम्पूर्ण विश्व में बाल मजदूरी के विरोध में प्रत्येक वर्ष 12 जून को मनाया जाता है। भारत देश के बारे में देखा जाय तो यहाँ पर अनेकों समस्याएँ विद्यमान हैं, जिनमेें बाल मजदूरी की समस्या प्रमुख है। हमारे देश में बालश्रम की समस्या प्राचीन काल से ही चली आ रही है। कहने को तो हमारे देश में बच्चों को भगवान का दर्जा प्रदान किया गया है, लेकिन उनसे मजदूरी करायी जाती है। बालकों के जो दिन खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने के लिए होते हैं उन दिनोें में उनसे बालश्रम कराया जाता है जिसके कारण बालकों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। जिसके द्वारा बच्चों का बचपन बालश्रम में जकड़ जाता है।
आज विश्व में जितने भी बालश्रमिक है उनमें सबसे ज्यादा बालश्रमिक भारत देश में ही है। सम्पूर्ण विश्व के बालश्रमिक का एक बड़ा हिस्सा भारत देश में ही है। फिलहाल भारत देश में बालश्रम का व्यापक आकड़ा स्पष्ट नहीं किया जा सकता। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 5-14 वर्ष के 25.96 करोड़ बच्चों में से 1.01 करोड़ बच्चे बालश्रम कर रहे हैं। वर्तमान में जिसकी संख्या बढ़कर लगभग 5 करोड़ हो गयी है।[1]
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अध्ययन का उद्देश्य | इस लेख का मुख्य उद्देश्य यह है कि बाल श्रमिकों की स्थिति, चुनौतियां और समाधान विषयक विधियों, नियमों का विश्लेषण एवं न्यायालय द्वारा किए गए निर्णय का परीक्षण करना और इससे संबंधित उत्पन्न चुनौतियों या समस्याओं के निदान पर ध्यान आकृष्ट कराते हुए इससे संबंधित ज्ञान में अभिवृद्धि करना। |
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साहित्यावलोकन | शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सरकारें बालश्रम को खत्म करने के लिए बड़े-बड़े वादे और घोषणाएँ करती है लेकिन धरातल पर वास्तविक रूप से कुछ दिखाई नहीं पड़ता है। वर्तमान समय मेें इतनी जागरूकता के बाद भी भारत देश में बाल श्रम का खात्मा नहीं हो पा रहा है बल्कि इसके उलट ही बाल श्रम दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान समय में गरीब बच्चे ही बाल मजदूरी के रूप में सबसे अधिक शोषित हो रहे हैं। छोटे-छाटे गरीब बच्चे पढ़ाई-लिखाई छोड़कर बालश्रम हेतु मजबूर है। गरीब बच्चियोे को भी पढ़ने-लिखने के बजाय घर में ही बालश्रम कराया जाता है। बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती हैं। वे बच्चे जो बाल मजदूरी करते हैं वे मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाते हैं। बाल मजदूरी उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में बाधक होती है। बाल मजदूरी बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित करती है जो कि संविधान के विरूद्ध हैं और यह मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है। बालश्रम की समस्या भारत में ही नहीं विश्व के कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है जिसका समाधान खोजना अत्यन्त जरूरी है। वर्तमान समय में भारत देश में अधिकांश जगहों पर आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता ही थोड़े पैसो के लिए अपने बच्चों को ऐसे ठेकेदारों के हाथ में दे देते हैं जो अपनी सुविधानुसार बच्चों को होटलों, कोठियों, कारखानों में थोड़ा पैसा देकर मनमाना काम कराते हैं। घंटो बच्चों से काम कराना, भरपेट खाना न देना, मन के अनुसार काम न होने पर पिटाई करना इत्यादि बच्चों का जीवन बन जाता है। इसके अलावा काम देने वाला नियोक्ता बच्चों को पटाखे बनाना, उद्योगों में काम कराना, काँच उद्योग, हीरा उद्योग, कोयला की खान, माचिस-बीड़ी बनाना, पत्थर खदानों में, सीमेन्ट उद्योग, दवा उद्योगों इत्यादि सभी जगहों पर खतरनाक काम अपनी मर्जी के अनुसार कराते हैं। कई बार काम करते-करते बच्चों को यौन शोषण का भी शिकार होना पड़ता है और खतरनाक उद्योगों में काम करते-करते कैंसर, टी0वी0 जैसी इत्यादि भयंकर बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है। इतने कड़े कानून होने के बावजूद भी वर्तमान में बच्चों को होटलों, कारखानों, दुकानों, विश्वविद्यालय के मेसों इत्यादि में दिन-रात कार्य कराया जा रहा है और विभिन्न कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है जिससे मासूम बच्चों का बचपन पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। ILO के अनुसार, आज सम्पूर्ण विश्व में करीब 15 करोड़ बच्चे बालश्रम कर रहे हैं।[2] युनिसेफ के अनुसार- दुनिया भरत के कुल बाल मजदूरों में 12 फीसदी की हिस्सेदारी अकेले भारत की है।[3] सम्पूर्ण विश्व में 05 से 17 साल के बीच 15.2 करोड कामकाजी बच्चे हैं जिनमें से 08 करोड़ बच्चे भारत में हैं 15.2 मिलियन बच्चों में से 73 फीसदी बच्चे खतरनाक काम करते हैं जिसमे सफाई, कारखानों और घरेलू सहायक जैसे काम शामिल है।[4] भारत में लगभग 50 प्रतिशत बच्चे अपने बचपन के अधिकारों से वंचित है और न ही उनके पास शिक्षा की ज्योति पहुँच पा रही है और न ही उचित पोषण। हालांकि कारखाना अधिनियम 1948, बाल अधिनियम, बालश्रम निरोधक अधिनियम 1986, आदि बच्चों के अधिकार को सुरक्षा देते हैं। किन्तु इसके विपरीत आज की स्थिति बिल्कुल अलग है। असल में कहा जाए तो बच्चे अपनी उम्र के अनुरूप कठिन काम गरीबी के कारण करते हैं। गरीबी ही बच्चों को बालश्रमिक बनने के लिए मजबूर करती है। इसके अलावा बढ़ती जनसंख्या, सस्ती मजदूरी, शिक्षा का अभाव और मौजूदा कानूनों का सही से क्रियान्वित न हो पाना आदि जैसे कारण बालश्रम के लिए जिम्मेदार है। अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय विधियां बालश्रम मानवाधिकार से जुड़ा एक महत्वपूर्ण विषय है यह विदित है कि बच्चों की स्थिति अन्य सामान्य व्यक्तियों से भिन्न होती है। बालकों से सम्बन्धित विधि का अध्ययन भी समान रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि कल का मनुष्य वैसा ही होगा जैसा कि आज बच्चे के रूप में है। जब तक बाल अधिकार के बारे में हम चर्चा करते हैं तो हम ऐसे व्यक्ति के अधिकारों के विषय में चर्चा करते है जो कि अपने अधिकारों को व्यक्त भी नहीं कर सकता और न ही रक्षा कर सकता। यदि वह कुछ कहता भी है तो लोग उसके कथन को मान्यता नहीं देते क्योंकि वह अवयस्क होता है। यह समझा जाता है कि वह अपने हित के बारे में नहीं जानता है। इसलिए उसके अधिकारों को समझना तथा उनकी रक्षा करने का दायित्व वयस्कों पर होता है। बालकों के अधिकार का महत्व समझते हुए महासभा द्वारा नवम्बर 1989 को संयुक्त राष्ट्र बालक के अधिकारों पर अभिसमय अंगीकार किया गया जो कि सितम्बर 1990 को लागू हुआ। भारत में इसे वर्ष 1920 में स्वीकार किया गया। केवल इतना ही नहीं पर संसार युद्ध, अपराध एवं मान्यता के विरूद्ध के अपराधों के मामलों बालकों के हितों की रक्षा करने के लिए 17 जुलाई 1998 को रोम में अन्तर्राष्ट्रीय अपराधिक न्यायालय स्थापित किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 11 मई 2002 को 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे के स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सुरक्षा का एक एजेन्डा ‘ए वर्ल्ड फिट फॉर चिल्ड्रेन’ अनुसमर्थित किया गया। यह पहला विशेष सत्र था जिसमें कि बालकों की समस्याओं को उन्हीं से ही सुना गया। राष्ट्रीय विधियां बाल मजदूरी पर अंकुश लगाने के लिए भारत देश में कानूनों की कमी नहीं है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अनुसार[5], बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गयी। इस समिति की सिफारिश के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध की गयी। भारतीय संविधान के भाग-3 में मौलिक अधिकारों के रूप में शोषण एवं अन्याय के विरूद्ध अनुच्छेद-23 और अनुच्छेद-24 को रखा गया है। अनुच्छेद-23 बलातश्रम पर प्रतिबंध लगाता है और संविधान का अनुच्छेद-24, 14 वर्ष से कम आयु का कोई भी बालक किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जायेगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जायेगा।[6] इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान का अनुच्छेद-21(क), 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा का अधिकार, अनुच्छेद-51(क) (ट), 6 वर्ष से 14 वर्ष के आयु के बच्चों को माता-पिता शिक्षा का अवसर प्रदान करें, अनुच्छेद-45 बच्चों के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान दिया जाता है जिससे बच्चों के लिए जरूरी दवाईयाँ उपलब्ध करायी जा सके। बाल मजदूरी को रोकने के लिए सरकार की भी कोशिशे जारी रही है जिसके अन्तर्गत कारखाना अधिनियम, 1948 जिसके अन्तर्गत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है और 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी कारखाने में तभी नियुक्त किये जा सकते हैं जब उनके पास अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण-पत्र हो।[7] इसके अतिरिक्त खदान अधिनियम, 1952, बाल संरक्षण आयोग 2007, निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार 2004, एकीकृत बाल संरक्षण योजना 2009-10 बालश्रम संशोधन विधेयक 2016 आदि।[8] न्यायिक दृष्टिकोण बाल श्रम जैसी कुरीति को समाप्त करने के लिए उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों का योगदान एवं प्रयास सदैव सराहनीय रहा है। उच्चतम न्यायालय ने मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य (1992) 3 scc 666 के बाद में निर्णीत किया कि शिक्षा पाने का अधिकार अनु0-21 के तहत प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार है। जिसे SC ने उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश (1993) 4 scc 645 के वाद में भी पुष्टि कर दी। इसी निर्णय के परिणाम स्वरूप वर्तमान में 86वाँ संविधान संशोधन 2002 द्वारा नया अनु0-21(क) जोड़कर शिक्षा के अधिकार को एक अलग से मूल अधिकार बनाया गया जिसमें 6 से 14 वर्ष तक के बालको को शिक्षा का मूल अधिकार प्रदान किया गया है। इसी सम्बन्ध में अब बालकों का निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 अधिनियमित किया गया। पीपुल्स युनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ (AIR 1983, SC 1473) वाद में न्यायाधिपति ने इस बात पर दुःख प्रकट करते हुए राज्य सरकारों को सलाह दिया कि निर्माण कार्य एक जोखिम वाला कार्य है अतः 14 वर्ष से कम आयु के बालकों को उसमें नियोजित नही किया जा सकता। एम0सी0 मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में SC नें अमिनिर्धारित किया कि 14 वर्ष से कम आयु के बालकों का किसी भी खान, कारखाने, या संकट पूर्ण कार्यो में नियोजित नही किया जा सकता है। नीरजा चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (AIR1984)SC1099) वाद में न्यायाधिपति भगवती ने यह अभिनिर्धारित किया कि वंधितश्रम पद्धति अधि0 1976 के अधीन यह आवश्यक नही है कि बंधुआ श्रमिको का पता लगाया जाए और मुक्त कराया जाय परन्तु उससे भी अधिक आवश्यकता इस बात की है उनके पुर्नवास की उचित व्यवस्था भी की जाय। इसी क्रम में उच्चतम न्यायालय ने बचपन बचाओं आन्दोलन बनाम भारत संघ (याचिका संख्या 51क) 2006 के बाद में कहा कि अनु0-21 के अन्तर्गत प्राप्त अधिकारों का प्रवर्तन में लाने का आदेश दिया और 02 माह के अन्दर बच्चों के अनयोजन को रोकने सम्बन्धी अधिसूचना जारी करने के लिए केन्द्र सरकार को आदेश दिया। बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ के वाद में न्यायाधीश भगवती ने कहा कि राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अनुपात में कर्मकारों के सम्मान जनक जीवन यापन के लिए लोक सभा द्वारा बनाये गये, विभिन्न कल्याणकारी श्रम विधियो का अनुपालन करने के लिए सरकार बाध्य है। इस विचार को ध्यान में रखते हुए माननीय न्यायालय ने केन्द्र एवं राज्य सरकारों को निर्देशित किया कि महिलाओं एवं बच्चों को न्यूनतम मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित किया जाय। |
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निष्कर्ष |
सदियों से चली आ रही इस समस्या को रातों-रात खत्म करना तो मुश्किल है। इस समस्या को दूर करने के लिए पहले इसके जड़ों तक पहुँचना होगा। इसके लिए सरकारों और समाज को मिलकर काम करना होगा साथ ही साथ स्वरोजगार के अवसर पैदा करना, मौजूदा कानूनोें को कड़ाई से लागू करना और जरूरी हो तो उसमें और कड़े प्रावधान जोड़ा जाय। गैर सरकारी संगठनों की सहायता से लोगों में जागरूकता फैलाना जरूरी है साथ ही साथ बाल मजदूरी पर पूर्णतया रोक लगानी चाहिए। बच्चों के उत्थान और उनके अधिकारों के लिए अनेक योजनाओं को शुरू किया जाना चाहिए जिससे बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखे। शिक्षा का अधिकार भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए। शिक्षा का अधिकार कानून बने काफी समय हो गया है लेकिन अभी तक पूरी तरह से अमल नहीं किया गया है। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुँच जायेगा। देश के किसी हिस्से में कोई भी बालश्रमिक दिखाई दे तो प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे। बच्चें ही भारत के भविष्य हैं। जब तक बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जायेगा तब तक देश के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करना बेईमानी है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | पुस्तके
1. पाण्डेय, डाॅ0 जय नारायण, भारत का संविधान (इलाहाबाद सेन्ट्रल लाॅ एजेन्सी, 44वाॅ संस्करण, 2022)
2. मिश्र, प्रो0 सूर्य नारायण, श्रम एवं औद्योगिक विधि (इलाहाबाद सेन्ट्रल लाॅ एजेन्सी, 18वाॅ संस्करण, 2012)
3. नरूला एवं तम्बोली, बाल विधियाॅ (इलाहाबाद लाॅ पब्लिकेशन प्रथम संस्करण, 2019 जनवरी 01)
4. अग्रवाल, डाॅ0 एच0 ओ0, अंतर्राष्ट्रीय विधि एवं मानवाधिकार (इलाहाबाद लाॅ पब्लिकेशन 11वाॅ संस्करण, 2010)
5. डाॅ0 बावेल बसन्ती लाल, महिला एवं बाल कानून (इलाहाबाद सेन्ट्रल लाॅ एजेन्सी 6वाॅ संस्करण, 2017)
6. दशोरा मुकेश कुमार, बाल श्रमिक समस्या एवं समाधान(दिल्ली, हिमाशु पब्लिकेशन, प्रथम संस्करण, 2006
कानून
1. बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधि0 1986
2. कारखाना अधि0 1948
3. खदान अधि0 1952
4. निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार 2004
5. बाल श्रम संशोधन विधेयक 2016
समाचार पत्र
जनसत्ता
ए0वी0पी0 न्यूज
आजतक न्यूज
पत्रिकाएं
इंडिया टूडे
क्रानिकल
वेवसाइट-
1. http://.aajtak.intoday.in
2. http://.www.abplive.com
3. http://.www.who.org |
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अंत टिप्पणी | 1. https://aajtak.intoday.in, 12.18 PM, 23 Jun 2020 2. www.abplive.com>india 03.46 PM, 28 Jun 2020 3. www.abplive.com>india 09.36 PM, 02Jul 2020 4. www.abplive.com>india Time 09.06 AM.k~ 02 Jul 2020 5. डॉ. जय नारायण पाण्डेय, भारत का संविधान, पृष्ठ सं0 301, 44वाँ संस्करण 6. डॉ. जय नारायण पाण्डेय, भारत का संविधान, पृष्ठ सं0 298, 44वाँ संस्करण 7. एम0सी0 मेहता,ट तमिलनाडु राज्य (1996) 6scc 8. डॉ. जय नारायण पाण्डेय, भारत का संविधान, पृष्ठ सं0 301, 44वाँ संस्करण |