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शीतयुद्ध के बाद भारत-रूस संबंध | |||||||
Indo-Russian Relations after The Cold War | |||||||
Paper Id :
17115 Submission Date :
2022-12-16 Acceptance Date :
2022-12-23 Publication Date :
2022-03-25
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सारांश |
1950 के दशक से लेकर आज तक नई दिल्ली और अमेरिका में मैत्रीपूर्ण संबंध कायम रहे है। वह सोवियत नेता ही थे जिन्होंने पंचशील के आधार पर भारत की विदेश नीति का समर्थन किया और कश्मीर के मामले पर पाकिस्तान के विरूद्ध भारत का सहयोग किया। भारत-रूस मैत्री अवसरवादी नहीं है। भारत-रूस ने 9 अगस्त 1971 को एक 20 वर्षीय संधि पर हस्ताक्षर किए। राष्ट्रपति पुतिन जनवरी 2007 में भारत यात्रा पर आये दोनों देशों के मध्य कई समझौते हुए। 15 अक्टूबर 2016 सामरिक शक्ति बढ़ाने के लिए भारत ने रूस के साथ 40 हजार करोड़ का समझौता किया। ड्रेगन के जवाब में भारत, रूस सहित कई देश संयुक्त रूप से 7200 किमी. अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात गलियारा बना रहे है। सुरक्षा परिषद् सहित विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आपसी सहयोग के विस्तार पर बल दोनों पक्षों ने दिया।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | New Delhi and the US have maintained friendly relations since 1950s. He was the Soviet leader who supported India's foreign policy on the basis of Panchsheel and cooperated with India against Pakistan on the issue of Kashmir. India-Russia friendship is not opportunistic. India-Russia signed a 20-year treaty on 9 August 1971. Several agreements were signed between the two countries when President Putin visited India in January 2007. On 15 October 2016, India signed an agreement of 40 thousand crores with Russia to increase its strategic power. In response to dragons, many countries including India, Russia jointly built 7200 km. International North-South Transport Corridor is being built. Both sides emphasized on expansion of mutual cooperation in various international fora including Security Council. | ||||||
मुख्य शब्द | विदेशनीति, पंचशील, कूटनीति, प्रौद्योगिकी, परमाणु, पनडुब्बी, रियक्टर | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Foreign Policy, Panchsheel, Diplomacy, Technology, Nuclear, Submarine, Reactor | ||||||
प्रस्तावना |
अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में कोई राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र की स्थायी मित्रता का दावा नहीं कर सकता। परन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भार-रूस संबंध कुछ छुट-पुट घटनाओं को छोड़कर, निरन्तर मृदृता, मित्रता और घनिष्टता के रहे है। सन् 1971 की भारत-रूस संधि के समय से ये संबंध उत्तरोत्तर वृद्धि की ओर उन्मुख रहे है। उद्योग, व्यापार, विज्ञान, अन्तरिक्ष, रक्षा, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति सभी क्षेत्रों में दोनों देशों के संबंध अटूट मित्रता के बनते चले आ रहे है इस बढ़ती मित्रता का प्रमाण इस तथ्य से मिल जाता है कि आर्य भट्ट नाम का पहला भारतीय भू उपग्रह सोवियत संघ के यंत्रविदों और इंजीनियरों की सहायता से 19 अपै्रल 1975 को अन्तरिक्ष मे छोड़ा गया था। भारत और रूस दोनों राष्ट्रीय हितों को भी पहचानते है और शक्ति संतुलन के खेल की पेचीदगियों को भी अच्छी तरह समझते है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. भारत और रूस के संबंधों का वैश्विक स्तर पर पड़े प्रभाव का अध्ययन करना।
2. शीतयुद्ध के बाद भारत-रूस के आपसी संबंधों में आये परिवर्तनों का विश्लेषण करना।
3. भारत-रूस के सामरिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, कूटनीतिक, राजनीतिक संबंधों का अध्ययन करना।
4. वैश्विक मुद्दों पर भारत की स्वतंत्र नीति की परम्परा को स्पष्ट करना।
5. विश्व मंच पर भारत के बढ़ते महत्व को इंगित करना।
6. शोध से यह पता चलेगा कि भारत-रूस के रिश्ते कितने मजबूत व गहरे है। |
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साहित्यावलोकन | बिस्वाल तपनः- ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ प्रकाश ओरियन्ट ब्लैकस्वान
हैदराबाद 2022 प्रस्तुत पुस्तक में
समसामयिक, अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के केन्द्रीय मुद्दों, संकल्पनाओं एवं
आयामों को स्पष्ट किया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय अभिशासन में गैर राज्जीय कर्ताओं
की बढ़ती हुई निर्णायक भूमिका के कारण मानवाधिकार, नारी अधिकार, पर्यावरण संरक्षण
जैसे नए प्रसंग इसमें केन्द्रीय स्थान ले रहे है। चडढा पी.के. ’’अन्तर्राष्ट्रीय
संबंध’’ प्रकाशक आदर्श प्रकाशन चौड़ा रास्ता जयपुर 1987 प्रस्तुत पुस्तक में
अमेरिकी भारत, चीन, रूस की विदेश नीतियों का उल्लेख किया है। प्राचीन घटनाओं का
नवीन विश्वलेषण किया है। विश्व में अमेरिकी प्रभाव के समक्ष यू.एन.ओ. की कमजोरियों
को स्पष्ट किया है। भारत की परमाणु नीति, भारत-रूस संबंध, भारत के पड़ौसी देशों
के संबंधों पर प्रकाश डाला गया है। फड़िया डॉ.बी.एल. डॉ.कुलदीप ’’अन्तर्राष्ट्रीय
संबंध’’ प्रकाशक साहित्य भवन आगरा 2018 प्रस्तुत पुस्तक में
अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन के मुख्य उद्देश्य, राष्ट्रों के आपसी
व्यववहार तथा आचरण के मूल कारणों का ज्ञान कराना है। पुस्तक में संयुक्त राज्य
अमेरिका, रूस से भारत के संबंधों का उल्लेख है। पश्चिम एशिया की
राजनीति, पर्यावरणीय मुद्दे, परमाणु प्रसार, समसामयिक बहुध्रुवीय
विश्व में भारत आदि बिन्दुओं पर प्रकाश डाला है। जोहरी डॉ.जे.सी. ’’अन्तर्राष्ट्रीय
संबंध’’ प्रकाशक एस.बी.पी.डी. पब्लिकेशन आगरा 2018 |
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मुख्य पाठ |
1950 के दशक से लेकर आज तक नई दिल्ली और मास्को में मैत्रीपूर्ण संबंध
कायम रहे है। भारत की गुट निरपेक्षता के दृढ़ निश्चय ने एशियाई सामूहिक सुरक्षा के
लिए सोवियत वैश्विक नीतियों अथवा प्रस्तावों को मंजूर किए बिना सामरिक महत्त्व के
क्षेत्रों तथा पाकिस्तान और चीन के साथ विवादों में सोवियत समर्थन को बनाये रखा।
जून 1955 में नेहरू का सोवियत दौरा और इसके बाद नवम्बर व
दिसम्बर 1955 में प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन एवं
महासचिव निकिता खुशचेव का भारतीय दौरा दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग के
ठोस प्रयास थे। वह सोवियत नेता ही थे जिन्होंने पंचशील के आधार पर भारत की विदेश
नीति का समर्थन किया और कश्मीर के मामले पर पाकिस्तान के विरूद्ध भारत का सहयोग
किया।[1] वास्तव में भारत-रूस मैत्री अवसरवादी नहीं है। यह अन्तर्राष्ट्रीय
परिस्थितियों के बदलने या सत्ता परिवर्तन से बदलती नहीं। दूसरे देशों के साथ
संबंधों में विशेषकर भारत-अमेरिका या भारत-चीन संबंधों में सुधार होने से इस पर
कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। इसका कारण यह है कि भारत और रूस में विभिन्न शासन
पद्धतियों के बावजूद क्षेत्रीय तकाजों और पूंजीवाद की इजारेदारी के प्रति उनके रवैये
में परस्पर हित के बीज छुपे हुए है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी
ने कहा था कि भारत सोवियत संबंध अवसरवादी नहीं है। उनका आधार है हम दोनों की यह
स्पष्ट और यथार्थवारी समझ की हम दोनों के लिए हितकर क्या है। ’’भूतपूर्व
विदेशमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि’’ पार्टियों के बदल जाने से
विदेशनीति नहीं बदल सकती। भारत रूस मैत्री शांति और स्थिरता की मैत्री है। इसमें
अत्यधिक सद्भावना का पुट विद्यमान है।[2] सन् 1962 में चीनी आक्रमण के समय रूस ने भारत की सहायता
हेतु चीन पर युद्ध बन्द करने के लिए दबाव ही नहीं डाला बल्कि भारत को मिग 21 (MIG-21) विमान भी प्रदान किये और उनके निर्माण के लिए भारत में एक कारखाना स्थापित
करने के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता भी प्रदान की। सन् 1965 के भारत-पाकिस्तान
युद्ध में सोवियत संघ की भूमिका सराहनीय रही। तत्कालीन रूसी प्रधानमंत्री कोसीगिन
के प्रयासों द्वारा ही जनवरी 1966 में दोनों देशों में
ताशकन्द समझौता हुआ। भारत-रूस ने 9 अगस्त 1971 को एक 20 वर्षीय संधि पर
हस्ताक्षर किये।[3] जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो भारत के सामने सबसे कठिन चुनौती थी- पन्द्रह
सोवियत उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ अपने बाहरी और घनिष्ठ संबंधों को स्थिति के
अनुरूप फिर से निर्धारित करना, जिसमें से रूस सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण था। 1993 में नई दिल्ली और मास्को ने उत्तर शीतयुद्ध की
वास्तविकताओं के अनुसार अपने संबंधों को फिर से परिभासित करने का कार्य किया।
जनवरी 1993 में रूसी राष्ट्रपति बेरिस एल्टसीन की भारत
यात्रा के दौरान दोनों देशों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए जो द्विपक्षीय संबंधों
में आर्थिक सहयोग पर नए बल से पे्ररित था। 1971 की संधि को मित्रता व
सहयोग की एक नई संधि में बदल दिया गया। इसमें से उन सुरक्षा शर्तो को हटा दिया गया
था जो शीतयुद्ध के संदर्भ में अमेरिका और चीन के विरूद्ध निर्देशित थी। इसमें यह
कहा गया कि भारत को अन्तरिक्ष कार्यक्रम के लिए क्रायोजेनिक इंजन और अन्तरिक्ष
तकनीक उपलब्ध कराएगा। किन्तु अमेरिका के इस दबाव के चलते और तकनीक प्रक्षेपास्त्र
विकास में बदल सकते है। रूस ने जुलाई 1993 में अधिकांश संधि नामंजूर
कर दी। हालांकि रूस भारत को जियोस्टेशनरी सेटेलाइट आरम्भ करने की तकनीक के विकास
के लिए मदद के रूप में राॅकेट की आपूर्ति करता रहा।[4] प्रधानमंत्री वी.पी. नरसिम्हा राव 1994 में रूस की यात्रा पर गये
नरसिम्हा राव के रूस दौरे से प्रतिरक्षा रणनीतिक और व्यापारिक संबंधों की कई
बाधाऐं दूर हुई। पारस्परिक सैनिक हितो, रक्षा, व्यापार और तकनीक
समेत विभिन्न क्षेत्रों में दो महत्त्वपूर्ण घोषणाऐं और नौ समझौतों पर हस्ताक्षर
हुए। रक्षा क्षेत्र में भारत को रूस से 83 करोड़ डॉलर का उधार मिलेगा।
यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि है पुर्जो की आपूर्ति और रूसी विमानों की मरम्मत के
लिए एक कम्पनी बनाने के संयुक्त उद्यम पर समझौता। 30 मार्च 1996 को भारत व रूस में
आपसी सहयोग के तीन समझौतों पर भारत के विदेशमंत्री प्रणव मुखर्जी तथा रूस के
विदेशमंत्री प्रीमाकोव ने नई दिल्ली में हस्ताक्षर किए। इनमें से एक समझौता भारत
के प्रधानमंत्री तथा रूस के राष्ट्रपति के कार्यालय के बीच हॉट लाइन स्थापित करने संबंधी है। कश्मीर मुद्दे पर
रूसी नेता ने कहा कि उनका देश इसे अन्तर्राष्ट्रीय मंच से उछालने के खिलाफ है।
भारत ने अत्यन्त विकसित किस्म के ’’सुखोई 30’’ M.K.I. युद्धक विमानों की खरीद के विषय में 30 नवम्बर 1996 को रूस के साथ एक
समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारत सर्वप्रथम 40 विमान खरीदेगा जो रूस में
तैयार होंगे।[5] फरवरी 1997 में विदेशमंत्री गुजराल ने रूस की यात्रा की
अगले महिने प्रधानमंत्री देवेगौड़ा वहाँ गए। रूस के राष्ट्रपति बोरिस एल्टसीन ने
आश्वासन दिया कि वह भारत को दो परमाणु रिएक्टर्स देगा तथा पाकिस्तान को शस्त्रों
की आपूर्ति रोक दी जाएगी। 7 अक्टूबर 1997 को दोनों देशों के बीच एक
सुरक्षा समझौता हुआ जो 2010 तक चला तथा 1994 के दोनों देशों के बीच
सैनिक तकनीकी सहयोग समझौते की अवधि वर्ष 2000 तक बढ़ा दी गई। 20 जून 1998 को दोनों देशों के
बीच परमाणु शक्ति रिएक्टर समझौता हुआ जिसके तहत रूस तमिलनाडु के कुडनकुलाम में दो
परमाणु रिएक्टरों की स्थापना करेगा। राष्ट्रपति एल्टसीन ने भारत के संतोष के खातिर
यह स्पष्ट कर दिया कि यदि सुरक्षा परिषद् में कश्मीर के मामले पर कोई भारत विरोधी
प्रस्ताव आया, तो वह उस पर वीटो शक्ति का प्रयोग करेगा। जब मई 1998 में भारत ने पोखरन
में दूसरा सफल परीक्षक किया तो रूस ने बड़ी सावधानी से अपनी तीखी प्रतिक्रिया
व्यक्त की। राष्ट्रपति एल्टसीन व उसके बाद व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका या जापान की
तरह कठोर रूख नहीं अपनाया लेकिन वाजपेयी के इस मत को स्वीकार किया कि कोई देश अपनी
सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता।[6] रूसी नेताओं के समक्ष यह समस्या थी कि एक धु्रवीय संसार में अमेरिकी चुनौती से
कैसे निपटा जाए दिसम्बर 1998 में अपने दौरे के दौरान प्रधानमंत्री
प्रायमोकोव ने सामरिक त्रिकोण का विचार प्रस्तुत किया। उसका यह आशय था कि रूस, चीन व भारत मिलकर
अपनी सुरक्षा के लिए एक सामरिक गठबंधन तैयार करे ताकि इस क्षेत्र में शांति व
सुरक्षा बनी रहे। लेकिन वाजपेयी ने इसे स्वीकार नहीं किया क्योंक इससे
भारत-अमेरिकी संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता था। कुछ समय बाद वाजपेयी ने
इसमें संधोधन करते हुए यह विचार पेश किया कि सीमा-पारीय आतंकवाद से निपटने के लिए सामरिक
चतुर्कोण बनना चाहिए जिसमें रूस, चीन, अमेरिका व भारत
शामिल हो। 22 मार्च 1999 को दोनों देशों के बीच
सैनिक सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर हुए।[7] रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अक्टूबर 2000 में 4 दिन के लिए भारत की
यात्रा की भारत और रूस में सैन्य सहयोग बढ़ाने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण समझौतों
पर इस यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किए गए। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण समझौता दोनों
देशों की बीच सैन्य तकनीकी सहयोग के लिए अन्तर सरकार आयोग का गठन है। इसके
अतिरिक्त तीन अन्य समझौते रूस द्वारा भारत को एडमिरल गोर्शकोव एयरक्राप्ट कैरियर
दिये जाने, एस.यू. 30 एम.के.आई. लड़ाकू विमान
देने और टी 90 टैंक देने से संबंधित है। रूस के साथ 3 अरब रूपये के रक्षा
सौदे से, जो स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा सौदा है। नवम्बर 2001 में भारत के
प्रधानमंत्री वाजपेयी ने रूस यात्रा की है। शिखर वार्ता के पश्चात् वाजपेयी व
पुतिन ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर मास्कों घोषणा पर हस्ताक्षर किए।[8] मई 2005 में द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र-राष्ट्रों
की विजय की 60 वी वर्षगांठ मनाई गई। इस अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह ने रूसी राजनेताओं से वार्ता की। रूसी नेताओं ने यह पसन्द नहीं किया
कि भारत-इजराईल से हथियार या उनके पुर्जे खरीदे। भारत के अमेरिका व चीन से सुधरते
हुए संबंधों पर भी उन्होंने अपनी अरूचि का प्रदर्शन किया। इस अवसर पर दोनों देशों
के बीच बौद्धिक सम्पदा के अधिकारों से संबंधी एक समझौता हुआ। मार्च 2006 में रूसी
प्रधानमंत्री फ्रैडकोव ने भारत की यात्रा की। इस अवसर पर दोनों देशों की सरकारों
तथा व्यापारिक संगठनों के बीच अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। जुलाई 2006 में बलाडीवास्टिक
में जी 8 की बैठक हुई जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आमंत्रित
किया गया।[9] राष्ट्रपति पुतिन जनवरी 2007 में दो दिन की भारत यात्रा
पर आए। भारत के 58 वे गणतंत्र दिवस पर नई दिल्ली में होने वाले राष्टीय
समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे। कुडनकुलम में परमाणु रिएक्टरों की
स्थापना में रूस द्वारा सहयोग के अतिरिक्त दोनों देशों में आठ समझौतों पर
हस्ताक्षर हुए। 2 अरब डॉलर के बहुलंबित रूपी-रूबल डेप्ट एग्रीमेंट को
सुलझाने के लिए भी दोनों देशों में समझौता हो गया है। दोनों पक्षों ने 2010 तक द्विपक्षीय
व्यापार को 10 अरब डॉलर तक करने के लिए कार्य योजना निर्धारित करने की भी
सहमति प्रदान की। 4-5 दिसम्बर 2008 को राष्ट्रपति मेदवेदेव
वार्षिक शिखर वार्ता के लिए भारत के राजकीय दौरे पर आये। उन्होंने भारत में ’’रूस वर्ष’’ के समापन समारोह में
हिस्सा लिया तथा दौरे के दौरान 9 अन्य दस्तावेजों पर
हस्ताक्षर किये। भारत में वर्ष 2008 में ’’रूसी वर्ष’’ के दौरान संस्कृति, अर्थव्यवस्था व
विज्ञान सहित विभिन्न क्षेत्रों में 140 समारोह आयोजित किए गए। 7 दिसम्बर 2009 को भारत के
प्रधानमंत्री मास्को पहुंचे। मास्को में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह और रूसी
राष्ट्रपति दमित्रि मेदवेदेव ने जिन समझौतों पर हस्ताक्षर किए है उनमें सबसे
महत्त्वपूर्ण परमाुण ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए आपसी सहयोग का समझौता है।
रूस ने यह वादा किया कि वह हमेशा भारत को परमाणु ईधन देता रहेगा।[10] रूस के राष्ट्रपति ने 21-22 दिसम्बर 2010 को भारत की यात्रा की।
यात्रा के अन्त में जारी संयुक्त घोषणापत्र का शीर्षक है ’’रूस-भारत की रणनीतिक
साझेदारी के एक दशक का उत्साह मनाना तथा अग्रिम दृष्टि।’’ दिसम्बर 2011 में भारत के
प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने रूस की यात्रा की। रूसी राष्ट्रपति के निवास
क्रेमलिन में डॉ.सिंह और मेदवेदेव के बीच लगभग तीन घंटे तक वार्ता चली। इसके बाद
रक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के 5 समझौतों पर
हस्ताक्षर किए गए। इन्हीं में से एक समझौते के अन्तर्गत रूस 42 सुखोई 30 एम.के. आई. लड़ाकू
विमानों के उत्पादन में भारत को तकनीकी सहयोग करेगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद्
में रूस ने भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन किया है साथ ही क्षेत्रीय
स्तर पर शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने की भारत की इच्छा पर भी सहमति व्यक्त
की। रूस इस माह के अन्त तक ’नेरपा’ परमाणु पनडुब्बी दस
वर्ष के पट्टे पर भारत को देने के लिए तैयार है। पनडुब्बी पानी के अन्दर महीनों तक
रहने में सक्षम है। भारत में इसे ’’आई एन एस चक्र’’ नाम दिया
जायेगा। भारत और रूसी परिसंघ ने अपै्रल 2012 में राजनयिक
संबंधों की 65 वी वर्षगांठ मनाई। रूसी राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव चैथे
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (28-29 मार्च 2012) के लिए दिल्ली आये और
प्रधानमंत्री के साथ एक द्विपक्षीय बैठक की। वर्ष 2013 मे रूस निर्मित तीसरे
युद्ध पोत आई एन एस त्रिकाण्ड डिलीवरी एवं एयरक्राप्ट केरियर आई एन एस
विक्रमादित्य को सौप दिया गया। क्रीमिया की स्थिति के संबंध में भारत सरकार ने 18 मार्च 2014 को देशों की
प्रभुता और क्षेत्रीय अखण्डता के मामले पर अपनी दृढ़ स्थिति पर बल दिया।[11] 11 दिसम्बर 2014 को भारत के प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी के निमंत्रण पर दोनों देशों की 15 वी शिखर बैठक में भाग लेने
के लिए भारत की यात्रा की। रूस पहली बार रक्षा प्रौद्योगिकी और रक्षा उद्योग
क्षेत्र में संयुक्त रूप से उत्पादन के लिए राजी हुआ। दोनों देश विज्ञान और
प्रौद्योगिकी, उद्योग, उपकरणों और हिस्से पुर्जो
में स्थानीयकरण, यूरेनियम खनन परमाणु ईधन की आपूर्ति उपयोग किए गए ईधन के
प्रबंधन और परमाणु ईधन के चक्र के अन्य पहलुओं में सहयोग का विस्तार करने के लिए
राजी हुए। भारत और रूस नवीकरणीय ऊर्जा के विकास और उसके कुशल उपयोग में भी सहयोग
करेंगे। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारत-रूस 16 वीं वार्षिक शिखर
बैठक के लिए रूस यात्रा के दौरान 23-24 दिसम्बर 2015 को दोनों देशों के
बीच परमाणु और रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने के लिए 16 समझौतों पर
हस्ताक्षर हुए। भारत में कोमोव 226 हैलीकाॅप्टर बनाने पर हुआ
समझौता मेक इन इंडिया के अन्तर्गत यह पहली बड़ी रक्षा परियोजना है। संयुक्त बयान
में कहा गया कि भारत-रूस अगले दो दशकों में भारत में 12 परमाणु रिएक्टर
बनाएगा। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य क्षेत्रों में हुए प्रमुख समझौते है- दोनों देशों
के नागरिकों और राजनयिक पासपोर्ट रखने वालों की आवाजाही के लिए कुछ श्रेणियों में
नियम कायदों को सरल बनाना, कस्टम मामलों एवं रेलवे सेक्टर में तकनीकी सहयोग, भारत में सौर ऊर्जा
प्लांट लगाने और ब्राॅडकास्टिंग के क्षेत्र में सहयोग पर एम ओयू और रूस में तेल
खनन को लेकर समझोता हुआ।[12] ब्रिक्स सम्मेलन से पहले 15 अक्टूबर 2016 को गोवा में
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच द्विपक्षीय
वार्ता हुई। सामरिक शक्ति बढ़ाने के लिए भारत ने रूस से 40 हजार करोड़ का रक्षा
समझौता किया। इसमें 5 बिलियन डॉलर (33 हजार करोड़ रूपये) के एयर
डिफेंस सिस्टम का करार भी है। दोनों देशों के बीच कोमोव हेलीकॉप्टर की खरीद व
निर्माण पर सहमति बनी। स्टील्थ फ्रिगेट को लेकर समझौता हुआ है। एस 400 रूस का सबसे उन्नत
एयर डिफेंस सिस्टम है। भारत ऐसे 5 डिफेंस सिस्टम खरीदेगा।
प्रधानमंत्री मोदी चार वर्ष में चैथी बार राष्ट्रपति पुतिन के बुलाने पर एक दिन की
यात्रा के लिए रूस के सोची शहर पहुंचे। 21 मई 2018 को मोदी ने पुतिन
के साथ पहली अनौपचारिक शिखर वार्ता की। मोदी और पुतिन के बीच ईरान परमाणु समझौते
से अमेरिका के हटने के प्रभाव, आई एस, सीरिया, अफगानिस्तान और
न्यूक्लियर पाॅवर को लेकर बातचीत हुई। ड्रेगन के जवाब में भारत, रूस सहित कई देश
संयुक्त रूप से 7200 किमी. अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात
गलियारा बना रहे है, इस गलियारे में पानी के जहाज, रेल, सड़क नेटवर्क शामिल
है। पुतिन के अनुसार, मोदी का दौरा द्विपक्षीय संबंध में नई जान फूंकेगा।[13] सितम्बर 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने दो दिवसीय
दौरे के लिए रूस के ब्लादिवोस्तोक में रहे। ब्लादिवोस्तोक में 5 वे ईस्टर्न
एकोनाॅमिक फोरम में हिस्सा लिया और लोगों को संबोधित भी किया था। प्रधानमंत्री मोदी
ने कहा कि दो साल पहले राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मुझे सेंट पीटर्स बर्ग
इकोनाॅमिक फोरम में आमंत्रित किया। यूरोप के फ्रंटियर से पैसेफिक के गेटवे तक मेरी
भी एक प्रकार से ट्रांस साइबेरियन यात्रा हो गई। ब्लादिवोस्तोक यूरेशिया और नार्दन
सी रूट के लिए अवसर खोलता है इसका तीन चैथाई भाग एशिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने
कहा कि यह पहला मौका है जब हम किसी देश के क्षेत्र लाइन ऑफ, क्रेडिट दे रहे है।
मेरी सरकार की ’एक्ट ईस्ट’ पाॅलिसी ने ईस्ट एशिया को
सक्रियता के साथ जोड़ा है और आज की यह घोषणा एक्ट फाॅर ईस्ट का टेक ऑफ प्वाइंट
साबित होगी। यह मेरा पक्का विश्वास है कि यह कदम हमारी इकोनाॅमिक डिप्लोमेसी में
भी एक नया अध्याय जोड़ रहा है। मित्र राष्ट्रों के क्षेत्र के विकास में
प्राथमिकताओं के आधार पर भागीदार बनेंगे। पीएम मोदी ने इस दौरान रूस के इस पूर्वी हिस्से के सभी 11 गवर्नरों को भारत
आने का न्योता दिया है। पीएम मोदी ने कहा कि आज भारत रूस के संबंध ऐतिहासिक मुकाम
पर है भारत और रूस मिलकर स्पेस की दूरिया पार करेंगे और समुन्दर की गहराईयों को
मापेंगे। उन्होंने कहा कि जल्द ही चैन्नई और ब्लादिवोस्तोक के बीच शिप चलेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मेरी सरकार एक्ट ईष्ट मिशन पर काम कर रही है। भारत और
रूस के बीच करीब 50 से अधिक समझौते हुए है। भारत प्रकृति को बचाने के लिए कई
कदम उठा रहा है। पीएम मोदी ने कहा कि पूर्वी हिस्से में विकास के लिए भारत 1 बिलियन डॉलर का
लाइन ऑफ क्रेडिट देगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भारत कदम से कदम मिलाकर रूस के
साथ चलना चाहता है। भारत में हम सबका साथ, सबका विकास और सबके विश्वास
के साथ आगे बढ़ रहे है। भारत और रूस के साथ आने पर विकास की रफ्तार को 1+1 = 11 बनाने का मौका है। भारत और पूर्वी हिस्से का रिश्ता बहुत पुराना है भारत पहला
देश है जिसने यहाँ पर अपना दूतावास खोला है। ब्लादिवोस्तोक दोनों देशों के लिए एक
अहम स्थान बना है भारत ने यहां पर एनर्जी सेक्टर और दूसरे रिसाॅर्स में निवेश किया
है।[14] द्वितीय विश्वयुद्ध में नाजी जर्मनी पर तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) की विजय के उपलक्ष में मास्कों में रैड स्क्वायर में विजय की 75 वीं वर्षगाठ की
विजय दिवस परेड का आयोजन 24 जून 2020 को हुआ। भारत सहित 17 विभिन्न देशों की
सैन्य टुकड़िया भी इस विजय दिवस परेड़ में शामिल थी। भारत की तीनों सेनाओं की 75 सदस्यीय टुकड़ी परेड़
में शामिल हुई। भारत की और से रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह ने भी मास्कों में
परेड़ का अवलोकन किया। मास्कों प्रवास के दौरान रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह ने
रूसी उपप्रधानमंत्री यूरी बोरिसोव के साथ द्विपक्षीय संबंधों, विशेषतः रक्षा
संबंधों पर वार्ता की जिसे उन्होंने काफी सकारात्मक बताया है।[15] 6 दिसम्बर 2021 को रूसी राष्ट्रपति
व्लादिमीर पुतिन भारत-रूस के बीच द्विपक्षीय शिखर वार्ता हेतु नई दिल्ली पहुंचे
तथा उसी शाम उनकी स्वदेश वापसी हुई। 6 दिसम्बर को रूसी
राष्ट्रपति पुतिन के कुछ ही घंटों के नई दिल्ली प्रवास के दौरान पहले भारत व रूस
के रक्षा मंत्रियों श्री राजनाथ संह व सर्गेई शोइगू तथा विदेश मंत्रियों एस.
जयशंकर व सर्गेई लावरोव के बीच अलग-अलग तथा बाद में 2+2 व्यवस्था के तहत इन
चारों की संयुक्त बैठक हुई। दोनों देशों के बीच सैन्य एवं सैन्य तकनीकी सहयोग के
क्षेत्र में भारत-रूस अन्तर सहकारी आयोग की बैठक भी इसके साथ ही सम्पन्न हुई। इसके
साथ ही दोनों देशों के बीच रक्षा, अन्तरिक्ष, इस्पात्, जहाजरानी, कोयला, पेट्रोलियम व कोविड
सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के 28 समझोतों/समझौता ज्ञापनो पर
हस्ताक्षर किये गये। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण समझौता दोनों देशों के बीच सैन्य तकनीक सहयोग को 2021 से 10 वर्ष और आगे 2031 तक बढ़ाने से
संबंधित था। एक अन्य समझौते के तहत् अमेठी के कोरबा में 6 लाख से अधिक एके 203 असाल्ट राइफलों का
निर्माण भारत व रूस की संयुक्त साझेदारी में किया जाएगा। कोरोना महामारी के दौरान
भी दोनों देशों की सामरिक साझेदारी में हुई सतत् प्रगति पर दोनों नेताओं ने संतोष
व्यक्त किया। वर्ष 2020 के दौरान दोनों देशों के आपसी व्यापार में 17 प्रतिशत की गिरावट
आई थी, वही 2021 के पहले 9 महीनों में इसमें 38 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज
की गई है। पारस्परिक सहयोग में सतत् वृद्धि के लिए कनेक्टिविटी की सुदृढ़ता पर
दोनों नेताओं ने बल दिया इस परिपे्रक्ष्य में इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट
कॉरिडोर व प्रस्तावित चेन्नई बलादिबोस्तक ईस्टर्न मैरिटाइम कॉरिडोर पर भी चर्चा वार्ता हुई। रूस के विभिन्न
क्षेत्रों सुदूर पूर्व क्षेत्रों व भारत के विभिन्न राज्यो के आपसी सहयोग की
सम्भावनाओं पर वार्ता में विचार किया गया। कोविड महामारी के मामले में दोनों देशों
द्वारा आपस में उपलब्ध कराई गई मानवीय सहायता पर संतोष दोनों नेताओं ने व्यक्त
किया। अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा में दोनों नेताओं ने इस मामले में एक दूसरे
की चिन्ताओं को स्वीकार किया। आतंकवाद के हर रूप के विरूद्ध प्रतिबद्धता दोनों
पक्षों ने व्यक्त की। सुरक्षा परिषद् सहित विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आपसी सहयोग के विस्तार
पर बल दोनों पक्षों ने दिया। 2021 के दौरान भारत द्वारा
ब्रिक्स की सफल अध्यक्षता व सुरक्षा परिषद् में भारत की 2 वर्ष की अस्थायी
सदस्यता के लिए रूसी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री श्री मोदी को बधाई दी तथा नाभीकीय
आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत के प्रवेश हेतु अपना समर्थन दोहराया।[16] रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव 31 मार्च 2022 को नई दिल्ली
पहुंचे। उन्होंने 1 अपै्रल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भारतीय विदेश
मंत्री जयशंकर से मिले। इस संबंध में रूसी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मारिया
जरवारोवा ने जानकारी दी है लावरोव 31 मार्च से 1 अपै्रल तक दिल्ली
दौरे पर रहेंगे। लावरोव की यात्रा के दौरान भारत द्वारा रूस से तेल और सैन्य उपकरण
की खरीद के लिए भुगतान प्रणाली पर चर्चा होने की उम्मीद है। रूसी विदेश मंत्री का
भारत दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब यूक्रेन में जंग जारी है। इसलिए पूरी दुनिया
की निगाहे इस बैठक पर रहने वाली है। खास बात यह है कि कुछ दिन पहले ही चीन के
विदेश मंत्री भारत दौरा कर चुके है।[17] विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बयानों की चर्चा पूरी दुनिया में है। उन्होंने रूस
संबंधों पर खरी-खरी सुनाई और कहा कि यूरोप से हथियारों की सप्लाई ना होना रूसी आयात
के पीछे कारण है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर लगातार विदेश यात्रा कर रहे है उनके
बयानों और भारत की कूटनीति की काफी प्रशंसा भी हो रही है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी
देशों से हथियारों के सप्लाई ना होने की वजह से भारत की निर्भरता रूस पर थी। वहीं
यूक्रेन को लेकर स्पष्ट और तीखा रूख रखने को लेकर भी भारत के विदेश मंत्री की
तारीफ की गई है। आस्ट्रेलिया दौरे के समय उन्होंने कहा पश्चिमी देश देख रहे है कि
हमारे पड़ोस में ही एक सैन्य तानाशाही वाला देश है फिर भी उसको सहयोगी बना रहे है।
फरवरी में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने के
प्रयास कर रहे है। रूस दुनिया के कई देशों को हथियार और ईधन सप्लाई करता है। कई
देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए है। हालांकि भारत ने ऐसा नहीं किया है। रूस से तेल आयात करने के सवाल पर जयशंकर ने
अगस्त में कहा था ’’हम उस देश से आते है जहां प्रति व्यक्ति आय 2 हजार डॉलर है। यहां
लोग ऊँची कीमतों में तेल नहीं खरीद सकते है। भारत के हितों को प्राथमिकता देते हुए
उन्होंने कहा था हमारा कर्तव्य है कि हम अपने लोगों को दुनिया में जो सबसे अच्छा
सौदा हो वह उपलब्ध करवाएं ताकि उन्हें महंगाई से ना जूझना पड़े। पाकिस्तान को एफ 16 पैकेज देने पर
विदेश मंत्री ने अमेरिका को खरी-खरी सुनाई थी। उन्होंने कहा था आप किसी को बेवकूफ
नहीं बना सकते। उन्होंने कहा था ईमानदारी से बताऊ तो इस कदम से ना तो पाकिस्तान का
भला होने वाला है और ना ही अमेरिका का। जिस तरह से हमारा देश सूचना और तकनीक में
महारथी है वैसे ही हमारा पड़ौसी अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद के क्षेत्र में महारत
हासिल कर चुका है।[18] विदेश मंत्री एस. जयशंकर 7-8 नवम्बर 2022 को रूस की अधिकारिक यात्रा कर रहे है जिसके दौरान वो रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ ’’द्विपक्षीय मुद्दों के साथ-साथ क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मामलों पर विचार विमर्श करेंगे। फरवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों में रूस एक ’’आक्रमणकारी’’ की तरह देखा जा रहा हैं और उसका साथ देने वाले वाले देशों की भी आलोचना की जा रही है। यहाँ तक कि भारत के तटस्थ रूख को भी शक की नजरों से देखा जा रहा है और भारत पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि वो रूस की आलोचना करे। लेकिन इस मामले में भारत ने अब तक अपनी निष्पक्षता बरकरार रखी है। यूक्रेन पर हुए हमले के बाद से जारी जंग के दौरान भारत-रूस संबंध फलते-फूलते दिख रहे है। दोनों देशों के नेता एक दूसरे के देश की यात्राऐं कर रहे है या फिर अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर मिल रहे है। दोनों देश व्यावहारिक कूटनीति से काम ले रहे है और ऐसा वे अपने-अपने राष्ट्रीय हित के मद्देनजर कर रहे है। भारत ने यूक्रेन में युद्ध का सीधे शब्दों में विरोध किया है और शांति की हमेशा अपील की है। सितम्बर में समरकंद सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ अपनी मुलाकात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट किया था कि ’’ये युद्ध का समय नहीं है।’’ पिछले कुछ समय से भारत और रूस के बीच जारी उच्च स्तरीय यात्राओं के बीच भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो एक चैंका देने वाला आंकड़ा है। इस साल अपै्रल से अगस्त के बीच सिर्फ 5 महीनों में द्विपक्षीय व्यापार 18.2 अरब डॉलर रहा। ये व्यापार पिछले सालों में केवल 8 अरब डॉलर था। इसकी खास वजह है रूस से भारी मात्रा में कच्चे तेल और फर्टिलाइजर का आयात, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 18.2 अरब डॉलर के व्यापार में इन दोनों चीजों का योगदान था। विशेषज्ञ कहते है कि आने वाले महीनों में रूस से कच्चे तेल के आयात में और भी वृद्धि होगी। भारत ने भारी मात्रा में रूसी तेल खरीदना इसलिए शुरू किया क्योंकि रूस ने कच्चे तेल के दाम में भारत को भारी छूट देना शुरू कर दिया है। भारत को ये तेल औसतन 60 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से मिलता है। भारत और रूस ने द्विपक्षीय व्यापार में 40 अबर डॉलर का लक्ष्य रखा है।[19] |
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निष्कर्ष |
भारत और रूस की दोस्ती की कहानी को 74 वर्ष हो गये है। भारत और रूस की वर्षों पुरानी दोस्ती पर ये बात बिल्कुल खरी उतरती है कि रूस ने हर मौके और हर मोर्चे पर भारत का साथ दिया है। 1971 की भारत-सोवियत संधि भारत और रूस के बीच संबंधों को बेहतर करने की आधारशिला है। भारत रूस संबंधों का सबसे मजबूत स्तंभ रक्षा क्षेत्र है रूस और भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के संबंध में एक समान विचारधारा है हालांकि बदलते भू-रणनीतिक वातावरण में दोनों देशों के बीच संबंधों की प्रकृति में बदलाव भी आया है यह स्थिति भारत के लिए एक अवसर के साथ चुनौती भी प्रस्तुत करती है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रशंसा और रूस की आलोचना न करने की वजह से रूसी नेताओं के दिलो में भारत के लिए एक खास जगह बन गई है वो कहते है ’’आम लोग भारत को पहले भी अपना दोस्त मानते थे और अब तो और भी ज्यादा मानने लगे है। लेकिन पुतिन प्रशासन में भारत की छवि और बेहतर हुई है।’’ भारत खुद को वैश्विक ताकत के तौर पर स्थापित करना चाह रहा है और ऐसे में अमेरिका-रूस और चीन के साथ रिश्तों में संतुलन स्थापित करना भारत की आवश्यकता है। 2014 से अब तक 20 बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई है और प्रत्येक दिन एक नया अध्याय जोड़ा जा रहा है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. बिस्वाल तपन ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ प्रकाशक ओरियन्ट ब्लैकस्वाॅन प्राइवेट लिमिटेड 3/6 752
2. हिमायत नगर हैदराबाद, द्वितीय संस्करण, 2022, पृ. 165
3. चड्ढा पी.के. ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ प्रकाशक आदर्श प्रकाशन चैड़ा रास्ता जयपुर, संस्करण, 1987, पृ. 449
4. चड्ढा पी.के. उपरोक्त, पृ. 450-451
5. बिस्वाल उपरोक्त, पृ. 166
6. फड़िया डॉ.बी.एल., फड़िया डॉ.कुलदीप ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ प्रकाशक साहित्य भवन पब्लिकेशन आगरा, संस्करण, 2018, पृ. 232
7. जौहरी डॉ.जे.सी. ’’अन्तर्राष्ट्रीय संबंध’’ प्रकाशक एस.बी.पी.डी. पब्लिकेशन आगरा, संस्करण, 2022, पृ. 294
8. जोहरी उपरोक्त, पृ. 294
9. फड़िया उपरोक्त, पृ. 233
10. जोहरी डॉ.जे.सी. उपरोक्त, पृ. 295
11. फड़िया उपरोक्त, पृ. 234
12. फड़िया उपरोक्त, पृ. 235-236
13. फड़िया उपरोक्त, पृ. 236
14. फड़िया उपरोक्त, पृ. 237
15. www.aajtak.in 5 सितम्बर 2019, पीएम मोदी का रूस दौरा
16. प्रतियोगिता दर्पण ’’अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रम’’ माह अगस्त 2020, पृ. 16
17. प्रतियोगिता दर्पण ’’अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रम’’ माह फरवरी 2022, पृ. 17, 19
18. www.aajtak.in गीता मोहन रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव दिल्ली पहुंचे, दिनांक 31 मार्च 2022
19. www.livehindustan.com अंकित ओझा, 11 अक्टूबर 2022, रूस से संबंध पर विदेश मंत्री की खरी खरी |