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अलवर जिले में पशुधन का स्थानिक वितरण व विश्लेषण 20वीं राजस्थान पशुगणना 2019 पर आधारित अध्ययन | |||||||
Spatial Distribution and Analysis of Livestock in Alwar District Study Based on 20th Rajasthan Livestock Census 2019 | |||||||
Paper Id :
17135 Submission Date :
2023-01-04 Acceptance Date :
2023-01-23 Publication Date :
2023-01-25
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सारांश |
कृषि और पशुपालन भारत में आजीविका के आधार स्त्रोत हैं। राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेश में कृषि की अपेक्षा पशुधन का विशेष महत्व है। अलवर जिला पशु घनत्व और पशुपालन दोनों की दृष्टि से समृद्ध क्षेत्र है। यहाँ पर्याप्त मात्रा में पशुधन पाये जाने का कारण अनुकूल कृषि दशायें व तुलनात्मक रूप से भूमिगत जल स्तर का उच्च उच्च पाया जाना है। शेष राजस्थान की तुलना में यहाँ “डेयरी उद्योग व व्यवस्थित आधारभूत ढाँचे” का स्तर उच्च होने के कारण कुल पशुधन का 3/4 भाग दुधारू पशुओं का पाया जाता है। दुधारू पशुओं में भैंस सर्वप्रमुख व सर्वाधिक पाया जाने वाला पशु है। पशुधन की दृष्टि से जिले का उत्तरी भाग निर्धन तथा दक्षिणी-पश्चिमी भाग सम्पन्न व समृद्ध है। पशुधन से सम्बन्धित योजनाओं व पशु नस्ल सुधार कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन में सरकारी संस्थाओं को ओर अधिक प्रयास करने चाहिए ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का इंजनरूपी आधार ‘पशुधन’ को अधिक उपयोगी व उन्नत बनाया जा सके।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Agriculture and animal husbandry are the main sources of livelihood in India. In an arid region like Rajasthan, livestock has special importance in comparison to agriculture. Alwar district is a rich area both in terms of animal density and animal husbandry. The reason for the sufficient amount of livestock being found here is favorable agricultural conditions and relatively high underground water level. Compared to the rest of Rajasthan, due to the high level of "dairy industry and systematic infrastructure", 3/4 of the total livestock is found in milch animals. Buffalo is the most prominent and most commonly found animal among milch animals. In terms of livestock, the northern part of the district is poor and the south-western part is rich and prosperous. Government institutions should make more efforts in the effective implementation of livestock related schemes and animal breed improvement programs so that the engine base of the rural economy 'livestock' can be made more useful and advanced. | ||||||
मुख्य शब्द | पशुधन, आजीविका, विनिर्माणक क्रियायें, डेयरी उद्योग, नस्ल संवर्धन, दुधारू पशु, आवारा पशु, वृत्ति, सभ्यता। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Livestock, Livelihood, Manufacturing Activities, Dairy industry, Breed Promotion, Milch Cattle, Stray Cattle, Profession, Civilization. | ||||||
प्रस्तावना |
प्राचीन समय से ही मानव व पशुधन का अटूट सम्बन्ध रहा है। मानव सभ्यता के विकास के साथ ही कृषि व पशुपालन का विकास भी रोजगार व जीवन निर्वाह के साधन के रूप में हुआ। पशुपालन का इतिहास मानव सभ्यता के इतिहास के साथ से ही चला आ रहा है। प्राचीन समय में मानव, पशुधन का उपयोग भोजन प्राप्ति व सुरक्षा के लिए करता था। भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसमें कृषि और उससे सम्बन्धित घटकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत की अर्थव्यवस्था विशेषकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि के साथ-साथ पशुधन व पशुपालन का विशेष महत्व है। पशुधन की दृष्टि से भारत एक समृद्ध देश है। यहाँ पर विभिन्न नस्लों के अनेक प्रकार के पशु पाये जाते हैं। भारत में कृषि के बाद पशुधन ‘वृत्ति’ का दूसरा प्रमुख स्त्रोत है। पोषण युक्त भोजन, डेयरी उद्योग व डेयरी उत्पादों के साथ-साथ अन्य घटकों यथा- कृषि, परिवहन आदि के लिए पशुधन एक प्रमुख आधार है। भारत की जन सघनता के लिए रोजगार की दृष्टि से भी पशुधन की केन्द्रीय भूमिका रही है।
राजस्थान में पशुधन ही आजीविका व रोजगार का मुख्य साधन है। प्रतिकूल जलवायु दशाओं और शुष्क मरूस्थल के कारण पशुधन का राज्य में ओर भी महत्व बढ़ जाता है। राजस्थान का पूर्वी भाग विशाल बाजार (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र व जयपुर शहर से निकटता), तुलनात्मक रूप से अनुकूल जलवायु दशाओं तथा कृषि उत्पादन की पर्याप्तता (चारा, घास व खाद्यान) के कारण पशुधन की दृष्टि से समृद्ध है। यहाँ पर विशेष रूप से दुधारू पशुओं का घनत्व अधिक पाया जाता है जिनमें प्रमुख पशु भैंस व जिला अलवर है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. अलवर जिले के पशुधन वितरण का स्थानिक व तुलनात्मक अध्ययन करना।
2. जिले में पाये जाने वाले पशुधन का श्रेणी अनुसार विश्लेषण करना। |
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साहित्यावलोकन | इस शोध कार्य तथा अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित नवीनतम कार्यों का विवरण इस
शीर्षक में दिया गया है। पशुधन मुख्य रूप से अर्थशास्त्रियों, भूगोलविदों तथा कृषि वैज्ञानिकों से सम्बन्धित विषय है।
कालिया सरिना व अन्य (2010) ने “अलवर जिले में कृषि का
परिवर्तित स्वरूप” नामक शोध
कार्य में अलवर जिले के पशुधन का विवरण दिया। प्रसाद जगदीश (2015) ने अलवर जिले
में कृषि भूमि उपयोग परिवर्तन के साथ-साथ जिले के पशुधन का भी संक्षिप्त ब्यौरा
दिया। कुमार प्रदीप तथा यादव डाॅ. सत्यवीर (2017) ने अलवर जिले की बहरोड़ तहसील में
भूमि उपयोग परिवर्तन, नियोजन तथा पशुधन पर शोध
कार्य प्रस्तुत किया। स्वामी रामचन्द्र (2019) ने “अलवर जिले में भूमि उपयोग
प्रतिरूप: एक तुलनात्मक अध्ययन” में अलवर जिले की सामान्य
जानकारी के साथ-साथ पशुधन के बारे में भी बताया। राॅय अनुश्री (2022) ने “अलवर जिले में डेयरी उद्योग”
नामक शोध कार्य में डेयरी पशुओं का तहसीलवार अध्ययन प्रस्तुत किया।इस शोध
कार्य तथा अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित नवीनतम कार्यों का विवरण इस शीर्षक में
दिया गया है। पशुधन मुख्य रूप से अर्थशास्त्रियों,
भूगोलविदों तथा कृषि वैज्ञानिकों से सम्बन्धित विषय है। कालिया सरिना व अन्य
(2010) ने “अलवर जिले में कृषि का
परिवर्तित स्वरूप” नामक शोध कार्य में अलवर
जिले के पशुधन का विवरण दिया। प्रसाद जगदीश (2015) ने अलवर जिले में कृषि भूमि
उपयोग परिवर्तन के साथ-साथ जिले के पशुधन का भी संक्षिप्त ब्योरा दिया। कुमार
प्रदीप तथा यादव डाॅ. सत्यवीर (2017) ने अलवर जिले की बहरोड़ तहसील में भूमि उपयोग
परिवर्तन, नियोजन तथा पशुधन पर शोध
कार्य प्रस्तुत किया। स्वामी रामचन्द्र (2019) ने “अलवर जिले में भूमि उपयोग
प्रतिरूप: एक तुलनात्मक अध्ययन” में अलवर जिले की सामान्य
जानकारी के साथ-साथ पशुधन के बारे में भी बताया। राॅय अनुश्री (2022) ने “अलवर जिले में डेयरी उद्योग”
नामक शोध कार्य में डेयरी पशुओं का तहसीलवार अध्ययन प्रस्तुत किया। |
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मुख्य पाठ |
शोध क्षेत्र अलवर जिला अवस्थिति के हिसाब से राज्य के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। इसका अक्षांशीय व देशान्तरीय विस्तार क्रमशः 27040’ से 28040’ उत्तरी अक्षांश व 76007’ से 77013’ पूर्वी देशान्तर है। दिल्ली-जयपुर-आगरा गोल्डन त्रिकोण पर स्थित यह जिला राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का भी हिस्सा है। यहाँ पर अरावली की पहाड़ियाँ व सरिस्का बाघ परियोजना विद्यमान है। अलवर जिले की मुख्य नदियाँ रूपारेल, साबी, बाणगंगा तथा झीले सिलीसेढ़, जयसमन्द आदि हैं। अलवर जिले का क्षेत्रफल 8000 वर्ग किलोमीटर के लगभग है। औसत दैनिक तापमान 32.50 सेल्सियस तथा औसत वार्षिक वर्षा 65 सेन्टीमीटर है। (स्रोत: जिला सांख्यिकी रूपरेखा वर्ष-2020)
जिले में वर्तमान समय में 16 तहसीलें हैं लेकिन यह शोध कार्य 12 तहसीलों पर आधारित है। 2011 की जनगणनानुसार जिले की कुल जनसंख्या 36.74 लाख है। अलवर जिला कृषि व पशुधन की दृष्टि से समृद्ध जिला माना जाता है। 20वीं पशुगणनानुसार जिले में भैंस, बकरियाँ व गौवंश सर्वाधिक पाया जाता है। |
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सामग्री और क्रियाविधि | यह शोध कार्य अलवर जिले में पाये जाने वाले पशुधन के स्थानिक वितरण व विश्लेषण से सम्बन्धित है। यह शोधकार्य पूर्णतः द्वितीयक आँकड़ों पर आधारित है, जिसका आधार “20वीं राजस्थान पशुगणना 2019” है। इस शोध कार्य को प्रभावी व सरल बनाने के लिए आवश्यकतानुसार तालिका, डायग्राम, पाई-चार्ट और वृद्धि दर तथा आरेखों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया गया है। आँकड़ों के स्रोत के रूप में मुख्य रूप से जिला आर्थिक समीक्षा, राजस्थान पशुगणना, पशुधन विकास बोर्ड आदि के प्रतिवेदनों तथा इंटरनेट का उपयोग किया गया है। |
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विश्लेषण | अलवर जिले में पशुधन: वितरण, विश्लेषण व प्रवृति पशुधन श्रेणियाँ यह शोध कार्य अलवर जिले में पाये जाने वाले विभिन्न श्रेणी के पशुओं यथा-दुधारू पशु, बेकार पशु, आवारा और पालतू पशुओं के आधार पर किया गया है।20वीं पशुगणना अनुसार प्रमुख पशुधन श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं, जिनके आधार पर यह अध्ययन कार्य किया गया है- 1. गोवंश तहसीलवार पशुधन वितरण व विश्लेषण जिले में सर्वाधिक पशुधन संकेन्द्रण अलवर,
राजगढ़, बानसूर तथा बहरोड आदि
तहसीलों में है। यहाँ पर पशुओं में भैंस व गाय मुख्य रूप से पाली जाती है, जिसका कारण है “विकसित डेयरी उद्योग”। वहीं दूसरी ओर जिले में न्यूनतम पशुधन वाली तहसील
कोटकासिम है, जिसका कारण है- द्वितीयक
आर्थिक क्रियाओं की सघनता यथा- औद्योगिक पार्क व विनिर्माणक इकाईयाँ। पशुधन के
तहसीलवार वितरण का निम्नलिखित डायग्राम की सहायता से तुलनात्मक अध्ययन किया जा
सकता है। अलवर जिले की तहसीलों में तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि कुछ तहसीलें पशुधन की दृष्टि से सम्पन्न हैं वहीं कुछ तहसीलें निर्धन हैं। समग्र जिले का विश्लेषण किया जाये तो ज्ञात होता है कि जिले का मध्यवर्ती व दक्षिणी-पश्चिमी भाग पशुधन से समृद्ध है, वहीं उत्तरी भाग में (औद्योगिक क्रियाओं के कारण) कम पशु घनत्व पाया जाता है। पशुधन की संख्या के अनुसार जिले की तहसीलों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -तालिका का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि 1.25 लाख से कम पशुधन वाली
तहसीलें तीन, 1.25 से 1.75 लाख के मध्य पशुधन वाली तहसीलें 5 तथा 1.75 लाख
से अधिक पशुधन वाली तहसीलों की संख्या 4 है।
पशुधन का श्रेणीवार वितरण अलवर जिले में 20वीं पशुगणनानुसार कुल पशुधन 18.68 लाख है। इसमें सर्वाधिक संख्याबल वाला पशुधन भैंस है, जिनकी कुल संख्या 11.45 लाख है, जो जिले के कुल पशुधन का आधे से अधिक है। प्रथम तीन स्थानों पर पाया जाने वाला पशुधन क्रमशः भैंस, बकरियाँ तथा गोवंश है। वहीं जिले में गधों/खच्चरों की संख्या सबसे कम है। दूसरा न्यूनतम पाया जाने वाला पशुधन घोड़ा है। पशुओं के श्रेणीवार वितरण को हम निम्नलिखित पाई-चार्ट के द्वारा आसानी से समझ सकते हैं। पशुधन वितरण प्रतिरूप अध्ययन क्षेत्र के पशुधन का श्रेणीवार विश्लेषण करके स्थानिक तुलना करने से
परिलक्षित होता है कि जिले में गौवंश सर्वाधिक तिजारा तहसील में जबकि न्यूनतम
कोटकासिम तहसील में पाया जाता है।
पशुधन श्रेणी का दूसरा पशु भैंसों की संख्या का अवलोकन करने से ज्ञात होता है
कि यह दुधारू पशु सर्वाधिक अलवर तहसील में जबकि न्यूनतम कोटकासिम तहसील में पाया
जाता है। बकरियाँ सर्वाधिक राजगढ़ तहसील में व न्यूनतम् कोटकासिम तहसील में पायी
जाती हैं। इसी प्रकार भेड़ संख्या में
सर्वाधिक कठूमर तहसील में जबकि न्यूनतम् कोटकासिम तहसील में पायी जाती हैं। घोड़े व
टट्टू सर्वाधिक अलवर तहसील में जबकि न्यूनतम किशनगढ़ बास तहसील में पाये जाते हैं।
गधे/खच्चर सर्वाधिक मुण्डावर तहसील में जबकि न्यूनतम लक्ष्मणगढ़ तहसील में पाये
जाते हैं। राजकीय पशु ऊँट सर्वाधिक अलवर तहसील में व न्यूनतम कोटकासिम तहसील में
पाये जाते हैं। सुअर सर्वाधिक अलवर तहसील में जबकि न्यूनतम तिजारा तहसील में पाये
जाते हैं। तालिका से स्पष्ट होता है कि भैंसे,
घोड़े व टट्टू, ऊँट तथा सूअरों की सर्वाधिक
संख्या अलवर तहसील में पायी जाती है,
वहीं गौवंश, भैंस बकरियों, भेड़ों व ऊँटों की न्यूनतम संख्या कोटकासिम तहसील में पायी
जाती है। |
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निष्कर्ष |
प्रस्तुत शोध-पत्र के माध्यम से अवलर जिले के पशु सांख्यिकी का वितरण, वर्गीकरण तथा प्रवृत्ति आदि उपागमों का बोध होता है। सारांश रूप में इस शोध पत्र के माध्यम से हम निम्नलिखित तथ्यों की पुष्टि कर सकते हैं-
1. अलवर जिले में दुधारू पशुओं का अधिक मात्रा में घनत्व पाया जाता है। जिले के कुल पशुधन व दुधारू पशुओं में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा भैंसों का पाया जाता है।
2. जिले के उत्तरी भाग में अपेक्षाकृत कम पशुधन पाया जाता है जबकि मध्य दक्षिणी-पश्चिमी भाग में अधिक पशु पाये जाते हैं।
3. गौवंश उत्तरी मध्य भाग में, भैंसे मध्य दक्षिणी-पश्चिमी भाग में, बकरियाँ दक्षिणी भाग में तथा भेंड़े दक्षिणी-पूर्वी भाग में अधिक पायी जाती हैं।
4. अलवर जिले में गधे/खच्चरों की संख्या कुल पशुधन में न्यूनतम है।
5. राज्य में डेयरी उद्योग विकसित अवस्था में सक्रिय रूप से व्याप्त है।
6. जिले में डेयरी उद्योग तथा पशुधन में सकारात्मक सम्बन्ध तथा द्वितीय विनिर्माणक गतिविधियों व पशुधन की उपलब्धता में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | इस शोध कार्य के आधार पर मुख्य सुझाव निम्नलिखित हैं:- 1. सम्बन्धित प्रशासन के अंगों व संस्थाओं को पशुधन से सम्बन्धित योजनाओं व कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से लागू करना चाहिए। 2. बेकार पशुओं के उपयोग आधारित व्यवस्था के लिए उचित प्रकार का तंत्र विकसित करना चाहिए ताकि इस प्रकार के पशुओं की उपयोगिता व महत्व बढ़ सके। 3. पशु नस्ल सुधार कार्यक्रमों की गहनता व दायरे को विस्तृत करना चाहिए ताकि नस्ल सुधार कर उपयोगी पशुधन का लाभ लिया जा सके। 4. राज्य पशु ऊँट के सरंक्षण, संवर्धन तथा प्रजनन को बढ़ावा देना चाहिए। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. अलवर जिला आर्थिक एवं सांख्यिकी, वार्षिक प्रतिवेदन 2018-19
2. अलवर जिला सांख्यिकी रूपरेखा, वार्षिक प्रतिवेदन 2020
3. जिला गजेटीयर, अलवर
4. आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय राजस्थान, जयपुर, वार्षिक प्रतिवेदन 2021-22
5. राजस्थान पशुधन विकास बोर्ड, जयपुर, 20वीं पशुगणना 2019
6. प्रसाद, जगदीश (2015) “अलवर जिले में कृषि भूमि उपयोग परिवर्तन का एक भौगोलिक अध्ययन” शोध प्रबन्ध, झुंझुनूं।
7. स्वामी, रामचन्द्र (2019) “अलवर जिले में भूमि उपयोग प्रतिरूप: एक तुलनात्मक अध्ययन” राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
Website
1. www.google.com
2. www.landrevenue.rajasthan.gov.in
3. www.rldb.nic. in
4. www.alwar.nic.in |