P: ISSN No. 2321-290X RNI No.  UPBIL/2013/55327 VOL.- X , ISSUE- V January  - 2023
E: ISSN No. 2349-980X Shrinkhla Ek Shodhparak Vaicharik Patrika
भारत के आर्थिक व मानवीय विकास में शिक्षा की भूमिका का अध्ययन
Study of the Role of Education in the Economic and Human Development of India
Paper Id :  17008   Submission Date :  2023-01-03   Acceptance Date :  2023-01-21   Publication Date :  2023-01-25
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अनुज कुमार
शोध छात्र
अर्थशास्त्र
टी.एम.बी.यू
भागलपुर,बिहार, भारत
सारांश
प्रस्तुत शोध आलेख “भारत के आर्थिक व मानवीय विकास में शिक्षा की भूमिका का अध्ययन” में देश के आर्थिक विकास पर शिक्षा का प्रभाव का अध्ययन किया गया है। चूँकि मानव एक सामाजिक प्राणी है। अतः जैसे-जैसे मानव सभ्यता का विकास होता गया, उसकी आवश्यकताएँ भी परिवर्तित होती चली गई। सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानवों की आवश्यकताएँ भी बढ़ती गईं। मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति का मूल आधार उसका परिवार, समाज और देश की आर्थिक व्यवस्थाएँ ही हैं। देश में उपलब्ध आर्थिक व्यवस्थाएँ ही व्यक्ति और समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर उन्हें विकास के पथ पर अग्रसर करती है। वर्तमान समय में प्रत्येक राष्ट्र आर्थिक विकास को बढ़ाने और जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए प्रयत्नशील है। इसके लिए आय का बढ़ना आवश्यक है। विकसित देश प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय को और अधिक बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है, वहीं दूसरी ओर विकासशील और निर्धन देश प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। राष्ट्रीय आय में वृद्धि पर कई कारकों का प्रभाव होता है, जिसमें एक महत्वपूर्ण कारक शिक्षा का होना है। चूँकि शिक्षा विकास की एक ऐसी प्रक्रिया है, जो मानवों के अंतः करण में मौजूद प्रकृति प्रदत्त शक्तियों को बाहर निकालती है। अतः प्रस्तुत शोध आलेख में भारत के आर्थिक विकास व मानवीय विकास पर शिक्षा की भूमिका का अध्ययन किया गया है, जिसमें शिक्षा अनुपात का आर्थिक विकास के विभिन्न कारकों पर प्रभाव का अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में यह पाया गया कि शिक्षा का प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय, जन्म दर प्रति हजार, मृत्यु दर प्रति हजार, जीवन संभाव्यता आदि कारकों पर सकारात्मक प्रभाव हुआ है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the present study “The role of education in the economic development and human development of India.” the effect of education on the economic development of the country has been studied. Since man is a social animal, as the human civilization progressed, his needs also changed. Along with the development of civilization, the needs of humans also increased. The basic basis of fulfillment of human needs is his family, society and economic systems of the country. The economic systems available in the country fulfill the needs of the individual and the society and lead them on the path of development. At present, every nation is trying to increase the economic development and raise the standard of living. For this, it is necessary to increase income. The developed country is trying to increase the per capita national income; on the other hand, the developing and poor countries are trying to raise the per capita national income. The increase in national income is influenced by many factors, in which one of the important factors is education. Since, education is such a process of development that brings out the powers given by nature present in the heart of human beings. Hence, in the presented research article, the role of education has been studied on India's economic development and human development, in which the effect of education ratio on various factors of economic development has been studied. In the present study, it was found that education has a positive effect on per capita national income, birth rate per thousand, death rate per thousand life expectancy, etc.
मुख्य शब्द शिक्षा, आर्थिक विकास, मानव विकास, जीवन प्रत्याशा।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Education, Economic Development, Human Development, Life Expectancy.
प्रस्तावना
शिक्षा को मानव विकास की कुंजी माना जाता है क्योंकि शिक्षा मानव और मानव समाज का अभिन्न अंग है। आदिकाल में मानव शिकारी जीवन व्यतीत किया करते थे, इसलिए उस समय की शिक्षा व्यवस्था आज की तरह नहीं रही हेागी। समयानुसार उस व्यवस्था में परिवर्तन होते गया और अततः मानव आज के आधुनिक युग में प्रवेश किया। वर्तमान समय में विश्व के सभी देशों में शिक्षा व्यवस्था का समाज और देश के आर्थिक विकास व राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चूंकि मानव एक सामाजिक प्राणी है, अतः मानव सभ्याता के विकास के साथ-साथ मानवीय आवश्यकताओं में भी वृद्धि होती चली गयी। मानवीय आवश्यकताओं का मूल आधार परिवार, समाज और राष्ट्र की आर्थिक व्यवस्था का विकास है। अतः आर्थिक व्यवस्था मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति कर व्यक्ति और समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने का साधन प्रदान करती है। शिक्षा ही मानवीय विकास व आर्थिक विकास का आधार है। शिक्षा के बिना मानव पशु के समान माना जाता है। शिक्षा शिक्ष् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है, सीखना अर्थात व्यवहार में परिवर्तन होना। व्यवहार में सभी प्रकार के परितर्वन को हम शिक्षा नहीं कह सकते हैं। मानव व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन को हम शिक्षा कहते है। इस प्रकार शिक्षा का वास्तविक अर्थ मानव के व्यवहार में सकारात्मक परितर्वन से है। जब मानव के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन होता है तो वह मानवीय विकास व आर्थिक विकास, सामाजिक विकास, सांस्कृतिक विकास आदि की बुनियादी नींव को मजबूत करती है। शिक्षा आर्थिक विकास, मानवीय व समाजिक विकास का आधार है क्योंकि शिक्षा ही विकास प्रक्रिया का आधार है। शिक्षा बालकों के अंतः करण में जो प्रकृति प्रदत्त शक्तियां मौजूद है, को बाहर निकालकर उसे एक कुशल उत्पादक, कुशल कारीगर, कुशल वैज्ञानिक, कुशल डॉक्टर, कुशल इंजीनियर, कुशल समाजसेवी और कुशल कारीगर या कुशल श्रमिक बनाते हैं। अतः शिक्षा की उस बीज की भांति है जो विशाल वृक्ष का निर्माण करती है। अतः शिक्षा ही मानव के विकास का आधार है। बिना शिक्षा मानव मानव नहीं रह जाता है, वह पशु समान माना जाता है। आज के इस तकनीकी युग में शिक्षा मानव के विश्व में उन्नति का मार्ग को प्रसस्त करती है। विश्व के सभी देशों में मानवीय विकास के लिए सर्वप्रथम शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहा है। वैसे देश या राज्य जहाँ की साक्षरता दर कम है या शिक्षा का स्तर निम्न है, वहां की आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ जाती है क्योंकि शिक्षा मानव का सर्वांगीण विकास करती हैं। किसी देश का आर्थिक विकास उस देश में प्रचलित शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करती है। प्रत्येक व्यक्ति का आय संग्रह करने का अलग-अलग तरीका, अलग-अलग नजरिया होता है। कोई उत्पादक बनकर लाभ कमाना चाहता है, तो कोई नवाचारी, कोई कुशल व्यापारी बनना चाहता है, तो कोई इंजीनियर, तो कोई समाजसेवी बनकर समाज की सेवा करना चाहता है, कोई शिक्षक बनकर राष्ट्र निर्माण करना चाहता है, कोई फौजी बनकर देश सेवा करना चाहता है, कोई वैज्ञानिक बनकर समाज की सेवा करना चाहता है। किसी भी अर्थव्यवस्था के वृद्धि और विकास के लिए इन सभी लोगों की आवश्यकता होती है। यदि समाज में सभी प्रकार के लोग जैसे-कुशल उत्पादक, कुशल व्यापारी, कुशल श्रमिक, कुशल इंजीनियर, कुशल समासेवी, कुशल शिक्षक, कुशल डॉक्टर, कुशल वैज्ञानिक उपलब्ध हों तो उस समाज अर्थव्यवस्था का तीव्र विकास होता है। भारतीय शिक्षा और आर्थिक विकास का इतिहास:- वर्तमान समय में औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में मानव एक प्रकार से व्यस्त जीवन व्यतीत कर रहा हैं। वहीं विकासशील देश अपनी संस्कृति को बनाए रख अपना विकास कर रही है। यहां वर्तमान विश्व के सामने दो दृष्टिकोण हैं। प्रथम यह कि विभिन्न औद्योगिक देशों में तकनीकी विकास सदा चलता रहेगा और आय की असमानता भी बनी रहेगी। वहीं ये देश आय की अमसानता को कम करने का प्रयास भी कर रहे हैं। वहीं दूसरे दृष्टिकोण में यह माना गया कि देशों की बीच तकनीकी विकास हमेशा के लिए कायम नहीं रह सकती है। विकासशील देशों में जैसे-जैसे तकनीकी प्रगति होती जाएगी, वैसे-वैसे आय की असमानता कम होती चली जाएगी और अंततः आय की असमानता को समाप्त किया जा सकेगा। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् विकसित देशों के समान ही भारत में भी शिक्षा का व्यवसायीकरण किया जाने लगा है या शिक्षा को व्यावसायिक रूप प्रदान किया जा रहा है। शिक्षा के क्षे़त्र में भारत ने काफी विकास किया है और प्रति वर्ष शिक्षा पर सरकार का खर्च बढ़ता जा रहा है। लेकिन फिर भी जिस प्रकार शिक्षा पर व्यय किया गया उस अनुपात में शिक्षा में प्रगति नहीं हो सकी है। भारत के कुछ राज्यों जिसमें केरल एक ऐसा राज्य है, जहां शिक्षा का प्रतिशत अधिक है लेकिन वहाँ आर्थिक विकास कम हुआ हैे। वहीं यदि पंजाब और हरियाणा का उदाहरण लें, तो शिक्षा की अपेक्षा आर्थिक विकास अधिक हुआ है। यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि शिक्षा के अतिरिक्त भी कई तत्व ऐसे हैं जो आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं। यहाँ यह भी समझ लेना चाहिए कि शिक्षा प्रदान करना और आर्थिक विकास के लिए शिक्षा प्रदान करना दोनों ही अलग-अलग हैं। आर्थिक विकास किसी अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया को बताती है जो उस अर्थव्यवस्था में प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय का ऊँंचा स्तर को प्राप्त करना है। अतः आर्थिक विकास में कोई देश अपने देश में उपलब्ध समस्त साधनों का कुशलतम ढंग से प्रयोग कर देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने के साथ-साथ आय की असमानता में कमी करने का भी प्रयास करता है। प्राचीन समय में भारत सोने की चिड़ियाँ कहलाती थीं। इसी संदर्भ में एक आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन ने कहा कि “ प्रथम सदी से दसवीं सदी तक भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी।” ब्रिटिश काल में भारत का वृहत पैमाने पर शोषण किया गया जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था आजादी के समय तक काफी कमजोर होती चली गई। आजादी के पश्चात् भारत में समाजवादी शक्तियों के होथों में देश की कमान संभाली गई और बीसवीं सदी में भारतीय अर्थव्यवस्था ब्रिटिश के द्वारा किए गए शोषण के दर्द से उभरा। वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है और भारत सरकार का लक्ष्य जल्द ही कम से कम 5 ट्रिलियन डॉलर का बनाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत की जनसंख्या विश्व में दूसरा सबसे अधिक है अर्थात् भारत में विश्व की दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता वर्ग है। भारत सरकार को वर्ष 1991ई0 में सोना तक को गिरवी रखना पड़ा था और इसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती का दौर सुरू हुआ। आज भारत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में तेजी से विकास कर रहा है। सन् 1991 ई0 में हुए आर्थिक सुधारों के फलस्वरूप वैश्वीकरण, उदारीकरण और नवीन औद्योगिक नीतियों ने भारत के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है और भारतीय अर्थव्यवस्था एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 1991 ई0 के बाद भारत 8 प्रतिशत की दर से विकास किया। वही वर्ष 2005-06 और वित्तीय वर्ष 2007-2008 के बीच भी लगभग 9 प्रतिशत की दर से विकास किया है। वैश्विक मंदी के दौर 2012-13, 2013-14 में विकास दर में कमी आयी और यह विकास की दर 4.6 प्रतिशत तक पहुँच गयी। फिर भारत की विकास दर में विभिन्न नीतियों के कारण कम होती चली गयी और वर्ष 2019 से कोविड महामारी ने वैश्विक अर्थवस्था समेत भारतीय अर्थव्यस्था को भी झकझोर कर रख दिया। वर्तमान वित्तीय वर्ष में भारत की अर्थव्यवस्था कोविड के झटकों से धीरे-धीरे बाहर निकल रही है। शोध की आवश्यकता:- वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी देशों की मूल समस्या आर्थिक विकास की समस्या है। प्रत्येक देश आज अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए, मानव जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए प्रयत्नशील हैं। वहीं अन्य ओर विकसित देश मानव जीवन स्तर तथा राष्ट्रीय आय को बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है ताकि वैश्विक रूप में अपना प्रभुत्व कायम रखा जा सकें। भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। प्राचीन समय से ही भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार कृषि रही है। हलांकि वर्तमान समय में कृषि का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान कम हो रहा हैं। वहीं अन्य वाणिज्य और सेवा क्षेत्रों का योगदान बढ़ रहा है। वर्तमान समय में किसी भी अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास का एक मूलभूत कारक शिक्षा है। अतः शिक्षा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक परिवेश उत्पन्न करता है जिससे उस देश का आर्थिक विकास संभव होता है। अतः वर्तमान अध्ययन से संबधित कई शोध पूर्व में भी हो चुके हैं लेकिन फिर भी इस संबंध में बदलते समय व परिवेश में शिक्षा का आर्थिक विकास पर प्रभाव का अध्ययन आवश्यक है ताकि शोध से कोई नवीन तथ्य प्राप्त हों या पूर्व से प्राप्त तथ्यों में सुधार हो जो देश के आर्थिक विकास की नीति निर्माताओं और नवीन शोधकताओं को एक नवीन आधार प्रदान कर सके।
अध्ययन का उद्देश्य
कोई भी मानवीय कार्य उद्देश्यपूर्ण होता है। अतः प्रस्तुत शोध पत्र भारत के आर्थिक विकास में शिक्षा के योगदान का अध्ययन में निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य हैं:- 1. शिक्षा तथा प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के बीच संबंध का अध्ययन करना। 2. देश के आर्थिक विकास में शिक्षा के योगदान का अध्ययन करना। 3. शिक्षा और आर्थिक विकास के बीच दीर्घकालीन संबंधों का अध्ययन करना। 4. शिक्षा का स्तर तथा जन्म दर के बीच के संबंधों का अध्ययन करना। 5. शिक्षा का स्तर तथा मृत्यु दर के बीच संबन्धों का अध्ययन करना। 6. शिक्षा का स्तर तथा जनसंख्या वृद्धि दर के बीच के संबंधों का अध्ययन करना। शोध पकिल्पनाएं:- वर्तमान शोध की निम्नलिखित शोध परिकल्पनाएं हैं:- 1. शिक्षा अनुपात तथा प्रतिव्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय(स्थिर कीमत पर) के बीच सहसंबध्ंा है। 2. शिक्षा अनुपात तथा प्रतिव्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय(चालू कीमत पर) के बीच सहसंबध्ंा है। 3. शिक्षा अनुपात तथा जन्म दर के बीच सहसंबंध है। 4. शिक्षा अनुपात तथा मृत्यु दर के बीच सहसंबंध है। 5. शिक्षा अनुपात तथा जनंसख्या वृद्धि के बीच सहसंबध है। 6. शिक्षा अनुपात तथा जीवन संभाव्यता के बीच सहसंबध है।
साहित्यावलोकन
कौर मंदीप (2019) शोधकत्र्ता ने अपने शोध पत्र आर्थिक वृद्धि और शिक्षा में इस निष्कर्ष पर पहुँंचे कि शिक्षा आर्थिक विकास के मौलिक कारकों में से एक हैं। कोई भी देश मानव पूंँजी में स्थायी निवेश के बिना समावेशी विकास को प्राप्त नहीं कर सकता है। मानव पूंजी में निवेश मानव के जीवनस्तर को प्रभावित करती है। शिक्षा मानव के स्वयं और समाज की सोचन-समझने व तर्क करने की क्षमता को समृद्ध करती है। शिक्षा मानव के रहन-सहन के स्तर, मानव की गुणवत्ता में सुधार लाती है, जिससे समाज को व्यापक रूप में लाभ प्राप्त होती है। शिक्षा लोगों में उसकी नवोन्मेष की क्षमता, उत्पादकता और उसकी रचनात्मकता को बढ़ाने का काम करती है। शिक्षा मानव के विकास वह कुंजी है जो उसके विकास की नींव प्रदान करती है। यह लोगों की आर्थिक दक्षता, सामाजिक स्थिरता, गरीबी उन्मूलन में सहायक साबित होती है। शिक्षा श्रम के मूल्य और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने का कार्य करती है। अतः शिक्षा मानव के सर्वांगीण विकास के साथ-साथ यह अर्थव्यवस्था के लिए रामबाण का कार्य करती है। 
रीना (2018) ने शोध लेख भारत के आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका में यह पाया कि शिक्षा एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो शिक्षार्थी को नवोन्मेषक, शोधार्थी, प्रशिक्षक, कुशल व्यापारी, कुशल उत्पादक, कुशल श्रमिक तथा विवकेशील उपभोक्ता बनाती है। गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा कुशल उत्पादक, कुशल उपभोक्ता आदि का निर्माण करता है तथा यह प्रभावी आर्थिक विकास को बढ़ावा प्रदान करती है।  
दहल गंगाधर व अन्य (2016), द कंट्रीब्यूशन ऑफ एजुकेशन टू इकोनोमोनिक ग्रोथ: इभिडेंस फ्राॅम नेपाल, यह शोध पत्र नेपाल के आर्थिक विकास में शिक्षा के योगदान में शिक्षा की भूमिका का अध्ययन अध्ययन करता है। इस शोध पत्र में यह प्रर्दशित किया गया है कि नेपाल के सकल घरेलू उत्पादन में तथा नेपाल के आर्थिक व सामजिक विकास में शिक्षा का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस शोध पत्र का विश्लेषण आर्थिक विकास में शिक्षा के योगदान का समर्थन करता है। यह शोध पत्र का न्यूनतम वर्ग विधि के द्वारा प्राप्त विश्लेषण के आधार पर प्राप्त परिणामों से यह स्प्ष्ट होता है, कि प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक और उच्चतर स्तर पर शिक्षा और आर्थिक विकास में दीर्घकालीन सहसंबंध पाया जाता है। जोहांसन कंटीग्रेशन परीक्षण से प्राप्त परिणामों यह निष्कर्ष निकलता है कि शिक्षा तथा आर्थिक विकास में गहरा संबंध है। इसका अर्थ होता है कि प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा नेपाल व एशिया की प्रति व्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में योगदान करता है। प्राथमिक, माध्यमिक, तृतीयक और उच्चतर शिक्षा स्तर का श्रम की सहभागिता, परिवारिक आय, प्रतिव्यक्ति आय, परिवार का आकार आदि के प्रबंधन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ हैं।
अवस्थी निधि (2016) ने अपने शोध कार्य ग्रामीण व नगरीय परिवारों की जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूकता को अध्ययन में पाया कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों की जागरूकता की अधिक आवश्यकता है क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण में महिलाओं के सामने पारंपरिक संस्कार और मूल्य बाधा पहुंचाते हैं। उन्होंने अपने अध्ययन में महिलाओं की शिक्षा को अत्यंत आवश्यक बताया है। उन्होंनंे अपने शोध में पाया कि सामाजिक लाभ व्यक्तिगत लाभ से उपर है। अतः साामाजिक लाभ के लिए, देश का आर्थिक विकास के लिए शिक्षा हमें जागरूक, संवेदनशील, और उत्तरदायी नागरिक बनाते हैं। 
ब्रम्हे आर व अन्य (2020) ने अपने अध्ययन “जनसंख्या वृद्धि का आर्थिक विकास पर प्रभाव: छत्तीसगढ़ राज्य के संबंध में”  पाया कि छत्तीसगढ़ राज्य में जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ शिक्षा के स्तर में भी विकास हुआ है। शिक्षा में वृद्धि जनसंख्या में वृद्धि की अपेक्षा तीन गुणा अधिक हुई है। उन्होनें शिक्षा का आर्थिक विकास पर प्रभाव का वर्णन करते हुए बताया कि शिक्षा, सभ्यता, संस्कृति और आर्थिक विकास का मूल आधार है। जिन देशों में शिक्षा को प्रोत्साहित किया है, वे सभ्य तथा विकसित हुए हैं। किसी भी अर्थव्यवस्था में शिक्षा और विकास दोनों ही साथ-साथ गति करते हैं। शिक्षा से अज्ञानता, शोषण व दुःख से मुक्ति मिलती है। 
सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध पत्र शिक्षा का आर्थिक तथा समाजिक विकास पर प्रभाव का अध्ययन करता है। यह शोध पत्र द्वितीयक आकड़ो पर आधारित है। द्वितीयक आँकड़ो का संकलन विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी विभागों की वेबसाईटों पर उपलब्ध आंकड़ो से किया गया है। प्रस्तुत शोध में शि़क्षा के आर्थिक विकास व मानवीय विकास पर प्रभाव का अध्ययन करने के लिए संकलित किए गए आंकड़ों को तालिका में सजाकर विभिन्न चरों के बीच के संबधं को जानने के लिए सहसंबंध गुणांक, निर्धारणीय गुणांक का आकलन किया गया है। वहीं सहसंबन्ध की सार्थकता के परीक्षण करने के लिए टी-परीक्षण; (T-test),मानक त्रुटि(Standard Error), संभाव्य विभ्रम(Probable Error) आदि का प्रयोग किया गया है। शिक्षा के आर्थिक विकास पर प्रभाव का तुलनात्मक अध्ययन के लिए विभिन्न चरों के बीच जैसे साक्षरता का अनुपात तथा जन्म दर के बीच, शिक्षा के अनुपात का मृत्यु दर के बीच, साक्षरता अनुपात का जनसंख्या वृद्धि के बीच, साक्षरता अनुपात का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू अनुपात के बीच के संबन्ध को ग्राफ और चार्ट के माध्यम से भी प्रदर्शित किया गया है।
विश्लेषण

किसी देश का आर्थिक विकास उसकी उत्पादन शक्ति पर निर्भर करती है। वही उत्पादन शक्ति का विकास उस देश में उपलब्ध संसाधनों जिसमें प्राकृतिक संसाधन, मानवीय श्रम, पूंजी और साहस आदि कारकों का प्रभाव पड़ता है। किसी अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास के दो तत्व होते हैं। पहला आर्थिक तत्व और दूसरा सामाजिक तत्व। आर्थिक तत्वों में जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधन, पूंजी, वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति, संगठन व विशिष्टीकरण आदि कारक आते हैं। वहीं सामाजिक तत्वों में उन सभी कारकों को शामिल किया जाता है जो विकास के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करते हैं। इन कारकों में समाज की उन्नति की ईच्छा, विकास के लिए तत्परता एवं उत्पादन के लिए नवीन वातावरण, नवोन्मेंष आदि को शामिल किया जाता है। किसी अर्थव्यवस्था के विकास में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय, साक्षरता अनुपात, जनसंख्या वृद्धि की दर, जन्म दर, मृत्यु दर, व्यक्ति की जीवन संभाव्यता आदि के द्वारा अनुमानित किया जाता है। यदि प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय तथा साक्षरता अनुपात उच्च हो तो यह माना जाता है कि वह देश विकास कर रहा है। वहीं अन्य बातों में अर्थव्यवस्था में जन्म दर, मृत्यु दर, जनसंख्या की वृद्धि की दर, व जीवन संभाव्यता आदि के द्वारा भी आर्थिक विकास को पहचाना जाता है।  वर्तमान शोध अध्ययन भारतीय अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका के अध्ययन के लिए विभिन्न स्त्रोंतों से प्राप्त द्वितीयक आंकड़ों को निम्न तालिका-1 में प्रदर्शित किया गया है। 

उपयुक्त तालिकाः-1 में आर्थिक सर्वे 2021-22 और यूएनपीपी से प्राप्त द्वितीयक आंकड़ों को प्रदर्शित किया गया है। तालिका के प्रथम स्तंभ में वर्ष, द्वितीय स्तंभ में साक्षरता अनुपात, तृतीय स्तंभ में स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय, चतुर्थ स्तंभ में चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय को प्रदर्शित किया गया है। तालिका-1 के पांचवे स्तंभ में स्थिर कीमत पर प्रतिव्यक्ति आय, छठें स्तंभ में चालू कीमत पर प्रति व्यक्ति आय के प्रदर्शित किया गया है। स्तंभ सात में जन्म दर प्रति हजार, स्तंभ आठ में मृत्यु दर प्रति हजार तथा नवें स्तंभ में जनसंख्या के वृद्धि की दर को प्रदर्शित किया गया है। तालिका-1 के प्रथम स्तंभ से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष 1951 से वर्ष 2021 तक भारत की साक्षरता अनुपात में क्रमशः वृद्धि हो रही है। जहां 1951 में भारत की साक्षरता दर लगभग अठारह प्रतिशत थी, वहीं वर्ष 1961 में यह बढ़कर लगभग 28 प्रतिशत हो गयी। वर्ष 1971 में भारत की साक्षरता 34 प्रतिशत से अधिक, 1981 43 प्रतिशत से अधिक, 1991 में 52 प्रतिशत से अधिक, 2001 में लगभग 69 प्रतिशत, 2011 में लगभग 73 प्रतिशत तथा 2021 में 74 प्रतिशत से अधिक रही है। वहीं स्थिर कीमत पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय 12,493 रू0 थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 86,659 रू0 हो गयी है। चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय वर्ष 1951 में 265 रू0 थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 12,889 रूपये हो गयी है। वहीं जन्म दर के मामले में जहाँ भारत में प्रति हजार जन्म दर 27.64 थी जो वर्ष 2021 में कम होकर 7.34 प्रतिशत हो गयी है। 1951 में मृत्यु दर 43.95 प्रति हजार थी जो वर्ष 2021 में यह कम होकर 17.23 प्रति हजार हो गयी है। वहीं जनसंख्या वृद्धि की दर 1961 ई0 में लगभग 2 प्रतिशत थी जो वर्ष 2021 में कम होकर एक प्रतिशत से नीचे चली गयी है। चालू कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय तथा साक्षरता अनुपात को निम्नलिखित रेखाचि़त्र-1 में प्रदर्शित किया गया है।

रेखाचित्र-1


रेखाचित्र-2

रेखाचित्र-1 में स्थिर कीमतों पर प्रतिव्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय और चालू कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय का संबंध को प्रदर्शित किया गया है। उपर्युक्त रेखाचित्र-1 से यह स्पष्ट होता है कि प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय तथा साक्षरता अनुपात में वृद्धि समान दिशा में हो रही हैं अर्थात् जैसे-जैसे साक्षरता अनुपात बढ़ रहा है वैसे-वैसे प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो रही है। इसका अर्थ है कि प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय तथा साक्षरता अनुपात का संबध धनात्मक है। साक्षरता अनुपात और चालू कीमतों पर प्रतिव्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय तथा स्थिर कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय आय के बीच सम्बन्धों की जाँच के लिए दोनों चरों के बीच सहसंबंध गुणांक का आकलन तालिका-1 में प्रदर्शित आकंड़ों के आधार पर किया गया है जिसका परिणाम तालिका-2 में प्रदर्शित किया गया है। तालिका-2 में यह स्पष्ट है कि साक्षरता स्तर तथा स्थिर कीमतों पर प्रतिव्यक्ति आय के बीच उच्च सहसंबंध गुणांक है तथा यह भी प्रदर्शित किया गया है कि इन दोनों चरों के बीच निर्धारण गुणांक 74 प्रतिशत से अधिक है अर्थात स्थिर कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय की वृद्धि में शिक्षा का अनुपात एक महत्वपूर्ण कारक है। साक्षरता अनुपात तथा स्थिर कीमतों पर प्रतिव्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय के बीच सहसंबंधों की सार्थकता की जाँच के लिए टी-परीक्षण किया गया है जो कि तालिका-2 के स्तंभ संख्या-6 में प्रदर्शित किया गया है। 5 प्रतिशत सार्थकता स्तर और 95 प्रतिशत विश्वसनीय स्तर पर सहसंबंधों की सार्थकता परीक्षण में निम्न परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया  तथा जाँच की गयी है:- 
शून्य परिकल्पना (H0)- साक्षरता अनुपात तथा स्थिर कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय के बीच कोई सार्थक सहसंबंध नहीं है।
वैकल्पिक परिकल्पना (H1)- साक्षरता अनुपात तथा स्थिर कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय के बीच कोई सार्थक सहसंबबंध है।  

अतः यहां शून्य परिकल्पना अस्वीकृत होती है।
अतः साक्षरता अनुपात और प्रति व्यक्ति आय स्थिर कीमत पर के बीच सहसंबंध सार्थक है।
शून्य परिकल्पना (H0)- साक्षरता अनुपात तथा चालू कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय के बीच कोई सार्थक सहसंबंध नहीं है।
वैकल्पिक परिकल्पना (H0)- साक्षरता अनुपात तथा चालू कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय के बीच कोई सार्थक सहसंबंध है। 
 
अतः यहां शून्य परिकल्पना अस्वीकृत होती है।
अतः साक्षरता अनुपात और प्रति व्यक्ति आय स्थिर कीमत पर के बीच सहसंबंध सार्थक है।


साक्षरता अनुपात और जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच सबंध को प्रदर्शित करने के लिए तालिकाः-1 में प्रदर्शित आँकड़ो को निम्नांकित रेखाचित्र-2 में प्रदर्शित किया गया है।


रेखाचित्र-3


तालिका-1 से यह स्पष्ट होता है कि वर्ष 1951 में जन्म दर तथा मृत्यु दर प्रति हजार क्रमशः 28 और 44 प्रति हजार थी जो वर्ष 1991 में यह कम होकर क्रमशः लगभग 11 और 32 रह गयी। वहीं वर्ष 2001 में यह कम होकर क्रमशः लगभग 9 और 26 हर गयी। वर्ष 2011 जन्म दर और मृत्यु दर क्रमशः 7 और 21 रह गयी। वर्ष 2021 में यह कम होकर क्रमशः 7 और 17 रह गयी। से वर्ष 2021 तक जैसे-जैसे साक्षरता अनुपात मे वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे जन्म दर प्रति हजार तथा मृत्यु दर प्रति हजार में कमी आ रही है। वहीं साक्षरता दर वर्ष 1951 में लगभग 18 प्रतिशत थी जो वर्ष 1991 तक यह बढ़कर 52 प्रतिशत से अधिक हो गयी। वर्ष 2001 में साक्षरता अनुपात बढ़कर 68 प्रतिशत से अधिक तथा 2021 में यह बढ़कर 74 प्रतिशत से अधिक हो गयी। रेखाचित्र-3 से यह स्पष्ट होता है कि भारत की साक्षरता अनुपात में जैसे-जैसे वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे जन्म दर तथा मृत्यु दर में कमी आ रही है। अर्थात साक्षरता अनुपात का जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच नकारात्मक संबधं है। साक्षरता अनुपात का जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच सहसंबधं की जाँच के लिए सहसंबंध गुणांक का आकलन किया गया है जो तालिकाः-1 में क्रम संख्या-3 तथा क्रम संख्या-4 पर प्रदर्शित किया गया है। यह संहसंबंध गुणांक तालिका-1 में वर्णित आंकड़ो पर आधारित है। तालिका-2 से यह स्पष्ट होता है कि साक्षरता अनुपात तथा जन्म दर के बीच सहसंबधं गुणांक r= -0.96 तथा निर्धारण गुणांक r20.92 है। साक्षरता अनुपात का जन्म दर तथा मृत्यु दर के बीच सहसंबध की सार्थकता परीक्षण के लिए टी परीक्षण (T-test) किया गया है जिसकी निम्नलिखित परीकल्पनाएं हैं:-
शून्य परिकल्पना (H0)- साक्षरता अनुपात तथा जन्म दर के बीच कोई सार्थक संहसंबंध नहीं है।
वैकल्पिक परिकल्पना (H1)- साक्षरता अनुपात के जन्म दर बीच सार्थक संहसंबंध है। 

अतः यहां शून्य परिकल्पना अस्वीकृत होती है।
अतः साक्षरता अनुपात और जन्म दर के बीच सहसंबंध सार्थक है।
शून्य परिकल्पना(H0)- साक्षरता अनुपात तथा मृत्यु दर के बीच कोई सार्थक संहसंबंध नहीं है।
वैकल्पिक परिकल्पना (H1)- साक्षरता अनुपात के मृत्यु दर बीच सार्थक संहसंबंध है।

अतः यहां शून्य परिकल्पना अस्वीकृत होती है।
अतः साक्षरता अनुपात और मृत्यु दर के बीच सहसंबंध सार्थक है।
भारत में साक्षरता अनुपात तथा जनसंख्या वृद्धि दर का संबंध जन्म दर तथा मृत्यु दर में अंतर से है। रेखाचित्र-3 का प्रदर्शन तालिकाः-1 में वर्णित आंकड़ों के आधार पर किया गया है। तालिका-1 से यह स्पष्ट है कि वर्ष 1961 में जनसंख्या वृद्धि की दर 1.98 प्रतिशत थी। वहीं जनसंख्या वृद्धि की दर 1971, 1981 तथा 1991 में यह बढ़कर क्रमशः  2.25, 2.34, 2.10 हो गयी। 2001 में यह कम घटकर 1.78 प्रतिशत, 2011 में 1.36 प्रतिशत, 2021 में यह घटकर 0.99 प्रतिशत हो गयी है। वहीं साक्षरता दर वर्ष 1951 में लगभग 18 प्रतिशत थी जो वर्ष 1991 तक यह बढ़कर 52 प्रतिशत से अधिक हो गयी। वर्ष 2001 में साक्षरता अनुपात बढ़कर 68 प्रतिशत से अधिक तथा 2021 में यह बढ़कर 74 प्रतिशत से अधिक हो गयी। रेखाचित्र-3 से यह स्पष्ट होता है कि दीर्घकाल में जैसे-जैसे साक्षरता स्तर में वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे जनसंख्या वृद्धि की दरें कम होती जा रही है। साक्षरता दर तथा जनसंख्या वृद्धि में संबध की जाँच के लिए इन दोनों चरों के बीच संहसंबध गुणांक तथा निर्धारण गुणांक का आकलन किया गया है। साक्षरता अनुपात तथा जनसंख्या वृद्धि के बीच सहसंबंध गुणांक r= -0.800 तथा निर्धारण गुणांक r2= 0.640 है। इन दोनों चरों के बीच सहसंबधं की सार्थकता की जाँच के लिए टी परीक्षण (T-test) किया गया है जो तालिकाः-2 के क्रम संख्याः-5 में वर्णित है। साक्षरता अनुपात तथा जनसंख्या वृद्धि के बीच सहसंबधं की जाँच के लिए निम्न परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया है:-
शून्य परिकल्पना (H0)- साक्षरता अनुपात तथा जनसंख्या वृद्धि दर के बीच कोई सार्थक सहसंबधं नहीं है।
वैकल्पिक परिकल्पना(H1)- साक्षरता अनुपात के जनसंख्या वृद्धि दर बीच सार्थक सहसंबधं है। 

अतः यहां शून्य परिकल्पना अस्वीकृत होती है।
अतः साक्षरता अनुपात और जनसंख्या वृद्धि दर के बीच सहसंबंध सार्थक है।
मानवीय पूंजी के विकास की पहचान के लिए मानव विकास सूचकांक निकाला जाता है। मानव विकास सूचकांक को ज्ञात करने के लिए जीवन संभाव्यता अनुपात एक महत्वपूर्ण कारक हैं। तालिका-4 से यह स्पष्ट है कि वर्ष 1951 में मानव की जीवन संभाव्यता लगभग 36 वर्ष थी जो वर्ष 1961 में लगभग 42 वर्ष, 1971 में 48 वर्ष, 1981 में लगभग 54 वर्ष, 1991, में 58 वर्ष, 2001 लगभग 63 वर्ष, 2011 में लगभग 67 वर्ष तथा, 2021 में लगभग 70 वर्ष है। वहीं साक्षरता दर वर्ष 1951 में लगभग 18 प्रतिशत थी जो वर्ष 1991 तक यह बढ़कर 52 प्रतिशत से अधिक हो गयी। वर्ष 2001 में साक्षरता अनुपात बढ़कर 68 प्रतिशत से अधिक तथा 2021 में यह बढ़कर 74 प्रतिशत से अधिक हो गयी। वहीं साक्षरता अनुपात मानव की जीवन संभाव्यता अनुपात तथा साक्षरता अनुपात के बीच संबंध का वर्णन करने के लिए तालिका-4 में वर्णित आंकड़ों का रेखाचित्र प्रदर्शन रेखाचित्र-4 में किया गया है।

रेखाचित्र-4
 
 
रेखाचित्र-4 से यह स्पष्ट है कि साक्षरता अनुपात तथा जीवन संभाव्यता के बीच धनात्मक सहसंबंध है। साक्षरता अनुपात तथा जीवन संभाव्यता के बीच सहसंबंध की जाँच के लिए आकलित किए गए सहसंबंध गुणांक तथा निर्धारण गुणांक की सार्थकता की जाँच के लिए टी परीक्षण(T-test) किया गया है जिसका आकलित मान निम्नलिखित तालिका-4 में वर्णित है।

साक्षरता अनुपात तथा जीवन संभाव्यता के बीच सहसंबधं की सार्थकता परीक्षण के लिए निम्नलिखित परिकल्पनाओं का निर्माण किया गया है:-
शून्य परिकल्पना (H0)-  साक्षरता अनुपात तथा जीवन संभाव्यता के बीच कोई सार्थक सहसंबधं नहीं है।
वैकल्पिक परिकल्पना (H1)- साक्षरता अनुपात के जीवन संभाव्यता बीच सार्थक सहसंबधं है।
 
अतः यहां शून्य परिकल्पना अस्वीकृत होती है।
अतः साक्षरता अनुपात और जीवन संभाव्यता के बीच धनात्मक सहसंबंध सार्थक है।

निष्कर्ष
वर्तमान शोध अध्ययन में यह पाया गया है कि शिक्षा अनुपात का देश की स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय, चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय, चालू कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय, स्थिर कीमतों पर प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय, जन्म दर प्रति हजार, मृत्यु दर प्रति हजार, जनसंख्या वृद्धि की दर प्रति हजार तथा जीवन संभाव्यता पर प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे शिक्षा अनुपात में वृद्धि हो रही है देश की राष्ट्रीय आय, प्रतिव्यक्ति राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो रही हैं। वहीं साक्षरता अनुपात में वृद्धि के साथ-साथ जन्म दर तथा मृत्यु दर प्रति हजार में भी कमी हो रही है जिससे जनसंख्या वृद्धि की दर में कमी आ रही हैं। वहीं साक्षरता अनुपात में वृद्धि के साथ साथ व्यक्ति की जीवन संभाव्यता में भी हो रही है। इसका अर्थ है कि शिक्षा का देश के आर्थिक व मानवीय विकास में सकारात्मक भूमिका रही है।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव शिक्षा दो प्रकार की होती है एक तो व्यक्ति को शिक्षित करने के लिए शिक्षा तथा देश के आर्थिक विकास के लिए शिक्षा। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए आर्थिक विकास के लिए शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है।
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