ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- XII January  - 2023
Innovation The Research Concept
महिलाओं की भागीदारी से सुशासन संभव: एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
Good Governance is Possible With The Participation of Women, An Analytical Study
Paper Id :  17193   Submission Date :  2023-01-13   Acceptance Date :  2023-01-23   Publication Date :  2023-01-25
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रिंकू कुमारी
शोध छात्रा
राजनीति विज्ञान विभाग
भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय
मुजफ्फरपुर,बिहार, भारत
सारांश
प्रस्तुत लेख के तहत, भारत में राजनीतिक विशिष्ट स्थान रखता है, जिसमें महिलाओं की भूमिका महत्व रखती है l किसी भी राष्ट्रीय राज्य के लिए आर्थिक एवं सामाजिक विकास महत्व रखता है सुशासन के लिए जनता का विकास और उनका कल्याण ही सरकार का लक्ष्य का हैl आज राजनीतिक में महिलाओं की भागीदारी एक समस्या और महिलाओं की राजनीतिक भविष्य एक महत्वपूर्ण विषय बन जाता है क्योंकि सुशासन की कुंजी महिलाएं हैl महिलाओं की राजनीतिक में भागीदारी को विकास के सभी रूपों में एक आवश्यक तत्व माना जाता हैl राजनीतिक लोकतंत्र में सभी नागरिकों को स्त्री व पुरुष दोनों को प्रतिष्ठा एवं अवसर की समानता तथा कानून के समान संरक्षण की सुनिश्चित प्रदान करता है l सरकारी नीति निर्माण निकाय में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और उसकी आर्थिक सहायता से उसका सशक्तिकरण तथा विकास संभव है l 1947 के बाद भारत में विभिन्न स्थानीय सरकारी संस्थाओं में विकेंद्रीकरण द्वारा महिलाओं की राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए कई पहल की गई l महिलाएं आम चुनाव लड़ती हैं और भारी मतों से जीत हासिल करती हैं चाहे ग्राम स्तर पर हो या शहरl राजनीतिक में भेदभाव को समाप्त कर समानता की प्रमुखता दी गई हैl सुशासन स्थापित करने के लिए जरूरी है कि सुशासन के सिद्धांत को शासन या प्रशासन द्वारा अपनाया जाए ताकि महिलाओं का सशक्तिकरण और स्वायत्तता, सामाजिक, आर्थिक राजनीतिक सुधार हो सके। अत: यह अध्ययन सुशासन को स्थापित करने के लिए महिलाओं की भागीदारी और उनके सशक्तिकरण पर जोर देता है l महिलाओं की भागीदारी की बढ़ोतरी तथा महिलाओं का सशक्तिकरण और सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार हो सके, भागीदारी पारदर्शिता, और जवाबदेही से ही संभव है जो सुशासन स्थापित करने में सहायक हैl
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Under the presented article, India holds a special place in politics, in which the role of women is important. Economic and social development is important for any national state. For good governance, the development of the people and their welfare is the goal of the government. Today political Women's participation in politics becomes a problem and the political future of women becomes an important issue because women are the key to good governance. Women's political participation is considered an essential element in all forms of development. Ensures equality of status and opportunity and equal protection of law to women. Political participation of women in government policy-making bodies and their economic support makes their empowerment and development possible. After 1947, through decentralization in various local government bodies in India Several initiatives were taken to increase the political representation of women. Women contest general elections and win with huge votes whether at village level or city level. Discrimination in politics is eliminated. Importance of tax equality has been given. In order to establish good governance, it is necessary that the principle of good governance should be adopted by the government or administration so that women's empowerment and autonomy, social, economic political reforms can take place. Emphasizes on women's participation and their empowerment. Increase in women's participation and empowerment of women and improvement in socio-economic and political status is possible only through participation, transparency, and accountability which is helpful in establishing good governance.
मुख्य शब्द महिलाओं की भूमिका, भागीदारी, सुशासन l
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Role of Women, Participation, Good Governance.
प्रस्तावना
सुशासन शब्द का प्रयोग एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में किया जाता है, जिससे शासन शक्ति के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक संसाधनों का उपयोग राष्ट्र के विकास के लिए किया जाता है जिसका उद्देश्य 'जनकल्याण' हैl 1992 में 'शासन और विकास' नामक रिपोर्ट में विश्व बैंक ने सुशासन की परिभाषा तय है कि इसमें सुशासन को विकास के लिए देश के आर्थिक, समाजिक के प्रबंधन शक्ति का उपयोग करने के तरीके के रूप को परिभाषित किया l सुशासन की 8 विशेषता भागीदारी ,आम सहमति, जवाबदेही, पारदर्शिता और उत्तरदायित्व प्रभावी एवं कुशल न्याय संगत और समावेशी होने के साथ कानून का शासन हैl सुशासन तब संभव होगा जब भागीदारी न्याय पूर्ण होगा l भारत जैसा विशाल लोकतंत्र में लोगों की भागीदारी के बिना सुशासन संभव नहीं हैl भगवान बुद्ध की कर्मभूमि वैशाली में आयोजित प्रथम 13 अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिकभिछूणी द्वारा भाषण में कहा गया सुशासन के लिए सभी स्तरों पर महिलाओं की भागीदारी जरूरी है, किसी भी महिला मैं यह शक्ति होती है कि वह किसी भी मामले को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा सकती हैl
अध्ययन का उद्देश्य
राजनीतिक में महिलाओं की स्थिति का अध्ययन किया गया हैl महिलाओं की राजनीतिक में भागीदारी का वर्णन किया गया है ताकि सुशासन स्थापित हो सके l वर्तमान में भारतीय राजनीतिक में महिलाओं के प्रभावों का वर्णन किया गया है l
साहित्यावलोकन

गांधीजी ने स्थानीय स्वशासन पर बल देते थे जिसका परिणाम महिलाओं की पंचायती राज में भागीदारी बढ़ने का असर गांव में देखा जा सकता है, महिलाएं पंच, सरपंच के रूप में कार्य कर रही हैं l ग्रामीण महिलाओं के विकास को नया आयाम मिला है, समाज में न्याय के लिए महिलाओं की सहभागिता के लिए के महत्व को समझना होगा, भारत ही नहीं पूरे विश्व में इसकी सकारात्मक भेदभाव के उपाय करने के लिए महिलाओं को समान रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा है। उनकी उन्नति के कई आयाम बनाए जा रहे हैं, महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों की प्रभावकारिता तथा उनके समानता के दर्जे की स्थिति की परख संकेतों द्वारा प्रयुक्त है l

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत अध्ययन के लिए ऐतिहासिक अध्ययन का उपयोग किया गया है l प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आंकड़ों का प्रयोग किया गया है l
विश्लेषण

राजनीतिक में महिलाओं की भूमिका महत्व रखती है बिना इसकी भागीदारी के न्याय उचित नहीं होगा न्याय के बिना सुशासन संभव नहीं हैl सुशासन को तभी महसूस किया जा सकता है जब भागीदारी को प्रभावी ढंग से कायम रखा जाए, पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीका जैसे अन्य कई देशों में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, आम शिक्षा और राजनीतिक शिक्षा की कमी के वजह से महिलाओं की राजनीतिक में भागीदारी बढ़ नहीं पा रही है और भारत में लैंगिक असमानता परिदृश्य में महिलाओं की भागीदारी चिंता का विषय रहा हैl राजनीतिक में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के लिए राजनीतिक लिंग भेद और असमानता के बिना, महिलाओं में शिक्षा का प्रसार प्रचार आवश्यक है आज आबादी का आधा हिस्सा महिलाओं का है लेकिन राजनीतिक तंत्र में कम प्रतिनिधित्व करती हैं घर स्तर पर हो या बाहर  महिलाओं को निर्णय में लेने में सहायक नहीं माना जाता है उनको उनसे दूर रखा जाता है, जो लैंगिक असमानता छलकता है महिलाओं को आगे बढ़ते देख नहीं पाते और पुरुष अपनी शक्ति और उनमें संपन्न अहंकार साथ में महिलाओं को आगे बढ़ने नहीं देते और उनकी भागीदारी में कमी होती हैभारत में महिलाओं की स्थिति को भेदभाव से मुक्त करने का बीड़ा सबसे पहले राजा राममोहन राय ने उठाया थाl समाज में महिलाओं की भूमिका को पहचान लिया दूसरा अवसर आया जब गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का योगदान बराबर समझाएंl इसके बाद 2014 में 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' 'उज्जवल मातृत्व अवकाश' विधि है महिलाओं को शक्ति संपन्न करने का काम शुरू हुआI भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में य विषय के रूप में है l लिंग समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य और राज्य नीति निर्देशक तत्व के सिद्धांत में प्रतिपादन हैl पंचवर्षीय योजना में महिलाओं से जुड़े मुद्दों के प्रति कल्याण की बजा से विकास दृष्टिकोण अपनाया जा रहा है 1990 में सेंसेक्स के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना हुई 73,74 वे. संशोधन के माध्यम से महिलाओं के लिए पंचायतों, न्यायपालिका और स्थानीय निकाय में सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया गया जो स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भागीदारी के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है l विश्व मैं जहां आज अनेक राजनीतिक उन्नति हुई है, उनमें सबसे महत्वपूर्ण महिलाओं की सहभागिता और प्रतिनिधित्व है, महिलाओं का सशक्तिकरण अर्थात महिलाओं का विकास उनकी भागीदारी से ही संभव है जब तक उनकी राजनीतिक भागीदारी नहीं होती उनका विकास संभव नहीं है भागीदारी के लिए उनको शिक्षित होना अनिवार्य है भारतीय चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के आधार पर संसद के कुल सदस्यों में 10.5%  प्रतिनिधित्व महिलाएं करती हैं राज्य असेंबली मे महिलाओं की बुरी दशा है उनमें उनका नेतृत्व 9% है ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 के अनुसार 153 देशों में भारत शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में 112 स्थान पर है जिसमें यह पता चलता है कि महिलाओं को राजनीतिक में महिलाओं की सहभागिता में शिक्षा एक गंभीर साझेदारी अदा करती हैं आम शिक्षा और राजनीतिक शिक्षा की कमी की वजह से महिलाओं का राजनीतिक में भागीदारी नहीं बढ़ पा रहा है महिला पुरुष दोनों समान है दोनों को समान शिक्षा पाने का अधिकार है लेकिन डाटा देख को देखते हैं तो पाते हैं कि पुरुष का शिक्षा स्तर अच्छा है महिलाओं का कम है 1997 के नेशनल सैंपल सर्वे डाटा के मुताबिक केवल केरल और मिजोरम राज्य में महिलाओं का साक्षात्कार अधिक है जिसके कारण यह सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुधरी है होता है शिक्षित होना अति आवश्यक है। विश्वस्तर पर अध्ययन करें तो पाते हैं नार्वे सतत विकास के शीर्ष स्थान पर है वहां का शिक्षा स्तर अच्छा है कहने का तात्पर्य है कि जब तक शिक्षा का विकास नहीं होगा तब तक महिलाएं आगे नहीं बढ़ पाएंगे और लैंगिक असमानता एवं वास्तविक लोकतंत्र के लिए अति आवश्यक है सुशासन को स्थापित करने के लिए महिलाओं को शिक्षित होना अति आवश्यक मेकिसस की एक रिपोर्ट के अनुसार जिसमें उन्होंने भारत के कार्यबल में महिलाओं की संख्या को बढ़ाकर 2025 तक सकल घरेलू उत्पादन में 490अरब डॉलर वृद्धि की जा सकती है लेकिन हमारा ढांचा सिर्फ आर्थिक दृष्टि से नहीं है बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रखता है सिर्फ जीडीपी बढ़ा लेने से महिलाओं की स्थिति में सुधार संभव नहीं है उनके लिए कई पाबंदियां हैं जो उनके मौलिक अधिकार से वंचित रखता है उन्हें कहीं आने-जाने की स्वतंत्रता नहीं है 50% से अधिक महिलाएं ऐसी हैं जिनका दुकान तक आने-जाने की अनुमति नहीं हैl नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार घरेलू कामों तक सीमित रहने वाली महिलाएं 31% महिलाएं एक निश्चित वेतन पर काम करना पसंद करती हैं आर्थिक शक्ति रहने वाली महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा में भी कमी देखी गई है परंतु हमारा सामाजिक परिवेश महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकता हैराज सभा में प्रतिनिधि प्रतिनिधित्व 1960 में 10% से कुछ ऊपर शुरू हुआ लेकिन 1980 को छोड़कर (11.89%) बाद के वर्षों के दौरान यह घटता रहा और  1996 में घटकर 7.76% गया यह 1999 में थोड़ा बढ़कर 8.5% तथा 2009 तक 9. 5% है 1952 मैं राज सभा के प्रथम सत्र मैं 15 महिलाएं 6.94% सदस्य थे लोकसभा में भी महिलाओं की संख्या कम थी लेकिन उनकी भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है इतिहास में कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने अपने कार्य से दुनिया को दिखाया है कि वह पुरुषों से कम नहीं है जैसे विजयलक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी, सुचेता कृपलानी, कस्तूरबा, सरोजिनी नायडू, आदि महिलाओं ने अपनी प्रतिभा को दिखाया है कि वे राजनीति में अपनी सकारात्मक भूमिका दे रहे हैं लेकिन अपनी भूमिका अच्छा दिखाने के बावजूद भी उन्हें विशेष पद नहीं मिलता है जिसकी वह हकदार होते हैं उन्हें छोटे-मोटे पद दिए जाते हैं l 11वीं लोकसभा के अनुदान संबंधित सामान्य मांगों और रेलवे के लिए अनुदान संबंधी मांगों पर चर्चा में भाग लेने वाले सदस्यों में कुल संख्या मैं महिलाओं का भाग केवल 6.24%  था उसी सभा में जो विश्वास  प्रस्तावों की महिलाओं की भागीदारी संबंधी आंकड़ा 4% और 6% था 12,13,14 बी लोकसभा में इसी तरह प्रस्तुत किया गया लेकिन कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा, सवाल यह उठता है कि अगर आरक्षण मिल जाए तो विधायक के  मौजूदा प्रारूप को स्वीकार किया जाए तो सहज एक तिहाई महिलाओं को आरक्षण मिलने लगेगा और ऐसे में बहुसंख्यक परीक्षण समुदाय की महिलाओं को प्रतिनिधित्व संसद में अपने आप बढ़ जाएगायह आंकड़े दिखाते हैं कि महिलाओं की भागीदारी बहुत ही कम है जब भी महिलाएं किसी भी विषय में सोचने और समझने की विशिष्ट प्रगति रखती हैं लेकिन उन्हें आगे बढ़ते समाज नहीं देख पातालेकिन सिर्फ यह कह देना की  पुरुष उन्हें आगे नहीं बढ़ने देते हैं यह गलत होगा, हमारा समाज भी उन्हें आगे नहीं बढ़ने देना चाहता l एक डाटा के अनुसार संस्था के बाद जवाहरलाल नेहरू सरकार ने एक महिला कैबिनेट मंत्री थी राजकुमारी अमृत कौर जिन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया, लाल बहादुर शास्त्री ने महिला को मंत्रालय नहीं दिया, राजीव गांधी ने भी अपने मंत्रिमंडल में केवल एक महिला मोहसिना किदवई को शामिल किया l 1990 में महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया गया 2014 में लोकसभा चुनावों में सबसे अच्छा महिला मतदान हुआ लेकिन पूरी तरह से इसकी स्थिति बेहतर मानी नहीं जा सकती इसकी प्रतिशत उनके परिवार पर निर्भर करता है क्योंकि उनके परिवार का मुखिया तय करता है कि उनका वोट किसे दिया जाए खुद का निर्णय नहीं होता है जिनकी वजह से उनका वोट किसको गया उन्हें स्वयं नहीं पता होता है नरेंद्र मोदी ने 9 महिला सांसदों को कैबिनेट और राज्यमंत्री बनाया 2014 में उनकी भागीदारी में बढ़ोतरी हुई जिसका परिणाम यह हुआ कि लोकसभा में 108 महिला उम्मीदवार जीते यह एक अच्छा संकेत था महिलाओं को आगे बढ़ने मैं पहले चुनाव में सदस्य केवल 5% महिलाएं थी अब 14,3% प्रतिशत हो गई 17वी लोकसभा में महिलाओं की संख्या बढ़ाकर 78 हो गई जो अभी तक का सबसे बड़ा संख्या है हमारा पड़ोसी देश बांग्लादेश 21% भागीदारी है महिलाओं की और अमेरिका जैसे राष्ट्रों में 32% भागीदारी है, हमारा राष्ट्र विकसित राष्ट्रों के समीप आ बैठा है जोकि गौरव की बात है राजनीतिक में महिलाओं की रूचि लेने और राजनीतिक में उनकी भागीदारी लेने से मना किया जाता था जो एक बहुत बड़ी बाधा थी महिलाओं पर ऐसा सामाजिक बंधन सांस्कृतिक दायित्व थे जिससे राजनीति में आने से रोकते थेl अपने परिवार का भी सहयोग प्राप्त नहीं होता था जिससे उनकी भागीदारी में कमी थी लेकिन आज महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का प्रयास किया जा रहा है जिसके तहत नरेंद्र मोदी ने नारी सशक्तिकरण का अभियान चलाया जिसमें महिलाओं को अपने प्रतिभा का स्मरण हो सके और उनके अनुसार कार्य कर सकें महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना होगा और राजनीतिक प्रक्रिया में पुरुषों के समान राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना होगा उनका आत्मविश्वास  होने से उन्हें सफल बनाएगाराजनीति में महिलाओं की भागीदारी के कारण राजनीतिक प्रवृत्ति में बदलाव होने की उम्मीद है हमारे जीवन में सभी पहलुओं पर फैसला लेती हैंl अगर विचार करें तो पाते हैं कि राजनीतिक अर्थव्यवस्था शिक्षा स्वास्थ्य आंतरिक और बाहरी सुरक्षा आदि समाज के आधी आबादी महिलाएं हैंl फैसलों में शामिल क्यों नहीं है महिलाएं शांत विचारणीय होती हैं विभिन्न प्रकार के पद पर अपने प्रतिष्ठान गरिमा को बनाए रखने की कोशिश करती है वह घर और बाहर दोनों जगह पर अपने कर्तव्य का सामंजस्य बनाए रखती है जरूरत उन्हें आगे बढ़ाने की है ताकि आर्थिक स्थिति में अपने को सुधार सकेंl यह शिक्षा के माध्यम से ही संभव है जब तक वह समाज को नहीं समझेगी तब तक वह अपने आत्मविश्वास को बढ़ा नहीं पाएगी इसके अलावा समाज में लड़कियों और युवा महिलाओं के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाए उनकी शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार में सुधार होगा महिलाओं की संपत्ति अधिकार व व्यवसाय मजबूत बनाया जाएगा, सभी महिलाओं की स्थिति सुधरेगीl पुरुषों और महिलाओं के बीच संबंधों में अधिक समानता और संतुलन होना अनिवार्य है महिलाओं की वर्तमान शक्ति एवं स्थिति की शर्त ही नहीं बल्कि सूचक भी है तथा महिलाओं के अधिकारों एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक भी है कुछ वर्षों पहले महिला ट्रेन नहीं चला सकती थी लेकिन आज अच्छी तरह से चला कर दिखा रही हैंl यह साक्षात प्रमाण है कि मौका मिले तो वह सभी कार्य कर सकती हैं जो एक पुरुष करते हैं बस उन्हें मौका मिलने की देर हैलेकिन यह तभी संभव होगा जब पुरुष वर्ग व्यापक सामाजिक, राजनीतिक हित में महिला भागीदारी पर गंभीर हो और दूसरी ओर देश की महिलाओं को अपने राजनीतिक अधिकारों के सम्मान के लिए कड़ा संघर्ष करना चाहिए l महिलाओं को भी अपने स्वाबलंबी का परिचय देना होगा l

निष्कर्ष
महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाना होगा क्योंकि जब तक उनकी शक्ति सृदढ नहीं होती तब तक वह स्वाबलंबी नहीं होंगे। राज्य का कर्तव्य है की शिक्षा संस्थान जो विराम अवस्था में है या किसी रूप से अस्वस्थ है उन्हें सुचारू रूप से सृदढ करे और उच्च शिक्षा तथा राजनीतिक में सक्रिय भूमिका निभा सके, राज्य को शिक्षण संस्थानों पर विशेष ध्यान देना होगा शिक्षा ही सबसे बड़ी बाधा है जिसे दूर करने के लिए राज्य को विशेष रुप से ध्यान देना होगा जिसमें गुणवत्ता वाले शिक्षक की पदोन्नति करनी होगी l शिक्षक उच्च गुणवत्ता वाले होंगे तभी शिक्षा को सही ढंग से प्रज्वलित कर सकते हैl राज्य महिलाओं के लिए राजनीति में समान भागीदारी की दिशा के लिए ठोस कदम उठाएंl समय-समय पर शिक्षण संस्थानों पर जांच सक्रिय और योग्यताओं द्वारा शिक्षा का अवलोकन करें राज्य के द्वारा चलाए गए महिलाओं को समान और सशक्तिकरण में राजनीति में नई ऊंचाई प्रदान की है बस उसे ऊर्जा देने की जरूरत है राजनीति के लिए आयाम बनाए जा रहे हैं जिसमें महिलाओं को समान रूप से प्रोत्साहित किया जा रहा हैl राज्य द्वारा उन्हें आमंत्रित किया जा रहा है, गांव हो या शहर उसके लिए पूरा आसमान है बस छूने की जरूरत है l प्रकृति ने समान बनाया ,समाज ने उसे बंधन में बांधा, राज्य ने उन्हें सशक्त बनाया जो हमारी पहचान है हम नारी है l
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. गोपालन सरला , पूर्वक , पृ 283 2. महिलाएं तथा शासन राज्य की पूर्ण कल्पना एक रिपोर्ट (एकत्र) सोसायटी फाॅर डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स फाॅरविमेन,नई दिल्ली, 2002 ,पृ 9 3. द टाइम्स ऑफ इंडियन, 10 अक्टूबर, 2010, पृ 1 4. महिलाओं तथा शासन , की पूर्ण कल्पना , पूर्वक , पृ 24 5. डॉक्टर सरला गोपालन , समानता की और पूर्ण कार्य , भारत में महिलाओं की स्थिति - 2001 राष्ट्रीय महिला आयोग 2002 पृ 283 6. मेकिस्से की रिपोर्ट