|
|||||||
मैत्रेयी पुष्पा के कथासाहित्य में- लोकोक्ति एवं मुहावरे | |||||||
In The Fiction of Maitreyi Pushpa - Proverbs and Idioms | |||||||
Paper Id :
17222 Submission Date :
2023-02-01 Acceptance Date :
2023-02-20 Publication Date :
2023-02-24
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/shinkhlala.php#8
|
|||||||
| |||||||
सारांश |
भाषा को अधिक से अधिक विषय के निकट लाने में लोकोक्तियों और मुहावरों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा पूर्णत: स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है । मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है। मैत्रेयी पुष्पा के कथासाहित्य का अध्ययन करनु के पश्चात हम पाते हैं कि उन्होंने लोकोक्ति एवं मुहावरों का बहुत ही सारगर्भित प्रयोग किया है। लोकोक्तियों में जीवन अनुभव होता है जो लोगों को जोड़ने वाला, प्राचीन समय से चली आ रही परंपराओं, रुढ़ियों को अभिव्यक्ति देने का ससशक्त माध्यम होता हैं। अंग्रेजी में मुहावरे को proverbs कहते हैं और लोकोक्तियों को Idioms कहा जाता है।
|
||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Proverbs and idioms have a very important place in bringing the language closer to the subject. Proverbs are capable of forming a complete sentence. Idiom creates wonders in the language whereas proverb brings stability to it. Idiom is not completely independent, Idiom alone does not complete service. Idioms are small while proverbs are big and soulful. After studying the literature of Maitreya Pushpa, we find that he has used proverbs and idioms very succinctly. Proverbs contain life experience which connects people, since ancient times There is a powerful means of giving expression to the ongoing traditions and customs. In English, idioms are called proverbs and proverbs are called Idioms. |
||||||
मुख्य शब्द | कथासाहित्य, मुहावरे, भाषा ,लोकोक्ति, लोकभाषा,वाक्य, वाक्यांश, उपालंभ, वंग्य। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Fiction, Idiom, Language, Proverb, Vernacular, Sentence, Phrase. | ||||||
प्रस्तावना |
लोकोक्ति एवं मुहावरों का प्रयोग भाषा की सुंदर रचना हेतु आवश्यक माना जाता है। साधारणतया लोक में प्रचलित उक्तियों को लोकोक्ति कहा जाता है। लोकोक्तियां अंतर्कथा से भी संबंध रखती है। लोकोक्तियां स्वतंत्र वाक्य होती है। जिनमें एक पूरा भाव छिपा रहता है। लोकोक्तियों को कहावतों के नाम से भी जाना जाता है।
अपने साधारण अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ को व्यक्त करने वाले वाक्यांश को मुहावरा कहते हैं। मुहावरा अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है अभ्यास। मुहावरा पूर्ण वाक्य नहीं होता है, इसलिए इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
लोकोक्ति दृष्टांत,घटना या परिस्थिति पर आधारित कथन होता है। लोकोक्तियों को सूक्ति अथवा सुभाषित भी कहा जाता है। लोकोक्ति सामाजिक नीति, नियम और आदर्श स्थापित करने का माध्यम बनती है।
मुहावरा ऐसे पदबंध को कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ तो कुछ और निकलता है परंतु लाक्षणिक अर्थ कुछ और निकलता है। जैसे- “वह बेहद चौकन्ना हो गया“ इस वाक्य में चौकन्ना का अर्थ - चार कानों वाला होता है, परन्तु कोई भी मनुष्य चार कानों वाला नहीं होता। अतः इसका लाक्षणिक अर्थ हुआ-बहुत सावधान। वैसे ही नौ दो ग्यारह होना मुहावरा गणितीय संक्रिया को न बताकर भाग जाना अर्थ को बताता है। ठीक वैसे ही दांत खट्टे करनानामक मुहावरा स्वाद के खट्टेपन को न बताकर किसी को बुरी तरह हराना नामक अर्थ को अभिव्यक्ति देता है ।मुहावरा प्रसंग के अनुरूप अर्थ देता है। मुहावरा पूर्ण वाक्य नहीं होता है। मुहावरे का सामान्य अर्थ नहीं अपितु विशिष्ट अर्थ लिया जाता है।
मुहावरे का स्वतंत्र प्रयोग नहीं होता है। लोकोक्ति का स्वतंत्र प्रयोग होता है। लोकोक्ति वाक्य है जबकि मुहावरा वाक्यांश है। लोकोक्ति का स्वरूप परिवर्तित रहता है जबकि मुहावरे में काल, वचन और पुरुष के अनुरूप परिवर्तन हो जाता है। लोकोक्ति का प्रयोग उपालंभ देने, मीठी चुटकी लेने, व्यंग्य करने या अपने कथन को प्रभावशाली ढंग से करने के लिए किया जाता है। जबकि मुहावरा अपने असली अर्थ को छोड़कर किसी लाक्षणिक अर्थ को व्यक्त करता है। मुहावरा जिस रूप में होता है, उसी रूप में रहता है अन्यथा भाषा की प्रभावोत्पादकता समाप्त हो जाती है।
|
||||||
अध्ययन का उद्देश्य | इस शोध पत्र का उद्देश्य मैत्रेयी पुष्पा के कथा साहित्य में लोकोक्ति एवं मुहावरों के प्रयोग के महत्त्व पर प्रकाश डालना है। किस प्रकार लेखिका ने उनका सारगर्भित प्रयोग किया है। उसको साहित्य जगत में सामने लाना है। |
||||||
साहित्यावलोकन | लोकोक्ति एवं मुहावरों पर विपुल शोध कार्य हुआ है। अनेक शोध-पत्र लिखे गए हैं। मैत्रेयी पुष्पा के
कथासाहित्य में लोकोक्ति एवं मुहावरों के अंतर्गत विभिन्न शोधों एवं पुस्तकों का
अध्ययन किया गया। जिसमें लोकोक्ति एवं मुहावरों का अध्ययन भी अंतर्निहित है। इनके
अध्ययनों से अपने शोध- पत्र का कार्य आगे बढ़ाने में सहायता
मिली। इनमें डॉ गोस्वामी गिरिधारी काव्यावहारिक संस्कृत शब्दकोश (2022) एवं बी एस
आप्टे के इंग्लिश- संस्कृत कोश (2020) एवं जयप्रकाश जय के
मैत्रेयी पुष्पा वो बेबाक महिला साहित्यकार जिन्होंने जो सोचा वो लिखा (2019) के
अध्ययन के साथ ही डॉ कांति कुमारके समय के साथ चाक पर घूमती हुई औरत एवं रश्मि
पटेल के हिंदी की प्रमुख लोकोक्तियां शोध-आलेख से इस शोध -पत्र को लिखने में सहायता मिली है।लोकोक्ति एवं मुहावरों पर
साहित्य में अनेक शोध कार्य हुए है किंतु मैत्रेयी पुष्पा के कथा साहित्य का
अवलोकन करने के पश्चात् हम पाते हैं किलोकोक्ति एवं मुहावरों का प्रयोग उन्होंने
बहुत ही सटीक, प्रभावपूर्ण ढंग से किया है। लोकोक्ति एवं मुहावरे में जन
सामान्य की चेतना सशक्त रूप से संचित रहती है। लोकोक्ति एवं मुहावरे जीवन अनुभवों
को व्यक्त करने वाले हैं। मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास चाक, झूलानट, विजन, कही ईसुरी फांग, गोमा हंसती है एवं अन्य कहानी एवं
स्त्री विमर्श या आत्मकथा का अध्ययन करने के पश्चात् हम पाते हैं कि उनके द्वारा
प्रयोग में ली गई लोकोक्ति एवं मुहावरों के प्रयोग से भाषा जीवंत, प्रवाहपूर्ण, प्रभावशाली हो गयी है। लोकोक्ति एवं मुहावरों के प्रयोग में मैत्रेयी पुष्पा
ने अपने जीवन अनुभवों को सशक्त एवं जीवंत अभिव्यक्ति दी है। |
||||||
मुख्य पाठ |
मैत्रेयी पुष्पा के कथा साहित्य में लोकोक्ति एवं
मुहावरे के विषय में डॉ श्याम शरण दूबे ने कहा है कि–“आदिवासी समाजों तथा ग्रामीण संस्कृति में जहां शिक्षा के प्रत्यक्ष प्रबंध
का अभाव रहता है, लोकोक्तियों के माध्यम से नई पीढ़ियों को परंपरागत सामाजिक
दृष्टिकोण से अवगत कराया जाता है। लोकोक्तियों से किसी भी समुदाय का समाज स्वीकृत
दृष्टिकोण सरलतापूर्वक समझाया जा सकता है। उनमें एक विचित्र तीक्ष्णता होती है,जो सीधे हृदय तक ले जाती है।[1] लेखिका ने अपने कथासाहित्य में लोकोक्ति एवं मुहावरों
का प्रयोग बहुत ही कुशलता पूर्वक किया
है। जिसके कारण भाषा की गरिमा बढ़ गई है। भाषा में स्पष्टता, सटीकता, ध्वन्यात्मकता, अर्थवत्ता एवं प्रभावोत्पादकता
आ गई है। लेखिका के कथासाहित्य में लोकोक्ति एवं कहावतों के प्रयोग के विषय में- डा कांति कुमार का मानना है कि- मैत्रेय
गांव में प्रचलित मुहावरों और कहावतों की पोटली साथ लेकर चलती है। लगता है
मैत्रेयी जी ठेठ गांव की वैयार है, फसक्का मारकर बोलने बतियाने में
उन्हें मज़ा आता है।[2] मैत्रेयी पुष्पा के कथा साहित्य में लोकोक्ति और
मुहावरे प्रसंगानुकूल है, जिससे भाषा में रोचकता एवं भावप्रेष्णीयता का गुण अनायास
ही आ गया है। मैत्रेय पुष्पा के कथा साहित्य जैसे- अल्मा कबूतरी उपन्यास, चाक उपन्यास, अगन पाखी उपन्यास, विज़न उपन्यास, कही ईसुरी फाग उपन्यास, त्रिया हठ उपन्यास, इदन्नमम उपन्यास, झूलानट उपन्यास, ललमनियां कहानी संग्रह, चिन्हार कहानी संग्रह, गोमा हंसती है कहानी संग्रह, गुडिया भीतर गुड़िया आत्मकथा, कस्तूरी कुण्डल बसै आत्मकथा ,सुनो मालिक सुनो स्त्री विमर्श, खुली खिड़कियां स्त्री विमर्श, आदि साहित्य में लोकोक्तियों
एवं मुहावरों का बहुत ही सुंदर प्रयोग हुआ है। मैत्रेयी पुष्पा ने अपने उपन्यास अलमा कबूतरी में
लोकोक्ति- मुहावरों का जो प्रयोग किया है उसकी एक झलक दृष्टव्य है, जिसमें एक साथ दो लाभ प्राप्त
करना या एक कार्य करते समय दूसरा कार्य भी हो
जाना या एक काम से दो काज पूरे होने का भाव है- एक पंथ दो काज हो जाएंगे।[3] वहीं इसमें अपने से अधिक ताकतवर का मिलना, कोई काम या किसी चीज के लिए
राजी होना या किसी बात की बात बहुत जिद्द करने के बाद अचानक मान जाना या औकात का
पता चलना आदि भावों को प्रकट करता है- आया ऊंट पहाड़ तलै।[4] वही लेखिका ने चाक उपन्यास में लोकोक्ति और मुहावरों
का प्रयोग किया है। वह भाषा की अर्थवत्ता को सशक्त करने वाला है साथ ही प्रशंसनीय
भी है--यहां बेवकूफ लोंगो की प्रकृति प्रकट करने के लिए इसका प्रयोग किया गया है- बाबरे गांव में ऊट आ गया हो।[5] वहीं लेखिका ने आसानी या सुलभता से प्राप्त किसी वस्तु
या अन्य महत्वपूर्ण चीज की वैल्यू नहीं होती जो अन्य को बडी परेशानी से प्राप्त
होती है, उसके लिए बड़ी मूल्यवान होती है इस भाव को व्यक्त किया है- घर का जोगी जोगना, आन गांव का सिद्ध।[6] लेखिका ने अगन पाखी उपन्यास में लोकोक्ति - मुहावरों का प्रयोग करते हुए बहुत ही सुन्दर सटीक भाषा का
प्रयोग किया है- कहाँ गए राजा अमान जिनको रोबे चिरैया।[7] वही लेखिका ने बकरे की माँ आखिर कब तक अपने बच्चों की
रक्षा करेगी, बकरे को तो एक न एक दिन कटना ही है, इस बात को व्यक्त करने के लिए
इसका प्रयोग किया है वह दृष्टव्य है- पर बकरा की माँ कब तक शिरनी बांटेगी।[8] लेखिका ने विजन उपन्यास में लोकोक्ति-मुहावरों का सटीक प्रयोग करते
हुए लोकभाषा में लोगों के अनुभव को अभिव्यक्ति देने प्रयास किया है, जैसे- एक कमी होने पर लोग, अनेक कमियां निकालते हैं। इस भाव
को व्यक्त करने उदाहरण दृष्टव्य है- कानी के ब्याह को सौ जोखिम[9] वही लेखिका ने प्रत्यक्ष को साक्ष्य की जरूरत नहीं
पड़ती। इस बात को कहने के लिए इसका प्रयोग किया है- हाथ कंगन को आरसी क्या[10] मैत्रेयी पुष्पा ने कही ईसुरी फाग उपन्यास में
लोकोक्ति - मुहावरों का बहुत ही सुंदर प्रयोग करते हुए- इच्छित वस्तु का प्राप्त होना
या जरूरी वस्तु अगर आसानी से मिल जाये तो अच्छा हो। जैसे - अंधी को क्या चाहिए दो आंखें।[11] वही लेखिका ने मन से तो चाहना, पर उपर से मना करना या इनकार
करना अर्थात इच्छा रहने पर भी मना करने का भाव को व्यक्त करने के लिए इसका प्रयोग
किया है। जैसी- मन मन भावे मूड हिला वे।[12] मैत्रेयी पुष्पा ने त्रिया हठ उपन्यास में लोकोक्ति-मुहावरों का प्रयोग करते हुए
निरा अनपढ़ या बिलकुल नहीं पढ़ा लिखा इंसान के लिए इसका प्रयोग किया है। जैसी- करिया अक्षर भैस बराबर।[13] मैत्रेयी पुष्पा ने इदन्नमम उपन्यास में लोकोक्ति- मुहावरों का सटीक प्रयोग करते
हुए- एक कमी होने पर, लोग अनेक कमियां निकालते हैं और
समाज में उसकी निंदा करते हैं। इस बात को व्यक्त करने के लिए एक उदाहरण द्रष्टव्य
है- कानी के ब्याह को सौ जोखे।[14] वही लेखिका ने यदि दो लोगो में आपसी प्रेम है, तो तीसरा व्यक्ति उसमें व्यवधान
नहीं डाल सकता। इस बात को व्यक्त करने के लिए इसका प्रयोग किया है। जैसे- मियां बीबी राजी और क्या करेगा काजी।[15] मैत्रेयी पुष्पा ने झूलानट उपन्यास में भाषा को सशक्त
और जीवंत बनाते हुए, लोकोक्ति और मुहावरों का प्रयोग किया है। जिसमें लेखिका ने यह बताने का प्रयास
किया है कि एक न एक दिन अच्छा समय आता ही है। एक निश्चित समय बाद सबके भाग्य
का उदय होता है। इस भाव को अभिव्यक्त करते हुए लिखा है। जैसे- बारह वर्ष बाद घूरें के भी दिन फिरते है।[16] वही लेखिका ने एक मुसीबत पर दूसरी मुसीबत आ जाना या
बुढ़ापे में जवानी की या जवानी में बचपन की जिद के भाव को अभिव्यक्ति देते हुए कहाँ
है। जैसे- बूढ़े मूंह है मुँहासे देखो लोग तमाशे।[17] मैत्रेयी पुष्पा ने अपनी कहानी संग्रह- ललमनियांमें लोकोक्ति- मुहावरों का प्रयोग करते हुए
भाषा को जीवंत, सटीक, एवं भावप्रेषणीयता के गुण से युक्त करने का प्रयास किया है। जैसे- कोई काम नियम कायदे से न करना
या सबका अपने मन के अनुसार चलना- अपनी अपनी ढपली, अपन अपना राग।[18] लेखिका ने चिन्हार
कहानी संग्रह में लोकोक्ति एवं मुहावरों का बहुत ही सुंदर प्रयोग किया है उन्होंने
जितनी क्षमता होगी उतना ही प्राप्त करेगा इससे संबंधित बात कही है- लाख कॉन्वेंट में पढ़ा लोकौवा को हंस थोड़े बन जाएंगे।[19] इसी प्रकार उन्होंने जिसप्रकार विधाता को रखना होगा
वैसे ही रहेगा हम चाहे कितना भी उपाय कर लें लेकिन उसमें परिवर्तन नहीं लाया जा
सकता इससे संबंधित बात उन्होंने कही है- जा विधि राखे राम ताही विधि रहिये।[20] मैत्रेयी पुष्पा नेगोमा हंसती है कहानी संग्रह में
लोकोक्ति- मुहावरों का प्रयोग करते हुए
भाषा को जीवंत और सहज बनाने का प्रयास किया है। उन्होंने बुरी सोच वाले इंसान जो
होते हैं, वे कभी सुधर नहीं सकते ।इस आशय को अभिव्यक्ति देते
हुए लिखा है- काग पढाए पीजरा पढगयेचारौ वेद।[21] वहीं उन्होंने पारिश्रमिक मांगने में संकोच नहीं करना
चाहिए या मजदूरी मेहनत का उचित मूल्य मिलना ही चाहिए इस बात को अभिव्यक्ति देते
हुए कहाँ है- घोड़ा घास से ही यारी करें तो खाये क्या?[22] मैत्रेय पुष्पा ने अपनी आत्मकथा के द्वितीय खंड में
गुड़िया भीतर गुड़िया आत्मकथा में लोकोक्ति और मुहावरों का सुंदर प्रयोग करते हुए
भाषा को सटीक एवं सुंदर अभिव्यक्ति दी है जिसका उदाहरण दृष्टव्य है- गुल खिलाना।[23] साथ ही उन्होंने लिखा है- बैटीसौसाठ, तबहु बबा की नाठ।[24] मैत्रेयी पुष्पा ने कस्तूरी कुंडल बसै नामक आत्मकथा
के प्रथम खंड में लोकोक्ति एवं मुहावरों का उचित प्रयोग किया है। जैसे जो व्यक्ति
शक्तिशाली होता है या साधन संपन्न होता है वह अपना काम येन केन प्रकारेण करवा लेता
है। इस भाव को अभिव्यक्ति देते हुए एक उदाहरण दृष्टव्य है- जिसकी लाठी उसकी भैस।[25] वहीं उन्होंने बताया है कि उचित समय पर उचित काम करना
चाहिए समय बीत जाने पर पश्चाताप करना यह पछताना व्यर्थ या बेकार है इस भाव को
अभिव्यक्ति देते हुए उन्होंने कहा है- बाद में पछताना पड़े चिड़िया चुग गई खेत।[26] मैत्रेयी पुष्पा ने सुनो मालिक सुनो स्त्री विमर्श
में लोकोक्ति एवं मुहावरों का अत्यन्त अनुकरणीय एवं विषय साम्य प्रयोग किया
जैसे- बहन के घर भाई कुत्ता, ससुर के
घरजमाई कुत्ता।[27] मैत्रेयी पुष्पा ने खुली खिड़कियाँ स्त्री विमर्श में लोकोक्ति एवं मुहावरों का सटीक स्पष्ट सुन्दर समय शाम में एवं उपयोग उपयुक्त प्रयोग किया है जैसे- मांस खाओ, हाड गले में न लटकाओ।[28] |
||||||
निष्कर्ष |
उपर्युक्त लेख के माध्यम से हम कह सकते हैं कि मैत्रेयी पुष्पा के कथासाहित्य में लोकोक्ति-मुहावरों का सटीक, स्पष्ट, सारगर्भित प्रयोग हुआ। जिससे समाज में चली आ रही परंपरा, नियम, रूढ़ियाँ आदि सभी की अभिव्यक्ति लोकोक्ति एवं मुहावरों के माध्यम से हुई है। लेखिका का साहित्य लोकोक्ति एवं मुहावरों की दृष्टि से समृद्ध हैं। उनके कथासाहित्य में लोक जीवन का वृहद एवं स्पष्ट दृष्टिकोण दिखाई देता है।लोकोक्ति एवं मुहावरों के माध्यम से लेखिका ने जीवन अनुभव, लोक जीवन, लोक साहित्य एवं जन भावना को सशक्त अभिव्यक्ति दी है। जिसके कारण उनका कथासाहित्य सशक्त, सारगर्भित, जीवंत एवं हृदयग्राही हो गया है ।
लोकोक्ति और मुहावरे भाषा की शक्ति है। इसके प्रयोग से भाषा की संप्रेषणीयता में सरलता और सौंदर्यता आ जाती है। मनुष्य अपनी बात को और अधिक सटीक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए इनका प्रयोग करता है। विश्व की सभी भाषाओं में लोकोक्ति और मुहावरों का प्रयोग प्रचलन में है। प्रत्येक समाज में प्रचलित लोकोक्ति और मुहावरे लिखित कानून के रूप में माने जाते हैं।
लोकोक्तियों में लोक या समाज में पीढ़ियों से प्रचलित अनुभव का सार एवं व्यवहारिक नीति का सार होता है। लोकोक्तियों के निर्माण में किसी घटना विशेष या परिस्थिति का योगदान होता है। मैत्रेयी पुष्पा ने भी उन परिस्थितियों का यथार्थ वर्णन लोकोक्ति और मुहावरों के माध्यम से किया है।
मुहावरे हमारी तीव्र हृदय अनुभूति को सशक्त अभिव्यक्ति करने में सहायक का काम करते हैं। मुहावरों का जन्म आम लोगों के बीच होता है। लोक जीवन में प्रयुक्त भाषा में इनका उपयोग बड़े ही सरल, सहज और सुन्दर रूप में होता है। इनके प्रयोग से भाषा सटीक, प्रभावी, मोहक और प्रभावपूर्ण बनने में सहायता मिलती है।
सदियों से इनका प्रयोग होता आया है और आज भी इनके अस्तित्व को भाषा से अलग नहीं किया जा सकता है। मुहावरे के बिना भाषा निर्जीव प्रभाव शून्य और अप्राकृतिक सी लगती है। मुहावरों का प्रयोग भाषा और विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। मुहावरों का प्रयोग आधुनिक या वैज्ञानिक युग की ही देन नहीं है अपितु इनका प्रयोग दीर्घकाल से अशिक्षित तथा अनपढ़ लोग भी प्रयोग करते रहे हैं। यह केवल सुशिक्षित या विद्वान पढ़े लिखे लोगों की धरोहर नहीं है अपितु इनका प्रयोग तो उस समय से होता आया है जिस समय मनुष्य ने अपने भावों और विचारों को अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया था। |
||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. डॉ श्याम शरण दुबे, मानव और संस्कृति, पृ सं 179
2. डॉ कांति कुमार,समय के साथ चाक पर घूमती हुई औरत ,वसुधा 42,पृ सं 302
3. मैत्रेयी पुष्पा, अल्मा कबूतरी, उपन्यास, पृ सं 174
4. मैत्रेयी पुष्पा, अल्मा कबूतरी, उपन्यास, पृ सं 166
5. मैत्रेयी पुष्पा, चाक, उपन्यास,पृ सं 115
6. मैत्रेयी पुष्पा ,चाक, उपन्यास, पृ सं 82
7. मैत्रेयी पुष्पा, अगन पाखी, उपन्यास,पृसं 13
8. मैत्रेयीपुषा, अगनपाखी, उपन्यास, पृसं 76
9. मैत्रेयी पुष्पा, विज़न ,उपन्यास,पृसं 151
10. मैत्रेयीपुष्पा, विजन, उपन्यास, पृसं 99
11. मैत्रेयीपुष्पा, कही ईसुरी फाग, उपन्यास, पृसं 87
12. मैत्रेयीपुष्पा, कही ईसुरीफाग, उपन्यास, पृसं178
13. मैत्रेयी पुष्पा, त्रिया हठ, उपन्यास,पृसं 80
14. मैत्रेयी पुष्पा, इदनमम्, उपन्यास,पृसं213
15. मैत्रेयीपुष्पा, इदधमम्, उपन्यास, पृसं 19
16. मैत्रेयी पुष्पा, झूलानट, उपन्यास,पृसं 29
17. मैत्रेयीपुष्पा,झूलानट, उपन्यास, पृसं 92
18. मैत्रेयी पुष्पा, ललमनिया, कहानी संग्रह, पृसं15
19. मैत्रेयी पुष्पा, चिन्हार, कहानी संग्रह, पृसं141
20. मैत्रेयीपुष्पा, चिन्हार, कहानीसंग्रह, पृसं 18
21. मैत्रेयी पुष्पा, गोमा हंसती है, कहानी संग्रहपृसं26
22. मैत्रेयीपुष्पा, गोमाहंसती है, कहानीसंग्रह, पृसं 67
23. मैत्रेयी पुष्पा, गुड़िया भीतर गुड़िया, आत्मकथा,पृसं 257
24 मैत्रेयीपुष्पा, गुडिया भीतर गुडिया, आत्मकथा, पृसं95
25. मैत्रेयी पुष्पा, कस्तूरी कुंडल बसै, आत्मकथा,पृसं113
26. मैत्रेयीपुष्पा, कस्तूरीकुंडलबसै, आत्मकथा, पृसं46
27. मैत्रेयीपुष्पा, सुनो मालिक सुनो, स्त्री विमर्श,पृसं21
28. मैत्रेयी पुष्पा, खुली खिडकियां, स्त्री विमर्श,पृसं 192 |