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बीकानेर जिले की पूगल तथा नोखा तहसील की अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन के प्रभाव का विशिष्ट अध्ययन | |||||||
A Special Study of The Impact of Agriculture and Animal Husbandry on The Economy of Pugal And Nokha Tehsils of Bikaner District | |||||||
Paper Id :
17343 Submission Date :
2023-03-01 Acceptance Date :
2023-03-11 Publication Date :
2023-03-14
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सारांश |
अध्ययन क्षेत्र में सूखे के समय फसलें कम होने पर समस्यात्मक परिस्थिति में पशुपालन ही एकमात्र सहारा है, जो दो तिहाई परिवारों का प्रमुख व्यवसाय है। बाकी परिवार वन्य वनस्पति को काटकर नजदीकी शहरों, कस्बों में विक्रय कर अपनी जीविका चलाते हैं। वर्तमान समय में आय का उत्तम स्रोत, नकदी फसलों की तरह, पशुपालन को माना जाता है। क्षेत्र के सिंचित भागों में फसल कृषि के उत्पादों का आर्थिक मूल्य समस्त कृषि उत्पादों का एक बड़ा हिस्सा होता है। इसका स्तर 84 प्रतिशत देखा गया। दूसरी ओर, अध्ययन क्षेत्र के असिंचित गांवों में वर्षा पर निर्भरता, अनावृष्टि तथा सिंचाई के अवसरों के अभाव के कारण फसल कृषि का महत्व घट रहा है। उपर्युक्त परिस्थितियों में पशुपालन एवं पशुचारण अधिक महत्वपूर्ण गतिविधि बन गई है इसलिए गैर-सिंचित गांवों में सकल कृषि अर्थव्यवस्था का आधे से भी अधिक भाग (53.3 प्रतिशत) पशु उत्पादों से प्राप्त होता है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Animal husbandry is the main occupation of two-thirds of the families in the study area, which is the only support in the problematic situation when the crops are less during the drought. The rest of the families make their living by cutting wild vegetation and selling it in the nearby cities and towns. At present, animal husbandry is considered as the best source of income, like cash crops. In the irrigated parts of the region, the economic value of the products of crop agriculture is a major part of the total agricultural products. Its level was observed at 84 percent. On the other hand, in the unirrigated villages of the study area, crop agriculture is declining in importance due to rain dependence, drought and lack of irrigation opportunities. Under the above circumstances, animal husbandry and pastoralism have become more important activities, so more than half (53.3 percent) of the gross agricultural economy in non-irrigated villages is derived from animal products. | ||||||
मुख्य शब्द | बीकानेर जिला, पूगल तहसील, नोखा तहसील, कृषि, अर्थव्यवस्था, पशुपालन, पशुचारण। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Bikaner District, Pugal Tehsil, Nokha Tehsil, Agriculture, Economy, Animal Husbandry, Animal Husbandry. | ||||||
प्रस्तावना |
अर्द्ध-शुष्क नोखा तहसील में कृषि अर्थव्यवस्था के तीन-चैथाई भाग (76.4 प्रतिशत) हेतु फसल कृषि जिम्मेदार पाई गई, जबकि कृषि अर्थव्यवस्था में एक-चैथाई (23.6 प्रतिशत) योगदान पशु उत्पादों का रहा। पूगल तहसील में फसल कृषि का महत्व दो-तिहाई (67 प्रतिशत) के स्तर पर ही था, यहां की शेष एक-तिहाई (32.7 प्रतिशत) ग्रामीण अर्थव्यवस्था पशु उत्पादों से चालित है। नोखा के सिंचित गांवों की ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था में फसल कृषि उत्पादों की भूमिका (87.6 प्रतिशत) अपेक्षाकृत अधिक शुष्क पूगल तहसील (78.9 प्रतिशत) से ज्यादा पाई गई।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. बीकानेर जिले की पूगल तथा नोखा तहसीलों की अर्थव्यवस्था में कृषि एवं पशुपालन की स्थिति का अध्ययन करना।
2. अध्ययन क्षेत्र में कृषि अर्थव्यवस्था प्रतिरूपों का अध्ययन करना। |
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साहित्यावलोकन | Naorem et al.k (2023) के अनुसार
जलवायु के अधिकाधिक शुष्क होते जाने से भविष्य में शुष्क मृदाओं का विस्तार बढ़ेगा।
शुष्क क्षेत्रों में पाए जाने वाले कृषि संबंधी अवरोध मुख्यतः जलाभाव से जुड़े होते
हैं। जैसे शुष्क मृदा में वनस्पति विरल, कार्बन की मात्रा न्यून, मृदा की संरचना
घटिया, मिट्टी में जैवविविधता घटी हुई, पवनों के कारण मृदा अपरदन की दर उच्च एवं पौधों को पोषक
तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है। उपर्युक्त लेख में मृदा की समस्याओं को दूर
करने तथा उत्पादकता बढ़ाने के लिए उपलब्ध विभिन्न तकनीकों का अन्वेषण किया गया है। Feççadeh et al. (2023) ने इस बात की ओर
ध्यान दिलाया है कि जलवायु परिवर्तन से अधिकाधिक झीलें शुष्क होने लगी हैं।
उन्होंने अत्यधिक लवणीय झीलों के सूखने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक
प्रभावों का अध्ययन ईरान की शाबेस्तर काउंटी की उर्मिया झील के संबंध में किया।
उनके परिणाम दर्शाते हैं कि झील के सूखने से अधिक मात्रा में मुक्त हो रहे लवणों
के कारण स्थानीय मरीजों में उच्च रक्तचाप के मामलों में सार्थक वृद्धि देखी गई है। Bierkamp et al.k(2021) ने मध्यवर्ती
विएतनामी उच्चभूमि से जुड़े अपने अध्ययन में पाया कि परिसंपत्तियों की दृष्टि से
निर्धन (Asset-poor) परिवारों के
प्रवासी सदस्यों द्वारा भेजे गए धन के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अपेक्षाकृत
कम होता है। इसके विपरीत परिसंपत्तियों की दृष्टि से संपन्न (Asset-rich) परिवारों के प्रवासी व्यक्तियों द्वारा भेजे गए धन के कारण
अपेक्षाकृत अधिक प्राकृतिक संसाधन दोहन होता है। उसका कारण यह पाया गया कि
परिसंपत्तियों की दृष्टि से निर्धन परिवार अपेक्षाकृत श्रम-सघन दोहन की विधियों पर
आधारित रहते हैं, जबकि इन परिवारों के सदस्यों के प्रवसन के कारण
श्रम की उपलब्धता कम हो जाती है। Carausu et al.
(2017) ने रोमानिया की इयासी काउंटी के ग्रामीण वृद्ध
पुरुषों के स्वास्थ्य का विश्लेषण करते हुए तीन प्रमुख स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं
को उजागर किया। इनमें हृदय से संबंधित, पाचन से संबंधित तथा डायबिटीज शामिल थे। महिलाओं में हृदय से संबंधित समस्याओं
के बाद डायबिटीज तथा अस्थि-शिरा समस्याएं प्रमुख थीं। Rai (2019) ने पर्यावरण चिंतन के संबंध में अपना शोध कार्य किया।
उन्होंने विशेष तौर पर यह जानने का प्रयास किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में
वनोन्मूलन के लिए ग्रामीण निर्धन लोगों को कारक मानने वाली नैरेटिव क्यों इतने
प्रचलित रहे हैं। Dorward (2018) ने राजस्थान
राज्य में कृषि की प्रमुख समस्या, जल की कमी, के संदर्भ में किये अनुसंधान में यह देखने का प्रयास किया
कि किस प्रकार व्यक्तिगत तथा सामूहिक यादें, तथा भूतकाल की चरम घटनाओं का अनुभव जलवायु के खतरों के वर्तमान अर्थ एवं
भविष्य की आशाओं को निर्धारित करते हैं। सामाजिक असुरक्षा (Vulnerability) की भावना को समझने में उन्होंने जल की कमी सम्बन्धी स्थानीय
अवबोधों (एवं परिवारों के अंदर तथा परिवारों के बीच उनकी परिवर्तनशीलता) की भूमिका
के महत्व को भी प्रतिपादित किया। Israel - Wynberg (2018) ने ग्रामीण
दक्षिण अफ्रीका में निर्वाहमूलक कृषि एवं मिश्रित आजीविका में संलग्न समुदाय, तथा व्यापारिक वानिकी में संलग्न दूसरे समुदाय के मध्य
अंतरसंबंधों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि इस प्रकार के भू-उपयोग के लिए
आवश्यक संसाधनों को लेकर द्वंद्व तथा सहअस्तित्व पाया जाता है। इस संदर्भ में
उन्होंने विभिन्न सुझाव भी प्रस्तुत किए। Convery et al.(2012) के संपादित कार्य में बतलाया कि ग्रामीण स्थल तथा भूमि के
मध्य मूलभूत लंबा संबंध पाया जाता है जबकि नगरीय क्षेत्रों में भूमि से प्रत्यक्ष
जुड़ाव नहीं होता है। ग्रामीण लोग भूमि पर रहते, कार्य करते, उसका पालन पोषण करते एवं भूमि को भली प्रकार
समझते हैं। Sutton- Anderson (2010) ने सांस्कृतिक
पारिस्थितिक (Cultural Ecology) के अपने अध्ययन
में इस विषय को मानव पारिस्थितिकी एक शाखा के रूप मानते हुए इस रूप में परिभाषित
किया है कि पृथ्वी के विभिन्न पर्यावरणों में मानव किस प्रकार रह रहा है उन्होंने
विश्व के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की प्रकृति आधारित अर्थव्यवस्थाओं का
विस्तृत वर्णन भी अपने अध्ययन में प्रस्तुत किया है। Burke - Pomera (2009) की संकलित रचना में औपनिवेशिक काल में भारत में
भूदृश्य तथा पारिस्थितिकी के इतिहास का
विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। Adelson et al.(2008) ने पर्यावरणीय अध्ययन की उपयोगिता पर सवाल उठाते हुए यह प्रश्न किया कि हम
पृथ्वी का किस प्रकार उपयोग करे ताकि उसका उचित दोहन भविष्य में भी जारी रहे। उनके
अनुसार इसका जवाब पर्यावरणीय साक्षरता में है क्योंकि पर्यावरणीय शिक्षा प्रत्येक
बच्चे की जाग्रति के स्तर को एक निश्चित रूप दे सकती है तथा प्रत्येक प्रौढ़ के
कार्यों को निर्दिष्ट कर सकती है। उन्होंने पर्यावरणीय के विभिन्न तत्वों की
वर्तमान स्थिति का भी विवेचन किया है। जनसंख्या वृद्धि के साथ आधिकाधिक सीमांत
मृदाएं कृषित हो रही है जिससे ऐसी मृदाएं अवकृषण तथा अपरदन संभावित हो जाती है। Bhattacharya -
Innes (2008) ने दक्षिणी, मध्यवर्ती तथा पश्चिमी भारत में जिलास्तरीय आंकड़ों का प्रयोग करके जनसंख्या वृद्धि
एवं पर्यावरणीय परिवर्तन का अध्ययन, उपग्रह आधारित वनस्पति सूचकांक के उपयोग के माध्यम से किया है उनका निष्कर्ष
है कि पर्यावरणीय अवकर्षण के कारण ग्रामीण जनसंख्या वृद्धि होती है तथा गांवों की
ओर प्रवास होता है दूसरी ओर पर्यावरणीय सुधार से नगरीय जनसंख्या वृद्धि तथा नगरों
की ओर आप्रवास होता है।
Summer (2005) आर्थिक
वैश्वीकरण तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते प्रभाव को ग्रामीण समुदायों पर
प्रभाव का विश्लेषण किया है। इसके प्रभाव में उन्होंने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, लिंग संबंधित तथा सांस्कृतिक प्रभावों को लेते हुए इसके नकारात्मक पहलुओं को
उजागर किया। Belshaw (2001) ने इस बार पर गौर किया है कि पर्यावरण एवं पर्यावरणीय
मुद्दे किसे कहा जाए तथा पर्यावरणवादी कौन होता है। उन्होंने पर्यावरणीय समस्याओं
के कारकों तथा गहरी पारिस्थितिकी (Deep Ecology) की अवधारणा को भी स्पष्ट किया। Deep Ecology को मानने वाला संसार को बदलने का उद्देश्य रखता है। EEu (1999) ने अपनी रिपोर्ट में कर्नाटक में प्राकृतिक संसाधन पर्यावरण
अर्थात् वन आवरण, चारागाह, भू-उपयोग, मृदाक्षरण जलग्रहण क्षेत्र विकास, पशु संसाधन एवं मत्स्ययन, खनिज, औद्योगिक प्रदूषण व नगरीय पर्यावरण की दशाओं का
आंकलन प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार सरकारी निष्क्रियता के कारण प्राकृतिक
संसाधनों तथा स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर जन-आंदोलन उत्पन्न हुए। |
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सामग्री और क्रियाविधि | इसके अंतर्गत अध्ययन क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं पशुपालन का अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव के कारकों के प्रतिरूपों की जानकारी जुटाई गई। कृषि एवं पशुपालन अर्थव्यवस्था की स्थिति को जानने के लिए खासतौर पर प्राथमिक आंकड़ों एवं सूचनाओं का प्रयोग करते हुए अर्द्धशुष्क नोखा तहसील तथा शुष्क पूगल तहसील के चार-चार यादृच्छिक रूप से चयनित कुल आठ गांवों में अनुसूची आधारित प्राथमिक क्षेत्र का अध्ययन किया। इन आठ ग्रामों में से चार गांव सिंचित तथा चार ग्राम वर्षा आधारित थे। यह आनुभविक अध्ययन वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक एवं तुलनात्मक प्रकार का है। |
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परिणाम |
दोनों तहसीलों के असिंचित गांवों में फसल कृषि उत्पादों एवं पशु उत्पादों की कृषि अर्थव्यवस्था में भूमिका का स्तर भिन्न-भिन्न पाया गया। अतैव नोखा तहसील के असिंचित गांवों में पशु उत्पादों की कृषि अर्थव्यवस्था में भूमिका करीब 60 प्रतिशत देखी गई, जबकि फसल कृषि उत्पादों का योगदान शेष 40 प्रतिशत तक ही सीमित था। नोखा के असिंचित भागों में पशु उत्पादों की कृषि अर्थव्यवस्था में यह भूमिका पूगल तहसील के असिंचित भागों की अपेक्षा अधिक पाई गई। पूगल तहसील के गैर-सिंचित गांवों में फसल कृषि उत्पादों का सकल कृषि अर्थव्यवस्था में योगदान आधे से कुछ अधिक करीब 51 प्रतिशत पाया गया, जबकि पशु उत्पादों का योगदान उच्च होते हुए भी 49 प्रतिशत के स्तर पर दर्ज किया गया। पूगल तहसील के बारानी गांवों की अपेक्षाकृत अधिक विकट परिस्थितियां, यथा कम वर्षा, निम्न श्रेणी की मृदा या बालू रेत एवं न्यूनतर उत्पादकता, इस प्रारूप का कारण हो सकती हैं (सारणी 1 व आरेख 1)। सारणी - 1: कृषि अर्थव्यवस्था में फसलों एवं पशुओं की भूमिका सिंचित गांवों में गोधन पशु की सर्वाधिक धारिता सामान्य जातियों के परिवारों में 6.96 प्रति परिवार देखी गई। सिंचित क्षेत्र के समुदायों में गोधन की सर्वाधिक उपलब्धता अन्य पिछड़ी जाति परिवारों (7.14) में थी। इसी प्रकार सिंचित क्षेत्रों में सर्वाधिक भैंस पशु की धारिता 1.9 अन्य पिछड़ी जाति वर्ग में पाई गई। असिंचित गांवों में सर्वाधिक भैंस पशु का स्वामित्व अनुसूचित जाति के परिवारों में 1.72 था। भेड़ पशुपालन सिंचित गांवों के समुदाय आमतौर पर नहीं करते हैं। असिंचित गांवों में सर्वाधिक भेड़ पशु स्वामित्व अन्य पिछड़ी जाति के परिवारों (11.2) में देखा गया। जिसके बाद सामान्य जातियों तथा मुस्लिम समुदायों का स्थान था। नगद राशि की तुरंत प्राप्ति की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण आजकल सिंचित गांवों में भी बकरी का पालन बढ़ने लगा है। सर्वाधिक बकरी पशु सामान्यतः सिंचित गांव की सामान्य जातियों (20.10 प्रति परिवार) में देखा गया। इसके बाद अनुसूचित जातियों 4.10 का स्थान था। असिंचित गांवों के समुदायों में सर्वाधिक बकरी पालन वाला समुदाय मुस्लिम (12.4 प्रति परिवार), अन्य पिछड़ी जातियां (8.76) एवं सामान्य जातियां (5.5) क्रमशः थे। राज्य पशु ऊंट का पालन तेजी से घटा है। सिंचित भागों के परिवारों में इसकी उपलब्धता प्रायः 5 परिवारों में एक ऊंट के औसत से है। जबकि गैर-सिंचित गांवों में भी इसकी उपलब्धता बहुत कम हो गई है। कमोबेश यही स्थिति बैलों को लेकर है। वस्तुतः कृषि के कार्य में ट्रैक्टरों का प्रयोग बढ़ जाने से ऊंटों व बैलों का पालन बहुत कम हो गया है (सारणी 2 व आरेख 2)।
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निष्कर्ष |
अध्ययन क्षेत्र के सिंचित भागों में फसल कृषि उत्पादों का आर्थिक मूल्य समस्त कृषि उत्पादों का एक बड़ा हिस्सा निर्मित करता है। वहीं दूसरी ओर, क्षेत्र के गैर-सिंचित ग्रामों में जलवायु प्रतिकूलता के कारण फसल कृषि का महत्व घट रहा है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अध्ययन क्षेत्र में पशुपालन एवं पशुचारण अर्थव्यवस्था में अधिक महत्वपूर्ण स्तम्भ बनता जा रहा है। |
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