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ग्राम उल्दन बुन्देली संस्कृति का संवाहक | |||||||
Village Uldan is the Conductor of Bundeli Culture | |||||||
Paper Id :
17436 Submission Date :
2023-02-12 Acceptance Date :
2023-02-22 Publication Date :
2023-02-25
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सारांश |
सागर जिले में स्थित उल्दन एक प्राचीन ग्राम है जिसमें मकर संक्राति के त्यौहार पर लगने वाले मेले में दूर-दूर से लोग आमोद उठाने के लिए आया करते हैं। उल्दन के मेले में आज भी पुराने समय से लगने वाले मेलों का परिदृश्य देखने को मिल जाता है। जैसा हमने कभी दादी-नानी के मुंह से सुना था। लेकिन वर्तमान समय में उल्दन ग्राम उल्दन बाँध परियोजना आ जाने के कारण डूब ग्रसित क्षेत्र के अन्तर्गत आ गया है। उल्दन ग्राम बुंदेलखण्ड में ऐतिहासिक धरोहर को संजोए हुए है प्रस्तुत शोध-पत्र में शोधार्थी द्वारा प्रयास किया गया है ग्राम में समाज में जिस तरह की परम्परा और रीति-रिवाज आदि में जो सामाजिक ताना-बाना दिखाई देता है। विकास की इस दौड़ में इनका नया आयाम जो हम तय कर रहे हैं, जिसमे उल्दन बांध परियोजना आने से यह गाँव जो इतिहास का हिस्सा है शायद भविष्य में न रहे, जो चिन्ता का विषय है पर शोध-पत्र प्रस्तुत किया गया है | यहाँ बड़ी विडम्बना की स्थिति है कि एक तरफ तो हम विकास कर रहे है और विकास के लिए ही उल्दन बाँध परियोजना बनाई गई है ताकि सिंचाई का संकट या जो जल संकट है उसे दूर किया जा सके। लेकिन एक दुखद पहलू यह भी है कि बहुत सारे ऐसे गाँव जिनकी अपनी सांस्कृतिक धरोहर है, जहाँ के लोग ऐतिहासिक परम्पराओं में खुद को संजोए हुए हैं वह कल इतिहास का हिस्सा हो जायेंगे और कल डूब क्षेत्र में आ जाने के कारण उनका अस्तित्व समाप्तप्राय होगा। ऐसे समय में एक इतिहास की विद्यार्थी होने के नाते यह लेखक का परम कर्तव्य है कि उल्दन जैंसे ग्राम को लोगों के सामने दस्तावेजीकरण किया जाये ताकि ऐसे ग्रामों की ऐतिहासिकता एवं प्रसिद्धि लोगों के समक्ष बनी रहे।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Uldan is an ancient village located in the Sagar district, in which people from far and wide come to enjoy the fair held at the festival of Makar Sankranti. In the fair of Uldan, even today one can see the scenario of fairs held since ancient times. As we had once heard from our grandmothers. But at present, Uldan village has come under a submergence-prone area due to the coming of the Uldan Dam Project. Uldan village has preserved historical heritage in Bundelkhand. In the present research paper, an effort has been made by the researcher to see the kind of social fabric which is visible in the tradition and customs, etc. in the society in the village. In this race of development, in which we are setting a new dimension, in which the Uldan dam project will come, this village which is a part of history may not exist in the future. This concern has been presented in the research paper. There is a great irony here that on one hand we are doing development and the Uldan dam project has been made for development only so that the crisis of irrigation or the water crisis can be removed. But there is also a sad aspect that many such villages which have their own cultural heritage, where people have preserved themselves in historical traditions, will become a part of history tomorrow, and tomorrow their existence will end due to coming under submergence. At such a time, being a student of history, it is my ultimate duty to document villages like Uldan in front of the people so that the historicity and fame of such villages remain intact. | ||||||
मुख्य शब्द | उल्दन ग्राम, बांध परियोजना, बुन्देली संस्कृति, परम्परा, मेला, जल संकट, मकर संक्रांति| | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Uldan Village, Dam Project, Bundeli Culture, Tradition, Fair, Water Crisis, Makar Sankranti. | ||||||
प्रस्तावना |
प्रस्तुत शोध-पत्र में सागर जिले के बंडा तहसील के ग्राम उल्दन में लगने वाले ऐतिहासिक मेले का विवरण दिया गया है। इस शोध-पत्र के द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि उल्दन जो कि एक प्राचीन ग्राम है, उसका अस्तित्व समाप्त होने जा रहा है | क्योंकि आज के आधुनिक दौर में मानवीय आवश्यकताएं अत्यधिक बढ़ गई हैं साथ ही साथ इस वैज्ञानिक युग में जल संकट भी एक गंभीर समस्या है | इस समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा जल परियोजनाएं बनाई जा रही हैं जिससे जल संकट को दूर किया जा सके | यह भी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि जल संकट का समाधान होना आधुनिक युग की आवश्यकता है | लेकिन दूसरी तरफ देखा जाए तो जहाँ मानव का जन्म होता है उसे वह स्थान बहुत प्रिय होता है आज उल्दन ग्रामवासियों से उनका निवास स्थान छिन रहा है तथा जो लोग संपन्न हैं उनकी आर्थिकी पर भी ग्राम डूब जाने से विपरीत प्रभाव पड़ेगा | इसी तरह की समस्या से उल्दन ग्राम के निवासी गुजर रहे हैं | एक तरफ जल संकट से बचने के लिए बांध परियोजना लाई गई है | वही दूसरी तरफ उल्दन तथा आस-पास के क्षेत्र बुन्देली परम्परा को प्रदर्शित करने वाले ग्राम है जहाँ प्राचीन मेले का आयोजन किया जाता है | शोध-पत्र में उल्दन मेले में होने वाली विभिन्न गतिविधियों का वर्णन भी किया गया है |
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं परम्परा से परिपूर्ण उल्दन मेले की जानकारी सभी तक पहुँचाना|
2. मेला डूब क्षेत्र में भले ही आ गया है, लेकिन इसकी ऐतिहासिकता सदैव बनी रहे, इसका प्रयास किया गया है |
3. ग्राम तथा मेले से सम्बंधित समस्त कथाओं को मौखिक इतिहास के रूप में लेखन कार्य करना | |
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साहित्यावलोकन | कृष्णन, व. सु. कृत 'सागर' जिला गजेटियर से उल्दन
ग्राम के बारे में जानकारी मिलती है। जिसमें उल्दन ग्राम की लोक कथा का भी वर्णन
है इसके आलावा डॉ. कल्पना सैनी एवं डॉ. रमेश चौबे द्वारा सम्पादित पुस्तक 'सागर की सांस्कृतिक विरासत'
से भी सहायता प्राप्त हुई जिसमें सागर,
गढ़पहरा तथा आस-पास के क्षेत्र की संस्कृति एवं इतिहास की जानकारी प्राप्त हुई |
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मुख्य पाठ |
बुंदेलखण्ड के सागर जिले
की बंडा तहसील में ‘उल्दन’ ग्राम 24०00’
उत्तर और 78०45’ पूर्व
में अवस्थित है। यह गाँव बंडा से 10 मील दूर धसान और भांडेर नदी के संगम पर बसा
हुआ है।[1] बुंदेलखण्ड का इतिहास अनगिनत प्रसिद्ध घटनाओं, युद्धों, संधियों, शौर्य गाथाओं, बलिदान और वीरता से भरा पड़ा है। बुंदेलखण्ड मे स्थित सागर क्षेत्र में गढ़पहरा, धामोनी, शाहगढ़, खिमलासा, देवरी, रहली, गढ़ाकोटा, राहतगढ़ आदि स्थान पंद्रहवीं शताब्दी में गौड़ शासक संग्रामशाह के बावन गढ़ों में शामिल थे। बाद में यह क्षेत्र महाराजा छत्रसाल के राज्य के अंतर्गत आया। इसके बाद सागर क्षेत्र मराठा साम्राज्य में मिला लिया गया| सागर जिले की बंडा तहसील ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से प्रवर दर्शनीय क्षेत्र है। अतः यहाँ धामोनी, पजनारी जैन तीर्थस्थल आदि के साथ-साथ बुन्देली परम्परा से धनी क्षेत्र ग्राम उल्दन भी स्थित है; जहाँ पर बुंदेलखण्ड का प्रसिद्ध ऐतिहासिक मेला भरा जाता है जिसे ‘उल्दन मेला’ के नाम से जाना जाता है। उल्दन ग्राम गढ़पहरा तथा धामोनी के मध्य में अवस्थित है। जिससे समझ आता है कि गढ़पहरा तथा धामोनी में शासन करने वाले शासकों के समय से यहाँ मेला प्रारंभ हुआ। फोटो क्र.-1 ग्रामवासियों द्वारा यह मेला लगभग चार सौ साल पुराना बताया जाता है जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि महाराजा छत्रसाल के समय से यहाँ मेला लगता है और गढ़पहरा तथा धामोनी के शासक यहाँ इस स्थान पर पूजा करने आया करते होंगे। क्योंकि उल्दन धसान तथा भांडेर नदियों का संगम स्थान है तथा यह प्राकृतिक सुन्दरता से धनी क्षेत्र है साथ ही लोक आस्था का केंद्र भी है जिससे इस स्थान की प्राकृतिक सुन्दरता से आकर्षित होकर राजाओं द्वारा उल्दन में लोगों के मनोरंजन के लिए एवं भगवान शिव जी के प्रति लोगों की आस्था से प्रेरित होकर मेले का आरम्भ कराया होगा। फोटो
क्र.-2 इस बात का अनुमान इस तरह
लगाया जा सकता है कि आज भी उल्दन में जब मेले का आरम्भ होता है तो शिव जी की पूजा
के लिए हांथी बुलाया जाता है जो शिव जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करता है तथा
पुजारी द्वारा पूजन कार्य संपन्न कर देने के बाद से यहाँ मेले का आरम्भ हो जाता
है। मकर संक्रांति को चार दिन
के लिए भरने वाले एक बड़े धार्मिक मेले के कारण इसका महत्व है। इसमें आसपास के
जिलों के लगभग 12,000 लोग सम्मिलित होते हैं। यह मेला शिव के स्थानीय प्रकटीकरण की
स्मृति में लगता है।[2] मेले की बात की जाए तो
मेले प्राचीनकाल से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं। वास्तव में
एक-दूसरे के निकट आने और आपसी सहयोग और सौहार्द की भावना ने मेलों को जन्म दिया।
जिसकी झलक वर्तमान भारत में भी देखी जा सकती है। जहाँ एक ओर हम विज्ञान, तकनीकी
और विभिन्न क्षेत्रों में निरन्तर विकास कर रहे हैं, वहीं
दूसरी ओर हम अपने पारम्परिक मेलों से भी उसी प्रकार आबद्ध हैं जैसे कि दूर के अतीत
में थे। “मेला” शब्द का अर्थ है “मिलन‘’ होता है। विस्तारपूर्वक मेला शब्द को इस प्रकार व्याख्यायित
किया जा सकता है- “मेला वह है जहाँ पर विभिन्न समुदाय के लोग एक बड़ी संख्या
में एकत्र होते हैं तथा पारस्परिक सद्भाव की भावना से एक-दूसरे के सुख-दुख के बारे
में जानकारी लेते हुए भारतीय विशेषता अर्थात अनेकता में एकता को चरितार्थ करते
हैं। मेले में सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी होता है। बुन्देलखण्ड में धार्मिक
मेलों की अधिकता दिखाई देती है। उल्दन मेला भी उन्हीं में से एक हैं। इस संबंध में हमने ग्राम निवासियों के साक्षात्कार से कुछ जानकारी प्राप्त की। वेदांत
तिवारी- पीढ़ियों से सुनी आ रही
कथाओं के अनुसार यहाँ शिव जी की महिमा है। शिव जी की कृपा के कारण हर साल मकर संक्रांति
पर मेला लगाया जाता है।[3] लक्ष्मी
बाई यादव- जब से विवाह कर के उल्दन
आई हैं तभी से देखती आ रही हैं कि मेले में सागर जिला तथा आसपास के गाँव तथा शहरों
से बहुत भीड़ आया करती है। लेकिन उल्दन बाँध परियोजना आ जाने से शायद अब यह मेला
समाप्त होने की कगार पर आ गया।[4] नंदरानी- ग्राम में शिव जी तथा कारस देव (बलदाऊ जी) की असीम कृपा
है। यहाँ सभी लोग आपस में मिल जुलकर रहते हैं। उल्दन में पहले 10 दिन का मेला भरता
था, लेकिन
अब आधुनिक मेले लग जाने से यहाँ लोग दुकाने लगाने समय पर नहीं आते जिससे मेले का
समय 15 दिन तक बढ़ा दिया।[5] इसके अलावा राजेश तिवारी
ने बताया कि - मेला पहले मकर संक्राति के दिन से आरंभ हो जाता था यहाँ मंदिर में
साज-सज्जा तथा बुन्देली सांस्कृतिक कार्यक्रम होना शुरू हो जाते थे। उल्दन का
महत्व देख दुकानदार दुकान लगाने स्वयं अपनी इच्छा से आते हैं उन्हें कोई बुलाता
नहीं हैं। लेकिन समय बदलाव के साथ अब यहाँ भक्तगण मकर संक्रांति पर बुड़की (स्नान)
करने तथा शिव-पार्वती की पूजा करने आते हैं,
परन्तु अब मेला दो दिन बाद
से प्रारंभ होने लगा है।[6] भगवानदास- मेला लगभग 500 वर्ष पुराना है। जब तक मेला रहता है यहाँ
धसान तथा भांडेर नदियों के संगम स्थल पर नांव चलती है। यहाँ पर शिव जी स्वयं प्रकट
हुए हैं तथा यहाँ आकर शिव जी के दर्शन करने तथा बुड़की लेने से सभी प्रकार के रोगों
से मुक्ति मिलती है।[7] संदीप पटेल उम्र 29 वर्ष -
प्राचीन मेला समाप्त होने जा रहा है समस्त ग्राम निवासी ग्राम के डूब क्षेत्र में
आने से निराश है।[8] उल्दन बुन्देली सांस्कृतिक धरोहर है जिसमें आज भी मेले में राई नृत्य तथा गाँव के लोगों मनोरंजन के लिए लोक गीत गाये जाते हैं एवं विभिन्न प्रकार की लोक चित्रकलाएं आदि देखने को मिलती हैं। यहाँ आकर लगता है मानो आज भी बुन्देली परम्परा उसी प्रकार जीवित है जैसे पुराने समय में हुआ करती हो फोटो
क्र.-3 यह मेला बहुत प्रसिद्ध
मेला है इसी वजह से जगह-जगह से लोग अपनी समस्याओं को दूर करने आते हैं साथ ही मेले
का भी आनंद उठाया करते हैं मेले में अत्यधिक भीड़ होने से यह मेला यहाँ तथा आसपास
के ग्राम के लोगों की वार्षिक आर्थिकी का हिस्सा भी है। मेले में सभी प्रकार की
ग्राहस्तिक बुन्देली वस्तुएं जैसे- लोहे का हंसिया,
तवा, कुल्हाड़ी, लकड़ी के
पटा-बेलन, ताला-चाबी, मिट्टी के बने खिलौने,
घर को सजाने के लिए
बुन्देली मूर्तियाँ जिसमे गुड्डा-गुड्डी का पहनावा बिलकुल यहाँ के लोगों द्वारा
पहने जाने वाले पहनावे की तरह होता है,
गुल्लक आदि के साथ-साथ
खाने पीने के लिए बुंदेलखण्ड के पुराने पकवान मिठाइयों, गुड़ से
बने हुए लड्डू, जलेबी, कंदमूल आदि होते हैं। मेले में एक और महत्वपूर्ण बात देखी जाती है, कि मेले के आयोजन के समय यहाँ नदियों के संगम पर नाव चलाई जाती, जिसमें
बैठकर लोग इस पार से उस पार तक जाया करते हैं | लोकोक्ति- उल्दन मेला शिव के स्थानीय
प्रकटीकरण की स्मृति में लगता है। यहाँ शिव पाषाण से प्रकट हुए थे और इन्हें एक
काछी ने पहचाना था और उनपर जल चढ़ाया। ग्राम में एक बार एक संत आये। जिन्होंने इसकी
महत्ता समझी। काछी को लोग सनकी समझा करते थे अतः उसने कछ्नार वृक्ष के 5 फूल लिए और उन्हें पानी की शीशी में परिवर्तित कर दिया और यह शीशियों का पानी कुंए में डाल दिया तथा कहा कि जब तक कोई मनुष्य इस कुएं के पानी को नहीं छुएगा। तब तक यह पानी ऐसे ही बहता रहेगा। कहा जाता है कि किसी मनुष्य के छूने से कुंआ का पानी सूख गया और आज भी यह कुंआ सूखा है| इस कुएं के ऊपर मंदिर का निर्माण कराया गया और उसमें वह पाषाण रख दिया गया। यहाँ कहावत के अनुसार अंधे, कोढ़ी ठीक हो गए तथा बाँझ महिलाओं को भी संताने प्राप्त हुई हैं। उल्दन
तथा आसपास के क्षेत्र से सम्बंधित अन्य लोकोक्ति- लोक विश्वास है कि धामोनी
में एक मजार मुसलमान संत अनिथाशाह बली की समझी जाती है। उसने, धामोनी
में उसे पानी न मिलने के कारण, गाँव को बद्दुआ दी थी और अब भी ऐसा विश्वास है
कि गाँव पर उसकी बद्दुआ लगी हुई है और वही बद्दुआ वहां की जमीन पर खेती करने से
रोकती है।[9] वर्तमान सागर नगर के
निवासियों के पूर्वज गढ़पहरा में ही निवास करते थे। उस समय गढ़पहरा उन्नतिशील नगर
था। गढ़पहरा से सागर आने वाले आरंभिक परिवारों में डॉ. गौर के पितामह ठाकुर मानसिंह
का परिवार था। गढ़पहरा पर होने वाले लगातार आक्रमणों तथा पानी की कमी से छुटकारा
पाने हेतु गढ़पहरा के निवासी अपने शासकों के साथ लगभग 10 कि.मी. दक्षिण दिशा में
स्थित विशाल झील के किनारे बस गए।[10] अगर इन सभी बातों पर ध्यान
दिया जाए तो समझ आता है कि बुंदेलखण्ड का अधिकांश क्षेत्र सूखा मैदानी क्षेत्र है
जहाँ कहीं-कहीं खेती करने योग्य भूमि है तो कहीं-कहीं लाल पत्थर तथा चूना पत्थर
आदि की चट्टानें हैं। इस क्षेत्र में किसानो कि संख्या अत्यधिक है लेकिन पठारी तथा मैदानी भाग होने के कारण यहाँ पानी
की कमी होने से किसानों की आर्थिकी मजबूत नहीं हो पाती। इस वजह से वह अपराध का
सहारा लेते रहे होंगे। जिसमे लूट, डकैती आदि शामिल है। आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो श्वेत क्रांति और उन्नत बीज हरित क्रांति से देश में कृषि की एक नई क्रांति पैदा हुई जिससे फसल की पैदावार बढ़ी। फलस्वरूप अपराध में कमी हुई। इससे खेती के आठ महीने उत्पादन कार्य में व्यस्त रहते है जिससे अपराध कम होते है। बंडा, शाहगढ़ जहाँ पथरीला इलाका था वहां उपज होने लगी। लेकिन अभी भी आस-पास के क्षेत्रों में पानी की कमी होने के कारण इस इलाके में बांध निर्माण किया जा रहा हैं जिसमें- बंडा विकासखंड की उल्दन परियोजना से कुल 80,000 हेक्टेयर भूमि संचित हो गई है। इस परियोजना में 28 गाँव प्रभावित होंगे। जिसमें निजी भूमि 3425 तथा शासकीय भूमि 1626 हेक्टेयर का उपयोग होगा। शेष भूमि वन-विभाग की होगी।[11] परियोजना से सागर जिले की मालथौन तहसील के 16,000 हेक्टेयर, बंडा तहसील के 37,000 हेक्टेयर, शाहगढ़ तहसील के 12,000 हेक्टेयर एवं छतरपुर जिले की बकस्वाहा तहसील के 15,000 हेक्टेयर कमांड क्षेत्र में सिंचाई प्रस्तावित है।[12] वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो दन्त कथाओं में भी यह इलाका सूखा ग्रस्त बताया गया है। इसलिये उन्नत कृषि तथा जल संचय के लिये बांध निर्माण भी आवश्यक है जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल कि आपूर्ति की जा सके। |
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सामग्री और क्रियाविधि | ऐतिहासिक पद्धति, विश्लेषणात्मक पद्धति एवं साक्षात्कार पद्धति। |
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जाँच - परिणाम | उल्दन बांध परियोजना आ जाने के कारण ऐतिहासिक उल्दन मेला समाप्त होने जा रहा है। | ||||||
निष्कर्ष |
यद्यपि परम्परा प्रियता और अतीतजीवी होना प्रतिगामी सोच का पर्याय है परन्तु यदि पुराना श्रेष्ठ है तो अपनाने में हानि नहीं। आज जरूरत है नए और पुराने में सामंजस्य स्थापित करने की। जीवन की आपाधापी में क्षण-प्रतिक्षण आनंद बटोरना यह मानवीय आवश्यकता बन गयी है।
बुंदेलखंड में परंपरागत जल संसाधनों को संरक्षित करने की तत्कालीन राजाओं ने जो व्यवस्था की जिसे चंदेली तथा बुन्देली जल संरचनाओ के रूप में जाना जाता है। नौवीं से अठारहवीं सदी तक बुंदेलखंड में तालाब, पोखर, बावड़ी बनाने तत्कालीन राजाओं की प्राथमिकता थी इन राजाओं द्वारा तालाबों का निर्माण अपनी प्रजा को सुखी संपन्न बनाने के लिए किया, बाद में जब यह क्षेत्र अंग्रेजों के आधिपत्य में आया तब उनके द्वारा इन तालाबों से राजस्व बसूलने के लिए कैनाल सिस्टम बनाया गया।
लेकिन आजादी के बाद लालची मानवीय स्वाभाव से लाचार लोगों ने अपनी अपनी सुविधा के लिए तालाबों की जो श्रंखला थी उस पर अतिक्रमण करना शुरू कर दिया। फलस्वरूप इस इलाके में जल संकट फिर गहरा गया।
पहले पानी की कमी होने के कारण खेती बंजर थी जिसकी वजह से अपराध बहुत ज्यादा पनपते थे। फिर अपराधों को कम करने खेती को उन्नत बनाने बंडा, शाहगढ़ के निकट छानबीला बांध बना। कृषि उन्नत करने के लिए यहाँ की नदियों पर भी बाँध बनाया जा रहा है।
लेकिन साथ ही हमें यह भी याद रखना होगा की उल्दन ग्राम एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है। डूब क्षेत्र में आ जाने के कारण यह स्थान भले ही खत्म होने जा रहा है। लेकिन इतिहास में लोग उल्दन ग्राम के बारे में जाने इसलिए इसका दस्तावेजीकरण करना आवश्यक महसूस होता है। |
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भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव | उल्दन ग्राम की ऐतिहासिकता बनाये रखने के लिए इसका अधिक से अधिक लेखन कार्य किया जाना चाहिए, साथ ही या प्रयास किया जाना चाहिए जहाँ भी अब यह ग्रामवासी जायेंगे वहां फिर से एक नई शुरुआत के साथ नए मेले का आयोजन करें ताकि यह प्रसिद्ध मेला हमेशा जीवित रहे | | ||||||
आभार | लेखक समस्त ग्रामवासियों के प्रति आभार ज्ञापित करती हूँ जिन्होंने शोधार्थी को इस कार्य को करने में सहायता प्रदान की एवं डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में अवस्थित जवाहरलाल नेहरु पुस्तकालय एवं कर्मचारियों के प्रति भी आभार ज्ञापित करती है जिन्होंने शोधार्थी को सहायता प्रदान की | | ||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. कृष्णन, व. सु., ‘सागर’, जिला गजेटियर विभाग, मध्यप्रदेश, भोपाल, 1970, पेज नं.- 530.
2. कृष्णन, व. सु., ‘सागर’, जिला गजेटियर विभाग, मध्यप्रदेश, भोपाल, 1970, पेज नं.- 530.
3. वेदांत तिवारी उम्र 25 वर्ष, साक्षात्कार दिनांक- 17.01.2023
4. लक्ष्मी बाई यादव उम्र 70 वर्ष, साक्षात्कार दिनांक- 17.01.2023
5. नंदरानी उम्र 45 वर्ष, साक्षात्कार दिनांक- 17.01.2023
6. राजेश तिवारी उम्र 40 वर्ष, साक्षात्कार दिनांक- 16.01.2023
7. भगवानदास उम्र 80 वर्ष, साक्षात्कार दिनांक- 16.01.2023
8. संदीप पटेल उम्र 29 वर्ष, साक्षात्कार दिनांक- 16.01.2023
9. कृष्णन, व. सु., ‘सागर’, जिला गजेटियर विभाग, मध्यप्रदेश, भोपाल, 1970, पेज नं.- 511.
10. सैनी, कल्पना, चौबे, रमेश, ‘सागर की सांस्कृतिक विरासत’, आदित्य पब्लिशर्स, बीना, म.प्र., 2007, पेज नं.-194.
11. फील्ड सर्वे - उल्दन परियोजना, http://hindi.sagarwatch.in
12. बंडा सिंचाई परियोजना जिला सागर (म.प्र.), बीना पी.एम.यू., जल संसाधन विभाग सागर (म.प्र.), 26.10.2018.
परिशिष्ट -
1- फोटो क्र.- 1, 26.10.2018.
2- फोटो क्र.- 2, 26.10.2018.
3- फोटो क्र.- 3, 26.10.2018. |