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माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत् शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों में अधिगम शैली का तुलनात्मक अध्ययन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Comparative Study of Learning Style In Children of Educated And Uneducated Women, Studying At Secondary Level | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
17514 Submission Date :
2023-04-12 Acceptance Date :
2023-04-22 Publication Date :
2023-04-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
शिक्षित महिलाएँ अपने बच्चों की शिक्षा में अशिक्षित महिलाओं की अपेक्षा अधिक सक्रिय भागीदारी निभाती है। वह अपने बच्चों के अधिगम कौशल का निर्माण करती है। जबकि अशिक्षित महिलाएँ अपने बच्चों का सहयोग नहीं कर पाती है। प्रस्तुत शोध कार्य का उद्देश्य शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली का तुलनात्मक अध्ययन करना। लिंगभेद के आधार पर शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली का तुलनात्मक अध्ययन करना। प्रस्तुत शोध कार्य में गंगानगर जिले के माध्यमिक स्तर के 640 बालक-बालिकाओं को लिया गया है। जिसमें शिक्षित महिलाओं के 320 बालक-बालिका एवं अशिक्षित महिलाओं के 320 बालक-बालिका यादृच्छिक विधि द्वारा लिये गये हैं। दत्तक संकलन हेतु के. एस. मिश्रा द्वारा निर्मित ‘अधिगम शैली परीक्षण’ (Learining Style Inventory- LIS-MK) हिन्दी वर्जन मानकीकृत उपकरण का प्रयोग किया है। दत्तोंव के विश्लेषण हेतु शून्य परिकल्पनाओं का निर्माण कर टी-परीक्षण सांख्यिकी का प्रयोग कर निष्कर्ष प्राप्त किये गये हैं। निष्कर्ष में पाया कि शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चो की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर पाया गया। शहरी क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर पाया गया। शहरी क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर पाया गया। ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर पाया गया। ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Educated women take more active participation in the education of their children than illiterate women. She builds the learning skills of her children. While uneducated women is unable to cooperate with their children. The purpose of the presented research work is to make a comparative study of the learning style of the children of educated and uneducated women. To make a comparative study of learning style of children of educated and uneducated women on the basis of gender. In the presented research work, 640 boys and girls of secondary level of Ganganagar district have been taken. In which 320 boys and girls of educated women and 320 boys and girls of uneducated women have been taken by random method for adoption collection. K.S. Mishra's 'Learning Style Test' instrument has been used. For Datton's analysis, conclusions have been obtained by making null hypothesis and using T-test statistics. In conclusion, it was found that a significant difference was found in the learning style of the children of educated and uneducated women. A significant difference was found in the learning style of the children of educated and uneducated women of urban area. A significant difference was found in the learning style of girls of educated and uneducated women of urban area. A significant difference was found in the learning style of boys of educated and uneducated women of rural areas. No significant difference was found in the learning style of girls of educated and uneducated women of rural area. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | शिक्षित महिलाएं, अशिक्षित महिलाएं, अधिगम शैली। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Educated Women, Illiterate Women, Learning Style. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
शिक्षा में अधिगम का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। अधिगम ही शिक्षा की आधारशिला है। अधिगम के आधार पर विद्यार्थियों में परस्पर भिन्नता पायी जाती है। सामान्य तौर पर सीखने का अर्थ व्यवहार परिवर्तन से लिया जाता है। साथ ही यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि व्यवहार में हुए हर प्रकार के परिवर्तन को सीखना नहीं कहा जा सकता। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अधिगम या सीखने का तात्पर्य मात्र उन परिवर्तनों से है जो अभ्यास एवं अनुभव के फलस्वरूप अस्तित्व में आते हैं। यह परिवर्तन अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी जैसे शब्दों का सही-सही पढ़ लेना, लिख लेना, सत्य बोलना ये व्यवहार में अच्छे परिवर्तन के उदाहरण हैं जबकि नशा करना, चोरी करना आदि बुरे परिवर्तन हैं।
प्रत्येक सीखने वाले की अभ्यास की अपनी एक शैली है, प्रत्येक अनुभव पर उसके चिन्तन की भी एक शैली है जो उसके लिए सुविधाजनक है। कोई विद्यार्थी देखकर सीख लेता है, कोई करके अच्छा सीखता है, कोई सुन के ही सीख लेता है, किसी को चर्चा के माध्यम से सीखने में आसानी होती है। बालकों को अधिगम शैली के साथ-साथ शैक्षिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
समाज की उन्नति एवं प्रगति के लिए पुरूषों के समान ही स्त्रियों का सहयोग अति आवश्यक है। स्त्रियों में चेतना पैदा करने के लिए तथा घर एवं समाज में अपने उत्तरदायित्व को निभाने के लिए स्त्रियों को शिक्षित करना जरूरी है। प्रत्येक स्त्री का एक महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व माता के कर्तव्य को भली प्रकार निभाना होता है। एक सुशिक्षित माता ही बालक के अच्छी प्रकार लालन-पालन करने, उसमें सुप्रवृत्तियों का विकास एवं उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करने में अच्छी प्रकार सहायक हो सकती है। एक सुशिक्षित नारी ही पारिवारिक जीवन को अधिक सुखी एवं आकर्षक बनाने के लिए अपने उत्तरदायित्व को अच्छी प्रकार पूरा कर सकती है। शिक्षित महिला अपने बच्चों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान देती है। उन्हें अच्छे संस्कार देती है। यदि बच्चे सभ्य और संस्कारी होंगे तो देश से कई बुराइयां स्वतः ही समाप्त हो जाएंगी। जबकि अशिक्षित महिलाएँ अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाती है।
अतः शोधार्थी ने शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालक-बालिकाओं की अधिगम शैली का तुलनात्मक अध्ययन करने हेतु प्रस्तुत शोध कार्य का चुनाव किया गया है। जिससे यह पता लगाया जा सके कि क्या शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालक-बालिकाओं की अधिगम शैली में अन्तर पाया जाता है? प्रस्तुत शोध के माध्यम से अधिगम शैली का पता लगाकर उनका समाधान खोजने का प्रयास किया जायेगा।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चोंं की अधिगम शैली का तुलनात्मक अध्ययन करना।
2. लिंगभेद के आधार पर शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली का तुलनात्मक अध्ययन करना।
शोध की परिकल्पनाएँ-
1. शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है।
2. लिंगभेद के आधार पर शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है। |
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साहित्यावलोकन | साहित्य समाज का दर्पण होता है सम्बन्धित
साहित्य से तात्पर्य उस साहित्य से है जिस से समस्या के किसी पक्ष की विवेचना की
गयी हो ,इस प्रकार कोई नया कार्य
करने से पहले उसकी पूर्व जानकारी प्राप्त
करना आवश्यक हो जाता है। पूर्व हुए शोध सहित्य का
अध्ययन– मोर्या (2004) ‘‘उच्च तथा निम्न सृजनशील विद्यार्थियोंके अधिगम शैली का तुलनात्मकअध्ययन’’
के विषय पर शोध कार्य किया। संध्या (2004) ‘’माध्यमिक स्तर पर कला तथा विज्ञानं वर्ग के विद्यार्थियों की अधिगम शैली का
तुलनात्मक अध्ययन’’ पर शोध कार्य किया गया। सिंह, राकेश प्रताप (2005) ‘’माध्यमिक स्तर के
विद्यार्थियों की अधिगम शैली पर उनकी सृजनात्मकता, बौद्धिक क्षमता तथा शैक्षिक उपलब्धि के प्रभाव का एक अध्ययन’’
विषय पर शोध कार्य किया गया। लवीन, कोरटे एंव दाविस (2015) ‘’कक्षाकक्ष तकनीकी का विद्यार्थियों के व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन’’ किया गया। गंगल, मीनू (2018) ‘’उच्च एंव निम्न अध्यात्मिक बुद्धि वाले एम. एड. विद्यार्थियों की अधिगम शैलियाँ’’ पर शोध कार्य किया। |
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मुख्य पाठ |
समस्या का औचित्य- इस संसार में विद्या के समान नेत्र नहीं है और माता के समान
गुरू नहीं है। यह बात पूरी तरह सच है। कहा भी गया है, ‘नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति मातृ समोगुरूः’ अतः बालक के विकास पर प्रथम और सबसे अधिक प्रभाव उसकी माता
का ही पड़ता है। माता ही अपने बच्चे को पाठ पढ़ाती है। बालक का यह प्रारम्भिक ज्ञान
पत्थर पर बनी अमिट लकीर के समान जीवन का स्थायी आधार बन जाता है। हमारे देश के विकास में महिला साक्षरता का बहुत बड़ा योगदान
है। इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि पिछले कुछ दशकों से ज्यों-ज्यों महिला
साक्षरता में वृद्धि होती आयी है, भारत उतना ही
विकास के पथ पर अग्रसर हुआ है। परन्तु स्त्री शिक्षा की स्थिति बहुत दयनीय है। देश
की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला शिक्षा का आधे से अधिक भाग आज
अज्ञान, निरक्षरता एवं
अशिक्षा के अंधकार में भटक रहा है। हमारे देश में माता को प्रथम गुरू की श्रेणी
में रखा गया है, परन्तु यदि गुरू
ही अशिक्षित होगी तो वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा, संस्कार एवं जीवन मूल्य कैसे दे सकती है। माध्यमिक शिक्षा बालकों की शिक्षा का महत्वपूर्ण काल होता
है। इस अवस्था में बालक अपने अच्छे-बुरे का भान होने लगता है। इस समय उसे ऐसे गुरू, सहयोगी की आवश्यकता होती है जो उसे सही राह दिखा सके एवं
उसकी समस्याओं का समाधान कर सके। शिक्षित महिलाएँ अपने बच्चों की शिक्षा में अशिक्षित
महिलाओं की अपेक्षा अधिक सक्रिय भागीदारी निभाती है। वह अपने बच्चों के अधिगम
कौशल का निर्माण करती है। जबकि अशिक्षित महिलाएँ अपने बच्चों को सहयोग नहीं कर
पाती है। अतः शोधकर्ता के मन में यह उत्कण्ठा हुई कि माध्यमिक
स्तर पर अध्ययनरत शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालक-बालिकाओं की अधिगम शैली का
तुलनात्मक अध्ययन किया जाये। जिससे यह पता चल सके कि शिक्षित एवं अशिक्षित महिलाओं
के बालकों की अधिगम शैली में क्या भिन्नता है। प्रस्तुत शोध से प्राप्त परिणामों
का लाभ समाज को मिल सकेगा तथा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने में सहायक सिद्ध
होंगे। अतः प्रस्तुत शोध कार्य औचित्य पूर्ण है। इस विषय पर अध्ययन किया जाना
आवश्यक प्रतीत होता है। इसीलिए शोधकर्ता द्वारा इस विषय का चुनाव किया गया। |
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सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत शोध की प्रकृति को देखते हुए शोधकर्ता द्वारा सर्वेक्षण विधि का उपयोग किया गया है। |
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न्यादर्ष |
प्रस्तावित शोध कार्य में राजस्थान राज्य के श्रीगंगानगर जिले के माध्यमिक स्तर के 640 बालक- बालिकायों को लाया जायेगा। जिसमें शिक्षित महिलाओं के 320 बालक-बालिकाओं और अशिक्षित महिलाओं के 320 बालक- बालिकाओं को लिया जायेगा। |
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प्रयुक्त उपकरण | शोधार्थी द्वारा बालक- बालिकाओं की अधिगम शैली का अध्ययन करने हेतु के. एस. मिश्रा द्वारा निर्मित ''अधिगम शैली परीक्षण'' हिंदी वर्जन का प्रयोग किया जायेगा। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी | मध्यमान, मानकविचलन, टी -परिक्षण तथा आवश्यकतानुसार अन्य सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया जायेगा। |
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विश्लेषण |
परिकल्पना संख्या- 1. शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है।
स्वतंत्रता के अंश = 638 0.01 सार्थकता स्तर = 2.58 तालिका संख्या- 4.1 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि शिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली का मध्यमान 165.25 एवं मानक विचलन 8.08 है तथा अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली का मध्यमान 161.48 एवं मानक विचलन 6.02 है। स्वतंत्रता के अंश 638 पर टी-मान 6.73 प्राप्त हुआ। जो 0.05 एवं 0.01 स्तर पर सार्थक टी-मान 1.96 एवं 2.58 से अधिक है। अत: परिकल्पना "शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है", दोनों स्तर पर अस्वीकृत की जाती है। परिकल्पना संख्या- 2. शहरी क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है। तालिका संख्या- 4.2
0.01 सार्थकता स्तर = 2.60 तालिका संख्या- 4.2 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि शहरी क्षेत्र की शिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली का मध्यमान 170.20 एवं मानक विचलन 6.99 है तथा शहरी क्षेत्र की अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली का मध्यमान 163.18 एवं मानक विचलन 6.17 है। स्वतंत्रता के अंश 158 पर टी-मान 6.75 प्राप्त हुआ। जो 0.05 एवं 0.01 स्तर पर सार्थक टी-मान 1.97 एवं 2.60 से अधिक है। अत: परिकल्पना "शहरी क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है", दोनों स्तर पर अस्वीकृत की जाती है। परिकल्पना संख्या- 3. शहरी क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है। तालिका संख्या- 4.3
स्वतंत्रता के अंश = 158
0.01 सार्थकता स्तर = 2.60 तालिका संख्या- 4.4 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली का मध्यमान 163.51 एवं मानक विचलन 5.66 है तथा ग्रामीण क्षेत्र की अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली का मध्यमान 160.89 एवं मानक विचलन 5.91 है। स्वतंत्रता के अंश 158 पर टी-मान 2.88 प्राप्त हुआ। जो 0.05 एवं 0.01 स्तर पर सार्थक टी-मान 1.97 एवं 2.60 से अधिक है। अत: परिकल्पना "ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है", दोनों स्तर पर अस्वीकृत की जाती है। परिकल्पना संख्या- 5. ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है।
0.01 सार्थकता स्तर = 2.60 तालिका संख्या- 4.5 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली का मध्यमान 158.30 एवं मानक विचलन 6.62 है तथा ग्रामीण क्षेत्र की अशिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली का मध्यमान 159.39 एवं मानक विचलन 5.81 है। स्वतंत्रता के अंश 158 पर टी-मान 1.11 प्राप्त हुआ। जो 0.05 एवं 0.01 स्तर पर सार्थक टी-मान 1.97 एवं 2.60 से कम है। अत: परिकल्पना "ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली में कोई सार्थक अन्तर नहीं है", दोनों स्तर पर स्वीकृत की जाती है। |
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निष्कर्ष |
1. शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बच्चों की अधिगम शैली में सार्थक अन्तंर पाया गया।
2. शहरी क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर पाया गया।
3. शहरी क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर पाया गया।
4. ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं के बालकों की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर पाया गया।
5. ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षित और अशिक्षित महिलाओं की बालिकाओं की अधिगम शैली में सार्थक अन्तर नहीं पाया गया। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. आशा कौशिक : ''नारी सशक्तिकरण, विमर्श और यथार्थ'', पाइण्टर पब्लिकेशन्स, जयपुर, 2004
2. ऊषा भार्गव : ‘‘किशोर मनोविज्ञान’’, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 1993
3. ए. बी. भटनागर एवं मीनाक्षी भटनागर : ‘‘शिक्षण व अधिगम का मनोविज्ञान’’, आर. लाल बुक डिपो, मेरठ, चतुर्थ संस्करण, 2004
4. एफ. एन. करलिंगर : ''फाउण्डेशन ऑफ बिहेवियरल रिसर्च'', हाल्ट रिनी हर्ट व विल्सन, न्यूयार्क, 1995
5. प्रमिला कपूर : ''मैरिज एण्ड दी वर्किंग वुमैन इन इण्डिया'', विकास पब्लिकेशन, नई दिल्ली
6. गिलफोर्ड, जे. पी.: "फंडामेण्टल स्टेटिस्टिकस इन साइकोलोजी एंड एजुकेशन", मेग्राहिल बुक कम्पनी, न्यूयार्क 1978.
7. गुप्ता एस.पी.: "आधुनिक मापन एवं मूल्यांकन", शारदा पुस्तक भवन, इलाहबाद, 2001. |