ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- III April  - 2023
Innovation The Research Concept
भारतीय परिप्रेक्ष्य में मदरसों के विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
Historical Background of the Development of Madrasas in Indian Perspective
Paper Id :  17546   Submission Date :  2023-04-17   Acceptance Date :  2023-04-22   Publication Date :  2023-04-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
शबनम कायमखानी
शोधार्थी
शिक्षा विभाग
संगम विश्वविद्यालय,
भीलवाडा,राजस्थान, भारत
रजनीश शर्मा
शोध निर्देशक
शिक्षा विभाग
संगम विश्वविद्यालय, भीलवाडा
राजस्थान, भारत
सारांश
प्रस्तुत लेख में शोधार्थी ने भारतीय परिप्रेक्ष्य में मदरसों के विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का विवरण प्रस्तुत किया है, जिसमें मदरसा शिक्षा का परिचय, भारत में मुस्लिम हुकूमत 12वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक चली। भारत ने मदरसा शिक्षा को दो प्रमुख काल खंड है - सल्तनत काल के दौरान मदरसा शिक्षा एवं मुगलकालीन मदरसा शिक्षा। मदरसों के उद्देश्य, मदरसा बोर्ड की संस्थागत संरचना, राजस्थान मदरसा बोर्ड की संरचना, वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मदरसों की स्थिति आदि सम्मिलित है। वर्तमान में राजस्थान में पंजीकृत 3235 मदरसे हैं जिनमें 340 उच्च प्राथमिक स्तर के तथा शेष माध्यमिक स्तर के हैं यह मदरसे कई शहरों, गांवों, दूरस्थ कस्बों व बस्तियों में स्थित हैं। 2.35 लाख बालक-बालिकाएं इन मदरसों में नामांकित है जहां उनको धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी दी जा रही है तथा भीलवाड़ा जिले में 63 मदरसें संचालित है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the presented article, the researcher has presented the details of the historical background of the development of madrasas in Indian perspective, in which the introduction of madrasa education, Muslim rule in India lasted from 12th century to 19th century. Madrasa education in India has two major periods - Madrasa education during the Sultanate period and Madrasa education during the Mughal period. Objectives of Madrassas, Institutional structure of Madrassa Board, Structure of Rajasthan Madrassa Board, Status of Madrassas in present perspective etc. are included. At present, there are 3235 registered madrassas in Rajasthan, of which 340 are of upper primary level and the rest are of secondary level. These madrassas are located in many cities, villages, remote towns and settlements. 2.35 lakh boys and girls are enrolled in these madrassas where they are being given modern education along with religious education and 63 madrassas are running in Bhilwara district.
मुख्य शब्द मदरसा शिक्षा, मुस्लिम हुकूमत, भीलवाड़ा जिला।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Madrasa Education, Muslim Government, Bhilwara District.
प्रस्तावना
वैदिक युग में शिक्षा की व्यवस्था प्रायः गुरूकुलों में होती थी। बालक की प्रारंभिक शिक्षा विद्यारंभ संस्कार से आरंभ होती थी और उच्च शिक्षा उपनयन संस्कार से प्रारंभ होती थी। समाज में गुरू का स्थान बहुत ऊंचा एवं सम्मानजनक होता था। वैदिक शिक्षा प्रणाली में पाठ्य- विषयों में दर्शन, व्याकरण, ज्योतिष तथा तर्क विज्ञान आदि को उचित स्थान प्राप्त था। गुरू प्रायः मौखिक रूप से व्याख्यान तथा उपदेश देते थे। गुरूकुल प्रणाली में अनुशासन की व्यवस्था बहुत अच्छी थी। 25 वर्ष की अवस्था तक गुरूकुल में सात्विक जीवन व्यतीत करना आवश्यक था। शिक्षा निः शुल्क दी जाती थी। स्त्री शिक्षा का स्थान बहुत ऊँचा था। बौद्ध काल में प्राथमिक एवं उच्च दोनों स्तरों की शिक्षा की व्यवस्था बौद्ध मठों, विहारों, सघों, विश्वविद्यालयों आदि में होती थी यूं तो यह मठ एवं विहार मूल रूप से धार्मिक केंद्र थे और इनका संचालन बौद्ध संघो द्वारा होता था परंतु साथ ही इनमें शिक्षा की व्यवस्था भी की जाने लगी थी और उस समय से यह शिक्षा की मुख्य संस्थाएं थी। बौद्ध कालीन शिक्षा के प्रमुख केंद्र तक्षशिला, नालंदा, वल्लभी एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय आदि थे। अन्य धर्मों के समान ही इस्लाम धर्म में भी शिक्षा पर बहुत ज़ोर दिया गया है। पवित्र ग्रंथ कुरआन के अनुसार शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। कुरआन में कहा गया है कि प्रत्येक मर्द और औरत को शिक्षा हासिल करना अनिवार्य हैै। अशिक्षित व्यक्ति मरे हुए इंसान की तरह है अर्थात वह शारीरिक तौर पर तो ज़िंदा है लेकिन उसकी रूह मर चुकी है। शिक्षा पर ज़ोर देते हुए कहा गया है कि शिक्षा मां की गोद से शुरू होकर कब्र की गोद तक हासिल की जाए, अतः मुसलमानों को शिक्षित करने के लिए एक प्रणाली विकसित की गई, जिसे मदरसा शिक्षा प्रणाली कहा जाता है। मुस्लिम शिक्षा का शाब्दिक अर्थ मुस्लिमों (मुसलमानों) को दी जाने वाली शिक्षा है और इसका वास्तविक अर्थ भी यही है।
अध्ययन का उद्देश्य
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य भारतीय परिप्रेक्ष्य में मदरसों के विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन

सरूपरिया, पुष्पा (1988) ने ‘‘आश्रम विद्यालय का एक अध्ययन’’, विषय पर शोधकार्य किया। उद्देश्य एक आश्रम विद्यालय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करना। आश्रम विद्यालय प्रबंधन, प्रशासन व्यवस्था, शैक्षिक तथा सहशैक्षिक गतिविधियों का अध्ययन करना। आश्रम विद्यालयों के बालकों के सामने आने वाली विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करना। निष्कर्ष सरकार आश्रम विद्यालय को जो खर्चा देती है। विभिन्न मदवार नहीं देकर एक साथ दिया जाता है। जिससे विद्यालय अपनी आवश्यकतानुसार खर्चा करता है। आश्रम विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र 5 कि.मी. से 55 कि.मी. की दूरी से आते हैं। गत वर्षों का आश्रम विद्यालयों का परीक्षा परिणाम बेहतर पाया गया है। पुस्तकालय एवं मनोरंजन की व्यवस्था उत्तम है। आश्रम विद्यालय  में छात्राओं को प्रवेश शैक्षिक रिकॉर्ड एवं साक्षात्कार से दिया जाता है।

व्यास, ओम बाबू (1990) ने ‘‘सेवा मन्दिर उदयपुर का संगठन एवं कार्य प्रणाली’’, विषय पर शोधकार्य किया। उद्देश्य सेवा मन्दिर के विकास एवं उद्देश्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करना। सेवा मन्दिर के संगठन व प्रशासनिक संरचना को ज्ञात करना। संस्था के विभिन्न कार्यक्रमों का अध्ययन करना। संस्था द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की समस्याओं का अध्ययन करना। संस्था के संगठन एवं कार्यक्रमों को प्रभावी संचालन हेतु सुझाव देना। निष्कर्ष सेवा मन्दिर का संगठन योजनाबद्ध एवं सुव्यवस्थित है। यह संगठन एक लिखित संविधान पर आधारित है। संस्था द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों यथा - पर्यावरण चेतना, महिला एवं बाल स्वास्थ्य चेतना, पुस्तकालय, प्रौढ़ शिक्षा आदि का संचालन किया जाता है।

शर्मा, स्मृति (1995) ने ‘‘नवोदय विद्यालय में संगठनात्मक वातावरण’’, विषय पर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से शोधकार्य किया। उद्देश्य नवोदय विद्यालयों के वर्तमान संगठनात्मक वातावरण का निम्न पहलुओं के अन्तर्गत अध्ययन करना। नवोदय विद्यालयों के वर्तमान भौतिक वातावरण का निम्न पहलुओं के अन्तर्गत अध्ययन करना। नवोदय विद्यालयों के वर्तमान प्रशासनिक वातावरण का निम्न पहलुओं के अन्तर्गत अध्ययन करना। नवोदय विद्यालयों के वर्तमान शैक्षिक वातावरण का निम्न पहलुओं के अन्तर्गत अध्ययन करना। नवोदय विद्यालयों के वर्तमान सहशैक्षिक वातावरण का निम्न पहलुओं के अन्तर्गत अध्ययन करना। निष्कर्ष-नवोदय विद्यालयों में भौतिक वातावरण ठीक है। विद्यालय संबंधी नीतियों के निर्माण के अध्यापकों की राय ली जाती है। विद्यालयों में शैक्षिक वातावरण अच्छा है। नवोदय विद्यालयों के प्राचार्य सहशैक्षिक प्रवृत्तियों से संतुष्ट है। नवोदय विद्यालयों में अध्यापकों का मनोबल उच्च पाया गया।

जोशी, नलिनी (2002) ने ‘‘राजस्थान महिला विद्यालय का महिला शिक्षा के सन्दर्भ  में विकासात्मक अध्ययन’’, विषय पर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से लघु शोधकार्य किया। उद्देश्य राजस्थान महिला विद्यालय के विकासात्मक स्वरूप का अध्ययन करना। राजस्थान महिला विद्यालय का उदयपुर एवं मेवाड़  में स्त्री शिक्षा सम्बन्धी योगदान का पता लगाना। राजस्थान महिला विद्यालय के प्रशासनिक परिवर्तनों का पता लगाना। निष्कर्ष अध्ययन द्वारा शोधकर्त्री ने यह ज्ञात किया कि राजस्थान महिला विकास का उद्गम अत्यंत विषय व कठिन परिस्थितियों में हुआ। सह-शैक्षणिक गतिविधियाँ  में भी संस्था का अपना एवं वर्चस्व स्थापित है। संस्था का सन् 1916 से महिला शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान  में संस्था संचालन  में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे- वित्तीय कठिनाइयाँ, सरकारी नियमों की जटिलता एवं विभागीय हस्तक्षेप आदि।

ओडेदरा, हिना (2007) ने ‘‘राजकोट जिले में संचालित जीवनशाला का केस अध्ययन’’, विषय पर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से लघु शोधकार्य किया। उद्देश्य जीवनशाला की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करना। जीवनशाला की भौतिक स्थिति को जानना। जीवनशाला का प्रबंध, प्रशासन सम्बन्धी अध्ययन। जीवनशाला की शैक्षिक, सह-शैक्षिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों का अध्ययन करना। जीवनशाला के अध्यापकों एवं छात्रों की बुनियादी शिक्षा के प्रति अभिवृत्ति जानना। शोध निष्कर्ष जीवनशाला विद्यालयों के पास पर्याप्त मात्रा में भौतिक संसाधन भूमि, गौशालाएँ, भवन, कक्ष एवं उपकरण उपलब्ध है। जीवनशाला का प्रशासन प्रधानाचार्य द्वारा किया जाता है जो सभी के सहयोग से प्रशासनिक दायित्वों का निर्वाह करता है। जीवनशाला में शैक्षिक, सहशैक्षिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों पर पर्याप्त ध्यान दिया जाता है तथा उनकी बराबर व्यवस्था की जाती है।

प्रताप, मोहम (2007) ने ‘‘प्राथमिक शिक्षा के उन्नयन के लिए किये जा रहे गैर-सरकारी प्रयासों का अध्ययन’’, विषय पर डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा  में पीएच.डी. स्तरीय शोधकार्य किया। इस शोध के उद्देश्यों के अन्तर्गत शोधार्थी ने प्राथमिक शिक्षा के उन्नयन हेतु किये जा रहे सरकारी व गैर सरकारी प्रयासों के अन्तर्गत सरकार द्वारा शिक्षा के विकास हेतु निर्मित नीतियाँ व गैर-सरकारी प्रयास के अध्ययन को आधार बनाया। शोध विधि के रूप में सर्वेक्षण विधि एवं उपकरण के रूप  में प्रश्नावली एवं साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया। निष्कर्ष रूप  में यह पाया कि सरकार द्वारा मद का एक बड़ा भाग शिक्षा पर खर्च करने के बावजूद प्राथमिक शिक्षा की स्थिति सन्तोषजनक नहीं है तथा N.G.O. के अन्तर्गत एयरटेल जैसे N.G.O. द्वारा उल्लेखनीय कार्य किया जा रहा हैं।

गुर्जर सिंह भवानी (2008) ने ‘‘सम्पूर्ण साक्षरता लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किए जा रहे सरकारी व गैर सरकारी प्रयासों का विवेचनात्मक अध्ययन’’, विषय पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पीएच.डी. स्तरीय शोधकार्य किया। प्रस्तुत शोध के प्रमुख उद्देश्यों में सर्वशिक्षा अभियान के लक्ष्यों का अध्ययन करना। लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु किये जा रहे सरकारी व गैर सरकारी प्रयासों का अध्ययन करना शिक्षा के अधिकार कानून के प्रावधानों का अध्ययन करना था। शोध विधि के रूप  में सर्वेक्षण विधि एवं उपकरण के रूप में प्रश्नावली एवं साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया। शोध निष्कर्ष  में यह पाया गया कि सर्वशिक्षा अभियान शिक्षा के प्रसार में सहायक सिद्ध हो रहा है सम्पूर्ण साक्षरता हेतु सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ जैसे मिड-डे-मील आदि संचालित की जा रही है तथा इनमें गैर सरकारी संगठन (N.G.O.) जैसे अक्षम पात्र भोजन उपलब्ध करवाकर सहयोग प्रदान कर रहे है शिक्षा का अधिकार कानून ने बालकों को शारीरिक दण्ड दिये जाने को पूर्णतः वर्जित कर उन्हें फेल ना करने की नीति घोषित की है।

गुर्जर प्रेमचन्द (2008) ने ‘‘कस्तूरबा गांधी विद्यालयों का अध्ययन’’, विषय पर मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से लघु शोधकार्य किया। शोध के उद्देश्यों में कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय के संगठन प्रशासन आयोजन एवं पर्यवेक्षण का अध्ययन करना, कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय में छात्राओं को दी जाने वाली सुविधाओं का पता लगाना। विद्यालय की शैक्षिक एवं सहशैक्षिक गतिविधियों का पता लगाना। विद्यालय में छात्राओं को दी जाने वाले शैक्षिक अवसरों एवं उनके उपयोग का पता लगाना। कस्तूरबा बालिका विद्यालय की बालिकाओं एवं अध्यापिकाओं की समस्याओं का पता लगाना। शोध विधि के रूप  में सर्वेक्षण विधि एवं उपकरण के रूप में प्रश्नावली एवं साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया। शोध निष्कर्ष  में पाया कि कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय  में अभी प्रारम्भिक अवस्था में है और इसकी कई समस्याएं है जिसका प्रशासन को सामना करना पड़ रहा है। सचिव स्तर पर अधिकारी समस्त गतिविधियां संचालित करता है। जिला स्तर पर जिलाधीश को जिम्मेदारी सौंपी गई है। स्टाफ योग्य व अनुभवी नहीं है। स्टाफ की कमी है। अध्यापिकाओं के शिक्षण कार्य का प्रधानाध्यापिका द्वारा मानवीय दृष्टिकोण से पर्यवेक्षण होता है विद्यालय में साहित्यिक व सांस्कृति कार्यक्रमों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है। विद्यालय में अभिभावक-अध्यापक संघ की नियमित रूप से होती है। कक्षा-कक्षों की पर्याप्त व्यवस्था है।

पालीवाल, श्यामा (2010): ‘‘सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत संचालित कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय योजना की प्रभावशीलता का अध्ययन’’, मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, उदयपुर। इस शोध का उद्देश्य कस्तुरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालयों में अध्ययनरत उन बालिकाओं का पता लगाना जो इन विद्यालयारें के नही होने पर उच्च प्राथमिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती तथा इस योजना के प्रति लोगों के आमुखीकरण हेतु आयोजित शिविरों की गहनता का पता लगाना था। सर्वेक्षण विधि तथा अवलोकन प्रपत्र, साक्षात्कार, अभिलेख के उपकरणों की सहायता से शोधकर्ती ने कस्तुरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय का अध्ययन किया ओर निष्कर्ष रूप  में पाया कि कस्तुरबा बांधी बालिका आवासीय विद्यालयों में शैक्षिक व सहशैक्षिक गतिविधियों उच्च स्तर की है। कम्प्यूटर शिक्षण सुचारू रूप से चलता है तथा बालिका शिक्षण कार्य से सन्तुष्ट है तथा योजना के प्रति आमुखीकरण हेतु शिविरों के आयोजन से लगे इस ओर उन्मुख हुए है।

कच्छवाहा, पंकज (2013): ‘‘सुचेता कृवलानी, विकलांग आवासीय विद्यालय का केस अध्ययन’’ शोध प्रबंध, मोहनलाल सुखाडिया विश्व विद्यालय उदयपुर। इस शोध का उद्देश्य विद्यालयन की पृष्ठभूमि, प्रबंधन व्यवस्था, भौतिक स्थिति तथा शैक्षिक एवं सहशैक्षिक गतिविधियों को जानना था। केस अध्ययन विधि तथा प्रश्नावली, साक्षात्कार, अवलोकन प्रपत्र के उपकरणों की सहायता से शोधकर्ता से निष्कर्ष रूप में पाया कि विद्यालयन का मुख्य उद्देश्य विकलांग विद्यार्थियों में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें स्वालम्बी एवं समाज का उपयोगी अंग बनाता है तथा विद्यालयन में पर्याप्त भौतिक संसाधन अन्य प्रबंधन व्यवस्था पर शैक्षिक एवं सहशैक्षिक गतिविधियों पर पर्याप्त ध्यान दिया गया जाता है।

राव, विरेन्द्र (2013): ‘‘बाँसवाड़ा जिले के डॉ. भीमराव अम्बेडकर बालिका आवासीय विद्यालय का केस अध्ययन’’, लघुशोध प्रबंध, मोहनलाल सुखाडिया विश्लविद्यालय, उदयपुर। इस शोध का उद्देश्य विद्यालयन की एतिहासिक पृष्ठभूमि भौतिक स्थिति तथा विद्यालयन में संचालित विभिन्न गतिविधियों को जानना था। केस अध्ययन विधि तथा प्रश्नावली साक्षात्कार अवलोकन प्रपत्र के उपकरणों की सहायता से शोधकर्ता ने निष्कर्ष रूप में पाया कि विद्यालयन के द्वारा अनके प्रकार की शैक्षिक एवं सहशैक्षिक गतिविधियों का आयोजन किया जाता है जिनका गुणवत्ता स्तर उच्च है।

विदेशों में किए गए शोध

Susan, Coral Hay (1991) : "The Singa Girls School : A Case Study in Educational Development", Cornell University, Africa.  यह शोध कार्य 1981 से 1990 तक विद्यालय को दर्शाता है जिस में इसके आरम्भ, निर्माण तथा पूर्ण रूप से जैरियन होना सम्मिलित है। इस शोध में विद्यालय की योजना, प्रशासनिक, वित्तीय, पाठ्यक्रम, स्टॉफ तथा विद्यालय सम्पर्क व्यवस्था का विश्लेषण किया। अंतिम निष्कर्ष के रूप  में विद्यालय की सफलता में 6 कारकों ने योगदान दिया है (1) विद्यालय जैरियन युवाओं को शिक्षा प्रदान करता है, जिससे वे व्यावसायिक, सामाजिक तथा स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान प्रदान करते हैं, (2) यह विद्यालय, जैर की शैक्षिक असमानता को कम करता है, (3) यह एक संगठन हो गया है, (4) यह भविष्य की उन्नति के लिए क्षमता रखता हैं, (5) यह वैयक्तिक उन्नति का साधन है। जैरे के बिना किसी सार्वजनिक दस्तावेज के यह शोध निजी रिकॉर्ड तथा प्रशासनिक स्रोत जैसे स्कूल तथा मिशन के दस्तावेज पर आधारित है।

James Mark (2003) : "Evaluating rural primary education development programmes in low income countives : A comparative study of the nature and process of evaluatory activities and their role in improving quality." Ph.D. University of Bristd. इस शोध के उद्देश्यों के अन्तर्गत शोधार्थी ने कम आमदनी वाले देशों  में गरीब ग्रामीण बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा के विकास की गतिविधियों की प्रकृति व प्रक्रिया और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने  में प्रायोजक की भूमिका को जानना। शोध विधि के रूप  में तुलनात्मक केस अध्ययन एवं उपकरण के रूप  में अवलोकन अर्द्ध संरचित साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया। शोध निष्कर्ष  में यह पाया गया कि स्कूलों  में विकासशील कार्यक्रम वास्तविक रूप में भी तभी संभव है जब गुणात्मक विकास जो कि मूल्यांकन गतिविधियों के विकास द्वारा संभव है। इस कार्यक्रम को अध्यापक के व्यावसायिकता के रूप  में अपनाकर विद्यालय प्रबंधन द्वारा भी इसे अपनाया जाने का सुझाव दिया है।

Brown, Ruth Hilliavd (2007) : "Are Charter School Real Option for a Quality Education", Ph.D., Loyala University Chicago इस शोधकार्य का उद्देश्य चार्टर विद्यालयों को स्थापित करने के सामाजिक, शैक्षिक तथा राजनीतिक कारणांे का पता लगाना था कि क्या चार्टर विद्यालय कुछ विद्यार्थियों के लिए बेहतर अवसर प्रदान करता है जो उन्हें पारम्परिक पब्लिक विद्यालयों  में नहीं मिलते हैं या फिर यह भी किसी सरकारी नीति से प्रेरित आर्थिक नीति का भाग है जिसके अन्तर्गत शहरों में पब्लिक स्कूल तथा निम्न सामाजिक-आर्थिक, समुदाय के लिए निजी विद्यालयों को बढ़ावा देना है। न्यादर्श हेतु इलिनाइस तथा इंडियाना क्षेत्र के चार चार्टर विद्यालयों का चयन किया गया। इस अध्ययन हेतु सर्वेक्षण विधि द्वारा गुणात्मक तथा मात्रात्मक विश्लेषण किया गया। जिससे परिकल्पना की जांच में सहायता मिली। विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि चार्टर विद्यालयों तथा पब्लिक विद्यालयों  में सार्थक अन्तर पाया गया।

Cepela, Genevive (2007) : "School Improvement Planning in Two Urban Middle School, Ph.D., Illinos State University. इस अध्ययन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि दो उच्च प्राथमिक विद्यालय जिनकी विगत चार वर्षों में वार्षिक प्रगति अपर्याप्त रही, इन विद्यालयों के सुधार हेतु क्या योजना बनाई गई। यह अध्ययन चार चरणांे में पूर्ण किया गया प्रथम चरण में विद्यालयों तथा प्रतिभागियों का चयन किया गया। द्वितीय चरण में विद्यालयों के विभिन्न दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया। तृतीय चरण में सम्बन्धित व्यक्तियों से साक्षात्कार किया गया। अंतिम चरण में गुणात्मक विश्लेषण किया गया। इस अध्ययन के दौरान यह निष्कर्ष प्राप्त हुए कि (1) दोनों विद्यालयों के सुधार के लिए आन्तरिक पुनर्निरीक्षण प्रक्रिया को अपनाना चाहिए जिससे सतत् सुधार हो सके, (2) विद्यालय सुधार योजना के द्वारा यह बल दिया गया कि इन दोनों विद्यालयों में व्यापक व्यावसायिक अभिवृत्ति  में सुधार करना चाहिए। जो कि बाहरी प्रशिक्षक की सहायता से हो तथा बेहतर अनुदेशन को कार्यनीति में लाना चाहिए, (3) क्षेत्रीय शिक्षा दिमाग द्वारा इन विद्यालयों को आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए, (4) दोनों विद्यालयों  में Think Link उपकरण है, जिसके प्रयोग द्वारा शैक्षिक प्रक्रिया का पूर्व मूल्यांकन किया जा सकता है। 

Elizabeth, Daly Anna (2007) : "Differences between Charter and Traditional Public School Education Services", Ed.D. Teachers College, Columbia University. इस अध्ययन का उद्देश्य अभिभावकों  के चार्टर विद्यालयों तथा पारम्परिक पब्लिक विद्यालयों  में प्रदान की जाने वाली विशिष्ट शिक्षा के प्रति सन्तुष्टि का तुलनात्मक अध्ययन करना था। इस शोध कार्य के द्वारा यह परिणाम प्राप्त हुए कि अभिभावक इन दोनों ही विद्यालयों की विशिष्ट शिक्षा से संतुष्ट पाये गये, परन्तु सहभागिता का स्तर असमान था। जिन बालकों को चार्टर विद्यालयों के माध्यम से विशिष्ट शिक्षा प्राप्त हो रही थी, उन अभिभावकों   में सहभागिता पब्लिक विद्यालयों  में अध्ययनरत बालकों के अभिभावकों  की तुलना  में अधिक पायी गई।

Keek-Centeno, Julie Shannon (2008) : "The Path of School Improvement : A Case Study of an Urban Elementary School", Ed.D., University of California, Las Angeles. इस ऐतिहासिक अध्ययन का उद्देश्य शहर  में स्थित प्राथमिक विद्यालय की 1995-2007 तक 12 वर्ष की अवधि  में विद्यालय  में सुधार के संबंध  में किए गए प्रयासों के बारे  में जानना था। इस अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि अध्यापकों के द्वारा सहयोग की भावना तथा समंजस्य  में वृद्धि हुई है, इस वृद्धि का कारण विद्यार्थियों के विभिन्न कार्य-कलापों का अध्ययन, साथ मिलकर पाठयोजना बनाना तथा उसका क्रियान्वयन प्रमुख है। तथ्यों से ज्ञात होता है कि अध्यापकों में स्वउच्चस्तरीय प्रभावित तथा समूह प्रभाविता के कारण विद्यार्थियों की प्रवृत्ति बढ़ी। इस प्रकार प्राचार्य तथा अध्यापकों के अनुभव, व्यावसायिक निपुर्णता तथा साथ मिलकर कार्य करने की भावना द्वारा सभी प्रकार की चुनौतियों का सामना किया जिससे विद्यालय  में सतत् सुधार सम्भव हो सका।

मुख्य पाठ

मध्यकाल में उच्च शिक्षा की व्यवस्था मदरसों में थी जो प्रायः किसी मस्जिद से जुडे़ होते थे। मदरसा शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के दरस‘ (Dars) शब्द से हुई है- जिसका अभिप्राय है-भाषण देना और चूंकि उस समय उच्च शिक्षा प्रायः भाषण द्वारा दी जाती थी, इसलिए उन स्थानों को जहाँ भाषण द्वारा शिक्षा दी जाती थी, ‘मदरसाकहा गया। मदरसे में वाद-विवाद तथा शास्त्रार्थ भी होता था। मदरसों में शिक्षा का माध्यम फारसी था किन्तु मुसलमानों के लिए अरबी का अध्ययन भी अनिवार्य था।

भारत में मध्यकाल में मुस्लिम राज्य की स्थापना होने से इस्लामी शिक्षा का प्रसार होने लगा और मदरसों की स्थापना की गई। मध्यकाल से लेकर मुगलकाल के अन्त तक चरम पर पहुँच गया। मदरसा शब्द का अभिप्राय ‘‘एक ऐसी पाठशाला या विद्यालय से है, जहां इस्लामिक तौर तरीके से शिक्षा दी जाती हो।’’ मदरसों में सभी उम्र के छात्र एक साथ पढ़ते है। यहाँ अधिकतर वही लोग अपने बच्चों को पढ़ाते है जो या तो गरीब होते है या अपने बच्चों को पूरा इस्लामिक ज्ञान देना चाहते हैं। भारत में पहला मदरसा शिहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी द्वारा अजमेर में स्थापित किया गया तथा सन् 1206 ई. में दिल्ली सल्तनत को सशक्त करने वाले इल्तुतमिश ने दिल्ली में ‘‘मोहम्मद गौरी’’ के नाम से मदरसा स्थापित किया।

सम्पूर्ण देश में दो तरह के मदरसे है। पहली श्रेणी में ‘‘दारूउलूम’’ आते है, जो उच्च शिक्षा देते हैं जैसे देवबंद, नदवा। इनका मूल उद्देश्य धार्मिक शिक्षा देना, ये सामान्यतया सरकारी तथा सामाजिक सहायता से संचालित होते हैं। दूसरी श्रेणी में ‘‘मदरसा’’ या ‘‘मकतब’’ आते है। ‘‘मकतब’’ में प्राथमिक शिक्षा तथा मदरसों में उच्च प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाती है। ये मदरसे सरकारी सहायता व अनुदान स्वीकार कर धार्मिक शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा भी प्रदान करते हैं।

मोहम्मद गोरी के पश्चात् सन् 1346 ई. में मुहम्मद तुगलक ने भी दिल्ली में विविध मदरसों की स्थापना की तथा इन्हें मजिस्दों से जोड़ दिया। फिरोज तुगलक ने अपने राज्य में 30 मदरसे स्थापित किए, जिनमें मूलतः धार्मिक शिक्षा पर ही बल दिया जाता था।मुगलकालीन भारत में लोक सेवा के लिए मदरसों से ही लोग शिक्षा प्राप्त कर निकलते थे, जो ‘‘मुफ्ती’’ ‘‘काजी’’ के पद के योग्य माने जाते थे।

ब्रिटिश शासन के दौरान मदरसों की शिक्षा को भारत में तब तक मौजूद किसी भी अन्य शिक्षा की तुलना में श्रेष्ठ माना गया। इसके पश्चात् 1857 ई. में विद्रोह के बाद इनकी स्थिति में बदलाव आना प्रारम्भ हुआ। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में औपनिवेशक प्रशासन द्वारा मदरसों से राज्य का संरक्षण हटा लिया गया और धार्मिक राजस्व और न्याय व्यवस्था को खत्म करके नयी व्यवस्था की स्थापना की गयी और मदरसों को राज्य द्वारा मिलने वाला संरक्षण समाप्त कर दिया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए सन् 1920 ई. में जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली की स्थापना की गयी।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् मदरसों से निकले स्नातकों की सामाजिक स्थिति और राजकीय सेवाओं में अवसर और भी कम हो गये। क्योंकि मदरसें विद्यार्थियों को उस तरह की शिक्षा नहीं दे पाये जो कि वर्तमान भारतीय राज व्यवस्था एवं आधुनिक दौर में उन्हें सक्षम और समर्थ बना सके। मदरसों या परम्परागत मुस्लिम शिक्षा व्यवस्था में मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा की प्रधानता रही, फलतः इनमें पठित छात्रों की स्थिति विषम होती गयी। कालान्तर में युवा पीढ़ी के दबाव, राजकीय निर्देश एवं परिवर्तित समय को आवश्यकतानुरूप इनके कर्त्ताधर्ताओं द्वारा इनमें आधुनिक पाठ्यक्रम का समावेश करने का निर्णय लिया गया।

सन् 1998 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) द्वारा मदरसों के आधुनिकीकरण और उनकी उपाधियों को मान्यता दिये जाने के लिए मदरसा आधुनिकीकरण कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया।मोदी सरकार द्वारा मदरसा आधुनिकीकरण को प्राथमिक उद्देश्य के रूप में सम्मिलित किया गया और इस हेतु वित्तीय वर्ष 2014-15 के बजट में 100 करोड़ रूपये आवंटित किये गये।

सम्प्रति देश में मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 19132 है जबकि 4847 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। तथा राजस्थान में वर्तमान समय में 3232 मदरसे संचालित है। इसमें से भीलवाड़ा जिले में 63 मदरसे कार्यरत है। जिनमें 51 मदरसें प्राथमिक स्तर व 12 मदरसें उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा दे रहे हैं तथा मुख्यमंत्री मदरसा आधुनिकीकरण योजनान्तर्गत वित्तीय वर्ष 2020-21 में ‘‘अन्जुमन गरीब नवाज मदरसा’’ खेजड़ी तहसील हुरड़ा जिला भीलवाड़ा का चयन किया गया तथा वर्ष 2018-19 की बजट घोषणा के तहत् 4 मदरसों को आदर्श मदरसों में चयनित किया गया।

2. मदरसा शिक्षा: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं परिचय:-

मदरसा शिक्षा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि इस्लाम धर्म। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद साहब के द्वारा इस्लामिक-शिक्षा (मदरसा शिक्षा) की शुरुआत मक्का में सफा पहाड़ी के पास दारुल अकरम से होती है। (साजी कासमी 2005)। 622 ईस्वी में जब मोहम्मद साहब मक्का से मदीना गए तब वहाँ पर मस्जिद-ए-नबवी शिक्षा का केंद्र बना। यहाँ पर स्त्री एवं पुरुष दोनों ही शिक्षा हासिल करने के लिए आते थे। (अल्वी 1998) हजरत मोहम्मद साहब के युग के बाद अरबी प्रायद्वीप के बाहर मदरसों और उलेमाओं ने धार्मिक विशेषज्ञों के रूप में इस्लामिक शिक्षा के प्रसार में योगदान दिया। बगदाद में उमय्याँ वंश में मदरसे का प्रचलन हुआ, इस युग में जो पहले से अनौपचारिक शिक्षा चल रही थी उसे औपचारिक शिक्षा का रूप दिया गया। अधिकांश मस्जिद, घर व दुकानों को प्राथमिक शिक्षा के केंद्र के रूप में तब्दील कर दिया गया। अब्बासी युग के दौरान जब मुस्लिम सभ्यता और संस्कृति अपने चरम सीमा पर थी तब मुस्लिम ना केवल यूनानियों के साहित्य और दर्शन में कुशल थे बल्कि विज्ञान में भी पारंगत हो गए। इस अवधि के दौरान अल मॉमून ने 830 ईस्वी में बैत-उल हिकयाउच्च शिक्षा संस्थान के रूप में स्थापित किया जिसमें शोध कार्य के लिए प्रसिद्ध विद्वानों को नियुक्त किया गया। 9 वीं शताब्दी में बगदाद विश्व में ज्ञान का केंद्र बन गया। स्टेनली लिनपोल (2012) की पुस्तक (A World Without Islam) के अनुसार दर्शन, चिकित्सा व संगीत के क्षेत्र में जो अरब सभ्यता ने महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा कई शिक्षा संस्थाएं अस्तित्व में आई जैसे बगदाद का मदरसा मुस्तम सरियाह एवं जामिया निजामिया, उत्तरी अफ्रीका का करावें विश्वविद्यालय, काहिरा का अल-अजहर तथा स्पेन का काराडोवा विश्वविद्यालय। इन सारे मदरसों ने विश्व को महान गणितज्ञ, वैज्ञानिक तथा दर्शनशास्त्री दिए। अल-गजाली जैसा महान शोधार्थी इन्हीं संस्थाओं की उपज है।

3. भारत में मदरसा शिक्षा:-

भारत में मुस्लिम हुकूमत 12 वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक चली। भारत ने मदरसा शिक्षा को दो प्रमुख काल खंडों में देख सकते हैं:-

सल्तनत काल के दौरान मदरसा शिक्षा।

मुगलकालीन मदरसा शिक्षा।

1. सल्तनत काल के दौरान मदरसा शिक्षा:-

भारत में सल्तनत काल की शुरुआत शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी (1203-1206) से हुई। उसने शिक्षा के विकास के लिए ताजुल मसिरनामक मदरसे की बुनियाद डाली। सुल्तान इल्तुतमिश ने (1206-1210) मदरसा मोलियाकायम किया इसके बाद कई और सुल्तानों जैसे नसीर उद्दीन मोहम्मद बलबन, अलाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह तुगलक तथा सिकंदर लोदी आदि ने कई मदरसे स्थापित कर शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दिया।

2. मुगलकालीन मदरसा शिक्षा:-

पहले मुगल बादशाह जहीरूद्दीन बाबर (1526 -1530) ने पहले से स्थापित मदरसों की मरम्मत कराई। अकबर ने आगरा, फतेहपुर सीकरी में कई जगह मदरसे स्थापित किए। शाहजहां तथा औरंगजेब आदि ने मदरसे के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। फिर मुगलों के दौर में कई यूरोपीय शक्तियां व्यापार करने हेतु भारत आई। अंग्रेजों का दखल शासन व्यवस्था के साथ-साथ सभी क्षेत्रों पर पडा।

अल्पसंख्यक कल्याण निदेशालय तथा उसके अधीनस्थ क्षेत्रीय कार्यालयों का गठन 1995-1996 में किया गया जो कि छात्रवृत्ति योजना तथा मदरसों से संबंधित कई योजनाओं का क्रियान्वयन एवं संचालन करता है।

प्रधानमंत्री का नया 15 सूत्री अल्पसंख्यक कल्याण 2006 में चालू किया गया कार्यक्रम जिसमें मदरसा शिक्षा आधुनिकीकरण का प्रावधान है।

मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन- अल्पसंख्यकों की शिक्षा का प्रसार करना।

मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय (MHRD) की शैक्षिक योजनाएं-मदरसा शिक्षा को आधुनिक बनाने हेतु वित्तीय सहायता, प्रतियोगिताओं के लिए कोचिंग क्लासेज के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से वित्तीय सहायता प्रदान करना, बच्चों को शैक्षिक रूप से प्रवीण बनाना, 14 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को व्यवसायिक प्रशिक्षण देना।

SPQEM (Scheme To Provide Quality Education In Madarsa) मदरसों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की योजना है जिसका उद्देश्य शिक्षक मानदेय के भुगतान को बढ़ाते हुए विज्ञान, गणित, भाषा, सामाजिक विज्ञान आदि औपचारिक पाठ्यक्रम विषयों के अध्ययन हेतु मदरसों की क्षमता को सुदृढ़ करना। मदरसों में विज्ञान प्रयोगशाला, कम्प्यूटर लैब उपलब्ध कराना तथा मदरसों के सभी स्तरों को अध्यापन व अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना आदि कार्य सम्मिलित हैं।

वर्तमान युग में सभी के लिए समान अवसर के माध्यम से समाज के समग्र विकास की आवश्यकता को पहचानने के लिए सरकार द्वारा 6 से 14 वर्ष के बालक-बालिकाओं के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की सुविधा के लिए भारतीय संविधान में मान्यता प्रदान की गई है।

भारत सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के साथ-साथ मध्यान्ह भोजन योजना द्वारा पौष्टिक भोजन प्रदान करके बच्चों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम सरकार, सरकारी सहायता प्राप्त स्थानीय निकाय, शिक्षा गारंटी योजना और अभिनव शिक्षा केंद्र, मदरसा और स्कूलों या प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को निःशुल्क भोजन श्रम मंत्रालय द्वारा संचालित किया जाता है। इस योजना में सरकारी स्कूलों में नामांकन, उपस्थिति और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की अवधारणा को बढ़ाने में मदद की है।

5. मदरसा बोर्ड की संस्थागत संरचना:-

राजस्थान राज्य में मदरसा शिक्षा के विकास, आधुनिकीकरण एवं उन्नयन हेतु राजस्थान मदरसा बोर्ड की स्थापना 27 जनवरी 2003 को हुई है, जिसका मुख्यालय जयपुर शहर में है। इसका मुख्य उद्देश्य मदरसों के छात्रों को दीनी तालीम के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा को मुख्यधारा से जोड़ना है।

6. राजस्थान मदरसा बोर्ड की संरचना:-

राजस्थान मदरसा बोर्ड की संरचना

पद

संख्या

योग्यता/शर्तें

नियुक्ति/मनोनयन

अध्यक्ष

1

 

राज्य सरकार द्वारा

सदस्य

1

उर्दू भाषा का विद्वान

राज्य सरकार द्वारा

सदस्य

1

अरबी भाषा का विद्वान

राज्य सरकार द्वारा

सदस्य

3

राज्य के सुप्रसिद्ध मदरसों के अध्यक्ष

राज्य सरकार द्वारा

सदस्य

10

मुस्लिम समुदाय के प्रतिष्ठित समाजसेवी

राज्य सरकार द्वारा

पदेन सदस्य सचिव

1

राज. शिक्षा सेवा का अधिकारी जो मदरसा तथा उर्दू/अरबी का जानकार हो।

राज्य सरकार द्वारा

कुल संख्या

17


 

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मदरसों की स्थिति:-

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मदरसों ने सदियों से इस्लामिक शिक्षा को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है, साथ ही इस्लामिक विचारों के विकास एवं मुस्लिम समुदाय की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। मदरसे में समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया है।

अपने प्रारंभिक वर्षों में मध्यकालीन भारत में स्थापित मदरसों में प्रायः कुरआन, हदीस (पैगंबर मोहम्मद सा. द्वारा बताई गई बातें) शरीयत (आचार शास्त्र) एवं अन्य इस्लामिक विचारधारा की तो शिक्षा दी जाती थी, परंतु वर्तमान समय में इनके अलावा ज्ञान की अन्य शाखाओं जैसे इतिहास, भूगोल, गणित, तर्कशास्त्र, वाणिज्य एवं साथ ही साथ कंप्यूटर की भी शिक्षा प्रदान की जाने लगी है।

वर्तमान में मदरसा मुस्लिम शिक्षा के केंद्र हैं जो प्रायःदो अर्थों के लिए जाने जाते हैं सामान्य अर्थ में विद्यालय तथा दूसरे अर्थ में एक ऐसा शिक्षा संस्थान जो धार्मिक शिक्षा प्रदान करता है,लेकिन यह केवल हदीस और कुरआन तक ही सीमित नहीं है। (इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इस्लाम 1974) अर्थात धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करता है। दसवीं कक्षा तक की शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान मदरसा तथा 12वीं कक्षा तक की शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान दारुल-उलूम कहा जाता है। अतः मदरसा एक ऐसी संस्था है जहां इस्लामिक मूल की कुरआन की शिक्षा के साथ-साथ शिक्षण अधिगम प्रक्रिया चलती है।

वर्तमान समय में भारत में लगभग 30,000 से 40,000 मदरसे संचालित हैं और इनमें परंपरागत ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान प्रदान करने की पूरी व्यवस्था की जा रही है ताकि इन्हें सरकार एवं निजी संस्थाओं द्वारा संचालित, नियमित एवं आधुनिक विद्यालयों के साथ जोड़ा जा सके और उनके जैसा ही स्थान प्रदान किया जा सके जिससे मदरसों से उत्तीर्ण होने वाले शिक्षार्थी नियमित विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों से अपनी शिक्षा पूरी करने में सक्षम बन सकें।

निष्कर्ष
वर्तमान में राजस्थान में पंजीकृत 3235 मदरसे हैं जिनमें 340 उच्च प्राथमिक स्तर के तथा शेष माध्यमिक स्तर के हैं यह मदरसे कई शहरों, गांवों, दूरस्थ कस्बों व बस्तियों में स्थित हैं। 2.35 लाख बालक-बालिकाएं इन मदरसों में नामांकित है जहां उनको धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी दी जा रही है तथा भीलवाड़ा जिले में 63 मदरसें संचालित है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. अहमद, एम.एस.सी. (1985): ‘ट्रेडिशनल एजूकेशन अमंग मुस्लिम्स’, दिल्ली: बी.आर. पब्लिशिंग कॉर्पोरेशन, पृ.सं.2-3। 2. अली, एम.डी.एम. (2015): ‘एन ओवरविव ऑन मदरसा एजुकेशन इन इंडिया’, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ डेवलपमेंट रिसर्स 5(3), 3714-3716 3. भटनागर, एस. और कुमार, एस. (2005): ‘भारत मंे शिक्षा का विकास’, मेरठ: सूर्या पब्लिकेशन हाउस, पृ.सं.33 4. भटनागर, डॉ. आर.पी. एवं भटनागर, मीनाक्षी (2009): ’शिक्षा अनुसंधान’, लॉयल बुक डिपो, मेरठ। 5. चौधरी, ए.क्यू.एस.ए. (2008): ‘डेवलपमेंट ऑफ मदरसा एजुकेशन इन असाम’, सिंस इन्डिपेंन्स विद स्पेशल रेफरेंस टू बराक बैलीरीजन, पीएच.डी. थीसिस, (अप्रकाशित), शिक्षा विभाग, अलीगढ़ विश्वविद्यालय। 6. ढोंढीयाल, फाटक (1969), ‘‘शैक्षिक अनुसंधान का विधि शास्त्र’’, हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपूर 7. डॉ. कश्यप, ए.के. और डॉ. पाल, एस. (2018): ‘मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा’, अर्जुन पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली। 8. गौतम, डॉ. ज्योति (2017): ‘सामाजिक अनुसन्धान पद्धतियाँ’, हिमांशु पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली। 9. हंटर, विलियम डब्ल्यू. (2007): ‘भारतीय मुसलमान’, प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली। 10. हुसैन, एस.एम.ए. (2005): ‘मदरसा एजुकेशन इन इंडिया’, एलेवेन्थ टू ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी, नई दिल्ली: कनिष्का पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, पृ.सं.19 11. जैन, एस. (1986): ‘मुस्लिम और आधुनिकीकरण’, जयपुर: रावत प्रकाशन। 12. कादरी, ए.डब्ल्यू. (1998): ‘आजादी के बाद से भारत में शिक्षा और मुसलमान’।