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राजस्थान के सिरोही जिले में भूजल संसाधनों की स्थित एवं प्रबन्धन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Location and Management of Ground Water Resources in Sirohi District of Rajasthan | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
17536 Submission Date :
2023-04-24 Acceptance Date :
2023-05-16 Publication Date :
2023-05-20
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
सृष्टि के पंच भौतिक पदार्थो में जल का सर्वाधिक महत्व है और यही जीवन का मूल आधार है। पृथ्वी का 3 प्रतिशत जल स्वच्छ जल और इसका 1 प्रतिशत भाग ही पेयजल योग्य है। मानव समाज के अस्तित्व के लिए भूजल के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। केन्द्रीय भूजल आयोग के अनुमान के मुताबिक देश में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2025 में 1434 क्यूबिक मीटर से घटकर वर्ष 2050 में 1,219 क्यूबिक मीटर हो जाएगी। भारत के 60 करोड़ लोग गंम्भीर जल संकट का सामना कर रहे है। भू-जल को भारत में पीने योग्य पानी का सबसे प्रमुख स्रोत माना जाता है। राज्य में भूगर्भीय जल की मात्रा एवं गुणवता की समस्या बढ़ रही है। राज्य में पिछले दो दशकों से भू-जल के अत्याधिक दोहन के कारण भू-जल की स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक हो गई है। राज्य की भौगोलिक विषमता तथा सतही जल की सीमित उपलब्धता होने के कारण राज्य में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना अत्यन्त जटिल है। राजस्थान जैसे राज्य के लिए भू-जल का महत्व और अधिक हो जाता है क्योंकि इसका 60 प्रतिशत भू-भाग मरूस्थल का आभूषण धारण किए हुए है। जहाँ वार्षिक वर्षा 20 सेमी. से कम होती है। राज्य में अरावली के दक्षिण अध्ययन क्षेत्र सिरोही जिला स्थित हैं। अध्ययन क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 5136 वर्ग किमी. हैं जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 1.5 प्रतिशत है। अध्ययन क्षेत्र की समुद्र तल से ऊँचाई 300-350 मीटर है। अध्ययन क्षेत्र में वर्ष 1984 में औसत भू-जल स्तर 12 मीटर था जो वर्ष 2021-2022 तक बढ़कर 25 मीटर तक हो गया है जिसका मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, जल का दुरूपयोग, प्रति व्यक्ति जल खपत में वृद्धि, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, बढता शहरीकरण एवं औद्योगिकीकरण, भूजल का मशीनों एवं विद्युत यंत्रों द्वारा अतिविदोहन है जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण अध्ययन क्षेत्र अतिदोहिन श्रेणी में आ गया है प्रस्तुत शोध पत्र के माध्यम से सिरोही जिले की भू-जल स्थिति का अध्ययन करते हुए घटते भू-जल के कारणो का पता लगाते हुए भविष्य के लिए क्षेत्र में भू-जल प्रबन्धन के उपयुक्त सुझाव बताना है जो घटते भूजल संकट के लिए कारगर होंगे।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | Water is the most important of the five physical substances of the universe and this is the basic basis of life. 3 percent of the earth's water is clean water and only 1 percent of it is drinkable. The importance of groundwater for the existence of human society cannot be denied. According to the estimates of the Central Ground Water Commission, the per capita water availability in the country will decrease from 1,434 cubic meters in the year 2025 to 1,219 cubic meters in the year 2050. 600 million people of India are facing severe water crisis. Ground water is considered to be the most important source of potable water in India.The problem of quantity and quality of ground water is increasing in the state. Due to excessive exploitation of ground water in the state for the last two decades, the ground water situation has become very worrying. Due to geographical heterogeneity of the state and limited availability of surface water, providing pure drinking water in the state is very complicated. The importance of ground water becomes more for a state like Rajasthan because 60 percent of its land area is wearing the ornament of desert. Where the annual rainfall is 20 cm. is less than Sirohi district is the study area south of Aravalli in the state. The total area of the study area is 5136 Sq.Km. Which is 1.5 percent of the total area of the state. The height of the study area is 300-350 meters above sea level. The average ground water level in the study area was 12 meters in the year 1984, which has increased to 25 meters by the year 2021-2022, mainly due to increasing population, misuse of water, increase in per capita water consumption, indiscriminate cutting of trees, increasing Urbanization and industrialization, ground water is overexploited by machines and electrical equipment. As a result of which the entire study area has come under the category of overexploitation. Studying the ground water situation of Sirohi district through the presented research paper, finding out the reasons for the decreasing ground water, suitable suggestions for ground water management in the area for the future. Have to tell which will be effective for the decreasing ground water crisis. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | भू-जल संसाधन, भौगोलिक विषमता, मरूस्थल, शहरीकरण, अतिविदोहन। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Ground water resources, geographical heterogeneity, deserts, urbanization, over-exploitation. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
जल प्रकृति की अमूल्य देन है और जीव मात्र का अस्तित्व इसी पर टिका है। समय के बदलाव के साथ इस प्राकृतिक संसाधन का अत्यधिक दोहन होना तथा वर्षा की कमी से प्रदेश में जल संकट के हालात सामने आ रहे है। राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राज्य मे सतही जल की कम उपलब्धता एवं कमी के कारण पीने के पानी की लगभग 90 प्रतिशत योजनाएँ एवं 60 प्रतिशत सिंचाई कार्य भू-जल पर आधारित है भूजल की अंधाधुन्ध निकासी तथा वर्षा जल से भूजल पुनर्भरण में गिरावट के परिणामस्वरूप प्रदेश की भूजल स्थिति तेजी से गिरने लगी है। जहाँ वर्ष 1984 में 86 प्रतिशत क्षेत्र सुरक्षित श्रेणी में आते थे वही वर्तमान में मात्र 13 प्रतिशत क्षेत्र ही सुरक्षित श्रेणी में आते हैं। वर्तमान में 237 मे से 198 ब्लाक्स डार्क श्रेणी में हैं। धरातल के नीचे उपस्थित जल को ही भूजल कहा जाता है, मृदा तथा चट्टानों के रन्ध्रो, संधियो, परतों एवं अन्तः करणीय स्थानो में पाया जाता है। इन भूजल की उपस्थिति वाली चट्टानों को जलभृत कहा जाता है। भूजल संसाधन जिस पर दीर्घावधि तक मानव समाज निर्भर रहता है। प्रकृति के जीव जगत का मुख्य आधार होता है इसलिए घटते भूजल स्तर को संरक्षण एवं सतत विकास के साथ कुशलतापूर्वक प्रबन्धन, नियोजन एवं संरक्षण करना बहुत जरूरी है।
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अध्ययन का उद्देश्य | 1. अध्ययन क्षेत्र की भूजल संसाधनों की वास्तविक स्थिति का अध्ययन करना
2. भू-जल स्तर कम होने की जानकारी मालूम करना।
3. भू-जल संकट के कारण एवं प्रभाव को स्पष्ट करते हुए भूजल प्रबन्धन के उपाय सुझाना।
4. भूजल प्रबन्धन की धारणा को स्थानीय स्तर पर विकसित करना। |
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साहित्यावलोकन | 1. भूगर्भ जल संसाधन आकलन
रिपोर्ट 2022 जल संसाधन एवं प्रबंधन
विषय पर शोध परक जानकारी उपलब्ध कराता हैं। 2. राजस्थान का भूगोल “शर्मा ,एच.एस. एवं शर्मा ,एम.एल (2021) “जल संग्रहण एवं प्रबंधन”। 3. भूगर्भ जल विभाग सिरोही
(राजस्थान) 2021 “जल प्रबंधन एवं सतत
संरक्षण के लिए शोध जानकारी एवं आंकडे
उपलब्ध कराता हैं। 4. राष्ट्रीय जल मिशन के तहत
देशभर में जल संरक्षण में सुधार के लिए “केच द रैन “अभियान 22 मार्च 2021 वर्षा जल संचयन के लिए जलवायु परिस्थितियों के लिए वर्षा जल
संचयन संरचना के निर्माण को बढ़ावा देता हैं। |
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मुख्य पाठ |
अध्ययन क्षेत्र
अध्ययन क्षेत्र अनियमित त्रिकोण आकृति का
है जो राजस्थान के दक्षिण पश्चिम भाग में उत्तरी अक्षांश 24020’
से 25017’ तथा पूर्वी देशान्तर 72016’ से 73010’
के मध्य स्थित है। अध्ययन क्षेत्र के पूर्व में पाली
जिला, उत्तर-पूर्व में जालोर,
पूर्व में उदयपुर एवं दक्षिण में गुजरात राज्य का
बनास काठां जिला स्थित हैं। जिले का कुल क्षेत्रफल 5136 वर्ग किमी. है जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 1.52 प्रतिशत है। वर्ष 2011 में अध्ययन क्षेत्र की कुल
जनसंख्या 1037185 लाख है जो राजस्थान की कुल
जनसंख्या का 1.53 प्रतिशत भाग है अरावली का मुख्य
पर्वत श्रेणी आबू पर्वत जिले की दक्षिणी सीमा पर स्थित है। अध्ययन क्षेत्र की
समुद्र तल से ऊँचाई 305-306 मीटर है। अध्ययन क्षेत्र की
सभी नदियाँ मौसमी नदियाँ है। क्षेत्र में मुख्य नदियां जवाई,
सूकड़ी, खारी, कृष्णावती,
बाड़ी, कपालगंगा, सूकली एवं पश्चिमी बनास है।
तापमान अधिकतम 450 सेल्सियस,
न्यूनतम 60 सेल्सियस (आबू पर्वत को छोड़कर) तक चला जाता है। जलवायु सुखी है। औसत वर्षा 73.23
सेमी है। अध्ययन क्षेत्र पहाड़ियों से घिरा सघन
वनाच्छादित सुरम्य स्थल है अध्ययन क्षेत्र मुख्यतः चट्टानी क्षेत्र है एवं भूजल
उपलब्धता पूर्णतया वर्षापर निर्भर करती है। भूजल पुनर्भरण से अधिक मात्रा में दोहन
होने के कारण सिरोही जिला अतिदोहित (डार्क) श्रेणीमें वर्गीकृत हैं। परिकल्पनाः- 1. भू-जल स्तर में निरन्तर गिरावट घटते भू-जल
संसाधनों का घोतक है। 2. गिरता भू-जल कृषि विकास को प्रभावित करता
है। अध्ययन क्षेत्र में जल संसाधनः- अध्ययन क्षेत्र के जल संसाधनो को मुख्यतः
दो भागो में बाँटा गया है। 1. सतही जल 2. भू-जल संसाधन सतही जल संसाधनः- मुख्यत वर्षा जल, कुएँ, तालाब, नदियाँ, झरने आदि हो। भू-जल संसाधनः- भू-जल का एक मात्र स्रोत वर्षा
जल एवं आर्द्र भूमियां है। सतही जल की कमी के कारण अध्ययन क्षेत्र को बहुत हद तक भू-जल
संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। अध्ययन क्षेत्र में भू-जल की स्थिति पर भूआकारकीय
संरचना तथा भूमिगत जल धारकशैल संरचनाओं का प्रभाव पड़ता है। अनियंत्रित एवं अत्यधिक
जल दोहन के कारण भू-जल स्तर में निरन्तर गिरावट आ रही है। जिले का भू जल का रुझान जिले में उपरी आधारित संरचना अल्प भ्रंष एवं
कम घिसाव वाली चट्टानी प्रकृति के भू जल भृत के कारण एवं अत्यधिक कृषि औद्योगिक भू
जल उपयोग के कारण भू जल स्तर में गिरावट आ रही है जिले में पाये जाने वाले भू जल स्रोत
गतिज प्रकृति के है तथा प्रत्यक्ष रूप में वर्षा पर निर्भर है अतः वर्षा जल का संरक्षण
एवं भूमि में भू जलपुनर्भरण आवश्यक है।
सारणी 1: भू जल आंकलन पंचायत समितिवार
(2020-21)
स्रोत: भू जल संसाधन विभाग सिरोही अध्ययन क्षेत्र के अधिकतर क्षेत्रो में सीमित
सतही जल भण्डारो के कारण जल मांग की अधिकांश आपूर्ति भू जल भण्डारो पर निर्भर है जिले
में भू जल भण्डारो का पुनर्भरण वर्षा द्वारा होता है। सारणी 1 से स्पष्ट है कि जिले में वर्षा द्वारा
कुल भू जल पुनर्भरण 261.4872 एम.सी.एम. हुआ जिसके सापेक्ष 275.9843 एम.सी.एम. भू जल
का दोहन कर लिया गया है प्राकृतिक रूप भू जल पुनर्भरण से अधिक भू
जल दोहनकिया गया है अतः भू जल विकास स्तर 94.75 प्रतिशत है अर्थात सम्पूर्ण जिला अति
दोहित श्रेणी में आ गया है।
सारणी 2: सिरोही जिले में पंचायत
समितिवार भू जल स्थिति एवं विवरण (2020-2021) स्रोत- भू-जल विभाग, जिला-सिरोही। प्रस्तुत सारणी 2 से स्पष्ट है
की जिले में भू जलधारक क्षमता सिरोही पंचायत की सर्वाधिक (1103.85) है जबकी आबूरोड की न्यूनतम (331.06) है भू जल स्तर आबूरोड की तुलना में शिवगंज तहसील में अधिक पाया जाता है
जिसका मुख्य कारण धरातलीय पर्वतीय पथरीली संरचना का पाया जाना है जिले में कुओं
द्वारा पेयजल का अधिक उपयोग किया जाता है सम्पूर्ण अध्ययन क्षेत्र में भू जल पेयजल
गुणवत्ता का पाया जाता है लेकिन जल में फ्लोराइड की मात्रा बढ़ने से जल की गुणवत्ता
को भी प्रभावित कर रही है जिसके कारण मानवीय एवं जैविक जगत को शनै-शनै खतरा भी हो
रहा है। घटते भू जल संसाधन के कारण 1. बढती हुई जनसंख्या 2. भू जल का मशीनी
एवं विद्युत यंत्रो द्वारा अत्याधिक दोहन 3. वर्षा की घटती
मात्रा एवं वर्ष में वर्षा दिनो का निरन्तर घटना 4. अधिक जल उपयोग
वाली फसलों का उत्पादन 5. परम्परागत जल स्रोतों का उपयोग नहीं करना 6. जल की महत्ता एवं
गुणवत्ता का सम्मान नही करना अनियोजित भू जल दोहन से उत्पन्न समस्याए 1. गिरता हुआ भू जल
स्तर एवं भू जल संसाधनों में निरन्तर कमी 2. भू जल गुणवत्ता
में गिरावट 3. कुओं की जलदेय
क्षमता में कमी का पाया जाना 4. भू जल दोहन में
ऊर्जा खपत में बढोतरी 5. कृषि उत्पादन में
कमी एवं पेयजल समस्या भू जल सरंक्षण एवं प्रबन्धन हेतु सुझाव:- अध्ययन क्षेत्रँ के जल संसाधनों का
वर्तमान समय में नियोजित ढंग से प्रबंधन किया जाए तो जल का संरक्षण किया जाये। इस दिशा में
निम्नलिखित कदम जल प्रबन्धन में लाभकारी हो सकते हैं। 1. उपलब्ध जल
संसाधनों का वैज्ञानिक ढंग से उपयोग एवं प्रबन्धन किया जाए। 2. उचित जल प्रबन्धन
किया जाए और किसानों को भी इसमें पारंगत किया जाए। 3. बूंद-बूंद सिंचाई, फुहार सिंचाई पद्धति को अपनाने पर जोर दिया जाए। 4. छोटी सिंचाई
योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर निश्चित समयावधि में पूर्ण किया जाए। 5. शुष्क कृषि पद्धति
एवं नमी संरक्षण की विधियों को अपनाने पर जोर दिया जाए। 6. परम्परागत जल
स्रोतों (नाड़ी, बावड़ी, तांबा, खडीन, टांका, कुई)
का पुनः जीर्णोद्धार एवं संरक्षण किया जाए। 7. जन जागरूकता के
माध्यम से जल प्रबन्ध हेतु ठोस उपाय अपनाना। 8. घरेलू, औद्योगिक कार्यों में जल के दुरूपयोग को कम करने के साथ उसके संरक्षण की
ओर ज्यादा ध्यान दिया जाए। 9. सरकारी/गैर सरकारी
जल प्रबन्धन कार्यक्रमों तथा जल मिशन जैसी स्कीमों को बढ़ावा देना। 10. सिंचाई हेतु नवीन
पद्धतियों को अपनाने पर जोर देना। 11. जल दुरूपयोग पर
निंयत्रण करना। 12. कृषि पद्धति एवं
फसल प्रतिरूप में परिवर्तन। 13. भूमिगत जल का
विवेक पूर्ण उपयोग किया जाए। 14. कृषि पद्धति एवं
फसल प्रतिरूप में परिवर्तन किया जाए। 15. छोटे बांधों, तालाबों, एनीकट आदि का निर्माण करके भविष्य के
लिए जल संचय करें। 16. जर्जर नहरी
तंत्रों की मरम्मत निश्चित समयावधि में पूर्ण करें। 17. जल प्रबन्धन- उपलब्ध जल का सर्वेक्षण, उचित रखरखाव, जल दुरूपयोग पर निंयत्रण, पेयजल का बढ़ाना, स्वच्छ जल को बढ़ावा देना। 18. वर्षा जल संग्रहण
(रेन वाटर हार्वेस्टिंग) विधि को विकसित करना जैसे सीधे जमीन के अन्दर, खाई बनाकर रिचार्जिंग, कुओं में पानी उतारना, टेंक में जमा करना जो भविष्य के भण्डार बनेंगे। 19. घटते जा रहे भूजल
स्तर के संकट से समाधान के लिए वन विभाग राजीव गांधी जल संचय योजना के तहत व्यर्थ
बहकर जाने वाले पानी को वनखण्डों में ही रोककर भमि का जल स्तर बढ़ाने के लिए वन
खण्डों में जल संचय तंत्र का निर्माण कर रहा है कृषि क्षेत्र में जल प्रबन्धन 1. कृषि कार्यो में
भू जल दोहन को सीमित करना, 2. कम पानी से पैदा
होने वाली फसलो की बुवाई करना, 3. उन्नत बीजों का
उपयोग करना, 4. बून्द-बून्द सिचाई
एवं फव्वारा पद्धति का व्यापक उपयोग करना, 5. समय सारणीनुसार
फसलों की बुवाई करना, 6. समय-समय पर कृषि
विशेषज्ञो से फसलों हेतु तकनीकी जानकारी प्राप्त करना। 7. रासायनिक उर्वरको
का उपयोग कम करना जिससे की भू जल गुणवत्ता का ह्रास नही हो। घरेलू क्षेत्र में प्रबन्धन 1. सार्वजनिक स्थानो
पर लगे खुले नलो का बन्द करना। 2. क्षतिग्रस्त पाइप
लाइन की मरम्मत हेतु तुरन्त सम्बन्धित कर्मचारी को सूचित करना। 3. औद्योगिक
बहिस्त्राव को परिष्कृत कर सयन्त्र में जल का पुन उपयोग करना।
4. घर से उपयोग के पश्चात गन्दे जल को बाग एवं पेड-पौधों की सिचाई आदि हेतु उपयोग करना। |
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सामग्री और क्रियाविधि | अध्ययन क्षेत्र के जल संसाधन एवं भूजल स्तर के स्वरूप का अध्ययन हेतु प्राथमिक एवं द्वितीय आँकड़ों का प्रयोगकिया गया है। प्राथमिक आँकड़े व्यक्तिगत पर्येवेक्षण द्वारा एकत्रित किये गये है। द्वितीय आकडे भूजल विभाग, सिरोही, जल संसाधन विभाग सिरोही एवं समाचार पत्र सरकारी अभिलेख पाठ्यपुस्तकों आदि की सहायता से प्राप्त किये गये है। प्राप्त आँकड़ो का सारणीय वर्गीकरण हेतु आवश्यक शोध विधि का विश्लेषण करते हुए शोध पत्र का निर्माण किया गया है। |
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निष्कर्ष |
अध्ययन क्षेत्र में जल संसाधनों के विकास द्वारा क्षेत्र का आर्थिक सामाजिक विकास सुनिश्चित हुआ है क्षेत्र में जन सहभागिता का विकास हुआ है। जल प्रबंधन को महत्व देकर सतत् विकास संकल्पना को भी साकार किया जा सकता है। जल संसाधनों के सतत् विकास एवं नियोजन हेतु वैज्ञानिक एवं परम्परागत प्रबन्धन को एक ठोस आयाम देने की सामयिक आवश्यकता है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. विजयवर्गीय, ब्रजेश, 1999 ‘जल निधि’ (हाड़ौती के जलाशयों का संकट एवं समाधान) हिमांशु पब्लिकेशन न्यू सस्ंकरण, 464, हिरण मगरी, सेक्टर-211।
2. जाट बी.सी. (2000), न्यू संस्करण, ‘‘जल ग्रहण प्रबन्ध’’, पोइन्टर पब्लिशर्स, पृ.सं. 14, 15.
3. गौतम, नीरज कुमार, मई 2010: ‘‘जल प्रबंधन’, वर्तमान सदी की आवश्यकता’’ पृष्ठ संख्या 13.
4. गुर्जर, रामकुमार (2020), न्यू संस्करण, ‘‘जल संसाधन भूगोल’’ रावत पब्लिकेशन, पृ.सं. 10.
5. भू-जल विभाग, टोंक एराजस्थान(2021.22) जल संसाधन विभाग।
6. Under DRIP Ph-II, co-financed by World Bank and AIIB, inclusion of additional four states namely Karnataka, Uttarakhand, Uttar Pradesh and West Bengal has been notified by the World Bank in June 2022
7. After enactment of landmark Dam Safety Act in December 2021, Union Government constituted National Committee on Dam Safety and established National Dam Safety Authority (NDSA) on 17th February 2022 |