ISSN: 2456–4397 RNI No.  UPBIL/2016/68067 VOL.- VIII , ISSUE- III June  - 2023
Anthology The Research
पंचाल क्षेत्र की शिव की कल्याण सुन्दर प्रतिमाएं: एक अध्ययन
Kalyan Sundar Idols of Shiva from Panchal Region: A Study
Paper Id :  17489   Submission Date :  2023-05-15   Acceptance Date :  2023-05-29   Publication Date :  2023-06-06
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अम्बिका बाजपेई
एसोसिएट प्रोफेसर
प्राचीन इतिहास विभाग
नवयुग कन्या महाविद्यालय
(लखनऊ विश्वविद्यालय),लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश
प्राचीन पंचाल क्षेत्र वर्तमान उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूँ व फर्रूखाबाद का क्षेत्र था। इस क्षेत्र के दो स्थानों कन्नौज और एटा से दो कल्याणसुन्दर प्रतिमाएं मिली हैं। कल्याणसुन्दर प्रतिमाएं वे प्रतिमाएं हैं जिन में देव शिव व देवी पार्वती के विवाह का दृश्य पाषाण या किसी अन्य माध्यम पर प्रस्तुत किया जाता है। कन्नौज और एटा की कल्याणसुन्दर प्रतिमाओं का अध्ययन शिल्पशास्त्रीय ग्रंथों के आधार पर किया गया हैै। जैसे अंशुमद भेदागम, मयमत, उत्तरकमिकागम आदि। इन दोनों स्थानों के अतिरिक्त देश के अन्य स्थानों जैसे-खजुराहो के मंदिरों, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के रतनपुर, म0प्र0 के बटेश्वर, जबलपुर के गौरी शंकर मंदिर, ऐलीफेन्टा की गुफाओं में भी इन मूर्तियों के दर्शन होते हैं। कुछ संग्रहालयों जैसे ढाका, लंदन के विक्टोरिया व एल्बर्ट संग्रहालयों में भी ये प्रतिमाएं संरक्षित हैं। इस पत्र में इन विभिन्न कल्याणसुन्दर प्रतिमाओं का विस्तृत व तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इनमें से कुछ प्रतिमाएं तो पाषाण निर्मित हैं जबकि लंदन संग्रहालय की प्रतिमा इसका अपवाद है। यह हांथीदांत की बनी हैं। विषय कोे स्पष्ट करने के लिए पत्र में तीन चित्र भी दिये गये हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Present paper Kalyan Sundar idols of Shiva of Panchal region: A study presents a comparative analysis of two Kalyan Sundar idols found from two places of Panchal region of ancient India and Kalyan Sundar idols found from other places of the country. The ancient Panchal region was the region of Bareilly, Badaun and Farrukhabad of present Uttar Pradesh. Two Kalyansundar idols have been found from two places of this region, Kannauj and Etah. Kalyansundar idols are those idols in which the scene of marriage of Lord Shiva and Goddess Parvati is presented on stone or any other medium. The Kalyansundar idols of Kannauj and Etah have been studied on the basis of Shilpashastra texts. Like Anshumad Bhedagam, Mayamat, Uttarakamikagam etc. Apart from these two places, these idols are also seen in other places of the country such as the temples of Khajuraho, Ratanpur of Bilaspur in Chhattisgarh, Bateshwar of Madhya Pradesh, Gauri Shankar temple of Jabalpur, Elephanta caves. These statues are also preserved in some museums like Dhaka, London's Victoria and Albert Museums. A detailed and comparative analysis of these various Kalyansundar idols has been presented in this paper. Some of these statues are made of stone, whereas the statue of the London Museum is an exception. It is made of ivory. To clarify the subject, three pictures have also been given in the letter.
मुख्य शब्द शिल्पशास्त्रीय, चतुर्भुजी, पाणिग्रहण, स्थानक मुद्रा, त्रिभंगी मुद्रा, पृष्ठभाग, यज्ञोपवीत, अष्टदिक्पाल।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Artifacts, Chaturbhuji, Panigrahan, Sthanak Mudra, Tribhangi Mudra, Ujjat, Yajnopaveet, Ashtadikpal.
प्रस्तावना

पंचाल क्षेत्र की शिव की कल्याण सुन्दर प्रतिमायें: एक अध्ययन छठी शताब्दी 0 पू0 के षोडश महाजनपदों में से एक पंचाल, प्राचीन काल में अपना विशिष्ट महत्व रखता था। इसके अन्तर्गत आधुनिक बरेली, बदायूँ और रुहेलखण्ड के अन्य जिले एटा, फरुर्खाबाद, इटावा तथा मध्य दोआब का भाग आता था। पंचाल दो भागों में बंटा था उत्तरी पंचाल दक्षिणी पंचाल। प्रस्तुत पत्र में कन्नौज, एटा अनेक अन्य स्थानों से मिलीं कल्याण सुन्दर प्रतिमाओं का अध्ययन उनका तुलनात्मक विवेचना प्रस्तुत किया है।

अध्ययन का उद्देश्य

प्रस्तुत पत्र 'पंचाल क्षेत्र की शिव की कल्याण सुन्दर प्रतिमाएं: एक अध्ययन' में प्राचीन भारत के पंचाल क्षेत्र के दो स्थानों से मिली दो कल्याण सुन्दर प्रतिमाओं देश के अन्य स्थानों से मिली कल्याणसुन्दर प्रतिमाओं का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत करता है।

साहित्यावलोकन
प्रस्तुत शोधपत्र के लिए विभिन्न पुस्तकों जैसे महाभारत, मार्कण्डेयपुराण, विष्णु पुराण, वामन पुराण, वी0पी0 सिंह की भारतीय कला को बिहार की देन, मारुतिनन्दन तिवारी एवं कमल गिरि की पूर्व मध्य एवं मध्यकालीन भारतीय मूर्तिकला का अध्ययन किया है
मुख्य पाठ

कल्याण सुन्दर मूर्तियाँ वैवाहिक प्रतिमाएं या पाणिग्रहण मूर्तियाँ भी कहलाती हैं। शिव की कल्याणसुन्दर मूर्तियों में शिव-पार्वती के विवाह का चित्रण किया जाता है। पुराणों में शिव और पार्वती के विवाह का वर्णन हुआ है। वैष्णव पुराणों में विवाह का वर्णन तो नहीं हुआ है परन्तु कुछ ऐसे प्रसंग अवश्य प्राप्त हुये है, जो इस रूप की ओर संकेत करते हैं। विष्णु पुराण में एक स्थान पर कहा गया है कि पार्वती ने कठोर तपस्या के पश्चात शिव को प्राप्त किया। शिव ने आनंदमग्न होकर उनके साथ पाणिग्रहण किया। इससे सभी देवता प्रसन्न हुये।[1]

शिल्पशास्त्रीय ग्रंथों में भी शिव-पार्वती के विवाह के दृश्यों का वर्णन किया गया है जैसे-अंशुमद भेदागम, मयमत, उत्तरकमिकागम आदि। सभी ग्रंथ इस रूप में शिव और पार्वती को पाणिग्रहण की मुद्रा में दिखाये जाने पर एकमत है। दम्पति के मध्य ब्रह्मा पुरोहित का कार्य करते प्रदर्शित होने चाहिये।[2] अन्तर हाथों की स्थिति में है। मयमत के अनुसार द्विभुजी पार्वती एक हाथ में पद्म लिये हों और दूसरा हाथ शिव के हाथ में हो। शिव बहुभुजी हो, उनका एक हाथ परशु युक्त व एक वरद मुद्रा में प्रदर्शित हो। शिव विवाह के इस अवसर पर लक्ष्मी व विष्णु भी उपस्थित हों।[3]

कन्नौज से बादामी बलुऐ पत्थर की बनी कल्याणसुन्दर शिव की एक प्रतिमा मिली है, जो एक निजी संग्रहालय में है। प्रतिमा के मध्य में शिव और पार्वती शोभायमान हैं। शिव बायी ओर खड़े हैं। वे सुन्दर जटाजूट, कर्णकुण्डल, नागवलय, कंकण, गै्रवयक, मेखला और यज्ञोपवीत से सुशोभित कामदेव के समान प्रतीत हो रहे हैं। शिव-पार्वती द्विभुजी है। शिव बांयी भुजा से कट्यावलम्बित मुद्रा में खड़े है। उनके दाहिनी ओर उमा खड़ी है, जो साड़ी और कंचुकी धारण किये है। उनका गोल संवरा, मुक्ता-मालाओं से सज्जित केश-वेश, लम्बे कर्णाभरण, गै्रवयक, भुजबंद, कंकण, मेखला और नूपुर उनकी शारिरिक सुषमा के समरूप प्रतीत होते है। उनकी झुकी हुई गर्दन और लज्जा से भरे हुये मुख से नववधू के संकोच का भाव प्रदर्शित है। अपने सौन्दर्य को देखने के लिए पार्वती ने अपने बांये हाथ में दर्पण ले रखा है। शिव ने अपने दांये हाथ से उमा का दांया हाथ पकड़ रखा है। यह पाणिग्रहण संस्कार को दर्शाता है। यह उससे पूर्व का दृश्य है। शिव-पार्वती के पैरों के मध्य त्रिमुखी ब्रह्मा, पुरोहित के रूप में वैवाहित कार्य सम्पन्न कर रहे हैं। वे अग्नि में हवन सामग्री डालते प्रदर्शित हैं। इस ¬प्रधान चित्रण के ऊपरी भाग में अनेक देवताओं का आकर्षक चित्रण हुआ है। इन्द्र अपने वाहन ऐरावत पर बैठे हैं। यम् महिष पर, वायु अश्व पर, वरुण मकर पर और निऋति नर वाहन पर आसीन हैं। इनके अतिरिक्त सूर्य, गणेश और कार्तिकेय भी दर्शनीय हैं। शिव के बांये पैर के पास एक स्त्री आकृति अंकित है, जिसका सिर खंडित है। वामन पुराण के आधार पर नीलकण्ठपुरुषोत्तम जोशी जी ने इसकी पहचान पार्वती की सखी मालिनी से की है।[4] पार्वती के ठीक पीछे ऊपर की ओर कलशधारी विष्णु हैं। उनके नीचे दाहिना हाथ जंघा पर रखे व बायें हाथ में कोई अस्पष्ट सी वस्तु लिये लक्ष्मी खड़ी हैं।[5]

चित्र संख्या-1

कन्नौज की कल्याणसुन्दर प्रतिमा के समान एक प्रतिमा वाराणसी के भारत कलाभवन में रखी हुई, जो मूल रूप से एटा से प्राप्त हुई थी। 


चित्र संख्या-2 यह भी कन्नौज प्रतिमा के समान शिव पार्वती के विवाह को प्रस्तुत करती है। कुछ समानताएँ होने के बाद भी यह प्रतिमा कन्नौज की कल्याणसुन्दर प्रतिमा से भिन्न है। शिव-पार्वती वर-वधू रूप में दर्शाये गये हैं। दोनों स्थानक मुद्रा में विभिन्न वस्त्राभूषणों से सुसज्जित है। इस प्रतिमा में देव, देवी का पाणिग्रहण करने की मुद्रा में नहीं बल्कि वे अग्नि कुण्ड की परिक्रमा करने की मुद्रा में हैं। यह सप्तपदी का दृश्य है जिसके अंतर्गत पाणिग्रहण के पश्चात् वर-वधू अग्नि की परिक्रमा करते हुये दिखाये जाते हैं। एटा वाली प्रतिमा इसी दृश्य को प्रस्तुत करती है। शिव परिक्रमा करते हुये, त्रिभंगी मुद्रा में, पृष्ठभाग में मुड़कर वधू-पार्वती को निहार रहे हैं। दोनों ही प्रतिमाओं में सर्प देखने को नहीं मिलता है। कन्नौज की अपेक्षा एटा वाली प्रतिमा में देवता का कटिबंध अपेक्षाकृत अधिक अलंकृत है। वर-वधू के मध्य से ब्रह्मा वीरासन मुद्रा में अग्निकुंड में हव्य अर्पित कर रहे हैं। अग्निदेव का मुंड भाग उल्टा करके प्रदर्शित किया गया है, जिसके मुख गह्वर में ब्रह्मा द्रव्य डाल रहे हैं। यह अंकन कन्नौज प्रतिमा से भिन्नता रखता है। जहाँ एटा की प्रतिमा में पृष्ठभाग में पार्श्व आकृतियों को अत्यन्त सुन्दरतापूर्वक क्षैतिजाकार पंक्तियों में प्रदर्शित किया गया है। वहीं कन्नौज वाली प्रतिमा में देव-देवी के सिर के ऊपर से एक लहरदार रेखा के ऊपर देवताओं को अपने वाहनों से साथ अलग-बगल अंकित किया गया है। इसके ऊपर पार्श्व देवताओं का अंकन है शिव विवाह की वरयात्रा का प्रत्यावर्तन कन्नौज की प्रतिमा में तो अंकित नहीं मिलता, परन्तु एटा की प्रतिमा में सर्वोपरि पंक्ति में मिलता है। वर-वधू नंदी पर आरूढ़ दिखाये गये हैं। इनके आगे-पीछे नर्तक गण आदि वरयात्रा की शोभा में वृद्धि कर रहे हैं। एटा की प्रतिमा का यह अंकन पूर्वी भारत की कल्याण सुन्दर प्रतिमाओं से समानता रखता है। एटा की प्रतिमा की रथिका के दोनों पार्श्वों में दो पतले स्तंभों पर वीरभद्र के साथ नृत्यरत सप्तमातृकाओं का भी अंकन है जिसका अभाव कन्नौज की कल्याणसुन्दर प्रतिमा में एक कल्याण सुन्दर प्रतिमा महाराष्ट्र के एलोरा नामक स्थान पर भी मिली है जो 8वीं शताब्दी की है। यह प्रतिमा कन्नौज वाली प्रतिमा से अधिक समानता प्रदर्शित करती है। इसमें देव व देवी पाणिग्रहण मुद्रा में खड़े अंकित हैं। वस्त्राभूषणों में भी समानता मिलती है। चतुर्मुखी ब्रह्मा, वर के बायें पैर के पास पुरोहित के रूप में अग्नि में आहुति देते दिखाये गये है। विष्णु व लक्ष्मी पार्वती के पीछे की ओर है। वर-वधू के ऊपर वरुण मकर पर, इन्द्र ऐरावत पर, अग्नि मेढ़े पर, यम महिष पर, वायु अश्व पर, ईशान वृष पर व नऋति नर वाहन पर आसीन दिखाये गये हैं। साथ में युगल विद्याधर भी हैं।[6]

कल्याणसुन्दर प्रतिमाओं में विष्णु का अंकन भी उमा के पिता या भ्राता के रूप में कलश द्वारा वर-वधू के परिणय सूत्र में आबद्ध करतल से जल गिराते हुये किया जाता है। कन्नौज की प्रतिमा में जहाँ पार्वती के पीछे द्विभुजी विष्णु व लक्ष्मी का अंकन है वहीं एटा की प्रतिमा में विष्णु और लक्ष्मी का अभाव मिलता है। कन्नौज प्रतिमा के समान एटा वाली प्रतिमा में भी मालिनी शिव के बाये पैर के पास प्रदर्शित हैं। एटा के समान पाद पीठ के दोनों पार्श्वों में मंगल कलश का कन्नौज में अभाव देखने को मिलता है। यह प्रतिमा 10वीं शताब्दी की है।

पंचाल के दो क्षेत्रों कन्नौज और एटा से इन दो कल्याणसुन्दर प्रतिमाओं का पाया जाना स्पष्ट करता है कि प्राचीन पंचाल में शिव के कल्याणसुन्दर रूप की प्रतिमाएँ काफी लोकप्रिय थीं। कन्नौज की प्रतिमा, जहाँ विवाह के एक अनुष्ठान पाणिग्रहण को दर्शाती है, तो वाराणसी के कलाभवन में रखी, एटा वाली प्रतिमा विवाह के एक अन्य अनुष्ठान सप्तपदी व वरयात्रा के प्रत्यावर्तन का चित्र प्रस्तुत करती है। एटा से मिली प्रतिमा कन्नौज की कल्याणसुन्दर प्रतिमा की श्रृंखला की अगली कड़ी कही जा सकती है। दोनों मिलकर शिव पार्वती के विवाह का पूर्ण चित्र प्रस्तुत करती हैं।

भारत के अनेक स्थानों से कल्याण सुन्दर प्रतिमाओं के उदाहरण मिलते हैं। इन प्रतिमाओं को पाषाण के साथ-साथ धातु से भी निर्मित किया गया है। सामान्य रूप से उत्तर भारत से जो कल्याण सुन्दर प्रतिमाएँ मिलीं हैं वो पाषाण की बनी हैं। दक्षिण भारत से धातु निर्मित कुछ कल्याण सुन्दर प्रतिमाएँ मिलीं। पटना संग्रहालय में सुरक्षित एक कल्याण सुन्दर प्रतिमा का उल्लेख श्री वी0पी0 सिंह जी द्वारा किया गया है।[7] इसमें एक अर्द्ध अंडाकार पाषाण फलक पर बांयी ओर शिव और दाहिनी ओर पार्वती खड़ी प्रदर्शित हैं शिव चतुर्भुजी व पार्वती द्विभुजी हैं। पार्वती के बायें हाथ में दर्पण है व दाहिना हाथ शिव के हाथ में है। शिव के तीन हाथों में त्रिशूल, डमरू व कपाल है और एक दाहिना हाथ पार्वती का दाहिना हाथ पकड़े है। शिव और पार्वती दोनों की ऑखें नीचे झुकी हैं। पार्वती ने कंचुकी, धोती, कर्धनी, हार, कर्णफूल, धारण कर रखे है। शिव-पार्वती के बीच में नीचे चतुर्भुज ब्रह्मा को पुरोहित के रूप में बैठा दिखाया गया है।

ढ़ाका संगहालय में संरक्षित एक कल्याणसुन्दर मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है। इसमें जटाजूटधारी चतुर्भुजी शिव अपने दाहिने में त्रिशूल लिये खड़े है। निकट ही वधू के रूप में पार्वती को प्रदर्शित किया गया है।[8]

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के रतनपुर नामक स्थान से मिली और वर्तमान में रायपुर के घासीदास संग्रहालय में संरक्षित एक कल्याणसुन्दर मूर्ति में शिव दाहिनी ओर व पार्वती बायीं ओर खड़ी हैं। शिव चतुर्भुजी हैं। उनके ऊपर वाले हाथ में सर्प है और दायें निचले हाथ से पार्वती का हाथ ग्रहण कर रहे हैं। ऊपर वाला बायां हाथ पार्वती के गले में है। द्विभुजी पार्वती के दोनों हाथ खंडित हैं। शिव के मस्तक पर जटा मुकुट, कानों में कुंडल गले में हार, एकावली, हाथों में कंगन आदि आभूषण हैं। पार्वती के बंधे जूड़े में मुक्तामाला लपेटी हुई है। शिव पार्वती चौकी पर खड़े हैं। उनके ठीक नीचे शिव का वाहन नंदी है। शिव के दाहिनी ओर अग्निकुंड है जिसके पास ही ऊँचे आसन पर बैठे ब्रह्मा विवाह सम्पन्न कराने हेतु पुरोहित का कार्य कर रहे हैं। वर-वधू पक्ष के लोग चारों ओर खड़े हुये है। उनमें अनेक देव गंधर्व व शिव के गण भी हैं परन्तु उनकी पहचान करना दुष्कर कार्य है।[9] कालंजर और अजयगढ़ में भी इसी प्रकार की प्रतिमाएं हैं।

मध्य प्रदेश के हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में 11वीं शताब्दी की कल्याणसुन्दर प्रतिमा संरक्षित हैं जिसमें शिव-पार्वती के पाणिग्रहण संस्कार का अंकन किया गया है। इसमें ब्रह्मा जी पुरोहित रूप में दिखाई दे रहे हैं। देव और देवी सम्पूर्ण वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हैं। इनमें मुकुट, आभूषण, कुंडल, हार, काटिसूत्र देखा जा सकता है। देव का दाहिना हाथ, देवी पार्वती के हाथ में पाणिग्रहण की मुद्रा में दर्शाया गया है। नीचे की ओर ब्रह्मा वर वधू के पाणिग्रहण हेतु मंत्रोच्चार करते हुये दिख रहे हैं। मूर्ति के दोनों अनुचर उकेरे गये है।[10]

0प्र0 के खजुराहो में भी शिव-पार्वती की अनेक कल्याणसुन्दर प्रतिमाएँ हैं। यहाँ पर दो प्रतिमाओं का विवरण प्रस्तुत कर रही हूँ। खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर व वामन मंदिरों की कल्याणसुन्दर प्रतिमाएँ महत्वपूर्ण है। दोनों ही मंदिरों में ये मूर्तियाँ पैनल में हैं। लक्ष्मण मंदिर की कल्याणसुन्दर मूर्ति में शिव व पार्वती के शीर्ष भाग व भुजाएँ क्षतिग्रस्त हैं। केवल कंधे से नीचे का भाग सुरक्षित है। परन्तु फिर भी इसका सौन्दर्य देखते बनता है। वामन मंदिर की कल्याणसुन्दर मूर्ति में शिव-पार्वती एक चौकी पर खड़े हैं। देव चतुर्भुजी व देवी द्विभुजी हैं बायीं ओर शिव व दायीं ओर पार्वती खड़ी हैं। शिव ने अपने दाहिने हाथ से पार्वती का दाहिना पकड़ा है। देवी कुछ शिव की ओर मुड़ी खड़ी हैं। बीच में अग्नि देव मानव रूप में खड़े है। नंदी अपनी गर्दन मोड़कर दिव्य जोड़े को देखने की मुद्रा में है। शेर, जो देवी का वाहन है शांत रूप में निकट खड़ा प्रदर्शित है।[11]

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले से 30 किमी की दूरी पर बटेश्वर नामक स्थान के शिव मंदिर के पास से दो कल्याणसुन्दर प्रतिमाएँ मिली हैं जो लगभग 8वीं0-9वीं0 शताब्दी ई0 की हैं। चतुर्भुजी देव अपने दाहिने हाथ से देवी का पाणिग्रहण कर रहे हैं। दोनों के बीच चतुर्मुखी ब्रह्मा मंत्रोच्चार कर विवाह सम्पन्न कराते दिख रहे है। प्रतिमा के दोनों ओर गंगा और यमुना जल भरे कलश लिये खड़ी हैं। प्रतिमा के नीचे के भाग में अग्निदेव और ऊपरी बाई ओर ऐरावत पर बैठे इन्द्र दिख रहे हैं। दोनों प्रतिमाएँ एक जैसी हैं केवल आकार में भिन्नता है। एक छोटी है। दूसरी आकार में कुछ बड़ी है।[12]

शिव की कांसे से निर्मित एक कल्याणसुन्दर प्रतिमा तंजौर से प्राप्त हुई है।[3] इसमें विकसित कमल पुष्प पर शिव और पार्वती को खड़ा प्रदर्शित किया गया है। शिव के सिर पर जटा-मुकुट तथा कानों में कुंडल हैं चतुर्भुजी देव सर्प यज्ञोपवीत धारण किये हैं। पीछे के दो हाथों में त्रिशूल तथा मृग है। आगे का बायां हाथ वरद मुद्रा में है और दाहिना हाथ पार्वती की ओर है। देवी की वेशभूषा सुन्दर है।[13]

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में नर्मदा नदी के किनारे स्थित भेड़ाघाट के गौरीशंकर मंदिर के गर्भगृह में स्थित कल्याणसुन्दर प्रतिमा का उल्लेख आर0डी0बनर्जी द्वारा किया गया है। इसमें देव व देवी दोनों द्विभुजी हैं। देव के बाएँ हाँथ में त्रिशूल व देवी पार्वती के बॉए हाथ में दर्पण है। देव का दाहिना हाथ वक्षस्थल पर व देवी का दाहिना हाथ नाभि पर है।[14]

शिव-पार्वती के विवाह को दर्शाने वाली दक्षिण भारत के मदुरै से मिली, हांथीदांत की बनी एक प्रतिमा लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में संरक्षित है जिसमें चतुर्भुजी शिव बांयी व द्विभुजी देवी दाहिनी ओर हैं। सुसज्जित देव अपने दाहिने हाथ से वस्त्राभूषणों से अलंकृत देवी का दाहिना हाथ ग्रहण करते दिख रहे हैं। पार्श्व में अन्य देवी देवता देखे जा सकता है। यह प्रतिमा अद्वितीय है।[15]

चित्र संख्या-3

मध्य प्रदेश के ग्वालियर पुरातत्व विभाग के गूजरी महल स्थित संग्रहालय में 8वीं-9वीं  शताब्दी की, शिव-पार्वती विवाह की कल्याणसुन्दर प्रतिमा महत्वपूर्ण है जिसमें शिव-पार्वती के साथ विवाह सम्पन्न कराते ब्रह्मा जी देखे जा सकते हैं। पार्वती की सखी मोहिनी को शिव के बायें पैर के पास बैठे देखा जा सकता है।[16] इसी प्रकार राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के कुम्भ-श्याम मंदिर की स्तंभयोजना में एक कल्याणसुन्दर प्रतिमा दर्शनीय है।[17]

राजस्थान के ही भरतपुर में भी प्रतिहार कालीन कल्याणसुन्दर मूर्ति देखी जा सकती है।[18]

महाराष्ट्र में मुंबई के समीप एलीफेंटा द्वीप, जिसे धारापुरी द्वीप के नाम से भी जाना जाता है, में स्थित एलीफेन्टा की शैलकृत गुफाओं में भी एक कल्याणसुन्दर प्रतिमा देखी जा सकती है।[19] ये प्रतिमा अंशतः खंडित हैं। देवी की दोनों भुजाएँ व शिव की दाहिनी भुजा खण्डित है। देव व देवी सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुशोभित हैं। एलोरा प्रतिमा की भाँति पुरोहित ब्रह्मा शिव जी के बायें पैर के पास बैठे विवाह कार्य सम्पन्न कराते देखे जा सकते हैं। देवी के पीछे विष्णु व लक्ष्मी भी अंकित हैं। अन्य प्रतिमाओं की भाँति इस प्रतिमा में भी ऊपर अन्य देवी-देवता व अष्ट दिक्पाल देखे जा सकते हैं।

भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही विवाह संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। देव-देवी का विवाह दिखाया जाना सिद्ध करता है कि विवाह से सम्बन्धित सभी अनुष्ठान महत्वपूर्ण माने जाते थे और उनको विधिपूर्वक सम्पन्न किया जाता था, ब्रह्मा पुरोहित रूप में विवाह कराते कल्याणसुंदर प्रतिमाओं में दर्शाये गये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि समाज में पुरोहित का बहुत महत्व था और विवाह सम्पन्न कराने के लिए उनकी उपस्थित आवश्यक थी। महाभारत[20], मार्कण्डेय पुराण[21] आदि प्राचीन ग्रंथों में भी विवाह का महत्व प्रस्तुत करने वाले अनेक संदर्भ मिलते हैं। इसी कारण संभवतः आदिदेव शिव व देवी पार्वती के विवाह को दर्शानेवाली प्रतिमाएँ बनाये जाने का जिक्र भी अनेक शिल्पशास्त्रीय ग्रंथो में हुआ है और अनेक कल्याण सुंदर प्रतिमाएँ भारत के अनेक स्थानों से मिली हैं। वैसे तो यह प्रतिमाएँ निर्मित किये जाने की परम्परा दक्षिण भारतीय हैं परन्तु उत्तर भारत भी इनके निर्माण से अपने को अलग नहीं रख सका है। उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि उत्तर भारत के अनेक स्थान विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु के साथ बांग्लादेश में भी कल्याणसुन्दर प्रतिमाएँ सुरक्षित हैं। जो इनकी लोकप्रियता को व्यक्त करती हैं। कह सकते हैं कि अब तक जितनी कल्याणसुंदर मूर्तियाँ मुझे ज्ञात हैं उनमें दक्षिण की अपेक्षा उत्तर भारत की कल्याणसुन्दर मूर्तियाँ अधिक हैं।

उत्तर ¬भारत की कल्याणसुन्दर मूर्तियाँ विशेषतः पाषाण से निर्मित की गयीं। एक भी प्रतिमा ऐसी नहीं प्राप्त हुई है जो पाषाण के अतिरिक्त किसी अन्य पदार्थ से निर्मित हो। जबकि दक्षिण भारत में पाषाण के साथ-साथ कांस्य और हाथीदाँत पर भी इन प्रतिमाओं को निर्माण किया गया है। दक्षिण भारत में इनकी लोकप्रियता अधिक होना इसका कारण माना जा सकता है।

निष्कर्ष

शिल्पशास्त्रीयों ग्रंथों में कल्याणसुन्दर मूर्तियों में शिव को चतुर्भुजी देवी पार्वती को द्विभुजी निर्मित किये जाने का विधान प्रस्तुत किया गया है। देवी को एक हाथ में पद्म लिये हुये बनाये जाने का विधान किया गया है। कन्नौज और भेड़ाघाट की प्रतिमाओं में ग्रंथों के विवरण से कुछ-कुछ भिन्नता मिलती है। दोनों स्थानों की कल्याणसुन्दर प्रतिमाएँ शिव को द्विभुजी दर्शाती है और देवी के हाथ में पद्म के स्थान पर दर्पण मिलता है जो कई स्थानों की मूर्तियों में दृष्टव्य है। सभी प्रतिमाएँ एक जैसी नहीं हैं। कुछ बहुत साधारण निर्मित है जबकि कुछ बहुत सुन्दर ढंग से निर्मित अलंकृत हैं। कन्नौज, एटा मदुरै की कल्याणसुन्दर मूर्तियाँ अप्रतिम सौन्दर्य से युक्त हैं। उन में चारूत्व तत्व देखा जा सकता है। अन्य स्थानों की प्रतिमा साधारण श्रेणी की कही जा सकती हैं। कन्नौज और एटा प्राचीन पांचाल क्षेत्र के अन्तर्गत आते थे। अतः ये दोनों मूर्तियाँ जहाँ एक ओर कुछ समानताएँ दर्शाती हैं, वहीं दूसरी ओर इन के अनेक मूलभूत अंतर भी है। एटा की प्रतिमा अपेक्षाकृत अधिक अलंकृत हैं, दोनों ही स्थानों की प्रतिमाएँ शिव पार्वती विवाह का दृश्य प्रस्तुत करती हैं। दोनों में ही देव-देवी अलंकृत हैं। परन्तु एटा की प्रतिमा में देव का कटिबन्ध कन्नौज प्रतिमा से अधिक अलंकृत है। दोनों प्रतिमाओं में सर्प का अभाव देखने को मिलता है। दोनों में ही देव देवी के ऊपर अष्टदिक्पाल अन्य पार्श्व आकृतियों को समान रूप से देखा जा सकता है। परन्तु एटा वाली प्रतिमा में पृष्ठभाग में पार्श्वआकृतियों को अत्यन्त सुन्दरतापूर्वक क्षैतिजाकार पंक्तियों में प्रदर्शित किया गया है, वही कन्नौज वाली प्रतिमा में देव-देवी के सिर के ऊपर से एक लहरदार रेखा के ऊपर देवताओं को अपने वाहनों के साथ अगल-बगल अंकित किया गया है। इसके ऊपर पार्श्व देवताओं का अंकन है। दोनों प्रतिमाएँ शिव-पार्वती विवाह को दर्शाती हैं परन्तु दोनों में अंतर यह है कि कन्नौज प्रतिमा जहाँँ पाणिग्रहण संस्कार का चित्र प्रस्तुत करती हैं वहीं एटा की प्रतिमा में सप्तपदी का चित्रण है, जो पाणिग्रहण के बाद का संस्कार है। इसी प्रतिमा में वरयात्रा के प्रत्यावर्तन का चित्र भी मिलता है। जिसका कन्नौज प्रतिमा सहित सभी वर्णित प्रतिमाओं में अभाव है। यह एटा प्रतिमा की अनूठी विशिष्टता है जो किसी भी अन्य स्थान की प्रतिमा में नहीं मिलती है। यही विशिष्टता एटा प्रतिमा को एक अलग पहचान देती है। अतएव एटा प्रतिमा, कन्नौज की कल्याणसुन्दर प्रतिमा की श्रृखंला की अगली कड़ी कही जा सकती है। दोनों मिलकर शिव-पार्वती के विवाह का पूर्ण चित्र प्रस्तुत करती हैं। कुछ तत्व ऐसे हैं जो एटा वाली प्रतिमा में तो है परन्तु कन्नौज सहित अन्य किसी स्थान की प्रतिमा में देखने को नहीं मिलते हैं। एटा की प्रतिमा में अग्निदेव का मुंड भाग उल्टा कर के प्रदर्शित किया गया हैं, जिसके मुख गहवर में ब्रह्मा द्रव्य डाल रहे हैं। कन्नौज ¬प्रतिमा में इसका अभाव देखा जा सकता है। इसमें अग्निकुंड साधारण है। एटा प्रतिमा में रथिका के दोनों पार्श्वों में दो पतले स्तंभों पर वीरभद्र के साथ नृत्यरत सप्तमातृकाओं का भी अंकन है, जो कन्नौज प्रतिमा में नहीं मिलता है। एटा प्रतिमा में पाद पीठ के दोनों पाश्वों में मंगल कलश बने हुये है जबकि कन्नौज प्रतिमा में इसका अभाव मिलता है। कल्याणसुन्दर ¬प्रतिमाओं में विष्णु का अंकन उमा के पिता या भ्राता के रूप में कलश द्वारा वर-वधू के परिणय सूत्र में आबद्ध करतल से जल गिराते हुए किया गया है। कन्नौज प्रतिमा में पार्वती के पीछे द्विभुजी विष्णु लक्ष्मी का अंकन है जबकि एटा भी प्रतिमा में विष्णु लक्ष्मी देखने को नहीं मिलते हैं। विवाह में अतिथियों के रूप में अष्टदिक्पाल, प्रतिमा के ऊपरी भाग में निर्मित किये गये हैं। ये सभी दिशाओं के देवता माने जाते हैं। इन्द्र को पूर्व का, वरुण को पश्चिम, यम को दक्षिण, कुबेर को उत्तर, अग्नि को दक्षिण पूर्व, वायु को उत्तर पश्चिम, निऋति को दक्षिण पश्चिम ईशान को उत्तर पूर्व का देवता माना गया है। अतः अष्टदिक्पालों के माध्यम से सभी दिशाओं के देवताओं को विवाह में उपस्थित दर्शाया गया है। वधू की बहनों सखियों द्वारा वर से नेग मांगने की परम्परा भारतीय विवाहों में प्रचलित है जिसका इन प्रतिमाओं में दृश्यांकन हुआ है। कन्नौज, एटा ग्वालियर के गुजरी महल में रखी मूर्तियों में वामन पुराण के निर्देश का अनुसरण करते हुए पार्वती की सखी मालिनी को प्रतिमा में शिव के बाएँ पैर को पकड़ते दर्शाया गया है। वामन पुराण में विवरण मिलता है कि विवाह होम अग्नि प्रदक्षिणा के बाद पार्वती की सखी मालिनी शिव का पैर पकड़कर उन्हे रोकते हुए नेग मांगती है। अन्य किसी भी उपरोक्त वर्णित स्थान की कल्याणसुन्दर मूर्तियों में यह तत्व देखने को नही मिलता है। इस आधार पर ये प्रतिमाएँ अनूठी हैं। कन्नौज की कल्याणसुन्दर प्रतिमा 8वीं शताब्दी की है जबकि एटा की प्रतिमा 10वीं शताब्दी 0 की है। इस विकास क्रम में इन प्रतिमाओं में हमें अलंकरण में वृद्धि देखने को मिलती है। 8वीं0 शताब्दी की प्रतिमा में शरीर रचना की मृदुता एवं स्वाभाविक मुद्रा, अवयवों में समायोजित संयत अलंकरण तथा शिव पार्वती की भावपूर्ण मुद्रा और भंगिमा अलौकिक है। पार्वती के मुखमंडल पर संकोच का भाव तथा परिकर की आकृतियों के संयोजन में दिक्पाल सूर्य और ब्रह्मा तथा पार्वती की सखी की आकृति को सुन्दर ढंग से दिखाया गया है। 10वीं शताब्दी की मूर्ति में केवल अलंकरण और आभूषणों में वृद्धि हुई वरन् मुख मुद्रा भंगिमा भी सहज के स्थान पर आकर्षक किन्तु कृत्रिम हो गयी तथा सम्पूर्ण परिकर को विभिन्न आकृतियों से पूरी तरह भर दिया गया जिनमें ब्रह्मा एवं अन्य पारम्परिक आकृतियों के अतिरिक्त नवग्रहों, अष्टदिक्पालों, सप्तमातृकाओं, गणेश कार्तिके की आकृतियाँ भी बनी हैं। शिव-पार्वती विवाह की मूर्ति में पुत्र गणेश कार्तिकेय की उपस्थिति आश्चर्यजनक है।[22] कन्नौज की कल्याणसुन्दर प्रतिमा एलोरा की कल्याणसुन्दर प्रतिमा से कुछ समानता रखती है। यद्यपि कन्नौज की प्रतिमा कुछ सुरक्षित अवस्था में है जबकि एलोरा की प्रतिमा में देव देवी की भुजाएँ पैर काफी खंडित हैं। प्रतिमा के ऊपरी भाग में विभिन्न देवी-देवताओं का अंकन दोनों में काफी समानता रखता है। भिन्नता यह है कि जहाँ कन्नौज में ये पार्श्व देवी देवता अपने वाहनों पर आरूढ़ दिखाये गये हैं, एलोरा की प्रतिमा में वाहन नहीं मिलते हैं।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

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19. https://indianculture.gov.in/hi/unesco/heritage-sites/elephaentaa-kai-gauphaaen
20. महाभारत, 1.16.1.45
21. मार्कण्डेयपुराण, -85-90, श्लोक-5
22. तिवारी, मारुतिनन्दन एवं गिरि, कमल, पूर्व मध्य एवं मध्यकालीन भारतीय मूर्तिकला, विश्वविद्यालय प्रकाशन, पृष्ठ-119