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आधुनिक शिक्षा ग्रहण के प्रति समुदायगत् मूल्य एवं अपेक्षाएँ | |||||||
Communitie’s Values and Apsectations Towards Attainments of Modern Education | |||||||
Paper Id :
17639 Submission Date :
2023-05-12 Acceptance Date :
2023-05-22 Publication Date :
2023-05-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
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सारांश |
प्रस्तुत पेपर हिन्दू व मुस्लिम समुदाओं की काॅलेज में अध्ययनरत निदर्शित छात्राओं (जिनकी औसत आयु 20 वर्ष है) में शिक्षा ग्रहण के प्रति उनके सामुदायिक मूल्यों एवं अपेक्षाओं को तुलनात्मक दृष्टि से जानने का प्रयास करता है। सामुदायिक मूल्य एवं अपेक्षाएँ तथा शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया अन्र्तसम्बन्धित होती है। निसंदेह सकारात्मक मूल्यों वाले लचीले एवं उदार प्रवृत्ति वाले समुदाय आधुनिक शिक्षा के प्रति अपेक्षाकृत तेजी से आकृष्ट होते हैं। अतः इस अध्ययन के दो प्रमुख उद्देश्य है- 1. आधुनिक शिक्षा ग्रहण के प्रति हिन्दू व मुस्लिम समुदाओं की काॅलेज में अध्ययनरत् छात्राओं की समुदायगत् मूल्यों एवं अपेक्षाओं को जानना। 2. दोनों समुदायों की समुदायगत् मूल्यों व अपेक्षाओं की तुलना करना। अध्ययन उद्देश्यों के अनुरूप दोनों समुदायों की निदर्शित छात्राओं से उनकी समुदायगत् मूल्यों व अपेक्षाओं से सम्बन्धित प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करने के लिए एक संरचित प्रश्नावली का प्रयोग किया गया। मुख्य पाठ में प्रदर्शित तालिकाएँ निदर्शित छात्राओं की शिक्षा ग्रहण के प्रति उनकी मूल्यगत् प्राथमिकताओं एवं अपेक्षाओं के आंकड़े प्रस्तुत करती है। जब जीवन के लक्ष्य के बारे में छात्राओं से पूछा गया तो पाया गया कि 65 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने कहा कि उच्च शिक्षा प्राप्त करना उनके जीवन की प्राथमिकताओं में है वहीं 32 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने उच्च शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान की है। जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्या है? तो प्रतिक्रिया स्वरूप दोनेां समुदायों की छात्राओं की प्राथमिकताओं में काफी अन्तर पाया गया जो दोनों समुदायों में आधुनिक शिक्षा को लेकर उनके दृष्टिकोणों को प्रदर्शित करता है। 72 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने आधुनिक शिक्षा को जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जबकि इनकी तुलना में 29 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने ही आधुनिक शिक्षा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना। शिक्षा व्यवस्था के स्वरूप, तथा इसकी जिम्मेदारी तथा सरकार (राज्य) के सम्बन्ध में छात्राओं की अपेक्षाओं को जानने का प्रयास किया गया। 93 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं की अपेक्षा थी कि शिक्षा का स्वरूप पंथनिरपेक्ष ही होना चाहिए जबकि दूसरी ओर 78 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं की अपेक्षा थी कि इसे पंथनिरेपक्ष होना चाहिए। शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी किसे उठानी चाहिए? इसकी प्रतिक्रिया में 45 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने कहा कि यह सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए जबकि 82 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने कहा कि यह जिम्मेदारी सरकार को उठानी चाहिए। इस प्रकार देखने में आया कि कुल मिलाकर दोनों समुदायों की छात्राओं की मूल्यगत् प्राथमिकताओं एवं अपेक्षाओं में भिन्नता पायी गयी जो इनकी शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया को प्रभावित करती है।
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सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | The presented paper makes an attempt to know the community values and expectations towards education among the selected girl students (whose average age is 20 years) studying in the college of Hindu and Muslim communities in a comparative way. Community values and expectations and the learning process are interrelated. Undoubtedly, flexible and liberal-minded communities with positive values are attracted to modern education relatively faster. Therefore, there are two main objectives of this study- 1. To know the community values and expectations of the girl students studying in the college of Hindu and Muslim communities towards modern education. 2. To compare the community values and expectations of both the communities. According to the objectives of the study, a structured questionnaire was used to obtain responses from the identified girl students of both the communities regarding their community values and expectations. The tables displayed in the main text present the statistics of the value preferences and expectations of the selected girl students towards their education. When female students were asked about their goals in life, it was found that 65 percent of Hindu female students said that pursuing higher education was one of their priorities in life, while 32 percent of Muslim female students gave priority to higher education. What is most important in life? As a result, there was a significant difference in the preferences of the female students of both the communities, which reflects their attitudes towards modern education in both the communities. 72 percent of Hindu female students accepted modern education as the most important goal in life, compared to 29 percent of Muslim female students who considered modern education as the most important. An attempt was made to know the nature of the education system, its responsibility and the expectations of the girl students in relation to the government (state). 93 percent of Hindu girl students expected that the nature of education should be secular while on the other hand 78 percent of Muslim girl students expected that it should be secular. Who should take the responsibility of the education system? In response, 45 percent of Hindu girl students said that this should be the responsibility of the government, while 82 percent of Muslim students said that the government should take this responsibility. In this way, it was seen that overall difference was found in the value preferences and expectations of the female students of both the communities, which affects their education process. | ||||||
मुख्य शब्द | बौद्धिकता, सामुदायिक संस्कृति, सांस्कृतिक पिछड़ापन, सामाजिक स्तरीकरण, सामुदायिक मूल्य एवं अपेक्षाएँ, मूल्यगत् प्राथमिकताएँ, सार्वभौमिकता, पंथ निरपेक्षता। | ||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Intellectuality, community culture, cultural backwardness, social stratification, community values and expectations, value preferences, universalism, secularism. | ||||||
प्रस्तावना |
राज्य के हस्तक्षेप से धीरे-धीरे समाजों में शिक्षा के समान अवसरों का प्रसार होना प्रारम्भ हुआ। परन्तु देखने में आया कि शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध होने पर भी सभी समुदायों व वर्गो ने आधुनिक शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया के प्रति समान प्रतिक्रियाएँ व्यक्त नहीं की। कुछ समुदायों ने इसे ग्रहण करने में तत्परता दिखाई तो कुछ ने उदासीनता। अध्ययनकर्ताओं ने शिक्षा ग्रहण की इस असमानता को बौद्धिकता, सामाजिक स्तरीकरण तथा सांस्कृतिक पिछड़ेपन के सन्दर्भ में समझने का प्रयास किया और मुख्यतः तीन निष्कर्षों को स्थापित किया। पहला, शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया बौद्धिकता से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहसम्बन्धित होती है। दूसरा, शिक्षा ग्रहण की असमानता समाज की वर्गीय संरचनात्मक विशेषताओं का परिणाम होती है। तीसरा, सांस्कृतिक पिछड़ापन शिक्षा ग्रहण में असामनता का प्रमुख कारण होता है। तीसरे निष्कर्ष में मान्यता है कि सामुदायिक संस्कृति ही शिक्षा ग्रहण में असमानता का मूल कारण है। समुदायों के बच्चों के पास कुछ आवश्यक गुण, भाषा, मनोवृति तथा मूल्यगत विशेषताएँ नहीं होती, इसलिए वे शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया में पिछड़ जाते है। परन्तु सांस्कृतिक विभिन्नताओं के कारण इन समुदायों की मान्यताएँ एवं सांस्कृतिक मूल्य भिन्न-भिन्न होते है जो सामुदायिक सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण करते है। सांस्कृतिक पर्यावरण समुदाय के सदस्यों की मनोवृत्तियों को तय करता है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया को सकारात्मक या नकारात्मक ढ़ंग से प्रभावित करता है। भारत में सभी समुदाय अपनी-अपनी सांस्कृतिक-सामुहिक पहचान को बनाये रखने के लिए भी कटिबद्ध है तथा समय-समय पर वें अपनी-अपनी सांस्कृतिक श्रेष्ठता का दावा भी करते है जो कभी-कभी सामुदायिक संघर्ष का कारण भी बन जाता है। इन समुदायों ने आधुनिक शिक्षा ग्रहण के प्रति भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएँ दी है।
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अध्ययन का उद्देश्य | विभिन्नताओं से युक्त भारतीय समाज में शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया को समझने के लिए समुदाओं की आधुनिक शिक्षा के प्रति सोच (जो उनके मूल्यों व अपेक्षाओं के रूप में परिलक्षित होती है) को जानना आवश्यक हो जाता है। प्रस्तुत पेपर हिन्दू व मुस्लिम समुदाओं की काॅलेज में अध्ययनरत निदर्शित छात्राओं (जिनकी औसत आयु 20 वर्ष है) में शिक्षा ग्रहण के प्रति उनके सामुदायिक मूल्यों एवं अपेक्षाओं को तुलनात्मक दृष्टि से जानने का प्रयास करता है। सामुदायिक मूल्य एवं अपेक्षाएँ तथा शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया अन्र्तसम्बन्धित होती है। निसंदेह सकारात्मक मूल्यों वाले लचीले एवं उदार प्रवृत्ति वाले समुदाय आधुनिक शिक्षा के प्रति अपेक्षाकृत तेजी से आकृष्ट होते हैं। अतः इस अध्ययन के दो प्रमुख उद्देश्य है-
1. आधुनिक शिक्षा ग्रहण के प्रति हिन्दू व मुस्लिम समुदाओं की काॅलेज में अध्ययनरत् छात्राओं की समुदायगत् मूल्यों एवं अपेक्षाओं को जानना।
2. दोनों समुदायों की समुदायगत् मूल्यों व अपेक्षाओं की तुलना करना।
उपर्युक्त अध्ययन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अध्ययन प्रक्रिया में किसी भी उपकल्पना का प्रयोग नहीं किया गया है। |
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साहित्यावलोकन | आधुनिक शिक्षा
सार्वभौमिकता, पंथ निरपेक्षता, स्वतन्त्रता, समानता इत्यादि तथाकथित आधुनिक
मूल्यों की वकालत करती है। इन मूल्यों को कुछ व्यक्ति पश्चिमी जगत के मूल्य भी
मानते है, जिसके कारण भारत के कुछ धार्मिक समुदाओं ने इसे
सहज रूप में अपनाया है तो कुछ ने इसे संकोच की दृष्टि से देखा है। संकोची धार्मिक
समुदाओं को यह डर बना रहता है कि कहीं पश्चिमी जगत के सांस्कृतिक मूल्य उनकी
सामूहिक-सांस्कृतिक पहचान को नष्ट न कर दें। अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में
हिन्दू समुदाय ने मुस्लिम समुदायों की अपेक्षा आधुनिक शिक्षा को सहज रूप से अपनाया
हैं। मुस्लिमों का इस प्रक्रिया में पिछड़ने का कारण उनकी वैचारिक प्रतिक्रियाओं से
भी स्पष्ट हो जाता है। भारतीय मुस्लिमों के उदारवादी पक्ष का मानना है कि
सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करते हुए मुस्लिम समुदाय के बच्चों को आधुनिक-व्यवसायिक
शिक्षा को अपनाना चाहिए, जबकि दूसरी ओर रूढ़िवादी पक्ष का
मानना रहा है कि पश्चिमी मूल्यों से युक्त आधुनिक व्यवसायिक शिक्षा इस्लामिक जीवन
शैली पर आक्रमण का एक माध्यम है। इसलिए सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए इससे दूर
रहना ही ठीक है तथा दीनी/मजहबी शिक्षा से ही उनका कल्याण सम्भव है। इस रूढ़िवादी
विचारधारा ने भारतीय मुस्लिमों में आधुनिक शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया की गति को धीमा
किया है। बृजभूषण (2005) ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि
भारतीय मुस्लिम समुदाय में अपेक्षाकृत आधुनिक शिक्षा के प्रति सकारात्मक मूल्यों व
अपेक्षाओं का अव है। रूडाॅल्फ एण्ड रूडाॅल्फ (1984) सैयद
शाहबुददीन (1984) तथा पीर मौहम्मद (1988) ने भी सांस्कृतिक पहचान नष्ट होने के भय को आधुनिक शिक्षा जगत में
भारतीय मुस्लिमों के पिछड़ने का मुख्य कारण माना है। अबू सलह शैरिफ (1995) का मानना है कि मुस्लिम समुदाय आर्थिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण
आधुनिक शिक्षा ग्रहण में पीछे है। औमर खिलदी (1995) ने भी
मुस्लिम समुदाय की आधुनिक शिक्षा में अरूचि को आर्थिक स्थिति के सन्दर्भ में देखा
है। यद्यपि राजनीतिक-प्रशासनिक उपेक्षाएँ तथा आर्थिक-व्यवसायिक कारण भी इस समुदाय
के पिछड़ने के प्रमुख कारणों में से है परन्तु प्रस्तुत पेपर हिन्दू व मुस्लिम
समुदाय में शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया को उनके केवल समुदायगत मूल्यों एवं अपेक्षाओं
के संदर्भ में समझने का प्रयास कर रहा है। |
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मुख्य पाठ |
अध्ययन उद्देश्यों के अनुरूप दोनों समुदायों की निदर्शित छात्राओं से उनकी समुदायगत् मूल्यों व अपेक्षाओं से सम्बन्धित प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करने के लिए एक संरचित प्रश्नावली का प्रयोग किया गया जिसमें प्रथम तीन प्रश्न मूल्यगत् प्राथमिकताओं से सम्बन्धित थे तथा अन्य तीन प्रश्न अपेक्षाओं से सम्बन्धित थे। निदर्शित छात्राओं से शिक्षा ग्रहण के प्रति उनके समुदायगत मूल्यों व अपेक्षाओं के बारे में प्राथमिक आंकड़ों के रूप में जो प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई उनका विवरण तालिका संख्या 1, 2 तथा 3 में दिया गया है। |
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निष्कर्ष |
मुख्य पाठ में प्रदर्शित तालिकाएँ निदर्शित छात्राओं की शिक्षा ग्रहण के प्रति उनकी मूल्यगत् प्राथमिकताओं एवं अपेक्षाओं के आंकड़े प्रस्तुत करती है। इन आंकड़ों के विश्लेषण से प्राप्त निष्कर्ष निम्नवत् है-
मूल्यगत् सामुदायिक प्राथमिकताएँः- तालिका सं॰ 1 तथा 2 निदर्शित छात्राओं की मूल्यगत् प्राथमिकताओं को प्रदर्शित करते है। जब जीवन के लक्ष्य के बारे में छात्राओं से पूछा गया तो पाया गया कि 65 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने कहा कि उच्च शिक्षा प्राप्त करना उनके जीवन की प्राथमिकताओं में है वहीं 32 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने उच्च शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान की है। यह तथ्य दोनों समुदायों की शिक्षा ग्रहण के प्रति रूचि एवं प्राथमिकताओं को प्रदर्शित करता है। 27 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने सफल रोजगार को जीवन का लक्ष्य स्वीकार किया है, वही दूसरी ओर मात्र 12 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने ही सफल रोजगार को प्राथमिकता दी है।
जब निदर्शित छात्राओं से यह पूछा गया कि जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्या है? तो प्रतिक्रिया स्वरूप दोनेां समुदायों की छात्राओं की प्राथमिकताओं में काफी अन्तर पाया गया जो दोनों समुदायों में आधुनिक शिक्षा को लेकर उनके दृष्टिकोणों को प्रदर्शित करता है। 72 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने आधुनिक शिक्षा को जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जबकि इनकी तुलना में 29 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने ही आधुनिक शिक्षा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना। मजहबी/दीनी शिक्षा तथा मजहबी पहचान को क्रमशः 27 प्रतिशत तथा 22 प्रतिशत ने प्राथमिकता प्रदान की है जबकि हिन्दू छात्राएँ मजहबी शिक्षा व पहचान को लेकर गम्भीर नहीं पायी गयी। केवल 9 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने मजहबी शिक्षा को प्राथमिकता दी तथा केवल 2 प्रतिशत हिन्दू छात्राएँ ही मजहबी पहचान को प्राथमिकता प्रदान करती पायी गयी। इन आंकड़ों से यही प्रदर्शित होता है कि अधिकतर निदर्शित हिन्दू छात्राओं की प्राथमिकता में आधुनिक शिक्षा पायी गयी। जबकि मुस्लिम छात्राओं की प्राथमिकता में दीनी शिक्षा एवं पहचान को स्थान दिया है यद्यपि 29 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने आधुनिक शिक्षा को प्राथमिकता दी है जो आधुनिक शिक्षा को प्राथमिकता प्रदान करने वाली 72 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं से काफी कम है।
अध्ययनरत निदर्शित छात्राओं से यह पूछा गया कि बच्चे के लिए सर्वाधिक जरूरी क्या है? तो हिन्दू छात्राओं में से 44 प्रतिशत ने आधुनिक शिक्षा को तथा 42 प्रतिशत ने अच्छे स्वास्थ्य को जरूरी बताया जबकि दूसरी तरफ 40 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने अच्छे स्वास्थ्य को तथा 29 प्रतिशत ने आधुनिक शिक्षा को जरूरी माना। इसके अलावा 21 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने कहा कि बच्चे के लिए दीनी शिक्षा सर्वाधिक जरूरी है जबकि केवल 3 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने कि कहा कि बच्चे के लिए धार्मिक शिक्षा सर्वाधिक जरूरी है।
सामुदायिक अपेक्षाएँः- आधुनिक शिक्षा ग्रहण के प्रति निदर्शित छात्राओं की अपेक्षाओं से सम्बन्धित आंकड़े तालिका सं॰ 3 प्रदर्शित करती है। शिक्षा व्यवस्था के स्वरूप, तथा इसकी जिम्मेदारी तथा सरकार (राज्य) के सम्बन्ध में छात्राओं की अपेक्षाओं को जानने का प्रयास किया गया। 93 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं की अपेक्षा थी कि शिक्षा का स्वरूप पंथनिरपेक्ष ही होना चाहिए जबकि दूसरी ओर 78 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं की अपेक्षा थी कि इसे पंथनिरेपक्ष होना चाहिए। 22 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं की अपेक्षा थी कि शिक्षा का स्वरूप मजहबी होना चाहिए, साथ ही 42 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने कहा कि शिक्षा का स्वरूप मजहबी व पंथनिरपेक्ष दोनों होना चाहिए। दोनों ही समुदायों की सभी छात्राओं ने शिक्षा के रोजगार परक स्वरूप को मान्यता दी है।
शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी किसे उठानी चाहिए? इसकी प्रतिक्रिया में 45 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने कहा कि यह सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए जबकि 82 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने कहा कि यह जिम्मेदारी सरकार को उठानी चाहिए। 72 प्रतिशत हिन्दू छात्राओं ने समाज व सरकार को इसके लिए संयुक्त रूप से जिम्मेदार माना है। जबकि 48 प्रतिशत मुस्लिम छात्राओं ने ही इस संयुक्त जिम्मेदारी को स्वीकारा है। 82 प्रतिशत हिन्दू छात्राएँ तथा 93 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएँ शिक्षा की जिम्मेदारी प्राईवेट संस्थानों को देने के पक्ष में नहीं है।
शिक्षा के लक्ष्य-पूर्ति हेतु सरकार से छात्राओं की क्या अपेक्षाएँ है यह जानने का प्रयास किया गया। पाया गया कि सभी को मुफ्त शिक्षा सरकार दिलाये इस पक्ष में 68 प्रतिशत हिन्दू छात्राएँ तथा 85 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएँ पायी गयी। सरकार को केवल गरीबों की शिक्षा का खर्च उठाना चाहिए तो इसे लेकर 71 प्रतिशत हिन्दू छात्राएँ पक्ष में पायी गयी जबकि केवल 20 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएँ ही पक्ष में थी। 78 प्रतिशत हिन्दू छात्राएँ तथा 92 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएँ इस पक्ष में नहीं थी कि शिक्षा का सम्पूर्ण दायित्व समाज का होना चाहिए। मजहबी शिक्षण संस्थानों के आधुनिकीकरण के पक्ष में दोनों ही समुदायों की अधिकतर छात्राओं ने अपना मत हाँ में प्रकट किया। इस हेतु 73 प्रतिशत हिन्दू छात्राएँ तथा 62 प्रतिशत मुस्लिम छात्राएँ पक्ष में है। इस प्रकार देखने में आया कि कुल मिलाकर दोनों समुदायों की छात्राओं की मूल्यगत् प्राथमिकताओं एवं अपेक्षाओं में भिन्नता पायी गयी जो इनकी शिक्षा ग्रहण प्रक्रिया को प्रभावित करती है। |
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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. Peer Mohammed (1988), Religion and Education: A study of Muslim community in Banglore city. Ph.D. Thesis Banglore University. A summary of Thesis was published as Muslim Education in India; Problems and Prospects, Manglore, Karnataka, Muslim Pragati Parished, 1991. PP 134
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3. Shahbuddin, Syed (1984), Muslim Education in India, Self Identity and National Purpose. Islam and Modren age, 15 No 1 PP 61-67
4. Brij Bhushan (2005), A comparative study of Education Attainment process among Hindu, Muslim & Christain communitys of Saharanpur city, Unpublished Thesis, H.N. B Ghrawal University Shrinagar, P.P. 121-123.
5. Abusaleh Shariff (1995), Socio-Economic and Demographic Differential between Hindu and Muslim in India, Economic and Political Weekly, Vol. 30, No. 46 (Nov 18-1995) PP 2947-2953.
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