|
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
जनपद अम्बेडकरनगर (उ0प्र0) में शस्य प्रतिरूप में परिवर्तन: एक भौगोलिक विश्लेषण | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Change in Cropping Pattern in District Ambedkar Nagar (U.P.): A Geographical Analysis | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
Paper Id :
17610 Submission Date :
2023-04-13 Acceptance Date :
2023-04-22 Publication Date :
2023-04-25
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited. For verification of this paper, please visit on
http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
|
|||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
| |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सारांश |
किसी के देश में उगाई जाने वाली विविध फसलों के क्षेत्रीय वितरण से बने प्रतिरूप को कांस्य प्रतिरूप कहा जाता है। इसके अन्तर्गत एक प्रदेश के सकल फसल क्षेत्रफल से विभिन्न फसलों के प्रतिशत की मात्रा का पता लगा कर उनका सापेक्षिक महत्व ज्ञात किया जाता है। विभिन्न फसलों के प्रतिशत की गणना करने के पश्चात् फसलों को अलग-2 श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है जिससे कांस्य-स्वारूप के अनेक आर्थिक पहलुओं की जानकारी मिलती है। किसी भी क्षेत्र विशेष का कांस्य प्रतिरूप उसके भौतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारकों के परस्पर प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न और विकसित होता है। अतः शस्य प्रतिरूपं इन कारकों के सम्मिलित प्रभावों का द्योतक है। कांस्य प्रतिरूप की अवधारणा फसलों के न केवलं क्षेत्रीय वितरण वरन् उसके कालिक क्रम से भी सम्बन्धित होती है। एक ओर जहाँ इसके अन्तर्गत विभिन्न फसलों के प्रतिशत को लिया जाता है। तो दूसरी ओर कृषक द्वारा अपनाये गये फसल चक्र की स्थिति भी इसमें प्रदर्शित होती है। फसल प्रतिरूप में समाज की माँग के अनुरूप समय-समय पर परिवर्तन होते हैं। अतः कांस्य प्रतिरूप का कालिक अनुक्रमण की क्षेत्र के कृषि विकास को समझाने में सहायक है।
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद | A model made of the regional distribution of the various crops grown in one's country is called a bronze model. Under this, their relative importance is ascertained by ascertaining the percentage of different crops from the gross crop area of a region. After calculating the percentage of different crops, the crops are classified into different-2 categories, which gives information about many economic aspects of bronze-form. The bronze model of any particular region arises and develops as a result of interaction of its physical, economic, social and cultural factors. Therefore, the cropping pattern reflects the combined effects of these factors. The concept of bronze pattern is not only related to the regional distribution of crops but also their temporal sequence. On the one hand, the percentage of different crops is taken under it. On the other hand, the status of the crop cycle adopted by the farmer is also reflected in it. The cropping pattern undergoes changes from time to time according to the demands of the society. Hence the chronological sequencing of the bronze model is helpful in understanding the agricultural development of the region. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द | फसलें, खाद्यान्न फसलें, दलहनी फसलें, तिलहनी फसलें, मुद्रादायिनी फसलें, अन्य फसलें। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद | Crops, Food Crops, Pulse crops, Oilseed Crops, Currency Crops, Other Crops. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
प्रस्तावना |
भूमि एक आधारभूत प्राकृतिक संसाधन है। जिसमें फसलों, पशुओं तथा कृषि उद्यमों प्रतिरूपों से यह निश्चित होता है कि कितनी खेती योग्य भूमि विविध कृषि कार्यों के लिए प्रयुक्त की जा रही है। ये सब सामाजिक आर्थिक प्रभावों पर निर्भर करते हैं जिससे कृषक की उद्यम के चयन तथा कृषि कार्य में भूमि उपयोग के चयन तथा कृषि कार्य में भूमि उपयोग के चयन तथा कृषि कार्य में निवेश की गहनता निर्धारित होती है कोपॉक (1968) इनका निश्चित मत है कि ग्रामीण भूमि के प्रति अभिवृत्ति तथा समृद्धि एवं प्राविधिकी के स्तरों में भिन्नता ने महत्व में परिवर्तन उत्पन्न किये है। जिनके भूदृय तथा भूमि उपयोग के अध्ययनों पर दूरगामी प्रभाव होंगे। सम्भवतः सबसे क्रान्तिकारी परिवर्तन सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार तथा खेतों में आधुनिक कृषि प्राविधिक का प्रयोग है।
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अध्ययन का उद्देश्य | प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य अध्ययन क्षेत्र में शस्य प्रतिरूप में परिवर्तन के कारण का पता लगाना जैसे सिन्हा (1964) ने यह मत व्यक्त किया कि ’’भारत जैसे परम्पराबद्ध देश में जहाँ ज्ञान का स्तर अति निम्न है। कृषक नवीन प्रयोग करने में संकोच करते हैं वे प्रत्येक वस्तुओं को भाग्य की देन समझकर स्वीकार करते हैं उनके लिए कृषि जीवन की एक पद्धति है वाणिज्यिक प्रस्ताव नही है। अशिक्षित, रूढ़िगत कृषक समाज के शस्य प्रतिरूप के परिवर्तन की कोई सम्भावना नही है।’’ वास्तविकता तो यह है कि जनपद अम्बेडकनगर कांस्य प्रतिरूप में परिवर्तन के लिए अपरिहार्य बन गया है। परन्तु कांस्य क्रम में गहनता एवं वैज्ञानिक कृषि पद्धति तथा माँग एवं पूर्ति पर आधारित मुद्रादायिनी फसलों की कृषि की ओर अधिक झुकाव होगा भूमि उपयोग हेतु आयोजन प्रस्तुत की जा सके। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
साहित्यावलोकन | अध्ययन
क्षेत्र में तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण सीमित भूमि संसाधनों पर दबाव निरन्तर बढ़ता
जा रहा है। जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए
भूमि में अधिकाधिक फसलें प्राप्त करने के प्रयासों एवं वाणिज्यिक कृषि हेतु भूमि पर निरन्तर एक ही फसल के उत्पादन से मिट्टी
की उत्पादकता एवं उर्वरता का निरन्तर ह्रास हो रहा है। मनुष्य के आर्थिक क्रियाकलापों दोषपूर्ण कृषि
पद्धतियों के कारण मिट्टी का अपरदन तीव्रतर हो गया है। इन सब कारणों से कांस्य
प्रतिरूप प्रभावित हो रही है। जिसमे भौतिक एवं प्राविधिक कारक,
आर्थिक कारक महत्वपूर्ण है। कृष्णन एवं सिहं (1972)-
के अनुसार किसी देश के शस्य
प्रतिरूप के अध्ययन में जलवायु तथा मिट्टी की दशाएँ आधारभूत होती है क्योंकि ये फसले प्रादेशिक तथा
भूमिगत पर्यावरण का निर्माण करती है। बड़ी संख्या में भारत के कृषि प्रदेशों का
कांस्य प्रतिरूप एक अर्द्धविकसित कृषीय अर्थव्यवस्था का प्रतिरूप है। जिससे अधिकांश
कृषित क्षेत्र पर निर्वाहक खाद्यान्न उगाये जाते हैं। इनका उपयोग घरेलू उपयोग तथा
स्थानीय बाजारों के लिए होता है। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
परिकल्पना | अध्ययन क्षेत्र में कृषि कार्य सम्पूर्ण वन एवं जंगल एवं मैदान जैसी भू-आकृतियों का आधिक्य था इस दशा में कांस्य प्रतिरूप का विकास कर पाना सम्भव नहीं था। जिससे धीरे-2 जलवायु परिवर्तन की दशाओं में सुधार एवं जनसंख्या दबाव के कारण अस्थायी कृषि का प्रादुर्भाव हुआ। जिससे जीवन निर्वाहक कृषि पद्धति का विकास हो सका। धीरे-धीरे कृषि क्षेत्र का विकास हुआ एवं आकृष्य क्षेत्र में कमी होती गई एवं नवीन तकनीकि के उपयोग से कृषि कांस्य प्रतिरूप में एवं वैज्ञानिक मुद्रादायिनी फसलों की कृषि के प्रति व्यक्तियों का अधिक झुकाव होगा। इस व्यवस्था से कांस्य प्रतिरूप में परिवर्तन में व्यापारिक पक्ष एवं मानव के भरण-पोषण पर ध्यान दिया गया है। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सामग्री और क्रियाविधि | प्रस्तुत अध्ययन में अवलोकनात्मक एवं विश्लेषणात्मक विधि तंत्रो का प्रयोग करते हुए पूर्णतः द्वितीयक आकड़ों का प्रयोग किया गया है प्राथमिक आंकड़े प्रायः सर्वेक्षण पर आधारित होते है इन आँकड़ो का एकत्रीकरण कृषकों से व्यक्तिगत पूछताछ प्रक्रिया के द्वारा किया गया है इसी प्रकार द्वितीयक आँकड़े विकासखंड स्तर पर कार्यलयों से प्रकाशित एवं अप्रकाशित दोनो रूपों से लिया गया है। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी | जनपद अम्बेडकर नगरे पूर्वी (उ0प्र0) के अयोध्या मंडल में स्थिति है जो एक कृषि प्रधान जनपद है। जनपद का भौगोलिक विस्तार 26°11 मिनट उत्तर से 26°40 मिनट उत्तरी अक्षांश तथा 82°22 मिनट पूर्व से 83°0 मिनट पूर्वी देशान्तर तक विस्तार है जनपद की सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्रफल 2350 वर्ग किमी० है। प्रशासनिक दृष्टि से 5 तहसीलें अकबरपुर, टांडा, जलालपुर, भीटी, आलापुर है। अध्ययन क्षेत्र में विकासखण्डों की संख्या 9 हैं जो इस प्रकार है- अकबरपुर, कटेहरी, भीटी, टांडा, बसखारी, जलालपुर, भियांव, रामनगर जहाँगीरगंज है। जिसकी कुल जनसंख्या 3298708 (2011), जनसंख्या घनत्व 950 प्रति वर्ग किमी०, साक्षरता दर 72.23 प्रतिशत, लिंगानुपात 978, समुद्रतल से स्थलखंड की ऊंचाई 188.0 मी० है।
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विश्लेषण | स्थानिक कालिक विश्लेषण- अध्ययन क्षेत्र परिवर्तित फसल प्रतिरूप सतत् विकास का द्योतक होता है। समय के साथ तकनीकि विकास के साथ मानव के प्रगति की लालसा ने कृषि क्षेत्र में अभूर्तपूर्व परिवर्तन लाया है। अध्ययन क्षेत्र में वर्ष 1994-95 में कृषित क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत भाग खाद्यान्न फसल उत्पादन में प्रयुक्त होता था जो वर्ष 2019-20 में घटकर 86 प्रतिशत हो गया है। वहीं जनपद में वर्ष 2019-20 में रबी के फसलों की क्षेत्रफल 41.30 प्रतिशत एवं खरीफ फसलों का क्षेत्रफल 38.32 प्रतिशत बढ़कर हो गया है। जनपद में तिलहन फसलों की वृद्धि देखी गई है।वर्ष 1994-95 में तिलहन 0.56 प्रतिशत भाग पर बोई जाती थी जो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 1.34 प्रतिशत हो गई है। कांस्य प्रतिरूप कृषक की आवश्यकताओं तथा सामाजिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्धारित होता है। जिसके कारण सामाजिक परिवर्तन होने पर कांस्य प्रतिरूप देखने को मिलते है। अतः कांस्य प्रतिरूप स्थायी नही होता है। वरन् समय, तकनीकि, उर्वरक, बीज, सिंचाई सुविधाओं के विकास एवं मनुष्य की आवश्यकताओं में परिवर्तन के साथ-2 कांस्य प्रतिरूप में भी परिवर्तन होता रहा है। कांस्य प्रतिरूप को निर्धारित करने वाले कारकों में मिट्टी, वर्षा, सिंचाई, जोत का आकार, श्रम शक्ति, यातायात, पूंजी एवं बाजार का महत्वपूर्ण स्थान है। कृषक ऐसे फसलों का चुनाव करता है जो अधिकतम उत्पादन और अधिकतम लाभ प्रदान कर सकें।
स्रोत - सांख्यिकी पत्रिका वर्ष 1994-95। जनपद में कांस्य प्रतिरूप प्रतिशत में वर्ष 2019-20
स्रोत - सांख्यिकी पत्रिका वर्ष 2019-20। फसलें- कृषि भूमि पर वर्ष में अनेक फसलें उगाई जाती है। खाद्यान्न दलहन, तिलहन एवं मुद्रादायिनी फसलें मौसम के अनुरूप बोई जाती है। एक ही खेत पर एक ही फसल वर्ष में एक, दो व तीन-तीन फसलें उगाई जाती हैं। फसलों की उत्पादन मृदा की क्षमता, सिंचाई, उर्वरकों और उन्नतशील बीजों आदि पर निर्भर करता है। खाद्यान्न फसलें- अम्बेडकर
नगर जनपद की खाद्यान्न फसलें कृषि प्रधान है। यही खाद्यान्न फसल क्षेत्र के लगभग 93 प्रतिशत
भाग पर खाद्यान्न फसलें उगाई जाती है। खाद्यान्न फसलों में गेहूँ, धान, दलहन, ज्वार, बाजरा, मक्का, तिलहन आदि
का उत्पादन प्रमुख रूप से आता है। विभिन्न
फसलों के उत्पादन का वितरण निम्नवत है- गेहूँ- गेहूँ
अम्बेडकर नगर जनपद की प्रमुख फसल है। सम्पूर्ण कृषि क्षेत्र के 40.79 प्रतिशत
क्षेत्र पर गेहूँ की खेती की जाती है। वर्ष 1994-95 में
गेहूँ कृषि के 39.66 प्रतिशत
क्षेत्र पर उगाया जाता था। उस समय जलालपुर
विकासखंड में सर्वाधिक क्षेत्र 41.28 प्रतिशत गेहूँ से आच्छादित है इसके उपरान्त क्रमशः घटते
क्रम में अकबरपुर (41.23 प्रतिशत), बसखारी (40.16 प्रतिशत), जहाँगीरगंज
(39.63 प्रतिशत), भियाँव (39.63 प्रतिशत), रामनगर (39.31 प्रतिशत),
भीटी (38.81 प्रतिशत), कटेहरी (38.60 प्रतिशत), टांडा (38.29 प्रतिषत)
विकासखण्डों का स्थान है। वही वर्ष 2019-20 में जनपद
स्तर पर गेहूँ का कुल उत्पादन क्षेत्र बढ़कर 40.79 प्रतिशत हो गया, वही विकासखंड स्तर पर देखे तो क्रमशः जलालपुर 47.08 प्रतिशत, भियांव 42.83 प्रतिशत, जहाँगीरगंज
42.08 प्रतिशत, कटेहरी 41.56 प्रतिशत, बसखारी 40.16 प्रतिशत, रामनगर 40.49 प्रतिशत, टांडा 35.40 प्रतिशत, भीटी 39.20 प्रतिशत
पाया गया है। जनपद में गेहूं की कृषि क्षेत्र निरन्तर बढ़ता जा रहा है इसमें सिंचाई
सुविधाओं के विकास, उर्वरकों और उन्नतशील बीजों के प्रभाव से गेहूँ की उत्पादकता प्रभावित हुई है। धान- अध्ययन
क्षेत्र में सर्वाधिक क्षेत्रफल पर बोयी जाने वाली दूसरी फसल धान है। वर्ष1994-95 में
कुछ विकासखंड मुख्य है जो टांडा में 41.45 प्रतिशत, अकबरपुर 41.099 प्रतिशत, कटेहरी 43.22 प्रतिशत, विकासखण्डों में 40 प्रतिशत
से अधिक क्षेत्रफल पर धान की फसल उगाई जाती थी वहीं वर्ष 2019-20 में
बसखारी 43.98 प्रतिशत, जलालपुर 43.11 प्रतिशत, कटेहरी 41.88 प्रतिशत क्षेत्रफल पर धान उगाया जाने लगा इस प्रकार 2019-20 में चावल की फसल उगाने में लागत अधिक
होने के कारण किसानों का रूझान अन्य फसलों की ओर बढ़ गया है। ज्वार, बाजरा, मक्का- खरीफ फसलों में ज्वार, बाजरा, मक्का का
महत्वपूर्ण स्थान है। उबड़ खाबड़ और समतल भूमि में भी खरीफ फसलों के साथ बुआई कर दी
जाती है वर्षा का जल यदि थोड़ा बहुत भी मिलता रहा तो इनकी पैदावार हो जाती है। इनका
प्रयोग खाद्यान्न के रूप में भी प्रयोग में लाये जाते है। वर्ष 1994-95 में
अध्ययन क्षेत्र में 0.93 प्रतिशत
कृषित क्षेत्र पर मोटे अनाज उगाये जाते थे इस समय सबसे अधिक क्षेत्रफल भियांव 1.92 प्रतिशत, जलालपुर 1.40 प्रतिशत, भीटी 1.31 प्रतिशत, जहांगीरगंज
1.03 प्रतिशत
विकासखण्डों मे मोटे अनाज उगाये जाते थे
लेकिन जैसे-2 सिंचाई
के साधनों,
उन्नति किस्म के बीजों और कृषियंत्रों का विकास होता गया, इस फसल का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है।
यहाँ के किसान दूसरी अधिक उत्पादन और लाभ देने वाली फसलों को उगाना प्रारम्भ कर दिये है। वर्ष 2018-20 तक इसका
क्षेत्रफल सिकुड़कर 0.36 प्रतिशत
शेष रह गया है। वर्तमान समय में केवल
भियांव विकासखंड में सबसे अधिक 1.03 प्रतिशत
सर्वाधिक क्षेत्रफल पर ज्वार मुख्य योगदान है। दलहनी फसले- अम्बेडकर
नगर जनपद में प्रमुख दलहनी फसलें अरहर, चना,
मटर,
मूंग,
मसूद,
उड़द आदि है। दलहनी
फसलें रबी,
खरीफ एवं जायद तीन कांस्य ऋतुओं में उगाई जाती है। वर्ष 1994-95 में
अध्ययन क्षेत्र के सम्पूर्ण कृषि क्षेत्र
के 7.35 प्रतिशत
क्षेत्र पर दलहनी फसलें उगायी जाती है। विकासखंड स्तर पर भीटी 8.87 प्रतिशत, जहाँगीरगंज
8.77, अकबरपुर 7.09 प्रतिशत
आदि है। उस समय सिंचाई की सुविधाओं का कम विकास
होने से कृषक ऊंची एवं नीची भूमि
पर अरहर की बुआई कर देता था लेकिन जैसे-2 सिंचाई साधनों का विकास, खाद्यान्न
की मांग अन्य लाभदायक फसलों का विकास हो जाने से कृषकों का रुझान कम होता गया
क्योंकि अरहर की खेती एकवर्षीय होती थी। फसलों मे कीटों का प्रकोप अत्याधिक बढ़ता
जा रहा है। जिससे दलहनी फसलों में छमाही
फसलों की तरफ झुकाव बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2019-20 में दलहन के क्षेत्र का विस्तर 3.44 प्रतिशत
कृषि क्षेत्र पर पाया जाता है। वर्तमान समय में विकास खंड स्तर में देखे तो भीटी 6.44 प्रतिशत, अकबरपुर 4.02 प्रतिशत, जलालपुर 3.33 प्रतिशत
निरन्तर घटते क्रम में पायी जाती है। भोजन
में प्रोटीन का मुख्य स्रोत दालें है
इसलिए इसका महत्व बना हुआ है। दलहनी फसलों की जड़ों में नाइट्रीफिकेशन होता
है जिससे उर्वरा शक्ति बनी रहती है। तिलहनी फसलें- अध्ययन
क्षेत्र में प्रमुख तिलहनी फसल सरसों है इसके अतिरिक्त, सूरजमुखी, सरसों, मूंगफली, अलसी, तिल,
आदि आते है तिलहन फसलें मुख्यतः रबी एवं जायद के मौसम में
उगायी जाती है। वर्ष 1994-95 के आस-पास तिलहन क्षेत्र सम्पूर्ण कृषि के
मात्र 1.22 प्रतिशत
क्षेत्र पर प्रसारित था लेकिन बढ़ती जनसंख्या एवं
खाद्य तेल की मांग को देखते हुए किसान तिलहन की फसलें अधिक पैदा करने लगें
है यही कारण है कि वर्ष 2019-20 तक तिलहन
का क्षेत्र में 1.39 प्रतिशत
की वृद्धि दर्ज की गई। तिलहन को अन्य फसलों के साथ भी अधिक उगाया जाता रहा है।
जैसे गेहूँ,
चना,
मटर,
मसूर आदि फसलों के साथ उगाया जाता था लेकिन वर्तमान समय में
एकल फसली कृषि की जाने लगी है। क्योंकि उन्नति किस्म के बीजों, सिंचाई, साधनों
कीटनाशकों आदि के प्रयोग के कारण तिलहन उत्पादन में वृद्धि
हुई है। मुद्रादायिनी फसलें- अध्ययन
क्षेत्र में आलू,
गन्ना,
केला मेंथा आयल आदि है। आलू एवं मेंथा आयल कम समय में तैयार
होने वाली फसलें है। जायद फसलों को भी आलू वाले खेतों में उगाया जाता है। सिंचाई
के साधनों,
उर्वरको, कृषि यंत्रों उन्नत किस्म के बीजों आदि के
विकास के कारण आलू की फसल उगाना बहुत ही आसान हो गया है। वर्ष 1994-95 में आलू
और गन्ना का क्षेत्र का 5.66 प्रतिशत
था जो 2019-20 में घटकर
4.95 प्रतिशत
हो गया है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि किसानों का झुकाव नगदी फसलों में केला एवं
मेंथा आयल की तरफ बढ़ा है। वर्तमान समय में
सर्वाधिक मुद्रादायिनी फसलों का क्षेत्रफल भीटी में 7.23 प्रतिशत
पाया जा रहा है। इसके अतरिक्त कटेहटी 4.23 प्रतिशत, अकबरपुर 5.23 प्रतिशत, भियांव 9.3 प्रतिशत, बसखारी 3.27 प्रतिशत, रामनगर 4.91 प्रतिशत, जहांगीरगंज
4.98 प्रतिशत, जजालपुर 3.11 प्रतिशत
क्षेत्रफल पर आलू एवं गन्ना की फसलें उगाई जा रही है।
अन्य फसलें-
खाद्यान्न और मुद्रादायिनी फसलों के अतिरिक्त जनपद में अन्य फसलें भी उगाई जाती
रही है लेकिन उनका प्रतिशत योगदान बहुत कम है। पहले कोदो, कुटकी, सावां, मकरा आदि
छोटे कठोर दाने वाली फसलें उगाई जाती थी
लेकिन अब ये लगभग लुप्त हो गई है। चारा फसलों में चरी बजड़ी जौ, जई, बरसीम आदि
की खेती की जाती है लेकिन इनकी प्रतिशत एक
से भी कम है। फल और सब्जियों का उत्पादन बढ़ रहा है। सब्जियों से किसानों को नगद
पैसा मिल जाता है जिससे वे अपने खेतों मे भिन्न-भिन्न समय में तैयार होने वाली
सब्जियां उगा रहे है। जायद फसलों मे खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, सब्जियाँ
प्रमुख है किसानो का प्रत्येक मौसम में मुद्रा लाभ हो सकता हो सिंचाई सुविधाओं के
विकास के कारण नित नई-नई फसलें उगाने का प्रयोग हो रहा है जिससे किसानों
को अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निष्कर्ष |
अध्ययन क्षेत्र अम्बेडकर नगर जनपद के अन्तर्गत कांस्य प्रतिरूप में हो रहे परिवर्तन को स्पष्ट करना जिससे कृषकों का प्रचीन से नवीनता में कितना परिवर्तन देखा गया है। इस पर सामाजिक एवं आर्थिक कारकों का प्रभाव भी अच्छी तरह दिखाई पड़ता है क्षेत्रीय विषमताओं के आधार पर विकासखंड स्तर पर एवं जनपद स्तर पर होने वाले परिवर्तनों को स्पष्ट किया गया। किसानों को पुराने तकनीकि को छोड़कर नई तकनीकि का सहारा लेना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए समावेशी विकास पर जोर देने की जरूरत है। तकनीकि का अधिकाधिक विकास करना आवश्यक है। क्योंकि कृषक को मजदूरी पर काफी व्यय करना पड़ता है। इससे अधिक उपज एवं कम व्यय वाली फसलों का विकास करके अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सके। |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची | 1. हुसैन, माजिद (1996): ओ०पी० आई०टी०, पृ० 360
2. भाटिया, एस०एस० (1965): पैटर्न ऑफ क्राप कन्सेन्टेशन एड डाईवर्सिफिकेशन इन इंडिया ।
3. तिवारी, आर०सी० एवं सिंह, बी० एन (2008 संशोधित संस्करण) कृषि भूगोल प्रयाग पुस्तक भवन, इलाहाबाद पृ० 761।
4. सिंह, बी०सी० एवं सिंह, एस० पी० (1974): शस्य समिश्र ण विधि अध्ययन में एक पुनर्विलोकन, उत्तर भारत भूगोल पत्रिका अंक 10 संख्या 1-2 पृष्ठ-1
5. सांख्यिकीय पत्रिका अम्बेडकरनगर वर्ष 1994-95, 2019-20।
6. गौतम अलका (2022): कृषि भूगोल, शारदा पुस्तक भवन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, यूनिवर्सिटी रोड प्रयागराज, पृ.: 46-152। |